This document provides comprehensive guidelines for Central Public Information Officers (CPIOs) regarding their role and responsibilities under the Right to Information (RTI) Act, 2005. It clarifies that CPIOs play a crucial role in facilitating citizens’ access to information and that they are accountable for adhering to the Act’s provisions. The guidelines cover various aspects, including the definition of ‘information,’ the rights of citizens to seek information, exemptions from disclosure, and the process for providing information. It also details the procedures for handling applications, including fee structures, transfer of applications, and time limits for providing information. Furthermore, the document outlines provisions for appeals, complaints, and penalties for CPIOs who fail to discharge their duties effectively. It emphasizes the importance of CPIOs in ensuring transparency and accountability in public authorities and highlights the overarching nature of the RTI Act compared to other laws.
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सं. 1/69/2007-आई०आर०
भारत सरकार
कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय
(कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग)
- *
नॉर्थ ब्लॉक, नई दिल्ली.
दिनांक : 27 फरवरी, 2008
कार्यालय ज्ञापन
विषय :- सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत केन्द्रीय लोक सूचना
अधिकारी के रूप में पदनामित अधिकारियों के लिए दिशा-निर्देश।
अधोहस्ताक्षरी को यह कहने का निदेश हुआ है कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के
प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन में लोक प्राधिकरण का केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी महत्वपूर्ण
भूमिका निभाता है। अधिनियम के द्वारा उसे सौंपे गए कार्यों के निर्वहन में हुई त्रुटियों के लिए उस पर
शास्ति लगाई जा सकती है। अत: केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी के लिए यह आवश्यक है कि वह
अधिनियम का ध्यानपूर्वक अध्ययन करे और इसके प्रावधानों को भली-भाँति समझे। इस विभाग ने
केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारियों के कार्यों के संबंध में अधिनियम के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को स्पष्ट
करने वाली एक ‘मार्गदर्शिका’ तैयार की है जिसकी एक प्रति अनुबन्ध के रूप में संलग्न है।
- अधिनियम में प्रावधान है कि अपने कार्यों के समुचित निर्वहन के लिए केन्द्रीय लोक सूचना
अधिकारी किसी अन्य अधिकारी से सहयोग मांग सकता है। ऐसा अन्य अधिकारी जिससे सहायता
मांगी गई हो, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी माना जाएगा और वह अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन
के लिए उसी प्रकार उत्तरदायी होगा, जैसे कि स्वयं केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी होता है। चूँकि
केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी किसी भी अधिकारी का सहयोग ले सकता है, सभी अधिकारियों के लिए
यह वांछनीय है कि वे केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी की तरह ही अधिनियम के प्रावधानों के बारे में
आवश्यक ज्ञान प्राप्त करें। यह मार्गदर्शिका, उन्हें इस कार्य में मदद करेगी। -
सभी मंत्रालयों/विभागों इत्यादि से अनुरोध है कि वे संलग्न “मार्गदर्शिका” की विषयवस्तु को
सभी संबंधितों के ध्यान में ला दें।
(कृष्ण गोपाल वर्मा)
निदेशक
दूरभाष : 23092158सेवा में,
- भारत सरकार के सभी मंत्रालय/विभाग।
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संघ लोक सेवा आयोग/लोक सभा सचिवालय/राज्य सभा सचिवालय/मंत्रिमंडल सचिवालय/केन्द्रीय सतर्कता आयोग/राष्ट्रपति सचिवालय/उप राष्ट्रपति सचिवालय/प्रधानमंत्री कार्यालय/योजना आयोग।
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कर्मचारी चयन आयोग, सी.जी.ओ. कॉम्पलेक्स, लोधी रोड, नई दिल्ली।
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भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक का कार्यालय, 10, बहादुरशाह जफ़र मार्ग, नई दिल्ली।
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केन्द्रीय सूचना आयोग/राज्य सूचना आयोग।
प्रतिलिपि :- सभी राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों के मुख्य सचिव।
अनुबन्ध में विहित दिशा-निर्देश, आवश्यक संशोधनों के बाद राज्य लोक सूचना अधिकारियों पर भी लागू होते हैं। राज्य सरकारों से अपेक्षा है कि वे अपने अन्तर्गत आने वाले राज्य लोक सूचना प्राधिकारियों के लिए इसी प्रकार के दिशा-निर्देश जारी करें।# केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारियों के लिए मार्गदर्शिका
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 नागरिकों को किसी भी “लोक प्राधिकरण” से सूचना प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है। किसी लोक प्राधिकरण का केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी नागरिकों के सूचना के अधिकार को मूर्त्त रूप देने में मुख्य भूमिका निभाता है। अधिनियम उसे विशिष्ट कार्य साँपता है और किसी त्रुटि के मामले में उसे शास्ति हेतु जवाबदेह ठहराता है। अत: केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी के लिए यह आवश्यक है कि वह अधिनियम का ध्यानपूर्वक अध्ययन करे और इसके प्रावधानों को भली-भाँति समझे। अधिनियम के अन्तर्गत प्राप्त आवेदनों पर कार्रवाई करते समय उसे विशेष रूप से निम्नलिखित पहलुओं का ध्यान रखना चाहिए।
सूचना क्या है
- किसी भी स्वरूप में कोई भी सामग्री “सूचना” है। इसमें किसी भी इलेक्ट्रॉनिक रूप में धारित अभिलेख, दस्तावेज, ज्ञापन, ई-मेल, मत, सलाह, प्रेस विज्ञप्ति, परिपत्र, आदेश, लॉगबुक, संविदा, रिपोर्ट, कागजपत्र, नमूने, माडल, आंकड़ों संबंधी सामग्री शामिल है। इसमें किसी निजी निकाय से संबंधित ऐसी सूचना भी शामिल है जिसे लोक प्राधिकरण तत्समय लागू किसी कानून के अंतर्गत प्राप्त कर सकता है।
अधिनियम के अंतर्गत सूचना का अधिकार
- किसी नागरिक को किसी लोक प्राधिकरण से ऐसी सूचना माँगने का अधिकार है, जो उस लोक प्राधिकरण के पास उपलब्ध है या उसके नियंत्रण में उपलब्ध है। इस अधिकार में लोक प्राधिकरण के पास या नियंत्रण में उपलब्ध कृति, दस्तावेजों तथा रिकार्डों का निरीक्षण; दस्तावेजों या रिकार्डों के नोट, उद्धरण या प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना; सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना शामिल है।
- अधिनियम नागरिकों को, संसद-सदस्यों और राज्य विधान मण्डल के सदस्यों के बराबर सूचना का अधिकार प्रदान करता है। अधिनियम के अनुसार ऐसी सूचना, जिसे संसद अथवा राज्य विधानमण्डल को देने से इन्कार नहीं किया जा सकता, उसे किसी व्यक्ति को देने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता।
- नागरिकों को डिस्केट्स, फ़्रीपी, टेप, वीडियो कैसेट या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक रूप में अथवा प्रिंट आउट के रूप में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है, बशर्ते कि मांगी गई सूचना कम्प्यूटर में या अन्य किसी युक्ति में पहले से सुरक्षित है, जिससे उसे डिस्केट आदि में स्थानांतरित किया जा सके।6. आवेदक को सूचना सामान्यतः उसी रूप में प्रदान की जानी चाहिए, जिसमें वह मांगता है। तथापि, यदि किसी विशेष स्वरूप में माँगी गई सूचना की आपूर्ति से लोक प्राधिकरण के संसाधनों का अनपेक्षित ढंग से विचलन होता है या इससे रिकॉर्डों के परिरक्षण में कोई हानि की सम्भावना होती है, तो उस रूप में सूचना देने से मना किया जा सकता है।
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अधिनियम के अंतर्गत सूचना का अधिकार केवल भारत के नागरिकों को प्राप्त है। अधिनियम में निगम, संघ, कम्पनी आदि को, जो वैध हस्तियों/व्यक्तियों की परिभाषा के अंतर्गत तो आते हैं, किन्तु नागरिक की परिभाषा में नहीं आते, को सूचना देने का कोई प्रावधान नहीं है। फिर भी, यदि किसी निगम, संघ, कम्पनी, गैर सरकारी संगठन आदि के किसी ऐसे कर्मचारी या अधिकारी द्वारा प्रार्थनापत्र दिया जाता है, जो भारत का नागरिक है, तो उसे सूचना दी जाएगी, बशर्ते वह अपना नाम इंगित करे। ऐसे मामले में, यह प्रकल्पित होगा कि एक नागरिक द्वारा निगम आदि के पते पर सूचना माँगी गई है।
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अधिनियम के अंतर्गत केवल ऐसी सूचना प्रदान करना अपेक्षित है, जो लोक प्राधिकरण के पास पहले से मौजूद है अथवा उसके नियन्त्रण में है। केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा सूचना सृजित करना; या सूचना की व्याख्या करना; या आवेदक द्वारा उठाई गई समस्याओं का समाधान करना; या काल्पनिक प्रश्नों का उत्तर देना अपेक्षित नहीं है।
प्रकटीकरण से छूट प्राप्त सूचना
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इस अधिनियम की धारा 8 की उप-धारा (1) और धारा 9 में सूचना की ऐसी श्रेणियों का विवरण दिया गया है, जिन्हें प्रकटीकरण से छूट प्राप्त है। फिर भी, धारा 8 की उप-धारा (2) में यह प्रावधान है कि उप-धारा (1) के अन्तर्गत छूट प्राप्त अथवा शासकीय गोपनीय अधिनियम, 1923 के अन्तर्गत छूट प्राप्त सूचना का प्रकटीकरण किया जा सकता है। प्रकटीकरण से, संरक्षित हित को होने वाले नुकसान की अपेक्षा वृहत्तर लोक हित सधता हो। इसके अलावा धारा 8 की उप-धारा (3) में यह प्रावधान है कि उप-धारा (1) के खण्ड (क), (ग) और (झ) में उपबन्धित सूचना के सिवाय उस उप-धारा के अन्तर्गत प्रकटीकरण से छूट प्राप्त सूचना, सम्बद्ध घटना के घटित होने की तारीख के 20 वर्ष बाद प्रकटीकरण से मुक्त नहीं रहेगी।
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स्मरणीय है कि अधिनियम की धारा 8(3) के अनुसार लोक प्राधिकारियों से यह अपेक्षा नहीं की गई है कि वे अभिलेखों को अनन्त काल तक सुरक्षित रखें। लोक प्राधिकरण को प्राधिकरण में लागू अभिलेख धारण अनुसूची के अनुसार ही अभिलेखों को संरक्षित रखना चाहिए। किसी फाइल में सृजित जानकारी फाइल/अभिलेख के नष्ट हो जाने के बाद भी कार्यालय ज्ञापन अथवा पत्र अथवा किसी भी अन्य रूप में मौजूद रह सकती है। अधिनियम के अनुसार यह अपेक्षित है कि धारा 8 की उप धारा (1) के अंतर्गत — प्रकटन से छूट प्राप्त होने के बावजूद भी, 20 वर्ष बाद इस प्रकार उपलब्ध जानकारी उपलब्ध करा दी जाए। अर्थ यह है कि ऐसी जानकारी जिसे सामान्य रूप से अधिनियम की धारा 8 की उप-धारा (1) के अंतर्गत प्रकटन से छूट प्राप्त है, जानकारी से संबंधित घटना के घटित होने के 20 वर्ष बाद ऐसी छूट से मुक्त हो जाएगी। तथापि, निम्नलिखित प्रकार की जानकारी के लिए प्रकटन से छूटजारी रहेगी और 20 वर्ष बीत जाने के बाद भी ऐसी जानकारी को किसी नागरिक को देना बाध्यकारी नहीं होगा :-
(i) ऐसी जानकारी जिसके प्रकटन से भारत की संप्रभुता और अखण्डता, राष्ट्र की सुरक्षा, सामरिक, वैज्ञानिक और आर्थिक हित, विदेश के साथ संबंध प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती हो अथवा कोई अपराध भड़कता हो ;
(ii) ऐसी जानकारी जिसके प्रकटन से संसद अथवा राज्य के विधानमण्डल के विशेषाधिकार की अवहेलना होती हो ; अथवा
(iii) अधिनियम की धारा 8 की उप-धारा (1) के खण्ड (झ) के प्रावधान में दी गई शर्तों के अधीन मंत्रिपरिषद्, सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श सहित मंत्रिमण्डलीय दस्तावेज ।
सूचना का अधिकार बनाम अन्य अधिनियम
- सूचना का अधिकार अधिनियम का अन्य विधियों की तुलना में अधिभावी प्रभाव है। शासकीय गोपनीयता अधिनियम, 1923 और तत्काल प्रभावी किसी अन्य कानून में ऐसे प्रावधान, जो सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों से असंगत है, की उपस्थिति की स्थिति में सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधान प्रभावी होंगे।
आवेदकों को सहायता प्रदान करना
- केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह सूचना माँगने वाले व्यक्तियों को युक्तियुक्त सहायता प्रदान करे। अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सूचना प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति से अपेक्षित है कि वह अंग्रेजी अथवा हिन्दी अथवा जिस क्षेत्र में आवेदन किया जाना है, उस क्षेत्र की राजकीय भाषा में लिखित अथवा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अपना निवेदन प्रस्तुत करे। यदि कोई व्यक्ति लिखित रूप से निवेदन देने में असमर्थ है, तो केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी से अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसे व्यक्ति को लिखित रूप में आवेदन तैयार करने में युक्तियुक्त सहायता करे।
- यदि किसी दस्तावेज को, संवेदनात्मक रूप से नि:शक्त व्यक्ति को उपलब्ध कराना अपेक्षित है, तो केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को ऐसे व्यक्ति को समुचित सहायता प्रदान करनी चाहिए, ताकि वह सूचना प्राप्त करने में सक्षम हो सके। यदि दस्तावेज की जाँच करनी हो, तो उस व्यक्ति को ऐसी जाँच के लिए उपयुक्त सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को उपलब्ध सहायता
- केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी किसी भी अन्य अधिकारी से ऐसी सहायता मांग सकता है, जिसे वह अपने कर्तव्य के समुचित निर्वहन के लिए आवश्यक समझता हो। अधिकारी, जिससे सहायता माँगी जाती है, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को सभी प्रकार की सहायता प्रदान करेगा। ऐसे अधिकारी को केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी माना जाएगा और वह अधिनियम के प्रावधानों के उलघन के लिए उसी प्रकार उत्तरदायी होगा, जिस प्रकार कोई अन्य केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी होता है।केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी के लिए यह उचित होगा कि जब वह किसी अधिकारी से सहायता माँगे, तो उस अधिकारी को उपर्युक्त प्रावधान से अवगत करा दे।
सूचना का अपनी ओर से प्रकटन
- अधिनियम की धारा 4 के प्रावधानों के अनुसार प्रत्येक लोक प्राधिकरण के लिए अपने संगठन, इसके क्रियाकलापों, कर्तव्यों और अन्य विषयों आदि के ब्यौरों का स्वतः प्रकटन करना बाध्यकारी है। धारा 4 की उप धारा (4) के अनुसार, इस प्रकार से प्रकाशित जानकारी इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट में केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी के पास सुलभ होनी चाहिए। केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को यह सुनिश्चित करने का भरसक प्रयास करना चाहिए कि लोक प्राधिकारी द्वारा धारा 4 की अपेक्षाएँ पूरी की जाएं और लोक प्राधिकरण के संबंध में अधिकतम सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध की जाएं। इससे दो लाभ होंगे। प्रथम, अधिनियम के अंतर्गत आवेदनों की संख्या में कमी आएगी और द्वितीय, यह सूचना प्रदान करने के कार्य को सुकर बनाएगा, क्योंकि अधिकतम सूचना एक ही स्थान पर उपलब्ध होगी।
सूचना माँगने का शुल्क
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आवेदनकर्ता से अपेक्षित है कि वह अपने आवेदन पत्र के साथ सूचना माँगने का निर्धारित शुल्क 10/- रुपए (दस रुपए) मांग पत्र अथवा बैंकर चैक अथवा भारतीय पोस्टल ऑर्डर के रूप में लोक प्राधिकरण के लेखा अधिकारी के नाम से भेजे। शुल्क का भुगतान लोक प्राधिकरण के लेखाधिकारी अथवा केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी को नकद भी किया जा सकता है। ऐसे में आवेदनकर्ता को उपयुक्त रसीद अवश्य प्राप्त कर लेनी चाहिए।
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सूचना की आपूर्ति के लिए सूचना का अधिकार (शुल्क और लागत का विनियमन) नियमावली, 2005 के द्वारा अतिरिक्त शुल्क का प्रावधान भी किया गया है, जो निम्नानुसार है:
- (क) सृजित अथवा फोटोकॉपी किए हुए प्रत्येक पेज (ए 4 अथवा ए 3 आकार) कागज के लिए दो रुपए (2/- रुपए);
- (ख) बड़े आकार के कागज में कापी का वास्तविक प्रभार अथवा लागत कीमत;
- (ग) नमूनों या मॉडलों के लिए वास्तविक लागत अथवा कीमत;
- (घ) अभिलेखों के निरीक्षण के लिए, पहले घण्टे के लिए कोई शुल्क नहीं और उसके बाद प्रत्येक घण्टे (या उसके खण्ड) के लिए पाँच रुपए का शुल्क (5/- रुपए);
- (ड) डिस्केट अथवा फ़्रॉपी में सूचना प्रदान करने के लिए प्रत्येक डिस्केट अथवा फ्लॉपी पचास रुपए (50/- रुपए)
- (च) मुद्रित रूप में दी गई सूचना के लिए, ऐसे प्रकाशन के लिए नियत मूल्य अथवा प्रकाशन के उद्धरणों की फोटोकापी के दो रुपए प्रति पृष्ठ।
- गरीबी रेखा के नीचे की श्रेणी के अंतर्गत आने वाले आवेदनकर्ताओं को किसी प्रकार का शुल्क देने की आवश्यकता नहीं है। तथापि, उसे गरीबी रेखा के नीचे के स्तर का होने के दावे का प्रमाणपत्रप्रस्तुत करना होगा। आवेदन के साथ निर्धारित 10/-रुपए के शुल्क अथवा आवेदनकर्ता के गरीबी रेखा के नीचे वाला होने का प्रमाण, जैसा भी मामला हो, नहीं होने पर आवेदन को अधिनियम के अंतर्गत वैध नहीं माना जाएगा और इसीलिए, ऐसे आवेदक को अधिनियम के अंतर्गत सूचना प्राप्त करने का हक नहीं होगा।
आवेदन की विषय-वस्तु और प्रपत्र
- आवेदक को सूचना माँगने के लिए कोई कारण अथवा उसे सम्पर्क करने के लिए आवश्यक विवरण के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्तिगत ब्यौरा देना आवश्यक नहीं है। साथ ही, अधिनियम अथवा नियमों में सूचना प्राप्त करने हेतु आवेदन का कोई निर्धारित प्रपत्र नहीं है। इसलिए, आवेदक से सूचना का निवेदन करने का कारण बताने अथवा अपने रोजगार इत्यादि का ब्यौरा देने अथवा किसी विशेष स्वरूप में आवेदन प्रस्तुत करने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए।
अवैध आवेदन
- आवेदन प्राप्त करने के तुरंत बाद केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को यह जाँच करनी चाहिए कि क्या आवेदक ने 10/-रुपए के आवेदन शुल्क का भुगतान कर दिया है अथवा क्या आवेदक गरीबी रेखा के नीचे के परिवार से है। यदि आवेदन के साथ निर्धारित शुल्क अथवा गरीबी रेखा के नीचे का प्रमाणपत्र संलग्न नहीं है, तो इसे सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत वैध आवेदन नहीं समझा जाएगा। ऐसे आवेदन को अस्वीकृत किया जा सकता है।
आवेदन का हस्तांतरण
- यदि आवेदन के साथ निर्धारित शुल्क अथवा गरीबी रेखा के नीचे का प्रमाणपत्र संलग्न है, तो केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को देखना चाहिए कि क्या आवेदन की विषय-वस्तु अथवा उसका कोई खण्ड किसी अन्य लोक प्राधिकरण से संबंधित तो नहीं है। यदि आवेदन की विषय-वस्तु किसी अन्य लोक प्राधिकरण से संबंधित हो, तो उस आवेदन को सम्बद्ध लोक प्राधिकरण को हस्तांतरित कर दिया जाना चाहिए। यदि आवेदन आंशिक रूप से ही अन्य लोक प्राधिकरण से संबंधित है, तो उस लोक प्राधिकरण से संबंधित खण्ड को स्पष्ट रूप से विनिर्दिष्ट करते हुए आवेदन की एक प्रति उस लोक प्राधिकरण को भेज देनी चाहिए। आवेदन का हस्तांतरण करते समय अथवा उसकी प्रति भेजते समय संबंधित लोक प्राधिकरण को सूचित किया जाना चाहिए कि आवेदन शुल्क प्राप्त कर लिया गया है। आवेदक को उसके आवेदन के स्थानांतरण के बारे में तथा उस लोक प्राधिकरण, जिसको उनका आवेदन अथवा उसकी एक प्रति भेजी गई है, के ब्यौरों के बारे में भी सूचित कर देना चाहिए।
- आवेदन अथवा उसके भाग का हस्तांतरण जितना जल्दी संभव हो, कर देना चाहिए। यह ध्यान रखा जाए कि हस्तांतरण करने में आवेदन की प्राप्ति की तारीख से पांच दिन से अधिक का समय न लगे। यदि कोई केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी किसी आवेदन की प्राप्ति के पांच दिन के बाद उसआवेदन को स्थानांतरित करता है तो उस आवेदन के निपटान में होने वाले विलम्ब में से इतने समय के लिए वह जिम्मेदार होगा जो उसने स्थानांतरण में 5 दिन से अधिक लगाया।
- उस लोक प्राधिकरण का केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी जिसे आवेदन हस्तांतरित किया गया है, इस आधार पर आवेदन के हस्तांतरण को नामंजूर नहीं कर सकता कि उसे आवेदन 5 दिन के भीतर हस्तांतरित नहीं किया गया।
- कोई लोक प्राधिकरण अपने लिए जितने आवश्यक समझे उतने केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी पदनामित कर सकता है। यह संभव है कि ऐसे लोक प्राधिकरण जिसमें एक से अधिक केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी हों, कोई आवेदन संबंधित लोक सूचना अधिकारी के बजाय किसी अन्य केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को प्राप्त हो। ऐसे मामले में आवेदन प्राप्त करने वाले केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को इसे संबंधित केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को यथाशीघ्र, अधिमानतः, उसी दिन हस्तांतरित कर देना चाहिए। हस्तांतरण के लिए पांच दिन की अवधि केवल तभी लागू होती है जब आवेदन एक लोक प्राधिकरण से दूसरे लोक प्राधिकरण को हस्तांतरित किया जाता है ना कि तब जब हस्तांतरण एक ही प्राधिकरण के एक केन्द्रीय सूचना अधिकारी से दूसरे केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को हो।
सूचना की आपूर्ति
- उत्सर देने वाले केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को देखना चाहिए कि मांगी गई सूचना अथवा उसका कोई भाग अधिनियम की धारा 8 अथवा 9 के अन्तर्गत प्रकटीकरण से छूट प्राप्त तो नहीं है। आवेदन के छूट के अन्तर्गत आने वाले भाग के संबंध में किए गए अनुरोध को नामंजूर कर दिया जाए तथा शेष सूचना तत्काल अथवा अतिरिक्त शुल्क लेने के बाद, जैसा भी मामला हो, मुहैया करवा दी जाए।
- जब सूचना के लिए अनुरोध को नामंजूर किया जाए तो केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को अनुरोध करने वाले व्यक्ति को निम्नलिखित जानकारी देनी चाहिए :-
(i) अस्वीकृति के कारण
(ii) अवधि जिसमे अस्वीकृति के विरुद्ध अपील दायर की जा सके; और
(iii) उस प्राधिकारी का ब्यौरा जिससे अपील की जा सकती है। - यदि सूचना का अधिकार (शुल्क का विनियमन तथा लागत) नियमावली, 2005 में किए गए प्रावधान के अनुसार आवेदक द्वारा अतिरिक्त शुल्क का भुगतान करना अपेक्षित हो, तो केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी आवेदक को निम्न सूचना देगा :-
(i) भुगतान करने हेतु अपेक्षित अतिरिक्त शुल्क का विवरण;(ii) मांगी गई शुल्क की राशि निर्धारित करने हेतु की गई गणना;
(iii) यह तथ्य कि आवेदक को इस प्रकार मांगे गए शुल्क के बारे में अपील करने का अधिकार है;
(iv) उस प्राधिकारी का विवरण जिससे अपील की जा सकती है; और
(v) समय-सीमा जिसके भीतर अपील की जा सकती है।
पृथक्करण द्वारा आंशिक सूचना की आपूर्ति
- यदि किसी ऐसी सूचना के लिए आवेदन प्राप्त होता है जिसके कुछ भाग को तो प्रकटीकरण से छूट मिली हुई है लेकिन उसका कुछ भाग ऐसा है जो छूट के अन्तर्गत नहीं आता है और जिसे इस प्रकार पृथक किया जा सके कि पृथक किए हुए भाग में छूट प्राप्त जानकारी नहीं बच पाए, तो जानकारी के ऐसे पृथक किए हुए भाग/रिकार्ड को आवेदक को मुहैया कराया जा सकता है। जहां रिकार्ड के किसी भाग के प्रकटीकरण को इस तरीके से अनुमति दी जाए तो केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को आवेदक को यह सूचित करना चाहिए कि मांगी गई सूचना को प्रकटीकरण से छूट प्राप्त है तथा रिकार्ड के मात्र ऐसे भाग को पृथक्करण के बाद मुहैया कराया जा रहा है जिसको प्रकटीकरण से छूट प्राप्त नहीं है। ऐसा करते समय, उसे निर्णय के कारण बताने चाहिए। साथ ही उस सामग्री, जिस पर निष्कर्ष आधारित था, का संदर्भ देते हुए सामग्रीगत प्रश्नों पर निष्कर्ष भी बताना चाहिए। इन मामलों में केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को सूचना की आपूर्ति से पहले समुचित प्राधिकारी का अनुमोदन लेना चाहिए तथा निर्णय लेने वाले अधिकारी के नाम तथा पदनाम की सूचना भी आवेदक को देनी चाहिए।
सूचना की आपूर्ति के लिए समय अवधि
- केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को सूचना की आपूर्ति अनुरोध की प्राप्ति के तीस दिनों के भीतर कर देनी चाहिए। यदि मांगी गई सूचना का संबंध किसी व्यक्ति के जीवन अथवा स्वातंत्र्य से हो तो सूचना आवेदन की प्राप्ति के अड़तालीस घंटे के भीतर उपलब्ध करना अपेक्षित है।
- प्रत्येक लोक प्राधिकरण से अपेक्षित है कि वह प्रत्येक उप प्रभागीय स्तर अथवा अन्य उप जिला स्तर पर केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी पदनामित करे जो अधिनियम के अंतर्गत आवेदनों अथवा अपीलों को प्राप्त कर सके और उन्हें केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी अथवा अपीलीय प्राधिकारी अथवा केन्द्रीय सूचना आयोग को अग्रेषित कर दे। यदि सूचना के लिए कोई अनुरोध केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारियों के माध्यम से प्राप्त होता है तो सूचना केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी द्वारा आवेदन प्राप्त होने के 35 दिन के भीतर तथा यदि मांगी गई सूचना व्यक्ति के जीवन तथा स्वातंत्र्य से संबंधित हो, तो सूचना अनुरोध प्राप्ति के 48 घंटों जमा 5 दिन के भीतर उपलब्ध करा दी जानी चाहिए।
- उपर्युक्त पैरा 21 में संदर्भित एक लोक प्राधिकरण से दूसरे लोक प्राधिकरण को स्थानांतरित किये गए सामान्य आवेदन का उत्तर सम्बद्ध लोक प्राधिकरण को उसके द्वारा आवेदन प्राप्ति के 30 दिन के भीतर दे देना चाहिए। यदि मांगी गई सूचना व्यक्ति के जीवन तथा स्वातंत्र्य से संबंधित हो, तो 48 घंटे के भीतर सूचना मुहैया करवा दी जानी चाहिए।1. इस अधिनियम की दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट आसूचना तथा सुरक्षा संगठनों के केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी के पास भ्रष्टाचार तथा मानव अधिकार उल्लंघन के आरोपों से संबंधित सूचना के लिए आवेदन आ सकते हैं। मानव अधिकारों के उल्लंघन के आरोपों से संबंधित सूचना, जो केन्द्रीय सूचना आयोग का अनुमोदन प्राप्त होने के बाद ही प्रदान की जाती है, अनुरोध प्राम्रि की तारीख के 45 दिनों के भीतर प्रदान कर दी जानी चाहिए। भ्रष्टाचार के आरोपों से संबंधित सूचना की आपूर्ति करने हेतु निर्धारित समय अवधि अन्य मामलों के समरूप ही है।
- यदि आवेदक से अतिरिक्त शुल्क देने को कहा जाता है तो शुल्क के भुगतान के बारे में सूचना के प्रेषण तथा आवेदक द्वारा शुल्क का भुगतान करने के बीच की समय अवधि को उत्तर देने की अवधि के उद्देश्य से नहीं गिना जाएगा। निम्न तालिका में विभिन्न परिस्थितियों में आवेदनों के निपटान के लिए निर्धारित समय-सीमा को दर्शाया गया है:-
| क्र.सं. | परिस्थिति | आवेदन का निपटान करने हेतु समय-सीमा |
| — | — | — |
| 1. | सामान्य स्थिति में सूचना की आपूर्ति | 30 दिन |
| 2. | यदि सूचना व्यक्ति के जीवन अथवा स्वातंत्र्य से संबंधित हो तो इसकी आपूर्ति | 48 घंटे |
| 3. | यदि आवेदन केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी के माध्यम से प्राप्त होता है तो सूचना की आपूर्ति | क्र.सं. 1 तथा 2 पर दर्शायी गई समय अवधि में 5 दिन और जोड़ दिए जाएंगे |
| 4. | यदि आवेदन/अनुरोध अन्य लोक प्राधिकरण से स्थानांतरित होने के बाद प्राप्त होते हैं तो सूचना की आपूर्ति
(क) सामान्य स्थिति में
(ख) यदि सूचना व्यक्ति के जीवन तथा स्वतंत्रता से संबंधित हो | (क) संबंधित लोक प्राधिकरण द्वारा आवेदन की प्राम्रि के 30 दिन के भीतर
(ख) संबंधित लोक प्राधिकरण द्वारा आवेदन की प्राम्रि के 48 घंटों के भीतर |
| 5. | दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट संगठनों द्वारा सूचना की आपूर्ति
(क) यदि सूचना का संबंध मानव अधिकार उल्लंघन से हो (ख) यदि सूचना का संबंध भ्रष्टाचार के आरोपों से हो | (क) आवेदन प्राम्रि के 45 दिन के भीतर(ख) आवेदन प्राम्रि के 30 दिन के भीतर |
| 6. | यदि सूचना तीसरी पार्टी से संबंधित हो तथा तीसरी पार्टी ने इसे गोपनीय माना हो तो सूचना की आपूर्ति | इन मार्गनिर्देशों के पैरा 37 से 41 में दी गई प्रक्रिया का पालन करते हुए मुहैया करवाई जाए |
| 7. | ऐसी सूचना की आपूर्ति जिसमें आवेदक को अतिरिक्त शुल्क का भुगतान करने का कहा गया हो | आवेदक को अतिरिक्त शुल्क के बारे में सूचित करने तथा आवेदक द्वारा अतिरिक्त शुल्क के भुगतान के बीच की अवधि को उत्तर देने की दृष्टि से नहीं गिना जाएगा। |
- यदि केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी जानकारी के लिए अनुरोध पर निर्धारित समय में निर्णय देने में असफल रहता है तो यह माना जाएगा कि केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी ने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया है। यह बताना प्रासंगिक होगा कि यदि कोई लोक प्राधिकरण सूचना देने की समयसीमा का पालन नहीं कर पाता है तो संबंधित आवेदक को सूचना बिना शुल्क मुहैया करवाई जानी होगी।
तीसरी पार्टी की सूचना
- इस अधिनियम के संदर्भ में तीसरी पार्टी का तात्पर्य आवेदक से भिन्न अन्य व्यक्ति से है। ऐसे लोक प्राधिकरण भी तीसरी पार्टी की परिभाषा में शामिल होंगे जिससे सूचना नहीं मांगी गई है।
- स्मरणीय है कि वाणिज्यिक गुप्त बातों, व्यावसायिक रहस्यों और बौद्धिक सम्पदा सहित ऐसी सूचना, जिसके प्रकटन से किसी तीसरी पार्टी की प्रतियोगी स्थिति को क्षति पहुंचती हो, को प्रकटन से छूट प्राप्त है। धारा 8(1)(घ) के अनुसार यह अपेक्षित है कि ऐसी सूचना को प्रकट न किया जाए जब तक कि सक्षम प्राधिकारी इस बात से आश्वस्त न हो कि ऐसी सूचना का प्रकटन बृहत लोक हित में प्राधिकृत है।
- यदि कोई आवेदक ऐसी सूचना मांगता है जो किसी तीसरी पार्टी से संबंध रखती है अथवा उसके द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है और तीसरी पार्टी ने ऐसी सूचना को गोपनीय माना है, तो केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी से अपेक्षित है कि वह सूचना को प्रकट करने अथवा न करने पर विचार करे। ऐसे मामलों में मार्गदर्शी सिद्धांत यह होना चाहिए कि यदि प्रकटन से तीसरी पार्टी को सम्भावित हानि की अपेक्षा बृहत्तर लोक हित सधता हो तो प्रकटन की स्वीकृति दे दी जाए बशर्ते कि सूचना कानून द्वारा संरक्षित व्यावसायिक अथवा वाणिज्यिक रहस्यों से संबन्धित न हो। तथापि, ऐसी सूचना के प्रकटन से पहले नीचे दी गई प्रक्रिया को अपनाया जाए। यह ध्यान देने योग्य बात है कि इस प्रक्रिया को केवल तभी अपनाया जाना है जब तीसरी पार्टी ने सूचना को गोपनीय माना हो।
- यदि केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी सूचना को प्रकट करना उचित समझता है तो उसे आवेदन प्राप्ति की तारीख के 5 दिन के भीतर, तीसरी पार्टी को एक लिखित सूचना देनी चाहिए कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदक द्वारा सूचना मांगी गई है और कि वह सूचना को प्रकट करना चाहता है। उसे तृतीय पक्ष से निवेदन करना चाहिए कि तृतीय पक्ष लिखित अथवा मौखिक रूप से सूचना को प्रकट करने या न करने के संबंध में अपना पक्ष रखे। तृतीय पक्ष को प्रस्तावित प्रकटन, के विरुद्ध प्रतिवेदन करने के लिए दस दिन का समय दिया जाना चाहिए।
- केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को चाहिए कि वह तृतीय पक्ष के निवेदन को ध्यान में रखते हुए प्रकटन के संबंध में निर्णय ले। ऐसा निर्णय सूचना के अनुरोध की प्राप्ति से चालीस दिन के भीतर ले लिया जाना चाहिए। निर्णय लिए जाने के पश्चात्, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को लिखित में तृतीय पक्ष को अपने निर्णय की सूचना देनी चाहिए। तृतीय पक्ष को सूचना देते समय यह भी बताना चाहिए कि तृतीय पक्ष को धारा 19 के अधीन अपील करने का हक है।40. तृतीय पक्ष केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा दिए गए निर्णय की प्राप्ति के तीस दिन के अन्दर प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील कर सकता है। यदि तृतीय पक्ष प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के निर्णय से संतुष्ट न हो, तो वह केन्द्रीय सूचना आयुक्त के समक्ष द्वितीय अपील कर सकता है।
- यदि तृतीय पक्ष द्वारा केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी के सूचना प्रकट करने के निर्णय के विरुद्ध कोई अपील दायर की जाती है, तो ऐसी सूचना को तब तक प्रकट नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि अपील पर निर्णय न ले लिया जाए।
अपील और शिकायतें
- यदि किसी आवेदक को निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना उपलब्ध नहीं करवाई जाती है, अथवा वह दी गई सूचना से संतुष्ट नहीं होता है, तो वह प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील कर सकता है। प्रथम अपीलीय प्राधिकारी केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी से रैंक में वरिष्ठ अधिकारी होता है। ऐसी अपील सूचना उपलब्ध कराए जाने की समय-सीमा के समाप्त होने अथवा केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी के निर्णय के प्राप्त होने की तारीख से 30 दिन की अवधि के भीतर की जा सकती है। लोक प्राधिकरण के अपीलीय प्राधिकारी से अपेक्षा की जाती है कि वह अपील की प्राप्ति के तीस दिन की अवधि के भीतर अथवा विशेष मामलों में 45 दिन के भीतर अपील का निपटान कर दे। यदि प्रथम अपीलीय प्राधिकारी निर्धारित अवधि के भीतर अपील पर आदेश पारित करने में असफल रहता है अथवा यदि अपीलकर्ता प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के आदेश से संतुष्ट नहीं होता है, तो वह प्रथम अपीलीय प्राधिकारी द्वारा निर्णय किए जाने के लिए निर्धारित समय सीमा समाप्त होने अथवा अपीलकर्ता द्वारा वास्तविक रूप में निर्णय की प्राप्ति की तारीख से नब्बे दिन के भीतर केन्द्रीय सूचना आयोग के समक्ष द्वितीय अपील दायर कर सकता है।
- यदि कोई व्यक्ति संबंधित लोक प्राधिकरण द्वारा लोक सूचना अधिकारी नियुक्त न किए जाने के कारण आवेदन करने में असमर्थ रहता है; अथवा केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी उसके आवेदन अथवा अपील को सम्बद्ध केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी अथवा अपीलीय प्राधिकारी को भेजने के लिए स्वीकार करने से इंकार करता है; अथवा सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन सूचना को पाने के उसके अनुरोध को ठुकरा दिया जाता है ; अथवा अधिनियम में निर्धारित समय-सीमा के भीतर उसके सूचना प्राप्त करने के अनुरोध का प्रत्युत्तर नहीं दिया जाता है; अथवा उसके द्वारा फीस के रूप में एक ऐसी राशि अदा करने की अपेक्षा की गई है जिसे वह औचित्यपूर्ण नहीं मानता है; अथवा उसका विश्वास है कि उसे अधूरी, पथभ्रष्ट करने वाली व झूठी सूचना दी गई है, तो वह केन्द्रीय सूचना आयोग के समक्ष शिकायत कर सकता है।
शास्ति का अधिरोपण
- जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, अधिनियम आवेदक को केन्द्रीय सूचना आयुक्त के समक्ष अपील करने और शिकायत करने का अधिकार देता है। यदि किसी शिकायत अथवा अपील कानिर्णय करते समय केन्द्रीय सूचना आयोग इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी ने बिना किसी औचित्यपूर्ण कारक के, सूचना के लिए आवेदन को प्राप्त करने से मना किया है अथवा निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना नहीं दी है अथवा सूचना के अनुरोध को दुर्भावनापूर्वक अस्वीकार किया है अथवा जानबूझकर गलत, अपूर्ण अथवा भ्रामक सूचना दी है अथवा संबंधित सूचना को नष्ट किया है अथवा सूचना प्रदान करने की कार्यवाही में किसी प्रकार से बाधा उत्पन्न की है, तो वह आवेदन प्राति अथवा सूचना दिए जाने तक दो सौ पचास रूपए प्रतिदिन के हिसाब से शास्ति लगा देगा। ऐसी शास्ति की कुल राशि पच्चीस हजार रूपए से अधिक नहीं होगी। तथापि, शास्ति लगाए जाने से पूर्व केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को सुनवाई के लिए पर्याप्त अवसर दिया जाएगा। यह सिद्ध करने का भार केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी पर होगा कि उसने सोच-विचार और उद्यम से कार्य किया तथा किसी अनुरोध के अस्वीकार करने के मामले में ऐसा अस्वीकरण न्यायसंगत था।
केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनिक कार्रवाई
- यदि किसी शिकायत अथवा अपील पर निर्णय देते समय केन्द्रीय सूचना आयोग का यह मत होता है कि केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी ने बिना किसी उचित कारण के और लगातार रूप से सूचना हेतु किसी आवेदन को प्राप्त करने में कोताही बरती; अथवा निर्धारित समय के भीतर सूचना नहीं दी; अथवा दुर्भावनापूर्वक सूचना हेतु अनुरोध को अस्वीकार किया; अथवा जानबूझकर गलत, अपूर्ण अथवा भ्रामक सूचना दी; अथवा अनुरोध के विषय की सूचना को नष्ट किया; अथवा सूचना देने में किसी प्रकार से बाधा उत्पन्न की तो वह केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनिक कार्रवाई की अनुशंसा कर सकता है।
नेकनीयती में किए गए कार्य की संरक्षा
- अधिनियम की धारा 21 में यह प्रावधान है कि अधिनियम अथवा उसके तहत् बनाए गए किसी नियम के अधीन नेकनीयती से किए गए कार्य अथवा ऐसा कार्य करने के इरादे की वजह से, किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई भी मुकदमा, अभियोजन अथवा अन्य विधिक कार्यवाही नहीं की जाएगी। तथापि, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को ध्यान रखना चाहिए कि यह साबित करना उसका उत्तरदायित्व होगा कि उसके द्वारा की गई अभिक्रिया नेकनीयती में की गई थी।
केन्द्रीय सूचना आयोग की वार्षिक रिपोर्ट
- केन्द्रीय सूचना आयोग प्रत्येक वर्ष सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के कार्यन्वयन की एक रिपोर्ट तैयार करता है, जिसे संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाता है। इस रिपोर्ट में, अन्य बातों के साथ-साथ, प्रत्येक लोक प्राधिकरण को प्राप्त अनुरोधों की संख्या, ऐसे निर्णयों की संख्या जिनमें आवेदनकर्ताओं को मांगे गए दस्तावेज प्राप्त करने का हक नहीं था, अधिनियम के वे प्रावधान जिनके अधीन ये निर्णय किए गए और ऐसे प्रावधानों के आह्वान के अवसरों की संख्या तथा अधिनियम के तहत प्रत्येक लोक प्राधिकरण द्वारा एकत्र किए गए प्रभार की राशि का विवरण देना होता है। प्रत्येक मंत्रालय/विभाग से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने अधिकार-क्षेत्र में आने वाले सभी लोक प्राधिकरणों से यह सूचना एकत्र करें और इसे आयोग को भेजें। केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी कोचाहिए कि वह सम्बन्धित सूचना तैयार रखे ताकि वर्ष के समाप्त होते ही वह इसे अपने प्रशासनिक मंत्रालय/ विभाग को भेज सके और मंत्रालय/ विभाग इसे आयोग को उपलब्ध करवा सके।