This official memorandum clarifies that the Central Government, as per the Administrative Tribunals Act, 1985, has the authority to authorize its officers to present cases before the Central Administrative Tribunal (CAT). This power has been exercised and brought to the attention of various ministries and departments previously. It has been observed that cases presented by departmental officers have a commendable success rate. Therefore, when a case is filed before a bench of the CAT and a Central Government ministry/department or its subordinate official is made a respondent, the concerned ministry/department can utilize its option to have the case presented by an authorized officer. Such an authorized officer should be a Group ‘A’ officer of the Central Government ministry/department or the controlling authority. For non-secretariat offices of the Central Government, the officer must be from Group ‘A’. It is reiterated that if a ministry/department decides to present a case directly through its officer, it must inform the Registrar of the bench accordingly. This directive is intended to empower relevant officers and streamline the representation of government cases before the CAT.
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संख्या ए-12015/2/92-ए0टी0
भारत सरकार
कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय
इंकार्मिक और प्रशिक्षण विभाग
नई दिल्ली, दिनांक १५ मई, 1996
कार्यालय ज्ञापन
विषय: – केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण के समक्ष, केन्द्रीय सरकार के काउंटेल/प्राधिकृत विभागीय प्रतिनिधियों के माध्यम से मामले प्रस्तुत करना।
मुझे यह कहने का निर्देश हुआ है कि समय-समय पर यथा संशोधित प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम, 1985, की धारा 23§2§ में अन्य बातों के साथ-साथ सरकार को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि वह अधिकरण के समक्ष दायर किसी भी आवेदन के संबंध में . . . इसके समक्ष अपना मामला प्रस्तुत करने के लिए अपने किसी भी अधिकारी को प्राधिकृत कर सकते है, इस अधिनियम के उक्त उपबन्धों को, इस विभाग के दिनांक 25.06.1986 तथा 25.08.1988 के काउप्टा 11019/58/85-ए0टी0 के अन्तर्गत विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के ध्यान में भी लाया गया था । यह देखा गया है कि विभागीय अधिकारीिंगों द्वारा प्रस्तुत किए गए मामलों की सफलता दर काफी उत्साहवर्धक है ।
- उपरोक्त के मददेनजर, यह बात पुन: दोहराई जाती है कि जब भी केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण की किसी खण्डपीठ में आवेदन दायर किया जाता है तथा केन्द्रीय सरकार का मंत्रालय/विभाग अथवा इसके निर्वाचलाधीन किसी अधिकारी को प्रतिवादी बनाया जाता है तो संबंधित मामले के महत्व को देखते हुये, संबंधित मंत्रालय/विभाग अधिकरण की खण्डपीठ के समक्ष, अपने किसी अधिकारी, जो इस संबंध में उनके द्वारा समुचित रूप से प्राधिकृत किया गया हो के माध्यम से मामला प्रस्तुत करने के अपने विकल्प का उपयोग कर सकता है । इस तरह से प्राधिकृत किया जाने वाला अधिकारी भारत सरकार के मंत्रालय/विभाग का समूह “क” अधिकारी अथवा डेस्क अधिकारी होना चाहिए । भारत सरकार के गैर-सचिवालयीय कार्यालय के संबंध में वह केवल समूह “क” अधिकारी होना चाहिए । यह भी पुन: दोहराया जाता है कि उन मामलों में जहां मंत्रालय/विभाग अधिकरण की खण्डपीठ में सीधे अपने किसी अधिकारी के माध्यम से मामले को प्रस्तुत करने का निर्णय लेता है तो वह खण्डपीठ के रजिस्ट्रार को, सरकार की ओर से मामला प्रस्तुत करने के लिए
किसी अधिकारी विशेष को प्राधिकृत करने के संबंध में लिख दें । इस प्रकार से प्राधिकृत किया गए अधिकारी को अधिकरण के समक्ष पेश होने तथा सरकार की ओर से पैरवी करने के हकदार नहीं है ।
सभी मंत्रालय/विभागों ने अनुरोध किया जाता है वे इस कार्यालय ज्ञापन की विषय वस्तु को अपने सम्बद्ध तथा अधीनस्थ कार्यालयों के ध्यान में ला दें ।

प्रति प्रेषित:-
भारत सरकार के सभी मंत्रालय/विभाग ।