This document provides comprehensive guidelines and procedures related to the Right to Information Act, 2005. It details the objectives of the Act, defines key terms like ‘information’ and ‘public authority,’ and outlines the roles and responsibilities of Public Information Officers (PIOs) and Assistant Public Information Officers (APIOs). The guidelines cover the process of seeking information, including the application format, fees, and the exemptions from disclosure. It also explains the procedures for appeals, complaints, and the proactive disclosure requirements for public authorities. The document emphasizes the importance of transparency and accountability in governance and aims to empower citizens by facilitating access to information.
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सं. 1/32/2013-आई.आर.
भारत सरकार
कार्मिक, लोक शिकायत तथा पैशन मंत्रालय
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग
नॉर्थ ब्लॉक, नई दिल्ली,
दिनांक: 28 नवम्बर, 2013
कार्यालय ज्ञापन
विषय : मार्गनिर्देशिका, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अनुसार अद्यतन विवरण।
सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 26 मे सरकार से यह अपेक्षा की गई है कि वह ऐसी सूचनाओं को शामिल कर आसान भाषा तथा शैली में मार्गनिर्देशिका का संकलन करे जिसकी आवश्यकता ऐसे किसी व्यक्ति को हो जो इस अधिनियम में विनिर्दिष्ट किसी भी अधिकार का प्रयोग करना चाहता हो। इसके अतिरिक्त इसमें सरकार से इसको नियमित अन्तराल पर अद्यतन करने की अपेक्षा की गई है। तदनुसार अधिनियम के संबंध में अद्यतन की गई मार्गनिर्देशिका एतदद्वारा ऑनलाईन प्रकाशित की जाती है जिससे सभी पणधारियों अर्थात् सूचना मांगने वाले को सूचना प्राप्त करने, लोक सूचना अधिकारियों को सूचना का अधिकार आवेदनों के निपटान, प्रथम अपीलीय प्राधिकारियों को अपीलों पर ठोस निर्णय लेने और लोक प्राधिकारियों को अधिनियम के विभिन्न प्रावधान को गंभीरता से कार्यान्वित करने में मदद मिलेगी।
(संदीप जैन)
निदेशक
दूरभाष : 23092755# अस्वीकरण
यद्यपि परिशुद्धता और संगति बनाए रखना सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव सावधानी बरती गई है, तथापि मार्गनिर्देशिका और इस विषय पर सरकारी आदेशों/अनुदेशों के बीच किसी प्रकार का परस्पर विरोध होने पर सरकारी आदेश/अनुदेश अभिभावी होंगे।
यहां दी गई किसी भी सूचना को किसी विवाद अथवा मुकदमे में उदघृत नहीं किया जा सकता, न ही यह किसी कानूनी व्याख्या/साक्ष्य का विकल्प है। इस मार्गनिर्देशिका में निहित सूचना के आधार पर लिए गए निर्णय के परिणामों के लिए उपयोगकर्ता स्वयं उत्तरदायी होगा।# मार्गनिर्देशिका
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005संविधान में अप्रत्यक्ष रूप से सूचना के अधिकार की गारंटी दी गई है। तथापि, नागरिकों को अधिकार के रूप में सूचना प्राप्त करने की व्यावहारिक व्यवस्था करने के उद्देश्य से, भारतीय संसद ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 को अधिनियमित किया है। यह कानून अत्यधिक व्यापक है और इसमें शासन के लगभग सभी मामले शामिल किए गए हैं। यह कानून सरकार के सभी स्तरों अर्थात संघ, राज्य और स्थानीय स्तर पर लागू होने के साथ-साथ उल्लेखनीय सरकारी अनुदान प्राप्त करने वालों पर भी लागू है अतः इसकी पहुंच व्यापक है।
2. वर्तमान मार्गनिर्देशिका सभी पणधारियों द्वारा प्रयोग किए जाने हेतु अद्यतन एवं समेकित दिशा-निर्देश है। इस मार्गनिर्देशिका में पांच भाग हैं। मार्गदर्शिका के भाग-। में अधिनियम के कुछ ऐसे पहलुओं पर चर्चा की गई है जिनकी जानकारी सभी पणधारियों को होनी चाहिए। शेष चार भाग क्रमश: लोक प्राधिकरणों, सूचना मांगने वालों, लोक सूचना अधिकारियों एवं प्रथम अपीलीय प्राधिकारियों के लिए विशेषरूप से प्रासंगिक हैं।
3. इस मार्गनिर्देशिका की विषय-वस्तु विशेष रूप से केंद्रीय सरकार के लिए प्रासंगिक हैं लेकिन सूचना आयुक्तों द्वारा अपीलों पर निर्णय लेने या शुल्क के भुगतान से संबंधित नियमों को छोड़कर राज्य सरकारों पर भी समान रूप से लागू होती है। उल्लेखनीय है कि इस मार्गनिर्देशिका में केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी/राज्य लोक सूचना अधिकारी के स्थान पर लोक सूचना अधिकारी शब्दों का प्रयोग किया गया है। इसी प्रकार, जहां केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी/केंद्रीय सूचना आयोग आदि का उपयोग करना अनिवार्य समझा गया, ऐसी जगहो को छोड़कर जहां केंद्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी/राज्य सहायक लोक सूचना अधिकारी के स्थान पर सहायक लोक सूचना अधिकारी और केंद्रीय सूचना आयोग के स्थान पर सूचना आयोग का प्रयोग किया गया है।# भाग I
सभी पणधारियों के लिए
सूचना का अधिकार अधिनियम के उद्देश्य
- सूचना का अधिकार अधिनियम का मूल उद्देश्य सरकार के कार्यकरण में पारदर्शिता और जवाबदेही का संवर्धन करने के लिए नागरिकों को सशक्त बनाना, श्रष्टाचार पर अंकुश लगाना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जनता की भागीदारी बढ़ाते हुए हमारे लोकतंत्र को वास्तविक रूप से जनता के लिए काम करने हेतु तैयार करना है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि एक जानकार, शासन के नागरिक अभिकारकों पर तुलनात्मक रूप से बेहतर निगरानी रख सकता है और सरकार को अधिक जवाबदेह बनाने में सहायक हो सकता है । सरकार के क्रियाकलापों के बारे में नागरिक को जानकार बनाने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम का बनना एक बड़ा कदम है।
सूचना क्या है
- किसी भी स्वरूप में कोई भी सामग्री “सूचना” है । इसमें किसी भी इलेक्ट्रॉनिक रूप में धारित दस्तावेज, अभिलेख, जापन, ई-मेल, मत, सलाह, प्रेस, विज्ञप्ति, परिपत्र, आदेश, लॉगबुक, संविदा, रिपोर्ट, कागजात, नमूने, माडल, आंकड़ों से संबंधित सामग्री शामिल होती है। इसमें किसी निजी निकाय से संबंधित ऐसी सूचना भी शामिल होती है, जिसे लोक प्राधिकरण तत्समय के लिए लागू किसी कानून के अंतर्गत प्राप्त कर सकता है।
लोक प्राधिकरण क्या है
- ‘लोक प्राधिकरण’ का आशय ऐसे प्राधिकरण या निकाय या संस्था या स्व-शासन से है, जो संविधान द्वारा अथवा उसके अधीन; अथवा संसद अथवा राज्य विधानमण्डल द्वारा निर्मित विधि द्वारा; अथवा केन्द्र सरकार अथवा राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना अथवा आदेश द्वारा स्थापित या गठित की गई हो । केन्द्र सरकार अथवा राज्य सरकार के स्वामित्व तथा नियंत्रण वाले और इनके द्वारा पर्याप्त रूप से वित्तपोषित निकाय और केन्द्र सरकार अथवा राज्य सरकार द्वारा पर्याप्त रूप से वित्तपोषित गैर-सरकारी संगठन भी लोक प्राधिकरण की परिभाषा में आते हैं । केन्द्र सरकार अथवा किसी राज्य सरकार द्वारा पर्याप्त वित्तपोषण प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष हो सकता है । अधिनियम पर्याप्त वित्तपोषण को परिभाषित नहीं करता है । विभिन्न न्यायालय/सूचना आयुक्त प्रत्येक मामले के गुण-दोष पर निर्भर करते हुए, मामले-दर-मामले आधार पर इस मुद्दे पर निर्णय कर रहे हैं।# लोक सूचना अधिकारी
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लोक प्राधिकरणों ने अपने कुछ अधिकारियों को लोक सूचना अधिकारी के रूप में नामोदिष्ट किया है । ये अधिकारी, सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सूचना मांगने वाले व्यक्तियों को सूचना प्रदान करने के लिए जिम्मेदार होते हैं ।
सहायक लोक सूचना अधिकारी
- ये उप मण्डल स्तर के वे अधिकारी होते हैं जिन्हें कोई व्यक्ति सूचना का अधिकार अधिनियम संबंधी आवेदन अथवा अपील दे सकता है । ये अधिकारी, आवेदन अथवा अपील/लोकप्राधिकरण के लोक सूचना अधिकारी अथवा संबंधित अपीलीय प्राधिकारी को भेज देते हैं, कोई सहायक लोक सूचना अधिकारी सूचना प्रदान करने के लिए जिम्मेदार नहीं होता है ।
- विभिन्न डाकखानों में डाक विभाग द्वारा नियुक्त किए गए सहायक लोक सूचना अधिकारी, भारत सरकार के अंतर्गत सभी लोक प्राधिकरणों के लिए सहायक लोक सूचना अधिकारी के रूप में कार्य कर रहे हैं ।
अधिनियम के अंतर्गत सूचना का अधिकार
- किसी नागरिक को किसी लोक प्राधिकरण से ऐसी सूचना मांगने का अधिकार है, जो उस लोक प्राधिकरण के पास या उसके नियंत्रण में उपलब्ध है । इस अधिकार में लोक प्राधिकरण के पास या नियंत्रण में उपलब्ध कृति, दस्तावेजों तथा रिकार्डों का निरीक्षण; दस्तावेजों या रिकार्डों के नोट, उद्धरण या प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करना; सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना शामिल है । यह बात ध्यान देने योग्य है कि अधिनियम के अंतर्गत केवल ऐसी सूचना देय है, जो विद्यमान है और जो लोक प्राधिकरण के पास अथवा उसके अधीन उपलब्ध है । लोक सूचना अधिकारी द्वारा ऐसी सूचना सृजित करने की अपेक्षा नहीं है जो लोक प्राधिकरण के रिकार्ड का हिस्सा नहीं है। लोक सूचना अधिकारी से ऐसी सूचना देना भी अपेक्षित नहीं है जिसमें कोई निष्कर्ष निकालना और/अथवा अनुमान लगाना; अथवा सूचना की व्याख्या करना; या आवेदक द्वारा उठाई गई समस्याओं का समाधान करना; या काल्पनिक प्रश्नों का उत्तर दिया जाना हो।
- नागरिकों को डिस्केट्स, फ्लॉपी, टेप, वीडियो कैसेट या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक रूप में अथवा प्रिंट आउट के रूप में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है बशर्ते कि मांगी गई सूचना कम्प्यूटर में या अन्य किसी उपकरण में पहले से सुरक्षित है ।12. आवेदक को सूचना सामान्यतः उसी रूप में प्रदान की जानी चाहिए जिस रूप में वह मांगता है । तथापि, यदि किसी विशेष स्वरूप में मांगी गई सूचना की आपूर्ति से लोक प्राधिकरण के संसाधनों का अनापेक्षित ढंग से विचलन होता है या इससे रिकॉर्डों के परिरक्षण में कोई हानि की सम्भावना होती है, तो उस रूप में सूचना देने से मना किया जा सकता है।
- कुछ मामलों में आवेदक लोक सूचना अधिकारी से स्वयं द्वारा तैयार किए गए किसी विशिष्ट प्रपत्र में इस तर्क के आधार पर सूचना प्राप्त करने की उम्मीद करते हैं कि उन्हें उसी रूप में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है जिसमें वे चाहे । यह नोट करने की आवश्यकता है कि अधिनियम के सम्बद्ध प्रावधान का अभिप्राय यह है कि यदि सूचना फोटोपति के रूप में मांगी जाए तो यह फोटोपति के रूप में उपलब्ध करवाई जानी चाहिए और यदि यह फ्लॉपी अथवा किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक रीति के रूप में मांगी जाए, तो इसे उस के रूप में दिया जाएगा जो अधिनियम में दी गई शर्तों के अधीन होगा । इसका अर्थ यह नहीं है कि लोक सूचना अधिकारी सूचनाओं का नया रूप देगा ।
- कुछ व्यक्ति लोक सूचना अधिकारी से यह अपेक्षा करते हैं कि वह दस्तावेजों में खोज कर उन्हें सूचना दे । किसी भी नागरिक को लोक अधिकारी से ऐसी सामग्री लेने का अधिकार है, जो सम्बद्ध लोक प्राधिकरण के पास उपलब्ध है या उसके नियंत्रण में है । अधिनियम में लोक सूचना अधिकारी से यह अपेक्षा नहीं की गई है कि वह प्राप्त सामग्री से कुछ निष्कर्ष निकाले और इस तरह निकाले गए निष्कर्ष आवेदक को दे । अभिप्राय यह है कि लोक सूचना अधिकारी को सामग्री उसी रूप में देनी चाहिए, जिस रूप में वह लोक प्राधिकरण के पास उपलब्ध है । लोक सूचना अधिकारी से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह प्राप्त सामग्री के आधार पर शोध के परिणाम नागरिक को बताएगा ।
अन्य अधिनियमों की तुलना में सूचना का अधिकार
- सूचना का अधिकार अधिनियम का, अन्य कानूनों की तुलना में अभिभावी प्रभाव है । इसका अर्थ यह है कि यदि शासकीय गोपनीयता अधिनियम, 1923 और तत्समय के लिए किसी अन्य कानून में यदि ऐसे प्रावधान हैं जो सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों से असंगत हैं तो ऐसी स्थिति में सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधान प्रभावी होंगे ।
संगठनों आदि को सूचना की आपूर्ति
- अधिनियम के अंतर्गत सूचना का अधिकार केवल भारत के नागरिकों को प्राप्त है । अधिनियम में निगम, संघ, कम्पनी आदि को, जो वैध हस्तियों/व्यक्तियों की परिभाषा के अंतर्गत तो आते हैं, किन्तु नागरिक की परिभाषा में नहीं आते, को सूचना देने का कोई प्रावधान नहीं है।फिर भी, यदि किसी निगम, संघ, कम्पनी, गैर सरकारी संगठन आदि के किसी ऐसे कर्मचारी या अधिकारी द्वारा अपने नाम का उल्लेख करते हुए प्रार्थनापत्र दिया जाता है जो भारत का नागरिक है, तो उसे सूचना दे दी जानी चाहिए । ऐसे मामले में, यह प्रकल्पित होगा कि एक नागरिक द्वारा निगम आदि के पते पर सूचना मांगी गई है ।
सूचना मांगने से संबंधित शुल्क
- किसी लोक प्राधिकरण से सूचना मांगने के इच्छुक नागरिक से अपेक्षित है कि वह अपने आवेदन पत्र के साथ सूचना मांगने का निर्धारित शुल्क 10/-रुपए (दस रुपए) लोक प्राधिकरण के लेखा अधिकारी को डिमांड ड्राफ्ट पत्र अथवा बैंकर चैक अथवा भारतीय पोस्टल ऑर्डर के माध्यम से भेजे । शुल्क का भुगतान लोक प्राधिकरण के लेखाधिकारी अथवा सहायक लोक सूचना अधिकारी को नकद रूप में भी किया जा सकता है । उसके लिए आवेदनकर्ता को उपयुक्त रसीद अवश्य प्राप्त कर लेनी चाहिए । केन्द्रीय मंत्रालयों/विभागों को शुल्क का भुगतान स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से अथवा मास्टर/वीजा/डेबिट/क्रेडिट कार्डों के माध्यम से भी किया जा सकता है ।
- सूचना प्रदान करने हेतु आवेदक द्वारा सूचना का अधिकार नियमावली, 2012 में निर्धारित किए अनुसार अतिरिक्त शुल्क दिया जाना आवश्यक है । यदि अतिरिक्त शुल्क मांगा जाता है, तो लोक सूचना अधिकारी उसकी सूचना आवेदनकर्ता को देगा । नियमावली के अनुसार निर्धारित शुल्क की दरें निम्नानुसार हैं :-
(क) प्रत्येक पेज (ए-3 अथवा अधिक छोटे आकार में) कागज के लिए दो रुपए (2/-रुपए);
(ख) बड़े आकार के कागज में फोटो कापी का वास्तविक प्रभार अथवा लागत कीमत;
(ग) नमूनों या मॉडलों के लिए वास्तविक लागत अथवा कीमत;
(घ) डिस्केट अथवा फ्लॉपी में सूचना प्रदान करने के लिए पचास रुपए (50/-रुपए); प्रति डिस्केट अथवा फ्लॉपी
(इ) ऐसे प्रकाशन के लिए नियत मूल्य अथवा प्रकाशन के उद्धरणों की फोटोकापी के लिए दो रुपए प्रति पृष्ठ ।
(च) सूचनाओं की पूर्ति पर खर्च हुआ डाक प्रभार जो पचास रुपए से अधिक न हो । - किसी नागरिक को लोक प्राधिकरण के रिकार्ड की जांच करने का अधिकार है। अभिलेखों के निरीक्षण के लिए लोक प्राधिकरण पहले घण्टे के लिए शुल्क नहीं लेगा, किन्तु उसके बाद प्रत्येक घण्टे (या उसके खण्ड) के लिए पांच रुपए का शुल्क (5/-रुपए) लेगा ।20. गरीबी रेखा के नीचे की श्रेणी के अंतर्गत आने वाले आवेदनकर्ता को किसी प्रकार का शुल्क देने की आवश्यकता नहीं है । तथापि, उसे गरीबी रेखा के नीचे के स्तर का होने के दावे का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगा । आवेदन के साथ यदि निर्धारित 10/- रुपए के शुल्क अथवा आवेदनकर्ता के गरीबी रेखा के नीचे वाला होने का प्रमाण, जैसा भी मामला हो, नहीं होगा तो आवेदन को अधिनियम के अंतर्गत वैध नहीं माना जाएगा । यह उल्लेखनीय है कि ऐसे आवेदनों के प्रत्युत्तर में सूचना देने पर लोक प्राधिकारी पर कोई रोक नहीं है । तथापि, ऐसे मामलों में अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे ।
आवेदन हेतु प्रपत्र
- सूचना मांगने हेतु आवेदन के लिए कोई निर्धारित प्रपत्र नहीं है । आवेदन सादे कागज पर किया जा सकता है । आवेदक उस पते का उल्लेख करे जिस पर सूचना भेजी जानी अपेक्षित है ।
- आवेदक को सूचना मांगने का कारण बताने की कोई आवश्यकता नहीं है ।
प्रकटीकरण से छूट प्राप्त सूचना
- अधिनियम की धारा 8 की उप धारा (1) और धारा 9 में सूचना की ऐसी श्रेणियों का विवरण दिया गया है, जिन्हें प्रकटीकरण से छूट प्राप्त है । तथापि, धारा 8 की उप धारा (2) के अनुसार यदि प्रकटीकरण से, संरक्षित हित को होने वाले नुकसान की अपेक्षा वृहत्तर लोक हित सधता हो, तो उप धारा (1) के अंतर्गत छूट प्राप्त अथवा शासकीय गोपनीय अधिनियम, 1923 के अंतर्गत छूट प्राप्त सूचना का प्रकटीकरण किया जा सकता है ।
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जानकारी जिसे सामान्य रूप से अधिनियम की धारा 8 की उप धारा (1) के अंतर्गत प्रकटन से छूट प्राप्त है, जानकारी से संबंधित घटना के घटित होने के 20 वर्ष बाद ऐसी छूट समाप्त हो जाएगी। तथापि, निम्नलिखित प्रकार की जानकारी के लिए प्रकटन से छूट जारी रहेगी और 20 वर्ष बीत जाने के बाद भी ऐसी जानकारी को किसी नागरिक को देना बाध्यकारी नहीं होगा-
i. जिसके प्रकटन से भारत की संप्रभुता और अखण्डता, राष्ट्र की सुरक्षा, सामरिक, वैज्ञानिक और आर्थिक हित, विदेश के साथ संबंध प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती हो अथवा कोई अपराध भड़कता हो;
ii. जिसके प्रकटन से संसद अथवा राज्य के विधानमण्डल के विशेषाधिकार का अवहेलना होती हो; अथवा
iii. अधिनियम की धारा 8 की उप धारा (1) के खण्ड (झ) के प्रावधान में दी गई शर्तों के अधीन मंत्रिपरिषद्, सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श के रिकार्ड सहित मंत्रिमण्डलीय दस्तावेज।# रिकार्ड अवधारण अनुसूची तथा अधिनियम -
अधिनियम लोक प्राधिकरणों से असीमित अवधि तक रिकार्ड अवधारित करने की अपेक्षा नहीं करता है। लोक प्राधिकरणों को लागू रिकार्ड अवधारण अनुसूची के अनुसार ही अपने रिकार्ड को अवधारित करना चाहिए।
आवेदक को उपलब्ध सहायता
- यदि कोई व्यक्ति लिखित रूप से अनुरोध करने में असमर्थ है, तो केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी से अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसे व्यक्ति को लिखित रूप में आवेदन तैयार करने में युक्तियुक्त सहायता करे। यदि किसी दस्तावेज को, संवेदनात्मक रूप से निःशक्त व्यक्ति को उपलब्ध कराना अपेक्षित है, तो लोक सूचना अधिकारी को ऐसे व्यक्ति को समुचित सहायता प्रदान करनी चाहिए, ताकि वह सूचना प्राप्त करने में सक्षम हो सके।
सूचना की आपूर्ति के लिए समय-अवधि
- सामान्यतः किसी आवेदक को सूचना लोक प्राधिकरण में आवेदन की प्राप्ति के तीस दिनों के भीतर दे दी जानी चाहिए। यदि मांगी गई सूचना का संबंध किसी व्यक्ति के जीवन अथवा स्वातंत्र्य से हो, तो सूचना आवेदन की प्राप्ति के 48 घंटे के भीतर उपलब्ध करना अपेक्षित है। इस सबंध में विस्तृत जानकारी “लोक सूचना अधिकारियों के लिए” अध्याय IV में दी गई है।
अपील
- यदि किसी आवेदक को 30 दिन अथवा 48 घंटे की निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना उपलब्ध नहीं करवाई जाती है, अथवा वह दी गई सूचना से संतुष्ट नहीं होता है, तो वह प्रथम अपीलीय प्राधिकारी जो लोक सूचना अधिकारी से रैंक में वरिष्ठ अधिकारी होता है, के समक्ष अपील कर सकता है। ऐसी अपील सूचना उपलब्ध कराए जाने की समय-सीमा के समाप्त होने अथवा लोक सूचना अधिकारी के निर्णय के प्राप्त होने की तारीख से 30 दिन की अवधि के भीतर की जा सकती है। लोक प्राधिकरण के अपीलीय प्राधिकारी से अपेक्षा की जाती है कि वह अपील का निपटान अपील प्राप्त होने के तीस दिन की अवधि के भीतर अथवा विशेष मामलों में 45 दिन के भीतर कर देगा।
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यदि प्रथम अपीलीय प्राधिकारी निर्धारित अवधि के भीतर अपील पर आदेश करने में असफल रहता है अथवा यदि अपीलकर्ता प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के आदेश से संतुष्ट नहीं होता है, तो वह प्रथम अपीलीय प्राधिकारी द्वारा निर्णय किए जाने के लिए निर्धारित समय-सीमा समाप्त होने अथवा अपीलकर्ता द्वारा वास्तविक रूप में निर्णय की प्राप्ति की तारीख से नब्बे दिन के भीतर केन्द्रीय सूचना आयोग के समक्ष द्वितीय अपील दायर कर सकता है।# शिकायतें
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यदि कोई व्यक्ति संबंधित लोक प्राधिकरण द्वारा लोक सूचना अधिकारी नियुक्त न किए जाने के कारण आवेदन करने में असमर्थ रहता है; अथवा सहायक लोक सूचना अधिकारी उसके आवेदन अथवा अपील को सम्बद्ध लोक सूचना अधिकारी अथवा अपीलीय प्राधिकारी को भेजने के लिए स्वीकार करने से इंकार करता है; अथवा सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन सूचना पाने के उसके अनुरोध को ठुकरा दिया जाता है; अथवा अधिनियम में निर्धारित समय-सीमा के भीतर उसके सूचना प्राप्त करने के अनुरोध का प्रत्युत्तर नहीं दिया जाता है; अथवा उससे शुल्क के रूप में एक ऐसी राशि अदा करने की अपेक्षा की गई है, जिसे वह औचित्यपूर्ण नहीं मानता है; अथवा उसका विश्वास है कि उसे अधूरी, गुमराह करने वाली व झूठी सूचना दी गई है, तो वह सूचना आयुक्त के समक्ष शिकायत कर सकता है।
तृतीय पक्ष से संबद्ध सूचना
- अधिनियम के संदर्भ में तीसरे पक्ष से तात्पर्य आवेदक से भिन्न सूचना के लिए अनुरोध करने वाले अन्य व्यक्ति से है। ऐसे लोक प्राधिकरण भी तृतीय पक्ष की परिभाषा में शामिल होंगे, जिनसे सूचना नहीं मांगी गई है।
तृतीय पक्ष से संबद्ध सूचना का प्रकटन
- वाणिज्यिक गुप्त बातों, व्यवसायिक रहस्यों और बौद्धिक सम्पदा सहित ऐसी सूचना, जिसके प्रकटन से किसी तृतीय पक्ष की प्रतियोगी स्थिति को क्षति पहुंचती हो, को प्रकटन से छूट प्राप्त है। ऐसी सूचना को तब तक प्रकट नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि सक्षम प्राधिकारी इस बात से आश्वस्त न हो जाए कि ऐसी सूचना का प्रकटन बृहत लोक हित में होगा।
- तृतीय पक्ष से संबंधित ऐसी सूचना, जिसे तृतीय पक्ष गोपनीय मानता है, के संबंध में लोक सूचना अधिकारी को निर्णय “लोक सूचना अधिकारियों हेतु” अध्याय IV में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए करना चाहिए। यदि तृतीय पक्ष सूचना का प्रकटन नहीं चाहता है, तो उसे प्रकटन न करने हेतु अपना मत रखने के लिए पूर्ण अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।
आरटीआई ऑनलाइन
- कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने केन्द्र सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों के लिए URL www.rtionline.gov.in_के साथ आरटीआई ऑनलाइन नामक एक वेब पोर्टल आरंभ किया है। भारतीय नागरिकों के लिए केन्द्रीय मंत्रालयों/विभागों में सूचना का अधिकार आवेदन एवं प्रथम अपील दायर करने के लिए यह भी एक सुविधा है। निर्धारित आरटीआई शुल्क भी ऑनलाइन जमा किया जासकता है। संबंधित पीआईओ/एफएए द्वारा ऑनलाइन प्राप्त आरटीआई आवेदनों एवं प्रथम अपीलों का जवाब भी ऑनलाइन दिया जा सकता है।
कार्यालय ज्ञापन का संकलन एवं आरटीआई से संबंधित अधिसूचनाएं
- कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने विषय आधारित सर्च सुविधा के साथ सूचना का अधिकार, 2005 पर अपने कार्यालय ज्ञापन एवं अधिसूचनाओं का ऑनलाइन संकलन आरंभ किया है। यह संकलन, विभाग की वेबसाईट www.persmin.nic.in पर उपलब्ध है और यह सभी पणधारियों के लिए लाभदायक है।# भाग II
लोक प्राधिकरणों के लिए
लोक प्राधिकरण ऐसी सूचनाओं के भंडार होते हैं, जिसे सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत प्राप्त करना नागरिकों का अधिकार है। नागरिकों की सूचना तक पहुंच को सुगम बनाने के उद्देश्य से अधिनियम में लोक प्राधिकरणों के लिए कुछ महत्वपूर्ण दायित्व निर्धारित किए गए हैं।
रिकार्डों का रख-रखाव और कंप्यूटरीकरण
- अधिनियम के प्रावधानों के कारगर कार्यान्वयन के लिए रिकार्डों का समुचित प्रबंधन अत्यधिक महत्वपूर्ण है। अतः लोक प्राधिकरण को अपने सभी अभिलेखों का समुचित रख-रखाव करना चाहिए। उन्हें सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके सभी रिकार्ड विधिवत् तालिकाबद्द और सूचीबद्द हो, ताकि सूचना के अधिकार को सुकर बनाया जा सके।
स्वतः प्रकटन
- प्रत्येक लोक प्राधिकरण से अपेक्षित है कि वे लोगों को सम्प्रेषण के विभिन्न माध्यमों से अधिक-से-अधिक सूचना मुहैया कराए ताकि लोगों को सूचना प्राप्त करने के लिए अधिनियम का कम-से-कम प्रयोग करना पड़े। इंटरनेट सम्प्रेषण के सबसे प्रभावी साधनों में से एक है। सूचनाएं वेबसाइट पर पोस्ट की जा सकती है।
- अधिनियम की धारा 4(1)(ख) के अनुसार सभी लोक प्राधिकरणों से यह अपेक्षित है कि वे सूचना की निम्नलिखित 16 श्रेणियों को विशेष रूप से प्रकाशित करें:
i. अपने संगठन की विशिष्टियां, कृत्य और कर्तव्य;
ii. अपने अधिकारियों और कर्मचारियों की शक्तियां और कर्तव्य;
iii. निर्णय लेने की प्रक्रिया में पालन की जाने वाली प्रक्रिया, जिसमें पर्यवेक्षण और उत्तरदायित्व के माध्यम सम्मिलित हैं;
iv. अपने कृत्यों के निर्वहन के लिए स्वयं द्वारा स्थापित मापदंड;
v. अपने द्वारा या अपने नियंत्रणाधीन धारित या अपने कर्मचारियों द्वारा अपने कृत्यों के निर्वहन के लिए प्रयोग किए गए नियम, विनियम, अनुदेश, निर्देशिका और अभिलेख;
vi. ऐसे दस्तावेजों की श्रेणी का विवरण जो उनके द्वारा धारित किए गए हैं अथवा उनके नियंत्रण में हैं;vii. ऐसी व्यवस्था का विवरण जो उसकी नीति निर्माण अथवा उसके कार्यान्वयन के संबंध में लोक सदस्यों के साथ परामर्श या उनके द्वारा अभ्यावेदन के लिए विद्यमान हैं;
viii. बोर्ड, परिषदों, समितियों और अन्य निकायों के विवरण, जिसमें दो अथवा दो से अधिक व्यक्ति हों और जिसकी स्थापना इसके भाग के रूप में अथवा इसकी सलाह के प्रयोजन के लिए की गई हो, और यह विवरण कि क्या इन बोर्डों, परिषदों, समितियों तथा अन्य निकायों की बैठक लोगों के लिए खुली है, अथवा ऐसी बैठक के कार्यवृत्त लोगों के लिए सुलभ हैं;
viii. बोर्ड, परिषदों, समितियों और अन्य निकायों के विवरण, जिसमें दो अथवा दो से अधिक व्यक्ति हों और जिसकी स्थापना इसके भाग के रूप में अथवा इसकी सलाह के प्रयोजन से की गई हो, और यह विवरण कि क्या इन बोर्डों, परिषदों, समितियों तथा अन्य निकायों की बैठक लोगों के लिए खुली है, अथवा ऐसी बैठक के कार्यवृत लोगों के लिए सुलभ हैं;
ix. अपने अधिकारियों और कर्मचारियों की निर्देशिका;
$x . \quad$ अपने प्रत्येक अधिकारी और कर्मचारी द्वारा विनियमों में यथाईपलब्ध क्षतिपूर्ति की प्रणाली सहित प्राप्त किया गया मासिक पारिश्रमिक;
xi. सभी योजनाओं, प्रस्तावित परिश्रय और किए गए आहरणों से संबंधित रिपोर्ट सामग्री को दर्शाते हुए इसके प्रत्येक अभिकरण को आबंटित बजट;
xii. आबंटित राशि सहित सब्सिडी कार्यक्रमों के निष्पादन का ढंग और ऐसे कार्यक्रमों के लाभार्थियों का ब्यौरा;
xiii. अपने द्वारा मंजूर की गई रियायत, अनुजा पत्र या प्राधिकारों के प्राप्तकर्ताओं का विवरण;
xiv. अपने पास इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध अथवा धारित सूचना के संबंध में ब्योरा;
$x v . \quad$ सूचना प्राप्त करने के लिए नागरिकों को उपलब्ध सुविधाओं के ब्योरे जिनमें जनसाधारण के लिए उपलब्ध पुस्तकालय या वाचन-कक्ष के कार्य समय ब्योरे भी सम्मिलित हों;
xvi. लोक सूचना अधिकारियों के नाम, पदनाम और अन्य ब्योरे। - ऊपर वर्णित सूचना की श्रेणी के अतिरिक्त, सरकार ने यह दिशानिर्देश जारी किए हैं कि लोक प्राधिकरणों द्वारा निम्नलिखित श्रेणी की सूचनाओं को भी प्रकाशित किया जाए;
i. खरीद से संबंधित सूचना
ii. सार्वजनिक निजी भागीदारी
iii. स्थानांतरण नीति और स्थानांतरण आदेश
iv. सूचना का अधिकार आवेदन
v. सीएजी एवं पीएसी पैराvi. नागरिक घोषणापत्र
vii. विवेकाधीन और विवेकाधिकार के बिना अनुदान
viii. प्रधान मंत्री/मंत्रियों एवं वरिष्ठ अधिकारियों के विदेशी दौरे - किसी लोक प्राधिकरण के द्वारा प्रकाशन के लिए सरकार, सूचना की उक्त सूचना श्रेणियों के अतिरिक्त अन्य श्रेणी भी निर्धारित कर सकती है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि ऊपर संदर्भित सूचना का प्रकाशन वैकल्पिक नहीं है। यह एक सांविधिक आवश्यकता है, जिसे पूरा करना प्रत्येक लोक प्राधिकरण के लिए जरूरी है।
- अतिसक्रिय प्रकटन स्थानीय भाषा में किया जाना चाहिए ताकि लोग इसे आसानी से समझ सकें। इसे ऐसे रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए जिसे आसानी से समझा जा सके और यदि इसमें तकनीकी शब्दों का प्रयोग किया जाता है तो उनकी व्याख्या सावधानीपूर्वक की जानी चाहिए। जैसा कि धारा 4 में व्यवस्था है, प्रकटन यथाव्यवहार्य अनेक माध्यमों जैसे नोटिस बोर्ड, समाचारपत्र, सार्वजनिक घोषणाएं, मीडिया ब्रॉडकास्ट, इंटरनेट अथवा अन्य किसी माध्यम से किया जाना चाहिए। इन प्रकटनों को अद्यतित रखा जाना चाहिए। सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8 से 11 तक के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए सूचना का प्रकटन किया जाना चाहिए।
- प्रत्येक लोक प्राधिकरण को यह ध्यान रखना चाहिए कि इसकी वेबसाइट पर किए गए अतिसक्रिय प्रकटन पूर्ण, आसानी से प्राप्त किए जाने वाले और तकनीकी एवं पटल-निष्पक्ष हैं और ऐसे रूप में हैं जो प्रभावी एवं प्रयोक्तानुकूल तरीके से वांछित सूचना प्रदान करते हैं।
- प्रत्येक केन्द्रीय मंत्रालय/लोक प्राधिकरण को प्रत्येक वर्ष अपने अतिसक्रिय प्रकटन पैकेज की लेखापरीक्षा तृतीय पक्ष से करवानी चाहिए। इस लेखापरीक्षा को प्रति वर्ष अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित कर इसकी सूचना केन्द्रीय सूचना आयोग को दी जानी चाहिए। सभी लोक प्राधिकरणों को अतिसक्रिय रूप से इस तृतीय पक्ष लेखापरीक्षक के नाम को अपनी वेबसाइट पर प्रकट करना चाहिए। बाहरी परामर्शदाताओं से तृतीय पक्ष की लेखापरीक्षा करवाने के लिए भी मंत्रालयों/लोक प्राधिकरणों को अपनी योजना/योजनेतर निधियों का उपयोग करना चाहिए।
- अतिसक्रिय प्रकटन दिशानिर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक केन्द्रीय मंत्रालय/लोक प्राधिकरण को संयुक्त सचिव स्तर के एवं संबद्ध कार्यालयों के मामले में अपर विभागाध्यक्ष स्तर के वरिष्ठ अधिकारी को नियुक्त करना चाहिए।# लोक सूचना अधिकारियॉ/सहायक लोक सूचना अधिकारियॉ आदि का पदनामन
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प्रत्येक लोक प्राधिकरण को अपने अधीनस्थ सभी प्रशासनिक एककों तथा कार्यालयों में लोक सूचना अधिकारी नामोद्दिष्ट करने होते हैं। प्रत्येक लोक प्राधिकरण से प्रत्येक उप-मंडल स्तर पर सहायक लोक सूचना अधिकारियों को नामोद्दिष्ट करना भी अपेक्षित है। सरकार ने यह निर्णय लिया है कि डाक विभाग द्वारा नियुक्त किए गए केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी (सीएपीआईओ) भारत सरकार के अंतर्गत सभी लोक प्राधिकरणों के लिए केन्द्रीय सहायक लोक सूचना प्राधिकारी के रूप में कार्य करेंगे।
अपीलीय प्राधिकारी का पदनाम
- सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 7 की उप धारा (8) में यह प्रावधान है कि यदि सूचना का अनुरोध अस्वीकृत किया जाता है तो लोक सूचना अधिकारी अनुरोधकर्ता को अन्य बातों के साथ-साथ अपीलीय प्राधिकारी का विवरण भी भेजेगा। इस प्रकार, जब सूचना हेतु अनुरोध अस्वीकृत किया जाता है, तो आवेदक को अपीलीय प्राधिकारी के बारे में विवरण भेजा जाता है लेकिन यह भी संभव है कि लोक सूचना अधिकारी आवेदन को तो अस्वीकृत न करें किंतु आवेदक को अधिनियम में निर्दिष्ट समय के भीतर निर्णय प्राप्त न हो पाए अथवा वह लोक सूचना अधिकारी के निर्णय से व्यथित हो। ऐसे में, आवेदक अपने अपील के अधिकार का प्रयोग करना चाहेगा। लेकिन अपीलीय प्राधिकारी के विवरण के अभाव में आवेदक को अपील करने में कठिनाई का समाना करना पड़ सकता है। अत: सभी लोक प्राधिकरणों से अपेक्षा है कि वे प्रथम अपीलीय प्राधिकारी नामोद्दिष्ट करें और उनका विवरण लोक सूचना अधिकारियों के विवरणों के साथ-साथ प्रकाशित करें।
शुल्क की प्राप्ति
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सूचना का अधिकार नियमावली, 2012 के अनुसार, कोई भी आवेदक देय शुल्क का भुगतान लोक प्राधिकारी अथवा सीएपीआईओ को नकद रूप में अथवा लोक प्राधिकरण के लेखा अधिकारी को डिमांड ड्राफ्ट अथवा बैंकर्स चेक अथवा भारतीय डाक आदेश द्वारा कर सकता है। केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों को शुल्क का भुगतान भारतीय स्टेट बैंक की इंटरनेट बैंकिंग अथवा मास्टर/वीजा डेबिट/क्रेडिट कार्ड द्वारा ऑनलाइन भी किया जा सकता है। लोक प्राधिकरण को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शुल्क के भुगतान के उक्त तरीकों में से किसी को भी मना न किया जाए अथवा आवेदनकर्ता को लेखा अधिकारी के अतिरिक्त किसी अन्य अधिकारी के नाम पर भारतीय पोस्टल आर्डर (आईपीओ) इत्यादि आहरित करने के लिए विवश न किया जाए। यदि किसी लोक प्राधिकरण में कोई लेखा अधिकारी न हो तो सूचना के अधिकार अधिनियम अथवा इसके अंतर्गत बनाए गए नियमों के अंतर्गत शुल्क प्राप्त करने के प्रयोजन से किसी अधिकारी को लेखा अधिकारी नामोद्दिष्ट चाहिए।# सूचना आयोग के आदेशों का अनुपालन
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आयोग के निर्णय बाध्यकारी हैं। लोक प्राधिकरण को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आयोग द्वारा पारित आदेश कार्यान्वित हों। यदि लोक प्राधिकरण अथवा लोक सूचना अधिकारी के मतानुसार आयोग का कोई आदेश अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप न हो तो वह आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल कर सकता है।
सूचना का अधिकार प्रकोष्ठ का सृजन
- सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 5 की उप धारा (1) यह अधिदेश करती है कि इसके अंतर्गत सूचना मुहैया कराने के लिए सभी लोक प्राधिकरणों को यथाआवश्यक संख्या में लोक सूचना अधिकारियों को नामोद्दिष्ट करना चाहिए। यदि किसी लोक प्राधिकरण में एक से अधिक लोक सूचना अधिकारी नामोद्दिष्ट हों, तो वहां आवेदक को उपयुक्त लोक सूचना अधिकारी तक पहुंचाने में कठिनाई हो सकती है। आवेदकों को लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ उस अधिकारी की पहचान करने में भी समस्या आ सकती है, जिसके पास अधिनियम की धारा 19 की उप धारा (1) के अंतर्गत अपील की जा सकती है। इसलिए एक से अधिक लोक सूचना अधिकारी वाले सभी लोक प्राधिकरणों को चाहिए कि वे संगठन के अंदर एक ऐसे सूचना का अधिकार प्रकोष्ठ का सृजन करें, जहां सूचना के लिए सभी आवेदन और प्रथम अपीलीय प्राधिकारियों को संबोधित अपीलें प्राप्त की जा सकें एवं उन्हें संबंधित पीआईओ/एफएए को भेजा जा सके। सूचना का अधिकार प्रकोष्ठ की स्थापना, इसके कार्य और सूचना का अधिकार प्रकोष्ठ स्थापित करने में वित्तीय सहायता से संबंधित ब्यौरे, विभाग द्वारा जारी किए गए हैं।
आवेदनों का हस्तांतरण
- अधिनियम में प्रावधान है कि यदि किसी लोक प्राधिकरण से ऐसी किसी सूचना के लिए आवेदन किया जाता है जो किसी अन्य लोक प्राधिकरण के पास उपलब्ध है; अथवा जिसकी विषयवस्तु किसी अन्य लोक प्राधिकारी के कार्यो से अधिक सम्बद्ध है तो आवेदन प्राप्त करने वाला लोक प्राधिकरण आवेदन अथवा उसके संगत भाग को आवेदन की प्राप्ति के पांच दिन के भीतर सम्बद्ध लोक प्राधिकरण को अंतरित कर देगा। लोक प्राधिकरणों को चाहिए कि वे अपने प्रत्येक अधिकारी को अधिनियम के इस प्रावधान के बारे में संवेदनशील बनाएं, ताकि ऐसा न हो कि देरी के लिए आवेदन प्राप्त करने वाले लोक प्राधिकरण को ही जिम्मेवार ठहरा दिया जाए।
- यदि कोई व्यक्ति किसी लोक प्राधिकरण से ऐसी सूचना मांगता है जिसका कुछ भाग उस लोक प्राधिकरण के पास उपलब्ध है तथा शेष सूचना अन्य कई लोक प्राधिकरणों के पास है, तो ऐसी स्थिति में आवेदन प्राप्त करने वाले लोक प्राधिकरण लोक सूचना अधिकारी को अपने से सम्बंधित सूचना दे देनी चाहिए तथा साथ ही आवेदक को सलाह देनी चाहिए कि शेष सूचना प्राप्तकरने के लिए वह सम्बन्धित लोक प्राधिकरणों को अलग-अलग आवेदन करे। यदि मांगी गई सूचना का काई भी हिस्सा आवेदन प्राप्त करने वाले लोक प्राधिकरण के पास उपलब्ध नहीं है, बल्कि सूचना के अलग-अलग हिस्से एक से अधिक दूसरे प्राधिकरणों के पास उपलब्ध हैं, तो लोक सूचना अधिकारी को आवेदक को यह सूचित कर देना चाहिए कि उस लोक प्राधिकरण के पास सूचना उपलब्ध नहीं है और साथ ही उसे आवेदक को यह सलाह देनी चाहिए कि सूचना प्राप्त करने के लिए वह संबंधित लोक प्राधिकरणों को अलग-अलग आवेदन करे। तथापि, यदि लोक सूचना अधिकारी के पास उन लोक प्राधिकरणों का ब्योरा हो जिनके पास आवेदक द्वारा मांगी गई सूचना हो, तो ऐसे ब्योरे भी आवेदक को प्रदान किए जाएं।
- यदि कोई व्यक्ति किसी केन्द्रीय लोक प्राधिकरण से ऐसी सूचना के लिए आवेदन करता है, जो किसी राज्य सरकार या संघराज्य क्षेत्र के प्रशासन के लोक प्राधिकरण से संबंधित है तो आवेदन प्राप्त करने वाले लोक प्राधिकरण के केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को आवेदक को सूचित कर देना चाहिए कि सूचना संबंधित राज्य सरकार/सेघ राज्य क्षेत्र के प्रशासन से प्राप्त की जाए। ऐसी स्थिति में, आवेदन को राज्य सरकार/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासन को हस्तांतरित करने की आवश्यकता नहीं है।
केन्द्रीय सूचना आयोग की वार्षिक रिपोर्ट
- सूचना आयोगों से, प्रत्येक वर्ष की समाप्ति के पश्चात उस वर्ष के दौरान अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन संबंधी एक रिपोर्ट तैयार करना अपेक्षित है। प्रत्येक मंत्रालय अथवा विभाग से अपेक्षित है कि वह अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले लोक प्राधिकरणों से रिपोर्ट तैयार करने हेतु सूचना एकत्र करे और उसे सम्बद्ध सूचना आयोग को मुहैया कराए। आयोग की रिपोर्ट में, अन्य बातों के साथ-साथ, सम्बद्ध वर्ष के संबंध में निम्नलिखित सूचनाएं समाविष्ट होती हैं:
(क) प्रत्येक लोक प्राधिकरण को किए गए अनुरोधों की संख्या;
(ख) ऐसे निर्णयों की संख्या जहां आवेदक अनुरोध किए गए दस्तावेजों को प्राप्त करने के हकदार नहीं थे, अधिनियम के प्रावधान जिनके अधीन ये निर्णय किए गए और उन अवसरों की संख्या, जहां ऐसे प्रावधानों का प्रयोग किया गया;
(ग) अधिनियम को लागू करने के संबंध में अधिकारियों के विरुद्ध की गई अनुशासनिक कार्रवाई के ब्योरे;
(घ) अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक लोक प्राधिकरण द्वारा एकत्र प्रभारों की राशि; और
(ड.) ऐसे तथ्य जो अधिनियम के भाव और अभिप्राय को प्रशासित और कार्यान्वित करने हेतु लोक प्राधिकारियों द्वारा किए गए किसी प्रयास को दर्शाएं। - प्रत्येक लोक प्राधिकरण को वर्ष की समाप्ति के तुरंत बाद आवश्यक सामग्री अपने प्रशासनिक मंत्रालय/विभाग को भेज देनी चाहिए ताकि मंत्रालय/विभाग उसे सूचना आयोग को भेज सके और आयोग इसे अपनी रिपोर्ट में शामिल कर सके। इस उद्देश्य हेतु केन्द्रीय सूचना आयोग कीवेबसाइट नामत: www.cic.gov.in पर एक वेब आधारित साफ्टवेयर नामत: “सूचना का अधिकार वार्षिक रिपोर्ट सूचना प्रणाली” उपलब्ध है जिसके माध्यम से लोक प्राधिकरणों को अपेक्षित रिपोर्ट तिमाही आधार पर अपलोड करना अपेक्षित है। इसके लिए यह महत्वपूर्ण है कि सभी लोक प्राधिकरण स्वयं को केन्द्रीय सूचना आयोग के साथ पंजीकृत करें और साथ ही अपनी तिमाही विवरणी समय-पर और नियमित रूप से अपलोड करें।
- यदि सूचना आयोग को ऐसा प्रतीत होता है किसी लोक प्राधिकरण की कोई प्रक्रिया अधिनियम के प्रावधानों अथवा अभिप्राय के अनुरूप नहीं है, तो वह प्राधिकरण से ऐसे कदम उठाने की अनुशंसा कर सकता है जिससे प्रक्रिया अधिनियम के अनुरूप हो जाए। लोक प्राधिकरण को चाहिए कि वह अपनी अभिक्रिया को अधिनियम के अनुरूप बनाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करे।# सूचना मांगने वालों के लिए
सूचना मांगने का तरीका
यदि कोई नागरिक अधिनियम के अंतर्गत सूचना प्राप्त करना चाहता है, तो उसे संबंधित लोक प्राधिकरण के लोक सूचना अधिकारी को अंग्रेजी या हिन्दी या आवेदन किए जाने वाले क्षेत्र की राजभाषा में लिखित रूप में आवेदन करना चाहिए। आवेदन संक्षिप्त और विषय से संबंधित होना चाहिए। आवेदन प्रस्तुत करते समय उसे सूचना का अधिकार नियम, 2012 में यथानिर्धारित आवेदन शुल्क का भुगतान करना चाहिए। आवेदनकर्ता, आवेदन को डाक द्वारा या इलेक्ट्रॉनिक साधनों के माध्यम से भेज सकता है या लोक प्राधिकारी के कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से दे सकता है। आवेदन सहायक लोक सूचना अधिकारी के माध्यम से भी भेजा जा सकता है।
संबंधित लोक प्राधिकरण को आवेदन
- आवेदनकर्ता को आवेदन संबंधित लोक प्राधिकरण के लोक सूचना अधिकारी को भेजना चाहिए। सूचना से संबंधित लोक प्राधिकरण अभिनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने चाहिए। यदि आवेदनकर्ता द्वारा मांगी गई सूचना किसी लोक प्राधिकरण में किसी लोक सूचना अधिकारी से संबंधित न होकर उस लोक प्राधिकरण के विभिन्न लोक सूचना अधिकारियों अथवा विभिन्न लोक प्राधिकरणों से संबंधित है, तो एक लोक प्राधिकरण में एक लोक सूचना अधिकारी से संबंधित मांगी गई सूचना प्रदान करने की तुलना में उसको सूचना प्रदान करने में अधिक समय लगेगा।
- आवेदनकर्ता को सूचना का अधिकार आवेदन में अपनी शिकायतें नहीं लिखनी चाहिए बल्कि उसे स्पष्ट रूप से यह उल्लेख करना चाहिए कि वह कौन सी सूचना अथवा रिकॉर्ड चाहता है। इसके अलावा, यदि आवेदन इस प्रकार लिखा गया है कि उसमें मांगी गई सूचना से संबंधित अपेक्षित विशिष्ट दस्तावेजों का स्पष्ट उल्लेख हो, तो अस्पष्टता की गुंजाइश कम होगी और फलस्वरूप, लोक सूचना अधिकारी द्वारा सूचना देने से इनकार करने की संभावना भी कम होगी। उदाहरणार्थ, मेरे इलाके में सफाई क्यों नहीं हो रही है, यह पूछने के बजाए इलाके की सफाई की समय-सारणी के संबंध में पूछा जाना चाहिए। इसी प्रकार, हमें पानी कब मिलेगा यह पूछने के बजाए इलाके की जल आपूर्ति की योजना के बारे में पूछा जाना चाहिए।# सूचना मांगने के लिए शुल्क
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आवेदनकर्ता को, लोक सूचना अधिकारी को आवेदन के साथ आवेदन शुल्क भेजना चाहिए। भारत सरकार के मामले में निर्धारित आवेदन शुल्क 10/-रुपये है, जिसका भुगतान लोक प्राधिकरण के लेखा अधिकारी को देय डिमांड ड्राफ्ट या बैंकर्स चेक या इंडियन पोस्टल ऑर्डर के माध्यम से किया जा सकता है। शुल्क का भुगतान लोक प्राधिकरण के लेखा अधिकारी या सहायक लोक सूचना अधिकारी से उचित रसीद प्राप्त करके नकद रूप में भी किया जा सकता है। केन्द्रीय मंत्रालयों/विभागों को ऑनलाइन आवेदनों के संबंध में भारतीय स्टेट बैंक की इंटरनेट बैंकिग अथवा मास्टर/वीजा क्रेडिट/डेबिड कार्डों के माध्यम से भी शुल्क का ऑनलाइन भुगतान किया जा सकता है।
- आवेदनकर्ता को सूचना देने की लागत के लिए अतिरिक्त शुल्क का भुगतान करना पड़ सकता है, जिसका ब्यौरा लोक सूचना अधिकारी आवेदनकर्ता को देगा। इस प्रकार मांगे गए शुल्क के भुगतान का तरीका आवेदन शुल्क के भुगतान के तरीके जैसा ही है।
- यदि आवेदनकर्ता गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) की श्रेणी का है, तो उसे कोई शुल्क नहीं देना होगा। तथापि, उसे गरीबी रेखा से नीचे होने के अपने दावे के समर्थन में कोई सबूत प्रस्तुत करना होगा। आवेदन जिसके साथ निर्धारित शुल्क या आवेदनकर्ता के गरीबी रेखा से नीचे होने का सबूत, जैसी भी स्थिति हो, नहीं होंगे तो अधिनियम के अंतर्गत वह आवेदन वैध नहीं होगा।
आवेदन का फार्मेट
- सूचना मांगने के लिए कोई निर्धारित फार्मेट नहीं है। आवेदन सादे कागज पर किया जा सकता है। आवेदक को उस पते का उल्लेख करना चाहिए जहां सूचना भेजी जानी है। सूचना मांगने वाले को सूचना मांगने हेतु कारण प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है।
अपील दायर करना
- यदि आवेदक को 30 दिन या 48 घण्टे की निर्धारित सीमा, जैसी भी स्थिति हो, के भीतर सूचना प्रदान नहीं की जाती है या दी गई सूचना से वह संतुष्ट नहीं है, तो प्रथम अपीलीय प्राधिकारी को अपील कर सकता है। ऐसी अपील, उस तारीख से 30 दिन के भीतर दायर की जानी चाहिए जिस तारीख को सूचना देने की 30 दिन की सीमा समाप्त हो रही है या उस तारीख से जिस तारीख को लोक सूचना अधिकारी से सूचना या निर्णय प्राप्त होता है। लोक प्राधिकरण का प्रथम अपीलीय प्राधिकारी अपील का निपटान अपील प्राप्त होने से 30 दिनों अथवा अपवादिक मामलों में 45 दिनों की अवधि के भीतर करेगा।9. यदि प्रथम अपीलीय प्राधिकारी निर्धारित अवधि के भीतर अपील का निपटान नहीं कर पाता है या अपीलकर्ता प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के आदेश से संतुष्ट नहीं है तो वह प्रथम अपीलीय प्राधिकारी, निर्णय की तारीख अथवा जिस तारीख को अपीलकर्ता को निर्णय वास्तव में प्राप्त हुआ, से 90 दिनों के भीतर सूचना आयोग को दूसरी अपील कर सकता है।
- केन्द्रीय सूचना आयोग को की गई अपील में निम्नलिखित सूचनाएं शामिल होनी चाहिए:-
(i) अपीलकर्ता का नाम और पता;
(ii) उस लोक सूचना अधिकारी का नाम और पता जिसे आवेदन भेजा गया था;
(iii) उस लोक सूचना अधिकारी का नाम और पता जिसने आवेदन का उत्तर दिया;
(iv) उस प्रथम अपीलीय प्राधिकारी का नाम और पता, जिसे प्रथम अपील का निर्णय लिया;
(v) आवेदन का ब्यौरा;
(vi) उस आदेश की संख्या एवं विवरण, यदि कोई हो, जिसके खिलाफ अपील की गई है;
(vii) अपील के कारणों की संक्षिप्त तथ्यात्मक जानकारी;
(viii) प्रार्थना या मांगी गई राहत;
(ix) प्रार्थना या राहत के लिए आधार;
(x) अपील के लिए संगत कोई अन्य संगत सूचना;
(xi) अपीलकर्ता द्वारा सत्यापन/प्रमाणीकरण। - केन्द्रीय सूचना आयोग को की गई अपील के साथ निम्नलिखित दस्तावेज संलग्न होने चाहिए, जो अपीलकर्ता द्वारा विधिवत अधिप्रमाणित एवं सत्यापित हो, नामत:
(i) केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को प्रस्तुत की गई आवेदन की एक प्रति;
(ii) केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी से प्राप्त उत्तर, यदि कोई हो, की एक प्रति;
(iii) प्रथम अपीलीय प्राधिकारी को की गई अपील की एक प्रति;
(iv) प्रथम अपीलीय प्राधिकारी से प्राप्त आदेश, यदि कोई हो, की एक प्रति;
(v) उन दस्तावेजों की प्रतियां जिन्हें अपीलकर्ता ने आधार बनाया है तथा अपील में उनका संदर्भ दिया है; और
(vi) अपील में संदर्भित दस्तावेजों की सूची;
शिकायतें दायर करना
- यदि कोई व्यक्ति किसी लोक सूचना अधिकारी को इस कारण अभ्यावेदन प्रस्तुत करने में असमर्थ है कि संबंधित लोक प्राधिकरण द्वारा ऐसे अधिकारी की नियुक्ति नहीं की गई है; यासहायक लोक सूचना अधिकारी ने उसके आवेदन या उसकी अपील को लोक सूचना अधिकारी या अपीलीय प्राधिकारी, जैसा भी मामला हो, को अग्रसारित करने के लिए स्वीकार करने से मना कर दिया है; या सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत उसके द्वारा मांगी गई सूचना देने से मना कर दिया गया है या अधिनियम में निर्धारित समय सीमा के भीतर सूचना के लिए अनुरोध का उसे कोई उत्तर नहीं दिया गया है या उससे इतनी धनराशि के भुगतान करने की अपेक्षा की गई हो जिसे वह तर्कसंगत नहीं समझता है; या उसे विश्वास है कि उसे अधूरा, भ्रामक या गलत सूचना दी गई है तो वह सूचना आयोग में शिकायत दर्ज कर सकता है।# भाग IV
लोक सूचना अधिकारियों के लिए
किसी लोक प्राधिकरण में लोक सूचना अधिकारी नागरिकों के सूचना के अधिकार को मूर्त रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अधिनियम में उनके लिए विशिष्ट कर्त्तव्य निर्धारित किए है तथा गलती करने पर उन्हें शास्ति के लिए उत्तरदायी बनाया है। इसलिए लोक सूचना अधिकारी के लिए यह आवश्यक है कि वह अधिनियम का सावधानीपूर्वक अध्ययन करे तथा इसके प्रावधानों को सही ढंग से समझें। लोक सूचना अधिकारी को आवेदनों का निपटान करते समय इस दस्तावेज में, अन्यत्र उठाए गए मुद्दों के अतिरिक्त निम्नलिखित बातों को भी दृष्टि में रखना चाहिए।
बिना शुल्क के प्राप्त आवेदन
- आवेदन प्राप्त होने के तुरंत बाद लोक सूचना अधिकारी को देखना चाहिए कि क्या आवेदक ने आवेदन शुल्क जमा किया है या आवेदक गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी से संबंधित व्यक्ति है। यदि आवेदन के साथ निर्धारित शुल्क या गरीबी रेखा से नीचे का प्रमाणपत्र संलग्न नहीं किया गया है तो इसे सूचना का अधिनियम के अंतर्गत आवेदन नहीं माना जा सकता। तथापि, लोक सूचना अधिकारी को ऐसे आवेदन पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करना चाहिए तथा ऐसे आवेदन द्वारा मांगी गई सूचना को प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए।
- कोई लोक प्राधिकरण जितने लोक सूचना अधिकारी आवश्यक समझें उतनी संख्या में लोक सूचना अधिकारी नामित कर सकता है। यह संभव है कि किसी लोक प्राधिकरण में एक से अधिक संख्या में लोक सूचना अधिकारी हों, कोई आवेदन संबंधित लोक सूचना अधिकारी के बजाय किसी अन्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा प्राप्त किया जाए। ऐसे मामले में, आवेदन प्राप्त करने वाले लोक सूचना अधिकारी को इसे संबंधित लोक सूचना अधिकारी को यथाशीघ्र, अधिमानता: उसी दिन हस्तारित कर देना चाहिए। हस्तांतरण के लिए पांच दिन की अवधि केवल तभी लागू होती है जब आवेदन एक लोक प्राधिकरण से दूसरे लोक प्राधिकरण से को हस्तांतरित किया जाता है न कि तब जब हस्तांतरण एक ही प्राधिकरण के एक सूचना अधिकारी से दूसरे लोक सूचना अधिकारी को हो।
आवेदकों को सहायता प्रदान करना
- सूचना का अधिकार अधिनियम में प्रावधान है कि लोक सूचना अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह सूचना मांगने वाले व्यक्तियों को युक्तियुक्त सहायता प्रदान करे। अधिनियम के प्रावधानोंके अनुसार सूचना प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति से अपेक्षित है कि वह अंग्रेजी अथवा हिन्दी अथवा जिस क्षेत्र में आवेदन किया जाना है, उस क्षेत्र की राजभाषा में लिखित अथवा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अपना निवेदन प्रस्तुत करे। यदि कोई व्यक्ति लिखित रूप से निवेदन देने में असमर्थ है, तो लोक सूचना अधिकारी से अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसे व्यक्ति को लिखित रूप में आवेदन तैयार करने में युक्तियुक्त सहायता करे।
- यदि किसी दस्तावेज को, संवेदनात्मक रूप से निःशक्त व्यक्ति को उपलब्ध करवाया जाना अपेक्षित है तो लोक सूचना अधिकारी को ऐसे व्यक्ति को समुचित सहायता प्रदान करनी चाहिए, ताकि वह सूचना प्राप्त करने में सक्षम हो सके। यदि दस्तावेज की जांच करनी हो तो उस व्यक्ति को ऐसी जांच के लिए सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
लोक सूचना अधिकारी को उपलब्ध सहायता
- लोक सूचना अधिकारी किसी भी अन्य अधिकारी से ऐसी सहायता मांग सकता है, जिसे वह अपने कर्तव्य के समुचित निर्वहन के लिए आवश्यक समझता हो/समझती हो। अधिकारी, जिससे सहायता मांगी जाती है, लोक सूचना अधिकारी को सभी प्रकार की सहायता प्रदान करेगा। ऐसे अधिकारी को लोक सूचना अधिकारी माना जाएगा और वह अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए उसी प्रकार उत्तरदायी होगा, जिस प्रकार कोई अन्य लोक सूचना अधिकारी होता है। लोक सूचना अधिकारी के लिए यह उचित होगा कि जब वह किसी अधिकारी से सहायता मांगे तो उस अधिकारी को उपर्युक्त प्रावधान से अवगत करा दे।
- उपर्युक्त प्रावधान के आधार पर कुछ लोक सूचना अधिकारी आवेदन-पत्र को अन्य अधिकारियों को स्थानांतरित करते हुए उन्हें यह निदेश दे देते हैं कि वे मान्यता प्राप्त लोक सूचना अधिकारी के रूप में आवेदनकर्ता को सूचना भेज दें। इस प्रकार, इस प्रावधान का उपयोग वे अन्य अधिकारियों को लोक सूचना अधिकारी के रूप में नामोदिष्ट करने के लिए कर रहे होते हैं। अधिनियम के अनुसार, आवेदनकर्ता को सूचना प्रदान करने अथवा अधिनियम की धारा 8 और 9 में निर्धारित किन्हीं कारणों से आवेदन-पत्र को अस्वीकार करने की जिम्मेदारी लोक प्राधिकरण द्वारा नामोदिष्ट लोक सूचना अधिकारी की है। अधिनियम ने लोक सूचना अधिकारी को आवेदक को सूचना प्रदान करने में समर्थ बनाने के उद्देश्य से यह अधिकार दिया है कि किसी अन्य अधिकारी से सहायता प्राप्त कर ले। किन्तु यह उसे किसी अन्य अधिकारी को लोक सूचना अधिकारी के रूप में नामोदिष्ट करने या उसे आवेदक को उत्तर भेजने के लिए निदेश देने का अधिकार नहीं देता। इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि वह अधिकारी जिससे सहायता मांगी गई है लोक सूचना अधिकारी को आवश्यक सहायता नहीं देता है तो सूचना आयोग उस अधिकारी पर शास्ति अधिरोपण अथवा उसके विरुद्ध अनुशासनिक कार्रवाई की अनुशंसा उसी तर्ज पर कर सकता है जैसा कि वह लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध कर सकता है।# सूचना की आपूर्ति
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उत्तर देने वाले लोक सूचना अधिकारी को देखना चाहिए कि मांगी गई सूचना उसका अथवा उसको कोई भाग अधिनियम की धारा 8 अथवा 9 के अन्तर्गत प्रकटन से छूट प्राप्त तो नहीं है। आवेदन से छूट के अन्तर्गत आने वाले भाग के संबंध में किए गए अनुरोध को नामंजूर कर दिया जाए तथा शेष सूचना तत्काल अथवा अतिरिक्त शुल्क लेने के बाद, जैसा भी मामला हो, मुहैया करवा दी जाए।
- जब सूचना के लिए अनुरोध को नामंजूर किया जाए तो लोक सूचना अधिकारी को अनुरोध करने वाले व्यक्ति को निम्नलिखित जानकारी देना चाहिए:-
(i) अस्वीकृति के कारण;
(ii) अवधि जिसमें अस्वीकृति के विरुद्ध अपील दायर की जा सके; और
(iii) उस अधिकारी का ब्यौरा जिससे अपील की जा सकती है। - यदि शुल्क तथा लागत नियमावली में किए गए प्रावधान के अनुसार आवेदक द्वारा अतिरिक्त शुल्क का भुगतान करना अपेक्षित हो, तो लोक सूचना अधिकारी आवेदक को निम्न सूचना देगा:-
(i) भुगतान करने हेतु अपेक्षित अतिरिक्त शुल्क का विवरण;
(ii) मांगी गई शुल्क की राशि निर्धारित करने हेतु की गई गणना;
(iii) यह तथ्य कि आवेदक को इस प्रकार मांगे गए शुल्क के बारे में अपील करने का अधिकार है;
(iv) उस प्राधिकारी का विवरण जिससे अपील की जा सकती है; और
(v) समय-सीमा जिसके भीतर अपील की जा सकती है। - यद्यपि अतिरिक्त शुल्क के बारे में आवेदक को कब सूचना देनी है। इस संबंध में कोई पक्का नियम नहीं है फिर भी, ऐसी सूचना आरटीआई आवेदन के प्राप्त होने के तुरन्त बाद देना चाहिए।
पृथक्करण द्वारा आंशिक सूचना की पूर्ति
- यदि किसी ऐसी सूचना के लिए आवेदन प्राप्त होता है जिसके कुछ भाग को तो प्रकटीकरण से छूट मिली हुई है लेकिन उसका कुछ भाग ऐसा है जो छूट के अंतर्गत नहीं आता है और इस प्रकार पृथक किया जा सके कि पृथक किए गए भाग में छूट प्राप्त जानकारी नहीं बच पाए, तो जानकारी के ऐसे पृथक किए हुए भाग/रिकार्ड को आवेदक को मुहैया कराया जा सकता है। जहां रिकार्ड के किसी भाग के प्रकटीकरण को इस तरीके से अनुमति दी जाए तो लोक सूचना अधिकारीको आवेदक को यह सूचित करना चाहिए कि मांगी गई सूचना को प्रकटीकरण से छूट प्राप्त है तथा रिकार्ड के मात्र ऐसे भाग को पृथक्करण के बाद मुहैया कराया जा रहा है जिसको प्रकटीकरण से छूट प्राप्त नहीं है। ऐसा करते समय, उसे निर्णय के कारण बताने चाहिए। साथ ही उस सामग्री, जिस पर निष्कर्ष आधारित था, का संदर्भ देते हुए सामग्रीगत प्रश्नों पर निष्कर्ष भी बताना चाहिए।
सूचना की आपूर्ति के लिए समय अवधि
- निम्न तालिका में विभिन्न परिस्थितियों में आवेदनों के निपटान के लिए अधिकतम समयसीमा (आवेदन प्राप्त करने के समय से) को दर्शाया गया है:-
| क्र.सं. | परिस्थिति | आवेदन का निपटान करने हेतु समय-सीमा |
| — | — | — |
| 1. | सामान्य स्थिति में सूचना की आपूर्ति | 30 दिन |
| 2. | यदि आवेदन सहायक लोक सूचना अधिकारी के माध्यम से प्राप्त होता है तो सूचना की आपूर्ति | क्रम संख्या 1 पर दर्शायी गई समय अवधि में 5 दिन और जोड़ दिए जाएंगे |
| 3. | यदि सूचना व्यक्ति के जीवन अथवा स्वतंत्रता से संबंधित हो तो इसकी आपूर्ति। | 48 घण्टे |
| 4. | अधिनियम की धारा 6(3) के तहत अन्य लोक प्राधिकारी को आवेदन का हस्तांतरण। | 05 दिन |
| 5. | यदि आवेदन/अनुरोध अन्य लोक प्राधिकरण से हस्तांतरित होने के बाद प्राप्त होते हैं तो सूचना की पूर्ति
क. सामान्य स्थिति में
ख. यदि सूचना व्यक्ति के जीवन तथा स्वतंत्रता से संबंधित हो। | क. संबंधित लोक प्राधिकरण द्वारा आवेदन की प्राप्ति के 30 दिन के भीतर
ख. संबंधित लोक प्राधिकरण द्वारा आवेदन की प्राप्ति के 48 घण्टों के भीतर |
| 6. | ऐसी सूचना की आपूर्ति जिसमें आवेदक को अतिरिक्त शुल्क का भुगतान करने के लिए कहा गया हो। | आवेदक को अतिरिक्त शुल्क के बारे में सूचित करने तथा आवेदक द्वारा अतिरिक्त शुल्क के || | | भुगतान के बीच की अवधि को उत्तर देने की दृष्टि से नहीं गिना जाएगा। |
| — | — | — |
| 7. | दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट संगठनों द्वारा सूचना की आपूर्ति
क. यदि सूचना का संबंध मानव अधिकार उल्लंघन से हो (केन्द्रीय सूचना आयोग के अनुमोदन के बाद)।
ख. यदि सूचना का संबंध भ्रष्टाचार के आरोपों से हो। | क. आवेदन प्राप्ति के 45 दिन के भीतर
ख. आवेदन प्राप्ति के 30 दिन के भीतर |
- यदि लोक सूचना अधिकारी, जानकारी के लिए अनुरोध करने पर निर्धारित समय में निर्णय देने में असफल रहता है तो यह माना जाएगा कि लोक सूचना अधिकारी ने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया है। यह बताना प्रासंगिक होगा कि यदि कोई लोक प्राधिकरण सूचना देने की समय सीमा का पालन नहीं कर पाता है तो संबंधित आवेदक को सूचना, बिना शुल्क मुहैया करवानी होगी।
तृतीय पक्ष की सूचना का प्रकटन
- वाणिज्यिक गुप्त बातों, व्यावसायिक रहस्यों अथवा बौद्धिक सम्पदा सहित ऐसी सूचना, जिसके प्रकटन से किसी तृतीय पक्ष की प्रतियोगी स्थिति को क्षति पहुंचती हो, को प्रकटन से छूट प्राप्त है। ऐसी सूचना का तब तक प्रकटन नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि सक्षम प्राधिकारी इस बात से आश्वस्त न हो कि ऐसी सूचना का प्रकटन बहुत लोकहित में वांछित है।
- यदि कोई आवेदक ऐसी सूचना मांगता है जो किसी तृतीय पक्ष से संबंध रखती है अथवा उसके द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है और तृतीय पक्ष ने ऐसी सूचना को गोपनीय माना है, तो लोक सूचना अधिकारी से अपेक्षित है कि वह सूचना को प्रकट करने अथवा न करने पर विचार करेगा। ऐसे मामलों में मार्गदर्शी सिद्धांत यह है कि यदि प्रकटन से तृतीय पक्ष को संभावित हानि की अपेक्षा बृहत्तर लोकहित सधता हो तो प्रकटन की स्वीकृति दे दी जाए बशर्ते कि सूचना कानून द्वारा संरक्षित व्यावसायिक अथवा वाणिज्यिक रहस्यों से संबंधित न हो। तथापि, ऐसी सूचना के प्रकटन से पहले लोक सूचना अधिकारी द्वारा नीचे दी गई प्रक्रिया को अपनाना होगा।
- यदि लोक सूचना अधिकारी सूचना को प्रकट करना उचित समझता है तो उसे आवेदन प्राप्त करने की तारीख के 5 दिन के भीतर, तृतीय पक्ष को लिखित सूचना देनी होगी कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदक द्वारा उससे संबंधित सूचना मांगी गई है और कि वह सूचनाको प्रकट करना चाहता है। उसे तृतीय पक्ष से निवेदन करना चाहिए कि तृतीय पक्ष लिखित अथवा मौखिक रूप से सूचना प्रकट करने या न करने के संबंध में अपना पक्ष रखे। तृतीय पक्ष को कोई प्रस्तावित प्रकटीकरण के विरुद्ध अभ्यावेदन करने के लिए नोटिस प्राप्त होने की तारीख से दस दिन का समय दिया जाना चाहिए।
- लोक सूचना अधिकारी को चाहिए वह तृतीय पक्ष के निवेदन को ध्यान में रखते हुए प्रकटन के संबंध में निर्णय ले। ऐसा निर्णय सूचना का अनुरोध प्राप्त होने से चालीस दिन के भीतर ले लिया जाना चाहिए। निर्णय लिए जाने के पश्चात, लोक सूचना अधिकारी को लिखित रूप में तृतीय पक्ष को अपने निर्णय के संबंध में नोटिस देना चाहिए। तृतीय पक्ष को नोटिस देते समय यह भी बताया जाना चाहिए कि तृतीय पक्ष को धारा 19 के अधीन अपील करने का अधिकार है।
- तृतीय पक्ष, लोक सूचना अधिकारी द्वारा दिए गए निर्णय के प्राप्त होने के तीस दिन के अंदर प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील कर सकता है। यदि तृतीय पक्ष प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के निर्णय से संतुष्ट न हो तो वह सूचना आयोग के समक्ष दिवितीय अपील कर सकता है।
- यदि तृतीय पक्ष द्वारा लोक सूचना अधिकारी के सूचना प्रकट करने के निर्णय के विरुद्ध कोई अपील दायर की जाती है, तो ऐसी सूचना को तब तक प्रकट नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि अपील पर निर्णय न ले लिया जाए।
शास्ति का अधिरोपण
- अधिनियम आवेदक को सूचना आयुक्त के समक्ष अपील करने और आयोग के समक्ष शिकायत करने का अधिकार देता है। यदि किसी शिकायत अथवा अपील का निपटान करते समय सूचना आयोग इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि लोक सूचना अधिकारी ने बिना किसी उचित कारण के सूचना के लिए आवेदन को प्राप्त करने से मना किया है अथवा निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना नहीं दी है अथवा सूचना के अनुरोध को दुर्भावनापूर्वक अस्वीकार किया है अथवा जानबूझकर गलत, अपूर्ण अथवा भ्रामक सूचना दी है अथवा संबंधित सूचना को नष्ट किया है अथवा सूचना प्रदान करने की कार्यवाही में किसी प्रकार से बाधा उत्पन्न की है, तो वह आवेदन प्राप्ति अथवा सूचना दिए जाने तक इस शर्त के अधीन कि ऐसी जुर्माना राशि 25000/- रुपए से अधिक नहीं होगी, दो सौं पचास रुपए प्रतिदिन के हिसाब से शास्ति लगा देगा। तथापि, लोक सूचना अधिकारी पर कोई जुर्माना लगाए जाने से पहले उसे अपनी बात का उचित अवसर दिया जाएगा। इस बात को साबित करने का भार लोक सूचना अधिकारी पर ही होगा कि उसने सोच-विचार कर उद्यम से कार्य किया है और अनुरोध को ठुकराए जाने की स्थिति ठुकराया जाना न्यायसंगत था।# लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनिक कार्रवाई
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यदि किसी शिकायत अथवा अपील पर निर्णय देते समय सूचना आयोग का यह मत होता है कि लोक सूचना अधिकारी ने बिना किसी उचित कारण के और लगातार सूचना हेतु किसी आवेदन को प्राप्त करने में कोताही बरती; अथवा निर्धारित समय के भीतर सूचना नहीं दी; अथवा दुर्भावानापूर्वक सूचना हेतु अनुरोध को स्वीकार किया; अथवा जानबूझकर गलत, अपूर्ण अथवा भ्रामक सूचना दी; अथवा अनुरोध के विषय से संबंधित सूचना को नष्ट किया; अथवा सूचना देने में किसी प्रकार से बाधा उत्पन्न की तो वह लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध अनुशानिक कार्रवाई की अनुशंसा कर सकता है।
नेकनीयती में किए गए कार्य की संरक्षा
- अधिनियम की धारा 21 में यह प्रावधान है कि अधिनियम अथवा उसके तहत बनाए गए किसी नियम के अधीन नेकनीयती से किए गए कार्य अथवा ऐसा कार्य करने के इरादे की वजह से, किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई भी मुकदमा, अभियोजन अथवा अन्य विधिक कार्यवाही नहीं की जाएगी। तथापि, लोक सूचना अधिकारी को ध्यान रखना चाहिए कि यह साबित करना कि उसके द्वारा किया गया कार्य नेकनीयती में किया गया था, उसका उत्तरदायित्व होगा ।# भाग – V
प्रथम अपीलीय प्राधिकारियों के लिए
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत प्रथम अपीलीय अधिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका है । प्रथम अपीलीय प्राधिकारियों द्वारा अपील की स्वतंत्र और विवेकसम्मत जांच-पड़ताल की जाने से अपील कर्त्ताओं की संतुष्टि में बढ़ोतरी होगी । इससे सूचना आयोग को की जाने वाली द्वितीय अपीलों की संख्या में कमी अएगी ।
2. एक आवेदक द्वारा मांगी गई सूचना या तो लोक सूचना अधिकारी द्वारा उसको दी जानी चाहिए अथवा उसके आवेदन को अधिनियम द्वारा निर्धारित समय-सीमा के अंदर रद्द कर देना चाहिए । यदि आवेदक से अतिरिक्त शुल्क लेने की आवश्यकता हो तो उसे इस संबंध में सूचना निर्धारित समय के भीतर भेज देनी चाहिए ।
प्रथम अपील
- यदि आवेदक को विनिर्दिष्ट समय के भीतर सूचना अथवा अनुरोध के अस्वीकार किए जाने के निर्णय अथवा अतिरिक्त शुल्क के भुगतान की सूचना प्राप्त नहीं होती है तो वह प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील कर सकता है । यदि आवेदक सूचना देने के संबंध में अथवा शुल्क की मात्रा के संबंध में लोक सूचना अधिकारी द्वारा लिए गए निर्णय से व्यथित हो तो भी वह अपील कर सकता है । आवेदक, ऐसी अवधि के समाप्त होने अथवा लोक सूचना अधिकारी द्वारा दिए गए ऐसे निर्णय प्राप्त होने के 30 दिन के भीतर अपील कर सकता है ।
- प्रथम अपीलीय प्राधिकारी तीस दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात अपील को स्वीकार कर सकता है यदि वह इस बात से संतुष्ट है कि आवेदक को समय पर अपील दायर करने से रोका गया था ।
- तीसरे पक्ष की सूचना प्रकट किए जाने के संबंध में लोक सूचना अधिकारी के आदेश के विरुद्ध तृतीय पक्ष प्रथम अपीलीय प्राधिकारी को अपील कर सकता है । ऐसी अपील, आदेश जारी होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर की जा सकती है ।# अपील का निपटान
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प्रथम अपीलों का निपटान करते समय प्रथम अपीलीय प्राधिकारी उचित तथा विवेकसम्मत ढंग से कार्य करे । यह महत्वपूर्ण है कि प्रथम अपीलीय प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश, विस्तृत तथा सकारण होने चाहिए तथा इनमें, लिए गए निर्णयों का औचित्य बताया जाना चाहिए ।
- यदि कोई अपीलीय प्राधिकारी किसी अपील के संबंध में निर्णय करते समय इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अपीलकर्त्ता को लोक सूचना अधिकारी द्वारा भेजी गई जानकारी के अतिरिक्त और जानकारी दी जानी अपेक्षित है तो वह या तो (i) लोक सूचना अधिकारी को अपीलकर्ता को ऐसी सूचना देने के लिए निदेश देते हुए आदेश पारित कर सकता है या (ii) अपीलकर्त्ता को वह स्वयं जानकारी भेज सकता है । पहली स्थिति में अपीलीय प्राधिकारी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके द्वारा आदेशित जानकारी अपीलकर्ता को शीघ्र भेजी जाए । हालांकि, बेहतर यह होगा कि अपीलीय प्राधिकारी कार्रवाई का दूसरा रास्ता अपनाए और वह अपने द्वारा पारित आदेश के साथ ही जानकारी भेज दे ।
- यदि किसी मामले में लोक सूचना अधिकारी, अपीलीय प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश को कार्यान्वित नहीं करता है और अपीलीय प्राधिकारी यह महसूस करता है कि उसके आदेश को कार्यान्वित कारवाने के लिए उच्चतर प्राधिकारी का हस्तक्षेप आवश्यक है तो उसे इस मामले को लोक प्राधिकरण के उस अधिकारी के ध्यान में लाना चाहिए जो लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई करने में सक्षम हो । ऐसे सक्षम अधिकारी को चाहिए कि वह यथोचित कार्रवाई करे ताकि सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को कार्यान्वित किया जा सके ।
अपील के निपटान के लिए समय-सीमा
- प्रथम अपीलीय प्राधिकारी को अपील का निपटान, अपील प्राप्त होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर कर देना चाहिए । कुछ अपवादिक मामलों में अपीलीय प्राधिकारी इसके निपटान के लिए 45 दिन का समय ले सकता है । तथापि, ऐसे मामलों में जिनमें अपील के निपटान में 30 दिन से अधिक समय लगता है, अपीलीय प्राधिकारी ऐसे विलम्ब के कारणों को लिखित रूप में दर्ज करेगा।