Minutes of the Meeting of the State Advisory Committee for Cadre Allocation

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This document details the proceedings of the State Advisory Committee meeting held on March 11, 2010, focusing on cadre allocation and finalization of employee placements between Bihar and Jharkhand. Key discussions included the resolution of court cases like Vikram Kaluandia vs. State of Jharkhand, where employees sought allocation to their preferred states based on various personal and departmental circumstances. The committee reviewed cases involving claims for reallocation, issues with department functioning in certain states, and adherence to government guidelines regarding employee distribution. Several sections specifically addressed the allocation of personnel within the Mahadhivakta (Advocate General) office, the Home Department (clerical staff), and the Path Nirman Vibhag (Road Construction Department). The meeting also touched upon the case of a deceased police officer’s widow seeking allocation to Jharkhand, which was deemed outside the committee’s purview. Decisions were made to finalize allocations based on principles of equitable distribution, respecting employee preferences where possible, and considering the functional needs of departments in both states. The minutes also highlight the need to seek further clarification or decisions from the central government on complex cases and the importance of timely and accurate information from administrative departments for effective cadre management.

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दिनांक 24.08.2010 को कार्मिक लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली के 190 गौर्थ ब्लॉक, अवस्थित सभा-कक्ष में सम्पन्न राज्य परामर्शदात समिति की बैठक की कार्यवाही :-

उपस्थिति:-

  1. श्री राजीव कपूर, संयुक्त सचिव(ए.टी.एवं ए.), कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली
  2. श्री अकजल अमानुल्लाह, प्रधान सचिव, मंत्रिमंडल सचिवालय, बिहार, पटना।
  3. श्री दीपक कुमार, प्रधान सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग, बिहार, पटना ।
  4. श्री आलोक चतुर्वेदी, स्थानिक आयुक्त, बिहार भवन, नई दिल्ली ।
  5. श्री भी० पेटन्ना, उप सचिव, एस० आर० (एस०), कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली।
  6. श्री अंजनी कुमार, ओ० एस० डी०, झारखंड भवन, नई दिल्ली ।

कार्यवाही:-

दिनांक 11.03 .2010 को सम्पन्न समिति की बैठक की कार्यवाही को सर्वसम्मति से संपुष्ट किया गया ।
2. डब्ल्यू० पी० (एस०) संख्या-2496/2005, विक्रम कालूडिया बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य में माननीय झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के अनुपालन पर विचार
2.1 माननीय झारखंड उच्च न्यायालय, राँची द्वारा डब्लू.पी.(एस.) सं.-2496/2005 विक्रम कालूडिया बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य में दिनांक 14.08 .2005 को पारित न्यायादेश में वादी को बिहार अंतिम आवंटन के विरूद्ध सक्षम प्राधिकार को अभ्यावेदन देने एवं सक्षम प्राधिकार को नियमानुसार विचार करने का निदेश दिया गया है । उक्त न्यायादेश के आलोक में वादी का दिनांक 19.07.2008 का अभ्यावेदन डाक के माध्यम से समिति कार्यालय को 23.07 .2008 को प्राप्त हुआ है ।
2.2 उक्त वाद के याचिकाकर्ता के अंतिम आवंटन की स्थिति निम्नवत है-
(क) वादी उत्पाद एवं मध निषेध विभाग के नियंत्रणाधीन लिपिक संवर्ग के कर्मी है । उत्पाद एवं मध निषेध विभाग, बिहार, पटना द्वारा लिपिक संवर्ग के 183 कर्मियों की सूची अंतिम आवंटन हेतु भेजी गयी थी । उक्त सूची के क्रमांक 56 पर वादी का नाम अंकित था । सूची में इनका गम्य तिथि 20. 04.1954, गृह जिला-पूर्वी सिंहभूम, कोटि क्रमांक 56, आरक्षण कोटि-अनुसूचित जनजाति एवं विकल्प अप्राप्त अंकित था । सूची में इस संवर्ग में अनु. जनजाति के 14 कर्मि थे । इन आरक्षण कोटि के 14 कर्मियों में 10 कर्मियों का विकल्प झारखंड तथा वादी सहित 4 कर्मियों का वि ज्रप अप्राप्त अंकित था एवं गृह जिला झारखंड था । भारत सरकार के मार्गदर्शन एवं समिति के निर्णय के अनुसार अनु. जनजाति के कम से कम $1 \%$ कर्मियों को बिहार राज्य में आवंटन के प्रावधान के तहत 14 में से 2 कर्मियों का आवंटन बिहार राज्य में अनुमान्य हुआ । विकल्प के आधार पर 14 कर्मियों को झारखंड एवं 4 अप्राप्त विकल्पी जिनका गृह राज्य झारखंड था में से वादी सहित 2 कनीयतम अप्राप्त विकल्पी को बिहार राज्य में टेन्टेटिव अंतिम आवंटन करते हुए अभ्यावेदन आमंत्रित किया गया ।
(ख) टेन्टेटिव अंतिम आवंटन के विरूद्ध श्री कालूडिया का अभ्यावेदन प्रशासी विभाग के माध्यम से प्राप्त हुआ था । वादी ने अपने अभ्यावेदन में झारखंड का विकल्प देने का दावा किया एवं झारखंड का मूल निवासी, बच्चे पश्चिम सिंहभूम में शिक्षारत रहने तथा पत्नी के बीमार रहने के आधार पर झारखंड राज्य में आवंटन का अनुरोध किया । झारखंड का विकल्प दिये जाने के समर्थन में प्राप्ति रसीद की


छाया प्रति रु.लग्न की गयी थी । प्रशासी विभाग द्वारा प्रपत्र-9 के स्तम्भ 8 में अभ्यावेदन : आधार पर सही विकल्प झारखंड अंकित किया गया । समिति कार्यालय के पत्रांक 673 दिनांक -7.12.03 द्वारा विभाग से पृच्छा की गयी कि झारखंड के विकल्प का निष्कर्ष किनके जाँच 50 तथ्यों के आधार पर दिया गया है । यदि श्री कालुंडिया द्वारा झारखंड का विकल्प दिया गया है तो विकल्प प्रपत्र-3 भेजी जाय । समिति कार्यालय के उक्त पत्र के उत्तर में प्रशासी विभाग के पत्रांक 2288 दिनांक 01.07.2004 द्वारा यह कहा गया कि झारखंड का विकल्प उस राज्य के सुभ्रता पर आधारित है । पूर्व में इनका विकल्प उपलब्ध नहीं हो सका था इस लिए विकल्प अप्राप्त दिखाया गया था । उल्लेखनीय है कि सभी कर्मियों को अपना विकल्प बिहार राज्य के संबंधित विभाग में समर्पित करने का निदेश समिति के निर्णय अनुसार दिया गया था ।
(ग) वादी के अभ्यावेदन सहित इस संवर्ग के कर्मियों से प्राप्त अभ्यावेदनों को दिनांक 09.08.04 की बैठक में समिति के विचारार्थ उपस्थापित किया गया । समिति ने विचारोपरान्त अप्राप्त विकल्प के अनुसार कार्रवाई करते हुए इस आरक्षण कोटि में विपरित दिशा से एक के बदले एव उम्मीदवार उपलब्ध नहीं रहने के कारण टेन्टेटिव आवंटन के अनुरूप बिहार राज्य में आवंटन हेतु अनुशंसा की । तदोपरान्त समिति के निर्णयानुसार अनुशंसित अंतिम आवंटन सूची भारत सरकार को भेजी गयी । भारत सरकार द्वारा विचारोपरान्त आदेश सं-07(बि)/2005 पत्रांक 28/51/2004 5 ₹.आर.(एस.) दिनांक 28.02.2005 से इन्हें बिहार अंतिम आवंटन से संबंधित आदेश निर्गत किया गया ।
2.3 माननीय झारखंड उच्च न्यायालय, राँची द्वारा डब्लू.पी.(एस.) सं-2496/2005 में दिन क-14.06.05 को पारित आदेश के आलोक में वादी का दिनांक 19.07.2008 का अभ्यावेदन डाक से क्रमम से समिति कार्यालय को दिनांक 23.07.2008 को प्राप्त हुआ । इन्होंने अपने अभ्यावेदन में प.ि. रेक एवं व्यक्तिगत कठिनाईयों का उल्लेख करते हुए समिति द्वारा निर्धारित तिथि 20.02.2001 31 फारखंड का विकल्प देने का दावा किया एवं बिहार राज्य आवंटन को संशोधित कर झारखंड राज्य : आवंटन का अनुरोध किया है। विकल्प देने के समर्थन में वादी द्वारा विकल्प प्राप्ति रसीद की दाव प्रति भी संलग्न की गई है। इनके अभ्यावेदन में झारखंड राज्य का विकल्प दिये जाने के दावे पर स्पष्ट मंतव्य देने का अनुरोध समिति कार्यालय के पत्रांक 364 दिनांक 11.09.2009 द्वारा किया गया । प्रशासी विभाग ने अपने पत्रांक 5101 दिनांक 19.11.2008 द्वारा सूचित किया कि-“पूर्व में इनका विकल्प प्राप्त नहीं हुआ था । इसलिए विकल्प अप्राप्त दिखाया गया था । अंतः इनके आवेदन पर पुनः विचार करने का कोई औचित्य नहीं है ।”
2.4 वादी श्री कालुंडिया का अभ्यावेदन एवं उत्पादन एवं मद्य निषेध विभाग के पत्रांक 5101 दिनांक 19.11. 2008 मूल रूप में संलग्न करते हुए माननीय झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायादेश के आलोक में सक्षम प्राधिकार की हैसियत से आवश्यक निर्णय लेने हेतु समिति कार्यालय के पत्रांक-70 दिनांक-24.04.2009 द्वारा भारत सरकार से अनुरोध किया गया ।
2.5 भारत सरकार के पत्रांक-28 (आर.टी.आई.)/11/2008 एस0 आर0 (एस0) दिनांक -17.07.2009 समिति कार्यालय को प्राप्त हुआ, जिसमें कहा गया कि श्री कालुन्डिया द्वारा झारखंड का विकल्प दिये जाने के समर्थन में प्राप्ति रसीद की छाया प्रति संलग्न की गयी है । आवेदक की काई भल नहीं है और उंसके आवेदन पर उसके विकल्प के अनुसार विचार करना उचित होगा । प्रशासी विभाग से इस संबंध में सलाह लेकर दोबारा उनके आवेदन पर विचार करें तथा मंतव्य भारत 7.112 को भेजें ।
2.6 भारत सरकार के उक्त पत्र के आलोक में प्रशासी विभाग (उत्पाद एवं मद्य निषेध) ने समिति कार्यालय के पत्रांक-178 दिनांक-06.08.2009 द्वारा अभिलेख से जाँचोपरान्त श्री क.लुन्डिया के विकल्प दिये जाने के संबंध में स्पष्ट मंतव्य भेजने का अनुरोध किया गया ।
2.7 समिति कार्यालय के पत्रांक-178 दिनांक-06.08.2009 के उत्तर में उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग, बिहार के पत्रांक-378 दिनांक-09.10.2009 द्वारा समिति को संसूचित किया गया कि श्री कालुन्डिया द्वारा प्रस्तुत प्राप्ति रसीद एवं विभाग में उपलब्ध अन्य अभिलेखों का सम्यक जाँचोपरान्त यह निर्णय लिया गया है कि उनके द्वारा ससमय विकल्प दिय गया था । जिसपर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने एवं झारखंड आवंटन की अनुशंसा की गयी है ।
2.8 समिति कार्यालय के पत्रांक-268 दिनांक-20.10.2009 द्वारा प्रशासी विभाग की अनुशंसा को मूल रूप में भारत सरकार को भेजते हुए माननीय झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायादेश का अनुपालन सक्षम प्राधिकार की हैसीयत से आवश्यक कार्रवाई करने का अनुरोध किया गया ।
2.9 भारत सरकार के पत्रांक-28.11.2008 एस0 आर0 (एस0) दिनांक-28.04.2010 द्वारा इस मामले को समिति की बैठक में विचारार्थ रखने का निदेश दिया गया है । माननीय झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायादेश एवं भारत सरकार के निदेश के आलोक में समिति के विचारार्थ उपस्थापित किया गया ।
2.10 माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश तथा विभाग से प्राप्त प्रतिवेदन के आलोक में समिति द्वारा श्री विक्रम कालुंडिया को झारखंड राज्य आवंटन हेतु अनुशंसा करने का निर्णय किया गया । समिति से प्राप्त अनुशंसा के आलोक में भारत सरकार द्वारा अन्तिम आदेश पारित किया जायेगा ।


  1. सी0 डब्लू0 जे० सी० संख्या-11827/2009-प्रवीण कुमार बनाम बिहार राज्य एवं अन्य में माननीय उच्च न्यायालय, पटना द्वारा दिनांक 10.09 .2009 को पारित आदेश के अनुपालन पर विचार
    3.1 वादी प्रवीण कुमार, गन्ना विकास विभाग के दैनिक लिपिक संवर्ग के कर्मी हैं । सी.डब्लू.जे.सी. सं0-11827/2009 में दिनांक 10.09 .2009 को आदेश पारित किया गया है जिसकी कार्यकारी कडिका निम्नवत है “Let the petitioner represent through its department before the State Advisory Committee and the Committee should consider his request and submit appropriate recommendation to the Department of Personnel and Training of the Union to reconsider the order dated 10-07-2009, Annexure-1/A. In the representation petitioner is at liberty to request the Cane Development Department, the State Advisory Committee as also the department of Personnel and Training, Union of India to allow him payment of salary until the consideration of his representation is made. Necessary exercise in termr of this order be made so early as possible, in any case within two months from the date is receipt of the representation along with a copy of this order.”
    3.2 वादी का अभ्यावेदन प्रशासी विभाग (गन्ना उद्योग) के पत्र सं0-स्था0-01/2007-1660 दिनांक 19.10 .2009 के साथ प्राप्त हुआ, जिसे भारत सरकार को समिति पत्रांक 308 दिनांक 14.12 .2009 द्वारा पूर्व पत्रांक 267 दिनांक 23.10 .2009 के आलोक में समुचित निर्णय हेतु भेजा गया है । भारत सरकार द्वारा पत्रांक 28(सी०)/20/2009 एस0आर0(एस0) दिनांक 20.11 .2009 द्वारा वादी के अभ्यावेदन को समिति के समक्ष रखे जाने का निर्देश दिया गया है ।
    3.3 वादी ने अभ्यावेदन में मुख्य रूप से दो बिन्दुओं को उठाया है । पहला बिन्दु यह है कि श्री कृष्ण सिंह के सेवानिवृति की तिथि (28.02.2001) के बाद एकल कर्मी होने के कारण उनका राज्य विभाजन नही किया जा सकता है । दूसरा बिन्दु यह है कि झारखंड राज्य में गन्ना विकास विभाग नही है ।
    3.4 श्री प्रवीण कुमार, गन्ना एवं विकास विभाग में दैनिक लिपिक संवर्ग के कर्मी है । इस संवर्ग में कुल स्वीकृत/कार्यरत बल-2 विभाग द्वारा प्रतिवेदित किया गया था। एक कर्मी (श्री कृष्ण सिंह) की विशेष मामलान्तर्गत सेवानिवृति में विकल्प के आधार पर बिहार आवंटन किया गया तथा दूसरे कर्मी श्री प्रवीण कुमार को बायो-डाटा विभागीय सूची क्रमांक-10, जन्म तिथि-01.01.1977, गृह जिला भागलपुर, नि:वृहत/योगदान की तिथि 06.09.1996, कोटि क्रमांक -2, आख्तण कोटि-ः.न्य (अनारक्षित), पदनाम-दैनिक लिपिक, पदस्थापन स्थान-पटना, वेतनमान-4000-6000 एवं विकल्प बेहार प्रतिवेदित था, का टेन्टेटिव आवंटन झारखंड किया गया था ।
    3.5 इनके द्वारा टेन्टेटिव आवंटन के विरूद्ध अभ्यावेदन बिहार राज्य आवंटन हेतु दिया गया था । श्री कुमार सहित अन्य संवर्गो के ग्यारह कर्मियों का अभ्यावेदन विभागीय पत्र संख्या-799 दिनांक 26.05 .2003 के द्वारा समिति कार्यालय को उपलब्ध कराते हुए प्रतिवेदित किया गया कि झारखंड राज्य में गन्ना विकास विभाग नही रहने के काण विकल्प के आधार पर औपबंधिक रूप से आवंटित कर्मियों को कृषि विभाग एवं वन एवं पर्यावरण विभाग में रखा गया है । ऐसी स्थिति में कर्मियों का अंतिम आवंटन बिहार राज्य से ही करने का अनुरोध किया गया ।
    3.6 उक्त पत्र के आलोक में गन्ना विकास विभाग के कर्मियों का आवंटन बिहार राज्य में किये जाने के प्रस्ताव पर समिति की बैठक दिनांक 18.04 .2007 में इस मामले पर आगामी बैठक में विचार करने तथा झारखंड राज्य से मंतव्य प्राप्त करने का निर्णय लिया गया । पुनः दिनांक 13.08.2007, 07.122007 एवं 23.05.2008 की बैठक में इस पर विचार हेतु रखा गया, किन्तु झारखंड राज्य के प्रतिनिधि के अनुपस्थिति के कारण विचार नही हो सका । समिति की बैठक दिनांक 27.06 .2007 को गन्ना विकास विभाग के ग्यारह प्रकार के पद/कर्मियों के टेन्टेटिव आवंटन के विरूद्ध प्राप्त अभ्यावेदनों का निष्पादन करते हुए १) (बारह) बिहार तथा 3 (तीन) झारखंड आवंटन के लिए समिति द्वारा अनुशंसा की गई तथा भारत सरकार 3 आदेश दिनांक 10. 07.2009 के द्वारा अन्तिम आदेश निर्गत किया गया, जिसमें श्री कुमार का नाम झारखंड सूची में शामिल है । इससे स्पष्ट होता है कि समिति द्वारा यथोचित निर्णय के उपरांत ही श्री कुमार : 1 अंतिम आवंटन झारखंड राज्य में किया गया है ।
    3.7 वादी, प्रवीण कुमार का यह कथन कि गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा निर्गत पत्र, दिनांक-06.11.2000 जिसमें यह कहा गया है कि अविभाजित बिहार के 19 विभाग एवं 40 निदेशालय के ही कर्मियों का उत्तरवर्ती

राज्यों में आवंटन किया जाना है, जिसमें न तो गन्ना विकास विभाग एवं न ही गन्ना निदेशालय शामिल है । समिति द्वारा दिनांक-11.03.2010 की बैठक में निर्णय लिया गया कि माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष रखे गये वादी के उक्त कथन की सम्पुष्टि करने के पश्चात् इस मामले को समिति के समक्ष पुनः उपस्थापित किया जाय ।
3.8 वादी प्रटीण कुमार द्वारा सी0 डब्ल्यू0 जे० सी० संख्या-11827/2009 में एनेक्सर के 5 प में संलग्न भारत सरकार, गृह मंत्रालय के पत्र संख्या-12012/18/2000- एस० आर० दिनांक-06.11.20 0 की प्रति समिति के विचारार्थ रखा गया ।
3.9 झारखंड राज्य के प्रतिनिधि द्वारा बताया गया कि झारखंड में गन्ना विकास विभाग कार्यरत नहीं है । मामले पर विचारोपरान्त समिति ने इस आधार पर श्री प्रवीण कुमार को बिहार राज्य में आवंटन हेतु अनुशंसा करने का निर्णय लिया गया कि झारखंड राज्य में गन्ना विकास विभाग नहीं है । समिति से प्राप्त अनुशंसा के आलोक में भारत सरकार द्वारा अन्तिम आदेश पारित किया जायेगा ।
4. $\checkmark$ सी० डब्ल्यू० जे० सी० संख्या-14915/2006, धनंजय कुमार बनाम बिहार राज्य अन्य में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक-08.02.2010 को पारित न्यायादेश के अनुपालन पर विचार

विभागीय पत्रांक-5511 दिनांक-16.04.2010 द्वारा इस समादेश याचिका में पारित न्यायादेश की प्रति के साथ कुछ विभागीय कागजात समिति को दिनांक-20.04.2010 को उपलब्ध कराया गया । वादी पथ निर्माण विभाग के नियंत्रपीन दिनचर्या लिपिक संवर्ग के कर्मी हैं । संलग्न न्यायादेश के सुसंगत अंश इस प्रकार है “The issue of cadre allocation of petitioners 3 and 4 therefore necessarily has to be reconsidered. fresh by the State Advisory Committee based on their position in the gradation list as of 15.11.2000. The State of Bihar is directed to send all necessary information in this regard to the State Advisory Committee within a period of two months from the date of receipt and/or production of a copy of this order and the State Advisory Committee is directed to take fresh decision within a maximum period of two months from the date of receipt of such information from the State of Bihar.”

न्यायादेश के आलोक में वादी संख्या-3 एवं 4 कमशः विरेन्द्र कुमार जयसवाल एवं रविन्द्र कुमार के कँडर आवंटन के संबंध में प्रशासी विभाग से प्राप्त दिनांक-15.11.2000 की यथा स्थिति पर आधारित वरीयता सूची राज्य परामर्शदात् समिति को दो माह में नये सिरे से विचार कर निर्णय लेने का निदेश दिया गया है । विभाग द्वारा जो कागजात/बायो-डाटा प्राप्त हुआ है, विषय वस्तु स्पष्ट नहीं रहने के कारण समिति पत्रांक-67 दिनांक-29.04.2010 द्वारा कागजातों सहित विभागीय मंतव्य की मांग की गयी । इसके आलोक में विभागीय पत्रांक-8171 दिनांक-01.06. 2010 द्वारा दिनचर्या लिपिक संवर्ग का कार्यालय आदेश संख्या-44 दिनांक-06.02.1997 द्वारा प्रकाशित वरीयता सूची उपलब्ध कराते हुए कहा गया कि यही वरीयता सूची दिनांक-15.11.2000 को अस्तित्व में था । इस वरीयता सूची की समीक्षा पूर्व की वरीयता सूची (जिससे इस संवर्ग का अन्तिम आवंटन किया गया है) से किये जाने पर यह पाया गया कि दोनों सूची में काफी भिन्नता है, जिससे दोनों वादियों सहित अधिकतर कर्मियों का राज्य आवंटन प्रभावित हो सकता है । महत्वपूर्ण बात यह है कि 15.11 .2000 की यथा स्थिति के आधार पर जो वरीयता 7: भेजी गयी है, उसमें किसी भी कर्मी का कोटि कमांक अंकित नहीं है और न विभागीय पत्र में यह कहा गया है कि यह सूची त्रुटिपूर्ण है या त्रुटि रहित है । इस सूची से वादियों के बटवारा पर पुनर्विचार किये जाने पर रेगनांकित कठिनाईयों भविष्य में उत्पन्न हो सकती है, जो इस प्रकार है :-
4.1 इस याचिका के मुख्य वादी सहित एक अन्य वादी को नये सिरे से माननीय उच्च न्यायालय में जाने का निदेश दिये जाने पर दोनों वादियों द्वारा उच्च न्यायालय में सी० डब्ल्यू० जे० सी० संख्या-4500/2010 दायर की जा चुकी है जिसमें वरीयता सूची को ही मुख्य मुद्‌दा बनाया गया है, एवं 15.11 .2000 की सूची में इन दोनों वादियों सहित कुल चार कर्मियों यथा धनंजय कुमार, संजय कुमार सिंह, अनिल कुमार एवं धीरेन्द्र कुमार सिंह का नाम सूची में है ही नहीं । ऐसी स्थिति में विभागीय पत्रांक-8171 दिनांक-01.06.2010 द्वारा प्राप्त दिनांक-15.11. 2000 की यथा स्थिति पर आधारित सूची पर बटवारा किया जाना तब तक उचित प्रतीत नहीं होता है जबतक कि इस सूची को त्रुटि रहित रहने की सम्पुष्टि विभाग/उच्च न्यायालय द्वारा नहीं कर दी जाती है । इस याचिका में समिति को भी प्रतिवादी बनाया गया है तथा समिति द्वारा तथ्य कथन तैयार अध्यक्ष महोदय के अनुमोदन हेतु भेजा गया है, जो अभी अप्राप्त है ।
4.2 इस सूची में चार ऐसे नये कर्मियों 1). श्री अवध नारायण प्रसाद, 2). रामानन्द शर्मा, 3). मानवेन्द्र प्रसाद सिंह तथा 4). लल्लू सिंह का नाम सम्मिलित है, जो पूर्व की सूची में प्रतिवेदित नहीं थे एवं इ:ने से तीन कर्मी


(क्रमांक-3 से 4) का कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग के नियंत्रणाधीन सहायक संवर्ग में अन्तिम आवंटन हो चुका है एवं एक कर्मी (क्रमांक-1) वर्ष .में 1998 में ही सेवा निवृत हो चुके हैं ।
4.3 वर्तमान सूची के अनुसार चूँकि अधिकतर कर्मियों का राज्य आवंटन प्रभावित हो रहा है, इसलिये न्यायादेश के अनुसार सिर्फ दोनों वादी (क्रमांक-3 एवं 4) के आवंटन पर ही पुनर्विचार किये जाने की स्थिति में दोनों कर्मी का इच्छित राज्य (बिहार) आवंटन अनुमान्य तो हो सकता है किन्तु कार्यरत बल में घट बढ़ होने के फलस्वरूप स्वीकृत पद के अनुपात में किसी एक राज्य में स्वीकृत बल से अधिक कार्यरत बल हो जाने पर कर्मियों के वेतन आदि की भुगतान की भी समस्या उत्पन्न हो सकती है ।
4.4 न्यायादेश में कुछ निजी परिवादियों (Private Respondent) का जिक्र किया गया है, जिसकी जानकारी समिति कार्यालय को नहीं है ।
4.5 सम्पूर्ण मामले पर विचारोपरान्त समिति ने निर्णय लिया कि जब तक प्रशासी विभाग से उनके पत्रांक-8171 दिनांक-01.06.2010 द्वारा प्राप्त दिनांक-15.11.2000 की यथा स्थिति पर आधारित कर्मियों की सूची/वरीयता सूची के त्रुटि रहित होने की सम्पुष्टि प्राप्त नहीं हो जाती है, तब तथ्य इस मामले पर अग्रेतर कार्रवाई करना उचित नहीं है । समिति शीघ्र विभाग से सम्पुष्टि प्राप्त करने की कार्रवाई करे ।
5. विधि (न्याय) विभाग के नियंत्रणाधीन महाधिवक्ता कार्यालय के कर्मियों के अन्तिम आवंटन ५० विचार
5.1 विधि (न्याय) विभाग, बिहार के पत्रांक दिनांक 13.03 .2001 एवं पत्रांक 3560 दिनांक 13.10 .2001 द्वारा महाधिवक्ता कार्यालय के कर्मियों के लिए स्वीकृत पद एवं कर्मियों की सूची आवंटन हेतु समिति कार्यालय को भेजी गयी थी।
5.2 प्रशासी विभाग द्वारा उपलब्ध कराये गये पदों की विवरणी एवं कर्मियों की सूची के आधार पर पदों का विभाजन एवं कर्मियों का टेन्टेटिव अंतिम आवंटन 2:1 के अनुपात में समिति की बैठक में अनुमोदन के पश्चात् प्रचारित किया गया था।
5.3 कर्मियों के टेन्टेटिव आवंटन प्रचारित किये जाने के पश्चात विद्धान महाधिवक्ता, बिहार द्वारा अध्यक्ष, राज परमर्शदात् समिति को चार पृष्ठ का एक पत्र पत्रांक-1854 दिनांक 13.03 .2003 द्वारा भेजा गया। उक्त पत्र में समिति द्वारा महाधिवक्ता कार्यालय के कर्मियों के आवंटन पर कड़ी आपत्ति व्यक्त करते हुए कार्यरत बल को आवश्यकता से कम बताया गया एवं पुनर्विचार का अनुरोध किया गया।
5.4 महाधिवक्ता बिहार ने अपने पत्रांक 3609 दिनांक 24.06 .2008 द्वारा अपने सुझाव में क 1 है कि जो कर्मी महाधिवक्ता झारखंड के कार्यालय में कार्यरत है उन्हें पद सहित झारखंड में आघंटित कर दिया जाए और जो महाधिवक्ता बिहार के कार्यालय में कार्यरत है उन्हें बिहार राज्य में पद सहित आवंटित किया जाए। इस प्रकार यह विचारणीय है कि वर्तमान स्थापना में और पा रर्तन (touch) नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह न तो न्यायालय के कार्यहित में होगा और न राज्य के ही कार्यहित में होगा।
5.5 दिनांक 27.06 .2008 को समिति के बैठक में निर्णय लिया गया की महाधिवक्ता, बिहार के पत्र की प्रतिलिपि झारखंड सरकार को भेज कर महाधिवक्ता कार्यालय के कर्मियों के आवंटन के संबंध में उनका मंतव्य प्राप्त कर लिया जाय ।
5.6 दिनांक 27.06 .2008 को समिति के निर्णय के आलोक में महाधिवक्ता, बिहार के पत्रांक 3609 दिनांक 24.06.2008 की छायाप्रति तथा समिति के निर्णय से संबंधित अंश का उद्धरण संलग्न करते हुए मुख्य सचिव, झारखंड, रांची से पत्रांक 457 दिनांक 24.11 .2008 द्वारा मंतव्य की मांग की गई । पत्रांक 35 दिनांक 9.03 .2009 एवं पत्रांक 108 दिनांक 27.05 .2009 द्वारा स्मारित भी किया गया है । पंरतु झारखंड का मंतव्य अप्राप्त रहा ।
5.7 दिनांक 30.06 .2009 को समिति की बैठक में भारत सरकार के प्रतिनिधि ने बताया कि :ाहार पुनर्गठन अधिनियम 2000 के अन्तर्गत दिनांक 15.11 .2000 को कार्यरत सभी राज्य स्तरीर कर्मियों का संवर्ग विभाजन किया जाना है । अतः समिति ने विचारोपरांत निर्णय लिया कि महाधिवक्ता कार्यालय के


कर्मियों से उनके टेन्टेटिव आवंटन के विरुद्ध प्राप्त अभ्यावेदनों को शीघ्र समिति कार्यालय को उपलब्ध कराने हेतु प्रशासी विभाग से अनुरोध किया जाय तथा उन पर समिति द्वारा निर्धारित सिद्धांतो के अन्तर्गत कार्रवाई करते हुए भारत सरकार को अनुशंसा भेजी जाय, साथ ही महाधिवक्ता, बिहार के पत्र पर झारखंड सरकार का मंतव्य भी प्राप्त किया जाय । समिति के उपरोक्त निर्णय को समिति के पत्रांक 202 दिनांक 26.08 .2009 द्वारा झारखंड सरकार को एवं पत्रांक 201 दिनांक 26.08 . 2009 द्वारा बिहार सरकार को संसूचित करते हुए वांछित मंतव्य/प्रतिवेदन भेजने का अनुरोध किया गया ।
5.8 झारखंड सरकार का मंतब्य अप्राप्त रहा । पुनः समिति की बैठक दिनांक-11.03.2010 में विचारार्थ उपस्थापित किया गया । समिति द्वारा विचारोपरान्त निर्णय लिया कि विधि विभाग एवं … धिवक्ता कार्यालय के सभी कर्मियों का आवंटन निर्धारित सिद्धान्त एवं प्रक्रिया के अनुसार किगा जाय बशर्ते कि किसी विशेष मामले में माननीय न्यायालय का स्थगन आदेश नहीं हो ।
5.9 कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग, झारखंड के ज्ञापांक-3355 दिनांक-08.06.2010 जो भारत सरकार को सम्बोधित है, के साथ महाधिवक्ता, झारखंड का मंतब्य संलग्न है । महाधिवक्ता, झारखंड द्वारा अपने मंतब्य में कहा गया है कि महाधिवक्ता कार्यालय के पदों का आवंटन दोनों उत्तवर्ती राज्यों को निर्धारित अनुपात में किया जाना चाहिए एवं कर्मियों का आवंटन “जो जहाँ है” के आधार पर किया जा सकता है ।
5.10 उल्लेखनीय है कि समिति के निर्णयानुसार सभी 35 चतुर्थवर्गीय कर्मियों एवं प्रधान पुस्तकाध्यक्ष तथा चालक के एक-एक कर्मी कुल 37 कर्मियों को समिति की 27.06.2008 की बैठक में अनुमोदनोपरांत उनके विकल्प के राज्य में आवंटन किया जा चुका है ।

महाधिवक्ता कार्यालय के निम्नांकित संवर्ग के 16 तृतीय वर्ग के कर्मियों का आवंटन शेष है-

| क़ठ | संवर्ग/पदनाम | कुल
स्वीकृत
पद | बिहार
आवंटन | झारखंड
आवंटन | कुल
कर्मी | बिहार टेठ
आवंटित | झारखंड
टेठ
आवंटित | जो एहाँ है के
ल. पर पर
विचार करने की
स्थिति में | |
| :–: | :–: | :–: | :–: | :–: | :–: | :–: | :–: | :–: | :–: |
| | | | | | | | | बिहार | झारखंड |
| 1 | आशुलिपिक | 13 | 9 | 4 | 6 | 4 | 2 | 5 | 1 |
| 2 | टंकक | 7 | 5 | 2 | 6 | 4 | 2 | 6 | 0 |
| 3 | दिनचर्या लिपिक | 5 | 3 | 2 | 4 | 3 | 1 | 4 | 0 |

5.11 बिहार तथा झारखंड राज्य से प्राप्त प्रस्तावों पर विचारोपरान्त पाया गया कि प्राप्त प्रस्तावों के आलोक में कार्रवाई करने से दो मामलों में कार्यरत बल अनुमान्य स्वीकृत पद से ज्यादा हो जाता है । ऐसा करना एक नई परिपाटी होगी जो उचित नहीं है । अतः समिति ने निर्णय लिया कि इस मामले में निर्धारित प्रक्रिया के अन्तर्गत संवर्ग विभाजन की कार्रवाई की जाय ।
6. पथ निर्माण विभाग के अन्तर्गत तदर्थ सहायक अभियंता (असैनिक) के संवर्ग विभाजन के संबंध में विभाग से प्राप्त प्रतिवेदन पर विचार
6.1 पथ निर्माण विभाग ने विभागीय पत्रांक-3821(5)we दिनांक-07.04.2006 द्वारा तदर्थ सा “क अभियंता (असैनिक) सवर्ग के कुल 160 कर्मियों की सूची उनके योगदान की तिथि अनुसार वरैथता कम में संवर्ग विभाजन हेतु समिति कार्यालय को उपलब्ध करायी । निर्धारित सिद्धान्तों के अन्तर्गत इ। सवर्ग के कर्मियों का टेन्टेटिव अन्तिम आवंटन (टीठ एफठ एठ एलठ) दिनांक-23.12.2006 को समिति की बा. क में अनुमोदित हुआ । अनुमोदित टीठ एफठ एठ एलठ दोनों उत्तरवर्ती राज्य सरकारों को संबंधित कर्मियों के बीच प्रचारित करने तथा उनसे इसके विरुद्ध अभ्यावेदन प्राप्त करने हेतु जब भेजा गया तो कुछ कर्मियों ने टीठ एफठ एठ एलठ के विरुद्ध समर्पित अभ्यावेदनों में अपने वरीयता कम में त्रुटि बताते हुए आपत्ति जतायी । ऐसे मामलों को विभागीय मंतब्य हेतु प्रशासी विभाग को भेजा गया ।


6.2 अनेकों पत्राचार के पश्चात् प्रशासी विभाग ने अन्ततः अपने पत्रांक-13751(5) दिनांक-27.11.09 द्वारा सूचित किया कि तदर्थ रूप से नियुक्त सहायक अभियंता की नियमित रूप से नियुक्ति नहीं हुई है । अतः इनके संवर्ग विभाजन का प्रश्न नहीं उठता है, क्योंकि ये नियमित राज्य कर्मी नहीं है ।
6.3 मामले को समिति की दिनांक-11.03.2010 की बैठक में रखा गया । समिति ने निर्णय लिया विभागीय पत्रांक-13751(5) दिनांक-27.11.09 जिसके द्वारा यह बताया गया है कि तदर्थ रूप से नियुक्त सहायक अभियंता नियमित रूप नियुक्त नहीं है, की सम्पुष्टि प्रशासी विभाग से प्राप्त कर पुनः संवेति के समक्ष उपस्थितित किया जाय ।
6.4 समिति द्वारा लिये गये निर्णय के आलोक में समिति कार्यालय के पत्रांक-82 दिनांक-13.05.2010 द्वारा पथ निर्माण विभाग से उनके पत्रांक-13751(5) दिनांक-27.11.09 की सम्पुष्टि की मांग की गयी जिसके संदर्भ में विभागीय पत्रांक-8933(5) दिनांक-18.08.2010 द्वारा उक्त पत्र को सम्पुष्ट किया गया ।
6.5 विभाग से प्राप्त प्रतिवेदन के पश्चात् तदर्थ सहायक अभियंताओं की टेन्टेटिव अंतिम आवंटन सूची जो दिनांक-23.12.2006 की समिति की बैठक में अनुमोदित की गयी थी उसे बनाये रखने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है । समिति इस सूची को निरस्त करने पर निर्णय लेना चाहेगी । समिति के निर्णय के पश्चात् समिति कार्यालय द्वारा प्रशासी विभाग से प्राप्त तदर्थ अभियंताओं की सूची उन्हें वापस की जा सकेंगी ।
6.6 प्राप्त विभागीय प्रतिवेदनों पर विचारापरान्त समिति ने तदर्थ सहायक अभियंता (असैनिक), पथ निर्माण विभाग के टेन्टेटिव अन्तिम आवंटन सूची को निरस्त करने तथा प्रशासी विभाग से प्राप्त सूची को उन्हें वापस करने का निर्णय लिया।

7 गृह विभाग के अन्तर्गत टंकक संवर्ग के संशोधित पद विभाजन प्रारूप पर विचार

7.1 राज्य परामर्शदात् समिति की बैठक दिनांक-29.06.2002 में गृह विभाग के कुल 18 संवर्ग के पदों का विभाजन करते हुए समिति ज्ञापांक-177 दिनांक-01.07.2002 द्वारा प्रशासी विभाग सहित अन्य सम्बन्धितों को संसूचित किया गया था । उक्त 18 संवर्गों की सूची के क्रमांक-13 पर टंकक संवर्ग के 66 पदों का विभाजन 38 पद बिहार एवं 28 पद झारखंड हेतु विभागीय प्रस्ताव के आलोक में किया गया था ।
7.2 इस संवर्ग के कर्मियों के विभाजन के क्रम में टेन्टेटिव आवंटन के विरूद्ध प्राप्त आपत्ति अध्यावेदनों में कुल कर्मियों की आपत्ति पर विभागीय मंतब्य मांगे जाने पर स्मारो एवं विभागीय बैठकों के पश्चात् विभागीय पत्रांक-7975 दिनांक-19.11.2009 द्वारा इस संवर्ग के पदों की कुल संख्या 66 में से बिहार हेतु अनुमान्य 44 पद तथा झारखंड हेतु अनुमान्य 22 पद बताते हुए इसी अनुपात में कार्यरत 41 कर्मियों के विभाजन का अनुरोध् किया गया ।
7.3 पदों के संशोधन संबंधी प्राप्त विभागीय प्रस्ताव के आलोक में प्रपत्र-7 में तैयार किये गये प्रारूप को अनुमोदन हेतु दिनांक-11.03.2010 की बैठक में उपस्थापित किया गया । समिति द्वारा निर्देश दिया गया कि इसे आगामी बैठक में उपस्थापित किया जाय । तदनुसार टंकक संवर्ग के संशोधित पद विभाजन प्रस्ताव को उसी रूप में समिति के विचारार्थ/अनुमोदनार्थ उपस्थापित किया गया। संशोधित पद विभाजन के अनुरूप ही इस संवर्ग के कर्मियों के अन्तिम आवंटन का प्रस्ताव तैयार किया गया ।
7.4 समिति ने संशोधित पद विभाजन प्रारूप तथा संशोधित पद विभाजन प्रारूप के अनुरूप इस संवर्ग के कर्मियों के संवर्ग विभाजन हेतु उपस्थापित प्रस्ताव को अनुमोदित किया ।
8. गृह विभाग के अन्तर्गत वितन्तु संगठन के साक्षर आखी (ऑद) संवर्ग के पद वितजन प्रारूप पर विचार
8.1 सी0 डब्ल्यू0 जे0 सी0 संख्या-175/2008, अरबिन्द कुमार पाण्डेय बनाम बिहार राज्य तथा अन्य समरूप याचिकाओं में पटना उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक-18.08.2008 को पारित न्यायादेश के अनुपालन हेतु गृह विभाग के वितन्तु संगठन के साक्षर आखी संवर्ग के तीन कोटि के कर्मियों के दिनांक-15.11.2000 की स्थिति के आधार पर स्वीकृत पदों/कार्यरत बलों के बिहार एवं झारखंड राज्यों के बीच विभाजन हेतु प्राप्त विभागीय प्रस्ताव पर दिनांक-11.03.2010 को आहूत राज्य परामर्शदात् समिति की बैठक में समुचित विचारोपरान्त यह निर्णय लिया गया था कि चूँकि यह मामला अवमाननावाद से अच्छादित है । अतः इस विभाग के तीनों कोटि के कर्मियों के संबंध में सभी जानकारी/दस्तावेज वितन्तु संगठन से 15 दिनों के अन्दर प्राप्त करने के उपरान्त औपबंधिक/अन्तिम आवंटन आवंटन का प्रस्ताव अध्यक्ष के अनुमोदन हेतु जल्द से जल्द उपस्थापित किया जाय ।


8.2 तदनुसार विभागीय प्रस्ताव के आलोक में साक्षर आखी (तक0) संवर्ग के कर्मियों क. संख्या शून्य रहने तथा आखी संवर्ग के बारे में जिला स्तरीय/राज्य स्तरीय संवर्ग संबंधी अस्पष्ट र्ताना रहने के कारण इन दोनों संवर्गों को छोड़ कर साक्षर आखी (ऑफ) संवर्ग का पद विभाजन द् प्रपत्र-7 में तैयार किये गये प्रारूप तथा इसकें अनुरूप ही इस संवर्ग के कर्मियों के टेन्टेटिव आवंटन प्रस्ताव समिति के विचारार्थ/अनुमोदनार्थ रखा गया ।
8.3 समिति ने वितन्तु संगठन के साक्षर आखी (ऑप) संवर्ग के पद विभाजन प्रारूप तथा पद विभाजन प्रारूप के अनुरूप इस संवर्ग के कर्मियों के संवर्ग विभाजन हेतु टी० एफ० ए० एल० प्रारूप को अनुमोदित किया ।
9. गृह विभाग के अन्तर्गत आखी निरीक्षक (एम0) सवर्ग के एक मात्र अनिर्णीत कर्मी के अन्तिम आवंटन पर विचार
9.1 गृह विभाग के अन्तर्गत आखी निरीक्षक (एम0) संवर्ग का कुल स्वीकृत तथा कार्यरत बल 15 प्रतिवेदित है, जिसमें बिहार तथा झारखंड अनुमान्य/स्वीकृत क्रमशः 10 तथा 05 होता है । तदनुसार इस संवर्ग का टेन्टेटिव आवंटन सूची प्रकाशित किया गया है । बिहार में अनुसूचित जनजाति का न्यूनतम एक प्रतिशत तथा पति-पत्नी को एक राज्य में रखने के सिद्धान्त के अन्तर्गत इस आख्शण कोटि में दम्पति युगल को टेन्टेटिव रूप से बिहार आवंटन किया गया । भारत सरक के नये मार्ग-दर्शन के आलोक में इन्हें अन्तिम रूप से दिनांक-04.05.2006 की समिति की बैठक द्वारा झारखंड हेतु आवंटित किया गया । झारखंड हेतु टेन्टेटिव आवंटित सामान्य कोटि के दो कर्मियों में से एक का बिहार हेतु अभ्यावेदन रहने पर इन्हें अन्तिम रूप से बिहार आवंटित किया गया एवं एक कर्मी का कोई अभ्यावेदन नहीं रहने से दिनांक 10.05 .2006 के भारत सरकार के अनुसूचित जनजाति से संबंधित मार्ग-दर्शन के आलोक में उन्हें यथावत् अर्थात झारखंड में रहने देना है, किन्तु ऐसा करने पर झारखंड में कार्यरत बल-06 हो जायेगा/जाता है जो स्वीकृत तथा अनुमान्य कार्यरत से एक अधिक हो जायेगा । अतः इन्हें अनिर्णीत रखने की अनुशंसा करते हुए समिति पत्रांक-513 दिनांक-25.08.2006 द्वारा भारत सरकार से मार्ग-दर्शन की मांग की गयी, जो सम्प्रति अप्राप्त है । इस हेतु दो स्मार भी निर्गत किये गये हैं । स्वीकृत बल से अधिक आवंटन हो जाने की स्थिति में कर्मियों को वेतन भुगतान की समस्या उत्पन्न हो सकती है । भारत सरकार से मार्ग-दर्शन अप्राप्त रहने की स्थिति में कार्यरत बल का स्वीकृत पद के अनुपात में संतुलन बनाय रखने के लिये सामान्य कोटि के बिना अभ्यावेदन वाले टेन्टेटिव रूप से झारखंड आवंटित कर्मी, जिनका विकल्प बिहार है, को बिहार हेतु नया टी० एफ० ए० एल० किया जाना उचित प्रतीत होता है ।
9.2 समिति ने विचारोपरान्त आखी निरीक्षक (एम0) संवर्ग के एक मात्र अनिर्णीत कर्मी का बिहार हेतु नया टेन्टेटिव अन्तिम आवंटन के प्रस्ताव को अनुमोदित किया ।
10. स्वर्गीय (श्री) सुखदेव मेहरा, पुलिस उपाधीक्षक की पत्नी से उनके स्वर्गवासी पति को झा खंड राज्य आवंटित किये जाने के संबंध में प्राप्त अभ्यावेदन पर विचार
10.1 भारत सरकार के प्रतिनिधि द्वारा अतिरिक्त कार्यावली के रूप में इस मामले को समिति के समक्ष उपस्थापित किया गया । भारत सरकार द्वारा उपस्थापित प्रस्ताव निम्नवत् है :-
Government of Bihar has forwarded a request for final allocation of Shri Sukhdev Mehra, D.S.P. who was killed by a violent mob on 19.01.1987, while on duty at Nath Nagar, Bhagalpur, Bihar. Bihar State Re-organisation Act came into force on 15.11.2000. However the Government of Bihar took a decision to treat late Shri Mehra as if alive and gave all service benefits availed by a living official till the date he would have retired on superannuation. Consequently, payments were being made to the widowed wife of late Shri Mehra from Deoghar, Jharkhand. However, under its letter dated 06.04.2009, Accountant General, Ranchi has objected to further payments raising certain queries prominent of which are (i) whether Shri Mehra was finally allocated to any State; (ii) whether a post was created to make payments against it, to the wife of Shri Mehra. The Government of Bihar has sought option for allocation of State from the wife of Shri Mehra as per guidelines under State Reorganisation, before his final allocation is made. For all practical purposes Shri Mehra is on roll as on the appointed day and has to be allocated in connection with this reorganisation.
10.2 This is a case, in which the State Government has taken the step of treating a martyred police officer as alive and allowed his wife all service benefits payable to a living and working Government official. However, as per guidelines on State Reorganistion, irres, -tive of final


allocation, a person dying from an area is to be paid the retirement benefits by the State, in which the area falls. However, Mrs. Mehra in her representation requested for allocation to Jharkhand whereas Shri Mehra died in Bihar. Representation of Mrs. Mehra is enclosed at Annexure-1.

मामले पर विचारोपरान्त समिति द्वारा निर्णय लिया गया कि यह मामला समिति के कार्य क्षेत्र में नहीं आता है । निर्णय हुआ कि स्वर्गवासी मेहरा की पत्नी को भुगतान के संबंध में कार्रवाई करने हेतु उत्तरवर्ती बिहार सरकार सक्षम प्राधिकार है जो अपने स्तर से समूचित कार्रवाई कर सकती है ।

विभिन्न विभागों के 41 चतुर्थ वर्गीय कर्मियों से पुनर्राज्य आवंटन हेतु भारत सरकार द्वारा उपस्थापित प्रस्ताव पर विचार

भारत सरकार के प्रतिनिधि द्वारा अतिरिक्त कार्यावली के रूप में इस मामले को समिति के 7 न विचारार्थ रखा गया । भारत सरकार द्वारा दिया गया प्रस्ताव परिशिष्ट-2 पर संलग्न है ।
11.2 चतुर्थ वर्गीय कर्मियों के संबंध में भारत सरकार द्वारा दिनांक-02.11.2007 को जारी दिशा- नेदेश के आलोक में विभिन्न विभागों के 41 कर्मियों को उनके अभ्यावेदनों में इच्छित राज्य आवंटन हेतु प्रस्ताव २. मति के समक्ष विचारार्थ रखा गया ।

11.3 प्रस्ताव के अध्ययन के उपरान्त पाया गया कि कई मामले ऐसे थे, जिनमें संबंधित कर्मी का उनके विकल्प के अनुरूप राज्य आवंटन हुआ है । अब वे अपने आवंटित राज्य में बदलाव चाहते हैं । समिति द्वारा ऐसे मामलों में राज्य आवंटन में बदलाव की अनुमति नहीं प्रदान करने का निर्णय लिया गया ।

11.4 वैसे मामले जहाँ चतुर्थ वर्गीय कर्मी का आवंटन अप्राप्त विकल्प के फलस्वरूप किसी एक राज्य में हुआ हो तथा जहाँ संबंधित कर्मी का राज्य आवंटन उसके विकल्प के विरूद्ध हुआ है, वैसे कर्मी को उनके अभ्यावेदन में इच्छित राज्य आवंटित किये जाने पर समिति द्वारा सहमति प्रदान की गयी । ऐसे मामलों पर भारत सरकार के स्तर से कार्रवाई किये जाने का निर्णय लिया गया ।

11.5 कम संख्या-2, 7, 12, 22, 33, 34 तथा 37 तालिका पर दर्शाये गये कर्मियों को छोड़कर सारे कर्मियों का पुर्नराज्य आवंटन अनुमोदित किया गया है ।
12. अवशेष कर्मियों के टेन्टेटिव अन्तिम आवंटन पर विचार

12.1 गृह विभाग (वितन्तु संगठन) के साक्षर आखी (ऑप.) संवर्ग के कुल 436 कर्मियों के टेन्टेटिव अन्तिम आवंटन प्रस्ताव को समिति के समक्ष उपस्थापित किया गया । कुल 436 कर्मियों में से 283 कर्मी बिहार एवम् 139 कर्मी झारखंड आवंटित किये जाने तथा वांछित सूचना के अभाव में 14 कर्मियों को लम्बित रखे जाने का प्रस्ताव था । समिति ने उपस्थापित प्रस्ताव को स्वीकृत करने पर सहमति प्रदान की ।
12.2 स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा एवम् परिवार कल्याण विभाग के सहायक प्राध्यापक (रेडियोथेरापी) संवर्ग के एक अवशेष कर्मी डॉ0 सुधाकर सिंह के बिहार राज्य आवंटन हेतु दिनांक-11.03.2010 की बैठक में लिये गये निर्णय के आलोक में टीएएफएएएएल0 की सूची अनुमोदित की गई ।
13. टेन्टेटिव आवंटन के विरूद्ध प्राप्त अभ्यावेदनों /शून्य अभ्यावेदनों के निष्पादन पर विचार

13.1 गृह विभाग के अन्तर्गत प्रधान टंकक संवर्ग के कर्मियों से उनके टेन्टेटिव अन्तिम आवंटन के विरूद्ध प्राप्त अभ्यावेदनों का निष्पादन करते हुए इस संवर्ग के कुल 10 कर्मियों में से 07 कों . को बिहार तथा 03 कर्मियों को झारखंड आवंटन करने का प्रस्ताव समिति के समक्ष विचारार्थ रखा गया जिसे समिति ने अनुमोदित किया ।
13.2 गृह विभाग के ही अन्तर्गत टंकक संवर्ग के कर्मियों से उनके टी0 एफ0 ए0 एल0 के विरूद्ध प्राप्त अभ्यावेदनों का निष्पादन करते हुए इस संवर्ग के कुल 29 कर्मियों में से 19 कर्मियों को बिहार तथा 09 कर्मियों को झारखंड एवं 01 कर्मी का नया टी0 एफ0 ए0 एल0 करने का प्रस्ताव समिति के समक्ष विचारार्थ रखा गया जिसे समिति ने अनुमोदित किया ।
13.3 अन्तिम आवंटन हेतु अनुशंसित किये गये मामलों की विवरणी परिशिष्ट-3 के रूप में संलग्न है ।


  1. आज की जेठक में जिन सवर्ग के कर्मियों का टेन्टेटिव आवंटन/नया टेन्टेटिव आवंटन अनुमोदित किया गया उनके मामलों में सम्बन्धित कर्मियों से अभ्यावेदन प्राप्त करने हेतु टेन्टेटिव/नया टेन्टेटिव आवंटन होने की तिथि के 45 दिन बाद तक की तिथि निर्धारित की गई ।

बैठक सघन्यवाद समाप्त हुई।

ह0/-
अध्यक्ष
राज्य परामर्शदातृ समिति, बेली रोड, पटना-23

राज्य परामर्शदातृ समिति का कार्यालय सिंचाई आवास, बेली रोड, पटना-23

ज्ञापांक- काठकोठ-36/2001 – 153 पटना, दिनांक- 0910812010 प्रतिलिपि, श्री. सुद्धीव कपूर, संयुक्त संचिव (ए. एटी. एवं एस.आर.), कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, कार्मिक लोकशिकायत एवं पेंशन मंत्रालय, नार्थ ब्लॉक, नई दिल्ली -सह- अध्यक्ष, राज्य परामर्शदातृ समिति, पटना/ मुख्य सचिव, बिहार, पटना / मुख्य सचिव, ज्ञारखंड, रांची / प्रधान सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग, बिहार, पटना / प्रधान सचिव, कार्मिक प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग, ज्ञारखंड, रांची / गृह सचिव, बिहार, पटना एवं श्री भीठ पेद्दनना, उप सचिव एस0आर0(एस0), कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय, लोकनायक भवन, खान मार्केट, नई दिल्ली को सूत्रम ${ }^{1}$ प्रेषित ।
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