The Lokpal and Lokayuktas Act, 2013, established an independent anti-corruption ombudsman in India. This act aims to combat corruption by creating a body to inquire into allegations of corruption against public functionaries. It outlines the structure, powers, and functions of the Lokpal at the central level and provides for the establishment of Lokayuktas in states. The act covers various aspects, including the appointment of the Lokpal and its members, their terms of office, and their powers related to investigations, inquiries, and prosecution. It also details the definitions of various terms, the scope of jurisdiction, and the procedures to be followed. The legislation emphasizes transparency and accountability in governance and is a significant step towards strengthening anti-corruption mechanisms in the country. Amendments to related acts, such as the Prevention of Corruption Act, 1988, and the Delhi Special Police Establishment Act, 1946, are also included to align with the provisions of this act. The act further defines the offenses and penalties related to corruption and corruption complaints.
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लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013
(2014 का अधिनियम संख्यांक 1)
[1 जनवरी, 2014]
कतिपय लोक कृत्यकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के अभिकथनों की जांच करने हेतु संय के लिए लोकपाल और रत्नों के लिए लोकायुक्त के निकाय को स्थापना करने और उनसे संबंधित या उनके आनुवंशिक
विषयों का उपबंध
करने के लिए
अधिनियम
भारत के संविधान ने सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए एक लोकतंत्रात्मक गणराज्य को स्थापना की है;
और भारत ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय का अनुसमर्थन किया है;
और स्वच्छ तथा उत्तरदायी शासन के लिए सरकार की प्रतिबद्धता, भ्रष्टाचार के कार्यों को रोकने और दंडित करने वाले प्रभावी निकायों में परावर्तित होती है;
अत: अब, उक्त अभिसमय के अधिक प्रभावी कार्यान्वयन के लिए और भ्रष्टाचार के मामलों में तत्परता से तथा निष्पक्ष अन्वेषण और अभियोजन का उपबंध करने के लिए एक विधि अधिनियमित करना समीचीन है।
भारत गणराज्य के चौंसठ्यों वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो:-
भाग 1
प्रारंभिक
- (1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 है।
(2) इसका विस्तार संपूर्ण भारत पर है।(3) यह भारत में और भारत के बाहर लोक सेवकों को लागू होगा।
(4) यह उस तारीख़ को प्रवृत्त होगा, जो केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे।
भाग 2
संघ के लिए लोकपाल
अध्याय 1
परिभाषाएं
- (1) इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,—
(क) “न्यायपीठ” से लोकपाल की न्यायपीठ अभिप्रेत है;
(ख) “अध्यक्ष” से लोकपाल का अध्यक्ष अभिप्रेत है;
(ग) “सक्षम प्राधिकारी” से,—
(i) प्रधानमंत्री के संबंध में, लोक सभा अभिप्रेत है;
(ii) मंत्रि-परिषद् के किसी सदस्य के संबंध में, प्रधानमंत्री अभिप्रेत है;
(iii) मंत्री से भिन्न संसद् के किसी सदस्य के संबंध में-
(अ) राज्य सभा के किसी सदस्य की दशा में, राज्य सभा का सभापति; और
(आ) लोक सभा के किसी सदस्य की दशा में, उस सदन का अध्यक्ष, अभिप्रेत है;
(iv) केंद्रीय सरकार के मंत्रालय या विभाग के किसी अधिकारी के संबंध में, उस मंत्रालय या विभाग का, जिसके अधीन ऐसा अधिकारी सेवारत है, भ्रारसाधक मंत्री अभिप्रेत है;
(v) संसद् के किसी अधिनियम के अधीन स्थापित या गठित अथवा केंद्रीय सरकार द्वारा पूर्णत: या भागत: वित्तपोषित या उसके द्वारा निर्वत्रित किसी निकाय या बोर्ड या निगम या प्राधिकरण या कंपनी या सोसाइटी या स्वायत्त निकाय (चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो) के किसी अध्यक्ष या सदस्यों के संबंध में ऐसे निकाय या बोर्ड या निगम या प्राधिकरण या कंपनी या सोसाइटी या स्वायत्त निकाय के प्रशासनिक मंत्रालय का भारसाधक मंत्री अभिप्रेत है;
(vi) संसद् के किसी अधिनियम के अधीन स्थापित या गठित अथवा केंद्रीय सरकार द्वारा पूर्णत: या भागत: वित्तपोषित या उसके द्वारा निर्वत्रित किसी निकाय या बोर्ड या निगम या प्राधिकरण या कंपनी या सोसाइटी या स्वायत्त निकाय (चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो) के किसी अधिकारी के संबंध में ऐसे निकाय या बोर्ड या निगम या प्राधिकरण या कंपनी या सोसाइटी या स्वायत्त निकाय का प्रधान अभिप्रेत है;
(vii) ऊपर उपखंड (i) से उपखंड (vi) के अंतर्गत न आने वाली किसी अन्य दशा में, ऐसा विभाग या प्राधिकरण, जो केंद्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे, अभिप्रेत है :
परंतु, यदि उपखंड (v) या उपखंड (vi) में निर्दिष्ट कोई व्यक्ति संसद् का सदस्य भी है तो,—
(अ) ऐसे सदस्य के राज्य सभा का सदस्य होने की दशा में, उस सदन का सभापति; और
(आ) ऐसे सदस्य के लोक सभा का सदस्य होने की दशा में, उस सदन का अध्यक्ष,
सक्षम प्राधिकारी होगा;(भ) “केंद्रीय सतर्कता आयोग” से केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 को धारा 3 को उपधारा (1) के अधीन गठित केंद्रीय सतर्कता आयोग अभिप्रेत है;
(ड) “शिकायत” से ऐसे प्ररूप में, जो विहित किया जाए, को गई ऐसी कोई शिकायत अभिप्रेत है, जिसमें यह अभिकथन हो कि किसी लोक सेवक ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 को अधीन दंडनीय कोई अपराध किया है;
(च) “दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन” से दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 को धारा 2 को उपधारा (1) के अधीन गठित दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अभिप्रेत है;
(छ) “अन्वेषण” से दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 को धारा 2 के खंड (ज) के अधीन यथापरिभाषित कोई अन्वेषण अभिप्रेत है;
(ज) “न्यायिक सदस्य” से लोकपाल का कोई ऐसा न्यायिक सदस्य अभिप्रेत है;
(झ) “लोकपाल” से धारा 3 के अधीन स्थापित निकाय अभिप्रेत है;
(ज) “सदस्य” से लोकपाल का कोई सदस्य अभिप्रेत है;
(ट) “मंत्री” से संघ का कोई मंत्री अभिप्रेत है, किंतु इसके अंतर्गत प्रधानमंत्री नहीं है;
(ड) “अधिसूचना” से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है और “अधिसूचित” पद का तदनुसार अर्थ लगाया जाएगा;
(ड) “प्रारंभिक जांच” से इस अधिनियम के अधीन को गई कोई जांच अभिप्रेत है;
(ड) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(च) “लोक सेवक” से धारा 14 को उपधारा (1) के खंड (क) से खंड (ज) में निर्दिष्ट कोई व्यक्ति अभिप्रेत है किन्तु इसके अंतर्गत ऐसा कोई लोक सेवक नहीं है, जिसके संबंध में सेना अधिनियम, 1950, वायु सेना अधिनियम, 1950, नौसेना अधिनियम, 1957 और तटरक्षक अधिनियम, 1978 के अधीन किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी द्वारा अधिकारिता प्रयोक्तव्य है या उन अधिनियमों के अधीन ऐसे लोक सेवक को प्रक्रिया लागू होती है;
(त) “विनियमों” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए विनियम अभिप्रेत हैं;
(थ) “नियमों” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियम अभिप्रेत हैं;
(द) “अनुसूची” से इस अधिनियम से संलग्न कोई अनुसूची अभिप्रेत है;
(ध) “विशेष न्यायालय” से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 को धारा 3 को उपधारा
(1) के अधीन नियुक्त किसी विशेष न्यायाधीश का न्यायालय अभिप्रेत है।
(2) उन शब्दों और पदों के, जो इस अधिनियम में प्रयुक्त हैं और परिभाषित नहीं हैं किन्तु भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 में परिभाषित हैं, वही अर्थ होंगे जो क्रमश: उस अधिनियम में हैं।
(3) इस अधिनियम में किसी ऐसे अन्य अधिनियम या उसके उपबंध के प्रति निर्देश का, जो किसी ऐसे क्षेत्र में प्रवृत्त नहीं है, जिसको यह अधिनियम लागू होता है, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह ऐसे क्षेत्र में प्रवृत्त तत्संबंधी अधिनियम या उसके उपबंध के प्रति कोई निर्देश है।
अध्याय 2
लोकपाल की स्थापना
3. (1) इस अधिनियम के प्रारंभ से ही, इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए, “लोकपाल” नामक एक निकाय को स्थापना की जाएगी।(2) लोकपाल निम्नलिखित से मिलकर बनेगा,—
(क) एक अध्यक्ष, जो भारत का मुख्य न्यायमूर्ति है या रहा है या उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश है या रहा है या कोई ऐसा विख्यात व्यक्ति, जो उपधारा (3) के खंड (ख) में विनिर्दिष्ट पात्रता को पूरा करता है; और
(ख) उतने सदस्य, जो आठ से अधिक नहीं होंगे, जिनमें से पचास प्रतिशत न्यायिक सदस्य होंगे :
परंतु लोकपाल के सदस्यों के पचास प्रतिशत से अन्यून सदस्य अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यक वर्गों से संबद्ध व्यक्तियों और महिलाओं में से होंगे।
(3) कोई व्यक्ति,—
(क) किसी न्यायिक सदस्य के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए पात्र होगा, यदि वह उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है या किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति है या रहा है;
(ख) न्यायिक सदस्य से भिन्न किसी सदस्य के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए पात्र होगा, यदि वह निर्दोष, सत्यनिष्ठा और उत्कृष्ट योग्यता वाला ऐसा व्यक्ति है, जिसके पास भ्रष्टाचारनिर्देष नीति, लोक प्रशासन, सतर्कता, वित्त, जिसके अंतर्गत बीमा और बैंककारी भी हैं, विधि और प्रबंधन से संबंधित विषयों में विशेष ज्ञान और पच्चीस वर्ष से अन्यून की विशेषज्ञता है।
(4) अध्यक्ष या कोई सदस्य,—
(i) संसद् का सदस्य या किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के विधान-मंडल का सदस्य नहीं होगा;
(ii) नैतिक अधमता से अंतर्वलित किसी अपराध का दोषसिद्ध व्यक्ति नहीं होगा;
(iii) यथास्थिति, अध्यक्ष या सदस्य के रूप में पद ग्रहण करने की तारीख को पैंतालीस वर्ष से कम आयु का व्यक्ति नहीं होगा;
(iv) किसी पंचायत या नगरपालिका का सदस्य नहीं होगा;
(v) ऐसा व्यक्ति नहीं होगा, जिसको संघ या किसी राज्य की सेवा से हटा दिया गया है या पदच्युत कर दिया गया है,
और वह व्यास या लाभ का कोई पद (अध्यक्ष या सदस्य के रूप में उसके पद से भिन्न) धारण नहीं करेगा या किसी राजनैतिक दल से सहबद्ध नहीं होगा या कोई कारबार नहीं करेगा या कोई वृत्ति नहीं करेगा और तदनुसार, अपना पदग्रहण करने से पूर्व, यथास्थिति, अध्यक्ष या किसी सदस्य के रूप में नियुक्त कोई व्यक्ति, यदि,—
(क) वह व्यास या लाभ का कोई पद धारण करता है तो ऐसे पद से त्यागपत्र देगा; या
(ख) वह कोई कारबार कर रहा है, तो ऐसे कारबार के संचालन और प्रबंधन से अपना संबंध समाप्त कर देगा; या
(ग) वह कोई वृत्ति कर रहा है, तो ऐसी वृत्ति करने से प्रविरत हो जाएगा।
चयन समिति की सिफारिशों पर अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति।
4. (1) अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति, राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित से मिलकर बनने वाली चयन समिति की सिफारिशें अभिप्राप्त करने के पश्चात् की जाएगी,—
(क) प्रधानमंत्री—अध्यक्ष;
(ख) लोक सभा का अध्यक्ष-सदस्य;
(ग) लोक सभा में विपक्ष का नेता-सदस्य;
(घ) भारत का मुख्य न्यायमूर्ति या उसके द्वारा नामनिर्दिष्ट उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश-सदस्य;(ड) ऊपर खंड (क) से खंड (घ) में निर्दिष्ट अध्यक्ष और सदस्यों द्वारा की गई सिफारिश के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाने वाला एक विख्यात विधिवेता-सदस्य।
(2) अध्यक्ष या किसी सदस्य को कोई नियुक्ति, केवल इस कारण अविधिमान्य नहीं होगी कि चयन समिति में कोई रिक्ति है।
(3) चयन समिति, लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन करने के प्रयोजनों के लिए और उस रूप में नियुक्ति के लिए विचार किए जाने वाले व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करने के लिए कम से कम सात प्रतिष्ठित व्यक्तियों को और जिनके पास प्रष्टाचार-निरोध नीति, लोक प्रशासन, सतर्कता, नीति निर्माण, वित्त, जिसके अंतर्गत बीमा और बैंककारी भी हैं, विधि और प्रबंधन से संबंधित विषयों में या किसी ऐसे अन्य विषय में, जो चयन समिति को राय में लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन करने में उपयोगी हो सकेगा, विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता है, एक खोजबीन समिति का गठन करेगी।
परंतु खोजबीन समिति के पचास प्रतिशत से अन्पून सदस्य अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यक वर्गों से संबद्ध व्यक्तियों और महिलाओं में से होंगे :
परंतु यह और कि चयन समिति, खोजबीन समिति द्वारा सिफारिश किए गए व्यक्तियों से भिन्न किसी व्यक्ति पर विचार कर सकेंगी;
(4) चयन समिति, लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन करने के लिए पारदर्शी रीति से स्वयं अपनी प्रक्रिया विनियमित करेगी।
(5) उपधारा (3) में निर्दिष्ट खोजबीन समिति की कार्यावधि, उसके सदस्यों को संदेश फौस और भत्ते तथा नामों के पैनल के चयन की रीति ऐसी होगी, जो विहित की जाए।
5. राष्ट्रपति, यथास्थिति, ऐसे अध्यक्ष या सदस्य की पदार्थधि की समाप्ति के कम से कम तीन मास पूर्व, इस अधिनियम में अधिकचित प्रक्रिया के अनुसार, नए अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के लिए सभी आवश्यक उपाय करेगा या कराएगा।
6. अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य, चयन समिति की सिफारिशों पर, राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त किया जाएगा और वह उस तारीख से, जिसको वह अपना पदग्रहण करता है, पांच वर्ष की अवधि तक या उसके द्वारा सत्तर वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक, इनमें से जो भी पूर्वतर हो, उस रूप में पद धारण करेगा :
परंतु—
(क) वह राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेंगा; या
(ख) उसको धारा 37 में उपबंधित रीति से उसके पद से हटाया जा सकेंगा।
7. (i) अध्यक्ष का वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें वही होंगी, जो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति की हैं;
(ii) अन्य सदस्यों का वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें वही होंगी, जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हैं :
परंतु यदि अध्यक्ष या कोई सदस्य, अपनी नियुक्ति के समय, भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी पूर्व सेवा की बाबत पेंशन (नि:शक्तता पेंशन से भिन्न) प्राप्त करता है तो, यथास्थिति, अध्यक्ष या सदस्य के रूप में सेवा के संबंध में उसके वेतन में से-
(क) उस पेंशन को रकम को; और
(ख) यदि ऐसी नियुक्ति से पूर्व, ऐसी पूर्व सेवा की बाबत उसको शोध्य पेंशन के किसी भाग के बदले उसका संराशीकृत मूल्य प्राप्त किया है तो पेंशन के उस भाग को रकम को, चढा दिया जाएगा :परंतु यह और कि अध्यक्ष या किसी सदस्य को संदेश चेतन, भत्ते और पेंशन में तथा उसको सेवा को अन्य शर्तों में उसको नियुक्ति के पश्चात् उसकें लिए अलाभकर रूप में परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
अध्यक्ष और सदस्यों द्वारा पद पर न रहने के पश्चात् नियोजन पर
विवेचन।
कतिपय परिस्थितियों में सदस्य का अध्यक्ष के रूप में कार्य करना या उसकें कृत्यों का निर्वहन करना।
लोकपाल का सचिव, अन्य अधिकारी तथा कर्मचारिवृंद।
- (1) अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य, पद पर न रहने के पश्चात्,—
(i) लोकपाल के अध्यक्ष या सदस्य के रूप में पुनर्नियुक्ति के लिए अपात्र होगा;
(ii) किसी राजनयिक कर्तव्यभार, किसी संय राज्यक्षेत्र के प्रशासक के रूप में नियुक्ति और ऐसे अन्य कर्तव्यभार या नियुक्ति के लिए, जो राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा किए जाने के लिए विधि द्वारा अपेक्षित है, अपात्र होगा;
(iii) भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन लाभ के किसी अन्य पद पर आगे और नियोजन के लिए अपात्र होगा;
(iv) पद त्याग करने की तारीख से पांच वर्ष की अवधि के भीतर, राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या संसद् के किसी सदन के सदस्य या राज्य विधान-मंडल के किसी सदन या नगरपालिका या पंचायत के सदस्य का कोई निर्वाचन लड़ने के लिए अपात्र होगा।
(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, कोई सदस्य, अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए पात्र होगा, यदि सदस्य और अध्यक्ष के रूप में उसकी कुल पदावधि पांच वर्ष से अधिक नहीं है।
स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए, यह स्पष्ट किया जाता है कि जहां सदस्य को अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जाता है, वहां उसकी पदावधि, सदस्य और अध्यक्ष के रूप में कुल मिलाकर पांच वर्ष से अधिक की नहीं होगी।
9. (1) अध्यक्ष की मृत्यु, त्यागपत्र के कारण या अन्यथा, उसकें पद पर कोई रिक्ति होने की दशा में, राष्ट्रपति, अधिसूचना द्वारा ऐसी रिक्ति को भरने के लिए नए अध्यक्ष को नियुक्ति किए जाने तक, ज्येष्ठतम सदस्य को, अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के लिए प्राधिकृत कर सकेंगा।
(2) जब अध्यक्ष, छुट्टी पर अनुपस्थिति के कारण या अन्यथा, अपने कृत्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है, तो उपलब्ध ऐसा वरिष्ठतम सदस्य, जिसको राष्ट्रपति, अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त प्राधिकृत करे, उस तारीख तक, जिसको अध्यक्ष, अपने कर्तव्यों को पुन: ग्रहण नहीं करता है, अध्यक्ष के कृत्यों का निर्वहन करेगा।
10. (1) लोकपाल का सचिव, भारत सरकार के सचिव को पंक्ति का होगा, जिसको केंद्रीय सरकार द्वारा भेजे गए नामों के पैनल से अध्यक्ष द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
(2) एक जांच निदेशक और एक अभियोजन निदेशक होगा, जो भारत सरकार के अपर सचिव या समतुल्य पंक्ति से निम्न पंक्ति का नहीं होगा, जिसको नियुक्ति केंद्रीय सरकार द्वारा भेजे गए नामों के पैनल से अध्यक्ष द्वारा की जाएगी।
(3) लोकपाल के अन्य अधिकारियों तथा कर्मचारिवृंद की नियुक्ति, लोकपाल के अध्यक्ष या ऐसे सदस्य या अधिकारी द्वारा की जाएगी, जिसको अध्यक्ष निदेश करे :
परंतु राष्ट्रपति, नियम द्वारा यह अपेक्षा कर सकेंगा कि ऐसे किसी पद या किन्हीं पदों को बाक्त, जो नियम में विनिर्दिष्ट किए जाएं, संय लोक सेवा आयोग से परामर्श करने के पश्चात्, नियुक्ति की जाएगी।
(4) संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, लोकपाल के सचिव और अन्य अधिकारियों तथा कर्मचारिवृंद को सेवा की शर्तें ऐसी होंगी, जो लोकपाल द्वारा तत्प्रयोजनार्थ बनाए गए विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएं :
परंतु इस उपधारा के अधीन बनाए गए विनियमों के लिए, जहां तक उनका संबंध चेतन, भत्तों, छुट्टी या पेंशनों से है, राष्ट्रपति का अनुमोदन अपेक्षित होगा।अध्याय 3
जांच खंड
11. (1) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में किसी बात के होते हुए भी, लोकपाल, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अधीन दंडनीय ऐसे किसी अपराध को, जिसके बारे में यह अभिकथन है कि वह लोक सेवक द्वारा किया गया है, प्रारंभिक जांच करने के प्रयोजन के लिए एक जांच खंड का गठन करेगा, जिसका अध्यक्ष जांच निदेशक होगा :
परंतु केंद्रीय सरकार, लोकपाल द्वारा जांच खंड का गठन किए जाने के समय तक, इस अधिनियम के अधीन प्रारंभिक जांच करने के लिए अपने ऐसे मंत्रालयों या विभागों से उतने अधिकारी और अन्य कर्मचारिवृंद, जितने लोकपाल द्वारा अपेक्षित हों, उपलब्ध कराएगी।
(2) इस अधिनियम के अधीन कोई प्रारंभिक जांच करने में लोकपाल को सहायता करने के प्रयोजनों के लिए, जांच खंड के ऐसे अधिकारियों को, जो भारत सरकार के अवर सचिव की पंक्ति से नीचे के न हों, वही शक्तियां प्राप्त होंगी, जो धारा 27 के अधीन लोकपाल के जांच खंड को प्रदत्त की गई हैं।
अध्याय 4
अभियोजन खंड
12. (1) लोकपाल, अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के अधीन लोकपाल द्वारा किसी शिकायत के संबंध में, लोक सेवकों का अभियोजन करने के प्रयोजन के लिए, एक अभियोजन खंड का गठन करेगा, जिसका अध्यक्ष अभियोजन निदेशक होगा :
परंतु केंद्रीय सरकार, लोकपाल द्वारा अभियोजन खंड का गठन किए जाने के समय तक, इस अधिनियम के अधीन अभियोजन करने के लिए, अपने ऐसे मंत्रालयों या विभागों से उतने अधिकारी और अन्य कर्मचारिवृंद, जितने लोकपाल द्वारा अपेक्षित हों, उपलब्ध कराएगी।
(2) अभियोजन निदेशक, लोकपाल द्वारा इस प्रकार निदेश दिए जाने के पश्चात्, विशेष न्यायालय के समक्ष अन्वेषण रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार मामला फाइल करेगा और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अधीन दंडनीय किसी अपराध के संबंध में लोक सेवकों के अभियोजन के संबंध में सभी आवश्यक उपाय करेगा।
(3) उपधारा (2) के अधीन मामले को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 को धारा 173 में निर्दिष्ट अन्वेषण के पूरा होने पर फाइल को गई रिपोर्ट समझा जाएगा।
अध्याय 5
लोकपाल के व्ययों का भारत की संचित निधि पर भारित होना
13. लोकपाल के प्रशासनिक व्यय, जिनके अंतर्गत लोकपाल के अध्यक्ष, सदस्यों या सचिव या अन्य अधिकारियों या कर्मचारिवृंद को या उनके संबंध में संदेय सभी वेतन, भत्ते और पेंशन भी हैं, भारत की संचित निधि पर भारित होंगे और लोकपाल द्वारा ली गई कोई फीस या अन्य धनराशियां उस निधि के भागल्य होंगी।
अध्याय 6
जांच के संबंध में अधिकारिता
14. (1) इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, लोकपाल, निम्नलिखित के संबंध में किसी शिकायत में किए गए भ्रष्टाचार के किसी अभिकथन में अंतर्वलित या उससे उद्भूत होने वाले या उससे संबद्ध किसी मामले को जांच करेगा या जांच कराएगा, अर्थात्:-
(क) ऐसा कोई व्यक्ति, जो प्रधान मंत्री है या रहा है :
परंतु लोकपाल, प्रधान मंत्री के विरुद्ध भ्रष्टाचार के किसी ऐसे अभिकथन में अंतर्वलित या उससे उद्भूत होने वाले या उससे संबद्ध किसी मामले को उस दशा में जांच नहीं करेगा,-
(1) जहां तक वह अंतरराष्ट्रीय संबंधों, बाह्य और आंतरिक सुरक्षा, लोक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष से संबंधित है;
जांच खंड।(ii) जब तक लोकपाल के अध्यक्ष और सभी सदस्यों से मिलकर बनी उसकी पूर्ण न्यायपोड जांच आरंभ करने के बारे में विचार नहीं करती है और उसके कम से कम दो-तिहाई सदस्य ऐसी जांच का अनुमोदन नहीं करते हैं :
परंतु यह और कि ऐसी कोई जांच बंद कमरे में कराई जाएगी और यदि लोकपाल इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि शिकायत खारिज होने योग्य है तो जांच के अभिलेख प्रकाशित नहीं किए जाएंगे या किसी को उपलब्ध नहीं कराए जाएंगे;
(ख) कोई व्यक्ति जो संघ का मंत्री है या रहा है;
(ग) कोई व्यक्ति जो संसद् के किसी भी सदन का सदस्य है या रहा है;
(घ) भ्रष्ट्रवार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 2 के खंड (ग) के उपखंड (i) और उपखंड (ii) में परिभाषित लोक सेवकों में से समूह ‘क’ या समूह ‘ख’ का कोई अधिकारी या उसके समतुल्य या उससे उच्चतर अधिकारी, जब वह संघ के कार्यों के संबंध में सेवारत है या जिसने सेवा की है;
(ङ) धारा 20 की उपधारा (1) के उपबंधों के अधीन रहते हुए; भ्रष्ट्रवार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 2 के खंड (ग) के उपखंड (i) और उपखंड (ii) में परिभाषित लोक सेवकों में से समूह ‘ग’ या समूह ‘घ’ का कोई पदधारी या उसके समतुल्य पदधारी, जब वह संघ के कार्यों के संबंध में सेवारत है या जिसने सेवा की है;
(च) ऐसा कोई व्यक्ति, जो संसद् के किसी अधिनियम द्वारा स्थापित या केन्द्रीय सरकार द्वारा पूर्णतः या भागतः वित्तपोषित या उसके द्वारा नियंत्रित किसी निकाय या बोर्ड या निगम या प्राधिकरण या कंपनी या सोसाइटी या न्यास या स्वायत्त निकाय (चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो) का अध्यक्ष या सदस्य या अधिकारी या कर्मचारी है या रहा है :
परन्तु खंड (घ) में निर्दिष्ट ऐसे अधिकारियों के संबंध में, जिन्होंने संघ के कार्यों के संबंध में या खंड (ङ) में निर्दिष्ट किसी निकाय या बोर्ड या निगम या प्राधिकरण या कंपनी या सोसाइटी या न्यास या स्वायत्त निकाय में सेवा की है, किन्तु राज्य के कार्यों के संबंध में या राज्य विधान-मंडल के किसी अधिनियम द्वारा स्थापित या राज्य सरकार द्वारा पूर्णतः या भागतः वित्तपोषित या उसके द्वारा नियंत्रित किसी निकाय या बोर्ड या निगम या प्राधिकरण या कंपनी या सोसाइटी या न्यास या स्वायत्त निकाय (चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो) में सेवारत है, लोकपाल और उसके जांच खंड या अभियोजन खंड के अधिकारियों को इस अधिनियम के अधीन ऐसे अधिकारियों की बाबत अधिकारिता केवल संबंधित राज्य सरकार की सहमति अभिप्राप्त करने के पश्चात् ही होगी;
(छ) ऐसा कोई व्यक्ति, जो सरकार द्वारा पूर्णतः या भागतः वित्तपोषित प्रत्येक अन्य सोसाइटी या व्यक्ति-संगम या न्यास जिसकी वार्षिक आय ऐसी रकम से अधिक है, जो केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे, (चाहे तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत है या नहीं) का चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो, निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी है या रहा है;
(ज) ऐसा कोई व्यक्ति, जो विदेशी अभिदाय (विनियमन) अधिनियम, 2010 के अधीन किसी विदेशी स्रोत से एक वर्ष में दस लाख रुपए से अधिक या ऐसी उच्चतर राशि का, जो केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे, संदान प्राप्त करने वाली प्रत्येक अन्य सोसाइटी या व्यक्ति-संगम या न्यास (चाहे तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत है या नहीं) का निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी है या रहा है।
स्पष्टीकरण—खंड (च) और खंड (छ) के प्रयोजन के लिए, यह स्पष्ट किया जाता है कि कोई इकाई या संस्था, चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो, निगम, सोसाइटी, न्यास, व्यक्ति-संगम, भागीदारी, एकल स्वल्थ्यारित, सीमित दायित्व वाली भागीदारी (चाहे तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत है या नहीं), उन खंडों के अंतर्गत आने वाली इकाइयां होंगी :परन्तु इस खंड में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 को धारा 2 के खंड (ग) के अधीन लोक सेवक समझा जाएगा और हदनुसार, उस अधिनियम के उपबंध लागू होंगे।
(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, लोकपाल, संसद् के किसी भी सदन के किसी सदस्य के विरुद्ध, उसके द्वारा संसद् में या संविधान के अनुच्छेद 105 के खंड (2) में अंतर्विष्ट उपबंधों के अंतर्गत आने वाली उसको किसी समिति में कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में भ्रष्टाचार के किसी ऐसे अभिकथन में अंतर्वलित या उससे उद्भूत होने वाले या उससे संबद्ध किसी मामले की जांच नहीं करेगा।
(3) लोकपाल, उपधारा (1) में निर्दिष्ट व्यक्तियों से भिन्न किसी व्यक्ति के किसी कार्य या आचरण के बारे में जांच कर सकेंगा, यदि ऐसा व्यक्ति, उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अधीन भ्रष्टाचार के किसी अभिकथन से संबंधित दुष्प्रेरण करने, रिश्वत देने या रिश्वत लेने या षड्र्धंत्र करने के कार्य में सम्मिलित है :
परन्तु किसी राज्य के कार्यों के संबंध में सेवारत किसी व्यक्ति को दशा में, राज्य सरकार की सहमति के बिना, इस धारा के अधीन कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।
(4) ऐसा कोई मामला, जिसकी बाबत इस अधिनियम के अधीन लोकपाल को कोई शिकायत की गई है, जांच आयोग अधिनियम, 1952 के अधीन जांच के लिए निर्दिष्ट नहीं किया जाएगा।
स्वष्टीकरण—शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि इस अधिनियम के अधीन कोई शिकायत केवल ऐसी अवधि से संबंधित होगी, जिसके दौरान लोक सेवक उस हैसियत में पद धारण कर रहा था या सेवारत रहा था।
15. यदि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अधीन भ्रष्टाचार के अभिकथन से संबंधित कोई मामला या कार्यवाही इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व या इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् किसी जांच के प्रारंभ के पूर्व, किसी न्यायालय या संसद् के किसी सदन की समिति के समक्ष या किसी अन्य प्राधिकारी के समक्ष लंबित है, तो ऐसा मामला या कार्यवाही उस न्यायालय, समिति या प्राधिकारी के समक्ष जारी रहेगी।
16. (1) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए,—
(क) लोकपाल की अधिकारिता का प्रयोग उसकी न्यायपीठों द्वारा किया जा सकेगा;
(ख) कोई न्यायपीठ, अध्यक्ष, ऐसे दो या अधिक सदस्यों से, जो अध्यक्ष ठीक समझे, गठित की जा सकेंगी;
(ग) प्रत्येक न्यायपीठ में साधारणतया कम से कम एक न्यायिक सदस्य होगा;
(घ) जहाँ कोई न्यायपीठ, अध्यक्ष से मिलकर बनती है, वहाँ ऐसी न्यायपीठ की अध्यक्षता अध्यक्ष द्वारा की जाएगी;
(ङ) जहाँ कोई न्यायपीठ, न्यायिक सदस्य और ऐसे गैर-न्यायिक सदस्य से मिलकर बनती है जो अध्यक्ष नहीं है, वहाँ ऐसी न्यायपीठ की अध्यक्षता न्यायिक सदस्य द्वारा की जाएगी;
(च) लोकपाल की न्यायपीठें साधारणतया नई दिल्ली में और ऐसे अन्य स्थानों पर अधिविष्ट होंगी, जो लोकपाल, विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट करे।
(2) लोकपाल ऐसे क्षेत्रों को अधिसूचित करेगा जिनके संबंध में लोकपाल की प्रत्येक न्यायपीठ अधिकारिता का प्रयोग कर सकेंगी।
(3) उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी, अध्यक्ष को समय-समय पर न्यायपीठों का गठन या पुनर्गठन करने की शक्ति होगी।
(4) यदि किसी मामले या विषय की सुनवाई के किसी प्रक्रम पर अध्यक्ष या किसी सदस्य को यह प्रतीत होता है कि वह मामला या विषय ऐसी प्रकृति को है कि उसकी सुनवाई तीन या अधिक सदस्यों से मिलकर बनने वाली न्यायपीठ द्वारा की जानी चाहिए, तो उस मामले या विषय को अध्यक्ष द्वारा ऐसी न्यायपीठ को, जिसको अध्यक्ष ठीक समझे, यथास्थिति, अंतरेत किया जा सकेंगा या अंतरेत किए जाने के लिए उसकी निर्दिष्ट किया जा सकेंगा।## न्यायपीडों के बीच कार्य
का वितरण।
अध्यक्ष की मामले अंतर्गत करने की शक्ति।
बहुमत द्वारा विनिश्चय किया जाना।
शक्तियाँ और प्रारंभिक जांच तथा अन्वेषण से संबंधित उपबंध।
- जहां न्यायपीडें गठित की जाती हैं वहां अध्यक्ष, समय-समय पर, अधिसूचना द्वारा, न्यायपीडों के बीच लोकपाल के कार्यों का वितरण करने के बारे में उपबंध कर सकेगा और ऐसे विषयों के लिए भी उपबंध कर सकेगा, जिन पर प्रत्येक न्यायपीड द्वारा कार्रवाई की जा सकेगी।
- अध्यक्ष, शिकायतकर्ता या लोक सेवक द्वारा अंतरण के लिए किए गए किसी आवेदन पर, यथास्थिति, शिकायतकर्ता या लोक सेवक को सुनवाई का अवसर प्रदान करने के पश्चात्, एक न्यायपीड के समक्ष लंबित किसी मामले को निपटारे के लिए किसी अन्य न्यायपीड को अंतर्गत कर सकेगा।
- यदि समसंख्या में सदस्यों से मिलकर बनी किसी न्यायपीड के सदस्यों के बीच किसी प्रश्न पर मतभेद है तो वे उस प्रश्न या प्रश्नों का, जिन पर उनमें मतभेद है, कथन करेंगे और अध्यक्ष को निर्देश करेंगे, जो या तो स्वयं उस प्रश्न या उन प्रश्नों पर सुनवाई करेगा या लोकपाल के एक या अधिक अन्य सदस्यों द्वारा ऐसे प्रश्न या उन प्रश्नों पर सुनवाई के लिए मामले को निर्देशित करेगा और उस प्रश्न या उन प्रश्नों को लोकपाल के उन सदस्यों की बहुमत की राय के अनुसार विनिश्चित किया जाएगा, जिन्होंने मामले को सुनवाई की है, जिनके अंतर्गत वे सदस्य भी हैं, जिन्होंने उसकी पहले सुनवाई की थी।
अध्याय 7
प्रारंभिक जांच और अन्वेषण के संबंध में प्रक्रिया
- (1) लोकपाल, कोई शिकायत प्राप्त होने पर, यदि वह आगे कार्यवाही करने का विनिश्चय करता है तो वह-
(क) अपने जांच खंड या किसी अभिकरण (जिसके अंतर्गत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन भी है) द्वारा यह अभिनिश्चित करने के लिए कि क्या मामले में कार्यवाही के लिए कोई प्रथमदृष्ट्या मामला विद्यमान है, किसी लोक सेवक के विरुद्ध प्रारंभिक जांच करने का आदेश दे सकेगा; या
(ख) जहां कोई प्रथमदृष्ट्या मामला विद्यमान है, वहां किसी अभिकरण (जिसके अंतर्गत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन भी है) द्वारा अन्वेषण का आदेश दे सकेगा :
परंतु यदि लोकपाल ने, प्रारंभिक जांच में कार्यवाही करने का विनिश्चय किया है तो वह किसी साधारण या विशेष आदेश द्वारा, समूह ‘क’ या समूह ‘ख’ या समूह ‘ग’ या समूह ‘घ’ के लोक सेवकों के संबंध में उसके द्वारा प्राप्त की गई शिकायतों या शिकायतों के किसी प्रवर्ग या किसी शिकायत को केन्द्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 की धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन गठित केन्द्रीय सतर्कता आयोग को निर्दिष्ट करेगा :
परंतु यह और कि केन्द्रीय सतर्कता आयोग, पहले परंतुक के अधीन उसकी निर्दिष्ट की गई शिकायतों के संबंध में, समूह ‘क’ और समूह ‘ख’ के लोक सेवकों को बाबत प्रारंभिक जांच करने के पश्चात् उपधारा (2) और उपधारा (4) में अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार लोकपाल को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा और समूह ‘ग’ और समूह ‘घ’ के लोक सेवकों को दशा में आयोग केन्द्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही करेगा :
परंतु यह भी कि लोकपाल, खंड (ख) के अधीन किसी अन्वेषण का आदेश करने के पूर्व, लोक सेवक से स्पष्टीकरण मांगेगा जिससे यह अवधारण किया जा सके कि क्या अन्वेषण के लिए प्रथमदृष्ट्या मामला विद्यमान है :
परन्तु यह भी कि किसी अन्वेषण के पूर्व लोक सेवक से स्पष्टीकरण मांगना, इस अधिनियम के अधीन किसी अभिकरण (जिसके अन्तर्गत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन भी है) द्वारा की जाने के लिए अपेक्षित तलाशी और अभिग्रहण, यदि कोई हो, हस्तक्षेप नहीं होगा।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रारंभिक जांच के दौरान, जांच खंड या कोई अभिकरण (जिसके अंतर्गत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन भी है), लोक सेवक और सक्षम प्राधिकारी से शिकायत में किए गए अभिकथनों पर कोई प्रारंभिक जांच करेगा और संगृहीत सामग्री, सूचना और दस्तावेजों के आधार पर टिप्पणियां मांगेगा और संबंधित लोक सेवक तथा सक्षम प्राधिकारी से टिप्पणियां अभिप्राप्त करने के पश्चात्, निर्देश को प्राप्ति की तारीख से साढ़े दिन के भीतर, लोकपाल को रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
(3) लोकपाल के तीन से अन्दून सदस्यों से मिलकर बनने वाली एक न्यायपीड जांच खंड या किसी अभिकरण (जिसके अंतर्गत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन भी है) से उपधारा (2) के अधीन प्राप्तप्रत्येक रिपोर्ट पर विचार करेगी और लोक सेवक को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् यह विनिश्चित करेगी कि क्या प्रथमदृष्ट्या मामला बनता है और निम्नलिखित कार्रवाइयों में से एक या अधिक के संबंध में कार्यवाही करेगी, अर्थात्—
(क) यथास्थिति, किसी अभिकरण या दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन द्वारा अन्वेषण;
(ख) सक्षम प्राधिकारी द्वारा संबंधित लोक सेवकों के विरुद्ध विभागीय कार्यवाहियों का या किसी अन्य समुचित कार्रवाई का आरंभ किया जाना;
(ग) लोक सेवक के विरुद्ध कार्रवाइयों का बंद किया जाना और धारा 46 के अधीन शिकायतकर्ता के विरुद्ध कार्यवाही किया जाना।
(4) उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रत्येक प्रारंभिक जांच, साधारणतया, शिकायत की प्राप्ति की तारीख से नब्बे दिन की अवधि के भीतर और लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से नब्बे दिन की अतिरिक्त अवधि के भीतर पूरी की जाएगी।
(5) यदि लोकपाल, शिकायत का अन्वेषण करने की कार्यवाही करने का विनिश्चय करता है तो वह किसी अभिकरण (जिसके अंतर्गत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन भी है) को यथासंभव शीघ्रता के साथ अन्वेषण करने और अपने आदेश की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर अन्वेषण पूरा करने का निदेश देगा :
परंतु लोकपाल, लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से उक्त अवधि को एक बार में, छह मास से अनधिक की अतिरिक्त अवधि तक बढ़ा सकेंगा।
(6) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 173 में किसी बात के होते हुए भी, कोई अभिकरण (जिसके अंतर्गत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन भी है) लोकपाल द्वारा उसकी निर्दिष्ट किए गए मामलों के संबंध में उस धारा के अधीन अधिकारिता रखने वाले न्यायालय को अन्वेषण रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा और उसकी एक प्रति लोकपाल को अग्रेषित करेगा।
(7) लोकपाल के तीन से अन्दून सदस्यों से मिलकर बनने वाली एक न्यायपोड, उसके द्वारा उपधारा (6) के अधीन किसी अभिकरण (जिसके अंतर्गत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन भी है) से प्राप्त प्रत्येक रिपोर्ट पर विचार करेगी और सक्षम प्राधिकारी तथा लोक सेवक की टिप्पणियां अभिप्राप्त करने के पश्चात्—
(क) अपने अभियोजन खंड या अन्वेषण अभिकरण को लोक सेवक के विरुद्ध विशेष न्यायालय के समक्ष आरोप पत्र फाइल किए जाने की मंजूरी प्रदान कर सकेंगी या मामला बंद किए जाने की रिपोर्ट फाइल करने का निदेश दे सकेंगी;
(ख) सक्षम प्राधिकारी को संबंधित लोक सेवक के विरुद्ध विभागीय कार्यवाहियां या कोई अन्य समुचित कार्रवाई प्रारंभ किए जाने का निदेश दे सकेंगी।
(8) लोकपाल, आरोप पत्र फाइल किए जाने पर उपधारा (7) के अधीन कोई विनिश्चय करने के पश्चात्, अपने अभियोजन खंड या किसी अन्वेषण अभिकरण (जिसके अंतर्गत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन भी है) को, अभिकरण द्वारा अन्वेषण किए गए मामलों के संबंध में विशेष न्यायालय में अभियोजन आरंभ करने का निदेश दे सकेंगा।
(9) लोकपाल, यथास्थिति, प्रारंभिक जांच या अन्वेषण के दौरान, यथास्थिति, प्रारंभिक जांच या अन्वेषण से सुसंगत दस्तावेजों को सुरक्षित अभिरक्षा के लिए ऐसे समुचित आदेश पारित कर सकेंगा, जो वह ठीक समझे।
(10) लोकपाल की वेबसाइट पर समय-समय पर और ऐसी रीति से, जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, उसके समक्ष लंबित या उसके द्वारा निपटाई गई शिकायतों की संख्या को प्रास्थिति जनता के लिए प्रदर्शित की जाएगी।
(11) लोकपाल, ऐसे मूल अभिलेखों और साक्ष्यों को प्रतिधारित कर सकेंगा जिनके उसके द्वारा या विशेष न्यायालय द्वारा मामले की प्रारंभिक जांच या अन्वेषण या संचालन की प्रक्रिया में आवश्यकता पड़ने की संभावना है।(12) जैसा अन्यथा उपबंधित है, उसके सिवाय, इस अधिनियम के अधीन प्रारंभिक जांच या अन्वेषण करने (जिसके अंतर्गत लोक सेवक को उपलब्ध कराई जाने वाली ऐसी सामग्री और दस्तावेज भी है) की रीति और प्रक्रिया ऐसी होगी, जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए।
- यदि कार्यवाही के किसी प्रक्रम पर लोकपाल,—
(क) अभियुक्त से भिन्न किसी व्यक्ति के आचरण की जांच करना आवश्यक समझता है; या
(ख) की यह राय है कि अभियुक्त से भिन्न किसी व्यक्ति की ख्याति पर प्रारंभिक जांच से प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है,
तो लोकपाल, उस व्यक्ति को प्रारंभिक जांच में सुनवाई का और अपनी प्रतिरक्षा में साक्ष्य प्रस्तुत करने का नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों से संगत मुक्तियुक्त अवसर प्रदान करेगा।
- इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी प्रारंभिक जांच या अन्वेषण के प्रयोजन के लिए, यथास्थिति, लोकपाल या अन्वेषण अभिकरण, किसी लोक सेवक या किसी अन्य व्यक्ति से, जो उसकी राय में ऐसी प्रारंभिक जांच या अन्वेषण से सुसंगत सूचना देने या दस्तावेज प्रस्तुत करने में समर्थ है, ऐसी कोई सूचना देने या ऐसे दस्तावेज प्रस्तुत करने की अपेक्षा कर सकेगा।
-
(1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 197 या दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 की धारा 6क या भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 19 में किसी बात के होते हुए भी, लोकपाल की धारा 20 की उपधारा (7) के खंड (क) के अधीन अभियोजन के लिए मंजूरी देने की शक्ति होगी।
(2) किसी ऐसे लोक सेवक के विरुद्ध, जिस पर उसके द्वारा उसके शासकीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य करते हुए या तात्पर्यित रूप से कार्य करते हुए अभिकथित रूप से कोई अपराध करने का अभिकथन किया गया है, उपधारा (1) के अधीन कोई अभियोजन आरंभ नहीं किया जाएगा और कोई न्यायालय, लोकपाल की पूर्व मंजूरी के सिवाय ऐसे अपराध का संज्ञान नहीं लेगा।
(3) उपधारा (1) और उपधारा (2) में अंतर्विष्ट कोई बात, ऐसे व्यक्तियों के संबंध में, जो संविधान के उपबंधों के अनुसरण में पद धारण कर रहे हैं और जिनके संबंध में ऐसे व्यक्ति को हटाने की प्रक्रिया उसमें विनिर्दिष्ट की गई है, लागू नहीं होगी।
(4) उपधारा (1), उपधारा (2) और उपधारा (3) में अंतर्विष्ट उपबंध संविधान के अनुच्छेद 311 और अनुच्छेद 320 के खंड (3) के उपखंड (ग) में अंतर्विष्ट उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना होंगे।
- जहां अन्वेषण पूरा हो जाने के पश्चात्, लोकपाल के निष्कर्षों से धारा 14 की उपधारा (1) के खंड (क) या खंड (ख) या खंड (ग) में निर्दिष्ट किसी लोक सेवक द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अधीन किसी अपराध का किया जाना प्रकट होता है, वहां लोकपाल, विशेष न्यायालय में मामला फाइल कर सकेगा और अपने निष्कर्षों के साथ रिपोर्ट की एक प्रति सक्षम प्राधिकारी को भेजेगा।
अध्याय 8
लोकपाल की शक्तियां
1946 का 25
1988 का 49
लोकपाल की अधीक्षण संबंधी शक्तियां।
- (1) लोकपाल को, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 की धारा 4 और केन्द्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 की धारा 8 में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के अधीन दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन की लोकपाल द्वारा प्रारंभिक जांच या अन्वेषण के लिए निर्दिष्ट किए गए मामलों के संबंध में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन पर अधीक्षण करने और निदेश देने की शक्तियां होंगी।परंतु इस उपधारा के अधीन अधीक्षण या निर्देश देने की शक्तियों का प्रयोग करते हुए लोकपाल, ऐसी किसी रीति से शक्तियों का प्रयोग नहीं करेगा, जिससे किसी अभिकरण (जिसके अंतर्गत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन भी है) से, जिसको अन्वेषण कार्य सौंपा गया है, किसी मामले का किसी विशिष्ट रीति से अन्वेषण करने और उसकी निपटाने की अपेक्षा की जाए।
(2) केंद्रीय सतर्कता आयोग, धारा 20 की उपधारा (1) के दूसरे परंतुक के अधीन उसको निर्दिष्ट की गई शिकायतों पर की गई कार्रवाई के संबंध में लोकपाल को ऐसे अंतराल पर, जो लोकपाल निर्देश दे, विवरण भेजेगा और ऐसे विवरण को प्राप्त करने पर लोकपाल, ऐसे मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटान के लिए दिशा निर्देश जारी कर सकेगा।
(3) लोकपाल द्वारा दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन को निर्दिष्ट किसी मामले का अन्वेषण करने वाले उसके किसी अधिकारी को लोकपाल के अनुमोदन के बिना स्थानांतरित नहीं किया जाएगा।
(4) दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन, लोकपाल की सहमति से लोकपाल द्वारा उसको निर्दिष्ट मामलों का संचालन करने के लिए, सरकारी अधिक्ताओं से भिन्न अधिक्ताओं के एक पैनल को नियुक्ति कर सकेगा।
(5) केन्द्रीय सरकार, समय-समय पर ऐसी निधियां उपलब्ध कराएगी जिसकी दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन के निर्देशक द्वारा, उसकी लोकपाल द्वारा निर्दिष्ट मामलों का प्रभावी अन्वेषण करने के लिए अपेक्षा की जाए और निर्देशक ऐसे अन्वेषण के संचालन में उपगत व्यय के लिए उत्तरदायी होगा। - (1) यदि लोकपाल के पास यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसा कोई दस्तावेज, जो उसकी राय में, इस अधिनियम के अधीन किसी अन्वेषण के लिए उपयोगी या उससे सुसंगत होगा, किसी स्थान में छिपाया गया है तो वह ऐसे किसी अभिकरण (जिसके अंतर्गत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन भी है) को, जिसको अन्वेषण कार्य सौंपा गया है, ऐसे दस्तावेजों की तलाशी लेने और उनका अभिग्रहण करने के लिए प्राधिकृत कर सकेगा।
(2) यदि लोकपाल का यह समाधान हो जाता है कि उपधारा (1) के अधीन अभिगृहीत किसी दस्तावेज का इस अधिनियम के अधीन किसी अन्वेषण के प्रयोजन के लिए साक्ष्य के रूप में प्रयोग किया जा सकता है और यह कि ऐसे दस्तावेज को उसकी अभिरक्षा में या ऐसे अधिकारी की अभिरक्षा में, जिसको प्राधिकृत किया जाए, प्रतिधारित करना आवश्यक होगा तो वह ऐसा अन्वेषण पूरा हो जाने तक ऐसे दस्तावेज को इस प्रकार प्रतिधारित करेगा या ऐसे प्राधिकृत अधिकारी को, प्रतिधारित करने का निर्देश दे सकेगा :
परंतु जहां किसी दस्तावेज को वापस किया जाना अपेक्षित है, वहां लोकपाल या प्राधिकृत अधिकारी, ऐसे दस्तावेज की सम्यक्, रूप से अधिप्रमाणित प्रतियों को प्रतिधारित करने के पश्चात् उसको वापस कर सकेगा।
27. (1) इस धारा के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी प्रारंभिक जांच के प्रयोजन के लिए लोकपाल के जांच खंड को किसी, बाद का विचारण करते समय निम्नलिखित विषयों के संबंध में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अधीन सिविल न्यायालय को सभी शक्तियां होंगी, अर्थात्:-
(i) किसी व्यक्ति को समन करना और उसकी हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
(ii) किसी दस्तावेज के प्रकटोकरण और पेश किए जाने को अपेक्षा करना;
(iii) शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;
(iv) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अध्यपेक्षा करना;
(v) साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना :
परंतु किसी साक्षी की दशा में ऐसा कमीशन केवल वहां निकाला जाएगा, जहां लोकपाल को राय में साक्षी, लोकपाल के समक्ष कार्यवाहियों में हाजिर होने की स्थिति में नहीं है; और
(vi) ऐसे अन्य विषय, जो विहित किए जाएं।(2) लोकपाल के समक्ष कोई कार्यवाही, भारतीय दंड संहिता की धारा 193 के अर्थातर्गत न्यायिक कार्यवाही समझे जाएगी।
28. (1) लोकपाल, कोई प्रारंभिक जांच या अन्वेषण करने के प्रयोजन के लिए, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार के किसी अधिकारी या संगठन या अन्वेषण अभिकरण की सेवाओं का उपयोग कर सक्रेगा।
(2) ऐसी जांच या अन्वेषण से संबंधित किसी मामले में प्रारंभिक जांच या अन्वेषण करने के प्रयोजन के लिए, ऐसा कोई अधिकारी या संगठन या अभिकरण, जिसकी सेवाओं का उपयोग उपधारा (1) के अधीन किया जाता है, लोकपाल के अधीक्षण और निर्देशन के अधीन रहते हुए-
(क) किसी व्यक्ति को समन कर सक्रेगा और हाजिर करा सक्रेगा तथा उसकी परीक्षा कर सक्रेगा;
(ख) किसी दस्तावेज के प्रकटीकरण और पेश किए जाने की अपेक्षा कर सक्रेगा; और
(ग) किसी कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अध्यपेक्षा कर सक्रेगा।
(3) वह अधिकारी या संगठन या अभिकरण, जिसकी सेवाओं का उपयोग उपधारा (2) के अधीन किया जाता है, प्रारंभिक जांच या अन्वेषण से संबंधित किसी मामले की, यथास्थिति, जांच या अन्वेषण करेगा और लोकपाल को, ऐसी अवधि के भीतर, जो इस निमित्त उसके द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, उस पर रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
29. (1) जहां लोकपाल या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अधिकारी के पास, उसके कब्जे में की सामग्री के आधार पर यह विश्वास करने का, ऐसे विश्वास के कारण को लेखबद्ध किया जाएगा, कारण है कि-
(क) किसी व्यक्ति के कब्जे में भ्रष्टाचार के कोई आगम हैं;
(ख) ऐसा व्यक्ति भ्रष्टाचार से संबंधित कोई अपराध करने का अभिमुक्त है; और
(ग) अपराध के ऐसे आगमों को छिपाने, अंतरित करने या ऐसी रीति से संव्यवहार किए जाने की संभावना है, जिसके परिणामस्वरूप अपराध के ऐसे आगमों के अधिहरण से संबंधित कोई कार्यवाहियां विफल हो सकती हैं,
वहां लोकपाल या प्राधिकृत अधिकारी, लिखित आदेश द्वारा ऐसी संपत्ति को, ऐसे आदेश को तारीख से नब्बे दिन से अनधिक अवधि के लिए आय-कर अधिनियम, 1961 की दूसरी अनुसूची में उपबंधित रीति से, अनंतिम रूप से कुर्क कर सक्रेगा और लोकपाल तथा अधिकारी को उस अनुसूची के नियम 1 के उपनियम (ङ) के अधीन अधिकारी समझा जाएगा।
(2) लोकपाल या इस निमित्त प्राधिकृत अधिकारी, उपधारा (1) के अधीन कुर्की के ठीक पश्चात् आदेश को एक प्रति, उस उपधारा में निर्दिष्ट उसके कब्जे में की सामग्री सहित, एक मुद्दरबंद लिफाफे में ऐसी रीति से, जो विहित की जाए, विशेष न्यायालय को अग्रेषित करेगा और ऐसा न्यायालय कुर्की के आदेश को विस्तारित कर सक्रेगा और ऐसी सामग्री को ऐसी अवधि के लिए, जो न्यायालय ठीक समझे, रख सक्रेगा।
(3) उपधारा (1) के अधीन किया गया कुर्की का प्रत्येक आदेश, उस उपधारा में विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति के पश्चात् या उपधारा (2) के अधीन विशेष न्यायालय द्वारा यथानिर्देशित अवधि की समाप्ति के पश्चात् प्रभावहीन हो जाएगा।
(4) इस धारा को कोई बात, उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन कुर्क की गई स्थावर संपत्ति के उपभोग में हितबद्ध किसी व्यक्ति को ऐसे उपभोग से निवारित नहीं करेगी।
स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, किसी स्थावर संपत्ति के संबंध में “हितबद्ध व्यक्ति” के अंतर्गत संपत्ति में किसी हित का दावा करने वाले या दावा करने के हकदार सभी व्यक्ति हैं।30. (1) लोकपाल, जब वह धाग 29 की उपधाग (1) के अधीन किसी संपत्ति को अनुंलि रूप से कुर्क करता है, ऐसी कुर्कों की तीस दिन की अवधि के भीतर अपने अभियोजन खंड को विशेष न्यायालय के समक्ष ऐसी कुर्कों के तथ्यों का कथन करते हुए आवेदन फाइल करने तथा विशेष न्यायालय में लोक सेवक के विरुद्ध कार्यवाहियों के पूर होने तक संपत्ति की कुर्कों की पुष्टि के लिए प्रार्थना करने का विदेश देगा।
(2) विशेष न्यायालय, यदि उसकी यह राय है कि अनंतिम रूप से कुर्क की गई संपत्ति का अर्जन भ्रष्ट साधनों से किया गया है, तो विशेष न्यायालय में लोक सेवक के विरुद्ध कार्यवाहियों के पूर होने तक ऐसी संपत्ति की कुर्कों की पुष्टि के लिए आदेश कर सकेगा।
(3) यदि लोक सेवक को तत्पश्चात् उसके विरुद्ध विरचित आरोपों से दोषमुक्त कर दिया जाता है तो विशेष न्यायालय के आदेशों के अधीन रहते हुए संपत्ति को, ऐसी संपत्ति से फायदी सहित, जो कुर्कों की अवधि के दौरान प्रोद्भूत हुए हों, संबंधित लोक सेवक को प्रत्यावर्तित किया जाएगा।
(4) यदि लोक सेवक को तत्पश्चात्, भ्रष्टाचार के आरोपों के लिए सिद्धदोष ठहराया जाता है तो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अधीन अपराध से संबंधित आगमों को अधिक्रत किया जाएगा और केन्द्रीय सरकार में किसी बैंक या वित्तीय संस्था को किसी शोध्य ऋण को छोड़कर किसी विल्लंगम या पद्द्यधुति हित से मुक्त रूप में निहित होंगे।
स्मथ्वीकरण-इस उपधाग के प्रयोजनों के लिए, “बैंक”, “ऋण” और “वित्तीय संस्था” पर्दों के वही अर्थ होंगे जो बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को शोध्य ऋण वसूली अधिनियम, 1993 की धाग 2 के खंड (घ), खंड (छ) और खंड (ज) में हैं।
31. (1) धाग 29 और धाग 30 के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, जहां विशेष न्यायालय के पास, प्रथमदृष्ट्या साक्ष्य के आधार पर, यह विश्वास करने का कारण है या उसका यह समाधान हो गया है कि आस्तियों, आगम, प्राप्तियों और फायदे, चाहे किसी भी नाम से ज्ञात हो, लोक सेवक द्वारा भ्रष्टाचार के साधनों द्वारा उद्भूत या उपाप्त किए गए हैं, वहां वह उसके दोषमुक्त किए जाने तक ऐसी आस्तियों, आगमों, प्राप्तियों और फायदों के अधिकरण को प्राधिकृत कर सकेगा।
(2) जहां उपधाग (1) के अधीन किया गया अधिकरण का कोई आदेश, उच्च न्यायालय द्वारा उपांतरित या बातिल कर दिया जाता है या जहां लोक सेवक को विशेष न्यायालय द्वारा दोषमुक्त कर दिया जाता है, वहां उपधाग (1) के अधीन अधिक्रत आस्तियों, आगमों, प्राप्तियों और फायदों को ऐसे लोक सेवक को वापस कर दिया जाएगा और यदि किसी कारण से आस्तियों, आगमों, प्राप्तियों और फायदों को वापस किया जाना संभव नहीं है तो ऐसे लोक सेवक को इस प्रकार अधिक्रत किए गए धन सहित उसकी कीमत का, अधिकरण को तारीख से उस पर पांच प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से परिकलित ब्याज के साथ संदाय किया जाएगा।
32. (1) जहां लोकपाल का, भ्रष्टाचार के अभिकथनों की प्रारंभिक जांच करते समय, उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर प्रथमदृष्ट्या यह समाधान हो जाता है, कि-
(i) प्रारंभिक जांच करते समय धाग 14 की उपधाग (1) के खंड (घ) या खंड (ङ) या खंड (च) में निर्दिष्ट लोक सेवक के अपने पद पर बने रहने से ऐसी प्रारंभिक जांच पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है; या
(ii) ऐसे लोक सेवक से साक्ष्य को नष्ट करने या किसी रूप में बिगाड़ने या साक्षियों को प्रभावित करने की संभावना है,
वहां, लोकपाल, ऐसे लोक सेवक को, ऐसी अवधि तक, जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, उसके द्वारा धारित पद से स्थानांतरित या विलंबित करने के लिए केन्द्रीय सरकार को सिफारिश कर सकेगा।
(2) केन्द्रीय सरकार, सामान्यतया, उपधाग (1) के अधीन की गई लोकपाल की सिफारिश को, ऐसे किसी मामले में जहां प्रशासनिक कारणों से ऐसा करना साध्य नहीं है, वहां कारणों को लेखबद्ध करते हुए, स्वीकार करेगी, अन्यथा नहीं।
आस्तियों की कुर्कों को पुष्टि।
विशेष परिस्थितियों में भ्रष्टाचार के साधनों द्वारा उद्भूत या उपाप्त आस्तियों, आगमों, प्राप्तियों और फायदों का अधिकरण।
भ्रष्टाचार के अभिकथन से संबद्ध लोक सेवक के स्थानांतरण या विलंबन की सिफारिश करने की लोकपाल की शक्ति।प्रारंभिक जांच के दौरान अभिलेखों के नष्ट किए जाने को रोकने के लिए निदेश देने की लोकपाल को शक्ति।
प्रत्ययोजन को शक्ति।
कन्दीय सरकार द्वारा विशेष न्यायालयी को गठित किया जायं।
कतिपय मामलों में संविदाकारी राज्य को अनुरोध पत्र।
- लोकपाल, इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के निर्वहन में किसी ऐसे लोक सेवक को, जिसको किसी दस्तावेज या अभिलेख को तैयार करने या उसको अभिरक्षा रखने का कार्य सौंपा गया है, निम्नलिखित के लिए समुचित निदेश जारी कर सकेगा-
(क) ऐसे दस्तावेज या अभिलेख को नष्ट किए जाने या नुकसान पहुंचाने से उसको संरक्षा करना; या
(ख) लोक सेवक को ऐसे दस्तावेज या अभिलेख में परिवर्तन करने या उसे छिपाने से रोकना; या
(ग) लोक सेवक को भ्रष्ट साधनों के माध्यम से उसक द्वारा अभिकथित रूप से अर्जित किन्हों आस्तियों को अंतरित करने या उनका अन्यसंक्रमित करने से रोकना। - लोकपाल, साधारण या विशेष लिखित, आदेश द्वारा और ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो उसमें विनिर्दिष्ट को जाएं, यह निदेश दे सकेगा कि उसको प्रदत्त किसी प्रशासनिक या वित्तीय शक्ति का, उसकें ऐसे सदस्यों या अधिकारियों या कर्मचारियों द्वारा भी, जो उस आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, प्रयोग या निर्वहन किया जा सकेगा।
अध्याय 9
विशेष न्यायालय
- (1) केन्द्रीय सरकार, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 या इस अधिनियम के अधीन उद्भूत मामलों को सुनवाई और उनका विनिश्चय करने के लिए उतने विशेष न्यायालयीं का गठन करेगी, जितने लोकपाल द्वारा सिफारिश किए जाएं।
(2) उपधारा (1) के अधीन गठित विशेष न्यायालय, न्यायालय में मामले के फाइल किए जाने को तारीख से एक वर्ष को अवधि के भीतर प्रत्येक विचारण का पूरा किया जाना सुनिश्चित करेंगे।
परंतु यदि विचारण एक वर्ष की अवधि के भीतर पूरा नहीं किया जा सकता है तो विशेष न्यायालय उसकें कारणों को अभिलिखित करेगा और उन कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएं तीन मांस से अनधिक को और अवधि के भीतर या ऐसी और अवधियों के भीतर जो तीन मांस से अधिक को नहीं होंगी, ऐसी प्रत्येक तीन मांस को अवधि को समाप्ति से पूर्व, किन्तु दो वर्ष से अनधिक को कुल अवधि के भीतर विचारण को पूरा करेगा।
- (1) इस अधिनियम या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में किसी बात के होते हुए भी, यदि, इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध या अन्य कार्यवाही में किसी प्रारंभिक जांच या अन्वेषण के अनुक्रम में, इस निमित्त लोकपाल के प्राधिकृत अधिकारी द्वारा विशेष न्यायालय को यह आवेदन किया जाता है कि इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध या कार्यवाही में प्रारंभिक जांच या अन्वेषण करने के संबंध में कोई साक्ष्य अपेक्षित है और उसको यह राय है कि ऐसा साक्ष्य संविदाकारी राज्य में किसी स्थान पर उपलब्ध हो सकेगा और विशेष न्यायालय, यह समाधान हो जाने पर कि ऐसा साक्ष्य इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध या कार्यवाही में प्रारंभिक जांच या अन्वेषण के संबंध में अपेक्षित है, एक अनुरोध पत्र, निम्नलिखित के लिए ऐसे अनुरोध पर कार्यवाही करने के लिए संविदाकारी राज्य में किसी सक्षम न्यायालय या प्राधिकारी को जारी कर सकेगा,-
(i) मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को परीक्षा करना;
(ii) ऐसे उपाय क्र्ना, जो विशेष न्यायालय ऐसे अनुरोध पत्र में विनिर्दिष्ट करे; और
(iii) ऐसे लिए गए या संगृहीत किए गए सभी साक्ष्यों को, ऐसा अनुरोध पत्र जारी करने वाले विशेष न्यायालय को अग्रेषित करना।
(2) अनुरोध पत्र, ऐसी रीति से परिचित किया जाएगा, जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त विहित करे।
(3) उपधारा (1) के अधीन अभिलिखित प्रत्येक कथन या प्राप्त दस्तावेज या चीज को प्रारंभिक जांच या अन्वेषण के दौरान संगृहीत साक्ष्य समझा जाएगा।अध्याय 10
लोकपाल के अध्यक्ष, सदस्यों और पदधारियों के विरुद्ध शिकायतें - (1) लोकपाल, अध्यक्ष या किसी सदस्य के विरुद्ध की गई किसी शिकायत की जांच नहीं करेगा।
(2) उपधारा (4) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अध्यक्ष या किसी सदस्य को, उच्चतम न्यायालय को संसद् के कम से कम एक सौ सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित याचिका पर राष्ट्रपति द्वारा, किए गए निर्देश पर, उस निमित्त विहित प्रक्रिया के अनुसार को गई किसी जांच पर, उसके द्वारा ऐसी रिपोर्ट दिए जाने के पश्चात् कि, यथास्थिति, अध्यक्ष या ऐसे सदस्य को कदाचार के आधार पर हठ दिया जाना चाहिए, राष्ट्रपति के आदेश द्वारा, उस आधार पर उसके पद से हठाया जाएगा।
(3) राष्ट्रपति, ऐसे अध्यक्ष या किसी सदस्य को, जिसके संबंध में उपधारा (2) के अधीन उच्चतम न्यायालय को कोई निर्देश किया गया है, उच्चतम न्यायालय द्वारा इस संबंध में की गई सिफारिश या किए गए अंतरिम आदेश को प्राप्ति पर पद से तब तक के लिए निर्लेक्षित कर सकेगा जब तक राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय के ऐसे निर्देश पर अंतिम रिपोर्ट को प्राप्ति पर आदेश पारित न कर दिए गए हों।
(4) उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति, आदेश द्वारा, अध्यक्ष या किसी सदस्य को पद से हठ सकेगा, यदि, यथास्थिति, अध्यक्ष या ऐसा सदस्य,-
(क) दिवालिया न्यायनिर्वित किया जाता है; या
(ख) अपनी पदावधि के दौरान अपने पद के कर्तव्यों से परे किसी वैतनिक नियोजन में लगता है; या
(ग) राष्ट्रपति की राय में मानसिक या शारीरिक शैचिल्य के कारण पद पर बने रहने के लिए अयोग्य है।
(5) यदि अध्यक्ष या कोई सदस्य, निगमित कंपनी के सदस्य के रूप में और कंपनी के अन्य सदस्यों के साथ सम्मिलित रूप में अन्यथा भारत सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा या उसकी और से की गई किसी संविदा या करार में किसी रूप से संपृक्त या हितबद्ध है या हो जाता है या वह किसी रूप में उसके लाभ या उससे उद्धृत किसी फायदे या उपलब्धि में भाग लेता है तो उपधारा (2) के प्रयोजनों के लिए कदाचार का दोषी समझा जाएगा। - (1) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए लोकपाल के अधीन या उससे सहयुक्त किसी अधिकारी या कर्मचारी या अभिकरण (जिसके अंतर्गत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन भी है) के विरुद्ध किए गए अभिकथन या दोषपूर्ण कार्य के संबंध में प्रत्येक शिकायत पर इस धारा के उपबंधों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी।
(2) लोकपाल, शिकायत या अभिकथन की जांच, उसकी प्राप्ति की तारीख से तीस दिन की अवधि के भीतर पूरी करेगा।
(3) लोकपाल अथवा लोकपाल में नियुक्त या उससे सहयुक्त अभिकरण के किसी अधिकारी या कर्मचारी के विरुद्ध शिकायत की जांच करते समय यदि, उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर उसका प्रथमदृष्ट्या यह समाधान हो जाता है, कि-
(क) जांच करते समय लोकपाल या उसमें नियुक्त या उससे सहयुक्त अभिकरण के ऐसे अधिकारी या कर्मचारी के अपने पद पर बने रहने से ऐसी जांच पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है; या
(ख) लोकपाल या उसमें नियुक्त या उससे सहयुक्त अभिकरण के किसी अधिकारी या कर्मचारी द्वारा साक्ष्य को नष्ट करने या किसी रूप में बिगाड़ने या साक्षियों को प्रभावित करने की संभावना है,
लोकपाल के पदधिकारियों के विरुद्ध शिकायतें।तो लोकपाल, आदेश द्वारा, लोकपाल के ऐसे अधिकारी या कर्मचारी को निर्वहित कर सकेगा या लोकपाल में नियुक्त या उससे सहयुक्त ऐसे अभिकरण को उसके द्वारा इससे पूर्व प्रयोग की गई सभी शक्तियों और उत्तरदायित्वों से निर्वहित कर सकेगा।
(4) जांच के पूरा हो जाने पर, यदि लोकपाल का यह समाधान हो जाता है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अधीन किसी अपराध या किसी दोषपूर्ण कार्य के लिए जाने का प्रथमदृष्टया साक्ष्य है, तो वह ऐसी जांच के पूरा हो जाने की पंद्रह दिन की अवधि के भीतर लोकपाल के ऐसे अधिकारी या कर्मचारी या लोकपाल में नियुक्त या उससे सहयुक्त ऐसे अधिकारी, कर्मचारी, अभिकरण को अभियोजित करने का आदेश करेगा और संबंधित पदधारी के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाहियां आरंभ करेगा।
परंतु ऐसा कोई आदेश, लोकपाल के ऐसे अधिकारी या कर्मचारी या उसमें नियुक्त या उससे सहयुक्त ऐसे अधिकारी, कर्मचारी, अभिकरण को सुने जाने का युक्तियुक्त अवसर दिए बिना पारित नहीं किया जाएगा।
अध्याय 11
विशेष न्यायालय द्वारा हानि का निर्धारण और उसकी वसूली
1988 का 49
विशेष न्यायालय द्वारा हानि का निर्धारण और उसकी वसूली।
- यदि कोई लोक सेवक, विशेष न्यायालय द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अधीन किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया जाता है, तो तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के होते हुए भी और उस पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, वह, ऐसे लोक सेवक द्वारा सदभावपूर्वक न किए गए कार्यों या विनिश्चयों के कारण और जिनके लिए उसकी सिद्धदोष ठहराया गया है, राजकोष को हुई हानि का, यदि कोई हो, निर्धारण कर सकेगा तथा इस प्रकार सिद्धदोष ठहराए गए ऐसे लोक सेवक से, ऐसी हानि की, यदि संभव या परिमाणीय हो, वसूली का आदेश कर सकेगा।
परंतु यदि विशेष न्यायालय, उन कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएं, इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि काव्य हानि, इस प्रकार सिद्धदोष ठहराए गए लोक सेवक के कार्यों या विनिश्चयों के हिताधिकारी या हिताधिकारियों के साथ षट्यंत्र के अनुसरण में हुई थी, तो ऐसी हानि, यदि इस धारा के अधीन निर्धारित की गई है और परिमाणीय है, आनुपातिक रूप से ऐसे हिताधिकारी या हिताधिकारियों से भी वसूल की जा सकेगी।
अध्याय 12
वित्त, लेखा और संपरीक्षा
- लोकपाल, प्रत्येक वित्तीय वर्ष में ऐसे प्ररूप में और ऐसे समय पर, जो विहित किए जाएं, अगले वित्तीय वर्ष के लिए, लोकपाल को प्राक्कलित प्राप्तियों और व्यय को दर्शाते हुए अपना बजट तैयार करेगा और उसकी केन्द्रीय सरकार को सूचनार्थ अप्रेषित करेगा।
-
केन्द्रीय सरकार, इस निमित्त विधि द्वारा, संसद् द्वारा किए गए सम्यक, विनियोग के पश्चात्, लोकपाल को ऐसी धनराशियां अनुदत्त कर सकेगी, जो अध्यक्ष और सदस्यों को संदेश वेतन तथा भत्तों और प्रशासनिक खर्चों के लिए, जिनके अंतर्गत लोकपाल के अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों को या उनके संबंध में संदेश वेतन और भत्ते तथा पेंशन भी हैं, संदेश की जानी अपेक्षित है।
-
(1) लोकपाल, उचित लेखा और अन्य सुसंगत अभिलेख रखेगा और ऐसे प्ररूप में, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के परामर्श से विहित किया जाए, लेखाओं का वार्षिक विवरण तैयार करेगा।
(2) लोकपाल के लेखाओं की संपरीक्षा, भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा ऐसे अंतरालों पर की जाएगी, जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं।
(3) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को इस अधिनियम के अधीन लोकपाल के लेखाओं की संपरीक्षा करने के संबंध में या उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति को ऐसी संपरीक्षा के संबंध में वही अधिकार, विशेषाधिकार और प्राधिकार प्राप्त होंगे, जो सरकारी लेखाओं की संपरीक्षा के संबंध में साधारणतया भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को प्राप्त हैं और विशिष्टतया बहिर्गी, लेखाओं, संबंधितवाउचरों और अन्य दस्तावेजों तथा कागजपत्रों को प्रस्तुत करने की मांग करने और लोकपाल के किसी भी कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार प्राप्त होगा।
(4) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा यथाप्रमाणित लोकपाल के लेखाओं को, उन पर संपरीक्षा रिपोर्ट सहित, प्रतिवर्ष केन्द्रीय सरकार को अग्रेषित किया जाएगा और केन्द्रीय सरकार उसको संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी।
43. लोकपाल, केन्द्रीय सरकार को ऐसी विवरणियां और विवरण तथा लोकपाल की अधिकारिता के अधीन किसी विषय के संबंध में ऐसी विशिष्टियां, जिनकी केन्द्रीय सरकार समय-समय पर अपेक्षा करे, ऐसे समय पर और ऐसे प्ररूप तथा रीति से, जो विहित की जाए या जैसा केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुरोध किया जाए, प्रस्तुत करेगा।
अध्याय 13
आस्तियों की घोषणा
44. (1) प्रत्येक लोक सेवक, इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन यथा उपबंधित रीति से अपनी आस्तियों और दायित्वों की घोषणा करेगा।
(2) कोई लोक सेवक, उस तारीख से, जिसको वह अपना पदग्रहण करने के लिए शपथ लेता है या प्रतिज्ञान करता है, तीस दिन की अवधि के भीतर सक्षम प्राधिकारी को निम्नलिखित के संबंध में सूचना देगा,-
(क) ऐसी आस्तियां, जिनका वह, उसका पति या पत्नी और उसके आश्रित बालक, संयुक्ततः या पृथक्तः, स्वामी या हिताधिकारी हैं;
(ख) अपने और अपने पति या पत्नी तथा अपने आश्रित बालकों के दायित्व।
(3) इस अधिनियम के प्रारंभ के समय, उस रूप में अपना पद धारण करने वाला कोई लोक सेवक, इस अधिनियम के प्रवृत्त होने के तीस दिन के भीतर सक्षम प्राधिकारी को उपधारा (2) में यथानिर्दिष्ट ऐसी आस्तियों और दायित्वों से संबंधित सूचना देगा।
(4) प्रत्येक लोक सेवक, प्रत्येक वर्ष की 31 जुलाई को या उससे पूर्व उस वर्ष की 31 मार्च तक, उपधारा (2) में यथानिर्दिष्ट ऐसी आस्तियों और दायित्वों की वार्षिक विवरणी सक्षम प्राधिकारी के पास फाइल करेगा।
(5) उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन सूचना और उपधारा (4) के अधीन वार्षिक विवरणी, सक्षम प्राधिकारी को ऐसे प्ररूप में और ऐसी रीति से, जो विहित की जाए, प्रस्तुत की जाएगी।
(6) सक्षम प्राधिकारी, प्रत्येक कार्यालय या विभाग के संबंध में यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसे सभी विवरण उस वर्ष की 31 अगस्त तक ऐसे मंत्रालय या विभाग की वेबसाइट पर प्रकाशित कर दिए गए हैं।
स्मथ्योकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए ” आश्रित बालक” से ऐसे पुत्र और पुत्रियां अभिप्रेत हैं, जिनके पास उपार्जन के कोई पृथक् साधन नहीं हैं और अपनी जीविका के लिए पूर्णतः लोक सेवक पर आश्रित हैं।
45. यदि कोई लोक सेवक जानबूझकर या ऐसे कारणों से जो न्यायोचित नहीं हैं,—
(क) अपनी आस्तियों की घोषणा करने में असफल रहता है; या
(ख) ऐसी आस्तियों की बाबत भ्रामक सूचना देता है और उसके कब्जे में ऐसी आस्तियां पाई जाती हैं जिनका प्रकटन नहीं किया गया है या जिनकी बाबत भ्रामक सूचना दी गई थी, तो ऐसी आस्तियों के बारे में, जब तक अन्यथा साबित न हो जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि वे लोक सेवक की हैं और यह उपधारणा की जाएगी कि वे भ्रष्ट साधनों द्वारा अर्जित की गई हैं :
परंतु सक्षम प्राधिकारी, लोक सेवक को ऐसा न्यूनतम मूल्य, जो विहित किया जाए, से अनधिक की आस्तियों को बाबत सूचना देने से माफी दे सकेगा या छूट प्रदान कर सकेगा।# अध्याय 14
अपराध और शास्तियां
मिथ्या शिकायत के लिए अभियोजन और लोक सेवक को प्रतिकर आदि का संदाय।
सोसाइटी या व्यक्तियों के संगम या न्यास द्वारा मिथ्या शिकायत किया जाना।
- (1) इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, जो कोई इस अधिनियम के अधीन कोई मिथ्या और तुच्छ या तंग करने वाली शिकायत करेगा, वह दोषसिद्धि पर, कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडित किया जाएगा।
(2) किसी विशेष न्यायालय के सिवाय, कोई भी न्यायालय उपधारा (1) के अधीन किसी अपराध का संज्ञान नहीं करेगा।
(3) कोई भी विशेष न्यायालय, किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसके विरुद्ध मिथ्या, तुच्छ या तंग करने वाली शिकायत की गई थी, या लोकपाल द्वारा प्राधिकृत किसी अधिकारी द्वारा शिकायत किए जाने पर उपधारा (1) के अधीन किसी अपराध का संज्ञान लेगा अन्यथा नहीं।
(4) उपधारा (1) के अधीन किसी अपराध के संबंध में अभियोजन, लोक अभियोजक द्वारा किया जाएगा और ऐसे अभियोजन से संबंधित सभी व्ययों को केन्द्रीय सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
(5) ऐसे किसी व्यक्ति को [जो कोई व्यष्टि या सोसाइटी या व्यक्ति-संगम या न्यास है (चाहे वह रजिस्ट्रीकृत है अथवा नहीं)], इस अधिनियम के अधीन मिथ्या शिकायत करने के लिए, दोषसिद्धि की दशा में, ऐसा व्यक्ति, ऐसे लोक सेवक को, जिसके विरुद्ध उसने मिथ्या शिकायत की थी, ऐसे लोक सेवक द्वारा मुकदमा लड़ने संबंधी विधिक व्ययों के अतिरिक्त, जो विशेष न्यायालय अवधारित करे प्रतिकर का संदाय करने के लिए दायी होगा।
(6) इस धारा में अंतर्विष्ट कोई बात, सद्भावपूर्वक की गई शिकायतों की दशा में लागू नहीं होगी।
स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजन के लिए, “सद्भावपूर्वक” पद से भारतीय दंड संहिता की धारा 79 के अधीन सम्यक् सतर्कता, सावधानी और उत्तरदायित्व के भाव से सद्भावपूर्वक या तथ्य की भूल से अपने को विधि द्वारा न्यायानुमत होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा विश्वास किया गया या किया गया कोई कार्य अभिप्रेत है।
47. (1) जहां धारा 46 की उपधारा (1) के अधीन कोई अपराध किसी सोसाइटी या व्यक्तियों के संगम या न्यास (चाहे वह रजिस्ट्रीकृत है अथवा नहीं) द्वारा किया गया है, वहां ऐसा प्रत्येक व्यक्ति, जो अपराध के किए जाने के समय ऐसी सोसाइटी या व्यक्तियों के संगम या न्यास के कारोबार या कार्यों या क्रियाकलापों के संचालन के लिए उस सोसाइटी या व्यक्तियों के संगम या न्यास का प्रत्यक्ष रूप से भारसाधक या उत्तरदायी था और साथ ही ऐसी सोसाइटी या व्यक्तियों का संगम या न्यास भी, ऐसे अपराध के दोषी समझे जाएंगे और तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने के भागी होंगे :
परंतु इस उपधारा की कोई बात ऐसे किसी व्यक्ति को इस अधिनियम में उपबंधित किसी दंड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध के किए जाने का निवारण करने के लिए सभी सम्यक् तत्परता बरती थी।
(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध, किसी सोसाइटी या व्यक्तियों के संगम या न्यास (चाहे वह रजिस्ट्रीकृत है अथवा नहीं) द्वारा किया गया है और यह साबित हो जाता है कि वह अपराध, ऐसी सोसाइटी या व्यक्तियों के संगम या न्यास के किसी निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी को सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उस अपराध का किया जाना उसकी किसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है वहां ऐसा निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने का भागी होगा।अध्याय 15
प्रकीर्ण
48. लोकपाल का यह कर्तव्य होगा कि वह लोकपाल द्वारा किए गए कार्य के संबंध में एक रिपोर्ट प्रतिवर्ष राष्ट्रपति को प्रस्तुत करे और राष्ट्रपति, ऐसी रिपोर्ट के प्राप्त होने पर उसको एक प्रति, ऐसे मामलों के संबंध में, यदि कोई ही, जहां लोकपाल की सलाह को स्वीकार नहीं किया गया था, वहां ऐसी अस्वीकृति के कारण सहित एक स्पष्टीकारक ज्ञापन सहित संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा।
49. लोकपाल, ऐसे मामलों में, जहां विनिश्चय में, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अधीन भ्रष्टाचार के निष्कर्ष अंतर्विष्ट हैं, किसी लोक प्राधिकारी द्वारा लोक सेवाओं के परिदान और लोक शिकायतों के निवारण का उपबंध करने वाली तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि से उद्भूत होने वाली अपीलों के संबंध में अंतिम अपील प्राधिकारी के रूप में कार्य करेगा।
50. इस अधिनियम के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या उसके पदीय कृत्यों के निर्वहन में या उसकी शक्तियों के प्रयोग में किए जाने के लिए आशयित किसी बात के संबंध में कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाहियां किसी लोक सेवक के विरुद्ध न होंगी।
51. इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों या विनियमों के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या किए जाने के लिए आशयित कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाहियां लोकपाल के विरुद्ध या किसी अधिकारी, कर्मचारी, अभिकरण या किसी व्यक्ति के विरुद्ध नहीं होंगी।
52. लोकपाल के अध्यक्ष, सदस्यों, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के बारे में, जब वे इस अधिनियम के किन्हों उपबंधों के अनुसरण में कोई कार्य कर रहे हैं या उनका कार्य करना तात्पर्यित है, यह समझा जाएगा कि वे, भारतीय दंड संहिता की धारा 21 के अर्थ के भीतर लोक सेवक हैं।
53. लोकपाल, ऐसी किसी शिकायत को जांच या अन्वेषण नहीं करेगा, यदि शिकायत, ऐसी तारीख से, जिसको ऐसी शिकायत में उल्लिखित अपराध के किए जाने का अभिकथन किया गया है, सात वर्ष की अवधि के अवसान के पश्चात् की जाती है।
54. किसी सिविल न्यायालय को, किसी ऐसे विषय के संबंध में अधिकारिता नहीं होगी, जिसका लोकपाल इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन अवधारण करने के लिए सशक्त है।
55. लोकपाल, प्रत्येक ऐसे व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध इस अधिनियम के अधीन उसके समक्ष कोई शिकायत फाइल की गई है, लोकपाल के समक्ष उसके मामले की प्रतिरक्षा करने के लिए, यदि ऐसी सहायता के लिए अनुरोध किया जाता है, विधिक सहायता उपलब्ध कराएगा।
56. इस अधिनियम के उपबंध, इस अधिनियम से भिन्न किसी अधिनियमिति या इस अधिनियम से भिन्न किसी अधिनियमिति के कारण प्रभाव रखने वाली किसी लिखत में अंतर्विष्ट उससे असंगत किसी बात के होते हुए भी, प्रभावी होंगे।
57. इस अधिनियम के उपबंध तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अतिरिक्त होंगे न कि उसके अल्पीकरण में।
58. अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमितियों को उसमें विनिर्दिष्ट रीति से संशोधित किया जाएगा।
59. (1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए नियम राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बना सकेंगी।
लोकपाल की रिपोर्टें।
लोकपाल का तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि से उद्भूत होने वाली अपीलों के संबंध में अपील प्राधिकारी के रूप में कार्य करना।
किसी लोक सेवक द्वारा सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण।
अन्य व्यक्तियों द्वारा सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण।
लोकपाल के सदस्यों, अधिकारियों और कर्मचारियों का लोक सेवक होना।
कतिपय मामलों में परिसीमा का लागू होना।
अधिकारिता का कर्कर।
विधिक सहायता।
अधिनियम का अध्यादेही प्रभाव होना।
इस अधिनियम के उपबंधों का अन्य विधियों के अतिरिक्त होना।
कतिपय अधिनियमितियों का संशोधन।
नियम बनाने की शक्ति।(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्:-
(क) धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (ङ) में निर्दिष्ट शिकायत का प्ररूप;
(ख) धारा 4 की उपधारा (5) के अधीन खोजबीन समिति की अवधि, उसके सदस्यों को संदिय फीस और भत्ते तथा नामों के पैनल के चयन की रीति;
(ग) ऐसा पद या ऐसे पद, जिनके संबंध में धारा 10 की उपधारा (3) के परंतुक के अधीन संय लोक सेवा आयोग से परामर्श करने के पश्चात् नियुक्ति की जाएगी;
(घ) ऐसे अन्य विषय, जिनके लिए लोकपाल को, धारा 27 की उपधारा (1) के खंड (vi) के अधीन सिविल न्यायालय की शक्तियां होंगी;
(ङ) धारा 29 की उपधारा (2) के अधीन विशेष न्यायालय को सामग्री के साथ कुर्कों का आदेश भेजने की रीति ;
(च) धारा 36 की उपधारा (2) के अधीन अनुरोध पत्र पारेषित करने की रीति;
(छ) धारा 40 के अधीन लोकपाल की प्राक्कलित प्राप्तियां और व्यय दर्शित करते हुए प्रत्येक वित्तीय वर्ष में आगामी वित्तीय वर्ष के लिए बजट तैयार करने का प्ररूप और समय;
(ज) धारा 42 की उपधारा (1) के अधीन लेखे और अन्य सुसंगत अभिलेख रखने के लिए प्ररूप और वार्षिक लेखा विवरणों का प्ररूप ;
(झ) धारा 43 के अधीन विशिष्टियों सहित विवरणियां और विवरण तैयार करने का प्ररूप और रीति तथा समय;
(ज) धारा 44 की उपधारा (5) के अधीन वार्षिक विवरणों, जिसमें पूर्व वर्ष के दौरान उसके क्रियाकलापों का संक्षिप्त विवरण हो, तैयार करने का प्ररूप और समय;
(ट) धारा 44 की उपधारा (5) के अधीन किसी लोक सेवक द्वारा फाइल की जाने वाली वार्षिक विवरणों का प्ररूप;
(ठ) ऐसा न्यूनतम मूल्य, जिसके लिए सक्षम प्राधिकारी, किसी लोक सेवक को धारा 45 के परंतुक के अधीन आस्तियों के संबंध में सूचना प्रस्तुत करने से माफी दे सकेगा या छूट प्रदान कर सकेगा;
(ड) ऐसा कोई अन्य विषय, जिसको विहित किया जाना है या जिसको विहित किया जाए।
60. (1) लोकपाल, इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए विनियम बना सकेगा।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे विनियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्:-
(क) लोकपाल के सचिव और अन्य अधिकारियों तथा कर्मचारिवृंद की सेवा शर्तें और ऐसे विषय, जिनके लिए, जहां तक उनका संबंध वेतन, भत्तों, छुट्टी या पेंशन से है, धारा 10 की उपधारा (4) के अधीन राष्ट्रपति का अनुमोदन अपेक्षित है;
(ख) धारा 16 की उपधारा (1) के खंड (च) के अधीन लोकपाल की न्यायपौधों के अधिविष्ट होने का स्थान;
(ग) लोकपाल की वेबसाइट पर धारा 20 की उपधारा (10) के अधीन लंबित या निपटाई गई सभी शिकायतों की प्रास्थिति, उनकें प्रतिनिर्देश से अभिलेखों और साक्ष्य सहित, प्रदर्शित करने की रीति;(च) धारा 20 की उपधारा (11) के अधीन प्रारंभिक जांच या अन्वेषण करने की रीति और प्रक्रिया;
(ङ) ऐसा कोई अन्य विषय, जिसको इस अधिनियम के अधीन विनिर्दिष्ट किया जाना अपेक्षित है या विनिर्दिष्ट किया जाए।
61. इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम और विनियम, बनाए जाने के पश्चात्, यथाशीम, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेंगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम या विनियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम या विनियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा। किन्तु नियम या विनियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
62. (1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केंद्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा ऐसे उपबंध कर सकेंगी, जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हों और उस कठिनाई को दूर करने के लिए आवश्यक प्रतीत हों :
परंतु इस धारा के अधीन ऐसा कोई आदेश, इस अधिनियम के प्रारंभ से दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा।
(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, किए जाने के पश्चात्, यथाशीम, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।
भाग 3
लोकायुक्त की स्थापना
- प्रत्येक राज्य, इस अधिनियम के प्रारंभ होने की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर कतिपय लोक कृत्यकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार से संबंधित शिकायतों के संबंध में कार्रवाई करने के लिए, यदि ऐसे किसी निकाय को स्थापित, गठित या नियुक्त नहीं किया गया है, राज्य विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा अपने राज्य के लिए लोकायुक्त के नाम से ज्ञात एक निकाय की स्थापना करेगा।
नियमों और विनियमों का रखा जाय।
कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति।
लोकायुक्त की स्थापना।# अनुचूची
[धारा 58 देखिद्]
कतिपय अधिनियमितियों का संशोधन
भाग 1
जांच आयोग अधिनियम, 1952 का संशोधन
(1952 का 60)
धारा 3 की उपधारा (1) में, “समुचित सरकार” शब्दों के स्थान पर “जैसा लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, समुचित सरकार” शब्द और अंक रखे जाएंगे।
भाग 2
दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 का संशोधन (1946 का 25)
धारा 4 क का संशोधन।
धारा 4 क के,—
(i) उपधारा (1) के स्थान पर, निम्नलिखित उपधारा रखी जाएगी, अर्थात्:-
” (1) केन्द्रीय सरकार, निम्नलिखित से मिलकर बनने वाली समिति की सिफारिश पर निदेशक की नियुक्ति करेगी,—
(क) प्रधानमंत्री—अध्यक्ष;
(ख) लोक सभा में विपक्ष का नेता-सदस्य;
(ग) भारत का मुख्य न्यायमूर्ति या उसके द्वारा नामनिर्दिष्ट उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश—सदस्य।”;
(ii) उपधारा (2) का लोप किया जाएगा।
नई धारा 4खक का अंत:स्थापन।
अभियोजन निदेशक।
धारा 4 ग का संशोधन।
- धारा 4 ख के पश्चात् निम्नलिखित धारा अंत:स्थापित की जाएगी, अर्थात्:-
“4खक. (1) इस अधिनियम के अधीन मामलों के अभियोजन का संचालन करने के लिए एक अभियोजन निदेशालय होगा जिसका प्रमुख एक निदेशक होगा जो भारत सरकार के संयुक्त सचिव की पंक्ति से नीचे का अधिकारी नहीं होगा।
(2) अभियोजन निदेशक, निदेशक के समग्र अधीक्षण और निर्वत्रण के अधीन कृत्य करेगा।
(3) केन्द्रीय सरकार, अभियोजन निदेशक की नियुक्ति केन्द्रीय सतर्कता आयोग की सिफारिश पर करेगी।
(4) अभियोजन निदेशक, उसकी सेवा शर्तों से संबंधित नियमों में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, उस तारीख से, जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है, दो वर्ष से अन्यून अवधि तक अपना पद धारण करता रहेगा।”। - धारा 4 ग में, उपधारा (1) के स्थान पर निम्नलिखित उपधारा रखी जाएगी, अर्थात्:-
” (1) केन्द्रीय सरकार निम्नलिखित से मिलकर बनने वाली समिति की सिफारिश पर, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन में निदेशक के सिवाय, पुलिस अधीक्षक और ऊपर के स्तर के पदों पर अधिकारियों की नियुक्ति करेगी और ऐसे अधिकारियों को सेवाधृति के विस्तारण या कम किए जाने की सिफारिश भी करेगी,-
(क) केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त—अध्यक्ष;(ख) सतर्कता आयुक्त—सदस्य;
(ग) गृह मंत्रालय का भारसाधक भारत सरकार का सचिव—सदस्य;
(घ) कार्मिक विभाग का भारसाधक भारत सरकार का सचिव—सदस्य।
परंतु समिति, केन्द्रीय सरकार को अपनी सिफारिश प्रस्तुत करने से पूर्व निदेशक से परामर्श करेगी।”।
भाग 3
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 का संशोधन
(1988 का 49)
- धारा 7, धारा 8, धारा 9 और धारा 12 में,—
(क) “छह मास” शब्दों के स्थान पर, क्रमश: “तीन वर्ष” शब्द रखे जाएंगे;
(ख) “पांच वर्ष” शब्दों के स्थान पर, क्रमश: “सात वर्ष” शब्द रखे जाएंगे। - धारा 13 की उपधारा (2) में,—
(क) “एक वर्ष” शब्दों के स्थान पर, “चार वर्ष” शब्द रखे जाएंगे;
(ख) “सात वर्ष” शब्दों के स्थान पर, “दस वर्ष” शब्द रखे जाएंगे। - धारा 14 में, —
(क) “दो वर्ष” शब्दों के स्थान पर, “पांच वर्ष” शब्द रखे जाएंगे;
(ख) “सात वर्ष” शब्दों के स्थान पर, “दस वर्ष” शब्द रखे जाएंगे। - धारा 15 में, “जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी” शब्दों के स्थान पर, “जिसकी अवधि दो वर्ष से कम की नहीं होगी, किन्तु पांच वर्ष तक की हो सकेंगी” शब्द रखे जाएंगे।
- धारा 19 में, “निम्नलिखित की पूर्व मंजूरी के बिना” शब्दों के पूर्व, “, जैसा लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में अन्यथा उपबंधित है, उसके सिवाय” शब्द और अंक अंत:स्थापित किए जाएंगे।
भाग 4
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 का संशोधन
(1974 का 2)
धारा 197 में, “न्यायालय ऐसे अपराध का संज्ञान” शब्दों के पश्चात्, “, जैसा लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में अन्यथा उपबंधित है, उसके सिवाय” शब्द और अंक अंत:स्थापित किए जाएंगे।
भाग 5
केन्द्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 का संशोधन
(2003 का 45)
- धारा 2 के खंड (घ) के पश्चात्, निम्नलिखित खंड अंत:स्थापित किया जाएगा, अर्थात्:-
‘ (घक) “लोकपाल” से लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित लोकपाल अभिप्रेत है;’। - धारा 8 की उपधारा (2) के खंड (ख) के पश्चात्, निम्नलिखित खंड अंत:स्थापित किया जाएगा, अर्थात्:-
” (ग) लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 20 की उपधारा (1) के परंतुक के अधीन लोकपाल द्वारा किए गए निर्देश पर, उपधारा (1) के खंड (घ) में निर्दिष्ट व्यक्तियों के अंतर्गत निम्नलिखित भी होंगे:-
(i) केन्द्रीय सरकार की समूह ख, समूह ग और समूह घ सेवाओं के सदस्य;(ii) किसी केन्द्रीय अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित निगमों, केन्द्रीय सरकार के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन सरकारी कंपनियों, सोसाइडियों और अन्य स्थानीय प्राधिकरणों के ऐसे स्तर के पदधारी या कर्मचारिवृंद जिनको वह सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे:
परंतु उस समय तक, जब तक इस खंड के अधीन कोई अधिसूचना जारी की जाती है, उक्त निगमों, कंपनियों, सोसाइडियों और स्थानीय प्राधिकरणों के सभी पदधारी या कर्मचारिवृंद को, उपधारा (1) के खंड (घ) में निर्दिष्ट व्यक्ति होना समझा जाएगा।”।
- धारा 8 के पश्चात् निम्नलिखित धाराएं अंत:स्थापित की जाएगी, अर्थात्:-
“8क. (1) जहां, केन्द्रीय सरकार के समूह ग और समूह य पदधारियों से संबंधित लोक सेवकों के भ्रष्टाचार से संबंधित प्रारंभिक जांच की समाप्ति के पश्चात् आयोग के निष्कर्षों से, लोक सेवक की सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् ऐसे लोक सेवक द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अधीन भ्रष्टाचार से संबंधित आचरण नियमों के प्रथमद्वष्ट्रया उल्लंघन का प्रकटत होड है, वहां आयोग, निम्नलिखित में से कोई एक या अधिक कार्यवाइयां किए जाने के लिए कार्यवाही करेगा, अर्थात्:-
(क) यथास्थिति, किसी अभिकरण या दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन द्वारा अन्वेषण कराया जाना;
(ख) सक्षम प्राधिकारी द्वारा संबंधित लोक सेवक के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाहियां या कोई अन्य समुचित कार्रवाई आरंभ कराया जाना;
(ग) लोक सेवक के विरुद्ध कार्यवाहियों को बंद कराया जाना तथा लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 को धारा 46 के अधीन शिकायतकर्ता के विरुद्ध कार्यवाही का किया जाना।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रत्येक प्रारंभिक जांच, साधारणतया, शिकायत को प्राप्ति की तारीख से नब्बे दिन के भीतर और ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, नब्बे दिन को अतिरिक्त अवधि के भीतर पूरी की जाएगी।
8ख. (1) यदि, आयोग, धारा 8क की उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन शिकायत का अन्वेषण करने के लिए कार्यवाही किए जाने का विनिश्चय करता है तो वह किसी अभिकरण को (जिसके अंतर्गत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन भी है) यथासंभव शीघ्रता के साथ अन्वेषण करने और उसके आदेश को तारीख से छह मास की अवधि के भीतर अन्वेषण पूरा करने तथा आयोग को अपने निष्कर्षों के साथ अन्वेषण रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निदेश देगा:
परंतु आयोग उक्त अवधि को ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, छह मास की अतिरिक्त अवधि के लिए बढ़ा सकेंगा।
(2) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 को धारा 173 में किसी बात के होते हुए भी, कोई अभिकरण (जिसके अंतर्गत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन भी है) आयोग द्वारा उसको निर्दिष्ट किए गए मामलों के संबंध में आयोग को अन्वेषण रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
(3) आयोग, उपधारा (2) के अधीन किसी अभिकरण से (जिसके अंतर्गत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन भी है) उसको प्राप्त प्रत्येक रिपोर्ट पर विचार करेगा और निम्नलिखित के बारे में विनिश्चय कर सकेंगा:-
(क) लोक सेवक के विरुद्ध विशेष न्यायालय के समक्ष आरोपपत्र या मामला बंद किए जाने को रिपोर्ट फाइल करना;
(ख) सक्षम प्राधिकारी द्वारा संबंधित लोक सेवक के विरुद्ध विभागीय कार्यवाहियां या कोई अन्य समुचित कार्रवाई आरंभ करना।”।4. धारा 11 के पश्चात्, निम्नलिखित धारा अंत:स्मापित की जाएगी, अर्थात्:-
“11क. (1) एक जांच निदेशक होगा, जो भारत सरकार के संयुक्त सचिव की पंक्ति से नीचे का न हो, जिसको लोकपाल द्वारा आयोग को निर्दिष्ट प्रारंभिक जांच करने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
(2) केन्द्रीय सरकार, जांच निदेशक को उतने अधिकारी तथा कर्मचारी उपलब्ध कराएगी जो इस अधिनियम के अधीन उसके कृत्यों का निर्वहन करने के लिए अपेक्षित हों।”।