सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत रिकॉर्ड का रख-रखाव और सूचना का प्रकाशन

यह पत्र सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत लोक प्राधिकारियों द्वारा रिकॉर्ड के रख-रखाव और सूचना के प्रकाशन के संबंध में महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी करता है। अधिनियम की धारा 4 के अनुसार, लोक प्राधिकारियों को अपने सभी रिकॉर्डों को सूचीबद्ध और अनुक्रमित करना अनिवार्य है, साथ ही उन्हें कम्प्यूटरीकृत करके नेटवर्क से जोड़ना भी आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, अधिनियम के लागू होने के 120 दिनों के भीतर प्रासंगिक सूचनाओं का प्रकाशन सुनिश्चित करना होगा। महत्वपूर्ण नीतियों और निर्णयों की घोषणा करते समय संबंधित तथ्यों को प्रकाशित करना तथा प्रभावित पक्षों को अपने निर्णयों के कारण बताना भी आवश्यक है। सूचना का प्रसार नोटिस बोर्ड, समाचार पत्रों, मीडिया और इंटरनेट जैसे विभिन्न माध्यमों से इस प्रकार किया जाना चाहिए कि यह जनता तक आसानी से पहुंच सके, जिसमें स्थानीय लागत, भाषा और संचार की प्रभावी पद्धति को ध्यान में रखा जाए। पत्र में राज्य सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे अपने अधीनस्थ सभी लोक प्राधिकारियों को इन अपेक्षाओं का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक निर्देश जारी करें।

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संख्या- 1/18/2007-आई.आर.
भारत सरकार
कार्मिक, लोक शिकायत तथा पैशन मंत्रालय
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग

नई दिल्ली, दिनांक 27 मार्च, 2008
सेवा में,
सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के मुख्य सचिव
विषय :- सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत रिकॉर्ड का रख-रखाव और सूचना का प्रकाशन । महोदय,

मुझे यह कहने का निदेश हुआ है कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 4 में अधिकाधिक सूचना के स्वयं प्रकटीकरण के प्रावधान के माप्यम से लोक प्राधिकारियों के काम-काज में पारदर्शिता की एक व्यावहारिक व्यवस्था निर्धारित की गई है ताकि जनता को सूचना प्राप्त करने के लिए अधिनियम की धारा 6 का सहारा न लेना पड़े । अधिनियम का यह एक ऐसा महत्वपूर्ण भाग है जिसका अनुपालन, इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अनिवार्य है ।
2. अधिनियम की धारा 4 की उपधारा (1) के खंड (क) के अनुसार प्रत्येक लोक प्राधिकारी को अपने सभी रिकॉर्डों को सूचीकृत और अनुक्रमणिका (इन्डेक्स) बना कर रखना बाध्यकर है । इस प्रावधान के अनुसार रिकॉर्ड प्रबंधन, लोक सूचना अधिकारी को अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना मुहैया करवाने में सक्षम बनाने हेतु एक महत्वपूर्ण कदम है । इस खंड में लोक प्राधिकारी से यह अपेक्षित है कि वह अपने रिकॉर्डों को कम्प्यूटरीकृत करे और उन्हें देश भर में नेटवर्क के माध्यम से जोड़ दे । लोक प्राधिकारियों से, इस खंड की अपेक्षाओं को उच्चतम वरियता के आधार पर पूरा करने की प्रत्याशा की जाती है ।
3. उपर्युक्त उप धारा के खंड (ख) के अनुसार लोक प्राधिकारियों के लिए यह अधिदेशात्मक है कि वे उसमें उल्लिखित सूचनाओं का प्रकाशन, अधिनियम के लागू होने की तारीख से 120 दिनों के भीतर करवाएं । आशा की जाती है कि सभी लोक प्राधिकारियों द्वारा इस अपेक्षा का अनुपालन पहले ही किया जा चुका होगा । यदि ऐसा नहीं किया गया है तो इसका अनुपालन बिना कोई और विलंब किए सुनिश्चित कर लिया जाए ।
4. अधिनियम की धारा 4 की उप धारा (1) के खंड (ग) के अंतर्गत सभी लोक प्राधिकारियों के लिए यह बाध्यकर है कि वे जनता को प्रभावित करने वाली महत्वपूर्ण नीतियां तैयार करते समय और निर्णय घोषित करते समय सभी संगत तथ्यों को प्रकाशित करें । वे खंड (घ) के अनुसार प्रभावित पक्षों को अपने प्रशासनिक अथवा अर्द्ध-न्यायिक निर्णयों के संबंध में कारण बताने के लिए भी बाध्य हैं ।5. अधिनियम की धारा 4 में यह अपेक्षित है कि स्वतः प्रकाशनीय सूचनाओं का व्यापक प्रसार, इस रूप और इस ढंग से किया जाए कि वह जनता तक पहुंच सके । सूचना का प्रसार नोटिस बोर्डों, समाचार पत्रों, सार्वजनिक उद्घोषणा, मीडिया प्रसारणों, इंटरनेट अथवा किन्हीं अन्य साधनों/माध्यमों द्वारा किया जा सकता है। सूचना का प्रसार करते समय प्रत्येक लोक प्राधिकारी को संबंधित स्थानीय क्षेत्र में लागत प्रभाव, स्थानीय भाषा और संचार की सर्वाधिक प्रभावी पद्धति को ध्यान में रखना चाहिए । लोक सूचना अधिकारी के पास सूचना, जहां तक संभव हो, इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में उपलब्ध होनी चाहिए जो जनता को निःशुल्क अथवा यथा निर्धारित शुल्क पर मुहैया करवाई जा सके । पैरा 3 में उल्लिखित प्रकाशित दस्तावेज़ की एक प्रति और उपर्युक्त पैरा 4 में उल्लिखित प्रकाशनों की प्रतियां लोक प्राधिकारी के एक अधिकारी के पास रखी जाती चाहिए और इन दस्तावेजों का निरीक्षण करने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति द्वारा निरीक्षण के लिए उपलब्ध होनी चाहिए ।

  1. अनुरोध है कि आप राज्य सरकार के अधीनस्थ सभी लोक प्राधिकारियों को उपर्युक्त अपेक्षाओं के अनुपालन करने के संबंध में आवश्यक अनुदेश जारी करें । आपसे यह भी प्रार्थना है कि उक्त कानूनी अपेक्षाओं की पूर्ति सुनिश्चित करने के लिए राज्य में समुचित व्यवस्था का निर्माण किया जाए ।

भवदीय,

(कृष्ण गोपाल यज्ञ)

निदेशक