Guidelines for First Appellate Authorities under the Right to Information Act, 2005

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This document provides a comprehensive guide for First Appellate Authorities established under the Right to Information (RTI) Act, 2005. It clarifies the process of information requests, appeals, and the responsibilities of Public Information Officers (PIOs) and Appellate Authorities. Key takeaways include understanding the definition of ‘information,’ the rights of citizens to seek information in various formats, and the exemptions from disclosure. The document also details the procedures for handling appeals, including timelines for decisions and the concept of ‘speaking orders.’ It emphasizes the supremacy of the RTI Act over other laws and outlines the fee structure for information requests. Furthermore, it addresses the transfer of appeals, the importance of timely disposal, and the recourse available if orders are not implemented.

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सेवा में,

  1. भारत सरकार के सभी मंत्रालय/विभाग ।
  2. संघ लोक सेवा आयोग/लोक सभा सचिवालय/राज्य सभा सचिवालय/मंत्रिमण्डल सचिवालय/केन्द्रीय सूचना आयोग/राष्ट्रपति सचिवालय/उप राष्ट्रपति सचिवालय/प्रधान मंत्री कार्यालय/योजना आयोग ।
  3. कर्मचारी चयन आयोग, सीजीओ कॉम्पलेक्स, लोदी रोड, नई दिल्ली ।
  4. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का कार्यालय, 10, बहादुर शाह जफर मार्ग, नई दिल्ली ।
  5. केन्द्रीय सूचना आयोग/राज्य सूचना आयोग ।

प्रति प्रेषित:- सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के मुख्य सचिव । अनुबंध में समाहित दिशानिर्देश यथा आवश्यक परिवर्तनों के बाद राज्यों के प्रथम अपीलीय अधिकारियों पर भी लागू होते हैं । राज्य सरकारें अपने प्रथम अपीलीय अधिकारियों के लिए भी ऐसे ही दिशानिर्देश जारी करने पर विचार कर सकती हैं ।# प्रथम अपीलीय प्राधिकारियों के लिए मार्गदर्शिका

  1. सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत सूचना मांगने वाले किसी भी व्यक्ति को वित्तिर्दिष्ट समय के भीतर सही और पूर्ण जानकारी भेजना लोक प्राधिकरण के केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी का दायित्व है । यह संभव है कि केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार काम न करे अथवा आवेदक उसके निर्णय से संतुष्ट न हो । ऐसी स्थिति से निपटने के लिए अधिनियम में दो अपीलों का प्रावधान है । पहली अपील लोक प्राधिकरण के भीतर ही होती है, जो संबंधित लोक प्राधिकरण द्वारा प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के रूप में नामोद्दिष्ट अधिकारी को की जाती है । प्रथम अपीलीय प्राधिकारी रैंक में केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ अधिकारी होता है । दूसरी अपील केन्द्रीय सूचना आयोग में की जाती है । केन्द्रीय सूचना आयोग (अपील प्रक्रिया) नियमावली, 2005 अपील पर आयोग द्वारा निर्णय की प्रक्रिया को नियंत्रित करती है । इस दस्तावेज में निहित मार्गदर्शी सिद्धांत प्रथम अपीलीय अधिकारियों के लिए है ।
  2. अपने कर्तव्य का प्रभावी रूप से निष्पादन करने के लिए अपीलीय प्राधिकारी को चाहिए कि वह अधिनियम का ध्यानपूर्वक अध्ययन करे और इसके प्रावधानों को भली-भांति समझो । इस दस्तावेज में अधिनियम के कुछ ऐसे महत्वपूर्ण पहलुओं की व्याख्या की गई है, जो प्रथम अपीलीय प्राधिकारी को विशेष रूप से मालूम होनी चाहिएँ ।

सूचना क्या है

  1. किसी भी स्वरूप में कोई भी सामग्री “सूचना” है । इसमें किसी भी इलेक्ट्रॉनिक रूप में धारित अभिलेख, दस्तावेज, जापन, ई-मेल, मत, सलाह, प्रेस विज्ञसि, परिपत्र, आदेश, लोंगबुक, संविदा, रिपोर्ट, कागजपत्र, नमूने, माडल, आंकडों संबंधी सामग्री शामिल है । इसमें किसी निजी निकाय से संबंधित ऐसी सूचना भी शामिल है जिसे लोक प्राधिकरण तत्समय लागू किसी कानून के अंतर्गत प्रास कर सकता है ।4. नागरिकों को किसी लोक प्राधिकरण से ऐसी सूचना माँगने का अधिकार है, जो उस लोक प्राधिकरण के पास उपलब्ध है या उसके नियंत्रण में उपलब्ध है । इस अधिकार में लोक प्राधिकरण के पास या नियंत्रण में उपलब्ध कृति, दस्तावेजों तथा रिकार्डों का निरीक्षण; दस्तावेजों या रिकार्डों के नोट, उद्धरण या प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना; सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना शामिल है ।
  2. अधिनियम नागरिकों को, संसद-सदस्यों और राज्य विधान मण्डल के सदस्यों के बराबर सूचना का अधिकार प्रदान करता है । अधिनियम के अनुसार ऐसी सूचना, जिसे संसद अथवा राज्य विधानमण्डल को देने से इन्कार नहीं किया जा सकता, उसे किसी व्यक्ति को देने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता ।
  3. नागरिकों को डिस्केट्स, फ्लॉपी, टेप, वीडियो कैसेट या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक रूप में अथवा प्रिंट आउट के रूप में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है, बशर्ते कि मांगी गई सूचना कम्प्यूटर में या अन्य किसी युक्ति में पहले से सुरक्षित है, जिससे उसे डिस्केट आदि में स्थानांतरित किया जा सके ।
  4. आवेदक को सूचना सामान्यतः उसी रूप में प्रदान की जानी चाहिए, जिसमें वह मांगता है । तथापि, यदि किसी विशेष स्वरूप में माँगी गई सूचना की आपूर्ति से लोक प्राधिकरण के संसाधनों का अनपेक्षित ढंग से विचलन होता है या इससे रिकॉर्डों के परिरक्षण में कोई हानि की सम्भावना होती है, तो उस रूप में सूचना देने से मना किया जा सकता है ।
  5. अधिनियम के अंतर्गत सूचना का अधिकार केवल भारत के नागरिकों को प्राप्त है । अधिनियम में निगम, संघ, कम्पनी आदि को, जो वैध हस्तियाँ/व्यक्तियों की परिभाषा के अंतर्गत तो आते हैं, किन्तु नागरिक की परिभाषा में नहीं आते, को सूचना देने का कोई प्रावधान नहीं है । फिर भी, यदि किसी निगम, संघ, कम्पनी, गैर सरकारी संगठन आदि के किसी ऐसे कर्मचारी या अधिकारी द्वारा प्रार्थनापत्र दिया जाता है, जो भारत का नागरिक है, तो उसे सूचना दी जाएगी, बशर्ते वह अपना नाम इंगित करे । ऐसेमामले में, यह प्रकल्पित होगा कि एक नागरिक द्वारा निगम आदि के पते पर सूचना मॉनी गई है ।
  6. अधिनियम के अंतर्गत केवल ऐसी सूचना प्रदान करना अपेक्षित है, जो लोक प्राधिकरण के पास पहले से मौजूद है अथवा उसके नियन्त्रण में है । केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा सूचना सृजित करना; या सूचना की व्याख्या करना ; या आवेदक द्वारा उठाई गई समस्याओं का समाधान करना; या काल्पनिक प्रश्नों का उत्तर देना अपेक्षित नहीं है ।

प्रकटीकरण से छूट प्राप्त सूचना

  1. इस अधिनियम की धारा 8 की उप-धारा (1) और धारा 9 में सूचना की ऐसी श्रेणियों का विवरण दिया गया है, जिन्हें प्रकटीकरण से छूट प्राप्त है । फिर भी, धारा 8 की उप-धारा(2) में यह प्रावधान है कि उप-धारा (1) के अन्तर्गत छूट प्राप्त अथवा शासकीय गोपनीय अधिनियम, 1923 के अन्तर्गत छूट प्राप्त सूचना का प्रकटीकरण किया जा सकता यदि प्रकटीकरण से, संरक्षित हित को होने वाले नुकसान की अपेक्षा वृहत्तर लोक हित सधता हो । इसके अलावा धारा 8 की उप-धारा (3) में यह प्रावधान है कि उप-धारा (1) के खण्ड (क), (ग) और (झ) में उपबन्धित सूचना के सिवाय उस उप-धारा के अन्तर्गत प्रकटीकरण से छूट प्राप्त सूचना, सम्बद्ध घटना के घटित होने की तारीख के 20 वर्ष बाद प्रकटीकरण से मुक्त नहीं रहेगी ।
  2. स्मरणीय है कि अधिनियम की धारा 8(3) के अनुसार लोक प्राधिकारियों से यह अपेक्षा नहीं की गई है कि वे अभिलेखों को अनन्त काल तक सुरक्षित रखें । लोक प्राधिकरण को प्राधिकरण में लागू अभिलेख धारण अनुसूची के अनुसार ही अभिलेखों को संरक्षित रखना चाहिए । किसी फाइल में सृजित जानकारी फाइल/अभिलेख के नष्ट हो जाने के बाद भी कार्यालय ज्ञापन अथवा पत्र अथवा किसी भी अन्य रूप में मौजूद रह सकती है । अधिनियम के अनुसार यह अपेक्षित है कि धारा 8 की उप धारा (1) के अंतर्गत – प्रकटन से छूट प्राप्त होने के बावजूद भी, 20 वर्ष बाद इस प्रकार उपलब्ध जानकारी उपलब्ध करा दी जाए । अर्थ यह है कि ऐसी जानकारी जिसे सामान्य रूप से अधिनियम की धारा 8 की उप-धारा (1) के अंतर्गत प्रकटन से छूट प्राप्त है, जानकारी सेसंबंधित घटना के घटित होने के 20 वर्ष बाद ऐसी छूट से मुक्त हो जाएगी । तथापि, निम्नलिखित प्रकार की जानकारी के लिए प्रकटन से छूट जारी रहेगी और 20 वर्ष बीत जाने के बाद भी ऐसी जानकारी को किसी नागरिक को देना बाध्यकारी नहीं होगा :-
    (i) ऐसी जानकारी जिसके प्रकटन से भारत की संप्रभुता और अखण्डता, राष्ट्र की सुरक्षा, सामरिक, वैज्ञानिक और आर्थिक हित, विदेश के साथ संबंध प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती हो अथवा कोई अपराध भडकता हो ;
    (ii) ऐसी जानकारी जिसके प्रकटन से संसद अथवा राज्य के विधानमण्डल के विशेषाधिकार की अवहेलना होती हो ; अथवा
    (iii) अधिनियम की धारा 8 की उप-धारा (1) के खण्ड (झ) के प्रावधान में दी गई शर्तों के अधीन मंत्रिपरिषद्, सचियों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श सहित मंत्रिमण्डलीय दस्तावेज ।

सूचना का अधिकार बनाम अन्य अधिनियम

  1. सूचना का अधिकार अधिनियम का अन्य विधियों की तुलना में अधिभावी प्रभाव है । शासकीय गोपनीयता अधिनियम, 1923 और तत्काल प्रभावी किसी अन्य कानून में ऐसे प्रावधान, जो सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों से असंगत है, की उपस्थिति की स्थिति में सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधान प्रभावी होंगे ।

सूचना माँगने का शुल्क

  1. आवेदनकर्ता से अपेक्षित है कि वह अपने आवेदन पत्र के साथ सूचना माँगने का निर्धारित शुल्क 10/-रुपए (दस रुपए) नकद अथवा मांग पत्र अथवा बैंकर चैक अथवा भारतीय पोस्टल ऑर्डर के रूप में लोक प्राधिकरण के लेखा अधिकारी के नाम से भेजें। सूचना कीआपूर्ति के लिए सूचना का अधिकार (शुल्क और लागत का विनियमन) नियमावली, 2005 के द्वारा अतिरिक्त शुल्क का प्रावधान भी किया गया है, जो निम्नानुसार है :-
    (क) सृजित अथवा फोटोकॉपी किए हुए प्रत्येक पेज (ए 4 अथवा ए 3 आकार) कागज के लिए दो रुपए (2/- रुपए) ;
    (ख) बड़े आकार के कागज में कापी का वास्तविक प्रभार अथवा लागत कीमत ;
    (ग) नमूनों या भोंडलों के लिए वास्तविक लागत अथवा कीमत ;
    (घ) अभिलेखों के निरीक्षण के लिए, पहले घण्टे के लिए कोई शुल्क नहीं और उसके बाद प्रत्येक घण्टे (या उसके खण्ड) के लिए पाँच रूपए का शुल्क (5/-रुपए) ;
    (ड.) डिस्केट अथवा फ्लॉपी में सूचना प्रदान करने के लिए प्रत्येक डिस्केट अथवा फ्लॉपी पचास रुपए (50/-रुपए)
    (च) मुद्रित रूप में दी गई सूचना के लिए, ऐसे प्रकाशन के लिए नियत मूल्य अथवा प्रकाशन के उद्धरणों की फोटोकापी के दो रुपए प्रति पृष्ठ ।
  2. गरीबी रेखा के नीचे की श्रेणी के अंतर्गत आने वाले आवेदनकर्ताओं को किसी प्रकार का शुल्क देने की आवश्यकता नहीं है । तथापि, उसे गरीबी रेखा के नीचे के स्तर का होने के दावे का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगा । आवेदन के साथ निर्धारित 10/-रुपए के शुल्क अथवा आवेदनकर्ता के गरीबी रेखा के नीचे वाला होने का प्रमाण , जैसा भी मामला हो, नहीं होने पर आवेदन को अधिनियम के अंतर्गत वैध नहीं माना जाएगा और इसीलिए, ऐसे आवेदक को अधिनियम के अंतर्गत सूचना प्राप्त करने का हक नहीं होगा ।
  3. यदि केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी यह निर्णय लेता है कि सूचना आवेदन शुल्क के अतिरिक्त और शुल्क के भुगतान पर सूचना दी जाएगी तो केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी से अपेक्षित है कि वह आवेदक को इस संबंध में अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित सूचना भी दे :-(i) अन्य शुल्क के ब्यौरे, जिसका भुगतान अपेक्षित है ;
    (ii) मांगी गई शुल्क की राशि के परिकलन का ब्यौरा ।

आवेदन की विषय-वस्तु और प्रपत्र

  1. आवेदक को सूचना माँगने के लिए कोई कारण अथवा उसे सम्पर्क करने के लिए आवश्यक विवरण के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्तिगत ब्यौरा देना आवश्यक नहीं है । साथ ही, अधिनियम अथवा नियमों में सूचना प्राप्त करने हेतु आवेदन का कोई निर्धारित प्रपत्र नहीं है । इसलिए, आवेदक से सूचना का निवेदन करने का कारण बताने अथवा अपने रोजगार इत्यादि का ब्यौरा देने अथवा किसी विशेष स्वरूप में आवेदन प्रस्तुत करने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए ।

आवेदन का हस्तांतरण

  1. यदि आवेदन के साथ निर्धारित शुल्क अथवा गरीबी रेखा के नीचे का प्रमाणपत्र संलग्न है, तो केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को देखना चाहिए कि क्या आवेदन की विषय-वस्तु अथवा उसका कोई खण्ड किसी अन्य लोक प्राधिकरण से संबंधित तो नहीं है । यदि आवेदन की विषय-वस्तु किसी अन्य लोक प्राधिकरण से संबंधित हो, तो उक्त आवेदन को संबद्घ लोक प्राधिकरण को हस्तांतरित कर दिया जाना चाहिए । यदि आवेदन आंशिक रूप से ही अन्य लोक प्राधिकरण से संबंधित है, तो उस लोक प्राधिकरण से संबंधित खण्ड को स्पष्ट रूप से विनिर्दिष्ट करते हुए आवेदन की एक प्रति उस लोक प्राधिकरण को भेज देनी चाहिए । आवेदन का हस्तांतरण करते समय अथवा उसकी प्रति भेजते समय संबंधित लोक प्राधिकरण को सूचित किया जाना चाहिए कि आवेदन शुल्क प्राप्त कर लिया गया है । आवेदक को उसके आवेदन के स्थानांतरण के बारे में तथा उस लोक प्राधिकरण, जिसको उनका आवेदन अथवा उसकी एक प्रति भेजी गई है, के ब्यौरों के बारे में भी सूचित कर देना चाहिए ।18. आवेदन अथवा उसके भाग का हस्तांतरण जितना जल्दी संभव हो, कर देना चाहिए । यह ध्यान रखा जाए कि हस्तांतरण करने में आवेदन की प्रासि की तारीख से पांच दिन से अधिक का समय न लगे । यदि कोई केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी किसी आवेदन की प्रासि के पांच दिन के बाद उस आवेदन को स्थानांतरित करता है तो उस आवेदन के निपटान में होने वाले विलम्ब में से इतने समय के लिए वह जिम्मेदार होगा जो उसने स्थानांतरण में 5 दिन से अधिक लगाया ।
  2. उस लोक प्राधिकरण का केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी जिसे आवेदन हस्तांतरित किया गया है, इस आधार पर आवेदन के हस्तांतरण को नामंजूर नहीं कर सकता कि उसे आवेदन 5 दिन के भीतर हस्तांतरित नहीं किया गया ।
  3. कोई लोक प्राधिकरण अपने लिए जितने आवश्यक समझे उतने केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी पदनामित कर सकता है । यह संभव है कि ऐसे लोक प्राधिकरण जिसमें एक से अधिक केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी हों, कोई आवेदन संबंधित लोक सूचना अधिकारी के बजाय किसी अन्य केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को प्राप्त हो । ऐसे मामले में आवेदन प्राप्त करने वाल केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को इसे संबंधित केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को यथाशीघ्र, अधिमानतः, उसी दिन हस्तांतरित कर देना चाहिए । हस्तांतरण के लिए पांच दिन की अवधि केवल तभी लागू होती है जब आवेदन एक लोक प्राधिकरण से दूसरे लोक प्राधिकरण को हस्तांतरित किया जाता है ना कि तब जब हस्तांतरण एक ही प्राधिकरण के एक केन्द्रीय सूचना अधिकारी से दूसरे केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को हो ।

सूचना की आपूर्ति

  1. उत्तर देने वाले केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को देखना चाहिए कि मांगी गई सूचना अथवा उसका कोई भाग अधिनियम की धारा 8 अथवा 9 के अन्तर्गत प्रकटीकरण से छूट प्राप्त तो नहीं है । आवेदन के छूट के अन्तर्गत आने वाले भाग के संबंध में किए गए अनुरोध को नामंजूर कर दिया जाना चाहिए तथा शेष सूचना तत्काल अथवा अतिरिक्त शुल्क लेने के बाद, जैसा भी मामला हो, मुहैया करवा दी जानी चाहिए ।22. यदि किसी ऐसी सूचना के लिए आवेदन प्राप्त होता है जिसके कुछ भाग को तो प्रकटीकरण से छूट मिली हुई है लेकिन उसका कुछ भाग ऐसा है जो छूट के अन्तर्गत नहीं आता है और जिसे इस प्रकार पृथक किया जा सके कि पृथक किए हुए भाग में छूट प्राप्त जानकारी नहीं बच पाए, तो जानकारी के ऐसे पृथक किए हुए भाग/रिकाई को आवेदक को मुहैया कराया जा सकता है । जहां रिकाई के किसी भाग के प्रकटीकरण को इस तरीके से अनुमति दी जाए तो केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को आवेदक को यह सूचित करना चाहिए कि मांगी गई सूचना को प्रकटीकरण से छूट प्राप्त है तथा रिकाई के मात्र ऐसे भाग को पृथक्करण के बाद मुहैया कराया जा रहा है जिसको प्रकटीकरण से छूट प्राप्त नहीं है । ऐसा करते समय, उसे निर्णय के कारण बताने चाहिए । साथ ही उस सामग्री, जिस पर निष्कर्ष आधारित था, का संदर्भ देते हुए सामग्रीगत प्रश्नों पर निष्कर्ष भी बताना चाहिए । इन मामलों में केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को सूचना की आपूर्ति से पहले समुचित प्राधिकारी का अनुमोदन लेना चाहिए तथा निर्णय लेने वाले अधिकारी के नाम तथा पदनाम की सूचना भी आवेदक को देनी चाहिए ।

सूचना की आपूर्ति के लिए समय अवधि

  1. केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को सूचना की आपूर्ति अनुरोध की प्रासि के तीस दिनों के भीतर कर देनी चाहिए । यदि मांगी गई सूचना का संबंध किसी व्यक्ति के जीवन अथवा स्वातंत्र्य से हो तो सूचना आवेदन की प्रासि के अडतालीस घंटे के भीतर उपलब्ध करना अपेक्षित है ।
  2. प्रत्येक लोक प्राधिकरण से अपेक्षित है कि वह प्रत्येक उप प्रभागीय स्तर अथवा अन्य उप जिला स्तर पर केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी पदनामित करे जो अधिनियम के अंतर्गत आवेदनों अथवा अपीलों को प्राप्त कर सके और उन्हें केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी अथवा अपीलीय प्राधिकारी अथवा केन्द्रीय सूचना आयोग को अग्रेषित कर दे । यदि सूचना के लिए कोई अनुरोध केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारियों के माध्यम से प्राप्त होता है तो सूचना केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी द्वारा आवेदन प्राप्त होने के 35 दिन के भीतर तथा यदि मांगी गई सूचना व्यक्ति के जीवन तथा स्वातंत्र्य से संबंधित हो, तो सूचना अनुरोध प्रासि के 48 घंटों जमा 5 दिन के भीतर उपलब्ध करा दी जानी चाहिए ।
  3. एक लोक प्राधिकरण से दूसरे लोक प्राधिकरण को स्थानांतरित किये गए सामान्य आवेदन का उत्तरर सम्बद्ध लोक प्राधिकरण को उसके द्वारा आवेदन प्रासि के 30 दिन के भीतर दे देनाचाहिए । यदि मांगी गई सूचना व्यक्ति के जीवन तथा स्यातंत्र्य से संबंधित हो, तो 48 घंटे के भीतर सूचना मुहैया करवा दी जानी चाहिए ।
  4. इस अधिनियम की दूसरी अनुसूची में विलिर्दिष्ट आसूचना तथा सुरक्षा संगठनों के केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी के पास भ्रष्टाचार तथा मानव अधिकार उल्लंघन के आरोपों से संबंधित सूचना के लिए आवेदन आ सकते हैं । मानव अधिकारों के उल्लंघन के आरोपों से संबंधित सूचना, जो केन्द्रीय सूचना आयोग का अनुमोदन प्राप्त होने के बाद ही प्रदान की जाती है, अनुरोध प्रासि की तारीख के 45 दिनों के भीतर प्रदान कर दी जानी चाहिए । भ्रष्टाचार के आरोपों से संबंधित सूचना की आपूर्ति करने हेतु निर्धारित समय अवधि अन्य मामलों के समरूप ही है ।
  5. यदि आवेदक से अतिरिक्त शुल्क देने को कहा जाता है तो शुल्क के भुगतान के बारे में सूचना के प्रेषण तथा आवेदक द्वारा शुल्क का भुगतान करने के बीच की समय अवधि को उत्तर देने की अवधि के उद्देश्य से नहीं गिना जाएगा । निम्न तालिका में विभिन्न परिस्थितियों में आवेदनों के निपटान के लिए निर्धारित समय-सीमा को दर्शाया गया है:-

| क्र.
सं. | परिस्थिति | आवेदन का निपटान करने हेतु समय-
सीमा |
| :– | :– | :– |
| 1. | सामान्य स्थिति में सूचना की आपूर्ति | 30 दिन |
| 2. | यदि सूचना व्यक्ति के जीवन अथवा स्यातंत्र्य से
संबंधित हो तो इसकी आपूर्ति | 48 घंटे |
| 3. | यदि आवेदन केन्द्रीय सहायक लोक सूचना
अधिकारी के माध्यम से प्राप्त होता है तो सूचना
की आपूर्ति | क्र.सं. 1 तथा 2 पर दर्शायी गई समय
अवधि में 5 दिन और जोड दिए जाएंगे |
| 4. | यदि आवेदन/अनुरोध अन्य लोक प्राधिकरण से
स्थानांतरित होने के बाद प्राप्त होते हैं तो सूचना
की आपूर्ति
(क) सामान्य स्थिति में
(ख) यदि सूचना व्यक्ति के जीवन तथा स्यतंत्रता
से संबंधित हो | (क) संबंधित लोक प्राधिकरण द्वारा
आवेदन की प्रासि के 30 दिन के भीतर
(ख) संबंधित लोक प्राधिकरण द्वारा
आवेदन की प्रासि के 48 घंटों के भीतर || 5. | दूसरी अनुसूची में वितिर्दिष्ट संगठनों द्वारा सूचना की आपूर्ति
(क) यदि सूचना का संबंध मानव अधिकार उल्लंघन से हो
(ख) यदि सूचना का संबंध भ्रष्टाचार के आरोपों से हो | (क) आवेदन प्रासि के 45 दिन के भीतर
(ख) आवेदन प्रासि के 30 दिन के भीतर |
| — | — | — |
| 6. | यदि सूचना तीसरी पार्टी से संबंधित हो तथा तीसरी पार्टी ने इसे गोपनीय माना हो तो सूचना की आपूर्ति | इन मार्गनिर्देशों के पैरा 32 से 36 में दी गई प्रक्रिया का पालन करते हुए मुहैया करवाई जाए |
| 7. | ऐसी सूचना की आपूर्ति जिसमें आवेदक को अतिरिक्त शुल्क का भुगतान करने को कहा गया हो | आवेदक को अतिरिक्त शुल्क के बारे में सूचित करने तथा आवेदक द्वारा अतिरिक्त शुल्क के भुगतान के बीच की अवधि को उत्सर देने की दृष्टि से नहीं गिना जाएगा। |

  1. यदि केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी जानकारी के लिए अनुरोध पर निर्धारित समय में निर्णय देने में असफल रहता है तो यह माना जाएगा कि केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी ने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया है। यह बताना प्रासंगिक होगा कि यदि कोई लोक प्राधिकरण सूचना देने की समय सीमा का पालन नहीं कर पाता है तो संबंधित आवेदक को सूचना बिना शुल्क मुहैया करवाई जानी होगी।

प्रथम अपील

  1. अधिनियम द्वारा निर्धारित समयावधि में या तो आवेदक को उसके द्वारा मांगी गई सूचना दे दी जानी चाहिए या उसका आवेदन अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए। यदि आवेदक से अतिरिक्त शुल्क लिया जाना अपेक्षित है तो उसे इस सम्बन्ध में सूचना भेजने हेतु निर्धारित समय सीमा के भीतर ही सूचित कर दिया जाना चाहिए। यदि आवेदक को वितिर्दिष्ट समय के भीतर सूचना अथवा अनुरोध के अस्वीकार होने का निर्णय अथवा अतिरिक्त शुल्क के भुगतान करने की सूचना प्राप्त नहीं होती है तो वह प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील कर सकता है। यदि अभ्यर्थी केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी के सूचना देने के सम्बन्ध में अथवा शुल्क की मात्रा के सम्बन्ध में लिए गए निर्णय से व्यथित हो तो भी वह अपील कर सकता है।30. इस अधिनियम के संदर्भ में तीसरी पार्टी का तात्पर्य आवेदक से भिन्न अन्य व्यक्ति से है । ऐसे लोक प्राधिकरण भी तीसरी पार्टी की परिभाषा में शामिल होंगे जिससे सूचना नहीं मांगी गई है ।
  2. स्मरणीय है कि वाणिज्यिक गुप्त बातों, व्यावसायिक रहस्यों और बौद्धिक सम्पदा सहित ऐसी सूचना, जिसके प्रकटन से किसी तीसरी पार्टी की प्रतियोगी स्थिति को क्षति पहुंचती हो, को प्रकटन से छूट प्राप्त है । धारा 8(1)(घ) के अनुसार यह अपेक्षित है कि ऐसी सूचना को प्रकट न किया जाए जब तक कि सक्षम प्राधिकारी इस बात से आश्वस्त न हो कि ऐसी सूचना का प्रकटन बृहत लोक हित में प्राधिकृत है ।
  3. यदि कोई आवेदक ऐसी सूचना मांगता है जो किसी तीसरी पार्टी से संबंध रखती है अथवा उसके द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है और तीसरी पार्टी ने ऐसी सूचना को गोपनीय माना है, तो केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी से अपेक्षित है कि वह सूचना को प्रकट करने अथवा न करने पर विचार करे । ऐसे मामलों में मार्गदर्शी सिद्धांत यह होना चाहिए कि यदि प्रकटन से तीसरी पार्टी को सम्भावित हानि की अपेक्षा बृहत्तर लोक हित सधता हो तो प्रकटन की स्वीकृति दे दी जाए बशर्ते कि सूचना कानून द्वारा संरक्षित व्यावसायिक अथवा वाणिज्यिक रहस्यों से संबन्धित न हो । तथापि, ऐसी सूचना के प्रकटन से पहले नीचे दी गई प्रक्रिया को अपनाया जाए । यह ध्यान देने योग्य बात है कि इस प्रक्रिया को केवल तभी अपनाया जाना है जब तीसरी पार्टी ने सूचना को गोपनीय माना हो ।
  4. यदि केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी सूचना को प्रकट करना उचित समझता है तो उसे आवेदन प्रासि की तारीख के 5 दिन के भीतर, तीसरी पार्टी को एक लिखित सूचना देनी चाहिए कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदक द्वारा सूचना मांगी गई है और कि वह सूचना को प्रकट करना चाहता है । उसे तृतीय पक्ष से निवेदन करना चाहिए कि तृतीय पक्ष लिखित अथवा मौखिक रूप से सूचना को प्रकट करने या न करने के संबंध में अपना पक्ष रखे । तृतीय पक्ष को प्रस्तावित प्रकटन, के विरुद्ध प्रतिवेदन करने के लिए दस दिन का समय दिया जाना चाहिए।
  5. केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को चाहिए कि वह तृतीय पक्ष के निवेदन को ध्यान में रखते हुए प्रकटन के संबंध में निर्णय ले । ऐसा निर्णय सूचना के अनुरोध की प्रासि से चालीस दिन के भीतर ले लिया जाना चाहिए । निर्णय लिए जाने के पश्चात्, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को लिखित में तृतीय पक्ष को अपने निर्णय की सूचनादेली चाहिए । तृतीय पक्ष को सूचना देते समय यह भी बताना चाहिए कि तृतीय पक्ष को धारा 19 के अधीन अपील करने का हक है ।
  6. तृतीय पक्ष केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा दिए गए निर्णय की प्राप्ति के तीस दिन के अन्दर प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील कर सकता है । यदि तृतीय पक्ष प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के निर्णय से संतुष्ट न हो, तो वह केन्द्रीय सूचना आयुक्त के समक्ष द्वितीय अपील कर सकता है ।
  7. यदि तृतीय पक्ष द्वारा केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी के सूचना प्रकट करने के निर्णय के विरुद्ध कोई अपील दायर की जाती है, तो ऐसी सूचना को तब तक प्रकट नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि अपील पर निर्णय न ले लिया जाए ।

प्रथम अपील फाइल करने की समय सीमा

  1. प्रथम अपील निर्धारित अवधि के समाप्त होने अथवा केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी से संसूचना प्राप्त होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर की जा सकती है । यदि प्रथम अपीलीय प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट है कि अपीलकर्ता को पर्याप्त कारण से अपील करने से रोका गया था तो 30 दिनों के बाद भी अपील स्वीकार की जा सकती है ।

अपील का निपटान

  1. सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत अपील पर निर्णय करना एक अर्ध न्यायिक कार्य है । इसलिए, अपीलीय प्राधिकारी के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि न्याय केवल हो ही नहीं, बल्कि वह होते हुए दिखाई भी दे । इसके लिए अपील प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश स्पीकिंग ऑडर होना चाहिए जिसमें निर्णय के पक्ष में समुचित तर्क दिए गए हों ।

अपील के निपटान के लिए समय सीमा

  1. अपील का निपटान अपील प्राप्त होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर कर दिया जाना
    चाहिए । अपवाद के मामलों में, अपीलीय प्राधिकारी इसके निपटान के लिए 45 दिन का समय ले सकता है । ऐसे मामलों में जिनमें अपील के निपटान में 30 दिन से अधिकसमय लगे, अपीलीय प्राधिकारी को चाहिए कि वह विलम्ब के कारणों को लिखित रूप में दर्ज करे ।
  2. यदि कोई अपीलीय प्राधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि अपीलकर्ता को केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा भेजी गई जानकारी के अतिरिक्त और जानकारी दी जानी अपेक्षित है तो वह या तो (i) केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को ऐसी सूचना देने के लिए निदेश दे सकता है या (ii) अपीलकर्ता को वह स्वयं जानकारी भेज सकता है । पहली स्थिति में अपीलीय प्राधिकारी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके द्वारा आदेशित जानकारी अपीलकर्ता को शीघ्र भेजी जाए । हालांकि यह बेहतर होगा कि अपीलीय प्राधिकारी कार्रवाई का दूसरा रास्ता अपनाए और वह अपने द्वारा पारित आदेश के साथ ही जानकारी भेज दे ।
  3. यदि केन्द्रीय लोक, सूचना अधिकारी अपीलीय प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश को कार्यान्वित नहीं करता है और अपीलीय प्राधिकारी यह महसूस करता है कि उसके आदेश को कार्यान्वित करवाने के लिए उचचतर प्राधिकारी का हस्तक्षेप आवश्यक है तो उसे इस मामले को लोक प्राधिकरण के उस अधिकारी के ध्यान में लाना चाहिए जो केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई करने में सक्षम हो । ऐसे सक्षम अधिकारी को चाहिए कि वह यथोचित कार्रवाई करे ताकि सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को कार्यान्वित किया जा सके ।