The Gazette of India – Extraordinary

T

This document, published as an Extraordinary Gazette of India, outlines detailed syllabi and examination schemes for various competitive examinations. It covers a wide range of subjects including Indian history, culture, geography, economics, social sciences, science and technology, and literature in various Indian languages. The document specifies the structure of examinations, including the number of papers, duration, maximum marks, and the types of questions expected. It also details the eligibility criteria, age limits, educational qualifications, and physical standards required for different posts. Additionally, it includes information on pay scales, recruitment procedures, and guidelines for the conduct of examinations. The gazette serves as an official notification for prospective candidates preparing for these examinations.

SOURCE PDF LINK :

Click to access 13018_3_2011-190211-H.pdf

Click to view full document content



img-0.jpeg

img-1.jpeg

असाधारण

EXTRAORDINARY

भाग I—खण्ड 1 PART I—Section I प्राधिकार से प्रकाशित PUBLISHED BY AUTHORITY

सं. 46]

नई दिल्ली, बुधवार, फरवरी 23, 2011/फाल्गुन 4, 1932

No. 46] NEW DELHI, WEDNESDAY, FEBRUARY 23, 2011/PHALGUNA 4, 1932

कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय (कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग)

अधिसूचना

नई दिल्ली, 19 फरवरी, 2011

नियम

फा. सं. 13018/3/2011—अ.भा.से. (1)—निम्नलिखित सेवाओं/पदों में रिक्तियों को भरने के लिए 2011 में संघ लोक सेवा आयोग द्वारा ली जाने वाली प्रतियोगिता परीक्षा सिविल सेवा परीक्षा के नियम संबंधित मंत्रालयों और भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा के संबंध में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की सहमति से आम जानकारी के लिए प्रकाशित किए जाते हैं :

(1) भारतीय प्रशासनिक सेवा (2) भारतीय विदेश सेवा (3) भारतीय पुलिस सेवा (4) भारतीय डाक तार लेखा और वित्त सेवा, ग्रुप “क” (5) भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा, ग्रुप “क” (6) भारतीय राजस्व सेवा (सीमा शुल्क और केन्द्रीय उत्पाद शुल्क) ग्रुप “क” (7) भारतीय रक्षा लेखा सेवा, ग्रुप “क” (8) भारतीय राजस्व सेवा आयकर, ग्रुप “क” (9) भारतीय आयुध कारखाना सेवा, ग्रुप “क” (सहायक कार्य प्रबन्धक-प्रशासन) (10) भारतीय डाक सेवा, ग्रुप “क” (11) भारतीय सिविल लेखा सेवा, ग्रुप “क” (12) भारतीय रेलवे यातायात सेवा, ग्रुप “क” (13) भारतीय रेलवे लेखा सेवा, ग्रुप “क” (14) भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा, ग्रुप “क” (15) रेलवे सुरक्षा बल में ग्रुप “क” के सहायक सुरक्षा आयुक्त के पद (16) भारतीय रक्षा सम्पदा सेवा, ग्रुप “क” (17) भारतीय सूचना सेवा, ग्रुप “क” (कनिष्ठ ग्रेड) (18) भारतीय व्यापार सेवा, ग्रुप “क” (ग्रेड-III) (19) भारतीय कॉर्पोरेट विधि सेवा, ग्रुप “क” (20) सशस्त्र सेना मुख्यालय सिविल सेवा, ग्रुप “ख” (अनुभाग अधिकारी ग्रेड) (21) दिल्ली, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दमन व दीव एवं दादरा व नगर हवेली सिविल सेवा, ग्रुप “ख” (22) दिल्ली, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दमन व दीव एवं दादरा व नगर हवेली पुलिस सेवा, ग्रुप “ख” (23) पांडिचेरी सिविल सेवा, ग्रुप “ख” (24) पांडिचेरी पुलिस सेवा, ग्रुप “ख” 1. यह परीक्षा संघ लोक सेवा आयोग द्वारा इस नियमावली के परिशिष्ट-1 में निर्धारित रीति से ली जाएगी ।

प्रारम्भिक तथा प्रधान परीक्षाओं की तारीख और स्थान आयोग द्वारा निश्चित किए जाएंगे ।

  1. उम्मीदवार को प्रधान परीक्षा के अपने आवेदन-पत्र में विभिन्न सेवाओं/पदों के लिए अपना वरीयता क्रम जिसके लिए वह संघ लोक सेवा आयोग द्वारा नियुक्ति हेतु अनुशंसित किया जाता है तो नियुक्ति हेतु विचार किए जाने हेतु इसे यह उल्लेख करना चाहिए ।

कोई उम्मीदवार जो भारतीय प्रशासनिक सेवा/भारतीय पुलिस सेवा के लिए विचार किये जाने का इच्छुक है उसे अपनी प्रधान परीक्षा के आवेदन पत्र में उन विभिन्न राज्य संवर्गों किस के लिए अपनी वरीयता का क्रम दर्शाना होगा जिसमें वह भारतीय प्रशासनिक सेवा/भारतीय पुलिस सेवा में नियुक्ति होने पर आवंटन हेतु विचार किया जाना चाहेगा ।

टिप्पणी-1 :-उम्मीदवार को सलाह दी जाती है कि वह विभिन्न सेवाओं/पदों के लिए वरीयता का उल्लेख करते समय अधिक सावधानी बरतें । इसके संबंध में नियमावली के नियम 19 की ओर भी उनका ध्यान आकर्षित किया जाता है । उम्मीदवार को यह सलाह भी दी जाती है कि वह अपने आवेदन-पत्र के प्रपत्र में सभी सेवाओं/पदों का वरीयता क्रम से उल्लेख करें । यदि वह किसी सेवा/पद के लिए अपना वरीयता क्रम नहीं देता है, तो यह मान लिया जाएगा कि इन सेवाओं के लिए उसकी कोई विशिष्ट वरीयता नहीं है । यदि उसे उन सेवाओं, पदों जिनके लिए उसने वरीयता दी है तो उसमें किसी एक पद का आवंटन नहीं किया जाता है तो उसे शेष बची किसी भी उस सेवा/पद के लिए आवंटित कर दिया जाएगा जिसमें उम्मीदवारों को वरीयता के अनुसार किसी सेवाग्रह पर सभी उम्मीदवारों को आवंटित कर लेने के भयावह सिद्धहित हो जाते ।”

टिप्पणी-11 :-उम्मीदवारों को सेवा आवंटन/संवर्ग आवंटन से करेगी सुसज्जितता के लिए कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की सलाह: www.ersmin.nic.in को देखने को सलाह दी जाती है ।

टिप्पणी-111 :- “कोई अभ्यर्थी, की माहारी/भरपुरी के लिए विचार किए जाने हेतु इच्छुक हो, विभिन्न संवर्गों के लिए प्राथमिकता निर्दिष्ट करते समय अत्यंत सावधान रहेंगे । अभ्यर्थी को अपने विस्तृत आवेदन-पत्र (डीएएफ) [जिसे सिविल सेवा (मुख्या.) परीक्षा के लिए उनके चय: के मामले में भरा जाना है], में प्राथमिकता के रूप में सभी संवर्गों को निर्दिष्ट करने की सलाह दी जाती है । यदि वह किसी भी संवर्ग के लिए कोई प्राथमिकता नहीं देता है तो यह मान लिया जाएगा कि उसकी किसी संवर्ग के लिए कोई विशिष्ट प्राथमिकता नहीं है । यदि उसे इन संवर्गों में से एक संवर्ग में आवंटित नहीं किया जाता है, उस स्थिति में उसे शेष संवर्गों में से किसी एक संवर्ग जिसमें रिक्तियां हैं, में उन सभी अभ्यर्थियों को आवंटित करने के बाद आवंटित किया जा सकता है।”
3. परीक्षा के परिणामों के आधार पर भरी जाने वाली रिक्तियों को संख्या आयोग द्वारा जारी किए गए नोटिस में बताई जाएगी ।

सलाह द्वारा निर्धारित रीति से अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों, वर्गों के उम्मीदवारों तथा प्राथमिक रूप से अर्पण कीजिये की उम्मीदवारों को 111 रिक्तियों का सावधान किया जाएगा ।
4. इस परीक्षा के पैटर्न वाले उम्मीदवारों भारत को की अन्यथा पात्र हो, भारत को कैसे की भेद्यता दी जाएगी ?

परन्तु अभ्यर्थी की संख्या से लेकर वह प्रतिवर्ष अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजातियों की भेद्यता का उम्मीदवारी पर लागू नहीं होगा :

परन्तु आगे यह और भी है कि अन्य विस्तृत रिक्तियों की उम्मीदवारों को, जो अन्यथा पात्र हों, स्वीकार्य अवसरों की परीक्षा ज्ञात होगी । यह रियायत/छूट केवल जैसे अभ्यर्थियों को मिलेगी जो लगभग पाने के पात्र हैं । बशर्ते यह भी कि शारीरिक रूप से विकलांग

उम्मीदवार को उतने ही अवसर अनुमत होंगे जितने कि उसके समुदाय के अन्य उन उम्मीदवारों को जो शारीरिक रूप से विकलांग नहीं हैं यह इस शर्त के अध्यक्षीय है कि सामान्य वर्ग से संबंधित शारीरिक रूप से विकलांग उम्मीदवार सात अवसरों के पात्र होंगे । यह छूट शारीरिक रूप से विकलांग उन उम्मीदवारों को उपलब्ध होगी जो कि ऐसे उम्मीदवारों पर लागू होने वाले आरक्षण को प्राप्त करने के पात्र हैं ।

टिप्पणी : (i) प्रारंभिक परीक्षा में बैठने को परीक्षा में बैठने का एक अवसर माना जाएगा ।
(ii) यदि उम्मीदवार प्रारंभिक परीक्षा के किसी एक प्रश्न पत्र में वस्तुत: परीक्षा देता है तो यह समझ लिया जाएगा कि उसने एक अवसर प्राप्त कर लिया है ।
(iii) अयोग्य पाए जाने/उनकी उम्मीदवारी के रद्द किए जाने के बावजूद उम्मीदवार की परीक्षा में उपस्थिति का तथ्य एक प्रयास गिना जाएगा ।
5. (1) भारतीय प्रशासनिक सेवा और पुलिस सेवा के आवंटन को भारत का नागरिक अवश्य होना चाहिए ।
(2) अन्य सेवाओं के उम्मीदवार को या तो :
(क) भारत का नागरिक होना चाहिए, या
(ख) नेपाल की प्रजा, या
(ग) भूटान की प्रजा, या
(घ) ऐसा तिब्बती शरणार्थी भारत में स्थायी रूप से रहने के इरादे से पहली जनवरी, 1962 से पहले भारत आ गया हो, या
(ङ) कोई भारतीय मूल का व्यक्ति जो भारत में स्थायी रूप से रहने के इरादे से पाकिस्तान, बर्मा, श्रीलंका, कोनिया, उगांठा, संयुक्त गणराज्य तंजानिया के पूर्वी-अफ्रीकी देशों कोरिया, मल्हारी, जेरे और इथोपिया अथवा तेरुवाका से प्रदर्जन कर आया हो :
परन्तु (ख), (ग), (घ) और (ङ) वर्गों के अन्तर्गत आने वाले उम्मीदवार के पास भारत सरकार द्वारा जारी किया गया पात्रता (एलिजोमिलिटि), प्रमाण-पत्र होना चाहिए ।

साथ ही उपर्युक्त (ख), (ग) और (घ) वर्गों के उम्मीदवार भारतीय विदेश सेवा में नियुक्ति के पात्र नहीं माने जाएंगे ।

ऐसे उम्मीदवार को भी उक्त परीक्षा में प्रवेश दिया जा सकता है जिसने वर्गों में पात्रता प्रमाण-पत्र प्राप्त करना आवश्यक हो किन्तु राज्य सरकार द्वारा उसको संबंध में पात्रता प्रमाण-पत्र जारी कर दिए जाने के बाद ही उसकी नियुक्ति प्रस्ताव भेजा जा सकता है ।
6. (क) उम्मीदवार को आयु पहली अगस्त, 2011 को 21 वर्ष की हो जानी चाहिए किन्तु 30 वर्ष की नहीं होनी चाहिए जागृति उसका जन्म 2 अगस्त, 1981 से पहले का और पहली अगस्त, 1996 के बाद का नहीं होना चाहिए ।
(ख) ऊपर बताई गई अधिकतम आयु सीमा में निम्नलिखित रिक्तियों के बारे में जाएगी :-
(क) 111 उम्मीदवार किसी अनुसूचित जाति का या अनुसूचित जनजाति का हो तो अधिक से अधिक 5 वर्ष ।


(2) अन्य पिछड़ो श्रेणियों के उन उम्मीदवारों के मामले में अधिकतम 3 वर्ष तक जो ऐसे उम्मीदवारों के लिए लागू आरक्षण को पाने के लिए पात्र हैं।
(3) ऐसे उम्मीदवारों के मामले में, जिन्होंने एक जनवरी, 1980 से 31 दिसम्बर, 1989 तक की अवधि के दौरान साधारणतया जम्मू तथा कश्मीर में अधिवास किया हो, अधिकतम 5 वर्ष तक।
(4) किसी दूसरे देश के साथ संपर्क में या किसी आघातग्रस्त क्षेत्र फौजी कार्यवाही के दौरान विकलांग होने के फलस्वरूप सेवा निर्मुक्त किये गये ऐसे रक्षा कार्मिकों को अधिक से अधिक तीन वर्ष।
(5) जिन भूतपूर्व सैनिकों (कमीशन) अन्य अधिकतरयां तथा आपातकालीन कमीशन प्राप्त अधिकारियों/अल्पकालिक सेवा कमीशन प्राप्त अधिकारियों सहित) ने पहली अगस्त, 2011 को कम से कम 5 वर्ष की सैनिक सेवा की है और जो (क) कदाचार या अक्षमता के आधार पर बर्खास्त न होकर अन्य कारणों से कार्यकाल के समाप्त होने पर कार्यमुक्त हुए हैं । इसमें ये भी उल्लिखित हैं जिनका कार्यकाल पहली अगस्त, 2011 से एक वर्ष के अन्दर पूरा होना है या (ख) सैनिक सेवा से हुई शारीरिक अपंगता या (ग) अशक्तता के कारण कार्यमुक्त हुए हैं, उनके मामले में अधिक से अधिक पात्र घने तक।
(6) आपातकालीन कमीशन अधिकारियों/अल्पकालीन सेवा कमीशन अधिकारियों के मामले में अधिकतम 5 वर्ष जिन्होंने पहली अगस्त, 2011 को सैनिक सेवा को 5 वर्ष की सेवा को प्रारंभिक अवधि पूरी कर ली है और उसके बाद सैनिक सेवा में जिनका कार्यकाल 5 वर्ष के बाद भी बढ़ाया गया है तथा जिनके मामले में रक्षा मंत्रालय का एक प्रमाण जारी करना होता है कि वे सिविल रजनीय के लिए आवेदन कर सकते हैं और सिविल रजनीय में चयन होने पर नियुक्ति प्रस्ताव प्राप्त होने की तारीख से 3 माह के वीडियो पर उन्हें कार्यभार से मुक्त किया जाएगा।
(7) नेत्रहीन, मूक-श्रध्दि तथा शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के मामले में अधिकतम 10 वर्ष तक ।
दिप्पणी 1 : अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति से अन्य पिछड़े वर्गों से संबंधित ये उम्मीदवार, को उपर्युक्त नियम 6 (ख) के किन्हों अन्य खोटों अर्थात् जो भूतपूर्व सैनिकों, जम्मू तथा कश्मीर राज्य में अधिवास करने वाले व्यक्तियों की श्रेणी के अंतर्गत आते हैं, दोनों श्रेणियों के अंतर्गत दी जाने वाली संचयी आयु-सीमा जुट प्राप्त करने के पात्र होंगे ।
दिप्पणी 2 : भूतपूर्व सैनिक राज्य उन व्यक्तियों पर लागू होगा जिन्हें समय-समय पर तथा संशोधित भूतपूर्व सैनिक (सिविल सेवा और पद में पुन: रोजगार) नियम, 1979 के अधीन भूतपूर्व सैनिक के रूप में परिभाषित किया जाता है ।

दिप्पणी 3 : आपातकालीन कमीशन प्राप्त अधिकारियों/अल्पकालीन सेवा के कमीशन प्राप्त अधिकारियों सहित वे भूतपूर्व सैनिक तथा कमीशन अधिकारी, जो स्वयं के अनुरोध पर सेवामुक्त हुए हैं, उन्हें उपर्युक्त नियम 6(ख) (v)तथा (vi) के अधीन आयु-सीमा में छूट नहीं दी जाएगी ।

दिप्पणी 4 : उपर्युक्त नियम 6(ख)(7) के अंतर्गत आयु में छूट के बावजूद शारीरिक रूप से अक्षम उम्मीदवार की नियुक्ति हेतु पात्रता पर तभी विचार किया जा सकता है जब यह (सरकार या वियोहक प्राधिकारी, जैसा भी मानता हो, द्वारा निर्धारित शारीरिक परीक्षण के बाद) सरकार द्वारा शारीरिक रूप से अक्षम उम्मीदवारों को आवंटन संबंधित सेवाओं/पदों के लिए निर्धारित शारीरिक एवं चिकित्सा मानकों की अपेक्षाओं का पूरा करता हो ।

अगर की व्यवस्था को छोड़कर निर्धारित आयु-सीमा में किसी भी हालत में छूट नहीं दी जा सकती है ।

आयोग द्वारा को यह तारीख स्वीकार करता है जो मैट्रिकुलेशन या माध्यमिक विद्यालय छोड़ने के प्रमाण-पत्र या किसी मान्यता विश्वविद्यालय द्वारा मैट्रिकुलेशन के समकक्ष माने गए प्रमाण-पत्र या किसी विश्वविद्यालय द्वारा अनुरक्षित मैट्रिकुलेशन के रोजगार में दर्ज की गई हो और यह उद्धरण विश्वविद्यालय के समुचित प्राधिकारी द्वारा प्रमाणित हो या उच्चतर माध्यमिक परीक्षा या उसको समकक्ष परीक्षा प्रमाण-पत्र में दर्ज हो । ये प्रमाण-पत्र सिविल सेवा (प्रधान) परीक्षा के लिए आवेदन करते समय भी प्रस्तुत करने हैं ।

आयु के संबंध में कोई अन्य दस्तावेज जैसे जन्मकुलता, शपथ पत्र और नियम से और सेवा अभिलेख से प्राप्त जन्म संबंधी उद्धरण तथा उन जैसे प्रमाण स्वीकार नहीं किए जाएंगे ।

अनुदेश के इस भाग में आए “मैट्रिकुलेशन/उच्चतर माध्यमिक परीक्षा” प्रमाण-पत्र बाक्यांश के अंतर्गत उपयुक्त वैकल्पिक प्रमाण-पत्र सम्मिलित हैं ।

दिप्पणी 1 : उम्मीदवारों को ध्यान में रखना चाहिए कि आयोग जन्म की उसी तारीख को स्वीकार करेगा जो कि आवेदन-पत्र प्रस्तुत करने की तारीख को मैट्रिकुलेशन/ उच्चतर माध्यमिक परीक्षा या समकक्ष परीक्षा के प्रमाण-पत्र में दर्ज है और इसके बाद में उसमें परिवर्तन के किसी अनुरोध पर न तो विचार किया जाएगा और न स्वीकार किया जाएगा ।
दिप्पणी 2 उम्मीदवार यह भी ध्यान रखें कि उनके द्वारा किसी परीक्षा में प्रवेश के लिए जन्म की तारीख एक बार घोषित कर देने के और आयोग द्वारा उसे अपने अभिलेख में दर्ज कर लेने के बाद उसमें या आयोग की अन्य किसी परीक्षा में परिवर्तन करने की अनुमति नहीं दी जाएगी ।


  1. उम्मीदवार के पास भारत के केन्द्र या राज्य विधान मंडल द्वारा निगमित किसी विश्वविद्यालय को या संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित या विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 के खंड 3 के अधीन विश्वविद्यालय के रूप में मानी गई किसी अन्य शिक्षा संस्था को डिग्री अथवा समकक्ष योग्यता होनी चाहिए ।
    टिप्पणी 1 : कोई भी उम्मीदवार जिसने ऐसी कोई परीक्षा दी है जिसमें उत्तीर्ण होने पर वह आयोग की परीक्षा के लिए शैक्षिक रूप से पात्र होगा परन्तु उसे परीक्षाफल की सूचना नहीं मिली है तथा ऐसा उम्मीदवार भी जो किसी अर्हक परीक्षा में बैठने का इरादा रखता हो प्रारंभिक परीक्षा में प्रवेश पाने का पात्र होगा । सिविल सेवा (प्रधान) परीक्षा के लिए अर्हक घोषित किए गए सभी उम्मीदवारों को प्रधान परीक्षा के लिए आवेदन-पत्र के साथ-साथ अपेक्षित परीक्षा में उत्तीर्ण होने का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करना होगा । जिसके प्रस्तुत न किए जाने पर ऐसे उम्मीदवारों को प्रधान परीक्षा में प्रवेश नहीं दिया जाएगा ।
    टिप्पणी 2 : विशेष परिस्थितयों में संघ लोक सेवा आयोग ऐसे किसी भी उम्मीदवार को परीक्षा में प्रवेश पाने का पात्र मान सकता है जिसक पारा उपर्युक्त अर्हताओं में से कोई अर्हता न हो बशर्ते कि उम्मीदवार ने किसी भी संस्था द्वारा ली गई कोई ऐसी परीक्षा पास कर ली है जिसका स्तर आयोग के मतानुसार ऐसा हो कि उसके आधार पर उम्मीदवार को उक्त परीक्षा में बैठने दिया जा सकता है ।
    टिप्पणी 3 : जिन उम्मीदवारों के पास ऐसी व्यावसायिक और तकनीकी अर्हताएं है जो सरकार द्वारा व्यावसायिक और तकनीकी डिग्रियों के समकक्ष मान्यताप्राप्त है व भी उक्त परीक्षा में बैठने के पात्र होंगे ।
    टिप्पणी 4 : जिन उम्मीदवारों ने अपनी अंतिम (फाइनल) व्यावसायिक एम.बी.बी.एस. अथवा कोई अन्य चिकित्सा परीक्षा पास की हो लेकिन उन्होंने सिविल सेवा (प्रधान) परीक्षा का आवेदन-पत्र प्रस्तुत करते समय अपना इन्टर्नशिप पूरा नहीं किया है तो वे भी अस्थायी रूप से परीक्षा में बैठ सकते हैं बशर्ते कि वे अपने आवेदन-पत्र के साथ संबंधित विश्वविद्यालय/संस्था के अधिकारी से इस आशय के प्रमाणपत्र को एक प्रति प्रस्तुत करें कि उन्होंने अपेक्षित अंतिम व्यावसायिक चिकित्सा परीक्षा पास कर ली है। ऐसे मामलों में उम्मीदवारों को साक्षात्कार के समय विश्वविद्यालय/ संस्था के संबंधित सक्षम प्राधिकारी से अपने मूल डिग्री अथवा प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने होंगे कि उन्होंने डिग्री प्रदान करने हेतु सभी अपेक्षाएं (जिनमें इन्टर्नशिप पूरा करना भी शामिल है) पूरी कर ली है ।
  2. कोई उम्मीदवार किसी पूर्व परीक्षा के परिणाम के आधार पर भारतीय प्रशासनिक सेवा अथवा भारतीय विदेश सेवा में नियुक्त हो

जाता है और उस सेवा का सदस्य बना रहता है तो वह इस परीक्षा में प्रतियोगी बने रहने का पात्र नहीं होगा ।

यदि ऐसा कोई उम्मीदवार सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा, 2011 के समाप्त होने के पश्चात् भारतीय प्रशासनिक सेवा/भारतीय विदेश सेवा में नियुक्त हो जाता है तथा वह उस सेवा का सदस्य बना रहता है, तो वह सिविल सेवा (प्रधान) परीक्षा, 2011 में बैठने का पात्र नहीं होगा चाहे उसने प्रारंभिक परीक्षा, 2011 में अर्हता प्राप्त कर ली हो ।

यह भी व्यवस्था है कि सिविल सेवा (प्रधान) परीक्षा, 2011 के प्रारंभ होने के पश्चात् किन्तु उसक परीक्षा परिणाम से पहले किसी उम्मीदवार को भारतीय प्रशासनिक सेवा/भारतीय विदेश सेवा में नियुक्ति हो जाती है और वह उसी सेवा का सदस्य बना रहता है तो सिविल सेवा परीक्षा, 2011 के परिणाम के आधार पर उस किसी सेवा/पद पर नियुक्ति हेतु विचार नहीं किया जाएगा ।
9. उम्मीदवार को आयोग के नोटिस में निर्धारित शुल्क अवश्य देना होगा ।

  1. जो उम्मीदवार सरकारी नौकरी में स्थायी या अस्थाई रूप से काम कर रहे हों या कार्य प्रभारी कर्मचारी क्यों न हों पर, आकस्मिक कर से दैनिक दर पर नियुक्त न हुए हों या जो सार्वजनिक उद्यमों में सेवा कर रहे हैं उन सबको इस आशय का परिवचन (अंडरटेकिंग) देना होगा कि उन्होंने अपने कार्यालयों/विभाग के अध्यक्ष को लिखित रूप से यह सूचित कर दिया है कि उन्होंने परीक्षा के लिए आवेदन किया है ।

उम्मीदवार को ध्यान में रखना चाहिए कि यदि आयोग को उनके नियोक्ता से उनके उक्त परीक्षा के लिए आवेदन करने/परीक्षा में बैठने से संबद्ध अनुमति रोकते हुए कोई पत्र मिला है तो उनका आवेदन-पत्र अस्वीकृत किया जा सकता है । उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी जा सकती है ।
11. परीक्षा में बैठने के लिए उम्मीदवार को पात्रता या अपात्रता के बारे में आयोग का निर्णय अंतिम होगा ।

परीक्षा में आवेदन करने वाले उम्मीदवार यह सुनिश्चित करें कि वे परीक्षा में प्रवेश पाने के लिए पात्रता की सभी शर्ते पूरी करते हैं परीक्षा के उन सभी स्तरों जिनकें लिए आयोग ने उन्हें प्रवेश दिया है अर्थात् प्रारंभिक परीक्षा, प्रधान (लिखित) परीक्षा तथा साक्षात्कार परीक्षण, में उनका प्रवेश पूर्णत: अनंतिम होगा तथा उनके निर्धारित पात्रता की शर्तों को पूरा करने पर आधारित होगा । यदि प्रारंभिक परीक्षा, प्रधान (लिखित) परीक्षा तथा साक्षात्कार परीक्षा के पहले या बाद में सत्यापन करने पर यह पता चलता है कि वे पात्रता की किन्हों शर्तों को पूरा नहीं करते हैं तो आयोग द्वारा परीक्षा के लिए उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी जाएगी ।
12. किसी भी उम्मीदवार को अगर उसके पास आयोग का प्रवेश प्रमाण-पत्र (सर्टिफिकेट ऑफ एडमिशन) न हो तो प्रारंभिक/ प्रधान परीक्षा में बैठने नहीं दिया जाएगा ।
13. उम्मीदवार द्वारा अपने आवेदन प्रस्तुत कर देने के बाद उम्मीदवारी वापस लेने से संबद्ध उसकें किसी भी अनुरोध को किसी


[भाग 1-खण्ड 1]
भारत का राजपत्र : असाधारण
5
भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
14. जो उम्मीदवार निम्नालित कदाचार का दोषी है या आयोग
द्वारा पोषी घोषित हो चुका है :
(1) निम्नलिखित तरीकों से अपनी उम्मीदवारी के लिए
समर्थन प्राप्त किया है, अर्थात् :
(क) गैर-कानूनी रूप से परितोषण की पेशकश करना,
या
(ख) दबाव डालना, या
(ग) परीक्षा आयोजित करने से संबंधित किसी व्यक्ति
को ब्लैकमेल करना अथवा उसे ब्लैकमेल करने
की धमकी देना, अथवा
(2) नाम बदलकर परीक्षा दी है, अथवा
(3) किसी अन्य व्यक्ति से छद्म रूप से कार्यसाधन करना
है, अथवा
(4) जाली प्रमाणपत्र या ऐसे प्रमाणपत्र प्रस्तुत किए हैं
जिसमें तथ्य को विपक्ष गया हो, अथवा
(5) गलत या झूठे धकाव्य दिए हैं या किसी महत्वपूर्ण तथ्य
को छिपाया है, अथवा
(6) परीक्षा के लिए अपनी उम्मीदवारों के संबंध में
निम्नलिखित साधनों का उपयोग किया है, अर्थात् :
(क) गलत तरीके से प्रश्न-पत्र को प्रति प्राप्त करना;
(ख) परीक्षा से संबंधित गोपनीय कार्य से जुड़े व्यक्ति
के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना,
(ग) परीक्षकों को प्रभावित करना; या
(7) परीक्षा के समय अनुचित साधनों का प्रयोग किया है;
अथवा
(8) उत्तर पुस्तिकाओं पर असंगत बातें छिपाया या यह
रेखाचित्र बनाना; अथवा
(9) परीक्षा भवन में दुर्व्यवहार करना जिसमें उत्तर पुस्तिकाओं
को फाड़ना, परीक्षा देने वालों को परीक्षा का पाहिष्कार
करने के लिए उकसाना अथवा अव्यवस्था तथा ऐसी ही
अन्य स्थिति पैदा करना शामिल है; अथवा
(10) परीक्षा चलाने के लिए आयोग द्वारा नियुक्त कर्मचारियों
को परेशान किया हो या अन्य प्रकार की शारीरिक क्षति
पहुंचाई हो;
(11) परीक्षा के दौरान मोबाइल फोन/पेजर या किसी अन्य
प्रकार का इलैक्ट्रानिक उपकरण या बंध अथवा संचार
यंत्र के रूप में प्रयोग किए जा सकने वाला कोई अन्य
उपकरण प्रयोग करते हुए या अपने पास पाया गया हो;
या
(12) परीक्षा को अनुपात देते हुए उम्मीदवार को भेजे गए
प्रमाण-पत्रों के साथ जारी आदेशों का अध्ययन किया
है; अथवा
(13) उपर्युक्त खंडों में उल्लिखित सभी अथवा किसी भी
कार्य के द्वारा अवग्रीरित करने का प्रयत्न किया हो, तो
उस पर आपराधिक अभियोग (क्रिमिनल प्रासिक्यूसन)
चलाया जा सकता है और उसके साथ ही उसे :
(क) आयोग द्वारा उस परीक्षा में जिसका वह उम्मीदवार
है बैठने के लिए अयोग्य ठहराया जा सकता है
और/अथवा
(ख) उसे स्थायी रूप से अथवा निर्दिष्ट अवधि के
लिए
(1) आयोग द्वारा ली जाने वाली किसी भी परीक्षा
अथवा चयन के लिए, नियर्जित किया जा
सकता है,
(2) केन्द्रीय सरकार द्वारा उसकं अधीन किसी
भी नौकरी से वारित किया जा सकता है।
(ग) यदि वह सरकार के अधीन पहले से ही सेवा में
है तो उसकं विरुद्ध उपर्युक्त नियमों के अधीन
अनुशासनिक कार्यवाही की जा सकती है ।
किन्तु शर्त यह है कि इस नियम के अधीन कोई
शासित तव तक नहीं दी जाएगी जब तक :
(1) उम्मीदवार को इस संबंध में लिखित
अभ्यावेदन जो वह देना चाहे प्रस्तुत करने
का अवसर न दिया जाए, और
(2) उम्मीदवार द्वारा अनुमत समय में प्रस्तुत
अभ्यावेदन पर यदि कोई हो विचार न कर
लिया जाए ।
15. जो उम्मीदवार प्रारंभिक परीक्षा में आयोग द्वारा उनकं
संबंध से निर्धारित न्यूनतम अर्हक अंक प्राप्त कर लेता है तो उसे
प्रधान परीक्षा में प्रवेश दिया जाएगा और जो उम्मीदवार प्रधान परीक्षा
(लिखित) में आयोग द्वारा उनकं निर्णय से निर्धारित न्यूनतम अर्हक
अंक प्राप्त कर लेता है तो उसे आयोग व्यक्तिगत परीक्षण हेतु
साक्षात्कार के लिए बुलाएगा :

किन्तु शर्त यह है कि यदि आयोग के मतानुसार अनुसूचित
जातियों या अनुसूचित जनजातियों या अन्य पिछड़े वर्गों के उम्मीदवार
उन जातियों के लिए आरक्षित रिक्तियों को भरने के लिए सामान्य स्तर
के आधार पर पर्याप्त संख्या में व्यक्तित्व परीक्षण हेतु साक्षात्कार के
लिए नहीं बुलाए जा सकेंगे तो आयोग द्वारा प्रारंभिक परीक्षा एवं प्रधान
(लिखित) के स्तर में ढील देकर अनुसूचित जातियों/अनुसूचित
जनजातियों के उम्मीदवारों को व्यक्तित्व परीक्षण हेतु साक्षात्कार के
लिए बुलाया जा सकता है ।
16. (1) साक्षात्कार के बाद आयोग उम्मीदवारों के नाम,
मुख्य परीक्षा में प्रत्येक उम्मीदवार को अंतिम रूप से प्रदान किए गए
कुल अंकों के आधार पर बने योग्यता क्रम के अनुसार सुव्यवस्थित
करेगा । उसकं बाद आयोग, अनारक्षित रिक्तियों पर उम्मीदवारों को
संस्तुति करने के प्रयोजन से, मुख्य परीक्षा के आधार पर भरी जाने
वाली अनारक्षित रिक्तियों को संख्या को देखते हुए अर्हक अंक


(इसके बाद से सामान्य अर्हक मानदंड के रूप में उल्लिखित) निर्धारित करेगा । आरक्षित रिक्तियों पर अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के उम्मीदवारों को संस्तुति करने के लिए आयोग, मुख्य परीक्षा के आधार पर इनमें से प्रत्येक श्रेणी के लिए आरक्षित रिक्तियों की संख्या के संदर्भ में सामान्य अर्हक मानदण्डों में ढील दे सकता है :

बशर्ते कि अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के उम्मीदवार, जिन्होंने परीक्षा के किसी भी स्तर पर पात्रता अथवा चयन मानदण्ड में रियायत अथवा ढील का उपयोग नहीं किया है और जो आयोग द्वारा सामान्य अर्हक मानदण्ड को ध्यान में रखते हुए संस्तुति के लिए उपयुक्त पाए गए, उन्हें अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित रिक्तियों के लिए संस्तुत नहीं किया जाएगा ।
(2) सेवा का आवंटन करते समय अनारक्षित रिक्तियों पर संस्तुत किए गए अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों को सरकार द्वारा आरक्षित रिक्तियों पर समायोजित किया जा सकता है, यदि ऐसी प्रक्रिया से उन्हें अपने नरोगता क्रम में बेहतर विकल्प काली सेवा मिल जाती है ।
(3) आयोग, अनारक्षित रिक्तियों पर नियुक्ति हेतु उम्मीदवारों को किसी कमी को ध्यान में रखते हुए अर्हक मानकों को और कम कर सकता है और इस नियम के प्रावधानों से उद्भूत आरक्षित रिक्तियों पर किसी उम्मीदवार के अधिशेष हो जाने पर आयोग, उप-नियम (4) और (5) में निर्धारित ढंग से संस्तुति कर सकता है ।
(4) उम्मीदवारों को संस्तुति करते समय आयोग सबसे पहले सभी श्रेणियों में रिक्तियों को कुल संख्या को ध्यान में रखेगा । संस्तुत उम्मीदवारों को इस कुल संख्या में से अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के उन उम्मीदवारों की संख्या घटा दी जाएगी, जो उप-नियम (1) के परन्तुक के अनुसार पात्रता अथवा चयन मानदण्डों में किसी रियायत अथवा ढील का उपयोग किए बिना ही निर्धारित सामान्य अर्हक मानदण्डों या अधिक से योग्यता प्राप्त कर लेते हैं । आयोग, संस्तुत उम्मीदवारों को इस सूची के साथ-साथ उम्मीदवारों को समेकित आरक्षित सूची भी घोषित करेगा जिसमें प्रत्येक श्रेणी के अन्तर्गत योग्यता क्रम में आखिरी संस्तुत उम्मीदवार से नीचे के सामान्य और आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार शामिल होंगे । इन प्रत्येक श्रेणियों में उम्मीदवारों की संख्या, आरक्षित श्रेणी के उन उम्मीदवारों को संख्या के बराबर होगी जिन्हें उप-नियम (1) के परन्तुक के अनुसार पात्रता अथवा चयन मानदण्डों में किसी प्रकार की रियायत या ढील का लाभ प्राप्त किए बिना प्रथम सूची में शामिल किया गया था । आरक्षित सूची में, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग को प्रत्येक आरक्षित श्रेणी में से उम्मीदवारों की संख्या, प्रत्येक श्रेणी में प्रारंभिक स्तर पर कटौती किए गए संबंधित उम्मीदवारों की संख्या के बराबर होगी ।
(5) उप-नियम (4) के प्रावधानों के अनुसार संस्तुत उम्मीवार, सरकार द्वारा सेवाओं में आवंटित किए जाएंगे और जहां कतिपय पद फिर भी रिक्त रह जाते हैं वहां सरकार, आयोग को इस आशय की मांग भेज सकती है कि वह आरक्षित सूची में से प्रत्येक श्रेणी में रिक्त

रह गई रिक्तियों को भरने के प्रयोजन से मांग की गई संख्या के बराबर उम्मीदवारों को योग्यता क्रम से संस्तुति करें ।
17. शारीरिक रूप से विकलांग उम्मीदवारों के लिए आरक्षित रिक्तियां भरने हेतु आयोग नियम 15 तथा 16 के अंतर्गत यथा विनिर्दिष्ट न्यूनतम अर्हक अंकों में उन उम्मीदवारों के पक्ष में अपने विवेक से छूट दे सकता है :

बशर्ते कि जब कोई शारीरिक रूप से विकलांग उम्मीदवार सामान्य अथवा अ.जा. अथवा अ.ज.जा. अथवा अ.पि.व. श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए अपेक्षित संख्या में उसकी अपनी योग्यता में न्यूनतम अर्हक अंक प्राप्त करता है, शारीरिक रूप से विकलांग अतिरिक्त उम्मीदवारों अर्थात् उनके लिए आरक्षित रिक्तियों की संख्या से अधिक उम्मीदवारों की आयोग द्वारा अनुशंसा शिथिलीय मानदण्डों पर की जाएगी तथा इन नियमों में अनुवर्ती संशोधन यथासमय अधिसूचित किए जाएंगे ।
18. प्रत्येक उम्मीदवार को परीक्षाफल की सूचना किस रूप में और किस प्रकार दी जाए इसका निर्णय आयोग स्वयं करेगा । आयोग परीक्षाफल के बारे में किसी भी उम्मीदवार से पत्र-व्यवहार नहीं करेगा ।
19. (1) परीक्षाफल के आधार पर नियुक्तियां करते समय उम्मीदवार द्वारा अपने आवेदन-पत्र भेजते समय विभिन्न सेवाओं के लिए दी गई वरीयताओं पर उचित ध्यान दिया जाएगा । विभिन्न सेवाओं में होने वाली नियुक्तियां भी संबंधित सेवाओं पर लागू होने वाले नियमों/विनियमों के अनुसार की जाएंगी ।
19. (II) भा.प्र.से/भा.पु.से. में उम्मीदवारों को नियुक्ति होने पर संवर्ग का आवंटन, संवर्ग आवंटन के समय लागू संवर्ग आवंटन नीति द्वारा शासित होगा। परीक्षा के परिणाम के आधार पर आवंटन करते समय उम्मीदवार द्वारा आवेदन के समय विभिन्न संवर्गों के लिए दर्शाई गई वरीयताओं पर यथोचित विचार किया जाएगा ।
20. परीक्षा में सफलता प्राप्त करने मात्र से नियुक्ति का अधिकार तब तक नहीं मिलता जब तक कि सरकार आवश्यक जांच के बाद इस बात से संतुष्ट न हो जाए कि उम्मीदवार चरित्र तथा पूर्ववृत्त की दृष्टि से इस सेवा में नियुक्ति के लिए हर प्रकार से योग्य है ।
21. अभ्यर्थी का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य उत्तम होना चाहिए और ऐसी किसी भी शारीरिक दोष से मुक्त होना चाहिए, जो सेवा के अधिकारी के रूप में कर्तव्यों का निर्वहन करने में बाधा बन सकता हो । यदि कोई अभ्यर्थी सरकार अथवा नियुक्ति प्राधिकारी, जो भी मामला हो, द्वारा यथानिर्धारित स्वास्थ्य परीक्षा के बाद इन अपेक्षाओं को पूरा नहीं करता हुआ पाया जाता है, तो उसे नियुक्त नहीं किया जाएगा । आयोग द्वारा व्यक्तित्व परीक्षण हेतु बुलाए गए अभ्यर्थी से स्वास्थ्य परीक्षा कराने की अपेक्षा की जा सकती है । मेडिकल परीक्षा हेतु अभ्यर्थी द्वारा, अपील के मामले को छोड़कर, मेडिकल बोर्ड को कोई भी शुल्क देय नहीं होगा :

बशर्ते यह भी कि सरकार शारीरिक रूप से नि:शक्त अभ्यर्थियों को स्वास्थ्य परीक्षा करने के लिए उस क्षेत्र के विशेषज्ञों का एक विशेष मेडिकल बोर्ड गठित कर सकती है ।


[ भाग I- खण्ड I]

शारीरिक अपेक्षाएँ

टिप्पणी : निराशा से बचने के लिए अभ्यर्थियों को यह सलाह दी जाती है कि वे परीक्षा में प्रवेश हेतु आवेदन करने से पहले सिविल सर्जन स्तर के सरकारी चिकित्सा अधिकारी द्वारा अपनी स्वास्थ्य जाँच करवा लें । नियुक्ति के पूर्व अभ्यर्थियों को की जाने वाली स्वास्थ्य जाँच और अपेक्षित स्तर का ब्यौरा इन नियमों के परीक्षण-III में दिया गया है । नि:शक्त भूतपूर्व सैनिकों के लिए मानदण्डों में सेवा(ओं) की अपेक्षाओं के अनुरूप छूट दी जाएगी ।

  1. शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए आरक्षित रिक्तियों के लिए आरक्षण का लाभ लेने के लिए पात्रता वही होगी जो “अक्षम व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995” में है :

बशर्ते, कि शारीरिक रूप में अक्षम उम्मीदवारों को शारीरिक अपेक्षाओं/कार्यात्मक वर्गीकरण (सक्षमताओं/अक्षमताओं) के संबंध में उन विशेष पात्रता मापदण्ड को पूरा करना भी अपेक्षित होगा जो इसके संवर्ग नियंत्रण प्राधिकारी द्वारा निर्धारित अभिज्ञात सेवा/पद के अपेक्षाओं की संगत हों ।

शारीरिक अपेक्षाओं तथा कार्यात्मक वर्गीकरण वाली सेवाओं की एक सूची परीक्षण-IV पर है। सवर्ग नियंत्रण प्राधिकारियों के निर्धारित किए जाने पर इनमें बढ़त या परिवर्तन हो सकता है।

उदाहरणार्थ, शारीरिक अपेक्षाएँ और कार्यात्मक वर्गीकरण निम्न में से एक या अधिक हो सकते हैं :

कोड शारीरिक अपेक्षाएँ
एमएफ (MF) 1. हाथ (अंगुलियों से) द्वारा निष्पादित किए जाने वाले कार्य ।
पीपी (PP) 2. खींच कर तथा धक्के द्वारा किए जाने वाले कार्य ।
एल (L) 3. उत्थापन (लिफ्टिंग) द्वारा किए जाने वाले कार्य ।
केसी (KC) 4. भुटने के बल बैठकर तथा क्राउचिंग द्वारा किए जाने वाले कार्य ।
बीएन (BN) 5. झुककर किए जाने वाले कार्य ।
एस (S) 6. बैठकर (बेंच या कुर्सी पर) किए जाने वाले कार्य ।
एसटी (ST) 7. खड़े होकर किए जाने वाले कार्य ।
डब्ल्यू (W) 8. चलते हुए किए जाने वाले कार्य ।
एसई (SE) 9. देख कर किए जाने वाले कार्य ।
एच (H) 10. सुनकर या बोल कर किए जाने वाले कार्य ।
आरडब्ल्यू (RW) 11. पढ़कर तथा लिखकर किए जाने वाले कार्य ।
सी (C) 12. वार्तालाप
कोड कार्यात्मक वर्गीकरण
बीएल (BL) 1. दोनों पैर प्रभावित लेकिन भुजाएँ नहीं ।
बीए (BA) 2. दोनों भुजाएँ प्रभावित
बीएलए (BLA) 3. दोनों पैर तथा दोनों भुजाएँ प्रभावित
ओएल (OL) 4. एक पैर प्रभावित
ओए (OA) 5. एक भुजा प्रभावित
ओएएल (OAL) 6. एक भुजा और एक पैर प्रभावित
एनडब्ल्यू (MW) 7. मांसपेशीय दुर्बलता तथा जीमित शारीरिक शक्ति
बी (B) 8. नेत्रहीन
एलबी (LV) 9. आंशिक दृष्टि
एच (H) 10. सुनना

टिप्पणी : उपर्युक्त सूची संशोधन के अध्ययन है।

  1. किसी भी उम्मीदवार को समुदाय संबंधी आरक्षण का लाभ, उसकी जाति को केन्द्र सरकार द्वारा जारी आरक्षित समुदाय संबंधी सूची में शामिल किए जाने पर ही मिलेगा । यदि कोई उम्मीदवार सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा के अपने प्रपत्र में यह उल्लेख करता है, कि वह सामान्य श्रेणी से संबंधित है लेकिन कालांतर में अपनी श्रेणी को आरक्षित सूची की श्रेणी में तब्दील करने के लिए आयोग को लिखता है, तो आयोग द्वारा ऐसे अनुरोध को स्वीकार नहीं किया जाएगा ।

जबकि उपर्युक्त सिद्धांत का सामान्य रूप से पालन किया जाएगा, फिर भी कुछ ऐसे मामले हो सकते हैं । जिनमें किसी समुदाय विशेष को आरक्षित समुदायों की किसी भी सूची में शामिल करने के संबंध में सरकारी अधिसूचना जारी किए जाने और उम्मीदवार द्वारा आवेदन पत्र जमा करने की तारीख के समय के बीच थोड़ा बहुत अंतर (अर्थात् 2-3 महीने) हुआ हो । ऐसे मामलों में, समुदाय की सामान्य से आरक्षित समुदाय में परिवर्तित करने संबंधी अनुरोध पर आयोग द्वारा मैरिट के आधार पर विचार किया जाएगा ।

  1. ऐसा कोई पुरुष/स्त्री :

– (क) जिसने किसी ऐसी स्त्री/पुरुष से विवाह किया हो जिसका पहले से जीवित पति/पत्नी हो; या
– (ख) जिसकी पति/पत्नी जीवित होते हुए, उसने किसी स्त्री/पुरुष से विवाह किया हो,

उक्त सेवा में नियुक्ति का पात्र नहीं होगा :

परन्तु केन्द्रीय सरकार यदि इस बात से संतुष्ट हो कि इस प्रकार के दोनों पक्षों के व्यक्तियों पर लागू व्यक्तिगत कानून के अधीन ऐसा विवाह किया जा सकता है और ऐसा करने के अन्य आधार हैं तो उस उम्मीदवार को इस नियम से छूट दे सकती है ।

  1. उम्मीदवारों को सूचित किया जाता है कि ऐसी भर्ती से पहले हिन्दी का कुछ ज्ञान होना उन विभागीय परीक्षाओं को पास करने की दृष्टि से लाभदायक होगा जो उम्मीदवारों को सेवा में भर्ती होने के बाद देनी पड़ती हैं ।
  2. इस परीक्षा के द्वारा जिन सेवाओं/पदों के लिए भर्ती की जा रही है, उसका संक्षिप्त विवरण परीक्षण-II में दिया गया है ।

आर के गुप्ता, निर्देशक


परिशिष्ट 1

खण्ड 1

परीक्षा की योजना

इस प्रतियोगिता परीक्षा में दो क्रमिक चरण हैं :
(1) प्रधान परीक्षा के लिए उम्मीदवारों के चयन हेतु सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा (वस्तुपरक), तथा
(2) विभिन्न सेवाओं तथा पदों पर भर्ती हेतु उम्मीदवारों का चयन करने के लिए सिविल सेवा (प्रधान) परीक्षा (लिखित तथा साक्षात्कार) ।
2. प्रारंभिक परीक्षा में वस्तुपरक (बहुविकल्प प्रश्न) प्रकार के दो प्रश्नपत्र होंगे तथा खंड II के उप-खंड (क) में दिए गए विषयों में ही अधिकतम 400 अंक होंगे । यह परीक्षा केवल प्राक्कचयन परीक्षण के रूप में होगी । प्रधान परीक्षा में प्रवेश हेतु अर्हता प्राप्त करने वाले उम्मीदवार द्वारा प्रारंभिक परीक्षा में प्राप्त किए गए अंकों को उनके अंतिम योग्यता क्रम को निर्धारित करने के लिए नहीं गिना जाएगा । प्रधान परीक्षा में प्रवेश दिए जाने वाले उम्मीदवारों की संख्या उक्त वर्ष में विभिन्न सेवाओं तथा पदों में भरी जाने वाली रिक्तियों की लगभग कुल संख्या का बारह से तेरह गुना होंगे । केवल वे ही उम्मीदवार जो आयोग द्वारा किसी वर्ष की प्रारंभिक परीक्षा में अर्हता प्राप्त कर लेते हैं उक्त वर्ष को प्रधान परीक्षा में प्रवेश के पात्र होंगे वशर्ते कि वे अन्यथा प्रधान परीक्षा में प्रवेश हेतु पात्र हों ।
“टिप्पणी-1 : आयोग, सिविल सेवा (प्रधान) परीक्षा के लिए अर्हक उम्मीदवारों की एक सूची तैयार करेगा, जिसका निर्धारण आयोग द्वारा दोनों प्रश्न-पत्रों के यथानिर्धारित कुल अर्हक अंकों को जोड़कर किया जाएगा ।

टिप्पणी-II : वस्तुनिष्ठ प्रश्न-पत्रों में, ऐसे कुछेक प्रश्नों को छोड़कर जिनमें ऋणात्मक अंकन (नेगेटिव मार्किंग) ऐसे प्रश्नों के लिए ‘सर्वाधिक उपयुक्त’ तथा ‘इतना उपयुक्त नहीं’ उत्तर को दिए जाने वाले विभिन्न अंकों के रूप में अन्तर्निहित होगी, उम्मीदवार द्वारा दिए गए गलत उत्तरों के लिए दंड (ऋणात्मक अंकन) दिया जाएगा।
(i) प्रत्येक प्रश्न के उत्तरों के लिए चार विकल्प हैं । उम्मीदवार द्वारा प्रत्येक प्रश्न के लिए दिए गए गलत उत्तर के लिए, उस प्रश्न के लिए दिए जाने वाले अंकों का एक तिहाई ( 0.33 ) दण्ड के रूप में काटा जाएगा।
(ii) यदि उम्मीदवार एक से अधिक उत्तर देता है तो उसे गलत उत्तर माना जाएगा चाहे दिए गए उत्तरों में से एक ठीक ही क्यों न हो और उस प्रश्न के लिए वही दण्ड होगा जो ऊपर बताया गया है।
(iii) यदि प्रश्न को खाली छोड़ दिया गया है अर्थात् उम्मीदवार द्वारा कोई उत्तर नहीं दिया गया है तो उस प्रश्न के लिए कोई दण्ड नहीं होगा।”
3. प्रधान परीक्षा में लिखित परीक्षा तथा साक्षात्कार परीक्षण होगा । लिखित परीक्षा में खंड II के उप-खंड (ख) में दिए गए विषयों में परम्परागत निबन्धात्मक शैली के 9 प्रश्नपत्र होंगे । खंड II (ख) के पैरा I के नीचे नोट II भी देखें।
4. जो उम्मीदवार प्रधान परीक्षा में लिखित भाग के उतने न्यूनतम अर्हक अंक प्राप्त कर लेगा जितने आयोग अपने निर्णय से निश्चित करे उसे आयोग व्यक्तित्व परीक्षण हेतु खंड II में उप-खंड ” “I” के अनुसार साक्षात्कार के लिए बुलाएगा, किन्तु भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी के प्रश्नपत्रों में केवल अर्हता प्राप्त करनी होगी । खंड II (ख) के पैरा के नीचे टिप्पणी (II) भी देखें । इन प्रश्नपत्रों में प्राप्त अंकों को योग्यता क्रम निर्धारित करने में गिना नहीं जाएगा। साक्षात्कार के लिए बुलाए जाने वाले उम्मीदवारों की संख्या भरी जाने वाली रिक्तियों की संख्या से दुगनी होगी । साक्षात्कार के लिए 300 अंक होंगे (कोई न्यूनतम अर्हक अंक नहीं है ) ।

इस प्रकार उम्मीदवारों द्वारा प्रधान परीक्षा (लिखित भाग तथा साक्षात्कार) में प्राप्त किए गए अंकों के आधार पर उसका अंतिम योग्यता क्रम निर्धारित किया जाएगा। परीक्षा में उम्मीदवारों की स्थिति तथा विभिन्न सेवाओं और पदों के लिए उनके द्वारा वरीयता क्रम को ध्यान में रखते हुए उन्हें विभिन्न सेवाओं में आवंटित किया जाएगा।

खंड II

  1. प्रारंभिक तथा प्रधान परीक्षा की रूबरेखा तथा विषय :
    (क) प्रारंभिक परीक्षा :

परीक्षा में दो अनिवार्य प्रश्नपत्र होंगे जिसमें प्रत्येक प्रश्नपत्र 200 अंकों का होगा ।
खंड :
(i) दोनों ही प्रश्न-पत्र वस्तुनिष्ठ (बहुविकल्पीय) प्रकार के होंगे ।
(ii) प्रश्न-पत्र हिन्दी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में तैयार किए जाएंगे । तथापि, एसवीं कक्षा स्तर के अंग्रेजी भाषा के बोधगम्यता कौशल से संबद्ध प्रश्नों का परीक्षण, प्रश्न-पत्र में केवल अंग्रेजी भाषा के उद्धरणों के माध्यम से, हिन्दी अनुवाद उपलब्ध कराए बिना किया जाएगा।
(iii) पाठ्यक्रम संबंधी विवरण खंड-III के भाग-क में दिया गया है ।
(iv) प्रत्येक प्रश्न पत्र दो घंटे की अवधि का होगा । तथापि, वेकहीन उम्मीदवारों को प्रत्येक प्रश्न पत्र में बीस मिनट का अतिरिक्त समय दिया जाएगा।
(ख) प्रधान परीक्षा :
लिखित परीक्षा में निम्नलिखित प्रश्नपत्र होंगे :
प्रश्नपत्र-1 संविधान की आठवीं अनुसूची में 300 अंक
सम्मिलित भाषाओं में से उम्मीदवारों
द्वारा चुनी गई कोई एक भारतीय भाषा
प्रश्नपत्र-2 अंग्रेजी
300 अंक
प्रश्नपत्र-3 निबन्ध
200 अंक
प्रश्नपत्र-4 सामान्य अध्ययन
300 अंक
और 5
प्रश्नपत्र-6 नीचे पैरा 2 में दिए गए ऐच्छिक प्रत्येक प्रश्न पत्र
7,8 और
9
विषय के दो प्रश्नपत्र होंगे ।
साक्षात्कार परीक्षण 300 अंकों का होगा ।


टिप्पणी :-

(1) भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी के प्रश्नपत्र मैट्रिकुलेशन अथवा समकक्ष स्तर के होंगे जिनमें केवल अर्हता प्राप्त करनी होगी । इन प्रश्नपत्रों में प्राप्त अंकों को योग्यता क्रम निर्धारित करने में नहीं गिना जाएगा।
(2) सभी उम्मीदवारों के पेपरों अर्थात् ‘निबंध’, ‘सामान्य अध्ययन’ और ‘वैकल्पिक विषयों’ का मूल्यांकन ‘भारतीय भाषाओं’ और ‘अंग्रेजी’ में, उनकें अर्हक पेपरों के मूल्यांकन सहित, एक ही समय पर किया जाएगा लेकिन केवल उन्हीं उम्मीदवारों के ‘निबंध’, ‘सामान्य अध्ययन’ और ‘वैकल्पिक विषयों’ के पेपर का संज्ञान लिया जाएगा जो ‘भारतीय भाषा’ और ‘अंग्रेजी’ के अर्हक पेपरों में आयोग द्वारा स्वविवेकानुसार निर्धारित न्यूनतम मानक प्राप्त करते हैं, अतः ‘निबंध’, ‘सामान्य अध्ययन’, और ‘वैकल्पिक विषयों’ के अंक उन उम्मीदवारों को नहीं बताए जाएंगे जो ‘भारतीय भाषा’ और ‘अंग्रेजी’ में ऐसा न्यूनतम अर्हक मानक प्राप्त करने में विफल रहते हैं।
(3) तथापि भारतीय भाषाओं का प्रथम प्रश्नपत्र उन उम्मीदवारों के लिए अनिवार्य नहीं होगा जो अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम तथा नागालैंड के उत्तर पूर्वी रान्यों तथा सिक्किम राज्य के हैं।
(4) भाषा के प्रश्नपत्रों में उम्मीदवार निम्न प्रकार से लिपि का प्रयोग करेंगे :

भाषा लिपि
असमिया असमिया
बंगला बंगला
गुजराती गुजराती
हिन्दी देवनागरी
कन्नड़ कन्नड़
कश्मीरी फारसी
कोंकणी देवनागरी
मलयालम मलयालम
मणिपुरी बंगाली
मराठी देवनागरी
नेपाली देवनागरी
उडिया उडिया
पंजाबी गुरुमुखी
संस्कृत देवनागरी
सिन्धी देवनागरी या अरबी
तमिल तमिल
तेलुगु तेलुगु
उर्दू फारसी
बोडो देवनागरी
डोगरी देवनागरी
मैथिली देवनागरी
संताली देवनागरी या ओलचिकि

टिप्पणी :— संथाली भाषा के लिए प्रश्नपत्र केवल देवनागरी लिपि में छपेंगे किन्तु उम्मीदवारों का उत्तर देने के लिए देवनागरी या ओलचिकि-लिपि के प्रयोग का विकल्प होगा।
2. प्रधान परीक्षा के लिए ऐच्छिक विषयों की सूची :
(1) कृषि विज्ञान
(2) पशुपालन एवं चिकित्सा विज्ञान
(3) नृविज्ञान
(4) वनस्पति विज्ञान
(5) रसायन विज्ञान
(6) सिविल इंजीनियरी
(7) वाणिन्य शास्त्र तथा लेखा विधि
(8) अर्थशास्त्र
(9) विद्युत इंजीनियरी
(10) भूगोल
(11) भू-विज्ञान
(12) इतिहास
(13) विधि
(14) प्रबन्ध
(15) गणित
(16) यांत्रिक इंजीनियरी
(17) चिकित्सा विज्ञान
(18) दर्शन शास्त्र
(19) भौतिकी
(20) राजनीति विज्ञान तथा अन्तर्राष्ट्रीय संबंध
(21) मनोविज्ञान
(22) लोक प्रशासन
(23) समाज शास्त्र
(24) सांख्यिकी
(25) प्राणि विज्ञान
(26) निम्नलिखित में से किसी एक भाषा का साहित्य :

अरबी, असमिया, बंगला, बोडो, चीनी, डोगरी, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उडिया, पाली, फारसी, पंजाबी, रूसी, संस्कृत, संताली, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू ।


टिप्पणी (1) : उम्मीदवारों को निम्नलिखित विषय एक साथ लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी : (क) राजनीति विज्ञान एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध तथा लोक प्रशासन (ख) वाणिज्य शास्त्र एवं लेखा विधि तथा प्रबंध (ग) मानव विज्ञान तथा समाजशास्त्र (घ) गणित तथा सांख्यिकी (ङ) कृषि विज्ञान तथा पशुपालन एवं पशुचिकित्सा विज्ञान (च) प्रबंध तथा लोक प्रशासन (छ) इंजीनियरी विषयों जैसे सिविल इंजीनियरी, विद्युत इंजीनियरी तथा यांत्रिक इंजीनियरी में एक से अधिक विषय नहीं (ज) पशुपालन एवं पशुचिकित्सा विज्ञान तथा चिकित्सा विज्ञान । (2) परीक्षा के लिए प्रश्नपत्र परंपरागत (निर्वध) शैली के होंगे। (3) प्रत्येक प्रश्नपत्र तीन घंटे की अवधि का होगा। तथापि दृष्टिहीन उम्मीदवारों को प्रत्येक प्रश्नपत्र के लिए तीस मिनट का अतिरिक्त समय दिया जाएगा। (4) प्रश्नपत्र के उत्तर भारतीय भाषाओं के प्रश्नपत्रों अर्थात् उपर्युक्त प्रश्नपत्रों 1 और 2 को छोड़कर संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किसी भी एक भाषा में अथवा अंग्रेजी में देने की उम्मीदवारों को छूट होगी। (5) संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित भाषाओं में से किसी एक भाषा में 3 से 9 तक के प्रश्नपत्रों के उत्तर देने का विकल्प लेने वाले उम्मीदवार यदि चाहें तो केवल तकनीकबद्ध शब्दों के यदि कोई हैं, विवरण का उनकें द्वारा चुनी गई भाषा के साथ अंग्रेजी रूपांतरण कोष्ठकों में दे सकते हैं : किन्तु उम्मीदवार ध्यान रखें कि यदि वे उक्त नियम का दुरुपयोग करते हैं तो इसके कारण उनकें अन्यथा मिलने वाले कुल अंकों में से कटौती कर ली जाएगी, आल्पत्ति मामले में उनकी उत्तर पुस्तिका (ए) अनाधिकृत माध्यम में होने के कारण मूल्यांकित नहीं की जाएगी। (6) भाषा संबंधी प्रश्नपत्रों को छोड़ कर बाकी सभी प्रश्नपत्र हिन्दी और अंग्रेजी में होंगे। (7) पाद्यक्रम का पूरा विवरण खण्ड III के भाग “ख” में दिया गया है। “सामान्य अनुदेश (प्रारंभिक तथा प्रधान परीक्षा)” (i) उम्मीदवारों को प्रश्नपत्रों के उत्तर स्वयं लिखने चाहिएं। किसी भी परिस्थिति में उन्हें उत्तर लिखने के लिए किसी अन्य व्यक्ति की सहायता लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी। तथापि दृष्टिहीन उम्मीदवारों को लेखन सहायक (स्क्राइब) की सहायता से परीक्षा में उत्तर लिखने की अनुमति होगी। (ii) केवल सिविल सेवा प्रधान परीक्षा के लिए, उन उम्मीदवारों को, जो चलने में असमर्थ हैं तथा प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात से पीड़ित हैं और जहाँ उनकी यह असमर्थता, उनकी कार्य-निष्पादन क्षमता (लेखन) (ज्यूनतम 40 प्रतिशत अक्षमता) को प्रभावित करती है, उन्हें प्रत्येक घण्टे में 20 मिनट का अतिरिक्त समय दिया जाएगा। तथापि ऐसे उम्मीदवारों को स्क्राइब लेने की अनुमति नहीं होगी।

सब बातों का नियमन संघ लोक सेवा आयोग द्वारा जारी अनुदेशों के अनुसार किया जाएगा। इन सभी या इनमें से किसी एक अनुदेश का उल्लंघन होने पर दृष्टिहीन उम्मीदवार की उम्मीदवारी रद्द की जा सकती है । इसकें अतिरिक्त संघ लोक सेवा आयोग लेखन सहायक के विरुद्ध अन्य कार्रवाई भी कर सकता है। टिप्पणी (2) : इन नियमों का पालन करने के लिए किसी उम्मीदवार को तभी (दृष्टिहीन) उम्मीदवार माना जाएगा यदि दृष्टिदोष का 40 प्रतिशत या इससे अधिक हो । दृष्टिदोष की प्रतिशतता निर्धारित करने के लिए निम्नलिखित कसौटी को आधार माना जाएगा :-

| | सुधारों के बाद स्वस्थ आंख | खराब आंख | प्रतिशतता |
| — | — | — | — |
| वर्ग O | 6/9-6/18 | 6/24 से 6/36 तक | $20 \%$ |
| वर्ग I | 6/18-6/36 | 6/60 से शून्य तक | $40 \%$ |
| वर्ग II | 6/60-4/60
अथवा दृष्टि का क्षेत्र $10-20^{\circ}$ | 3/60 से शून्य तक | $75 \%$ |
| वर्ग III | 3/60-1/60 अथवा दृष्टि का क्षेत्र $10^{\circ}$ | एफ. सी. एक फुट से शून्य | $100 \%$ |
| वर्ग IV | एफ. सी. एक फुट से शून्य तक दृष्टि क्षेत्र $100^{\circ}$ | एफ. सी. एक फुट से शून्य तक दृष्टि का क्षेत्र $100^{\circ}$ | $100 \%$ |
| एक आंख | 6/6 | एफ. सी. एक फुट से शून्य तक | $30 \%$ |
| वाला व्यक्ति | | | |

टिप्पणी (3) : दृष्टिहीन उम्मीदवार को स्वीकार्य छूट प्राप्त करने के लिए संबंधित उम्मीदवार को प्रधान परीक्षा के आवेदन-पत्र के साथ निर्धारित प्रपत्र में केन्द्र/राज्य सरकार द्वारा गठित बोर्ड से आशय का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करना होगा। टिप्पणी (4) : (1) दृष्टिहीन उम्मीदवार को दो जाने वाली छूट निकट दृष्टिता से पीड़ित उम्मीदवारों को देय नहीं होगी। (2) आयोग अपने विवेक से परीक्षा के किसी भी एक या सभी विषयों में अर्हक अंक निश्चित कर सकता है। (3) यदि किसी उम्मीदवार की लिखावट आसानी से न पढ़ी जा सके तो उसको मिलने वाले अंकों में से कुछ अंक काट लिये जायेंगे।


(4) सतही ज्ञान के लिए अंक नहीं दिए जायेंगे।
(5) परीक्षा के सभी विषयों में कम से कम शब्दों में की गई संमिश्रत सूक्ष्म और सशक्त अभिव्यक्ति को श्रेय मिलेगा।
(6) प्रश्नपत्रों में, तथा आवश्यक एसआई (S.I.) इकाइयों का प्रयोग किया जायेगा।
(7) उम्मीदवार प्रश्नपत्रों के उत्तर देते समय केवल भारतीय जंकों के अन्तर्राष्ट्रीय रूप (जैसे 1, $2,3,4,5,6$ आदि) का ही प्रयोग करें।
(8) उम्मीदवारों को संघ लोक सेवा आयोग की परंपरागत (निर्नय) शैली के प्रश्नपत्रों के लिए साइंटिफिक (जन-प्रोग्रामेनल) प्रकार के कैलकुलेटरों का प्रयोग करने की अनुमति है। यद्यपि प्रोग्रामेनल प्रकार के कैलकुलेटरों का प्रयोग उम्मीदवार द्वारा अनुचित साधन अपनाया जाना पाया जाएगा। परीक्षा भवन में कैलकुलेटरों को भाँपने या बदलने की अनुमति नहीं है।
यह ध्यान रखना भी आवश्यक है कि उम्मीदवार वस्तुएतक प्रश्नपत्रों (परीक्षण पुस्तिका) का उत्तर देने के लिए कैलकुलेटरों का प्रयोग नहीं कर सकते। अतः वे उन्हें परीक्षा भवन में न खाएं।

न – साक्षात्कार परीक्षण

  1. उम्मीदवार का साक्षात्कार एक चौड़ द्वारा होगा जिसके सामने उम्मीदवार को परिचयवृत्त का अभिलेख होगा। उससे सामान्य रुचि की बातों पर प्रश्न पूछे जायेंगे। यह साक्षात्कार इस उद्देश्य से होगा कि सक्षम और निष्पक्ष प्रक्षकों का चौड़ें यह ज्ञात सकें कि उम्मीदवार लोक सेवा के लिए व्यक्तित्व की दृष्टि से उपयुक्त है या नहीं। यह परीक्षा उम्मीदवार को मानसिक दक्षता को जांचने के अभिप्राय से की जाती है। यदि तौर पर इस परीक्षा का प्रयोजन वास्तव में न केवल उसके बोधिक गुणों को अपितु उसके सामाजिक लक्षणों और सामाजिक घटनाओं में उसकी रुचि का भी मूल्यांकन करना है, इसमें उम्मीदवार मानसिक स्वक्रता, आत्मचिन्तात्मक प्रह्लण शक्ति, स्पष्ट और तर्कसंगत प्रतिकूलन की शक्ति, संतुलित निर्णय की शक्ति, रुचि की विविधता और गहराई नेतृत्व और सामाजिक संगठन की योग्यता, बोधिक और नैतिक ईमानदारी की भी जांच की जा सकती है।
  2. साक्षात्कार में प्रपे: परीक्षण (काम एग्जामिनेशन) की प्रणाली नहीं अपनाई जाती इसमें स्वाभाविक नजालत्स के माध्यम से, उम्मीदवार को मानसिक गुणों का पता लगाने का प्रयत्न किया जाता है, परन्तु यह नजालत एक विशेष दिशा में और एक विशेष प्रयोजन से किया जाता है।
  3. साक्षात्कार परीक्षण उम्मीदवारों के विशेष या सामान्य ज्ञान की जांच करने के प्रयोजन से नहीं किया जाता, क्योंकि उसकी जांच लिखित प्रश्नपत्रों से पहले ही हो जाती है। उम्मीदवारों से आशा की जाती है कि वे केवल अपने विद्यालय के विशेष विषयों में ही पारंगत

हों बल्कि उन घटनाओं पर भी ध्यान दें जो उनकें चारों ओर अपने राज्य या देश के भीतर और बाहर घट रही हैं तथा आधुनिक विचारधारा और नई-नई खोजों में भी रुचि लें जो कि सुशिक्षित युवक में जिज्ञासा पैदा कर सकती हैं।

खंड III

परीक्षण का पाद्य विवरण

टिप्पणी : उम्मीदवारों को परामर्श दिया जाता है कि वे इस खण्ड में दिए गए प्रारंभिक तथा प्रधान परीक्षा के लिए पाद्य विवरण का व्यावपूर्वक अवलोकन करें क्योंकि कई विषयों के पाद्यक्रम का नियतकालक संशोधन किया गया है।

भाग क

गारस्मिक परीक्षा

प्रश्नपत्र-I (200 अंक) अवधि : दो घंटे

  • राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय महत्व की सामांयक घटनाएं।
  • भारत का इतिहास और भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन।
  • भारत एवं विश्व भूगोल – भारत एवं विश्व का प्राकृतिक, सामाजिक, आर्थिक भूगोल।
  • भारतीय सभ्यतत्व और शासन – संविधान, राजनैतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोक नीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे, आदि।
  • आर्थिक और सामाजिक विकास – रमतः विकास, गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि।
  • पर्यावरणीय पारिस्थितिकी जेत्र-विविधता और मौसम परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे, जिनके लिए विषयगत विशेषज्ञता आवश्यक नहीं है।
  • सामान्य विज्ञान।

प्रश्नपत्र-II (200 अंक) अवधि : दो घंटे

  • बोधगम्यता
  • संचार कौशल स्वस्थ अंतर-वैयक्तिक कौशल
  • तार्किक कौशल एवं विश्लेषणात्मक क्षमता
  • निर्णय लेना और समस्या समाधान
  • सामान्य मानसिक योग्यता
  • आधारभूत संख्यनन (संख्याएं और उनकें संबंध, विस्तार-क्रम आदि) (दसवीं कक्षा का स्तर), आंकड़ों का निर्वचन (चार्ट, ग्राफ तालिका, आंकड़ों की पर्याप्तता आदि-दसवीं कक्षा का स्तर)
  • अंग्रेजी भाषा में बोधगम्यता कौशल (दसवीं कक्षा का स्तर)
    क. दसवीं कक्षा का स्तर के अंग्रेजी भाषा के बोधगम्यता कौशल (प्रश्नपत्र-I) के पाद्यक्रम में अंतिम भद) से संबद्ध प्रश्नों का परीक्षण, प्रश्नपत्र में केवल अंग्रेजी भाषा के उद्धरणों के माध्यम से, हिन्दी अनुवाद उपलब्ध कराए बिना किया जाएगा। ख. प्रश्न बहुविकल्पीय, वस्तुनिष्ठ प्रकार के होंगे।

भाग-ख

प्रधान परीक्षा

प्रधान परीक्षा का उद्देश्य उम्मीदवारों की जानकारी और स्मरण शक्ति का परीक्षण करना ही नहीं बल्कि उनकी समग्र बौद्धिक प्रतिभा और अवबोधन क्षमता को आंकना है।

वैकल्पिक विषयों के प्रश्न पत्रों में प्रश्नों की कुल संख्या आठ होगी । सभी प्रश्नों के अंक बराबर होंगे । प्रत्येक प्रश्न पत्र के दो भाग होंगे अर्थात् भाग (क) और भाग (ख), प्रत्येक भाग में चार प्रश्न होंगे। आठ प्रश्नों में से पांच प्रश्नों के उत्तर देने होंगे । प्रत्येक भाग में एक प्रश्न अनिवार्य होगा । प्रत्येक भाग से कम से कम एक-एक प्रश्न लेते हुए उम्मीदवारों को शेष छह प्रश्नों से तीन और प्रश्नों के उत्तर देने होंगे । इस प्रकार प्रत्येक भाग से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर देने होंगे अर्थात् एक अनिवार्य प्रश्न तथा एक अन्य प्रश्न ।

इस परीक्षा के वैकल्पिक विषयों के प्रश्न पत्र लगभग ऑनर्स डिग्री स्तर के होंगे अर्थात् बैचलर डिग्री से कुछ अधिक और मास्टर डिग्री से कुछ कम । इंजीनियरी, चिकित्सा विज्ञान और विधि के मामले में यह स्तर बैचलर डिग्री का होगा।

अनिवार्य विषय

अंग्रेजी तथा भारतीय भाषाएं

इन प्रश्न पत्रों का उद्देश्य अंग्रेजी सम्बन्धित भारतीय भाषा में अपने विचारों को स्पष्ट तथा सही रूप में प्रकट करना तथा गंभीर तर्क पूर्ण पत्र को पढ़ने और समझने में उम्मीदवार की योग्यता की परीक्षा करना है ।

प्रश्न पत्रों का स्वरूप आमतौर पर निम्न प्रकार का होगा :अंग्रेजी
(1) दिए गए गद्यांशों को समझना।
(2) संक्षेपण।
(3) शब्द प्रयोग तथा शब्द भंडार।
(4) लघु निबंध।

भारतीय भाषाएं
(1) दिए गए गद्यांशों को समझना।
(2) संक्षेपण।
(3) शब्द प्रयोग तथा शब्द भंडार।
(4) लघु निबंध।
(5) अंग्रेजी से भारतीय भाषा तथा भारतीय भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद।
टिप्पणी 1 : भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी के प्रश्न पत्र मैट्रिकुलेशन या समकक्ष स्तर के होंगे जिनमें केवल अर्हताएं प्राप्त करनी हैं।
इन प्रश्न पत्रों में प्राप्तांक योग्यता क्रम के निर्धारण में नहीं गिने जाएंगे।
टिप्पणी 2 : अंग्रेजी तथा भारतीय भाषाओं में प्रश्न पत्रों के उत्तर उम्मीदवारों को अंग्रेजी तथा भारतीय भाषाओं में (अनुवाद प्रश्नों को छोड़कर) देने होंगे।

निबंध

उम्मीदवारों को किसी एक विनिर्दिष्ट विषय पर निबंध लिखना होगा। विषयों के सम्बन्ध में विकल्प दिया जाएगा। उनसे यह अपेक्षा की जाएगी कि वे अपने विचारों का क्रमबद्ध करते हुए निबन्ध के विषय से निकटता बनाए रखें और अपनी बात संक्षेप में लिखें। प्रभावशाली व स्टीक अभिव्यक्तियों के लिए श्रेय दिया जाएगा।

सामान्य-अध्ययन

सामान्य मार्ग-निर्देश

इस प्रश्न पत्र में प्रश्नों का स्वरूप और स्तर इस प्रकार का होगा कि कोई सुशिक्षित व्यक्ति बिना कोई विशेष अध्ययन किए इनके उत्तर दे सकेगा। प्रश्न इस प्रकार के होंगे कि इनसे विभिन्न विषयों के बारे में अभ्यर्थी की सामान्य जागरूकता की परीक्षा होगी, जिसको सिविल सेवाओं में वृत्ति से प्रासंगिकता रहेगी। इन प्रश्नों से अभ्यर्थी की ऐसे सभी मुद्रों की आधारभूत समझ को तथा द्वन्द्वयुक्त सामाजिक आर्थिक लक्ष्यों, उद्देश्यों और मांगों के विश्लेषण को तथा उन पर राय कायम करने की योग्यता की परीक्षा हो सकेगी। अभ्यर्थी को प्रासंगिक, अर्थपूर्ण और सारगर्भित उत्तर देने होंगे।

प्रश्न पत्र-1

  1. आधुनिक भारत का इतिहास एवं भारतीय संस्कृति

आधुनिक भारत के इतिहास के अंतर्गत उन्नीसवीं शताब्दी के लगभग मध्य से देश का इतिहास होगा एवं इसमें स्वतंत्रता आंदोलन तथा सामाजिक सुधारों को रूप देने वाले महत्वपूर्ण व्यक्तियों के सम्बन्ध में भी प्रश्न पूछे जाएंगे। भारतीय संस्कृति से सम्बन्धित भाग के अंतर्गत प्राचीन काल से आधुनिक काल तक भारतीय संस्कृति के सभी पहलू होंगे साथ ही साहित्य, कला और स्थापत्य को प्रमुख विशेषताओं पर प्रश्न पूछे जाएंगे।

2. भारत का भूगोल

इस भाग में भारत के भौतिक, आर्थिक और सामाजिक भूगोल के सम्बन्ध में प्रश्न होंगे।

3. भारत का संविधान एवं भारतीय राज्य व्यवस्था

इस भाग के अंतर्गत भारत का संविधान तथा साथ ही सांविधि क, विधिक, प्रशासनिक एवं देश में प्रचलित राजनैतिक-प्रशासनिक व्यवस्था से उभरने वाले अन्य मुद्रों होंगे।

4. समसामयिक राष्ट्रीय मुद्रों एवं सामाजिक प्रासंगिकता से सम्बन्धित विषय

इस भाग का अभिप्राय अभ्यर्थी को समसामयिक राष्ट्रीय मुद्रों एवं वर्तमान भारत के सामाजिक प्रासंगिकता के विषयों के प्रति, जैसे कि नीचे दिए जा रहे हैं, जागरूकता की परीक्षा करना है :
(i) भारतीय अर्थव्यवस्था, एवं योजना, संसाधनों के जुटाव, संवृद्धि, विकास तथा रोजगार से सम्बन्धित मुद्रों।
(ii) विकास के लाभों से व्यापक वर्गों के सामाजिक एवं आर्थिक बहिष्करण से उभरने वाले मुद्रों।
(iii) मानव संसाधन के विकास एवं प्रबंध से सम्बन्धित अन्य मुद्रों।


(iv) स्वास्थ्य के मुद्ददे जिसमें कि लोक स्वास्थ्य प्रबंध, स्वास्थ्य शिक्षा एवं स्वास्थ्य की देखभाल से सम्बन्धित वैतिक सरोकार, चिकित्सकीय अनुसंधान तथा भेषज निर्माण शामिल है ।
(v) विधि प्रवर्तन, आंतरिक सुरक्षा तथा संबंधित मुद्दे जैसे कि सामुदायिक सामंजस्य का परिरक्षण।
(vi) मानवाधिकारों के अनुरक्षण एवं लोकजीवन में सत्यनिष्ठा समेत सुशासन एवं नागरिकों के प्रति उत्तरदायित्व से संबंधित मुद्दे।
(vii) पर्यावरण से जुड़े मुद्दे, पारिस्थितिक परिरक्षण, प्राकृतिक संसाधानों एवं राष्ट्रीय विरासत का संरक्षण।

प्रश्न-पत्र-2

1. भारत और विश्व

इस भाग में ऐसे प्रश्न होंगे जिनसे विभिन्न क्षेत्रों में, जैसे कि नीचे दिए जा रहे हैं; भारत-विश्व संबंध के प्रति अभ्यर्थी की जागरूकता को परीक्षा होगी :

भारत के पड़ोसी देशों के साथ और क्षेत्र में संबंधों पर विशेष बल देते हुए विदेशी मामले ।

सुरक्षा एवं रक्षा संबंधी मामले ।
नाभिकीय नीति, मुद्दे एवं द्वन्द्व ।
विदेशों में भारतवंशी (भारतीय डायस्मोरा) और इसका भारत तथा विश्व को योगदान।

2. भारत की विश्व के साथ पारस्परिक आर्थिक क्रिया

इस भाग में आर्थिक एवं व्यापार के मुद्दों पर जैसे कि, विदेशी व्यापार, विदेशी निवेश; तेल, गैस एवं ऊर्जा प्रवाह से संबंधित आर्थिक एवं राजनय के मुद्दों पर; भारत के अन्य देशों एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ पारस्परिक आर्थिक क्रिया को प्रभावित करने वाले अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन, WIPO आदि पर प्रश्न होंगे ।
3. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी एवं अंतरिक्ष के क्षेत्र में विकास

इस भाग में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष के क्षेत्रों में हुए विकास एवं कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनोटेक्नोलोजी, बायोटेक्नोलॉजी तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकारों से संबंधित मुद्दों की बुनियादी धारणा के प्रति अभ्यर्थी की जागरूकता को परीक्षा के लिए प्रश्न होंगे ।
4. अंतर्राष्ट्रीय मामले एवं संस्थाएं

इस भाग में वैश्विक मामलों को महत्वपूर्ण घटनाओं तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के विषय में प्रश्न होंगे ।
5. सांख्यिकीय विश्लेषण, आलेख एवं रेखा चित्र

इस भाग से अभ्यर्थी सांख्यिकीय, आलेखों एवं रेखा चित्तों के रूप में प्रस्तुत सूचना से निष्कर्ष निकालने और उनका निर्वचन करने की योग्यता को परीक्षा की जाएगी।

कृषि विज्ञान

प्रश्न-पत्र-1

पारिस्थितिकी एवं मानव के लिए उसकी प्रासंगिकता, प्राकृतिक संसाधन, उनको अनुरक्षण का प्रबंध तथा संरक्षण। सस्य वितरण एवं उत्पादन के कारकों के रूप में भौतिक एवं सामाजिक पर्यावरण। कृषि पारिस्थितिकी; पर्यावरण के संकेतक के रूप में सस्य क्रम। पर्यावरण प्रदूषण एवं फसलों को होने वाले इससे संबंधित खतरे। पशु एवं मान । जलवायु परिवर्तन-अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय एवं भूमंडलीय पहल । ग्रीन हाऊस प्रभाव एवं भूमंडलीय तापन। पारितंत्र विश्लेषण के प्रगत उपकरण-सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना प्रणालियाँ।

देश के विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों में सस्य क्रम। सस्य क्रम में विस्थापन पर अधिक पैदावार वाली तथा अल्पावधि किस्मों का प्रभाव। विभिन्न सस्यन एवं कृषि प्रणालियों की संकल्पनाएँ। जैव एवं परिशुद्धता कृषि । महत्वपूर्ण अनाज, दलहन, तिलहन, रेशा, शर्करा, वाणिज्यिक एवं चारा फसलों के उत्पादन हेतु पैकेज रीतियाँ।

विभिन्न प्रकार के वन रोपण जैसे कि सामाजिक वानिकी, कृषि वानिकी एवं प्राकृतिक वनों की मुख्य विशेषताएं तथा विस्तार । वन पादपों का प्रसार। वनोत्पाद। कृषि वानिकी एवं मूल्य परिवर्धन। वनों की वनस्पतियों और जंतुओं का संरक्षण।

खरपतवार, उनकी विशेषताएं, प्रकीर्णन तथा विभिन्न फसलों के साथ उनकी संबद्धता; उनका गुणन; खरपतवारों का संवर्धी, जैव तथा रासायनिक नियंत्रण ।

मृदा-भौतिकी, रासायनिक तथा जैविक गुणधर्म । मृदा रचना के प्रक्रम तथा कारक । भारत को मृदाएँ । मृदाओं के खनिज तथा कार्बनिक संघटक तथा मृदा उत्पादकता अनुरक्षण में उनकी भूमिका। पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व तथा मृदाओं और पादपों के अन्य लाभकर तत्व। मृदा उर्वरता, मृदा परीक्षण एवं उर्वरक संरतायना के सिद्धांत । समाकलित पोषकतत्व प्रबंध । जैव उर्वरक । मृदा में नाइट्रोजन की हानि, जलमग्न धान-मृदा में नाइट्रोजन उपयोग क्षमता। मृदा में नाइट्रोजन योगिकीकरण। फास्फोरस एवं पोटेशियम का दक्ष उपयोग । समस्याजनक मृदाएँ तथा उनका सुधार । ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन को प्रभावित करने वाले मृदा कारक। मृदा संरक्षण, समाकलित जल-विभाजन प्रबंधन । मृदा अपरदन एवं इसका प्रबंधन । वर्षाधीन कृषि और इसकी समस्याएँ। वर्षा पोषित कृषि क्षेत्रों में कृषि उत्पादन में स्थिरता लाने की प्रौद्योगिकी ।

सस्य उत्पादन से संबंधित जल उपयोग क्षमता, सिंचाई कार्यक्रम के मानदंड, सिंचाई जल की अपवाह हानि को कम करने की विधियाँ तथा साधन । ड्रिप तथा छिड़काव द्वारा सिंचाई। जलाक्रांत मृदाओं से जलनिकास, सिंचाई जल की गुणवत्ता, मृदा तथा जल प्रदूषण पर औद्योगिक बहिस्रावों का प्रभाव। भारत में सिंचाई परियोजनाएँ।

फार्म प्रबंधन, विस्तार, महत्त्व तथा विशेषताएं, फार्म आयोजना। संसाधनों का इष्टतम उपयोग तथा बजटन । विभिन्न प्रकार की कृषि प्रणालियों का अर्थशास्त्र । विपणन प्रबंधन-विकास की कार्यनीतियाँ, बाजार आमूचना । कीमत में उतार-चढ़ाव एवं उनकी लागत; कृषि अर्थव्यस्था में सहकारी संस्थाओं की भूमिका; कृषि के प्रकार तथा


प्रणालियाँ और उनको प्रभावित करने वाले कारक। कृषि कीमत नीति। फसल बीमा ।

कृषि विस्तार, इसका महत्व और भूमिका, कृषि विस्तार कार्यक्रमों के मूल्यांकन की विधियाँ, सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण तथा छोटे-बड़े और सीमांत कृषकों व भूमिहीन कृषि श्रमिकों की स्थिति। विस्तार कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम। कृषि प्रौद्योगिकी के प्रसार में कृषि विज्ञान केन्द्रों की भूमिका। गैर-सरकारी संगठन तथा ग्रामीण विकास के लिए स्व-सहायता उपागम।

प्रश्न-पत्र-2

कोशिका संरचना, प्रकार्य एवं कोशिका चक्र। आनुवंशिक उपादान का संश्लेषण, संरचना तथा प्रकार्य। आनुवंशिकता के नियम। गुणवत्ता संरचना, गुणसूत्र, विपथन, सहलरनता एवं जीन-विनिमय एवं पुनर्योजन प्रजनन में उनकी सार्थकता। बहुगुणिता, सुगुणित तथा असुगुणित। उत्परिवर्तन एवं सस्य सुधार में उनकी भूमिका। वंशानांतरण, वंध्यता तथा असंयोज्यता, वर्गीकरण तथा सस्य सुधार में उनका अनुप्रयोग। कोशिका हत्या वंशागति, लिंग सहदाग, लिंग प्रभावित तथा लिंग सीमित लक्षण।

पादप प्रजनन का इतिहास। जनन की विधियाँ, स्वनिधेचन तथा संस्करण प्रविधियाँ। सस्य पादपों का उद्गम, विकास एवं उपजाया जाना, उद्गम केन्द्र, समजात श्रेणी का नियम, सस्य आनुवंशिक संसाधन- संरक्षण तथा उपयोग। पादप प्रजनन के सिद्धांतों का अनुप्रयोग, सस्य पादपों का सुधार। आण्विक सूचक एवं पादप सुधार में उनका अनुप्रयोग। शुद्ध वंशक्रम वरम, वंशावली, समूह तथा पुनरावर्ती वरण, संयोजी क्षमता, पादप प्रजनन में इसका महत्त्व। संकर ओज एवं उसका उपयोग। कार्य संकरण। रोग एवं पीड़क प्रतिरोध के लिए प्रजनन। अंतरजातीय तथा अंतरावशीय संकरण की भूमिका। सस्य सुधार में आनुवंशिक इंजीनियरी एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका। आनुवंशिकता, रूपांतरित सस्य पादप।

बीज उत्पादन एवं प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियां। बीज प्रमाणन, बीज परीक्षण एवं भंडारण। DNA फिंगरप्रिंटिंग एवं बीज पंचोकरण। बीज उत्पादन एवं विपणन में सरकारी एवं निजी क्षेत्रों की भूमिका। बौद्धिक संपदा अधिकार सम्बन्धी मामले।

पादप पोषण, पोषक तत्वों के अवशोषण, स्थानान्तरण एवं उपापचय के संदर्भ में पादप कार्यिकी के सिद्धांत। मृदा-जलपादप सम्बन्ध।

प्रकिण्व एवं पादप-वर्णक; प्रकाशसंश्लेषण-आधुनिक संकल्पनाएँ और इसके प्रक्रम को प्रभावित करने वाले कारक, आक्सों व अनाक्सी श्वसन; $\mathrm{C}{2} \mathrm{C}{4}$ एवं CAM क्रियाविधियाँ। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा उपापचय। वृद्धि एवं परिवर्धन; दीप्तिकालिता एवं वसंतीकरण। पादप वृद्धि उपादान एवं सस्य उत्पादन में इनको भूमिका। बीज परिवर्धन एवं अनुकरण की कार्यिकी; प्रसुप्ति। प्रतिबल कार्यिकीयातप्रवाह, लक्षण एवं जल प्रतिबल। प्रमुख फल, बागान फसल, सब्जियाँ, मसाले एवं पुष्पी फसल। प्रमुख बागवानी फसलों को पैकेज रीतियाँ। संरक्षित कृषि एवं उच्च तकनीकी बागवानी। तुड़ाई के बाद की प्रौद्योगिकी एवं फलों व सब्जियों का मूल्यवर्धन। मूसुदर्शनीकरण एवं वाणिज्यिक पुष्पकृषि। औषधीय एवं एरोमैटिक पौधे। मानक पोषण में फलों व सब्जियों की भूमिका।

पौड़िकों एवं फसलों, सब्जियों, फलोद्यानों एवं बागान फसलों के रोगों का निदान एवं उनका आर्थिक महत्व। पौड़कों एवं रोगों का वर्गीकरण एवं उनका प्रबंधन। भंडारण के पौड़क और उनका प्रबंधन। पौड़कों एवं रोगों की जीव वैज्ञानिक रोकथाम। जनपदिक रोग विज्ञान एवं प्रमुख फसलों को पौड़कों व रोगों का पूर्वानुमान। पादप संगरोध उपाय। पौड़क नाशक, उनका सूत्रण एवं कार्यप्रकार।

भारत में खाद्य उत्पादन एवं उपभोग की प्रवृत्तियां। खाद्य सुरक्षा एवं जनसंख्या वृद्धि-दृष्टि 2020 अन्न अधिशेष के कारण। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीतियां, अधिप्राप्ति, वितरण की बाध्यताएँ।

खाद्यानों की उपलब्धता, खाद्य पर प्रति व्यक्ति व्यय। गरीबी की प्रवृत्तियाँ, जन वितरण प्रणाली तथा गरीबी रेखा के नीचे की जनसंख्या, लक्ष्योन्मुखी जन वितरण प्रणाली (PDS) भूवैवृत्तीकरण के संदर्भ में नीति कार्यान्वयन। प्रक्रम बाध्यताएँ। खाद्य उत्पादन का राष्ट्रीय आहार दिशा-निर्देशों एवं खाद्य उपभोग प्रवृत्ति से सम्बन्ध। क्षुधाशयन के लिए स्वाभाविक आहार उपागम। पोषक तत्वों की न्यूनता-प्रथम पोषक तत्व न्यूनता : प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण या प्रोटीन बीसोरी कुपोषण (PEM) या (PCM), महिलाओं और बच्चों की कार्यक्षमता के संदर्भ में सूक्ष्म पोषक तत्व न्यूनता एवं मानव संसाधन विकास। खाद्यान उत्पादकता एवं खाद्य सुरक्षा।

पशुपादान एवं पशुविध्वस्त विज्ञान

प्रश्न-पत्र-1

  1. पशु पोषण :
    1.1 पशु की अंदर खाद्य ऊर्जा का विभाजन। प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष उष्मागिति। कार्बन-नाइट्रोजन संतुलन एवं तुलनात्मक वध विधियां। रोगंधी पशुओं, सुक्ष्मों एवं कुककुटों में खाद्य का ऊर्जावान व्यक्त करने के सिद्धांत। अनुसंधान, वृद्धि, समर्थता, स्तन्य स्राव तथा अंडा, ऊन, एवं गति उत्पादन के लिए ऊर्जा आवश्यकताएँ।
    1.2 प्रोटीन पोषण में संशोधन प्रगति। ऊर्जा-प्रोटीन सम्बन्ध। प्रोटीन गुणता का मूल्यांकन। रोगंधी आहार में NPN यौगिकों का प्रयोग। अनुसंधान, वृद्धि, समर्थता, स्तन्य स्राव तथा अंडा, ऊन एवं मास उत्पादन के लिए प्रोटीन आवश्यकताएँ।
    1.3 प्रमुख एवं लेश खनिज-उनको स्रोत, शरीर क्रियात्मक प्रकार्य एवं हीनता लक्षण। विषैले खनिज। खनिज अंतःक्रियाएँ। शरीर में वजा-युक्तशील तथा जलचूलनशील खनिजों को भूमिका, उनको स्रोत एवं हीनता लक्षण।
    1.4 आहार संयोजी-कीथेन संदमक, प्रावायोटिक, एन्जाइम, ऐन्टिबायोटिक, हार्मोन, ओलिगो शर्कराइड, ऐन्टिऑक्सडेंट, पायसीकारक, संच संदमक, उथवरोधी, इत्यादि। हार्मोन एवं ऐन्टिबायोटिक्स जैसे वृद्धिवर्धकों का उपयोग एवं दुष्पयोग-नवीनतम संकल्पनाएँ।
    1.5 चारा संरक्षण। आहार का भंडारण एवं आहार अवयव। आहार प्रौद्योगिकी एवं आहार प्रसंस्करण में अभिनव प्रगति। पशु आहार में उपस्थित पोषणरोधी एवं विषैले कारक। आहार विश्लेषण एवं गुणता नियंत्रण। पायनीयता अभिप्रयोग-प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष एवं सूचक विधियां। चारण पशुओं में आहार ग्रहण प्रापूक्ति।

1.6 रोमंथी पोषण में हुई प्रगति । पोषक तत्व आवश्यकताएं। संतुलित राशन । बछड़ों, सगर्भा, कामकाजी पशुओं एवं प्रजनन सांडों का आहार । दुधारू पशुओं को स्तन्यस्राव चक्र की विभिन्न अवस्थाओं के दौरान आहार देने की युक्तियां । दुग्ध संयोजन आहार का प्रभाव । मांस एवं दुग्ध उत्पादन के लिए बकरों/बकरे का आहार । मांस एवं ऊन उत्पादन के लिए भेड़ का आहार ।
1.7 शूकर पोषण । पोषक आवश्यकताएं । विसर्पों, प्रवर्तक, विकासन एवं परिष्कारण राशन । बेचरबी मांस उत्पादन हेतु शूकर-आहार । शूकर के लिए कम लागत के राशन ।
1.8 कुक्कुट पोषण । कुक्कुट पोषण के विशिष्ट लक्षण । मांस एवं अंडा उत्पादन हेतु पोषक आवश्यकताएं । अंडे देने वालों एवं झीलरों की विभिन्न श्रेणियों के लिए राशन संरूपण ।

2. पशु शरीर क्रिया विज्ञान :

2.1 रक्त को कार्यिकी एवं इसका परिसंचरण, श्वसन; उत्सर्जन । स्वास्थ्य एवं रोगों में अंतःस्रावी ग्रंथि ।
2.2 रक्त के घटक-गुणधर्म एवं प्रकार्य-रक्त कोशिका रचना-हीमोग्लोबिन संश्लेषण एवं रसायनकी-प्लान्मा प्रोटीन उत्पादन, वर्गीकरण एवं गुणधर्म, रक्त का स्कंदन; रक्त स्रावी विकार-प्रतिस्कंदक-रक्त समूह-रक्त मात्रा-प्लान्मा विस्तारक-रक्त में उभयरोधी प्रणाली । जैव रासायनिक परीक्षण एवं रोग-निदान में उनका महत्व ।
2.3 परिसंचरण-हृदय को कार्यिकी, अभिहृदय चक्र, हृदध्वनि, हृदस्पंद, इलेक्ट्रोकाडियोग्राम । हृदय का कार्य और दक्षता-हृदय प्रकार्य में आयनों का प्रभाव-अभिहृद पेशी का उपापचय, हृदय का तंत्रिका-नियमन एवं रासायनिक नियम, हृदय पर ताप एवं तनाव का प्रभाव, रक्त दाब एवं अतिरिक्त दाब, परासरण नियमन, धमनी स्पंद, परिसंचरण का वाहिका प्रेरक नियमन, स्तब्धता । हृद एवं फुप्फुस परिसंचरण, रक्त मस्तिष्क रोध-मस्तिष्क तरल-पक्षियों में परिसंचरण ।
2.4 श्वसन-श्वसन क्रिया विधि, गैसों का परिवहन एवं विनिमय- श्वसन का तंत्रिका नियंत्रण, रसोग्राही, अल्पआक्सीयता, पक्षियों में श्वसन ।
2.5 उत्सर्जन-वृक्क को संरचना एवं प्रकार्य-मूत्र निर्माण-वृक्क प्रकार्य अध्ययन विधियां-वृक्कीय-अम्ल-क्षार संतुलन नियमन : मूत्र के शरीरक्रियात्मक घटक-वृक्क पात-निश्चेष्ट शिरा रक्ताधि क्य-चूजों में मूत्र स्रवण-स्वेदग्रंथियां एवं उनकें प्रकार्य । मूत्रीय दुष्क्रिया के लिए जैवरसायनिक परीक्षण ।
2.6 अंतः स्रावी ग्रंथियां-प्रकार्यात्मक दुष्क्रिया उनकें लक्षण एवं निदान । हार्मोनी का संश्लेषण, स्रवण की क्रियाविधि एवं नियंत्रण-हार्मोनीय-ग्राही-वर्गीकरण एवं प्रकार्य ।
2.7 वृद्धि एवं पशु उत्पादन-प्रसव पूर्व एवं प्रसव पश्चात् वृद्धि, परिपक्वता, वृद्धिवक्र, वृद्धि के माप, वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारक, कन्फार्मेशन, शारीरिक गठन, मांस गुणता ।
2.8 दुग्ध उत्पाद की कार्यिकी/जनन एवं पाचन-स्तन विकास के हार्मोनीय नियंत्रण को वर्तमान स्थिति, दुग्ध स्ववन एवं दुग्ध निष्कासन, नर एवं मादा जनन अंग, उनकें अवयव एवं प्रकार्य । पाचन अंग एवं उनकें प्रकार्य ।
2.9 पर्यावरण कार्यिकी-शरीर क्रियात्मक सम्बन्ध एवं उनका नियमन, अनुकूलन की क्रिया विधि, पशु व्यवहार में शामिल पर्यावरणीय कारक एवं नियात्मक क्रियाविधियां, जलवायु विज्ञान-विभिन्न प्राचल एवं उनका महत्व । पशु पारिस्थितिकी । व्यवहार की कार्यिकी । स्वास्थ्य एवं उत्पादन पर तनाव का प्रभाव ।

3. पशु जनन :

वीर्य गुणता संरक्षण एवं कृत्रिम वीर्यरोचन-वीर्य के घटक, स्पर्मटाजोआ की रचना, स्खलित वीर्य का भौतिक एवं रासायनिक गुणधर्म, जीर्ष एवं पात्रे वीर्य को प्रभावित करने वाले कारक । वीर्य उत्पादन एवं गुणता को प्रभावित करने वाले कारक । संरक्षण, तनुकारकों की रचना, शुक्राणु संक्रेद्रण, तनुकृत वीर्य का परिवहन । गायों, भेड़ों, बकरों, शूकरों एवं कुक्कुटों में गहन प्रशीतन क्रिया-विधि यां। स्वीमद की पहचान तथा बेहतर गर्भाधान हेतु वीर्यसेचन का समय । अमद अवस्था एवं पुनरावर्ती प्रजनन ।

4. पशुधन उत्पादन एवं प्रबंध :

4.1 वाणिज्यिक डेरी फार्मिंग-उन्नत देशों के साथ भारत की डेरी फार्मिंग की तुलना । मिश्रित कृषि के अधीन एवं विशिष्ट कृषि के रूप में डेरी उद्योग । आर्थिक डेरी फार्मिंग । डेरी फार्म शुरू करना, पूँजी एवं भूमि आवश्यकताएं, डेरी फार्म का संगठन । डेरी फार्मिंग में अवसर, डेरी पशु की दक्षता को निर्धारित करने वाले कारक । यूथ अभिलेखन, बजटन, दुग्ध उत्पादन की लागत, कीमत निर्धारण नीति कार्मिक प्रबंध। डेरी गोपशुओं के लिए व्यावहारिक एवं किफायती राशन विकसित करना; वर्ष भर हरे चारे की पूर्ति, डेरी फार्म हेतु आहार एवं चारे की आवश्यकताएं। छोटे पशुओं एवं सांडों, बछियों एवं प्रजनन पशुओं के लिए आहार प्रवृत्तियां; छोटे एवं व्यस्क पशुधन आहार की नई प्रवृत्तियां, आहार अभिलेख ।
4.2 वाणिज्यिक मांस, अंडा एवं ऊन उत्पादन-भेड़, बकरों, शूकर, खरगोश, एवं कुक्कुट के लिए व्यावहारिक एवं किफायती राशन विकसित करना । चारे, हरे चारे की पूर्ति, छोटे एवं परिपक्व पशुधन के लिए आहार प्रवृत्तियां। उत्पादन बढ़ाने एवं प्रबंधन की नई प्रवृत्तियां । पूँजी एवं भूमि आवश्यकताएं एवं सामाजिक आर्थिक संकल्पना ।


4.3 सुखा, बाढ़ एवं अन्य नैसर्गिक आपदाओं से ग्रस्त पशुओं का आहार एवं उनका प्रबंध ।
5. आनुवंशिकी एवं पशु-प्रजनन :

पशु आनुवंशिकी का इतिहास । सूत्री विभाजन एवं अर्थसूत्री विभाजन : मेंडल की वंशागति; मेंडल की आनुवंशिकी से विचलन; जीन की अभिव्यक्ति; सहलग्नता एवं जीन-विनियमन; लिंग निर्धारण, लिंग प्रभावित एवं लिंग सीमित लक्षण; रक्त समूह एवं बहुरूपता; गुणसूत्र विपथन; कोशिकाहव्य वंशागति । जीन एवं इसकी संरचना; आनुवंशिक पदार्थ के रूप में DNA; आनुवंशिक कूट एवं प्रोटीन संश्लेषण; पुनर्योगज DNA प्रौद्योगिकी । उत्परिवर्तन, उत्परिवर्तन के प्रकार, उत्परिवर्तन एवं उत्परिवर्तन दर को पहचानने की विधियां । पारजनन ।
5.1 पशु प्रजनन पर अनुप्रयुक्त समष्टि आनुवंशिकी-मात्रात्मक और इसकी तुलना में गुणात्मक विशेषक; हार्डों वीनबर्ग नियम; समष्टि और इसकी तुलना में व्यष्टि; जीन एवं जीन प्ररूप बारंबारता; जीन बारंबारता को परिवर्तित करने वाले बल; यादृच्छिक अपसरण एवं लघु समष्टियां; पथ गुणांक का सिद्धांत; अंतःप्रजनन, अंतःप्रजनन गुणांक आकलन की विधियां, अंतःप्रजनन प्रणालियां, प्रभावी समष्टि आकार; विभिन्नता संवितरण; जीन प्ररूप X पर्यावरण सहसंबंध एवं जीन प्ररूप X पर्यावरण अंतःक्रिया; बहु मापों की भूमिका; संबंधियों के बीच समरूपता ।
5.2 प्रजनन तंत्र-पशुधन एवं कुक्कुटों की नस्लें । वंशागतित्व, पुनरावर्तनीयता एवं आनुवंशिक एवं समलक्षणीय सहसंबंध, उनकी आकलन विधि एवं आकलन परिशुद्धि; वरण के साधन एवं उनकी संगत योग्यताएं; व्यष्टि, वंशावली, कुल एवं कुलांतर्गत वरण; संतति, परीक्षण; वरण विधियां; वरण सूचकों की रचना एवं उनका उपयोग; विभिन्न वरण विधियों द्वारा आनुवंशिक लब्धियों का तुलनात्मक मूल्यांकन; अप्रत्यक्ष वरण एवं सहसंबंधित अनुक्रिया; अंतःप्रजनन, बहिःप्रजनन, अपग्रेडिंग, संकरण एवं प्रजनन संश्लेषण; अंतःप्रजनित लाइनों का वाणिज्यिक प्रयोजनों हेतु संकरण; सामान्य एवं विशिष्ट संयोजन योग्यता हेतु वरण; देहली लक्षणों के लिए प्रजनन । सायर इंडेक्स ।
6. विस्तार

विस्तार का आधारभूत दर्शन, उद्देश्य, संकल्पना एवं सिद्धांत । किसानों को ग्रामीण दशाओं में शिक्षित करने की विभिन्न विधियां । प्रौद्योगिक पौड़ी, इसका अंतरण एवं प्रतिपुष्टि । प्रौद्योगिकी अंतरण में समस्याएं एवं कठिनाइयां । ग्रामीण विकास हेतु पशुपालन कार्यक्रम ।

प्रश्न पत्र-2

  1. शरीर रचना विज्ञान, भेषज गुण विज्ञान एवं स्वास्थ्य विज्ञान :
    1.1 ऊतक विज्ञान एवं उतकीय तकनीक : उतक प्रक्रमण एवं H.E. अभिरंजन की पैराफोन अंतःस्थापित तकनीक-

हिमीकरण माइक्रोटीमी-सूक्ष्मदर्शिकी-दौप्त क्षेत्र सूक्ष्मदर्शी एवं इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी । कोशिका की कोशिकाविज्ञान संरचना, कोशिकांग एवं अंतर्वेशन; कोशिका विभाजनकोशिका प्रकार-ऊतक एवं उनका वर्गीकरण- ध्रुतीय एवं वयस्क ऊतक-अंगों का तुलनात्मक ऊतक विज्ञान-संवहनी । तंत्रिका, पाचन, श्वसन, पेशी कंकाली एवं जननमूत्र तंत्र-अंतःखावी ग्रंथियां अध्यावरण-संवेदी अंग।
1.2 ध्रुण विज्ञान-पक्षिबर्ग एवं घरेलू स्तनपायियों के विशेष संदर्भ के साथ कशेरूकियों का ध्रुण विज्ञान-युग्मक जनन-निषेचनजनन स्तर-गर्भ झिल्ली एवं अपरान्यास-घरेलू स्तनपायियों में अपरा के प्रकार-विरूपताविज्ञान-यमल एवं यमलनअंगविकास-जनन स्तर व्युत्पन्न-अंतश्चर्मों, मध्यचर्मों एवं बहिर्चर्मों व्युत्पन्न ।
1.3 गो-शारीरिक-क्षेत्रीय शारीरिक : वृषभ के पैरानासीय कोटर-लारग्रंथियों की बहिस्तल शारीरिकी । अवनेत्रकोटर, जाँभिका, चिबुक-कूषिका-मानसिक एवं शूंगो तंत्रिका रोध की क्षेत्रीय शारीरिकी । पराकशेरूक तंत्रिकाओं की क्षेत्रीय शारीरिकी, गुहा तंत्रिका, मध्यम तंत्रिका, अंतःप्रकोष्ठिका तंत्रिका एवं बहि: प्रकोष्ठिका तंत्रिका-अंतर्जीपिका बहिर्जीपिका एवं अंगुलि तंत्रिकाएं-कपाल तंत्रिकाएं-अधिदृढ़तानिका संज्ञाहरण में शामिल संरचनाएं-उपरिस्थ लसीका पर्व-वक्षीय, उदरीय तथा श्रोणीय गुहिका के अंतरंगों की बहिरस्तर शारीरिकी-गतितंत्र की तुलनात्मक विशेषताएं एवं स्तनपायी शरीर की जैवयांत्रिकी में उनका अनुप्रयोग।
1.4 कुक्कूट शारीरिकी-पेशी-कंकाली तंत्र-श्वसन एवं उड्ने के संबंध में प्रकाशात्मक शारोरिकी, पाचन एवं अंडोत्पादन ।
1.5 भेषज गुण विज्ञान एवं भेषज बलगतिकी के कोशिकीय स्तर । तरलों पर कार्यकारी औषधें एवं विद्युत अपघट्य संतुलन । स्वसंचालित तंत्रिका तंत्र पर कार्यकारी औषधें । संज्ञाहरण की आधुनिक संकल्पनाएं एवं वियोजी संज्ञाहरण। आंटाकॉइड। प्रतिरोगाणु एवं रोगाणु संक्रमण में रसायन चिकित्सा के सिद्धांत । चिकित्साशास्त्र में हार्मोनों का उपयोग-परजीवी संक्रमणों में रसायन चिकित्सा। पशुओं के खाद्य ऊतकों में औषध एवं आर्थिक सरोकार-अर्बुद रोगों में रसायन चिकित्सा। कीटनाशकों, पौधों, धातुओं, अधातुओं, जंतुविषों एवं कवकविषों के कारण विषातुता ।
1.6 जल, वायु एवं वासस्थान के संबंध के साथ पशु स्वास्थ्य विज्ञान-जल, वायु एवं मृदा प्रदूषण का आकलन-पशु स्वास्थ्य में जलवायु का महत्व-पशु कार्य एवं निष्पादन में पर्यावरण का प्रभाव-पशु कृषि एवं औद्योगीकरण के बीच संबंध-विशेष श्रेणी के घरेलू पशुओं, यथा, सगर्भा गौ एवं शूकरी, दुधारू गाय, ब्रायलर पक्षी के लिए आवास आवश्यकताएं-पशु वासस्थान के संबंध में तनाव, क्षति एवं उत्पादकता ।


2. पशु रोग :

2.1 गोपशू, भेड़ तथा अजा, भोड़ा, शूकर तथा कुक्कुट के संक्रामक रोगों का रोगकारण, जानपदिक रोग विज्ञान, रोगजनन, लक्षण, मरणोत्तर पिश्रति, विद्वान एवं नियंत्रण ।
2.2 गोपशू, भोड़ा, शूकर एवं कुक्कुट के उत्पादन रोगों का रोग कारण, जानपदिक रोग विज्ञान, लक्षण, विद्वान, उपचार ।
2.3 घरेलू पशुओं और पक्षियों के हौनता रोग।
2.4 अंतर्भट्टन, अफरा, प्रवाहिका, अजीर्ण, निर्जलीकरण, आघात, विषाक्तता जैसा अविशिष्ट दशाओं का विद्वान एवं उपचार ।
2.5 तंत्रिका वैज्ञानिक विकारों का विद्वान एवं उपचार।
2.6 पशुओं के विशिष्ट रोगों के प्रति प्रतिरक्षीकरण के सिद्धांत एवं विधियां यूथ प्रतिरक्षा रोगमुक्त क्षेत्र-“शून्य” रोग संकल्पना रसायन रोग निरोध।
2.7 संज्ञाहरण-स्थानिक क्षेत्रीय एवं सार्वाहिक-संज्ञाहरण पूर्व औषध प्रदान । अस्थिभंग एवं संधिध्धृति में लक्षण एवं शल्य व्यतिकरण । दर्निया, अवरोध, चतुर्थ आमाशयो निरधापन सिजेरियन शस्त्रकर्म । रोमधिका-छेदन-जनदनाशन ।
2.8 रोग जांच तकनीक-प्रयोगशाला जांच हेतु सामग्री-पशु स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना-रोगमुक्त क्षेत्र।

3. सार्वजनिक पशु स्वास्थ्य :

3.1 पशुजन्य रोग-वर्गीकरण, परिभाषा, पशुजन्य रोगों की व्यापकता एवं प्रसार में पशुओं एवं पक्षियों की भूमिका-पेशागत पशुजन्य रोग ।
3.2 जानपदिक रोग विज्ञान-सिद्धांत, जानपदिक रोगों विज्ञान संबंधी पदावली की परिभाषा, रोग तथा उनकी रोकथाम के अध्ययन में जानपदिक रोगविज्ञानी उपायों का अनुप्रयोग । वायु, जल तथा खाद्य जनित संक्रमणों के जानपदिक रोगविज्ञानीय लक्षण । OIE विनियम, WTO स्वच्छता एवं पादप-स्वच्छता उपाय ।
3.3 पशुचिकित्सा विधिशास्त्र-पशुगुणवता सुधार तथा पशु रोग निवारण के लिए नियम एवं विनियम-पशुजनित एवं पशु उत्पाद जनित रोगों के निवारण हेतु राज्य एवं केन्द्र के नियम-SPCA पशु चिकित्सा-विधिक मामले-प्रमाणपत्र-पशु चिकित्सा विधिक जांच हेतु नमूनों के संग्रहण की सामग्रियां एवं विधियां।

4. दुग्ध एवं दुग्धोत्पाद प्रौद्योगिकी :

4.1 बाजार का दूध : कच्चे दूध की गुणता, परीक्षण एवं कोटि निर्धारण। प्रसंस्करण, परिवेष्टन, भंडारण, वितरण, विपणन, दोष एवं उनकी रोकथाम । निम्नलिखित प्रकार के दूध को बनाना : पात्र्युरीकत, मानकित, टोन्ड, डबल टोन्ड, निर्जीवाणुकृत, समांगीकृत, पुनर्निर्मित पुनर्संयोजित एवं सुचारित दूध । संवर्धित दूध तैयार करना, संवर्धन तथा

उनका प्रबंध, योगर्ट, दही, लस्सी एवं श्रीखंड । सुचारित एवं निर्जीवाणुकृत दूध तैयार करना । विधिक मानक । स्वच्छ एवं सुरक्षित दूध तथा दुग्ध संयंत्र उपस्कर हेतु स्वच्छता आवश्यकताएं ।
4.2 दुग्ध उत्पाद प्रौद्योगिकी : कच्ची सामग्री का चयन, क्रीम, मक्खन, घी, खोया, छेना, चीज, संघनित, वाष्पित, शुष्किलत दूध एवं शिशु आहार, आइसक्रीम तथा कुल्फी जैसे दुग्ध उत्पादों का प्रसंस्करण, भंडारण, वितरण एवं विपणन, उपोत्पाद, छेने के पानी के उत्पाद, छाछ (बटर मिल्क), लैक्टोज एवं कंसीन । दुग्ध उत्पादों का परीक्षण, कोटिनिर्धारण, उन्हें परखना । BIS एवं एममकं प्रिनिर्देशन, विधिक मानक, गुणता नियंत्रण एवं पोषक गुण । संवेष्टन, प्रसंस्करण एवं संक्रियात्मक नियंत्रण । डेरी उत्पादों का लागत निर्धारण ।

5. मांस स्वास्थ्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी :

5.1 मांस स्वास्थ्य विज्ञान

5.1.1 खाद्य पशुओं को मृत्यु पूर्व देखभाल एवं प्रबंध, विसंज्ञा, वध एवं प्रसाधन संक्रिया, वधशाला आवश्यकताएं एवं अभिकल्प; मांस निरीक्षण प्रक्रियाएं एवं पशुशव मांसखंडों को परखना-पशुशव-मांसखंडों का कोटि निर्धारण-पुष्टिकर मांस उत्पादन में पशुचिकित्सकों के कर्तव्य और कार्य ।
5.1.2 मांस उत्पादन संभालने की स्वास्थ्यकर विधियां-मांस का विगड़ना एवं इसकी रोकथाम के उपाय-वधोपरांत मांस में भौतिक-रासायनिक परिवर्तन एवं इन्हें प्रभावित करने वाले कारक-गुणता सुधार विधियाँ-मांस में मिलावट एवं इसकी पहचान-मांस व्यापार एवं उद्योग में नियामक उपबंध ।

5.2 मांस प्रौद्योगिकी

5.2.1 मांस के भौतिक एवं रासायनिक लक्षण-मांस इमल्शन-मांसपरीक्षण को विधियां-मांस एवं मांस उत्पादन का संसाधन: डिब्बाबंदी, किरणण, संवेष्टन, प्रसंस्करण एवं संयोजन ।
5.3 उपोत्पाद-वधशाला उपोत्पाद एवं उनके उपयोग-खाद्य एवं अखाद्य उपोत्पाद-वधशाला उपोत्पाद के समुचित उपयोग के सामाजिक एवं आर्थिक निहितार्थ-खाद्य एवं भैषजिक उपयोग हेतु अंग उत्पाद ।
5.4 कुक्कुट उत्पाद प्रौद्योगिकी-कुक्कुट मांस के रासायनिक संघटन एवं पोषक मान-वध की देखभाल तथा प्रबंध। वध की तकनीकें, कुक्कुट मांस एवं उत्पादों का निरीक्षण, परिरक्षण। विधिक एवं BIS मानक । अंडों की संरचना, संघटन एवं पोषक मान । सूक्ष्मजीवी विकृति । परिरक्षण एवं अनुरक्षण । कुक्कुट मांस, अंडों एवं उत्पादों का विपणन । मूल्य वर्धित मांस उत्पाद ।
5.5 खरगोशःफर वाले पशुओं को फार्मिंग-खरगोश मांस उत्पादन । फर एवं ऊन का निपटान एवं उपयोग तथा अपशिष्ट उपोत्पादों का पुनश्चक्रण । ऊन का कोटिनिर्धारण ।


नृविज्ञान

प्रश्न-पत्र- 1

1.1 नृविज्ञान का अर्थ, विषय क्षेत्र एवं विकास।
1.2 अन्य विषयों के साथ संबंध : सामाजिक विज्ञान, व्यवहारपरक विज्ञान, जीव विज्ञान, आयुर्विज्ञान, भू-विषयक विज्ञान एवं मानविकी ।
1.3 नृविज्ञान की प्रमुख शाखाएं, उनका क्षेत्र तथा प्रासंगिकता :
(क) सामाजिक-सांस्कृतिक नृविज्ञान ।
(ख) जैविक विज्ञान ।
(ग) पुरातत्व-नृविज्ञान ।
(घ) भाषा-नृविज्ञान ।
1.4 मानव विकास तथा मनुष्य का आविर्भाव :
(क) मानव विकास में जैव एवं सांस्कृतिक कारक;
(ख) जैव विकास के सिद्धांत (डार्विन-पूर्व, डार्विन कालीन एवं डार्विनोत्तर);
(ग) विकास का संश्लेषणात्मक सिद्धांत; विकासात्मक जीव विज्ञान को पदावली एवं संकल्पनाओं की संक्षिप्त रूपरेखा (डॉल का नियम, कोष का नियम, गॉस का नियम, समांतरवाद, अभिसरण, अनुकूली विकिरण एवं मोजेक विकास)।
1.5 नर-वानर की विशेषताएं: विकासात्मक प्रवृत्ति एवं नर-वानर वर्गिको; नर-वानर अनुकूलन; (वृक्षीय एवं स्थलीय) नर-वानर वर्गिको; नर-वानर व्यवहार, तृतीयक एवं चतुर्थक जीवाश्म नर-वानर, जीवित प्रमुख नर-वानर; मनुष्य एवं वानर को तुलनात्मक शरीर-रचना; नृ संस्थिति के कारण हुए कंकालीय परिवर्तन एवं हल्के निहितार्थ ।
1.6 जातिवृत्तीय स्थिति, निम्नलिखित की विशेषताएं एवं भौगोलिक वितरण :
(क) दक्षिण एवं पूर्व अफ्रीका में अतिनूतन अत्यंत नूतन होमिनिड-आस्ट्रेलोपिथेसिन
(ख) होमोइरेक्टस : अफ्रीका (पेरेगोपस), यूरोप (होमोइरेक्टस हीडेल बर्जेन्सस), एशिया होमोइरंक्टस जावानिकस, होमो इरंक्टस पेकाइनेन्सिस)
(ग) निएन्डरथल मानव-ला-शापेय-ओ-सैंत (क्लासिको प्रकार), माउंट कारमेस (प्रगामी प्रकार)
(घ) रोडेसियन मानव ।
(ङ) होमो-सैपिएन्स-कोमैग्नन, ग्रिमाली एवं चांसलीड ।
1.7 जीवन के जीववैज्ञानिक आधार : कोशिका, DNA संरचना एवं प्रतिकृति, प्रोटीन संश्लेषण, जीन, उत्परिवर्तन, कोमोसोम एवं कोशिका विभाजन ।
1.8 (क) प्रागैतिहासिक पुरातत्त्व विज्ञान के सिद्धांत/ कालानुक्रम : सापेक्ष एवं परम काल निर्धारण विधियां।
(ख) सांस्कृतिक विकास-प्रागैतिहासिक संस्कृति की स्थूल रूपरेखा –
(i) पुरापाषाण
(ii) मध्य पाषाण
(iii) नव पाषाण
(iv) ताम्र पाषाण
(v) ताम्र-कांस्य युग
(vi) लोह युग ।
2.1 संस्कृति का स्वरूप : संस्कृति और सभ्यता की संकल्पना एवं विशेषता; सांस्कृतिक सापेक्षवाद की तुलना में नृजाति कीडिकता ।
2.2 समाज का स्वरूप : समाज की संकल्पना; समाज एवं संस्कृति; सामाजिक संस्थाएं; सामाजिक समूह; एवं सामाजिक स्तरीकरण ।
2.3 विवाह : परिभाषा एवं सार्वभौमिकता; विवाह के नियम (अंतर्विवाह, बहिर्विवाह, अनुलोमविवाह, अगम्यगमन निषेध); विवाह के प्रकार (एक विवाह प्रथा, बहु विवाह प्रथा, बहुपति प्रथा, समूह विवाह) । विवाह के प्रकार्य; विवाह विनियम (अधिमान्य, निर्दिध एवं अभिनिर्पधक); विवाह भुगतान (वधू धन एवं दहेज) ।
2.4 परिवार : परिभाषा एवं सार्वभौमिकता; परिवार, गृहस्थी एवं गृह्य समूह; परिवार के प्रकार्य; परिवार के प्रकार (संरचना, रक्त-संबंध, विवाह, आवास एवं उत्तराधिकार के परिप्रेक्ष्य से); नगरीकरण, औद्योगिकरण एवं नारी अधिकारवादी आंदोलनों में परिवार पर प्रभाव ।
2.5 नातेदारी : रक्त संबंध एवं विवाह, संबंध; वंशानुक्रम के सिद्धांत एवं प्रकार (एकरेखीय, द्वैध, द्विपक्षीय, उभयोखीय); वंशानुक्रम, समूह के रूप (वंशपरंपरा, गोत्र, फ्रेटरी, मोइटी एवं संबंधी); नातेदारी शब्दावली (वर्णनात्मक एवं वर्गीकारक); वंशानुक्रम, वंशानुक्रमण एवं पूरक वंशानुक्रमण; वंशानुक्रमांक एवं सहबंध ।
3. आर्थिक संगठन : अर्थ, क्षेत्र एवं आर्थिक नृविज्ञान की प्रासंगिकता; रूपवादी एवं तत्ववादी बहस; उत्पादन, वितरण एवं समुदायों में विनिमय (अन्योन्यता, पुनर्वितरण एवं बाजार), शिकार एवं संग्रहण, मत्स्यन, स्विडेनिंग, पशुचारण, उद्यानकृषि एवं कृषि पर निर्वाह; भूमंडलीकरण एवं देशी आर्थिक व्यवस्थाएं ।
4. राजनैतिक संगठन एवं सामाजिक नियंत्रण : टोली, जनजाति, सरदारी, राज एवं राज्य; सत्ता, प्राधिकार एवं वैधता की संकल्पनाएं; सरल समाजों में सामाजिक नियंत्रण, विधि एवं न्याय ।
5. धर्म : धर्म के अध्ययन में नृवैज्ञानिक उपागम (विकासात्मक, मनोवैज्ञानिक एवं प्रकार्यात्मक); एकेश्वरवाद; पवित्र एवं अपावन; मिथक एवं कर्मकांड; जनजातीय एवं कृषक


समाजों में धर्म के रूप (जीववाद, जीवात्मावाद, जड्यूजा, प्रकृतिपूजा एवं गणचिह्नवाद); धर्म जादू एवं विज्ञान विशिष्ट; जादुई-धार्मिक कार्यकर्ता (पुजारी, शमन, ओझा, ऐंडजालिक और डाइन) ।
6. नृवैज्ञानिक सिद्धांत :
(क) क्लासिकौ विकासवाद (टाइलर, मॉर्गन एवं क्रेजर)
(ख) ऐतिहासिक विशिष्टतावाद (बोआस); विसरणवाद (बिटिश, जर्मन एवं अमरीको)
(ग) प्रकार्यवाद (मैलिनोब्स्को); संरचना-प्रकार्यवाद (रैडक्लिफ-झाडन)
(घ) संरचनावाद (लेवो स्ट्राश एवं ई लौश)
(च) संस्कृति एवं व्यक्तित्व (बेनेडिक्ट, मोड, लिटन, कार्डिनर एवं कोरा-दु-बुवा)
(छ) नव-विकासवाद (चिल्ड, व्हाइट, स्ट्यूवर्ड, शाहलिन्स एवं सर्विस)
(ज) सांस्कृतिक भौतिकवाद (हैरिस)
(झ) प्रतीकात्मक एवं अर्थनिरूपी सिद्धांत (टर्नर, श्नाइडर एवं गौर्द्ज) ।
(क) संज्ञानात्मक सिद्धांत (टाइलर काक्सिन)
(ख) नृविज्ञान में उत्तर-आधुनिकतावाद
7. संस्कृति, भाषा एवं संचार : भाषा का स्वरूप, उद्गम एवं विशेषताएं; वाचिक एवं अवाचिक संप्रेषण; भाषा प्रयोग के सामाजिक संदर्भ ।
8. नृविज्ञान में अनुसंधान पद्धतियां :
(क) नृविज्ञान में क्षेत्रकार्य परंपरा
(ख) तकनीक, पद्धति एवं कार्य-विधि के बीच विभेद
(ग) दत्त संग्रहण के उपकरण : प्रेक्षण, साक्षात्कार, अनुसूचियां, प्रश्नावली, केस अध्ययन, वंशावली, मौखिक इतिहास, सूचना के द्वितीयक स्रोत, सहभागिता पद्धति ।
(घ) दत्त का विश्लेषण, निर्वचन एवं प्रस्तुतीकरण ।
9.1 मानव आनुवंशिकी-पद्धति एवं अनुप्रयोग : मनुष्य परिवार अध्ययन में आनुर्वशिक सिद्धांतों के अध्ययन की पद्धतियां (वंशावली विश्लेषण, युग्म अध्ययन, पोच्यपुत्र, सह-युग्म पद्धति, कोशिका-जननिक पद्धति, गुणसूत्री एवं केन्द्रक प्ररूप विश्लेषण), जैव रसायनी पद्धतियां, रोधक्षमतात्मक पद्धतियां, D.N.A. प्रौद्योगिकी, एवं पुनर्योगज प्रौद्योगिकियां।
9.2 मनुष्य-परिवार अध्ययन में मेंडेलीय आनुवंशिकी, मनुष्य में एकल उपादान, बहु उपादान, घातक, अवधातक एवं अनेकजीनी वंशागति ।
9.3 आनुवंशिक बहुरूपता एवं वरण की संकल्पना, मेंडेलीय जनसंख्या, हार्डों-वीनवर्ग नियम; बारंबारता में कमी

लाने वाले कारण एवं परिवर्तन-उत्परिवर्तन विलयन, प्रवासन, वरण, अंतःप्रजनन एवं आनुवंशिक स्मृति । समरक्त एवं असमरक्त समागम, आनुवंशिक भार, समरक्त एवं भाँगवी-बंधु विवाहों के आनुवंशिक प्रभाव ।
9.4 गुणसूत्र एवं मनुष्य में गुणसूत्री विपथन, क्रियाविधि :
(क) संख्यात्मक एवं संरचनात्मक विपथन (अव्यस्थाएं)
(ख) लिंग गुणसूत्री विपथन-क्लाइनफेल्टर ( $x x y$ ), टर्नर (xo), अभिजत्या ( $x x x$ ), अंतर्लिंग एवं अन्य संलक्षणात्मक अव्यवस्थाएं ।
(ग) अर्लिंग सूत्री विपथन-डाडन संलक्षण, पातो, एडवर्ड एवं क्रि-टु-शॉ संलक्षण
(घ) मानव रोगों में आनुवंशिक अध्यंकन, आनुवंशिक स्क्रीनिंग, आनुवंशिक उपबोधन, मानव DNA, प्रोफाइलिंग, जीन मैपिंग एवं जीनोम अध्ययन ।
9.5 प्रजाति एवं प्रजातिवाद, दूरीक एवं अदूरीक लक्षणों को आकारिकीय विभिन्नताओं का जीववैज्ञानिक आधार । प्रजातीय निकष, आनुवंशिकता एवं पर्यावरण के संबंध में प्रजातीय विशेषक; मनुष्य में प्रजातीय वर्गीकरण, प्रजातीय विभेदन एवं प्रजाति संकरण का जीव वैज्ञानिक आधार ।
9.6 आनुवंशिक चिह्नक के रूप में आयु, लिंग एवं जनसंख्या विभेद-ABO, Rh रक्तसमूह, HLA Hp, ट्रैन्सफेरिन, Gm, रक्त एन्जाइम । शरीरक्रियात्मक लक्षण-विभिन्न सांस्कृतिक एवं सामाजिक-आर्थिक समूहों में Hb , स्तर, शरीर वसा, स्यंट दर, श्वसन प्रकार्य एवं संवेदी प्रत्यक्षण ।
9.7 पारिस्थितिक नृविज्ञान को संकल्पनाएं एवं पद्धतियां । जैव-सांस्कृतिक अनुकूलन-जननिक एवं अजननिक कारक। पर्यावरणीय दबावों के प्रति मनुष्य की शरीरक्रियात्मक अनुक्रियाएं : गर्म मरूभूमि, स्रोत उच्च तुंगता जलवायु ।
9.8 जानपदिक रोग विज्ञानीय नृविज्ञान : स्वास्थ्य एवं रोग। संक्रामक एवं असंक्रामक रोग । पोषक तत्वों की कमी से संबंधित रोग ।
10. मानव वृद्धि एवं विकास को संकलपना : वृद्धि की अवस्थाएंप्रमव पूर्व, प्रसव, शिशु, बचपन, किशोरावस्था, परिपक्वावस्था, जटत्व ।

  • वृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले कारक : जननिक, पर्यावरणीय, जैव रासायनिक, पोषण संबंधी, सांस्कृतिक एवं सामाजिक-आर्थिक ।
  • कालप्रभावन एवं जस्त्व । सिद्धांत एवं प्रेक्षण-जैविक एवं कालानुक्रमिक दीर्घ आयु । मानवीय शरीर गठन एवं कामप्ररूप । वृद्धि अध्ययन की क्रियाविधियां ।
    11.1 रजोदर्शन, रजोनिवृत्ति एवं प्रजनन शक्ति की अन्य जैव घटनाओं की प्रासंगिकता । प्रजनन शक्ति के प्रतिरूप एवं विभेद ।

11.2 जनांकिकीय सिद्धांत-जैविक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक।
11.3 बहुप्रजता, प्रजनन शक्ति, जन्मदर एवं मृत्युदर को प्रभावित करने वाले जैविक एवं सामाजिक-आर्थिक कारण।
12. नृविज्ञान के अनुप्रयोग : खेलों का नृविज्ञान, गौत्रभ्यात्मक नृविज्ञान, रक्षा एवं अन्य उपकरणों को अभिकल्पना में नृविज्ञान, न्यायालंभिक नृविज्ञान, ज्यवितगत अभिज्ञान एवं पुनर्रचना को पद्धतियाँ एवं सिद्धांत । अनुप्रयुक्त मानव आनुवंशिकी-पितृत्व निदान, जननिक उपयोजन एवं सुजननिकी, रोगों एवं आयुर्विज्ञान में DNA प्रौद्योगिकी, जनन-जीवविज्ञान में सीरम-आनुवंशिकी तथा कोशिका़आनुवंशिकी ।

प्रश्न-पत्र-II

1.1 भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का विकास–प्रागैतिहासिक (पुरापाषाण, मध्यपाषाण, नवपाषाण तथा नवपाषाणताम्रपाषाण) । आश्चर्यतिहासिक (सिंधु सभ्यता) : हड्प्या-पूर्व, हड्प्याकालीन एवं पश्च-हड्प्या संस्कृतियां । भारतीय सभ्यता में जनजातीय संस्कृतियों का योगदान।
1.2 शिवालिक एवं नर्मदा होणों के विशेष संदर्भ के साथ भारत से पूरा-नृवैज्ञानिक साक्ष्य (रामापिथकस, शिवापिथेकस एवं नर्मदा मानव)।
1.3 भारत में नृजाति-पुरातत्त्व विज्ञान : नृजाति-पुरातत्त्व विज्ञान की संकल्पना : शिकारी, रसदखोजी, मछियारी, पशुवारक एवं कृषक समुदायों एवं कला और शिल्प उत्पादक समुदायों में उत्तरजीवक एवं समांतरक ।
2. भारत की जनांकिकीय परिच्छेदिका-भारतीय जनसंख्या एवं उनके वितरण में नृजातीय एवं भाषायी तत्व। भारतीय जनसंख्या – इसकी संरचना और वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारक ।
3.1 पारंपरिक भारतीय सामाजिक प्रणाली की संरचना और स्वरूप—वर्णाश्रम, पुरुषार्थ, कर्म, ऋण एवं पुनर्जन्म !
3.2 भारत में जाति व्यवस्था—संरचना एवं विशेषताएं, वर्ण एवं जाति, जाति व्यवस्था के उद्गम के सिद्धांत, प्रबल जाति, जाति गतिशीलता, जाति व्यवस्था का भविष्य, जजमानी प्रणाली, जनजाति-जाति सातत्यक ।
3.3 पवित्र-मनोग्रॉथ एवं प्रकृति-मनुष्य-प्रेतात्मा मनोग्रॉथ ।
3.4 भारतीय समाज पर बौद्ध धर्म, जैन धर्म, इस्लाम और ईसाई धर्म का प्रभाव ।
4. भारत में नृविज्ञान का आविर्भाव एवं संवृद्धि—18वीं, 19वीं, एवं प्रारंभिक 20वीं शताब्दी के शास्त्रज्ञ-प्रशासकों के योगदान। जनजातीय एवं जातीय अध्ययनों में भारतीय नृवैज्ञानिकों के योगदान।
5.1 भारतीय ग्राम : भारत में ग्राम अध्ययन का महत्व : सामाजिक प्रणाली के रूप में भारतीय ग्राम; बस्ती एवं अंतर्जाति संबंधों के पारम्परिक एवं बदलते प्रतिरूप : भारतीय ग्रामों

में कृषिक संबंध : भारतीय ग्रामों पर पूर्वइलोकरण का प्रभाव।
5.2 भाषायी एवं आर्थिक अल्पसंख्यक एवं उनकी सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक स्थिति ।
5.3 भारतीय समाज में सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन को दर्शाए एवं बहिजात प्रक्रियाएं,–सांस्कृतिकरण, पश्चिमोकरण, आधुनिकीकरण; छोटी एवं बड़ी परम्पराओं का परस्परप्रभाव; वंशावतीराज एवं सामाजिक परिवर्तन; मीडिया एवं सामाजिक परिवर्तन।
6.1 भारत में जनजातीय स्थिति-जैव जननिक परिवर्तितता, जनजातीय जनसंख्या एवं उनके वितरण की भाषायी एवं सामाजिक-आर्थिक विशेषताएं।
6.2 जनजातीय समुदायों को समस्याएं,—भूमि संक्रामण, गरीबी, ऋणग्रस्तता, अल्प साक्षरता, अपर्याप्त शैक्षिक सुविधाएं, बेरोजगारी, अल्परोजगारी, स्वास्थ्य तथा पोषण।
6.3 विकास परियोजनाएं एवं जनजातीय स्थानांतरण तथा पुनर्वास समस्याओं पर उनका प्रभाव। वन नीतियों एवं जनजातियों का विकास । जनजातीय जनसंख्या पर नगरीकरण तथा औद्योगिकीकरण का प्रभाव।
7.1 अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के पोषण तथा बंधन की समस्याएं । अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए सांविधानिक रक्षोपाय ।
7.2 सामाजिक परिवर्तन तथा समकालीन जनजाति समाज : जनजातियों तथा कमजोर वर्गों पर आधुनिक लोकतांत्रिक संस्थाओं, विकास कार्यक्रमों एवं कल्याण उपायों का प्रभाव।
7.3 नृजातीयता की संकल्पना : नृजातीय द्वन्द्व एवं राजनैतिक विकास : जनजातीय समुदायों के बीच अशांति : क्षेत्रीयतावाद एवं स्वायत्तता की मांग; छद्म जनजातिवाद; औपनिवेशिक एवं स्वातंत्र्योतर भारत के दौरान जनजातियों के बीच सामाजिक परिवर्तन ।
8.1 जनजातीय समाजों पर हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम तथा अन्य धर्मों का प्रभाव।
8.2 जनजाति एवं राष्ट्र राज्य-भारत एवं अन्य देशों में जनजातीय समुदायों का तुलनात्मक अध्ययन।
9.1 जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन का इतिहास, जनजाति नीतियां, योजनाएं, जनजातीय विकास के कार्यक्रम एवं उनका कार्यान्वयन। आदिम जनजातीय समूहों (PTGs) की संकल्पना, उनका वितरण, उनके विकास के विशेष कार्यक्रम। जनजातीय विकास में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका।
9.2 जनजातीय एवं ग्रामीण विकास में नृविज्ञान की भूमिका।
9.3 क्षेत्रीयतावाद, सांप्रदायिकता, नृजातीय एवं राजनैतिक आंदोलनों को समझने में नृविज्ञान का योगदान।


वनस्पति विज्ञान

प्रश्नपत्र-1

1. सूक्ष्मजैविकी एवं पादपरीग विज्ञान :

विषाणु, वाइरहिट, जीवाणु, फंगाई एवं माइकोप्लान्मा संरचना एवं जनन । बहुगुणन । कृषि, उद्योग चिकित्सा तथा वायु एवं मृदा एवं जल में प्रदूषण-नियंत्रण में सूक्ष्मजैविकी के अनुप्रयोग। प्रायोन एवं प्रायोन घटना।

विषाणुओं, जीवाणुओं, माइकोप्लान्मा, फंगाई तथा सूत्रकुमियों द्वारा होने वाले प्रमुख पादप रोग । संक्रमण और फैलाव को विधियाँ । संक्रमण तथा रोग प्रतिरोध के आण्विक आधार । परकविता की कार्यिकों और नियंत्रण के उपाय । कवक आदिष । मॉडलन एवं रोग पूर्वानुमान, पादप संगरोध ।

2. क्रिप्टोगेम्स :

शैवाल, कवक, लाइकन, ब्रायोफाइट, टेरीडोफाइट-संरचना और जनन के विकासात्मक पहलू । भारत में क्रिप्टोगेम्स का वितरण और उनका परिस्थितिक एवं आर्थिक महत्व।

3. पुष्पोदभिद :

अनावृत बीजों : पूर्व अनावृत बीजों को अवधारणा। अनावृतबीजों का वर्गीकरण और वितरण । साइकैडेलोज, गिंगोऐजोज, कोनीफेरेलीज और नोटेलोज के मुख्य लक्षण, संरचना व जनन । साईकैडॉफिलिकैलोज, बैन्नेटिटेलोज तथा कार्टेटेलोज का सामान्य वर्णन । भूवैज्ञानिक समयपापनी, जीवाश्मप्रकार एवं उनके अध्ययन की विधियाँ । आवृतबीजों : वर्गिकी, शारीरिकी, ध्रूणविज्ञान, परागाणुविज्ञान और जातिवृत ।

वर्गिकी सोपान, वानस्पतिक नामपद्धति के अंतर्राष्ट्रीय कूट, संख्यात्मक वर्गिकी एवं रसायन-वर्गिकी शारीरिकी, ध्रूण विज्ञान एवं परागाणु विज्ञान से साक्ष्य ।

आवृत बीजियों का उदूगम एवं विकास, आवृत बीजियों के वर्गीकरण को विभिन्न प्रणालियों का तुलनात्मक विवरण, आवृत बीजों कुलों का अध्ययन-मैग्नोलिएसी, रैननकुलैसी, ब्रैसोकसी, रोजेसी, फेबेसी, यूफार्विएसी, मालवेसी, डिप्टेरेकार्पेसी, एपिएसी, एस्क्लेपिडिएसी, वर्बिनेसी, सोलैनेसी, रूविएसी, कुकुरबिटेली, ऐस्टोरेसी, पोएसी, ओरकेसी, लिलिएसी, म्यूजेसी एवं ऑकिडेसी । रंध्र एवं उनके प्रकार, ग्रंथीय एवं आर्थीय टाइकोम, विसंगत द्वितीयक वृद्धि, सी-3 और सी-4 पौधों का शरीर । जाइलम एवं फलोएम विभेदन, काष्ठ शारीर ।

नर और मादा युग्मकोद्भिद् का परिवर्धन, परागण, निषेचन । ध्रूणपोष-इसका परिवर्धन और कार्य । ध्रूण परिवर्धन के स्वरूप । बहुध्रूणता, असंगजनन, परागाणु विज्ञान के अनुप्रयोग, परागर्थडारण एवं टेस्ट ट्यूब निषेचन सहित प्रयोगात्मक ध्रूण विज्ञान ।

4. पादप संसाधन विकास :

पादप ग्राम्यन एवं परिचय, कृष्ट पौधों का उद्भव, उद्भव संबंधी वैवीलोव के केंद्र, खाद्य, चारा, रेशों, मसालों, पेय पदार्थों, खाद्य तेलों, औषधियों, स्वापकों, कोटनाशियों, इमारती लकड़ों, गोंद, रेजिनों तथा रंजकों के स्रोतों के रूप में पौधे, लेटेक्स, सेलुलोस, मंड और उनके उत्पाद । इत्रसाजी । भारत के संदर्भ में नुकूलवनस्पतिकी का महत्व । ऊर्जा वृक्षरोपण, वानस्पतिक उद्यान और पादपालय ।

5. आकारजनन :

पूर्ण शक्तता, ध्रुवणता, सममिति और विभेदन । कोशिका, ऊतक, अंग एवं जीवद्रव्यक संवर्धन । कायिक संकर और द्रव्य संकर । माइक्रोप्रोपेगेशन, सोमाक्लोनल विविधता एवं इसका अनुप्रयोग, पराग अगुणित, अम्ब्रियोरेस्क्यु विधियाँ एवं उनके अनुप्रयोग ।

प्रश्न पत्र-2

1. कोशिका जैविकी :

कोशिका जैविकी की प्रविधियाँ । प्राक्कंडकी और सुकंडकी कोशिकाएँ-संरचनात्मक और परासंरचनात्मक बारीकियाँ । कोशिका बाह्य आधात्री अथवा कोशिकाबाह्‌य आब्यूह (कोशिका भित्ति) तथा झिल्लियों की संरचना और कार्य-कोशिका आसंजन, झिल्ली अभिगमन तथा आशयी अभिगमन । कोशिका अंगकों (हरित लवक सूत्रकणिकाएँ, ई आर, डिक्टियोसीम, राइबोसोम, अंतःकाव, लयनकाव, परऑक्सीसोम) की संरचना और कार्य । साइटोस्केलेटन एवं माइक्रोट्यूब्यूल्स, कँडक, कोंडक, कोंडी रंध्र सम्मिश्र । क्रोमेटिन एवं न्यूक्लियोसोम । कोशिका संकेतन और कोशिकाग्राही । संकेत पारक्रमण । समसूत्रण और अर्थसूत्रण विभाजन, कोशिका चक्र का आण्विक आधार । गुणसूत्रों में संख्यात्मक और संरचनात्मक विभिन्नताएँ तथा उनका महत्व । क्रोमेटिन व्यवस्था एवं जीनोम संवेष्टन, पॉलिटीन गुणसूत्र, बी-गुणसूत्र-संरचना व्यवहार और महत्व ।

2. आनुवंशिकी, आण्विक जैविकी और विकास :

आनुवंशिकी का विकास और जीन बनाम युग्मविकल्पी अवधारणा (कूट विकल्पी), परिमाणात्मक आनुवंशिकी तथा बहुकारक । अपूर्ण प्रभाविता, बहुजननिक वंशागति, बहुविकल्पी सहलग्नता तथा विनिमयआण्विक मानचित्र (मानचित्र प्रकार्य की अवधारण) सहित जीन मानचित्रण की विधियाँ । लिंग गुणसूत्र तथा लिंग सहलग्न वंशागति, लिंग निर्धारण और लिंग विभेदन का आण्विक आधार । उत्परिवर्तन (जैव रासायनिक और आण्विक आधार) कोशिकाहव्यों वंशागति एवं कोशिकाहव्यों जीन (नर बंध्यता को आनुवंशिकी सहित) ।

न्यूक्लीय अम्लों और प्रोटीनों की संरचना तथा संश्लेषण । अनुवशिक कूट और जीन अभिव्यक्ति का नियमन । जीन नीरवता, बहुजीन कुल, जैव विकास-प्रमाण, क्रियाविधि तथा सिद्धांत । उद्भव तथा विकास में RNA की भूमिका।

3. पादप प्रजनन, जैव प्रोद्योगिकी तथा जैव सांख्यिकी :

पादप प्रजनन की विधियाँ-आप्रवेश, चयन तथा संकरण । (वंशावली, प्रतीप संकर, सामूहिक चयन, व्यापक पद्धति) उत्परिवर्तन, बहुगुणिता, नरबंध्यता तथा संकर ओज प्रजनन । पादप प्रजनन में असंगजनन का उपयोग । DNA अनुक्रमण, आनुवंशिक इंजीनियरी-जीन अंतरण की विधियाँ; पारजोनी सस्य एवं जैव सुरक्षा पहलू, पादप प्रजनन में आण्विक चिह्नक का विकास एवं उपयोग । उपकरण एवं तकनीक-प्रोब, दक्षिणी ब्लास्टिंग, DNA फिंगर प्रिंटिंग, PCR एवं FISH । मानक विचलन तथा विचरण गुणांक (सी बी), सार्थकता परीक्षण, (जैड- परीक्षण, टी-परीक्षण तथा काई-वर्ग परीक्षण) । प्रायिकता तथा बंटन (सामान्य, द्विपदी तथा प्यासों बंटन) संबंधन तथा समाश्रयण ।

4. शरीर क्रिया विज्ञान तथा जैव रसायनिकी :

जल संबंध, खनिज पोषण तथा आयन अभिगमन, खनिज न्यूनताएँ । प्रकाश संश्लेषण-प्रकाश रसायनिक अभिक्रियाएँ, फोटो फोस्फोरिलेशन एवं कार्बन फिक्सेशन पाथवे, $\mathrm{C}{3}, \mathrm{C}{4}$ और कँम दिशामार्ग । फ्लोएम परिवहन की क्रियाविधि श्वसन (किण्वन सहित अवायुजीवीय और वायुजीवीय)-इलेक्ट्रॉन अभिगमन शृंखला और ऑक्सीकरणी फास्फोरिलेशन फोटो श्वसन, रसोपरासरणी सिद्धांत तथा ATP संश्लेषण । लिपिड उपापचय, नाईट्रोजन स्थिरीकरण एवं नाइट्रोजन उपापचय । किण्व, सहकिण्व, ऊर्जा


अवरण तथा ऊर्जा संरक्षण । द्वितीयक उपापचयनों का महत्व । प्रकाशग्राहियों के रूप में वर्णक (पलैस्टिडियल वर्णक तथा पादप वर्णक), पादप संचलन, दीप्तिकालिता तथा पुष्पन, बसंतीकरण, जीर्णन । वृद्धि पदार्थ-उनकी रासायनिक प्रकृति, कृषि बागवानी में उनकी भूमिका और अनुप्रयोग, वृद्धिसंकेत, वृद्धिगतियाँ । प्रतिबल शारीरिकी (ताप, जल, लक्णता, धातु) । फल एवं बीज शारीरिकी । बीजों को प्रसुप्ति, भंडारण तथा उनका अंकुरण । फल का पकना-इसका आण्विक आधार तथा मैनिपुलेशन ।

5. परिस्थितिकी तथा पादप भूगोल :

परितंत्र की संकल्पना, पारिस्थितिक कारक । समुदाय की अवधारणाएँ और गतिकी पादप अनुक्रमण । जीव मंडल की अवधारणा । पारितंत्र, संरक्षण । प्रदुषण और उसका नियंत्रण (फाइटोरेमिडिएशन सहित)। पादप सूचक, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम ।

भारत में वनों के प्रारूप-वनों का पारिस्थितिक एवं आर्थिक महत्व । वनरोपण, वनोन्मूलन तथा सामाजिक वानिकी । संकटापन्न पौध, स्थानिकता, IUCN कोटियाँ, रेड डाटा बुक । जैव विविधता एवं उसका संरक्षण, संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क, जैव विविधता पर सम्मेलन, किसानों के अधिकार एवं बौद्धिक संपदा अधिकार, संपोषणीय विकास की संकल्पना, जैव-भू-रासायनिक चक्र, भूमंडलीय तापन एवं जलवायु परिवर्तन, संक्रामक जातियाँ, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन, भारत के पादप भूगोलीय क्षेत्र ।

रसायन विज्ञान

प्रश्न पत्र-1

  1. परमाणु संरचना : क्वांटम सिद्धांत, हाइसेन वर्ग का अनिश्चितता सिद्धांत, श्वेडिंगर तरंग समीकरण (काल अनाश्चित, तरंग फलन की व्याख्या, एकल विर्मीय बॉक्स में कण, क्वांटम संख्याएं, हाइड्रोजन परमाणु तरंग फलन । S, P और D कक्षकों की आकृति ।
  2. रसायन आबंध : आयनी आबंध, आयनी यौगिकों के अधिलक्षण, जालक ऊर्जा, बार्नहैबर चक्र; सहसंयोजक आबंध तथा इसके सामान्य अभिलक्षण । अणुओं में आबंध की ध्रुवणता तथा उसके द्विध्रुव अपूर्ण । संयोजी आबंध सिद्धांत, अनुनाद तथा अनुनाद ऊर्जा की अवधारणा । अणु कक्षक सिद्धांत (LCAO पद्धति); $\mathrm{H}{2}+\mathrm{H}{2}, \mathrm{He}{2}+$ से $\mathrm{Ne}{2}, \mathrm{NO}, \mathrm{CO}, \mathrm{HF}$ एवं CN । संयोजी आबंध तथा अणुकक्षक सिद्धांतों की तुलना, आबंध कोटि, आबंध सामर्थ्य तथा आबंध लंबाई ।
  3. ठोस अवस्था : क्रिस्टल पद्धति, क्रिस्टल फलकों, जालक संरचनाओं तथा यूनिट सेल का स्पष्ट उल्लेख । ब्रेग का नियम, क्रिस्टल द्वारा X-रे विवर्तन; क्लोज पैकिंग (ससंकुलित रचना), अर्धव्यास अनुपात नियम, सीमांत अर्धव्यास अनुपात मानों के आकलन । $\mathrm{NaCl}, \mathrm{Zns} \mathrm{CsCl}$ एवं $\mathrm{CaF}_{2}$ की संरचना । स्टाइकियोमीट्रिक तथा नॉन-स्टाइकियोमीट्रिक दोष, अशुद्धता दोष, अर्द्धचालक ।
  4. गैस अवस्था एवं परिवहन परिघटना : वास्तविक गैसों की अवस्था का समीकरण, अंतरासणुक पारस्परिक क्रिया, गैसों का हवीकरण तथा क्रांतिक घटना, मैक्सवेल का गति वितरण, अंतराणुक संघट्ट, दीवार

पर संघट्ट तथा अभिस्पंदन, ऊष्मा चालकता एवं आदर्श गैसों की श्यानता ।
5. द्रव अवस्था : केल्विन समीकरण, पृष्ठ तनाव एवं पृष्ठ उर्जा, आईक एवं संस्मर्श कोण, अंतरापृष्टीय तनाव एवं कोशिका क्रिया ।
6. ऊष्मागतिकी : कार्य, ऊष्मा तथा आंतरिक ऊर्जा; ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम, ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम; एंट्रोपी एक अवस्था फलन के रूप में, विभिन्न प्रक्रमों में एंट्रोपी परिवर्तन, एंट्रोपी उत्क्रमणीयता तथा अनुत्क्रमणीयता, मुक्त ऊर्जा फलन, अवस्था का ऊष्मागतिकी समीकरण, मैक्सवेल संबंध; ताप, आयतन एवं $\mathrm{U}, \mathrm{H}, \mathrm{A}, \mathrm{G}, \mathrm{Cp}$ एवं Cv , $\alpha$ एवं $\beta$ की दाब निर्भरता; J-T प्रभाव एवं व्युत्क्रमण ताप; साम्य के लिए निकष, साम्य स्थिरांक तथा ऊष्मागतिकीय राशियों के बीच संबंध, नेर्न्ट ऊष्मा प्रयेय तथा ऊष्मागतिकी का तीसरा नियम ।
7. प्रावस्था साम्य तथा विलयन : क्लासियस-क्लेपिरन समीकरण, शुद्ध पदार्थों के लिए प्रावस्था आरेख; द्विआधारी पद्धति में प्रावस्था साम्य, आंशिक मिश्रणीय द्रव-उच्चतर तथा निम्नतर क्रांतिक विलयन ताप; आंशिक मोलर राशियां, उनका महत्त्व तथा निर्धारण; आधिक्य ऊष्मागतिकी फलन और उनका निर्धारण ।
8. विद्युत रसायन : प्रबल विद्युत अपघट्यों का डेबाई हुकेल सिद्धांत एवं विभिन्न साम्य तथा अधिगमन गुणधर्मों के लिए डेबाई हुकेल सीमांत नियम । गेल्वेनिक सेल, सांद्रता सेल; इलेक्ट्रोकॅमिकल सीरीज, सेलों के emf का मापन और उसका अनुप्रयोग; ईंधन सेल तथा बैटरियां। इलैक्ट्रोड पर प्रक्रम; अंतरापृष्ठ पर द्विस्वर; चार्ज ट्रांस्फर की दर, विद्युत धारा घनत्व; अतिविषय; वैद्युत विश्लेषण तकनीक; पोलरोग्राफी, एंपरिमिति, आयन वरणात्मक इलेक्ट्रोड एवं उनके उपयोग ।
9. रासायनिक बलगतिकी : अभिक्रिया दर को सांद्रता पर निर्भरता, शून्य, प्रथम, द्वितीय तथा आंशिक कोटि की अभिक्रियाओं के लिए अवकल और समाकल दर समीकरण; उत्क्रम, समान्तर, क्रमागत तथा श्रृंखला अभिक्रियाओं के दर समीकरण; शाखन श्रृंखला एवं विस्फोट; दर स्थिरांक पर ताप और दाब का प्रभाव । स्टॉप-पर्ला और रिलेक्सेशन पद्धतियों द्वारा हुत अभिक्रियाओं का अध्ययन । संघटन और संक्रमण अवस्था सिद्धांत ।
10. प्रकाश रसायन : प्रकाश का अवशोषण; विभिन्न मार्गों द्वारा उत्तेजित अवस्था का अवसान; हाइड्रोजन और हेलोजनों के मध्य प्रकाश रसायन अभिक्रिया और उनकी क्वांटमी लब्धि ।
11. पृथ्वीय परिघटना तथा उत्प्रेरकता : ठोस अधिशोषकों पर गैसों और विलयनों का अधिशोषण, लैंगम्यूर तथा BET अधिशोषण रेखा; पृथ्वीय क्षेत्रफल का निर्धारण; विषमांगी उत्प्रेरकों पर अभिक्रिया, अभिलक्षण और क्रियाविधि ।
12. जैव अकार्बनिक रसायन : जैविक तंत्रों में धातु आयन तथा भित्ति के पार आयन गमन (आण्विक क्रियाविधि); ऑक्सीजन अपटेक प्रोटीन, साइटोक्रोम तथा फेरोडेक्सिन ।


  1. समन्वय रसायन :
    (क) धातु संकुल के आबंध सिद्धांत, संयोजकता आबंध सिद्धांत, क्रिस्टल फील्ड सिद्धांत और उसमें संशोधन, धातु संकुल के चुंबकीय तथा इलेक्ट्रानिक स्पेक्ट्रम कर व्याख्या में सिद्धांतों का अनुप्रयोग ।
    (ख) समन्वयी यौगिकों में आइसोमेरिन्म । समन्वयी यौगिकों का UPAC नामकरण; 4 तथा 6 समायोजन वाले सुंकलॉ त्रिविम रसायन, किलेट प्रभाव तथा बहुनाभिकीय संकुल; परा-प्रभाव और उसके सिद्धांत; वर्ग समतली संकुल में प्रतिस्थापनिक अभिक्रियाओं की बलगतिकी; संकुलों की तापगतिकी तथा बलगतिकी स्थिरता ।
    (ग) मैटल कार्बोनिलों की संश्लेषण संरचना तथा उनकी अभिक्रियात्मकता; कार्बोक्सिलेट एनॉयन, कार्बोनिल हाइड्राइड तथा मैटल नाइट्रोसील यौगिक ।
    (घ) एरोमैटिक प्रणाली के संकुलों, मैटल ओलेफिन संकुलों में संश्लेषण, संरचना तथा बंध, एल्काइन तथा सायक्लोपेंटाडायनिक संकुल, समन्वयी असंतृप्तता, आक्सीडेटिव योगात्मक अभिक्रियाएँ, निवेशन अभिक्रियाएँ, प्रवाही अणु और उनका अभिलक्षण, मैटल-मैटल आबंध तथा मैटल परमाणु गुच्छे वाले यौगिक ।
  2. मुख्य समूह रसायनिकी : बोरेन, बोराजाइन, फास्फेजीन एवं चक्रीय फास्फेजीन, सिलिकेंट एवं सिलिकॉन, इंटरहैलोजन यौगिक; गंधक-नाइट्रोजन यौगिक, नॉबुल गैस यौगिक ।
  3. F ब्लॉक तत्वों का सामान्य रसायन : लन्थेनाइड एवं एक्टीनाइड; पृथक्करण, आक्सीकरण अवस्थाएँ, चुंबकीय तथा स्पेक्ट्र्रों गुणधर्म; लैथेनाइड संकुचन ।

प्रश्न पत्र-2

  1. विस्थापित सहसंयोजक बंध : एरोमैटिकता, प्रतिएरोमैटिकता; एन्यूलीन, एजुलीन, ट्रोपोलोन्स, फुल्लीन, सिडनोन ।
  2. (क) अभिक्रिया क्रियाविधि : कार्बनिक अभिक्रियाओं की क्रियाविधियों के अध्ययन की सामान्य विधियाँ (गतिक एवं गैर-गतिक दोनों), समस्थानिकी विधि, क्रास-ओवर प्रयोग, मध्यवर्ती ट्रेपिंग, त्रिविम रसायन, सक्रियण ऊर्जा, अभिक्रियाओं का ऊष्मागतिकी नियंत्रण तथा गतिक नियंत्रण ।
    (ख) अभिक्रियाशील मध्यवर्ती: कार्बोनियम आयनों तथा कारबेनायनों, मुक्त मूलकों (फ्रो रेडिकल) कार्बोनों बेंजाइनों तथा नाइट्रनों का उत्पादन, ज्यामिति, स्थिरता तथा अभिक्रिया ।
    (ग) प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ: $\mathrm{SN}{2}, \mathrm{SN}{3}$ एवं SNi क्रियाविधियाँ प्रतिवेशी समूह भागीदारी, पाइसेल, फ्यूरन, थियॉफिन, इंडोन जैसे हेट्रॉइक्लिक यौगिकों सहित ऐरोमैटिक यौगिकों की इलेक्ट्राफिलिक तथा न्यूकियोफिलिक अभिक्रियाएँ।
    (घ) विलोपन अभिक्रियाएँ: $\mathrm{E}{2}, \mathrm{E}{3}$ तथा Eleb क्रियाविधियाँ; सेजैफ तथा हॉफमन $\mathrm{E}_{2}$ अभिक्रियाओं में दिक्विन्यास, पाइरोलिटिक SyN विलोपन-चुग्गीव तथा कोप विलोपन।
    (ड.) संकलन अभिक्रियाएँ: $\mathrm{C}=\mathrm{C}$ तथा $\mathrm{C}=\mathrm{C}$ के लिए इलेक्ट्रोफिलिक संकलन, $\mathrm{C}=\mathrm{C}$ तथा $\mathrm{C}=\mathrm{N}$ के लिए न्यूक्लियोफिलिक संकलन, संयुग्मी ओलिफिल्स तथा कार्बोजिल्स।
    (च) अभिक्रियाएँ तथा पुनर्विन्यास : (क) पिनाकोलपिनाकोलोन, हॉफबेन, बेकमन, बेयर बिलिगर, फोवोर्स्की, फ्राइस, क्लेसेन, कोप, स्टोवेन्ज तथा वाग्नर- मेरबाइन पुनर्विन्यास।
    (छ) एल्डोल संघनन, क्लैसेन संघनन, डीकमन, परकिन, नोवेनेजेल, विटिग, क्लिमेंसन, वोल्फ किशनर, कॉनजारों तथा फान-रोक्टर अभिक्रियाएँ, स्टॉब बेंजोइन तथा एसिलोइन संघनन, फिशर इंडोल संश्लेषण, स्क्राप, संशलेषण थिश्लर-नेपिरास्की, सैंडमेयर, टाइमन तथा रेफॉरमास्की अभिक्रियाँ ।
  3. परिरंभीय अभिक्रियाएँ: वर्गीकरण एवं उदाहरण, वुडवर्ड-हॉफमैन नियम-विसुतचक्रीय अभिक्रियाएँ, चक्रो संकलन अभिक्रियाएँ ( $2+2$ एवं $4+2$ ) एवं सिग्मा-अनुवर्तनी विस्थापन ( $1,3 ; 3$, 3 तथा 1,5 ) FMO उपागम ।
  4. (i) बहुलकों का निर्माण और गुणधर्म : कार्बनिक बहुलक-पोलिएथिलीन, पोलिस्टाइरीन, पोलीविनाइल क्लोराइड, टेफलॉन, नाइलॉन, टेरोलोन, संश्लिष्ट तथा प्राकृतिक रबड़ ।
    (ii) जैव बहुलक : प्रोटीन, DNA, RNA की संरचनाएँ ।
  5. अभिकारकों के सांश्लेषिक उपयोग: $\mathrm{O}{2} \mathrm{O}{4} \mathrm{HIO}{4} \mathrm{CrO}{3}$, $\mathrm{Pb}(\mathrm{OAc}){2} \mathrm{SeO}{2} \mathrm{NBS}, \mathrm{B}{2} \mathrm{H}{4} \mathrm{Na}$ डब अमोनिया, $\mathrm{LiALH}{4} \mathrm{NabH}{4} \mathrm{n}$ Buli एवं MCPBA.

6 प्रकाश्न रसायन : साधारण कार्बनिक यौगिकों की प्रकाश रासायानिक अभिक्रियाएँ, उत्तेजित और निम्नतम् अवस्थाएँ, एकक और त्रिक अवस्थाएँ, नारिश टाइप-I और टाइप-II अभिक्रियाएँ ।
7. स्पेक्ट्रोमिकी सिद्धांत और संरचना के स्पष्टीकरण में उनका अनुप्रयोग ।
(क) घूर्णी-द्रिपरमाणुक अणु, समस्थनिक प्रतिस्थापन तथा घूर्णी स्थिरांक।
(ख) कांपनिक-द्रिपरमाणुक अणु, रैखिक त्रिपरमाणुक अणु बहुपरमाणुक अणुओं में क्रियात्मक समूहों की विशिष्ट आवृत्तियाँ।


(ग) इलेक्ट्रानिक : एकक और त्रिक अवस्थाएं : n 11* तथा 11-11 *संक्रमण, संयुग्मित द्विआबंध तथा संयुग्मित कारबोनिकल में अनुप्रयोग-वुडवर्ड-फौशर नियम: चार्ज अंतवरण स्पेक्ट्रा।
(घ) नाभिकीय चुम्बकीय अनुनाद ( 1 HNMR ) :आधारभूत सिद्धांत; रासायनिक लिफ्ट एवं स्पिन-स्मिन अप्योय्य क्रिया एवं कपलिंग स्थिरांक।
(ङ) द्रव्यमान स्पेक्ट्रोमिति : पैरेंट पीक, बेसपीक, मेटास्टेगल पीक, मैक लैफर्टी पुनर्विन्यास।

सिविल इंजीनियरी

प्रश्न पत्र-1

1. इंजीनियरी यांत्रिकी पदार्थ सामर्थ्य तथा संरचनात्मक विश्लेषण

1.1 इंजीनियरी यांत्रिकी : मात्रक तथा विमाएं, SI मात्रक, सदिश, बल की संकल्पना, कण तथा दूढ़ पिंड संकल्पना, संगामी, असंगामी तथा समतल पर समांतर बल, बल आघूर्ण, मुक्त पिंड आरेख, सप्रतिबंध साम्यावस्था, कल्पित कार्य का सिद्धांत, समतुल्य बल प्रणाली।

प्रथम तथा द्वितीय क्षेत्र आघूर्ण, द्रव्यमान जडत्व आघूर्ण
स्थैतिक घर्षण :

शुद्धगमिकी तथा गतिकी :

कार्तीय निर्देशांक शुद्धगतिकी समान तथा असमान त्वरण के अधीन गति गुरुत्वाधीन गति । कणगतिकी, संवेग तथा ऊर्जा सिद्धांत, प्रत्यास्थ पिंडों का संघट्टन दूढ़ पिंडों का घूर्णन ।
1.2 पदार्थ-सामर्थ्य : सरल प्रतिबल तथा विकृति, प्रत्यास्थ स्थिरांक, अक्षत:भारित संपीडांग अपरूपर्ण बल तथा बंकन आघूर्ण, सरलबंकन का सिद्धांत, अनुप्रस्थ काट का अपरूपण प्रतिबल वितरण, समसामर्थ्य धरण ।

धरण विक्षेप : मैकाले विधि, मोर की आघूर्ण क्षेत्र विधि, अनुरूप धरण विधि, एकांक भार विधि, शाक्ट्र की ऐंठन, स्तंभों का प्रत्यास्थ स्थायित्व । आयलर, रेनकाईन तथा सीकेट सूत्र ।
1.3 संरचनात्मक विश्लेषण : कास्टिलियानोस प्रमेय I तथा II, धरण और कोल संधियुक्त कँचो में प्रयुक्त संगत विकृति की एकांक भार विधि , ढाल विक्षेप, आघूर्ण वितरण ।

बेलन भार और प्रभाग रेखाएँ : धारण के परिच्छेद पर अपरूपण बल तथा बंकन आघूर्ण के लिए प्रभाव रेखाएँ। गतिशील भार प्रणाली द्वारा धरण चक्रमण में अधिकतम अपरू पण बल तथा बंकन आघूर्ण हेतु मानदंड। सरल आलंबित समतल कोल संधि युक्त कँचो हेतु प्रभाव रेखाएँ ।

डाट : त्रिकोल, द्विकोल तथा आवद्ध डाट-पर्श्रुका लपीयन एवं तापमान प्रभाग ।

विश्लेषण की आब्यूह विधि : अनिर्धारित धरण तथा दूढ़ द्रांचों का बल विधि तथा निस्थापन विधि से विश्लेषण ।

धरण और द्रांचों का प्लास्टिक विश्लेषण : प्लास्टिक बंकन सिद्धांत, प्लास्टिक विश्लेषण, स्थैतिक प्रणाली; यांत्रिकी विधि।

असममित बंकन : जडत्व आघूर्ण, जडत्व उत्पाद, उदारतेन अक्ष और मुख्य की स्थिति, बंकन प्रतिबल की परिगणना ।
2. संरचयस अभिकल्प : इस्पात, कंक्रीट तथा चिनाई संरचना
2.1 संरचनात्मक इस्पात अभिकल्प : संरचनात्मक इस्पात : सुरक्षा गुणक. और भार गुणक । कवचित तथा वेल्डित जोड़ तथा संयोजन । तनाव तथा सपीडांग इकाइयों का अभिकल्प, संघटित परिच्छेद का धरण कवचित तथा वेल्डित प्लेट गर्डर, गेंदो गर्डर, बैटन एवं लेसिंगयुक्त स्टेंचियन्स।
2.2 कंक्रीट तथा चिनाई संरचना का अभिकल्प : मिश्र अभिकल्प की संकल्पना, प्रबलित कंक्रीट : कार्यकारी प्रतिबल तथा सीमा अवस्था विधि से अभिकल्प-पुस्तिकाओं की सिफारिशें, वन-वे एवं टू-वे स्लैब की डिजाइन, सोपान स्लैब, आयताकार T एवं L काट क सरल एवं सतत धरण । उत्कंन्द्रता सहित अथवा रहित प्रत्यक्ष भार के अंतर्गत संपीडांग इकाइयां। विलगित एवं संयुक्त नोव। कॅटोलोवर एवं काउंटर फोर्ट प्ररूप ।

प्रतिधारक भित्ति।
जलटंकी : पृथ्वी पर रखे आयताकार एवं गोलाकार टाँकयों को अभिकल्पन आवश्यकताएं ।

पूर्व प्रतिबलित कंक्रीट: पूर्व प्रतिबलित के लिए विधियां और प्रणालियां, स्थिरक स्थान, कार्यकारी प्रतिबल आधारित आनति के लिए परिच्छेद का विश्लेषण और अभिकल्प, पूर्व प्रतिबलित हानि।
3. तरल यांत्रिकी, मुक्त बाहिका प्रवाह एवं द्रवचालित मशीनें
3.1 तरल यांत्रिकी : तरल गुणधर्म तथा तरल गति में उनकी भूमिका, तरल स्थैतिकी जिसमें समतल तथा वक्र सतह पर कार्य करने वाले बल भी शामिल हैं। तरल प्रवाह की शुद्धगतिकी एवं गतिकी: वेग और त्वरण, सरिता रेखाएं, सांतत्य समीकरण, अघूर्णी तथा घूर्णी प्रवाह, वेग त्रिभव एवं सरिता फलन। सांतत्य, संवेग एवं ऊर्जा समीकरण, नेवियर स्टोक्स समीकरण, आयलर गति समीकरण, तरल प्रवाह समस्याओं में अनुप्रयोग, पाइप प्रवाह, स्लूइस गेट, बियर।


3.2 बिमीय विश्लेषण एवं समरूपता : बकिंधम Pi-प्रमेय विमारहित

प्राचल।
3.3 स्तरीय प्रवाह : समांतर, अचल एवं चल प्लेटों के बीच स्तरीय प्रवाह, ट्यूब द्वारा प्रवाह।
3.4 परिसीमा परत : चपटी प्लेट पर स्तरीय एवं बिश्रूष्य परिसीमा परत, स्तरीय उपपरत, मसृण एवं रूक्ष परिसीमाएं, विकर्ष एवं लिफ्ट।

पाइपों द्वारा बिश्रूष्य प्रवाह: बिश्रूष्य प्रवाह के अभिलक्षण, वेग वितरण एवं पाइप घर्षण गुणक की विविधता, जलदाब प्रवणता रेखा तथा पूर्त्त उर्जा रेखा।
3.5 मुक्त बहिका प्रवाह : समान एवं असमान प्रवाह, आपूर्ण एवं ऊर्जा संशुद्धि गुणक, विशिष्ट ऊर्जा तथा विशिष्ट बल, क्रांतिक गहराई, तीव्र परिवर्ती प्रवाह, जलोच्छाल, क्रमशः परिवर्मी प्रवाह, पृष्ठ परिच्छेदिका वर्गीकरण, नियंत्रण काट, परिवर्ती प्रवाह समीकरण के समाकलन को सोपान विधि ।

3.6 द्रवचालित यंत्र तथा जलशक्ति :

द्रवचालित टरबाइन, प्रारूप वर्गीकरण, टबाइन चयन, निष्पादन प्राचल, नियंत्रण, अभिलक्षण, विशिष्ट गति । जलशक्ति विकास के सिद्धान्त।

4. भू-तकनीकी इंजीनियरी

मृदा के प्रकार एवं संरचना, प्रवणता तथा कण आकार वितरण, गाढ़ता सीमाएं।

मृदा जल कोशिकीय तथा संरचनात्मक प्रभावी प्रतिबल तथा रंध्र जल दाब, प्रयोगशाला निर्धारण, रिसन दाब, बालु पंक अवस्था-कर्तन-सामर्थ्य परीक्षण-मोर कूलांब संकल्पना-मृदा संहनन-प्रयोगशाला एवं क्षेत्र परीक्षण। संपीड्यता एवं संधिंडन संकल्पना-संधिंडन सिद्धान्त-संपीड्यता स्थिरण विश्लेषण। भूदाब सिद्धान्त एक प्रतिधारक भित्ति के लिए विश्लेषण, चादरी स्थूणाभित्ति एवं बंधनयुक्त खनन के लिए अनुप्रयोग । मृदा धारण क्षमता-विश्लेषण के उपागम-क्षेत्र परीक्षण-स्थिरण विश्लेषण-भूगढ़न ढाल का स्थायित्व।

मृदाओं का अवपृष्ठ खनन-विधियां।
नींव-संरचना नींव के प्रकार एवं चयन मापदंड-नींव अभिकल्प मापदंड -पाद एवं पाइल प्रतिबल वितरण विश्लेषण, पाइप समूह कार्य-पाइल भार परीक्षण। भूतल सुधार प्रविधियां।

प्रश्न पत्र-2

1. निर्माण तकनीकी, उपकरण, योजना और प्रबंध

1.1 निर्माण तकनीकी :

इंजीनियरी सामग्री : निर्माण सामग्री के निर्माण में उनके प्रयोग की दृष्टि से, भौतिक गुणधर्म : पत्थर, ईंट तथा टाइल, चूना, सीमेंट तथा विविध सुरखी मसाला एवं कंक्रीट । लौह सीमेंट के विशिष्ट उपयोग, तंतु प्रबर्ति C.C., उच्च सामर्थ्य कंक्रीट । इमारती लकड़ी : गुणधर्म एवं दोष, सामान्य संरक्षण, उपचार ।

कम लागत के आवास, जन आवास, उच्च भवनों जैसे विशेष उपयोग हेतु सामग्री उपयोग एवं चयन ।
1.2 निर्माण : ईंट, पत्थर, ब्लाकों के उपयोग के चिनाई सिद्धांत-निर्माण विस्तारण एवं सामर्थ्य अभिलक्षण। प्लास्टर, प्वाईंटिंग, फ्लॉरिंग, रूफिंग एवं निर्माण अभिलक्षणों के प्रकार।

भवनों के सामान्य मरम्मत कार्य।
रहिवासों एवं विशेष उपयोग के लिए भवन की कार्यात्मक योजना के सिद्धांत भवन कोड उपबंध। विम्ट्रत एवं लगभग आकलन के आभारभूत सिद्धांत-विनिर्देश लेखन एवं दर विश्लेषण-स्थावर।

संपत्ति मूल्यांकन के सिद्धांत।
मृदाबंध के लिए मशीनरी, कंक्रीटकरण एवं उनका विशिष्ट उपयोग-उपकरण चयन को प्रभावित करने वाले कारक-उपकरणों की प्रचालन लागत ।
1.3 निर्माण योजना एवं प्रबंध : निर्माण कार्यकण्ट-कार्यक्रम-निर्मण। उद्योग का संगठन गुणता आण्ट्र मन सिद्धांत।

नेटवर्क के आधारभूत सिद्धांतों का उपयोग CPM एवं FERT के रूप में विश्लेषण :-

निर्माण मॉनीटरी, लागत इष्टतमोकरण एवं संसाधन नियतन में उनका उपयोग। आर्थिक विश्लेषण एवं विधि के आधारभूत सिद्धांत।

परियोजना लाभदायकता-
वित्तीय आयोजना के बूट उपागम के आधारभूत सिद्धांत सरल टील नियतीकरण मानदंड।

2. सर्वेक्षण एवं परिवहन इंजीनियरी

2.1 सर्वेक्षण : CE कार्य की दूरी एवं कोण मापने की सामान्य विधियां एवं उपकरण, प्लेन टेबल में उनका उपयोग, चक्रम सर्वेक्षण समतलन, त्रिकोणन, रूपलेखण एवं स्थलाकृतिक मानचित्र, फोटोग्राममिति एवं दूर संवेदन के सामान्य सिद्धांत।

2.2 रेलवे इंजीनियरी :

स्थायी पथ-अवयव, प्रकार एवं उनकं प्रकार्य टर्न एवं क्रांसिंग के प्रकार्य एवं अभिकल्प घटक-ट्रैक के भूमितीय अभिकल्प की आवश्यकता-स्टेशन एवं यार्ड का अभिकल्प।
2.3 राजमार्ग इंजीनियरी : राजमार्ग संरखन के सिद्धांत, सड्कों का वर्गीकरण एवं ज्यामितिक अभिकल्प अवयव एवं सड्कों के मानक । नम्य एवं दृढ़ कुट्टिम हेतु कुट्टिम संरचना, कुट्टिम के अभिकल्प सिद्धांत एवं क्रियापद्धति। प्ररूपी निर्माण विधियां एवं स्थायीकृत मृदा, WBM, बिटुमेनी निर्माण एवं CC सड्कों के लिए सामग्री । सड्कों के लिए बहिस्तल एवं अधस्तल अपवाह विन्यास-पुलिया संरचनाएं। कुट्टिम बिश्रांभ एवं उन्हें उपरिशायी द्वारा मजबूती प्रदान करना। यातायात सर्वेक्षण


एवं यातायात आयोजना में उनको अनुप्रयोग-प्रणालित, इंटरसेक्शन एवं भूर्णो आदि के लिए अभिकल्प विशेषताएं-सिगनल अभिकल्प-मानक यातायात चिह्न एवं अंकन ।

3. जल विज्ञान, जल संसाधन एवं इंजीनियरी

3.1 जल विज्ञान : जलीय चक्र, अवक्षेपण, वाष्पीकरण, वाष्पोत्सर्जन, अंतःस्यदन, अधिभार प्रवाह, जलारेख, बाढ़, आवृत्ति विश्लेषण, जलाशय द्वारा बाढ़ अनुशीलन, वाहिका प्रवाह मार्गभिगमन-मस्किगम विधि ।
3.2 भू-तल प्रवाह : विशिष्ट लब्धि, संचयन गुणांक, पारगम्यता गुणांक, परिरुद्ध तथा अपरिरुद्ध जलप्रवाहो स्तर, एक्विटार्ड, परिरुद्ध तथा अपरिरुद्ध स्थितियों के अंतर्गत एक कूप के भीतर अरीय प्रवाह ।
3.3 जल संसाधन इंजीनियरी : भू तथा धरातल जल संसाधन, एकल तथा बहुउद्देशीय परियोजनाएं, जलाशय की संचयन क्षमता, जलाशय हानियाँ, जलाशय अवसादन ।

3.4 सिंचाई इंजीनियरी :

(क) फसलों के लिए जल की आवश्यकता : क्षयी उपयोग, कृति तथा डेल्टा, सिंचाई के तरीके तथा उनकी दक्षताएं।
(ख) नहरें : नहर सिंचाई के लिए आवंटन पद्धति, नहर क्षमता, नहर की हानियाँ, मुख्य तथा वितरिका नहरों का सखन-अत्यधिक दक्ष काट, असारित नहरें, उनकें डिजाइन, रिजीम सिद्धांत, क्रांतिक अपरूपण प्रतिबल, तल भार।
(ग) जल-गटना : कारण तथा नियंत्रण, लवणता।
(घ) नहर रंगचता : अभिकल्प, दाबोच्चता नियामक, नहर प्रपात, जलप्रभावी सेतु, अवपलिका एवं नहर विकास का मापन ।
(ङ) द्विपरिवर्ती शंर्यं कार्य पारगम्य तथा अपारगम्य नीचों पर बाधिका के सिद्धांत और डिजाइन, खोमला सिद्धांत, ऊर्जा क्षय।
(च) संचयन क : बांधों की किरमें, डिजाइन, दूढ़ गुरूत्व के सिद्धांत, २ गf :त्व विश्लेषण।
(छ) उल्लव मार्ग : उल्पलव मार्ग के प्रकार, ऊर्जा क्षय।
(ज) नदी प्रशिक्षण : नदी प्रशिक्षण के उद्देश्य, नदी प्रशिक्षण की विधियां।

4. पर्यावरण इंजीनियरी

4.1 जल पूर्ति : जल मांग की प्रभुक्ति, जल की अशुद्धता तथा उसका महत्व, भौतिक, रासायनिक तथा जीवाणु विज्ञान संबंधी विश्लेषण, जल से होने वाली बीमारियाँ, पेय जल के लिए मानक ।
4.2 जल का अंतर्ग्रहण : जल उपचार : स्कंदन के सिद्धांत, ऊर्णन तथा सादन, मंददूत, दाब फिल्टर, क्लोरीनीकरण, मृदुकरण, स्वाद, गंध तथा लवणता को दूर करना।
4.3 बाहित मल व्यवस्था : परेन तथा औद्योगिक अपशिष्ट, इक्षावात बाहित मल-पृथक और संयुक्त प्रणालियां, सीवरों द्वारा बहाव, सीवरों का डिजाइन ।

4.4 सीवेज लक्षण : BOD, COD, ठोस पदार्थ, विलीन ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और TOC, सामान्य जल मार्ग तथा भूमि पर निष्कासन के मानक ।
4.5 सीवेज उपचार : कार्यकारी नियम, इकाइयाँ, कोष्ठ, अवसादन टैंक, च्वापी फिल्टर, आक्सीकरण पोखर, उत्प्रेरित अवयंक प्रक्रिया, सैप्टिक टैंक, अवयंक निस्तारण, अवशिष्ट जल का पुन: चालन।
4.6 ठोस अपशिष्ट : गांवों और शहरों में संग्रहण एवं विस्तारण, दीर्घकालीन कुप्रभावों का प्रबंध ।
5. पर्यावरणीय प्रदूषण : अवलाबत विकास । रेडियोएक्टिव अपशिष्ट एवं निष्कासन, उष्मीय शक्ति संयंत्रों, खानों, नदी घाटी, परियोजनाओं के लिए पर्यावरण संबंधी प्रभाव मूल्यांकन, वायु प्रदूषण, वायु प्रदूषण नियंत्रण अधिनिमय ।

वाणिज्य एवं लेखाविधि

प्रश्न पत्र 1

लेखाकरण एवं वित्त

लेखाकरण, कराधान एवं लेखापरीक्षण

  1. वित्तीय लेखाकरण : वित्तीय सूचना प्रणाली के रूप में लेखाकरण ; व्यवहारपरक विज्ञानों का प्रभाव, लेखाकरण मानक, उदाहरणार्थ, मूल्याहास के लिए लेखाकरण, मालसूचियां, अनुसंधान एवं विकास लागतें, दीर्घावधि निर्माण सन्निदाएं, राजस्व की पहचान, स्थिर परिसंपत्तियां, आकस्मिकताएं, विदेशी मुद्रा के लेन-देन, निवेश एवं सरकारी अनुदान, नकदी प्रवाह विवरण, प्रतिशेयर अर्जन ।

बोन्स शेयर, राइट शेयर, कर्मचारी स्टाक विकल्प एवं प्रतिधुतियों को वापसी खरीद (बाई-बैक) समेत शेयर पूंजी लेन-देनों का लेखाकरण।

कंपनी अंतिम लेखे तैयार करना एवं प्रस्तुत करना।
कंपनियों का समामेलन, आमेलन एवं पुननिर्माण।

2. लागत लेखाकरण

लागत लेखाकरण का स्वरूप और कार्य । लागत लेखाकरण प्रणाली का संस्थापन, आय मापन से संबंधित लागत संकल्पनाएं, लाभ आयोजना, लागत नियंत्रण एवं निर्णयन ।

लागत निकालने की विधियां : जॉब लागत निर्धारण, प्रक्रिया लागत निर्धारण कार्यकलाप आधारित लागत निर्धारण। लगभग आयोजन के उपकरण के रूप में परिमाण-लागत लाभ संबंध ।

कौमत निर्धारण निर्णयों के रूप में वार्षिक विश्लेषण/विभेदक लागत निर्धारण, उत्पाद निर्णय, निर्माण या क्रय निर्णय, बंद करने का निर्णय आदि। लागत नियंत्रण एवं लागत न्यूनीकरण प्रविधियां : योजना एवं नियंत्रण के उपकरण के रूप में बजटन । मानक लागत निर्धारण एवं प्रसरण विश्लेषण। उत्तरदायित्व लेखाकरण एवं प्रभागीय निष्पादन मापन।

3. कराधान

आयकर : परिभाषाएं ; प्रभार का आधार; कुल आय का भाग न बनने वाली आय । विभिन्न मदों, अर्थात् चेतन, गृह संपत्ति से आय,


[ भाग 1 – खण्ड 1]

ध्यापार या व्यवसाय से प्राप्तियां और लाभ, पूंजीगत प्राप्तियां, अन्य, स्रोतों से आय व निर्धारती की कुल आय में शामिल अन्य व्यक्तियों की आय । हानियों का समंजन एवं अग्रनयन । आय के सकल योग से कटौतियां ।

मूल्य आधारित कर (VAT) एवं सेवा कर से संबंधित प्रमुख विशेषताएँ/अवशेष ।

4. लेखा परीक्षण

कोणी लेखा परीक्षा : विशेषज्ञ लाभों से संबंधित लेखा परीक्षा, लाभांश, विशेष जांच, कर लेखा परीक्षा । वैकिंग, बीमा एवं और-लाभ संगठनों की लेखा परीक्षा, पूर्व संस्थाएँ/व्यक्तिसंगठन ।

भाग 2

वित्तीय प्रबंध, वित्तीय संस्थान एवं बाजार

1. वित्तीय प्रबंध

वित्त प्रकार्य : वित्तीय प्रबंध का स्वरूप, दायरा एवं लक्ष्य : जोखिम एवं वापसी संबंध । वित्तीय विश्लेषण के उपकरण : अनुपात विश्लेषण, निधि प्रवाह एवं रोकड़ प्रवाह विवरण ।

पूंजीगत बजट निर्णय : प्रक्रिया, विधियाँ एवं आकलन विधियाँ । जोखिम एवं अनिश्चितता विश्लेषण एवं विधियाँ ।

पूंजी की लागत : संकल्पना, पूंजी की विशिष्ट लागत एवं तुलित औसत लागत का अभिकलन । इक्विटी पूंजी की लागत निर्धारित करने के उपकरण के रूप में CAPM ।

वित्तीय निर्णय : पूंजी संरचना का सिद्धांत-निवल आय (NI) उपागम । निवल प्रचालन आय (NOI) उपागम, MM उपागम एवं पारंपरिक उपागम ।

पूंजी संरचना का अभिकल्पन : लिवरेज के प्रकार (प्रचालन, वित्तीय एवं संयुक्त) EBIT-EPS विश्लेषण एवं अन्य कारक ।

लाभांश निर्णय एवं फर्म का मूल्यांकन : वाल्टर का मॉडल, MM थ्रोसिस, गोर्डन का मॉडल, लिटनर का मॉडल । लाभांश नीति को प्रभावित करने वाले कारक ।

कार्यशील पूंजी प्रबंध : कार्यशील पूंजी आयोजना । कार्यशील पूंजी के निर्धारक । कार्यशील पूंजी के घटक रोकड़, मालसूची एवं प्राप्य ।

विलयनों एवं परिग्रहणों पर एकाग्र कम्पनी पुनर्संरचना (केवल वित्तीय परिप्रेक्ष्य) ।

2. वित्तीय बाजार एवं संस्थान

भारतीय वित्तीय व्यवस्था : विहंगावलोकन ।

मुद्रा बाजार : सहभागी, संरचना एवं प्रपत्र/वित्तीय बैंक ।

बैंकिंग क्षेत्र में सुधार : भारतीय रिजर्व बैंक की मीडिया एवं ऋण नीति । नियामक के रूप में भारतीय रिजर्व बैंक ।

पूंजी बाजार : प्राथमिक एवं द्वितीयक बाजार ; वित्तीय बाजार प्रपत्र एवं वनक्रियात्मक ऋण प्रपत्र ; नियामक के रूप में वित्तीय सेवाएँ : म्यूचुअल फंड्स, जोखिम पूंजी, साख मान अभिकरण, बीमा एवं IRDA.

प्रश्न पत्र-2

संगठन सिद्धांत एवं व्यवहार, मानव संसाधन प्रबंध एवं औद्योगिक संबंध

संगठन सिद्धांत एवं व्यवहार

1. संगठन सिद्धांत

संगठन का स्वरूप एवं संकल्पना; संगठन के बाह्य परिच्छा-प्रौद्योगिकी, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक एवं विधिक; सांगठनिक लक्ष्य-प्राथमिक एवं द्वितीयक लक्ष्य, एकल एवं बहुल लक्ष्य; उद्देश्याधारित प्रबंध/संगठन सिद्धांत का विकास : क्लासिकों, नवक्लासिकों एवं प्रणाली उपागम ।

संगठन सिद्धांत की आधुनिक संकल्पना : सांगठनिक अभिकल्प, सांगठनिक संरचना एवं सांगठनिक संस्कृति ।

सांगठनिक अभिकल्प : आधारभूत चुनौतियाँ; पृथकीकरण एवं एकीकरण प्रक्रिया; केन्द्रीकरण एवं विकेन्द्रीकरण प्रक्रिया; मानकीकरण/औपचारिकीकरण एवं परस्पर समायोजन ।

औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठनों का समन्वय । यौवन्तिक एवं सावधि संरचना ।

सांगठनिक संरचना का अभिकल्पन-प्राधिकार एवं नियंत्रण; व्यवसाय एवं स्टाफ प्रकार्य, विशेषज्ञता एवं समन्वय ।

सांगठनिक संरचना के प्रकार-प्रकार्यात्मक ।

आधाली संरचना, परियोजना संरचना । शक्ति का स्वरूप एवं आधार, शक्ति के स्रोत, शक्ति संरचना एवं राजनीति । सांगठनिक अभिकल्प एवं संरचना पर सूचना प्रौद्योगिकी का प्रभाव ।

सांगठनिक संस्कृति का प्रबंधन ।

2. संगठन व्यवहार

अर्थ एवं संकल्पना; संगठनों में व्यक्ति ; व्यक्तित्व, सिद्धांत, एवं निर्धारक; प्रत्यक्षण-अर्थ एवं प्रक्रिया । अभिप्रेरण : संकल्पना, सिद्धांत एवं अनुप्रयोग ।

नेतृत्व-सिद्धांत एवं शैलियाँ । कार्यजीवन की गुणता (QWL) : अर्थ एवं निष्पादन पर इसका प्रभाव, इसे बढ़ाने के तरीके । गुणता चक्र (QC) – अर्थ एवं उनका महत्व । संगठनों में द्वन्दों का प्रबंध । लेन-देन विश्लेषण, सांगठनिक प्रभावकारिता, परिवर्तन का प्रबंध ।

भाग 2

मानव संसाधन प्रबंध एवं औद्योगिक संबंध

मानव संसाधन प्रबंध (HRM)

मानव संसाधन प्रबंध का अर्थ, स्वरूप एवं क्षेत्र, मानव संसाधन आयोजना, जॉब विश्लेषण, जॉब विवरण, जॉब विनिर्देशन, नियोजन प्रक्रिया, चयन प्रक्रिया, अभिमुखीकरण एवं स्थापन, प्रशिक्षण एवं विकास प्रक्रिया, निष्पादन आकलन : एवं 360° फीडबैक, वेतन एवं मजदूरी प्रशासन, जॉब मूल्यांकन, कर्मचारी कल्याण, पदोन्नतियाँ, स्थानान्तरण एवं पृथक्करण ।


2. औद्योगिक संबंध ( IR )

औद्योगिक संबंध का अर्थ, स्वरूप, महत्व एवं क्षेत्र, ट्रेड यूनियनों को रचना, ट्रेड यूनियन विधान, भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन, ट्रेड यूनियनों को मान्यता, भारत में ट्रेड यूनियनों को समस्याएं । ट्रेड यूनियन आंदोलन पर उदारीकरण का प्रभाव ।

औद्योगिक विवादों का स्वरूप : हड़ताल एवं तालाबंदी, विवाद के कारण, विवादों का निवारण एवं निपटारा । प्रबंधन में कामगारों की सहभागिता : दर्शन, तर्काधार, मौजूदा स्थिति एवं भावी संभावनाएं ।

न्यायनिर्णय एवं सामूहिक सोदाकारी
सार्वजनिक उद्यमों में औद्योगिक संबंध, भारतीय उद्योगों में गैरहाजिरी एवं श्रमिक आवर्त एवं उनके कारण और उपचार ।

II.O एवं इसके प्रकार्य ।

अर्थशास्त्र

प्रश्न पल-1

1. उन्नत व्यष्टि अर्थशास्त्र

(क) कीमत निर्धारण के माशीलियन एवं वालरासियम उपागम ।
(ख) वैकल्पिक वितरण सिद्धांत : रिकार्डो, काल्डोर, कल्लोको ।
(ग) बाजार संरचना : एकाधिकारी प्रतियोगिता, द्विअधिकार, अल्पाधिकार ।
(घ) आधुनिक कल्याण मानदंड : परेटी हिक्स एवं सितांवस्की, ऐरो का असंभावना प्रमेय, ए. के. सेन का सामाजिक कल्याण फलन।

2. उन्नत समष्टि अर्थशास्त्र

नियोजन आय एवं व्याज दर निर्धारण के उपागम : क्लासिको, कोन्स (IS-LM) वक, नवक्लासिको संश्लेषण एवं नया क्लासिको, व्याज दर निर्धारण एवं व्याज दर संरचना के सिद्धांत ।

3. मुद्रा बैंकिंग एवं वित्त :

(क) मुद्रा को मांग और पूर्ति : मुद्रा का मुद्रा गुणक माला सिद्धांत (गिरशर, पीक एवं क्राइडमैन) तथा कौन का मुद्रा के लिए मांग का सिद्धांत, बंद और खुली अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रा प्रबंधन के लक्ष्य एवं साधान । केन्द्रीय बैंक और खजाने के बीच संबंध । मुद्रा की वृद्धि दर पर उच्चतम सीमा का प्रस्ताव ।
(ख) लोक वित्त और बाजार अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका : पूर्ति के स्थिरीकरण में, संसाधनों का विनिधान और वितरण और संवृद्धि। सरकारी राजस्व के स्रोत, करों एवं उपदानों के रूप, उनका भार एवं प्रभाव। कराधान को सीमाएं, ऋण, क्राउडिंग आउट प्रभाव एवं ऋण लेने की सीमाएं । लोक व्यय एवं इसके प्रभाव ।

4. अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र

(क) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के पुराने और नए सिद्धांत :
(i) तुलनात्मक लाभ,
(ii) व्यापार शर्तें एवं प्रस्ताव चक्र,
(iii) उत्पाद चक्र एवं निर्णायक व्यापार सिद्धांत,
(iv) “व्यापार, संवृद्धि के भालक के रूप में” और खुली अर्थव्यवस्था में चर्यावाशास्र के सिद्धांत ।

(ग) संरक्षण के स्वरूप : टैरिट एवं कोटा ।

(ग) भुगतान शेष समायोजन : वैकल्पिक उपागम :
(i) कीमत बनाम आय, निरुत विनिमय दर के अधीन आय के समायोजन ।
(ii) मिश्रित नीति के सिद्धांत ।
(iii) पूँजी यलिष्णुता के अधीन विनिमय दर समायोजन ।
(iv) विकासशील देशों के लिए तिरती दरें और उनकी विवक्षा, मुद्रा (करेंसी) बोर्ड ।
(v) व्यापार नीति एवं विकासशील देश ।
(vi) BOP खुली अर्थव्यवस्था समष्टि मॉडल में समायोजन तथा नीति समन्वय ।
(vii) सट्टा ।
(viii) व्यापार गुट एवं मीडिक संघ ।
(ix) विश्व व्यापार संगठन (WTO) : TRIM, TRIPS, घरेलू उपाय WTO बातचीत के विभिन्न चक्र ।

5. संवृद्धि एवं विकास

(क) (i) संवृद्धि के सिद्धांत : हैरड का मॉडल ।
(ii) अधिशेष श्रमिक के साथ विकास का ल्युइस मॉडल ।
(iii) संतुलित एवं असंतुलित संवृद्धि ।
(iv) मानव पूंजी एवं आर्थिक वृद्धि ।
(ख) कम विकसित देशों का आर्थिक विकास का प्रक्रम : आर्थिक विकास एवं संरचना परिवर्तन के विषय में मिडल एवं कुजमेंटस : कम विकसित देशों के आर्थिक विकास में कृत्रि को भूमिका ।
(ग) आर्थिक विकास तथा अंतर्राष्ट्रीय एवं निवेश, बहुर्राष्ट्रीयों को भूमिका ।
(घ) आयोजना एवं आर्थिक विकास : बाजार की बदलती भूमिका एवं आयोजना, निजी-सरकारी साझेदारी ।
(ङ) कल्याण संकेतक एवं वृद्धि के माप-मानव विकास के सूचक । आधारभूत आवश्यकताओं का उपागम ।
(च) विकास एवं पर्यावरणी धारणीयता-पुनर्नवीकरणीय एवं अपुनर्नवीकरणीय संसाधन, पर्यावरणी अपकर्ष अंतर-पीढ़ी इक्विटी विकास ।


प्रश्न पत्र-11

  1. स्वतंत्रता पूर्व युग में भारतीय अर्थव्यवस्था : भूमि प्रणाली एवं इसके परिवर्तन, कृषि का वाणिज्यिकरण, अपवहन सिद्धांत, अर्थधता सिद्धांत एवं समालोचना । निर्माण एवं परिवहन : जूट कपास, रेलवे, मुद्रा एवं साख ।
  2. स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय अर्थव्यवस्था :

क. उदारीकरण के पूर्व का युग
(i) वकील, गडांगल एवं वी. के. आर. वी. राव के योगदान।
(ii) कृषि : भूमि सुधार एवं भूमि पट्टा प्रणाली, हरित क्रांति एवं कृषि में पूंजी निर्माण।
(iii) संघटन एवं संवृद्धि में व्यापार प्रवृत्तियां, सरकारी एवं निजी क्षेत्रों की भूमिका, लघु एवं कुटीर उद्योग।
(iv) राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय : स्वरूप, प्रवृत्तियां, सकल एवं क्षेत्रीय संघटन तथा उनमें परिवर्तन।
(v) राष्ट्रीय आय एवं वितरण को निर्धारित करने वाले स्थूल कारक, गरीबी के माप, गरीबी एवं असमानता में प्रवृत्तियां।

ख. उदारीकरण के पश्चात् का युग
(i) नया आर्थिक सुधार एवं कृषि : कृषि एवं WTO, खाद्य प्रजंकरण, उपदान, कृषि कीमतें एवं जन वितरण प्रणाली, कृषि संवृद्धि पर लोक व्यय का समायात।
(ii) नई आर्थिक नीति एवं उद्योग : औद्योगीकरण निजीकरण, विनिवेश की कार्य नीति, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश तथा बहुराष्ट्रीयों को भूमिका।
(iii) नई आर्थिक नीति एवं व्यापार : बौद्धिक संपदा अधिकार : TRIPS, TRIMS, GATS तथा new EXIM नीति की विवक्षाएं।
(iv) नई विनिमय दर व्यवस्था : आंशिक एवं पूर्ण परिवर्तनीयता।
(v) नई आर्थिक नीति एवं लोक वित्त : राजकोषीय उत्तरदायित्व अधिनियम, बारहवां वित्त आयोग एवं राजकोषीय संघवाद तथा राजकोषी समेकन।
(vi) नई आर्थिक नीति एवं मीडिक प्रणाली : नई व्यवस्था में RBI की भूमिका।
(vii) आयोजना : केन्द्रीय आयोजना से सांकेतिक आयोजना तक, विकेन्द्रीकृत आयोजना और संवृद्धि हेतु बाजार एवं आयोजना के बीच संबंध : 73वां एवं 74वां संविधान संशोधन।
(viii) नई आर्थिक नीति एवं रोजगार : रोजगार एवं गरीबी, ग्रामीण मजदूरी, रोजगार सृजन, गरीबी उन्मूलन योजनाएं, नई ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना।

वैद्युत इंजीनियरी

प्रश्न पत्र-1

1. परिपथ-सिद्धांत

विद्युत अवयव, जाल लेखचित्र, कंल्विन धारा नियम, कंल्विन वोल्टता नियम, परिपथ विश्लेषण विधियां, नोडीय विश्लेषण; पाश विश्लेषण; आधारभूत जाल प्रमेय तथा अनुप्रयोग; क्षणिका विश्लेषण; RL, RC एवं RLC परिपथ; ज्यायक्रीय स्थायी अवस्था विश्लेषण; अनुनादी परिपथ; युग्मित परिपथ; संतुलित विकला परिपथ। द्विकारक जाल।

2. संकेत एवं तंत्र

सतत काल एवं विवक्त-काल संकेतों एवं तंत्र का निरूपण; रैखिक काल निश्चर तंत्र, संवलन आवेग, अनुक्रिया; संवलन एवं अवकल अंतर समीकरणों पर आधारित रैखिक काल निश्चर तंत्रों का समय क्षेत्र विश्लेषण । फूरिए रूपांतर, लेप्लास रूपांतर, जैड-रूपांतर, अंतरण फलन संकेतों का प्रतिचयन एवं उनकी प्रतिप्राप्ति । विवक्त कालतंत्रों के द्वारा तुल्य रूप संकेतों का DFT, FFT संसाधन ।

3. विद्युत चुम्बकीय सिद्धांत

मेक्सवेल समकरण, परिवद्ध माध्यम में तरंग संचरण । परिसीमा अवस्थाएं, समतल तरंगों का परावर्तन एवं अपवर्तन । संचरण लाइनें; प्रगामी एवं अग्रगामी तरंगें, प्रति बाधा प्रतितुलन, स्मिथ चार्ट ।

4. तुल्य एवं इलेक्ट्रॉनिकी

अभिलक्षण एवं डायोड का तुल्य परिपथ (वृहत एवं लघु संकेत), द्विसंधि ट्रांजिस्टर, साँध क्षेत्र प्रभाव ट्रांजिस्टर एवं धातु ऑक्साइड सामिचालक क्षेत्र प्रभाव ट्रांजिस्टर । डायोड परिपथ : कर्तन, ग्रामी, दिष्टकारी । अभिनतिकरण एवं अभिनति स्थायित्व । क्षेत्र प्रभाव ट्रांजिस्टर प्रवर्धक । धारा दर्पण, प्रवर्धक : एकल एवं बहुचरणी, अवकल, संक्रियात्मक, पुनर्निवेश एवं शक्ति । प्रबंधकों का विश्लेषण, प्रबंधकों की आवृत्ति अनुक्रिया । संक्रियात्मक प्रबंधक परिपथ। निरयंदक, ज्यायक्रीय दोलित्र : दोलन के लिए कसौटी, एकल ट्रांजिस्टी और संक्रियात्मक प्रवर्धक विन्यास। फलन जनित्र एवं तरंग परिपथ । रैखिक एवं स्विचन विद्युत प्रदाया।

5. अंकीय इलेक्ट्रॉनिकी

बृलीय बीजावली, बृलीय फलन का न्यूनतमीकरण; तर्कद्वार, अंकीय समाकलित परिपथ कुल, (DTL,TTL, ECL, MOS, CMOS) । संयुक्त परिपथ अंकगणितीय परिपथ, कोड परिवर्तक, मल्टीप्लेक्सर एवं विकोडित्र।

अनुक्रमिक परिपथ, चटखनी एवं थपथप, गणित्र एवं विस्थापन पंजीयक । तुलनित्र, कालनियामक बहुकाँपत्र । प्रतिदर्श एवं धारण परिपथ, तुल्यरूप अंकीय परिवर्तन (ADC) एवं अंकीय तुल्य रूप परिवर्तक (DAC) । सामिचालक स्मृतियां । प्रक्रमित युक्तियों का प्रयोग करते हुए तर्क कार्यान्वयन (ROM, PLA, FPGA) ।

6. ऊर्जा रूपांतरण

वैद्युत यांत्रिकी ऊर्जा रूपांतरण के सिद्धांत : घृणित मशीनों में बल आधुणें एवं विद्युत चुंबकीय बल । दि.धा. मशीनें : अभिलक्षण एवं निस्पादन विश्लेषण, मोटरों का प्रारम्भन एवं गति नियंत्रण । परिणामित्र :


प्रचालन एवं विश्लेषण के सिद्धांत ; विनियमन दक्षता; विकला परिणामित्र ; विकला प्रेरण मशीनें एवं तुल्यकालिक मशीनें; अभिलक्षण एवं निष्पादन विश्लेषण ; गति नियंत्रण ।

7. शक्ति इलेक्ट्रॉनिकी एवं विद्युत चालन

सामिचालक शक्ति युक्तियां : डायोड, ट्रांजिस्टर, थाइरिस्टर, ट्रापक, GTO एवं धातु आक्साइड सामिचालक क्षेत्र प्रभाव ट्रांजिस्टर स्थैतिक अभिलक्षण एवं प्रचालन के सिद्धांत, ट्रिगरिंग परिपथ, कला नियंत्रण दिष्टकारी, सेतु परिवर्तक : पूर्ण नियंत्रित एवं अद्वीनियंत्रित थाइरिस्टर चापर एवं प्रतीयकों के सिद्धांत, DC-DC परिवर्तक, स्विच मोड् इन्क्टर, (dc एवं ac मोटर चालन के गतिनियंत्रण को आधारभूत संकल्पना, विचरणीय चाल चालन के अनुप्रयोग ।

8. तुल्यरूप संचार

यादृच्छिक वर : संतत, विविक्त; प्रायकिता, प्रायिकता फलन । सांख्यिकीय औसत; प्रायिकता निदर्श; यादृच्छिक संकेत एवं रव; सम, रव, रवतुल्य बैंड चौड़ाई, रव सहित संकेत प्रेपण, रव संकेत अनुपात, रैखिक CW मॉडुलन : आयाम-मॉडुलन : द्विसाइड बैंड, द्विसाइड बैंड-एकल चैनल (DSB-SC) एवं एकल बैंड । माडुलन एवं विमाडुलन; कला ओर आवृत्ति मॉडुलन ; कला मॉडुलन एवं आवृत्ति मॉडुलन संकेत, संकोर्ण बैंड आवृत्ति मॉडुलन, आवृत्ति मॉडुलन कला मॉडुलन के लिए जनन एवं संक्षूषन, विष्यबलन, पूर्व प्रबलन । संवाहक तरंग मॉडुलन (CWM) तंत्र; परासंस्करण अभिग्राही, आयाम मॉडुलन अभिग्राही, संचार अभिग्राही, आवृत्ति मॉडुलन अभिग्राही, कला पाशित लूप, एकल साइड बैंड अभिग्राही, आयाम मॉडुलन एवं आवृत्ति मॉडुलन अभिग्राही के लिए सिगनल-रव अनुपात गणन ।

प्रश्न पत्र-2

1. नियंत्रण तंत्र

नियंत्रण तंत्र के तत्व, खंड आरेख निरूपण; खुला पाश एवं बंदपाश तंत्र, पुनर्निवेश के सिद्धांत एवं अनुप्रयोग । नियंत्रण तंत्र अवयव । रैखिक काल निश्चर तंत्र : काल प्रक्षेत्र एवं रूपांतर प्रक्षेत्र विश्लेषण । स्थायित्व : ग़डथ हरविज कसौटी, मूल बिंदुपथ, बोर्ड आलेख एवं पोलर आलेख, नाइक्विएस्ट कसौटी, अग्रपश्चता प्रतिकारक का अभिकल्पल्‍न । सामनुपालिक PI, PID, नियंत्रक, नियंत्रण तंत्रों का अवस्था-विचरणीय निरूपण एवं विश्लेषण ।

2. माइक्रोप्रोसेसर एवं माइक्रोकंप्यूटर :

PC संघटन, CPU, अनुदेश सेट, रजिस्टर सेट, टाइमिंग आरेख, प्रोग्रामन, अंतरानयन, स्मृति, अरापृष्ठान, I O, अंतरापृष्ठन, प्रोग्रामनीय परिधीय युक्तियां ।

3. मापन एवं मापयंत्रण :

त्रुटि विश्लेषण : धारा, बोल्टता, शक्ति, ऊर्जा, शक्ति गुणक, प्रतिरोध, प्रेरकत्व, धारिता एवं आवृत्ति का मापन, सेतु मापन । सिगनल अनुकूल परिपथ, इलेक्ट्रॉनिक मापन यंत्र; बहुमापी, कँथोड किरण आसिलोस्कोप, अंकीय बोल्टगामी, आवृत्ति गणित, Qमापी, स्पेक्ट्रम विश्लेषक, विरूपण मापी ट्रांसड्यूसर, ताप वैद्युत युग्म, थर्मिस्टर, रेखीय परिवर्तनीय अवकल ट्रांसड्यूसर, विकृति प्रभावी, दाब विद्युत क्रिस्टल ।

4. शक्तितंत्र : विश्लेषण एवं नियंत्रण :

सिरोपरि संचरण लाइनों तथा कंयलों का स्थायी दशा निष्पादन, सक्रिय एवं प्रतिपाती शक्ति अंतरण एवं वितरण के सिद्धांत, प्रति इकाई राशियां, बस प्रवेश्यता एवं प्रतिबाधा आब्यूह, लोड प्रवाह; बोल्टता नियंत्रक एवं शक्ति गणक संशोधन; आर्थिक प्रचालन; सममित घटक; सममित एवं असममित दोष का विश्लेषण । तंत्र स्थायित्व की अवधारणा; स्विंग चक्र एवं समक्षेत्र कसौटी । स्थैतिक बोल्ट एर्यिष्य प्रात्त्पाती तंत्र । उच्च बोल्टता दिष्टधारा संचरण को मूलभूत अवधारणा।।

5. शक्तितंत्र रक्षण :

अतिधारा, अवकल एवं दूरी रक्षण के सिद्धांत । ठोस अवस्था रिले को अवधारणा । परिपथ विभाजक । अभिकरित्र सडायता प्राप्त रक्षण; परिचय, लाइन, बस, जाँनत्र, परिणामित्र रक्षण, संख्यात्मक रिले एवं रक्षण के लिए अंकीय संकेत रक्षण (DSP)का अनुप्रयोग ।

6. अंकीय संचार :

स्मंद कोड माडुलन, अवकल स्मंद कोड माडुलन, डेल्टा मॉडुलन अंकीय विमाडुलन एवं विमॉडुलन योजनाएं ; आयाम, कला एवं आवृत्ति कुंजीयन योजनाएं । त्रुटि नियंत्रण कटकरण : त्रुटिसंसूचन एवं संशोधन रैखिक खंड कोड, संकलन कोड । सूचना माप एवं स्रोत कूट करण । आंकड़ा जाल, 7-स्तरीय वास्तुकला ।

भूगोल

प्रश्न पत्र-1
भूगोल के सिद्धांत

प्राकृतिक भूगोल

  1. भू-आकृति विज्ञान : भू-आकृति विकास के नियंत्रक कारक; अंतर्जात एवं बहिर्जात बल; भूपर्पटी का उद्गम एवं विकास; भू-चुंबकत्व के मूल सिद्धांत; पृथ्वी के अंतरंग की प्राकृतिक दशाएं;

भू-अभिनति; महाद्वीपीय विस्थापन; समस्थिति; प्लेट विवर्तनिकी; पर्वतोत्पति के संबंध में अभिनव विचार; ज्वालामुखीयता; भूकंप एवं सुनामी; भू-आकृतिक चक्र एवं दृश्यभूमि विकास की संकल्पनाएं; अनाच्छादन कालानुक्रम; जलमार्ग आकृतिविज्ञान; अपरदन पृष्ठ; प्रवणता विकास; अनुप्रयुक्त भू-आकृति विज्ञान, भूजलविज्ञान, आर्थिक भू-विज्ञान एवं पर्यावरण ।
2. जलवायु विज्ञान : विश्व के ताप एवं दाब कटिबंध; पृथ्वी का तापीय बजट; वायुमंडल परिसंचरण, वायुमंडल स्थिरता एवं अनस्थिरता । भूमंडलीय एवं स्थानीय पवन; मानसून एवं जेट प्रवाह; वायु राशि एवं वाताप्रजनन; शीतोष्ण एवं उष्णकटिबंधीय चक्रवात; वर्धण के प्रकार एवं वितरण; मौसम एवं जलवायु; कोपेन, थॉर्नबेट एवं त्रवार्था का विश्व जलवायु वर्गीकरण; जलीय चक्र; वैश्विक जलवायु परिवर्तन एवं जलवायु परिवर्तन में मानव की भूमिका एवं अनुक्रिया, अनुप्रयुक्त जलवायु विज्ञान एवं नागरी जलवायु ।


  1. समुद्र विज्ञान : अटलांटिक, हिंद एवं प्रशांत महासागरों की तलीय स्थलाकृति; महासागरों का ताप एवं लवणता; ऊष्मा एवं लवण बजट, महासागरी निक्षेप; तरंग, धाराएं एवं ज्वार-भाटा; समुद्री संसाधन : जीवीय, खनिज एवं ऊर्जा संसाधन; प्रवाल मित्तियां; प्रवाल रिंजन; समुद्र तल परिवर्तन; समुद्र नियम एवं समुद्री प्रदुषण ।
  2. जीव भूगोल : मृदाओं की उत्पत्ति; मृदाओं का वर्गीकरण एवं वितरण; मृदा परिच्छेदिका; मृदा अपरदन; न्यूनीकरण एवं संरक्षण; पादप एवं जंतुओं के वैश्विक वितरण को प्रभावित करने वाले कारक; वन अपरोपण की समस्याएं एवं संरक्षण के उपाय; सामाजिक वानिकी; कृषि वानिकी; वन्य जीवन; प्रमुख जीन पूल कोट ।
  3. पर्यावरणीय भूगोल : पारिस्थितिकी के सिद्धांत; मानव पारिस्थितिक अनुकूलन; पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण पर मानव का प्रभाव; वैश्विक एवं क्षेत्रीय पारिस्थितिक परिवर्तन एवं असंतुलन; पारितंत्र उनका प्रबंधन एवं संरक्षण; पर्यावरणीय निम्नीकरण, प्रबंधन एवं संरक्षण; जैव विविधता एवं संपोषणीय विकास; पर्यावरणीय शिक्षा एवं विधान ।

मानव भूगोल

  1. मानव भूगोल में संदर्श : क्षेत्रीय विभेदन; प्रदेशिक संश्लेष द्विभाजन एवं द्वैतवाद; पर्यावरणवाद; मात्रात्मक क्रांति अवस्थिति विश्लेषण; उग्रसुधार, व्यावहारिक, मानवीय कल्याण उपागम; भाषाएं, धर्म एवं निरपेक्षीकरण; विश्व सांस्कृतिक प्रदेश; मानव विकास सूचक ।
  2. आर्थिक भूगोल : विश्व आर्थिक विकास; माप एवं समस्याएं; विश्व संसाधन एवं उनका वितरण; ऊर्जा संकल्प संवृद्धि की सीमाएं; विश्व कृषि; कृषि प्रदेशों की प्रारूपता कृषि निवेश एवं उत्पादकता ; खाद्य एवं पोषण समस्याएं; खाद्य सुरक्षा; दधिक्ष; कारण, प्रभाव एवं उपचार; विश्व उद्योग; अवस्थानिक प्रतिरूप एवं समस्याएं; विश्व व्यापार के प्रतिमान ।
  3. जनसंख्या एवं बस्ती भूगोल : विश्व जनसंख्या की वृद्धि और वितरण; जनसांख्यिकी गुण; प्रवासन के कारण एवं परिणाम; अतिरेक-अल्प एवं अनुकूलनम जनसंख्या की संकल्पनाएं; जनसंख्या के सिद्धांत; विश्व जनसंख्या समस्या और नीतियां; सामाजिक कल्याण एवं जीवन गुणवता; सामाजिक पूंजी के रूप में जनसंख्या । ग्रामीण बस्तियों की प्रकार एवं प्रतिरूप; ग्रामीण बस्तियों में पर्यावरणीय मुद्दे; नगरीय बस्तियों का पदानुक्रम; नगरीय आकारिकी; प्रमुख शहर एवं श्रेणी आकार प्रणाली की संकल्पना, नगरों का प्रकार्यात्मक वर्गीकरण; नगरीय प्रभाव क्षेत्र; ग्राम नगर उपांत; अनुषंगी नगर, नगरीकरण की समस्याएं एवं समाधान; नगरों का संपोषणीय विकास ।
  4. प्रादेशिक आयोजना : प्रदेश की संकल्पना; प्रदेशों के प्रकार एवं प्रदेशीकरण की विधियां; वृद्धि केन्द्र तथा वृद्धि ध्रुव; प्रादेशिक असंतुलन; प्रादेशिक विकास कार्यनीतियां; प्रादेशिक आयोजना में पर्यावरणीय मुद्दे; संपोषणीय विकास के लिए आयोजना ।
  5. मानव भूगोल में मॉडल, सिद्धांत एवं नियम : मानव भूगोल में प्रणाली विश्लेषण; माल्थस का मार्क्स का और जनसांख्यिकीय संक्रमण मॉडल; क्रिस्टावर एवं लॉश का केन्द्रीय स्थान सिद्धांत; पेरू एवं यूदेविए; वॉन थूनेन का कृषि अवस्थान मॉडल; वेबर का औद्योगिक अवस्थान मॉडल; ओस्तोव का वृद्धि अवस्था माडल ; अंतःभूमि एवं वहि:भूमि सिद्धांत; अंतरराष्ट्रीय सीमाएं एवं सीमांत क्षेत्र के नियम ।

प्रश्न पत्र-2

भारत का भूगोल

  1. भौतिक विन्यास : पद्धोसी देशों के साथ भारत का अंतरिक्ष संबंध; संरचना एवं उच्चावच; अपवाहतंत्र एवं जल विभाजक; भू-आकृतिक प्रदेश : भारतीय मानसून एवं वर्षा प्रतिरूप उष्णकटिबंधीय चक्रवात एवं पश्चिमी विश्लोभ की क्रिया विधि; बाढ़ एवं अनावृष्टि; जलवायवी प्रदेश; प्राकृतिक वनस्पति, मृदा प्रकार एवं उनका वितरण ।
  2. संसाधन : भूमि, सतह एवं भीमजल, ऊर्जा, खनिज, जीवीय एवं समुद्री संसाधन; वन एवं वन्य जीवन संसाधन एवं उनका संरक्षण; ऊर्जा संकट ।
  3. कृषि : अवसंरचना : सिंचाई, बीज, उर्वरक, विद्युत; संस्थागत कारक: जोत; भू-भारण एवं भूमि सुधार; शस्यन प्रतिरूप, कृषि उत्पादकता, कृषि प्रकर्ष, फसल संयोजन, भूमि क्षमता; कृषि एवं सामाजिक वानिकी; हरित क्रांति एवं इसकी सामाजिक आर्थिक एवं पारिस्थितिक विवक्षा; वर्षाधीन खेती का महत्व; पशुधन संसाधन एवं श्वेत क्रांति, जल कृषि, रेशम कीटपालन, मधुमक्खीपालन एवं कुक्कुट पालन; कृषि प्रादेशीकरण; कृषि जलवायवी क्षेत्र; कृषि पारिस्थितिक प्रदेश ।
  4. उद्योग : उद्योगों का विकास : कपास,जूट, वरबोद्योग, लोह एवं इस्पात, अलुमिनियम, उर्वरक, कागज, रसायन एवं फार्मास्युटिकल्स, आटोमोबाइल, कुटीर एवं कृषि आधारित उद्योगों के अवस्थिति कारक; सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों सहित औद्योगिक घराने एवं संकुल; औद्योगिक प्रादेशीकरण; नई औद्योगिक नीतियां; बहुराष्ट्रीय कंपनियां एवं उदारीकरण; विशेष आर्थिक क्षेत्र; पारिस्थितिक पर्यटन समेत पर्यटन ।
  5. परिवहन, संचार एवं व्यापार : सड़क, रेलमार्ग, जलमार्ग, हवाईमार्ग एवं पाइपलाइन नेटवर्क एवं प्रादेशिक विकास में उनकी पूरक भूमिका ; राष्ट्रीय एवं विदेशी व्यापार वाले पत्तनों का बढ़ता महत्व; व्यापार संतुलन; व्यापार नीति; निर्यात प्रक्रमण क्षेत्र; संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी में आया विकास और अर्थव्यवस्था तथा समाज पर उनका प्रभाव; भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम ।
  6. सांस्कृतिक विन्यास : भारतीय समाज का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य; प्रजातीय, भाषिक एवं नृजातीय विविधताएं; धार्मिक अल्पसंख्यक; प्रमुख जनजातियां, जनजातीय क्षेत्र तथा उनकी

समस्याएं; सांस्कृतिक प्रदेश; जनसंख्या की संवृद्धि, वितरण एवं घनत्व; जनसांख्यिकीय गुण : लिंग अनुपात, आयु संरचना, साक्षरता दर, कार्यबल, निर्भरता अनुपात, आयुकाल; प्रवासन (अंत:प्रादेशिक, प्रदेशांतर तथा अंतर्राष्ट्रीय) एवं इससे जुड़ी समस्याएं, जनसंख्या समस्याएं एवं नीतियां; स्वास्थ्य सूचक ।
7. बस्ती : ग्रामीण बस्ती के प्रकार, प्रतिरूप तथा आकारिकी; नगरीय विकास; भारतीय शहरों की आकारियों; भारतीय शहरों का प्रकार्यात्मक वर्गीकरण; सत्रगर एवं महानगरीय प्रदेश; नगर स्वपसार; गंदी बस्ती एवं उससे जुड़ी समस्याएं, नगर आयोजना; नगरीकरण की समस्याएं एवं उपचार ।
8. प्रादेशिक विकास एवं आयोजना : भारत में प्रादेशिक आयोजना का अनुभव; पंचवर्षी योजनाएं; समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम; पंचायती राज एवं विकेंद्रीकृत आयोजना; कमान क्षेत्र विकास; जल विभाजक प्रबंध; पिछड़ा क्षेत्र, मरुस्थल, अनावृष्टि प्रवण, पहाड़ी, जनजातीय क्षेत्र विकास के लिए आयोजना; बहुस्तरीय योजना; प्रादेशिक योजना एवं द्वीप क्षेत्रों का विकास ।
9. राजनैतिक परिप्रेक्ष्य : भारतीय संघवाद का भौगोलिक आधार; राज्य पुनर्गठन; नए राज्यों का आविर्भाव; प्रादेशिक चेतना एवं अंतर्राज्य मुद्दे; भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा और संबंधित मुद्दे; सीमापार आतंकवाद; वैश्विक मामले में भारत की भूमिका; दक्षिण एशिया एवं हिंद महासागर परिमंडल की भू-राजनीति ।
10. समकालीन मुद्दे : पारिस्थितिक मुद्दे : पर्यावरणीय संकट : भू-स्खलन, भूकंप, सुनामी, बाढ़ एवं अनावृष्टि, महामारी; पर्यावरणीय प्रदूषण से संबंधित मुद्दे; भूमि उपयोग के प्रतिरूप में बदलाव; पर्यावरणीय प्रभाव आकलन एवं पर्यावरण प्रबंधन के सिद्धांत; जनसंख्या विस्फोट एवं खाद्य सुरक्षा; पर्यावरणीय निम्नीकरण; वनोन्मूलन, मरुस्थलीकरण एवं मुद्दा अपरदन; कृषि एवं औद्योगिक अशांति की समस्याएं; आर्थिक विकास में प्रादेशिक असमानताएं; संपोषणीय वृद्धि एवं विकास की संकल्पना; पर्यावरणीय संचेतना; नदियों का सहवर्द्धन, भूमंडलीकरण एवं भारतीय अर्थव्यवस्था ।

टिप्पणी : अभ्यर्थियों को इस प्रश्नपत्र में लिए गए विषयों से संगत एक अनिवार्य मानचित्र-आधारित प्रश्न का उत्तर देना आंवार्य है ।

भूविज्ञान

प्रश्न पत्र-1

1. सामान्य भूविज्ञान :

सौरतंत्र, उल्कापिंड, पृथ्वी का उद्भव एवं अंतरंग तथा पृथ्वी की आयु, ज्वालामुखी-कारण एवं उत्पाद, ज्वालामुखी पट्टियां, भूकंप-कारण, प्रभाव, भारत के भूकंपी क्षेत्र, द्वीपाभ चाप, खाइयां एवं महासागर मध्य कटक; महाद्वीपीय अपोड; समुन्द अयस्थल विस्तार, प्लेट विवर्तनिकी; समस्थिति ।

2. भूआकृति विज्ञान एवं सुदूर-संवेदन :

भूआकृति विज्ञान की आधारभूत संकल्पना; अपक्षय एवं मृदानिर्माण; स्थलरूप; ढाल एवं अपवाह; भूआकृतिक चक्र एवं उनकी विवक्षा; आकारिकी एवं इसकी संरचनाओं एवं आश्मिकी से संबंध; तटीय भूआकृति विज्ञान; खनिज पुर्वक्षण में भूआकृति विज्ञान के अनुप्रयोग, सिविल इंजीनियरी; जल विज्ञान एवं पर्यावरणीय अध्ययन; भारतीय उपमहाद्वीप का भूआकृति विज्ञान। वायव फोटो एवं उनकी विवक्षा-गुण एवं सीमाएं; विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम; कक्षा परिभ्रमण उपग्रह एवं संवेदन प्रणालियां; भारतीय दूर संवेदन उपग्रह, उपग्रह दत्त उत्पाद; भू-विज्ञान में दूर संवेदन के अनुप्रयोग; भौगोलिक सूचना प्रणालियां (GIS) एवं विश्वव्यापी अवस्थन प्रणाली (GIS) – इसका अनुप्रयोग ।

3. संरचनात्मक भूविज्ञान

भूवैज्ञानिक मानचित्र एवं मानचित्र पठन के सिद्धांत, प्रक्षेप आरेख प्रतिबल एवं विकृति दीर्घवृत तथा प्रत्यास्थ, सुप 4 एवं श्यन पदार्थ के प्रतिबल-विकृति संबंध; विरूपति शैःगे में विकृति चिद्दूनक; विरूपण दशाओं के अंतर्गत खनिजों एवं शैलों का व्यवहार; वलन एवं भ्रंश वर्गीकरण एवं यांत्रि े; वलनों, शल्कनों, संरेखणों, जोड़ों एवं भ्रशों, विषमविन्यासों 17 संरचनात्मक विश्लेषण; क्रिस्टलन एवं विरूपण के बीच सम ${ }^{\circ}$ संबंध ।

4. जीवाश्म विज्ञान

जाति-परिभाषा एवं नामपद्धित; गुरु जीवाश्म एवं सूक्ष्म जीवाश्म; जीवाश्म संरक्षण की विधियां; विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म जीवाश्म; सह संबंध, पेट्रोलियम अर्न्वक्षण, पुराजलवायवी एवं पुरासमुद्रविज्ञानीय अध्ययनों में सूक्ष्म जीवाश्मों का अनुप्रयोग; होमिनिडी एक्विडी एवं प्रोबोसीडिया में विकासात्मक प्रवृति; शिवालिक प्राणिजात; गोडवाना वनस्पतिजात एवं प्राणिजात एवं इसका महत्व; सूचक जीवाश्म एवं उनका महत्व ।

5. भारतीय स्तरिकी

स्तरिकी अनुक्रमों का वर्गीकरण : अश्मस्तरिक जैवस्तरिक, कालस्तरिक एवं चुम्बकस्तरिक तथा उनका अंतर्सबंध; भारत की कीब्रियनपूर्व शैलों का वितरण एवं वर्गीकरण; प्राणिजात वनस्पतिजात एवं आर्थिक महत्व की दृष्टि से भारत की दृश्यजीवी शैलों के स्तरिक वितरण एवं अश्मविज्ञान का अध्ययन; प्रमुख सीमा समस्याएं-कीब्रियन, कीब्रियन पूर्व, पर्मियन/ट्राईऐसिक, कंटैशियस/तृतीयक एवं प्लायोसिन/प्लीस्टोसिन; भूवैज्ञानिक अतीत में भारतीय उपमहाद्वीप में जलवायवी दशाओं, पुराभूगोल एवं अग्नेय सक्रियता का अध्ययन; भारत का स्तरिक ढांचा; हिमालय का उद्भव।

6. जल भूविज्ञान एवं इंजीनियरी भूविज्ञान

जल वैज्ञानिक चक्र एवं जल का जननिक वर्गीकरण; अवपृष्ठ जल का संचलन; वृहत ज्वार; सरभ्रता, पराक्राम्यता, द्रवचालित


चालकता, परगम्यता एवं संचयन गुणांक, ऐक्विफर वर्गीकरण; शैलों की जलधारी विशेषताएं; भूजल रसायनिकी; लवणजल अंतर्बंधन; कूपों के प्रकार, वर्षाजल संग्रहण; शैलों के इंजीनियरी गुण-धर्म; बांधों, सुरगों, राजमार्गों एवं पुलों के लिए भूवैज्ञानिक अन्वेषण; निर्माण सामग्री के रूप में शैल; भूस्खलन-कारण, रोकथाम एवं पुनर्वास; भूकंप रोधी संरचनाएं।

प्रश्न पत्र-2

1. खनिज विज्ञान

प्रणालियों एवं सममिति वर्गों में क्रिस्टलों का वर्गीकरण क्रिस्टल संरचनात्मक संकेतन की अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली क्रिस्टल सममिति को निरूपित करने के लिए प्रक्षेप आरेख का प्रयोग; किरण क्रिस्टलिकी के तत्व।

शैलकर सिलिकेंट खनिज समूहों के भौतिक एवं रासायनिक गुण; सिलिकेंट का संरचनात्मक वर्गीकरण; आग्नेय एकायांतरित शैलों के सामान्य खनिज; कार्बोनेट, फास्फोट सल्फाइड एवं हेलाइड समूहों के खनिज; मृतिका खनिज।

सामान्य शैलकर खनिजों के प्रकाशिक गुणधर्म; खनिजों में बहुवर्णता, विलोप कोण, द्विअपवर्तन (डबल रिफोक्शन बाईरेफ्रिजेंस), यमलन एवं परिक्षेपण।

2. आग्नेय एवं कायांतरित शैलिकी

मैगमा जनन एवं क्रिस्टलन; ऐल्वाइट-ऐनॉर्थाइट का क्रिस्टलन; डायोप्साइड-ऐनॉर्थाइट एवं डायोप्साइड-योलास्टोनाइट-सिलिका प्रणालियां; बॉवेन का अभिक्रिया सिद्धांत; मैग्मीय विभेदन एवं स्वांगीकरण; आग्नेय शैलों के गठन एवं संरचनाओं का शैलजनननिक महत्व; ऐनाइट, साइनाइड, डायोराइट, अल्पसिलिक एवं अत्यल्पसिलिक समूहों, चार्नोकाइट, अनॉर्थोसाइट एवं क्षारीय शैलों की शैलवर्णना एवं शैल जनन; कार्बोनेटाइट्स, डेकन ज्वालामुखी शैल-क्षेत्र।

कायांतरण प्रश्रय एवं कारक; कायांतरी कोटियां एवं संस्तर; प्रावस्था नियम; प्रादेशिक एवं संस्पर्श कायांतरण संलक्षणी; ACF एवं AKF आरेख; कायांतरी शैलों का गठन एवं संरचना; बालुकामय, मृण्मय एवं अल्पसिलिक शैलों का कायांतरण; खनिज समुच्चय पश्चगतिक कायांतरण तत्वांतरण एवं ग्रेनाइटोभवन; भारत का मिग्मेटाइट, कणिकाश्म शैल प्रदेश।

3. अवसादी शैलिकी

अवसाद एवं अवसादी शैल निर्माण प्रक्रियाएं, प्रसंचनन एवं शिलोभवन, संखंडाश्मी एवं असंखंडाश्मी शैल-उनका वर्गीकरण, शैलवर्णना एवं निक्षेपण वातावरण; अवसादी संलक्षणी एवं जननक्षेत्र; अवसादी संरचनाएं एवं उनका महत्व; भारी खनिज एवं उनका महत्व; भारत की अवसादी द्रोणियां।

4. आर्थिक भूविज्ञान

अयस्क, अयस्क खनिज एवं गैंग, अयस्क का औसत प्रतिशत, अयस्क निक्षेपों का वर्गीकरण; खनिज निक्षेपों की निर्माण

प्रक्रिया; अयस्क स्थानीकरण के नियंत्रण; अयस्क गठन एवं संरचनाएं; धातु जननिक युग एवं प्रदेश; एल्युमिनियम, क्रोनियम, ताम्र, स्वर्ण, लोह, लेड, जिक मैंगनीज, टिटैनियम, पुरेनियम एवं थेरियम तथा औद्योगिक खनिजों के महत्वपूर्ण भारतीय निक्षेपों का भूविज्ञान; भारत में कोयला एवं पेट्रोलियम निषेध; राष्ट्रीय खनिज नीति; खनिज संसाधनों का संरक्षण एवं उपयोग; समुद्री खनिज संसाधन एवं समुद्र नियम।

5. खनन भूविज्ञान

पूर्वेक्षण की विधियां-भूवैज्ञानिक, भूभौतिक, भूरासायनिक एवं भू-वानस्पतिक; प्रतिचयन प्रविधियां, अयस्क निष्प्र प्राक्कलन; धातु अयस्कों, औद्योगिक खनिजों, समुद्री खनिज संसाधनों एवं निर्माण प्रस्तरों के अन्वेषण एवं खनिज की विधियां; खनिज सन्जीकरण एवं अयस्क प्रसाधन।

6. भूरासायनिक एवं पर्यावरणीय भूविज्ञान

तत्वों का अंतरिक्षो बाहुल्य; ग्रहों ए, उत्कर्षण; रु। संघटन; पृथ्वी की संरचना एवं संघटन एवं तत्वों का प्रगण; लेड; तत्व; क्रिस्टल रासायनिकी के तत्व-रासायनिक आबंध, समन्वय संख्या, समाकृतिवश एवं चक्रणण; प्रारंभिक उष्मागतिकी।

प्राकृतिक संकट-बाढ़, वृहत क्षरण, हटीय संकट, भूकंप एवं ज्वालामुखीय सक्रियता तथा न्यूनीकरण; नगरीकरण, खनन औद्योगिक एवं रेडियोसक्रिय अपरर निपटान, उर्वरक प्रयोग, खनन अपरद एवं फ्लाई एंशा सन्निक्षेपण के पर्यावरणीय प्रभाव; भीम एवं भू-पृष्ठ जल प्रदूषण, समुद्री प्रदूषण; पर्यावरण संरक्षण-भारत में बिधायी उपाय; समुद्र तल परिवर्तन-कारण एवं प्रभाव।

इतिहास

प्रश्न पत्र-1

1. स्रोत :

पुरातात्विक स्रोत :
अन्वेषण, उत्खनन, पुरालेखविद्या, मुद्राशास्त्र, स्मारक।
साहित्यिक स्रोत :
स्वदेशी : प्राथमिक एवं द्वितीयक; कविता, विज्ञान साहित्य, साहित्य, क्षेत्रीय भाषाओं का साहित्य, धार्मिक साहित्य।

विदेशी वर्णन : यूनानी, चीनी एवं अरब लेखक

2. प्रागैतिहास एवं आद्य इतिहास :

भौगोलिक कारक। शिकार एवं संग्रहण (पुरापाषाण एवं मध्यपाषाण युग); कृषि का आरंभ (नवपाषाण एवं ताम्रपाषाण युग)।


3. सिंधु घाटी सभ्यता :

उद्म, काल, विस्तार, विशेषताएं, पतन, अस्तित्व एवं महत्व, कला एवं स्थान्तय ।
4. महापाषाणयुगीन संस्कृतियां :

सिंधु से बाहर पशुशारण एवं कृषि संस्कृतियों का विस्तार, सामुदायिक जीवन का विकास, बस्तियां, कृषि का विकास, शिल्पकर्म, मृदभांड एवं लोह उद्योग ।
5. आर्य एवं वैदिक काल :

भारत में आर्यों का प्रसार।
वैदिक काल : धार्मिक एवं दार्शनिक साहित्य; ज्ञानवैदिक काल से उतर वैदिक काल तक हुए रूपांतरण; राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक जीवन; वैदिक युग का महत्व; राजतंत्र एवं वर्ण व्यवस्था का क्रम विकास ।
6. महाजनपद काल :

महाजनपदों का निर्माण ; गणतंत्रीय एवं राजतंत्रीय; नगर कोंडों का उद्भव; व्यापार मार्ग; आर्थिक विकास टंकण (सिक्का ढलाई); जैन धर्म एवं बोध धर्म का प्रसार; मगधों एवं नंदों का उद्भव। ईरानी एवं नंदों का उद्भव ।
7. मौर्य साम्राज्य :

मौर्य साम्राज्य की नीच, चंद्रगुप्त, कौटिल्य और अर्थशास्त्र; अलीक, धर्म की संकल्पना; धर्मादेश; राज्य व्यवस्था; प्रशासन; अर्थव्यवस्था; कला, स्थापत्य एवं मूर्तिशिल्प; विदेशी संपर्क: धर्म का प्रसार; साहित्य।
साम्राज्य का निपटय: डुंग एवं कण्व ।
8. उत्तर मौर्य काल ( भारत-यूनानी, शक, कुषाण, पश्चिमी क्षेत्र) :

याहरी विज्ञा से संपर्क; नगर-कोण्टों का विकास, अर्थव्यवस्था, टंकण, धर्मों का विकास, महादान, सामाजिक दशाएं, कला, स्थापत्य, संस्कृति, साहित्य एवं विज्ञान ।
9. प्रारंभिक : च एवं समाज: पूर्वी भारत, टकप एवं दक्षिण भारत से :

खारवेल, मातवाहन, संगमकालीन तमिल राज्य; प्रशासन, अर्थ-व्यवस्था, भूमि, अनुदान, टंकण, व्यापारिक श्रेणियां एवं नगर कोंड; बोध कोंड, संगम साहित्य एवं संस्कृति; कला एवं स्थापत्य।
10. गुप्त वंश, बाकाटक एवं बर्धन वंश :

राज्य व्यवस्था एवं प्रशासन, आर्थिक दशाएं, गुप्तकालीन टंकण, भूमि अनुदान, नगर कोंडों का पतन, भारतीय सामंतशाही, जाति प्रथा, स्त्री को स्थिति, शिक्षा एवं शैक्षिक संस्थाएं; नार्तदा, विक्रमशिला एवं बल्लभी, साहित्य, विज्ञान साहित्य, कला एवं स्थापत्य ।
11. गुप्तकालीन क्षेत्रीय राज्य :

कदंबपेश, पल्लववंश, वरभी का चालुक्यवंश; राज्य व्यवस्था एवं प्रशासन, व्यापारिक श्रेणियां, साहित्य; वैश्णव एवं शेय धर्मों का विकास । तमिल भक्ति आंदोलन, शंकराचार्य; वेदांत; मंदिर संस्थाएं एवं मंदिर स्थापत्य; पाल वंश, सेन

वंश, राष्ट्रकूट वंश, परमार वंश, राज्य व्यवस्था एवं प्रशासन; सांस्कृतिक पक्ष । सिंध के अरब विजेता; अलबरूनी, कल्याण का चालुक्य वंश, घोल वंश, होयसल वंश, पांडय वंश; राज्य व्यवस्था एवं प्रशासन; स्थानीय शासन; कला एवं स्थापत्य का विकास, धार्मिक संप्रदाय, मंदिर एवं मठ संस्थाएं, अग्रेटार वंश, शिक्षा एवं साहित्य, अर्थ-व्यवस्था एवं समाज ।
12. प्रारंभिक भारतीय सांस्कृतिक इतिहास के प्रतिपाद्य :

भाषाएं एवं मूलग्रंथ, कला एवं स्थापत्य के क्रम विकास के प्रमुख चरण, प्रमुख दार्शनिक चितक एवं शाखाएं, विज्ञान एवं गणित के क्षेत्र में विचार ।
13. प्रारंभिक मध्यकालीन भारत, 750-1200

  • राज्य व्यवस्था: उत्तरी भारत एवं प्रायद्वीप में प्रमुख राजनैतिक घटनाक्रम, राजपूतों का उद्गम एवं उद्य
    -चौल वंश : प्रशासन, ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं समाज
  • भारतीय सामंतशाही
  • कृषि अर्थ-व्यवस्था एवं नगरीय बस्तियां
    -व्यापार एवं वाणिज्य
    -समाज : ब्राह्मण की स्थिति एवं नई सामाजिक व्यवस्था
    -स्त्री को स्थिति
  • भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ।
  1. भारत को सांस्कृतिक परंपरा 750-1200
    -दर्शन : शंकराचार्य एवं वेदांत, रामानुज एवं विशिष्टाद्वैत, मध्य एवं ब्रह्म-मीमांसा ।
    -धर्म : धर्म के स्वरूप एवं विशेषताएं, तमिल भक्ति, संप्रदाय, भक्ति का विकास, इस्लाम एवं भारत में इसका आगमन, सूफी मत ।
    -साहित्य : संस्कृत साहित्य, तमिल साहित्य का विकास, नवविकासशील भाषाओं का साहित्य, कल्हण की “राजतरंगिनी”, अलबरूनी का “इंडिया”।
    -कला एवं स्थापत्य : मंदिर स्थापत्य, मूर्तिशिल्प, चित्रकला।

  2. तेरहवीं शताब्दी
    -दिल्ली सल्तनत की स्थापना : गारी के आक्रमण-गौरी की सफलता के पीछे कारक

  • आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिणाम
  • दिल्ली सल्तनत की स्थापना एवं प्रारंभिक तुर्क सुल्तान
  • सुदृढीकरण : इल्तुतमिश और बलबन का शासन ।
  1. चौदहवीं शताब्दी
    -खिलजी क्रांति
    -अलाउद्दीन खिलजी : विजय एवं क्षेत्र-प्रसार, कृषि एवं आर्थिक उपाय

  • मुहम्मद तुगलक : प्रमुख प्रकल्प, कृषि उपाय, मुहम्मद तुगलक की अफसरशाही
  • फिरोज तुगलक : कृषि उपाय, सिविल इंजीनियरी एवं लोक निर्माण में उपलब्धियां, दिल्ली सल्तनत का पतन, विदेशी संपर्क एवं इब्नबतूता का वर्णन।
  1. तेरहवीं एवं चौदहवीं शताब्दी का समाज, संस्कृति एवं अर्थव्यवस्था
    -समाज : ग्रामीण समाज की रचना, शासी वर्ग, नगर निवासी, स्त्री, धार्मिक वर्ग, सल्तनत के अंतर्गत जाति एवं दक्ष प्रथा, पक्ति आन्दोलन, सूची आन्दोलन
    -संस्कृति : फारसी साहित्य, उत्तर भारत की क्षेत्रीय भाषाओं का साहित्य, दक्षिण भारत की भाषाओं का साहित्य, सल्तनत स्थापत्य एवं नए स्वपात्य रूप, चित्रकला, सम्मिल संस्कृति का विकास
    -अथ व्यवस्था : कृषि उत्पादन, नगरीय अर्थव्यवस्था एवं कृषीतर उत्पादन का उद्भव, व्यापार एवं वाणिज्य।

  2. पंद्रहवीं एवं प्रारंभिक सोलहवीं शताब्दी-राजनैतिक घटनाक्रम एवं अर्थव्यवस्था
    -प्रांतीय राजवंशों का उदय : बंगाल, कश्मीर (जैतुल आबधीन), गुजरात, भालना, बहमनी

– विजयनगर साम्राज्य
– लोधीवंश
– मुगल साम्राज्य, पहला चरण : बाबर एवं हुमायूँ
– सूर साम्राज्य : शेरशाह का प्रशासन
– पुर्तगाली औपनिवेशिक प्रतिष्ठान।

  1. पंद्रहवीं एवं प्रारंभिक सोलहवीं शताब्दी : समाज एवं संस्कृति

– क्षेत्रीय सांस्कृतिक विशिष्टताएं
– साहित्यक परम्पराएं
– प्रांतीय स्थापत्य
– विजयनगर साम्राज्य का समाज, संस्कृति, साहित्य और कला।

  1. अकबर

– विजय एवं साम्राज्य का सुदृढ़ीकरण
– जागीर एवं मनसब व्यवस्था की स्थापना
– राजपूत नीति
– धार्मिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण का विकास, सुलह-ए-कुल का सिद्धांत एवं धार्मिक नीति
– कला एवं प्रौद्योगिकी को राज-दरबारी संरक्षण।

  1. सत्रहवीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य
    -जहांगीर, शाहजहां एवं औरंगजेब की प्रमुख प्रशासनिक नीतियां
    -साम्राज्य एवं जमींदार
    -जहांगीर, शाहजहां एवं औरंगजेब की धार्मिक नीतियां

– मुगल राज्य का स्वरूप
-उत्तर सत्रहवीं शताब्दी का संकट एवं विद्रोह
– अर्हाम साम्राज्य
– शिवाजी एवं प्रारंभिक मराठा राज्य।

  1. सोलहवीं एवं सत्रहवीं शताब्दी में अर्थव्यवस्था एवं ज्माज
    -डरसंख्या, कृषि उत्पादन, जिल्य उत्पादन
    -नगर, डच, अंग्रेजों एवं फ्रांसीसी कंपनियों के माध्यम से यूरोप के साथ वाणिज्य , “व्यापार क्रांति”

– भारतीय व्यापारी वर्ग, बैंकिंग, बीमा एवं ऋण प्रणालियां
-फिजानों को दशा, स्त्रियों की दशा
– सिख समुदाय एवं खालसा पंप का विकास।

  1. मुगल साम्राज्यकालीन संस्कृति

– फारसी इतिहास एवं अन्य साहित्य
– हिन्दी उर्थ अन्य धार्मिक साहित्य
– मुगल स्थापत्य
– मुगल चित्रकला
– प्रांतीय स्थापत्य एवं चित्रकला
– शास्त्रीय संगीत
– विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी।

  1. अठारहवीं शताब्दी

– मुगल साम्राज्य के पतन के कारक
– क्षेत्रीय सामंत देश : निजाम का दफन, बंगाल, अवध
– पेशवा के अधीन मराठा उत्कर्ष
– मराठा राजकोषीय एवं वित्तीय व्यवस्था
– अफगान शक्ति का उदय, पानीपत का युद्ध-1761
– ब्रिटिश विजय की पूर्व संध्या में राजनीति, संस्कृति एवं अर्थव्यवस्था की स्थिति।

प्रश्न-पत्र 2

  1. भारत में यूरोप का प्रदेश

प्रारंभिक यूरोपीय बस्तियां; पुर्तगाली एवं डच, अंग्रेजों एवं फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनियां; आधिपत्य के लिए उनके युद्ध; कर्नाटक युद्ध; बंगाल-अंग्रेजों एवं बंगाल के नवाब के बीच संघर्ष; सिराज और अंग्रेज, प्लासी का युद्ध; प्लासी का महत्व।

  1. भारत में ब्रिटिश प्रसार

बंगाल-मोर जाफर एवं मोर कासिम; बक्सर का युद्ध; मैसूर; मराठा; तीन अंग्रेज-मराठा युद्ध; पंजाब।

  1. ब्रिटिश राज की प्रारंभिक संरचना

प्रारंभिक प्रशासनिक संरचना : द्वैधशासन से प्रत्यक्ष नियंत्रक तक; रेगुलेटिंग एक्ट (1773); पिट्स इंडिया एक्ट (1784); चार्टर एक्ट (1833); मुफ्त व्यापार का स्वर एवं ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का बदलता स्वरूप; अंग्रेजी उपयोगितावादी और भारत।


  1. ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का आर्थिक प्रभाव
    (क) ब्रिटिश भारत में भूमि-राजस्व बंदोबस्त; स्थायी बंदोबस्त; रैमतवारी बंदोबस्त; महालवारी बंदोबस्त; राजस्व प्रबंध का आर्थिक प्रभाव; कृषि का वाणिज्यीकरण; भूमिहीन कृषि श्रमिकों का उदय; ग्रामीण समाज का परिक्षनण। (ख) पारंपरिक व्यापार एवं वाणिज्य का विस्थापन; अनौद्योगीकरण; पारंपरिक शिल्प की अवनति; धन का अपवाह; भारत का आर्थिक रूपांतरण; टेलीग्राफ एवं डाक सेवाओं समेत रेल पथ एवं संचार जाल; ग्रामीण भीतरी प्रदेश में दुर्भिक्ष एवं गरीबी; यूरोपीय व्यापार उद्यम एवं इसकी सीमाएँ ।
  2. सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास

स्वदेशी शिक्षा की स्थिति; इसका विस्थापन; प्राच्वविद्-आंग्लविद् विवाद, भारत में पश्चिमी शिक्षा का प्रादर्भाव; प्रेस, साहित्य एवं लोकमत का उदय; आधुनिक मातृभाषा साहित्य का उदय; विज्ञान की प्रगति; भारत में क्रिश्चियन मिशनरों के कार्यकलाप ।
6. बंगाल एवं अन्य क्षेत्रों में सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आंदोलन
राममोहन राय, बहा आंदोलन; देवेन्द्रनाथ टैगोर; ईश्वरचंद्र विद्यासागर; युवा बंगाल आंदोलन; दयानन्द सरस्वती; भारत में सती, विधवा विवाह, बाल विवाह, आदि समेत सामाजिक सुधार आंदोलन; आधुनिक भारत के विकास में भारतीय पुनर्जागरण का योगदान; इस्लामी पुनरुद्धार वृत्ति-फराईजी एवं वहाची आंदोलन ।
7. ब्रिटिश शासन के प्रति भारत की अनुक्रिया

रंगपुर छीग (1783), कोल विद्रोह (1832), मालाबार में मॉपला विद्रोह (1841-1920), सन्धाल हुल (1855), नील विद्रोह (1859-60), दकन विप्लव (1875), एवं मुड़ा विद्रोह उल्गुलान (1899-1900) समेत 18वीं एवं 19वीं शताब्दी में हुए किसान आंदोलन एवं जनजातीय विप्लव; 1857 का महाविद्रोह-उद्गम, स्वरूप, असफलता के कारण, परिणाम; पश्य 1857 काल में किसान विप्लव के स्वरूप में बदलाव; 1920 और 1930 के दशकों में हुए किसान आंदोलन ।
8. भारतीय राष्ट्रवाद के जन्म के कारक; संघों की राजनीति; भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बुनियाद; कांग्रेस के जन्म के संबंध में सेफ्टी वाल्व का पक्ष; प्रारंभिक कांग्रेस के कार्यक्रम एवं लक्ष्य; प्रारंभिक कांग्रेस नेतृत्व की सामाजिक रचना; नरम दल एवं गंरम दल; बंगाल का विभाजन (1905); बंगाल में स्वदेशी आंदोलन; स्वदेशी आंदोलन के आर्थिक एवं राजनैतिक परिप्रेक्ष्य; भारत में क्रांतिकारी उग्रपंथ का आरंभ ।
9. गांधी का उदय; गांधी के राष्ट्रवाद का स्वरूप; गांधी का जनाकर्षण; रोलेट सत्याग्रह; खिलाफत आंदोलन; असहयोग आंदोलन; असहयोग आंदोलन समाप्त होने के बाद से सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रारंभ होने तक की राष्ट्रीय

राजनीति; सविनय अवज्ञा आंदोलन के का चरण; साइमन कमिशन; नेहरू रिपोर्ट; गोलमेज़ एॉर, द्युप्याद और किसान आंदोलन; राष्ट्रवाद एवं श्रमिक की संयोलन; महिला एवं भारतीय युवा तथा भारतीय राजनीति में छात्र (1885-1947); 1937 का चुनाव तथा गलियों का गठन; क्रिप्स मिशन; भारत छाती द्रवांतल, गंरस योजना; कीबनंट मिशन ।
10. औपनिवेशिक भारत में 1858 और 1935 के बीच सांविधानिक घटनाक्रम ।
11. राष्ट्रीय आंदोलन की अन्य काइयां

क्रांतिकारी : बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र, यू.पी., मद्रास प्रदेश, भारत से बाहर ‘ वामपक्ष; कांग्रेस के अंदर का वामपक्ष; जवाहर लाल नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस, कांग्रेस समाजवादी पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, अन्य वामदल ।
12. अलगाववाद की राजनीति; मुम्लिम लोग; हिन्दू महासभा सांप्रदायिकता एवं विभाजन की राजनीति; सेवा का हस्तांतरण; स्वतंत्रता ।
13. एक राष्ट्र के रूप में सुदृढ़ीकरण; नेहरू की विदेश नीति भारत और उसके पड़ोसी (1947-1964) राज्यों का भाषानाद पुनर्गठन (1935-1947); क्षेत्रीयतावाद एवं क्षेत्रीय असमानता; भारतीय रियासतों का एकीकरण; निर्वाचन की राजनीति में रियासतों के नरेश (प्रिंस); राष्ट्रीय भाषा का प्रश्न ।
14. 1947 के बाद जाति एवं नृजातित्व; उत्तर औपनिवेशिक निर्वाचन-राजनीति में पिछड़ी जातियां एवं जनजातियां; दलित आंदोलन ।
15. आर्थिक विकास एवं राजनीति परिवर्तन; भूमि सुधार; योजना एवं ग्रामीण पुनर्रचना की राजनीति; उत्तर औपनिवेशिक भारत में पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण नीति; विज्ञान की तरक्की ।
16. प्रबोध एवं आधुनिक विचार
(i) प्रबोध के प्रमुख विचार : कांट रूसी
(ii) उपनिवेशों में प्रबोध-प्रसार
(iii) समाजवादी विचारों का उदय (मार्क्स तक); मार्क्स के समाजवाद का प्रसार
17. आधुनिक राजनीति के मूल स्रोत
(i) यूरोपीय राज्य प्रणाली
(ii) अमेरिकी क्रांति एवं संविधान
(iii) फ्रांसीसी क्रांति एवं उसके परिणाम, 1789-1815
(iv) अज्ञाहम लिंकन के संदर्भ के साथ अमरीकी सिविल युद्ध एवं दासता का उन्मूलन
(v) ब्रिटिश गणतंत्रात्मक राजनीति, 1815-1850; संसदीय सुधार, मुक्त व्यापारी, चार्टरवादी ।


  1. औद्योगिकीकरण
    (i) अंग्रेजो औद्योगिक क्रांति : कारण एवं समाज पर प्रभाव
    (ii) अन्य देशों में औद्योगिकीकरण : यू एस.ए., जर्मनी, रूस, जापान
    (iii) औद्योगिकीकरण एवं भूमंडलीकरण ।
  2. राष्ट्र राज्य प्रणाली
    (i) 19वों शताब्दी में राष्ट्रवाद का उदय
    (ii) राष्ट्रवाद : जर्मनी और इटली में राज्य निर्माण
    (iii) पूरे विश्व में राष्ट्रीयता के आविर्भाव के समक्ष साधन्यों का विघटन ।
  3. साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद
    (i) दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया
    (ii) लातीनी अमरीका एवं दक्षिणी अफ्रीका
    (iii) आस्ट्रेलिया
    (iv) साम्राज्यवाद एवं मुक्त व्यापार : नवसाम्राज्यवाद का उदय ।
  4. क्रांति एवं प्रतिक्रांति
    (i) 19वों शताब्दी यूरोपीय क्रांतियां
    (ii) 1917-1921 की रूसी क्रांति
    (iii) फासीवाद प्रतिक्रांति, इटली एवं जर्मनी
    (iv) 1949 को चीनी क्रांति ।
  5. विश्व युद्ध
    (i) संपूर्ण युद्ध के रूप में प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध: समाजीय निहितार्थ
    (ii) प्रथम विश्व युद्ध : कारण एवं परिणाम
    (iii) द्वितीय विश्व युद्ध : कारण एवं परिणाम ।
  6. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का विश्व
    (i) दो शक्तियों का आविर्भाव
    (ii) तृतीय विश्व एवं गुटनिरपेक्षता का आविर्भाव
    (iii) संयुक्त राष्ट्र संघ एवं वैश्विक विवाद ।
  7. औपनिवेशक शासन से मुक्ति
    (i) लातीनी अमरीका-बोलीवर
    (ii) अरब विश्व-मिश्र
    (iii) अफ्रीका रंगभेद से गणतंत्र तक
    (iv) दक्षिण पूर्व एशिया-वियतनाम ।
  8. वि-औपनिवेशीकरण एवं अल्पविकास
    (i) विकास के बाधक कारक : लातीनी, अमरीका, अफ्रीका
  9. यूरोप का एकीकरण
    (i) युद्धोत्तर स्थापनाएं : NATO एवं यूरोपीय समुदाय (यूरोपियन कम्युनिटी)
    (ii) यूरोपीय समुदाय (यूरोपियन कम्युनिटी) का सुदृढ़ीकरण एवं प्रसार
    (iii) यूरोपियाई संघ ।
  10. सोवियत यूनियन का विघटन एवं एक ध्रुवीय विश्व का उदय
    (i) सोवियत साम्यवाद एवं सोवियत यूनियन को निपात तक पहुंचाने वाले कारक, 1985-1991
    (ii) पूर्वों यूरोप में राजनैतिक परिवर्तन 1989-2001
    (iii) शीत युद्ध का अंत एवं अकेली महाशक्ति के रूप में US का उत्कर्ष !

विधि

प्रश्न-पत्र 1

सांविधिक एवं प्रशासनिक विधि :

  1. संविधान एवं संविधानवाद; संविधान के सुस्पष्ट लक्षण ।
  2. मूल अधिकार-लोकहित याचिका, विधिक सहायता, विधिक सेवा प्राधिकरण ।
  3. मूल अधिकार-निदेशक तत्व तथा मूल कर्तव्यों के बीच संबंध ।
  4. राष्ट्रपति को संवैधानिक स्थिति तथा मंत्रिपरिषद् के साथ संबंध ।
  5. राज्यपाल तथा उसकी शक्तियां ।
  6. उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय :
    (क) नियुक्ति तथा स्थापांतरण ।
    (ख) शक्तियां, कार्य एवं अधिकारिता ।
  7. कोड, राज्य एवं स्थानीय निकाय;
    (क) संघ तथा राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण ।
    (ख) स्थानीय निकाय ।
    (ग) संघ, राज्यों तथा स्थानीय निकायों के बीच प्रशासनिक संबंध ।
    (घ) सर्वोपरि अधिकार-राज्य संपत्ति-सामान्य संपत्तिसमुदाय संपत्ति ।
  8. विधायी शक्तियों, विशेषाधिकार एवं उन्मुक्ति ।
  9. संघ एवं राज्य के अधीन सेवाएं :
    (क) भर्ती एवं सेवा शर्ते : सांविधानिक सुरक्षा; प्रशासनिक अधिकरण ।
    (ख) संघ लोक सेवा आयोग एवं लोक सेवा आयोग-शक्ति एवं कार्य ।
    (ग) निर्वाचन आयोग-शक्ति एवं कार्य ।
  10. आपात् उपबंध ।
  11. संविधान संशोधन ।
  12. नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत-आविर्भूव होती प्रवृतियाँ एवं न्यायिक उपागम ।
  13. प्रत्यायोजित विधान एवं इसकी सांविधानिकता ।
  14. शक्तियों एवं सांविधानिक शासन का पृथक्करण ।
  15. प्रशासनिक कार्रवाई का न्यायिक पुनर्विलोकन ।
  16. ओम्बड्समैन : लोकायुक्त, लोकपाल आदि ।

अंतर्राष्ट्रीय विधि :

  1. अंतर्राष्ट्रीय विधि की प्रकृति तथा परिभाषा
  2. अंतर्राष्ट्रीय विधि तथा राष्ट्रीय विधि के बीच संबंध।
  3. राज्य मान्यता तथा राज्य उत्तराधिकार ।
  4. समुद्र नियम : अंतर्देशीय जलमार्ग, क्षेत्रीय समुद्र, समीपस्थ परिक्षेत्र, महाद्वीपीय उपतट, अनन्य आर्थिक परिक्षेत्र तथा महासमुद्र ।
  5. व्यक्ति : राष्ट्रीयता, राज्यहीनता-मानवाधिकार तथा उनको प्रवर्तन के लिए उपलब्ध प्रक्रियाएं ।
  6. राज्यों की क्षेत्रीय अधिकारिता-प्रत्यर्पण तथा शरण ।
  7. साँधियां : निर्माण, उपयोजन, पर्यवसान और आरक्षण ।
  8. संयुक्त राष्ट्र : इसको प्रमुख अंग, शक्तियां कृत्य और सुधार ।
  9. विवादों का शांतिपूर्ण निपटारा : विभिन्न तरीके ।
  10. बल का विधिपूर्ण आश्रय : आक्रमण, आत्मरक्षा, हस्तक्षेप ।
  11. अंतर्राष्ट्रीय मानवादी विधि के मूल सिद्धांत-अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन एवं समकालीन विकास ।
  12. परमाणु अस्त्रों के प्रयोग की वैधता; परमाणु अस्त्रों के परीक्षण पर रोक – परमाण्वीय अग्रसार साँध, सी.टी.बी.टी. ।
  13. अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, राज्यप्रवर्तित आतंकवाद, अपहरण, अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ।
  14. नए अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक आदेश तथा मौद्रिक विधि, डब्ल्यू टी ओ, टीआरआईपीएस, जीएटीटी, आईएमएफ, विश्र्व बैंक ।
  15. मानव पर्यावरण का संरक्षण तथा सुधार—अंतर्राष्ट्रीय प्रयास ।

प्रश्न पत्र-II

अपराध विधि

  1. आपराधिक दायित्व के सामान्य सिद्धांत; आपराधिक मनःस्थिति तथा आपराधिक कार्य । सांविधिक अपराधों में आपराधिक मनःस्थिति ।
  2. दंड के प्रकार एवं नई प्रवृत्तियाँ जैसे कि मृत्यु दंड उन्मूलन
  3. तैयारियां तथा आपराधिक प्रयास
  4. सामान्य अपवाद
  5. संयुक्त तथा रचनात्मक दायित्व
  6. दुर्घटण
  7. आपराधिक षडयंत्र
  8. राज्य के प्रति अपराध
  9. लोक शांति के प्रति अपराध
  10. मानव शरीर के प्रति अपराध
  11. संपत्ति के प्रति अपराध
  12. स्त्री के प्रति अपराध
  13. मानहानि
  14. भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988
  15. सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 एवं उत्तरवर्ती विधायी विकास
  16. अभिवचन सौदा ।

अपकृत्य विधि

  1. प्रकृति तथा परिभाषा
  2. त्रुटि तथा कठोर दायित्व पर आधारित दायित्व; आत्यंतिक दायित्व।
  3. प्रतिनिधिक दायित्व, राज्य दायित्व सहित
  4. सामान्य प्रतिरक्षा
  5. संयुक्त अपकृत्य कर्ता
  6. उपचार
  7. उपेक्षा
  8. मानहानि
  9. उत्पात (न्यूसेंस)
  10. बडयंत्र
  11. अप्राधिकृत बंदीकरण
  12. विद्वेषपूर्ण अभियोजन
  13. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 ।

सविदा विधि और वाणिज्यिक विधि

  1. सविदा का स्वरूप और निर्माण/ई सविदा
  2. स्वतंत्र सम्मति को दूषित करने वाले कारक
  3. शून्य शून्यकरणीय, अवैध तथा अप्रवर्तनीय करार
  4. सविदा का पालन तथा उन्मोचन
  5. सविदाकल्प
  6. सविदा भंग के परिणाम
  7. क्षतिपूर्ति, गारंटी एवं बीमा सविदा
  8. अभिकरण सविदा
  9. माल की बिक्री तथा अवक्रय (हायर परचेज)
  10. भागीदारी का निर्माण तथा विघटन
  11. परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881
  12. माध्यम्यम् तथा सुलह अधिनियम, 1996
  13. मानक रूप सविदा

समकालीन विधिक विकास

  1. लोकहित याचिका
  2. बौद्धिक संपदा अधिकार-संकल्पना, प्रकार/संभावनाएं ।
  3. सूचना प्रौद्योगिकी विधि, जिसमें साइबर विधियां शामिल हैं, संकल्पना, प्रयोजप/संभावनाएं ।
  4. प्रतियोगिता विधि संकल्पना, प्रयोग/संभावनाएं ।
  5. वैकल्पिक विवाद समाधान-संकल्पना, प्रकार/संभावनाएं ।
  6. पर्यावरणीय विधि से संबंधित प्रमुख कानून ।
  7. सूचना का अधिकार अधिनियम ।
  8. संचार माध्यमों (मीडिया) द्वारा विचारण ।

निम्नलिखित भाषाओं का साहित्य

नोट :

(1) उम्मीदवार को संबद्ध भाषा में कुछ या सभी प्रश्नों के उत्तर देने पड् सकते हैं।
(2) संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित भाषाओं के संबंध में लिपियां वही होंगी जो प्रधान परीक्षा से संबद्ध परिशिष्ट I के खण्ड II (ख) में दर्शाई गई हैं।
(3) उम्मीदवार ध्यान दें कि जिन प्रश्नों के उत्तर किसी विशिष्ट भाषा में नहीं देने हैं उनकें उत्तरों को लिखने के लिए वे उसी माध्यम को अपनाएं जोकि उन्होंने निबंध, सामान्य अध्ययन तथा वैकल्पिक विषयों के लिए चुना है।

अरबी

प्रश्न पत्र-1

उत्तर अरबी में लिखने होंगे

खंड-क

  1. (क) अरबी भाषा का उद्भव और विकास रूपरेखा ।

(ख) अरबी भाषा के व्याकरण, छन्द विधान और अलंकार विधान को प्रमुख विशेषाएं।
(ग) अरबी में संक्षिप्त निबंध।

खंड-ख

  1. साहित्य का इतिहास और साहित्यिक आलोचना : सामाजिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, क्लासिकों साहित्य, साहित्यिक आन्दोलन, आधुनिक प्रवृत्तियां, आधुनिक गद्य उद्भव और विकास : नाटक, उपन्यास, कहानी, निबंध।

प्रश्न पत्र-2

इस प्रश्नपत्र में निर्धारित मूल पाठ्य पुस्तकों का अध्ययन अपेक्षित होगा इसका प्रारूप इस प्रकार तैयार किया जाएगा जिससे अभ्यर्थों की आलोचनात्मक योग्यता की परीक्षा हो सके । (उत्तर अरबी में लिखने होंगे)।

खंड-क

कवि

  1. इमराडल कायस : किफ़ा नवकं मिन जिकरा हवोबिन वा मंजिल (संपूर्ण) अल मौलाकातस सबा।
  2. हसन बिन धबोस : लिलाही दरू इजर्बातिन नदयतुहुन (संपूर्ण) दीवान हसन बिन धबीत।
  3. जरीर : ह्रयूयू उमामता बजुकुरू अहदान मद से जल्वास सिफाही वा दामि यातिन बिकला तक नख्बतु अदब : अरबी विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़।
  4. फर्जदाक : हजल लजी तारिफूल बधा-ओ-बातातुहु (संपूर्ण) मजमुआतुन मिनान नज्म-ए-वान नस्ब, जामिया सलफिया, कताणसी।
  5. अल मुतानब्बी : या उख्ता खैर-ए-अरबीन या विता खैर-एअबीन

से

अकमाहुल फिकरू-बैनल जिज-ए-बत्ताबी तक नुख्बातुल अदब, अरबी विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़।
6. अबुल अला उम्मारी अला फो सबील माजदी था अना फाइलू।

से

वा या नफसू जिद्दी इन्ना दहसकी हजीलू तक मजमुआतुल मिनान नज्म-ए-वान नस, जामियार सलाफिसर, वाराणसी ।
7. शैको : वुलीदल शुदा फल्कंनतु दिवाऊ

से

मल्तारा इला दिनकल फुकारजा सलामुन मीला या गांदी (संपूर्ण) शैकिबात ।
8. हाफिज इब्राहीम : राबातू लिमाफसी फताहस्तु हस्ती (संपूर्ण) मुख्बतुल अदब।
9. ईल्या अबू मादी : दमातुन खारसजो (संपूर्ण) तुल्तारत खैर-बल-अरबी।
वल हादिय, एम. एम. बदबी।

खंड-ख
(क) लेखक

लेखक
1. ईब्लुल मुकुफफा
2. अल-जाहिज

लेखक

  1. महमूद तैमूर
  2. तौफीकुल हकीम
  3. अब्बास महमूद
    (ख) भारतीय लेखकों का अध्ययन
    (क) लखक

पाठ
असद आइ वल ताऊर
मुख्तारत मिन अदाबिल
वरब बरिलूम हकीम
(संपूर्ण) भाग-2,
एस. ए. हसन अली
नदवी द्वारा ।
बराउन फित तामील
(संपूर्ण)
अम मुतावली (संपूर्ण)
सिहल मुन्ताहिरा
(संपूर्ण)
आसीदिक (संपूर्ण)
(ख) भा१तीय लेखकों का अध्ययन

  1. मुलाम अली बाजाद बिलगरानी
  2. शाह वलूल्लाह देहलवी
  3. जुल्फीकार अली देवबंदी
  4. अब्दुल असीब मैमन
  5. सैयद अकुल इसन अली हसनी नदवी

असमिया

प्रश्न-पत्र-I

उत्तर असमिया में लिखने होंगे
खंड-क

भाषा

(क) असमिया भाषा के उद्गम और विकास का इतिहासभारतीय आर्य भाषाओं में उसका स्थान-इसके इतिहास के विभिन्न काल-खंड
(ख) असमिया गद्य का विकास।
(ग) असमिया भाषा के स्वर और व्यंजन—प्रचीन भारतीय आर्यों से चली आ रही असमिया पर बालाघाट के साथ स्वनिक परिवर्तन के नियम।
(घ) असमिया शब्दावली एवं इसके स्रोत।
(ङ) भाषा का रूप विज्ञान-क्रिय रूप—पूर्वाश्रयी निर्देशन एवं अधिकपदीय पर प्रत्यय।
(च) बोलीगत वैविध्य—मानक बोलचाल एवं विशेष रूप से कामरूपी बोली।
(छ) उन्नीसवीं शताब्दी तक विभिन्न युगों में असमिया लिपियों का विकास।

खंड-ख

साहित्यिक आलोचना और साहित्यिक इतिहास
(क) साहित्यिक आलोचना के सिद्धांत, नई समीक्षा।
(ख) विभिन्न साहित्यिक विधाए।
(ग) असमिया में साहित्यिक रूपों का विकास।
(घ) असमिया में साहित्यिक आलोचना का विकास।
(ङ) चर्यागीतों के काल से असमिया साहित्य के इतिहास को बिल्कुल प्रारंभिक प्रवृत्तियां और उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि : आदि असमिया शंकरदेव से पहले-शंकरदेव-के बाद-आधुनिक काल (ब्रिटिश आगमन के बाद से) स्वातंत्र्योतर काल । वैष्णव काल, गोनाकी एवं स्वातंत्र्योतर काल पर विशेष बल दिया जाना है।

प्रश्न-पत्र-II

इस प्रश्न-पत्र में निर्धारित मूल पाद्य-पुस्तकों को पढ़ना अपेक्षित होगा और ऐसे प्रश्न पूछे जाएंगे जिनसे अध्यर्थी की आलोचनात्मक योग्यता की परीक्षा हो सके। उत्तर असमिया में लिखने होंगे।

खंड-क

रामायण (कॅवल अयोध्या कांड) माधव कंदली द्वारा
पारिजात-हरण
शंकरदेव द्वारा
रासक्रीड़ा
शंकरदेव द्वारा (कीर्तन घोष से)
बरगीत
माधवदेव द्वारा
राजसूय
माधवदेव द्वारा
कथा-भागवत (पुस्तक । एवं 2) बैकुण्ठनाथ भट्टाचार्य द्वारा गुरु चरित-कथा (कॅवल शंकरदेव का भाग)-संपादक : महेश्वर नियोग।

खंड-ख

मोर जीवन स्मरण
कृपावर बराबरुआ काकतर तोपोला प्रतिमा
गांवबूढ़ा
मनोमती
पुरणी असमिया साहित्य
कारिअांग लिगिरी
जौवनार बातत

मृत्युत्रजॅय
सम्राट

लक्ष्मीनाथ बेजुवरुआ द्वारा
लक्ष्मीनाथ बेजुबरुआ द्वारा
चन्द्र कुमार अगरवाला
पद्मनाथ गोहेन बरुआ द्वारा
रजनीकांत बोरदोलाई द्वारा
बानीकांत काकती द्वारा
ज्योति प्रसाद अगरवाला द्वारा
बीना बरुआ (बिरिचि कुमार
बरुआ द्वारा)
बोरेज् कुमार भट्टाचार्य द्वारा
नवकांत बरुआ द्वारा।
बांगला
प्रश्न-पत्र-I
भाषा और साहित्य का इतिहास—उत्तर बांगला में लिखने रेगे खंड-क

बांगला भाषा के इतिहास के विषय

  1. आद्य भारोपीय से बंगला तक का कालानुक्रमिक विक: (शाखाओं सहित वंशवृक्ष एवं अनुमानित तिथियां)।
  2. बांगला इतिहास के विभिन्न चरण (प्राचीन, मध्य एव नवीन) एवं उनकी भाषा विज्ञान-संबंधी विशिष्टताएं।
  3. बांगला की नीतियां एनं उनकें विभेदक लक्षण।
  4. बांगला शब्दावली के तत्व।
  5. बांगला गद्य-साहित्य के रूप-साधु एवं पतित।
  6. अपिनिहिति (विप्रकर्ष), अभिश्रुति (उम्लाउट), मूर्धन्यौभवन (प्रतिवेष्टन), नासिक्यौभवन (अनुनासिकृत), समीभवन (समीकरण), सादृश्य (एनेलोजी), स्वरागम (स्वर सिन्धवेश), आदि स्वरागम, मध्य स्वरागम अथवा स्वर भक्ति, अंत्य स्वरागम, स्वर संगति (वावल हार्मनी), वाई-बुति एवं डब्ल्यू-बुति।
  7. मानकीकरण की समस्याएं तथा वर्ण माला और वर्तनी तथा लिप्यंतरण और रोमनीकरण का सुधार ।
  8. आधुनिक बांगला का स्वनिमविज्ञान, रूपविज्ञान और वाक्य विन्यास। (आधुनिक बांगला की ध्वनियों, समुच्चयबोधक, शब्द रचनाएं, समास, मूल वाक्य अभिरचना)।

खंड-ख

बांगला साहित्य के इतिहास के विषय

  1. बांगला साहित्य का काल विभाजन : प्राचीन एवं मध्यकालीन बांगला।
  2. आधुनिक तथा पूर्व-आधुनिक-पूर्व बांगला साहित्य के बीच अंतर से संबंधित विषय।
  3. बांगला साहित्य में आधुनिकता के अभ्युदय के आधार तथा कारण।

  1. विभिन्न मध्यकालीन बांगला रूपों का विकास : मंगल काव्य, वैष्णव गीतिकाव्य, रूपांतरित आख्यान (रामायण, महाभारत, भागवत) एवं धार्मिक जीवनचरित ।
  2. मध्यकालीन बांगला साहित्य में धर्म निरपेक्षता का स्वरूप।
  3. उन्नीसवीं शताब्दी के बांगला काव्य में आख्यानक एवं गीतिका व्यात्मक प्रवृत्तियां।
  4. गद्य का विकास ।
  5. बांगला नाटक साहित्य (उन्नीसवीं शताब्दी, टैगोर, 1944 के उपरांत के बांगला नाटक) ।
  6. टैगोर एवं टैगोरोत्तर ।
  7. कथा साहित्य प्रमुख लेखक : बंकिमचंद्र, टैगोर, शरतचंद्र, विभूतिभूषण, ताराशंकर, माणिक ।
  8. नारी एवं बांगला साहित्य : सर्जक एवं सृजित ।

प्रश्न-पत्र-II

विस्तृत अध्ययन के लिए निर्धारित पुस्तकें—उत्तर बांगला में लिखने होंगे

खंड-क

  1. वैष्णव पदावली : (कलकत्ता विश्वविद्यालय) विद्यापति, चंडीदास, ज्ञानदास, गोविन्ददास एवं बलरामदास की कविताएं।
  2. चंडीमंगल : युकुन्द द्वारा कालकतु युतान्त, (साहित्य अकादमी)।
  3. चेतन्य चरितामृत : मध्य लीला, कुष्णदास कविराज रचित (साहित्य अकादमी)।
  4. मेघनाटवध काव्य : मधुसूदन दत्त रचित।
  5. कपालकुण्डला: बंकिमचन्द्र चटर्जी रचित।
  6. समय एवं बंगदेशेर कूषक: बंकिमचन्द्र चटर्जी रचित।
  7. सोनार तारी : रवीन्द्रनाथ टैगोर रचित ।
  8. छिन्न पत्रावली : रवीन्द्रनाथ टैगोर रचित ।

खंड-ख

  1. रक्त करबी : रवीन्द्रनाथ टैगोर रचित ।
  2. नबजातक : रवीन्द्रनाथ टैगोर रचित ।
  3. गृहदाह : शरदचन्द्र चटर्जी रचित ।
  4. प्रबंध संग्रह : भाग 1 , प्रथम चौधरी रचित ।
  5. अरण्यक : विभूतिभूषण बनर्जी रचित ।
  6. कहानियां : माणिक बंद्योपाध्याय रचित ।

अताशी मामी, प्रागेतिहासिक, होलुद-पोरा, सरीसृप, हारनेर, नटजमाई, छोटो-बोकुलपुरेर, जावी, कुष्ठरोगीर बौऊ, जाके भुश दिते होय ।
15. श्रेष्ठ कविता : जीवनाचंद दास रचित ।
16. जानौरी : सीतानाथ भादुडी रचित ।
17. इंद्रजीत : बादल सरकार रचित ।

बोडो

प्रश्न-पत्र-I

बोडो भाषा एवं साहित्य का इतिहास
( उत्तर बोडो भाषा में ही लिखें)
खंड-क

बोडो भाषा का इतिहास

  1. स्वदेश, भाषा परिवार, इसको वर्तमान स्थिति एवं असन्ते के साथ इसका पारस्परिक संपर्क ।
  2. (क) स्वनिम : स्वर तथा व्यंजन स्वनिम। (त्व) व्यंजयां।
  3. रूपविज्ञान : लिंग, कारक एवं विभक्तियां, बहुवचन प्राप्य, व्युत्पन्न, क्रियार्थक प्रत्यय ।
  4. शब्द समूह एवं इनके स्रोत।
  5. वाक्य विन्यास : वाक्यों के प्रकार, शब्द क्रम।
  6. प्रारम्भ से बोडो भाषा को लिखने में प्रयुक्त लिपि का इतिहास।

खंड-ख

बोडो साहित्य का इतिहास :

  1. बोडो लोक साहित्य का सामान्य परिचय।
  2. धर्म प्रचारकों का योगदान।
  3. बोडो साहित्य का काल विभाजन।
  4. विभिन्न विधाओं का आलोचनात्मक विश्लेषण (काव्य, उपन्यास, लघु-कथा तथा नाटक)।
  5. अनुवाद साहित्य।

प्रश्न-पत्र-II

इस प्रश्न-पत्र में निर्धारित पाद्य-पुस्तकों का मूल अध्ययन अपेक्षित होगा और परीक्षा में उम्मीदवार की आलोचनात्मक योग्यता को जांचने वाले प्रश्न पूछे जाएंगे। ( उत्तर बोडो भाषा में ही लिखें) खंड-क
बोडो भाषा का इतिहास :
(क) खोन्थई-मेथई (मादाराम ब्रह्मा तथा रूपनाथ ब्रह्मा द्वारा संपादित)
(ख) हथोरखी-हला (प्रमोदचंद्रे ब्रह्मा द्वारा संपादित)
(ग) बोरोनी गुड़ी सिव्साअर्थ अरोज : मादाराम ब्रह्मा द्वारा
(घ) राजा नीलांबर-द्वांन्द्व नाथ बासुमतारी
(ङ) बिबार (गद्य खंड) (सतीशचन्द्र बासुमतारी द्वारा संपादित) खंड-ख
(क) गिर्बी बिठाई (आठदा नवी) : बिहुराम बोडो
(ख) रादाब : समर बह्मा चौधरी
(ग) ओखरंग गोगसे नंगोक : ब्रजेन्द्र कुमार ब्रह्मा
(घ) बैसागु अर्व हरिमू : लक्षेश्वर ब्रह्मा
(ङ) ग्यादान बोडो : मनोरंजन लहारी
(च) जुजैनी ओर : चितरंजन मुचहारी


(छ) म्यौहूर : धरानधर चारी
(ज) होर बड्डी रब्बम्सी : कमल कुमार ब्रह्मा
(झ) जओलिया दीवान : मंगल संह होजावरी
(ज) हागरा गुदुवीगरी : नोलकमल ब्रह्मा।

चीनी

प्रश्न-पत्र-I

इस प्रश्न-पत्र द्वारा उम्मीदनारों से यह अपेक्षा की जाएगी कि उन्हें मानक चीनी भाषा और इसकी विशेषताओं का अच्छा ज्ञान हो जिससे उनकी अभिव्यक्तिगत सांगेनविक क्षमताओं का परीक्षण हो सकें। सभी प्रश्नों के उत्तर (चीनी से अंग्रेजों में अनुवाद के प्रश्न को छोड़कर) चीनी भाषा में देने होंगे । सभी प्रश्नों के अंक समान हैं।

खंड-क

  1. किसी सामयिक विषय पर लगभग 500 चीनी अक्षरों में निर्बंध लेखन।
  2. अनुवाद
    (क) चीनी से अंग्रेजी भाषा में
    (ख) अंग्रेजी से चीनी भाषा में
  3. चाक्यगत और व्याकरणिक प्रयोग।

खंड-ख

  1. चीनी भाषा में मुहावरों और लोकोक्तियों की व्याख्या।
  2. चीनी भाषा का विकास।
  3. बोधन-रोचेषण।

प्रश्न-पत्र-II

इस प्रश्न पत्र में अभ्यासों से अपेक्षा की जाएगी कि उसे चीन संबंधी अध्ययन का अच्छा ज्ञान हो और इसका प्रारूप इस प्रकार तैयार किया जाएगा जिससे अभ्यर्थी की आलोचनात्मक योग्यता की परीक्षा हो सके । सभी प्रश्नों के उत्तर चीनी में लिखने होंगे । सभी प्रश्नों के अंक समान है ।

खंड क

  1. आधुनिक चीनी इतिहास (1919 से अब तक) की प्रमुख फलस्यों से संबंधित विषयों पर संक्षिप्त टिप्पणियां।
  2. मुक्ति पूर्व काल (1919-1949) की प्रमुख साहित्यिक कृतियों का आलोचनात्मक मूल्यांश : :
    (क) लाओं शी – फोर जैवरेशन्स रिक्शा पूलर ।
    (ख) बा जिन फीमिल ।
    (ग) लू शुन – मेडिसिन, मैडर्मेंस डायरी, दि – डू स्यारी आफ आह बयू ।
    (घ) याओ दून – गिल्लाईह ।
    (ड.) एडं किर्बर – कोल्स सिलाई (में मेई डे दिहुआ), जेरर क्रिगाई आई लव डिस लैंड (गो अई थ्रो, मुरी), ओल्ड मैन (लज्जरन) ।
    (च) गुओ मोरओ – फोंटेरोज ।
  3. चीनी समाज के विकास में वर्णन और धर्म को भूमिका ।

खंड-ख

  1. 1979 के बाद सामाजिक-आर्थिक/साहनीतिक/शैक्षिक/खेल-कूट । वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय विकास ।
  2. उत्तर-मुक्ति काल (1949 से अब तक) की प्रमुख साहित्यिक कृतियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन ।
    (क) गू हुआ, दि टाउन काल्ड हिपिम्कम (फ्र्रोट्रझेन)
    (ख) चेन सड., टिल दि मिडिल एज (रैन दाओ झोडइनियान)
    (ग) लियू शिपलू, दि कक्षस-इन चार्ज (बैन झुर्रन)
    (घ) ल्यू याओ, दि हयूएन एक्जिसर्टेंस (रेनहौंग)
    (ड.) आई किर्बर, फिश फोंसिल, दि मिरर, दि गार्डनर्स ड्रीम, दि हन्टर हू ड्यू वर्ड्स
    (च) शू-तिंग, राइटलैंड, पाई लिलव्ड मदरलैंड ।

डोगरी

प्रश्न-धन-I

डोगरी भाषा पूर्व साहित्य का इतिहास
(उत्तर डोगरी भाषा में लिखे जाएं)
खंड-क

डोगरी भाषा का इतिहास :

  1. डोगरी भाषा की उत्पत्ति पूर्व विकास : विभिन्न अवस्थाओं में ।
  2. डोगरी एवं इसकी बोलियां भाषाई सीमाएं ।
  3. डोगरी भाषा के विशिष्ट लक्षण ।
  4. डोगरी भाषा की संरचना :
    (क) ध्वनि संरचना ।

खंडीय स्वर : एवं व्यंजन
अखंडीय : दीर्घता, बलाघात, गालिकसंजन, सुर एवं साँध
(ख) डोगरी का षडरचना विज्ञान :
(i) रूप रचना एवं : त्वीय, कवच, कारक, पुरुष, काल एवं तास्य ।
(ii) शब्द निर्माण : वस्तुओं, मध्यप्रत्ययों तथा प्रब्ययों का उपयोग ।
(iii) शब्द समूह : वाक्य, वरधन, विदेशीय एवं देशज ।
(ग) काव्य संरचना : सर्जन, काव्य-उनके प्रकार तथा अवयव, डोगरी व्याक्यनिरूप्य में काव्य तथा अनिवति ।
5. डोगरी भाषा एवं लिपि : एरोम्य एरोम्य अक्खर, देवतागरी तथा फारसी ।

खंड-दर

डोगरी साहित्य का इतिहास :

  1. स्वतंत्रता-पूर्व डोगरी साहित्य का संक्षिप्त विवरण : पद्य एवं गद्य ।
  2. आधुनिक डोगरी काव्य का विकास तथा डोगरी काव्य के मुख्य रूझल ।
  3. डोगरी लघुकथा का विकास, मुख्य-लक्ष्मन तथा प्रमुख लघु-कथा लेखक ।

[ भाग I-खण्ड ।]

भारत का राजपत्र : असाधारण

  1. डोगरी उपन्यास का विकास, मुख्य-रूझान तथा डोगरी उपन्यासकारों का योगदान ।
  2. डोगरी नाटक का विकास तथा प्रमुख नाटककारों का योगदान ।
  3. डोगरी गद्य का विकास ; निर्वध, संस्थरण एवं यात्रावृत ।
  4. डोगरी लोक साहित्य का परिचय-लोकगीत, लोक कथाएं तथा लोक गाथाएं ।

प्रश्न पत्र- II
डोगरी साहित्य का पाठालोचन
( उत्तर डोगरी में लिखे जाएं)
खण्ड क

पशु

  1. आजादी पैहले दी डोगरी कविता
    निम्नलिखित कवि :-
    दवी दिग्ग लकड़ू, गंगा – ए, ए – ल, हरपत पहाड़ी गांधी यात्रा
    काशी राम तथा परमानंद अलमस्त ।
  2. आधुनिक डोगरी कविता, आजादी घोर दी डोगरी कविता
    निम्नलिखित कवि :-
    किशन स्मैशपुरी, तारा स्मैशपुरा, मोहन लाल सफीलिया, यश शर्मा,
    क. एस. मधुकर, पद्मा सखदेया, जितेन्द्र ऊधमपुरी, चरण सिंह
    तथा प्रकाश प्रेमी।
  3. शौराना डोगरी सं. 102, गहल अंक
    निम्नलिखित शायर :-
    राम लाल शर्मा, वेद याल दीप, एन. डी. जाम्बाल, शिव राम दीप,
    अश्विनी मगोत्रा तथा बोरेन्द्र कंसर
  4. शीरना डोगरी सं. 107, गहल अंक
    निम्नलिखित कवि :-
    आर. एन. शास्त्री, जितेन्द्र ऊधमपुरी,चंदा शर्मा तथा दर्शन दर्शी
  5. शम्भूनाथ शर्मा द्वारा रचित ‘रामागण’ (महाकाव्य)(अयोध्या काण्ड
    तक) ।
  6. दीनू भाई पन्त द्वारा रचित ‘ओर मुलाय’ (खण्ड काव्य) ।
    खण्ड-ख

गद्य

  1. अजवणी डोगरी कहानी
    निम्नलिखित लघु कथा लेखक :-
    मदन मोहन शर्मा, नेस्ले खजुरिया तथा बी.पी. साटे ।
  2. अजकणी डोगरी कहानी भाग-II
    निम्नलिखित लघु कथा लेखक :-
    चंद राही, नरसिंह देव जम्माल, ओम गोस्वामी, छत्रपाल, ललित
    मगोत्रा, चमन अरोड़ा तथा रतन कंसर ।
  3. कथा कुंज भाग-II
    निम्नलिखित कथा लेखक :-
    ओम विद्यार्थी, चम्‍मा शर्मा तथा कृष्ण शर्मा ।
  4. चंद्र शर्मा द्वारा रचित ‘मोल पत्‍वर’ (लघु कथा संग्रह) ।
  5. देश बंधु डोगरा नूतन द्वारा रचित ‘कंदो’ (उपन्यास) ।
  6. ओ.पी. शर्मा सारथी द्वारा रचित ‘नंगा रुक्ख’ (उपन्यास) ।
  7. मोहन सिंह द्वारा रचित ‘न्या’ (नाटक) ।
  8. सतरंग (एकाकी नाटक संग्रह)
    निम्नलिखित नाटककार :-
    विश्‍वनाथ खजुरिया, राम नाथ शास्त्री, जितेन्द्र शर्मा, ललित
    मगोत्रा व चदन मोहन शर्मा ।
  9. डोगरी ललित निर्वध
    निम्नलिखित लेखक :-
    विश्‍वनाथ खजुरिया, नारायण भिक्षा, बालकृष्ण शास्त्री, विश्‍वनाथ,
    श्याम लाल शर्मा, लक्ष्मी नारायण, डी.सी. प्रशान्त, वेद पई, कुवर
    विर्याणी ।

अंग्रेज़ी

इस एच.पक्ष में दी प्रश्न-पत्र होंगे । इसमें निर्धारित पाद्यपुस्तकों
में से निम्नलिखित अवधि के अंग्रेज़ी साहित्य का मूल अध्ययन अपेक्षित
होगा । जिससे उम्मीदवार को सारीक्षा क्षमता की जाँच हो सके ।

प्रश्न-पत्र I : 1900-1990
प्रश्न-पत्र II : 1900-1990
प्रत्येक प्रश्न-पत्र में दी प्रश्न अनिवार्य होंगे :
(क) एक लघु विभाग प्रश्न सामान्य अध्ययन से संबंधित विषय
पर होगा; और
(ख) गद्य तथा पद्य दोनों के अनदेखे उद्धरणों का आलोचनात्मक
विश्लेषण होगा ।

प्रश्न-पत्र-I
उत्तर अंग्रेजी में लिखने होंगे

विस्तृत अध्ययन के लिए पाठ नीचे दिए गए हैं । अभ्यर्थियों में
निम्नलिखित विषयों तथा घटनाओं के विस्तृत ज्ञान को अपेक्षा की जाएगी :
दि रिनेसा; एलिजाबेथन एण्ड जेकोवियन ड्रामा, मेटाफिजोकल पोयट्री; दि
एपिड एण्ड दि-मॉक एपिक; नयक्लासिकोनाद; सैटायर; दि रोमान्टिक
मूवमेंट; दि राइज आफ दि नार्वल; दि विक्टोरियन एज ।

खण्ड-क

  1. विलियम शेक्सपियर : किगलिगर और दि टैम्मैस्ट ।
  2. जॉन डन – निम्नलिखित कविताएं :
  3. फोगेनाईजेशन
  4. डेथ वी नाट प्राइड
  5. दि गुड मारी
    ऑन हिज मिस्ट्रेस गार्डन टु बेड
    दि रेलिक ।
  6. जॉन मिल्टन-पैराडाइज लॉस्ट I, II, IV, IX
  7. अलेक्जेंडर पोप—दि रंग आफ दि लॉक ।
  8. विलियम वर्डस्वर्थ-निम्नलिखित कविताएं :

– वीड आन इंटिमेशंस ऑफ इम्मोरटैलिटी
– टिटर्न एबे थ्री यीअर्स शी ग्रिगू
– शी डूवेल्ट अमंग अनंट्रीडन वेज
-माइकल


-रेजोल्यूशन एण्ड इंडिपेंडन्स
-दि वर्ल्ड इज टू मच विद अस
-मिल्टन दाउ शुड्स्ट बी लिविंग एट दिस आवर
-अपॉन, वेस्टमिन्स्टर ब्रिज
6. अल्फ्रेड टेनीसन : इन मेमोरियम
7. हैनरिक इब्सेन : ए हॉल्स हाउस

खण्ड-ख

  1. जोनाथन स्विफ्ट – गलिवर्स ट्रेवल्स
  2. जैन ऑस्टन – फ्राइड एण्ड प्रेजुडिस
  3. हेनरी फॉर्ल्डिंग – टॉग डॉन्स
  4. चार्ल्स डिकन्स – हाई टाइम्स
  5. जार्ज इलियट – दि मिल आग दि फूलोस
  6. टामस हाडों – टेस ऑफ दि डि अर्बरविल्स
  7. मार्क ट्वेन – दि एडवंचर्स ऑफ हकलबैरी फिन

प्रश्न पत्र-II

उत्तर अंग्रेजी में लिखने होंगे

विस्तृत अध्ययन के लिए पाठ नीचे दिए गए हैं । अभ्यर्थियों से निम्नलिखित विषयों और आन्दोलनों का यथेष्ट ज्ञान भी अपेक्षित होगा :-

आधुनिकतावाद; पोयट्स ऑफ दि थर्टीज; दी स्टीम-ऑफजॉशसनेस नावेल; एस्सर्ड ड्राम; उपनिवेशवाद तथा उत्तर-उपनिवेशवाद; अंग्रेजों में भारतीय लेखन; साहित्य में मार्क्सवादी, मनोविश्लेषणात्मक और नारीवादी दृष्टियां, उत्तर-आधुनिकतावाद।

खण्ड-क

  1. विलियम कटलर यीट्स-निम्नलिखित कविताएं :
    -ईस्टर 1916
    -दि सैकंड कमिंग
    -ए प्रेयर फार माई डाटर
    -सेलिंग टू वाइजेंटियम
    -दि टॉवर
    -अमंग स्कूल चिल्ड्रन
    -लीडा एण्ड दि स्वान
    -मेरे
    -लेपिस लेजूली
    -द सैकंड कमिंग
    -चाईजेटियम
  2. डी. एस. इलियट-निम्नलिखित कविताएं :
  • दि लव सोंग ऑफ जे अल्फ्रे प्रूफ्राक
  • जर्नी ऑप दि मेजाइ
    -चर्न्ट नार्टन
  1. डब्ल्यू एच. आर्डेन-निम्नलिखित कविताएं :
    -पार्टेशन

– म्यूजी द व्यू आर्ट्स
-इन मेमोरी ऑफ डब्ल्यू. बी. यीट्स
-ले यूअर स्लीपिंग हैड, माई लव
-दि अननोन सिटिजन
-कन्डिसर
-मुंडस ऐट इन्फेन्स
-दि शोल्ड ऑफ एकिली
-रिपटेम्बर 1,1939
-पेटीशन
4. जॉब असबॉर्न : लुक चैक इन एंन
5. सन्चुअल बेकेट : वेटिंग फार गोडो
6. फिलिप लारकिन : निम्नलिखित कविताएं
-नैकस्ट
-प्लोड
-डिसैप्शन्स
-आपररनून्स
-डेज
-मिस्टर ब्लीनी
7. ए. के. रामनुजन-निम्नलिखित कविताएं :
-लुकिंग फार ए कज़न आन ए मिथंग
-ए रिवर
-ऑफ मदर्स, अमंग अदर थिंग्स
-लव पोयम फार ए वाईफ-1
-स्माल-स्केल रिफ्लैब्शन्स
-आन ए ग्रेट हाऊस
-ऑबिचुएरी
(ये सभी कविताएं आर पार्थधारथी द्वारा सम्पादित तथा आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित दसवीं-चौसवीं शताब्दी के भारतीय कविताओं के संग्रह में उपलब्ध हैं)।

खण्ड-ख

  1. जोसफ कोनरेड : लार्ड जिम
  2. जेम्स ज्वायस : पोट्रेट आफ दि आर्टिस्ट एज ए यंग मैन
  3. डी. एच. लारेंस : सन्स एण्ड लवर्स
  4. ई. एम. पोस्टर : ए पैसेज टू इंडिया
  5. वर्जीनिया वूल्फ : मिसेज डेलोवे
  6. राजा राव : कांधापुरा
  7. बी. एस. नायपाल : ए हाऊस फार मिस्टर बिस्वास।

फ्रेंच

प्रश्न पत्र-1
फ्रेंच से अंग्रेजी में अनुवाद के प्रश्न को छोड़कर उत्तर फ्रेंच में लिखने होंगे

खण्ड क

  1. फ्रेंच साहित्य को प्रमुख प्रवृत्तियां
    (क) क्लासिकोपाद
    (ख) स्वच्छन्दतावाद
    (ग) यथार्थवाद

2. फ्रांस में कला

(क) स्वच्छन्दतावाद
(ख) यथार्थवाद
(ग) प्रभाववाद

3. पांचवा गणतंत्र

(क) द ‘गॉल एवं पांचवां गणतंत्र
(ख) मई-1968
(ग) पाँपदु
(घ) गिम्लार्द द’ स्लैग
(ङ) मित्तरां
(च) शिरांक
4. अनुवाद : फ्रेंच से अंग्रेजी में (सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक प्रकृति क दो उद्धरणों का अनुवाद-प्रत्येक उद्धरण दो सौ शब्दों का)।

खण्ड-ख

  1. फ्रेंच साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियां
    (क) प्रतीकावाद
    (ख) अतिगथार्थवाद
    (ग) एव्मर्ड का रंगमंच

2. फ्रांस में कला

(क) अतियथार्थवाद
(ख) घनवाद
(ग) अमूर्त चित्रकला
3. पांचवा गणतंत्र
(क) फ्रांस में राजनीतिक दल
(ख) पांचवें गणतंत्र में राष्ट्रपति का स्थान एवं उसकी भूमिका
(ग) सरकार
(च) मंमद
(ङ) सीनेट
4. अनुवाद : अंग्रेजी से फ्रेंच में (सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक प्रकृति क दो उद्धरणों का अनुवाद-प्रत्येक उद्धरण दो सौ शब्दों का)।

प्रश्न पत्र-2

खण्ड क

(उत्तर फ्रेंच में लिखने होंगे)

इस प्रश्न पत्र में निम्नलिखित पाद्यपुस्तकों का गहन अध्ययन अपेक्षित है । प्रश्न इस तरह तैयार किए जाएंगे कि अभ्यर्थियों की आलोचनात्मक योग्यता को जाँचा जा सके ।

1. 17वीं शताब्दी

(क) कार्नेल
(ख) रासिन
(ग) मोलियर
2. 18वीं शताब्दी

व्यू मार्शे
ल सीद
आंदोमाक
ला आग्र
ल मारिज द फिगैरो

3. 19वीं शताब्दी

(क) लामार्तिन
लिलेक लवलों
(ख) विक्त हयूगो
ल कांशियंस, एल आवे प्रिस प्ली द में, दे ल ओब
(ग) विक्तर हयूगो
हरनानी
(घ) मुसे
सिवनी, लन्ची द देसांग्र
(ङ) मेरोमे
कोलोंब
(च) बाल्जाक
यूजेनी ग्रांदे
(छ) फ्लाबेयर
मदाम बावेरी
(ज) बादलेय
ल दन्स्तिशो ओ, वयाज, टिक्सीलमों ला एल्बडोस
(झ) रिबो
लोदामें दूयू बाल
(ट) वर्लेन
चांसो द, ओतम, मों रेव फमिलिये, इल प्लैयर दामों कीर

खण्ड ख

  1. 20वीं शताब्दी
    (क) एपोलिनेयर
    : न्वी रेनान, लो पो मिराबो
    (ख) जाक प्रेवर
    : पुर फैर लो पोत्रों द आंद अन्ससो बार्बरा
    (ग) पॉल एलुवार
    : लिबर्त
    (घ) पॉल वेलेरी
    : ले पा, ल फिलैस
    (ङ) आन्दे गीद
    : ल सिंफेनी पास्तोरेल
    (च) कामू
    : ला इतरांजर
    (छ) सार्ज
    : ले मैन साल्स
    (ज) आइनेस्को
    : राइनोसिरोस

फ्रेंकोफोनी

(क) जेराई बेसेत
ला लायब्रेर
(ख) आनन्द देवी
लो याद द होपदी
(ग) शेख हमीदु काने
ला आपेत आंबीग
(घ) अब्दलतीफ लांबी
पोयम ए आं प्रोस
  1. ला आर्व आ पोयम्स (ला. एन्तरों दु मोन)
  2. ले रेव विसेनो यूरिर श्यूर ल पेज (ला एन्तराँ दु मोन)
  3. समकालीन विषय पर सामान्य प्रकृति का निबन्ध।

जर्मन

प्रश्न पत्र-1
( उत्तर जर्मन भाषा में लिखने होंगे)
खण्ड-क

1. भाषा की संरचना :

अभ्यर्थियां से शब्दक्रम, वाक्य रचना तथा शब्दार्थ विज्ञान जैसे विशिष्ट पहलुओं के संदर्भ में, जर्मन व्याकरण के सम्यक् ज्ञान को अपेक्षा की जाती है।


2. जर्मन भाषा में निबन्ध :

अभ्यर्थियों से अपेक्षा की जाती है कि सामान्य प्रकार के समकालीन विषय पर निबंध लिखते समय वे दिखलाएं के जर्मन भाषा में लिखी जाने वाली अभिव्यक्ति की तकनीकों पर उनका अधिकार है ।

खण्ड-ख

  1. एक सामान्य विषय पर लिखे पाठ का अंग्रेजी से जर्मन में अनुवाद।
  2. निम्नलिखित विषयों के विशेष संदर्भ में जर्मनी का अटारहवीं सदी से लेकर वर्तमान समय तक का सामाजिक-राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास :
    (क) जर्मन समाज और संस्कृति पर बोधन का प्रभाव
    (ख) जर्मनी पर प्रशियण संस्कृति का प्रभाव
    (ग) वाइमार गणराज्य में हुए सांस्कृतिक वाद-विवाद
    (घ) जर्मनी में राष्ट्रीय समाजवाद के अधीन संस्कृति की आवधारणा
    (ङ) 1945 के बाद दो जर्मन साहित्य धाराओं तथा संस्कृतियों का विकास
    (च) जर्मनी का पुनरकीकरण और संस्कृतिक विविधता की समस्याएं
    (छ) यूरोपीय संघ में जर्मन भाषा तथा साहित्य की भूमिका और प्रासंगिकता।

प्रश्न पत्र-2

( उत्तर जर्मन में लिखने होंगे)
खण्ड-क

  1. 19वीं शताब्दी से आज तक के जर्मन साहित्य का विकास :

अभ्यर्थियों को प्रमुख प्रवृत्तियों, प्रतिनिधि लेखकों और उनकी महत्वपूर्ण कृतियों की जानकारी होनी चाहिए । इसके अंतर्गत केवल लेखकों और उनकी कृतियों की जानकारी प्राप्त करने पर जोर नहीं दिया जाता, बल्कि अभ्यर्थी से अपेक्षा की जाती है कि वह किसी साहित्यिक काल की विशेषताओं को प्रतिनिधि रचनाओं के आधार पर पहचाने ।
2. साहित्यिक विधाओं का अध्ययन :

अभ्यर्थियों को रोमान, नावेले, नाटक, गायागीत, शोकगीत, प्रयाणगीत, युद्धगीत, क्रूजेशिश्ट जैसी विभिन्न विधाओं की महत्वपूर्ण विशेषताओं का ज्ञान होना चाहिए ।

खण्ड-ख

  1. साहित्यिक व्याख्याओं के प्रत्यक्ष ज्ञान : अभ्यर्थियों को साहित्य के आलोचनात्मक ज्ञान के विभिन्न दृष्टिकोणों की जानकारी होनी चाहिए ।
  2. सुनी हुई कृतियों का अध्ययन :
    (क) गोएटे-हाई लोटेन डेस जुगेन बर्थर
    (ख) शिलर-मारिया स्टुअर्ट
    (ग) ईश्नडोर्फ-गोडिश्टे
    (घ) गोटफ्रेड केलर : क्लिडॉर माशेर ल्यूटे
    (ङ) टॉमस मान-डाई वरटोश्टन कॉर्फ
    (च) फाल्स काफूका-थोर डेम गेसेज
    (छ) फ्रोडरिख डरनमैट-डाइ फिजीकर
    (ज) मेक्स क्रिस्ट-एंडोरा
    (झ) हॉनरिख बोल-डाई वेरलोरोन एहरे डेर कँथरिना ब्लूम
    (ज) इंगेबोर्ग बैखमन-एलेस (औस डेम एरेलबेंड : डास ड्राईबिस्ट जार)
    (ट) रोज ऑसलेंडर-गोडिश्टे
    (ठ) क्रिस्टा बोल्क-डेर गेटीटे हिम्मेल
    (ड) गुंटर ग्रास-जुंडा जीगन

गुजराती

प्रश्न पत्र-1

( उत्तर गुजराती में लिखने होंगे)
खण्ड-क

गुजराती भाषा का स्वरूप तथा इतिहास

  1. गुजराती भाषा का इतिहास : आधुनिक भारतीय आर्य भाषा के पिछले एक हजार वर्ष के विशेष संदर्भ में ।
  2. गुजराती भाषा की महत्वपूर्ण विशेषताएं : स्वतन्त्र विज्ञान, रूप विज्ञान तथा वाक्य विकास ।
  3. प्रमुख बोलियां : सूरती, पाटणी, चरोली तथा सौगाड़ी ।

गुजराती साहित्य का इतिहास मध्ययुगीन

  1. जैन परम्परा
  2. भक्ति परम्परा : सगुण तथा निर्गुण (ज्ञानमार्गी)
  3. गैर-सम्ब्रदायवादी परम्परा (लोकिक परम्परा)

आधुनिक
7. सुधारक युग
8. पंडित युग
9. गांधी युग
10. अनुगांधी युग
11. आधुनिक युग

खण्ड-ख

साहित्यिक स्वरूप ( निम्नलिखित साहित्यिक स्वरूपों की प्रमुख विशेषताएं, इतिहास और विकास)
(के) मध्ययुग

  1. वृत्तान्त : रास, आख्यान तथा पदयवाती
  2. गीतिकाव्य : पद
    (ख) लोक साहित्य
  3. भवाई
    (ग) आधुनिक
  4. कथा साहित्य : उपन्यास तथा कहानी
  5. नाटक
  6. साहित्यिक निबंध
  7. गीतिकाव्य
    (घ) आलोचना
  8. गुजराती को सैद्धांतिक आलोचना का इतिहास
  9. लोक परम्परा में नवीनतम अनुसंधान

प्रश्न पत्र-2

( उत्तर गुजराती में लिखने होंगे)

इस प्रश्न पत्र में निर्धारित पाद्यपुस्तकों का मूल अध्ययन अपेक्षित होगा और ऐसे प्रश्न पूछे जाएंगे जिससे उम्मीदवार की समीक्षा क्षमता की जांच हो सके ।

खण्ड-क

  1. मध्ययुग
    (i) वसंतविलास फागु-अज्ञातकृत
    (ii) कादम्बरी-भालण
    (iii) सुदामा चरित्र-प्रेमानंद
    (iv) चंद्रचंद्रावतीनी वार्ता : शामल
    (v) अखेगीता-अखो
  2. सुधारक युग तथा पंडित युग
    (vi) मारी हकीकत-नर्यदाशंकर दवे
    (vii) फरवसबीरा-दलपतराम
    (viii) सरस्वतीचंद्र भाग 1- गोवर्धनराम त्रिपाठी
    (ix) पूर्वालाप-‘कांत’ (मणिशंकर रत्नाजी भट्ट)
    (x) राइनो घर्वत-रमणभाई नीलकंठ

खण्ड-ख

  1. गांधी युग तथा अनुगांधी युग
    (i) हिन्द स्वराज-मोहनदास करमचंद गांधी
    (ii) पाटणनी प्रभुता-कन्हैयालाला मुंशी
    (iii) काव्यनी शक्ति-रामनारायण विश्वनाथ पाठक
    (iv) सौराष्ट्रनी रसधार-भाग 1 झवेरचंद मेघाणी
    (v) मानवीनी भवाई-पन्यालाल पटेल
    (vi) ध्वनि- राजेन्द्र शाह
  2. आधुनिक युग
    (vii) सत्यपद्दी-उमाशंकर जोशी
    (viii) जनन्तिको-सुरेश जोशी
    (ix) अवश्र्वामा-मितान्णु यशश्चंद्र

हिन्दी

प्रश्न पत्र-1
( उत्तर हिन्दी में लिखने होंगे)
भाग क

  1. हिन्दी भाषा और नागरी लिपि का इतिहास
    (i) अपभ्रंश, अवहट्ट और प्रारंभिक हिन्दी का व्याकरणिक तथा अनुप्रयुक्त स्वरूप ।
    (ii) मध्यकाल में ब्रज और अवधी का साहित्यिक भाषा के रूप में विकास ।
    (iii) सिद्धनाथ साहित्य, खुसरो, संत साहित्य, रहीम आदि कवियों और दविखनी हिन्दी में खड़ी बोली का प्रारंभिक स्वरूप ।
    (iv) उन्नीसवीं शताब्दी में खड़ी बोली और नागरी लिपि का विकास ।
    (v) हिन्दी भाषा और नागरी लिपि का मानकीकरण ।
    (vi) स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान राष्ट्र भाषा के रूप में हिन्दी का विकास ।
    (vii) भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी का विकास ।
    (viii) हिन्दी भाषा का वैज्ञानिक और तकनीकी विकास ।
    (ix) हिन्दी को प्रमुख बोलियां और उनका परस्पर संबंध ।
    (x) नागरी लिपि को प्रमुख विशेषताएं और उनके सुधार के प्रयास तथा मानस हिन्दी का स्वरूप ।
    (xi) मानक हिन्दी का व्याकरणिक संरचना ।

भाग ख

2. हिन्दी साहित्य का इतिहास

हिन्दी साहित्य की प्रासंगिकता और महत्व तथा हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा ।

हिन्दी साहित्य के इतिहास के निम्नलिखित चार कालों की साहित्यक प्रवृत्तियां :-
(क) आदिकाल : सिद्ध, नाथ और रासो साहित्य

प्रमुख कवि : चंदबरदाई, खुसरो, हेमचन्द, विद्यापित
(ख) भक्ति काल : संत काव्य धारा सूफी काव्यधारा, कृष्ण भक्तिधारा और राम भक्तिधारा
प्रमुख कवि : कबीर, जायसी, मूर और तुलसी
(ग) रीतिकाल : रीतिकाल, रीतिबद्धकाव्य, रीतिमुक्त काव्य

प्रमुख कवि : कंशव, बिहारी, पदमाकर और धनानंद
(घ) आधुनिक काल :

क. नवजागरण, गद्य का विकास, भारतेन्दु मंडल
ख. प्रमुख लेखक : भारतेन्दु, बाल कृष्ण भट्ट और प्रताप नारायण मिश्र
ग. आधुनिक हिन्दी कविता की मुख्य प्रवृत्तियां छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नई कविता नवगीत, समाकालीन कविता और जनवादी कविता ।

प्रमुख कवि :

मैथिलिशरण गुप्त, जयशंकर “प्रसाद” सूर्यकान्त त्रिपाठी
“निराला”, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह,”दिनकर”, सच्चिदानंद वात्स्यायन “अज्ञेय”, गजानन माधव, मुक्ति बोध, नागार्जुन ।
3. कथा साहित्य
(क) उपन्यास और यथार्थवाद
(ख) हिन्दी उपन्यासों का उद्‌भव और विकास
(ग) प्रमुख उपन्यासकार

प्रेमचन्द, जैनेन्द्र, यशपाल, रेणु और भीष्म साहनी
(घ) हिन्दी कहानी का उद्‌भव और विकास
(ङ) प्रमुख कहानीकार
प्रेमचंद, जयशंकर “प्रसाद”, सच्चिदानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, मोहन राकंश और कृष्ण सोबती

नाटक और रंगमंच

(क) हिन्दी नाटक का उद्‌भव और विकास।


(ख) प्रमुख नाटककार : भरतेन्दु, जयशंकर “प्रसाद”, जगदीश चंद्र माथुर, रामकुमार वर्मा, मोहन राकेश।
(ग) हिन्दी रंगमंच का विकास।

आलोचना :

(क) हिन्दी आलोचना का उद्भव और विकास सैद्धांतिक, व्यावहारिक, प्रगतिवादी, मैगोविश्लेषणवादी आलोचना और नई समीक्षा।
(ख) प्रमुख आलोचक
रामचंद्र शुक्ल, हजारीप्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा और नगेन्द्र।

हिन्दी गद्य की अन्य विधाएँ :

ललित निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रा वृतांत।

प्रश्न पत्र-2

(उत्तर हिन्दी में लिखने होंगे)

इस प्रश्न पत्र में निर्धारित मूल पाठ्य पुस्तकों को पढ़ना अपेक्षित होगा और ऐसे प्रश्न पूछे जाएंगे जिनमें अभ्यर्थी की आलोचनात्मक क्षमता की परीक्षा हो सके।

भाग क

  1. कबीर : कबीर ग्रंथावली (आरंभिक 100 पद) संपादक : श्याम सुन्दरदास
  2. सुरदास: प्रंभरगीत सार (आरंभिक 100 पद) संपादक : रामचंद्र शुक्ल
  3. तुलसीदास: रामचरित मानस (सुन्दर काण्ड) कवितावली (उत्तर काण्ड)
  4. जायसी : पदमावत (सिंहलद्वोप खण्ड और नागमती वियोग खण्ड) संपादक : श्याम सुन्दरदास
  5. बिहारी : बिहारी रत्नाकर (आरंभिक 100 पद) संपादक : जगन्नाथ दास रत्नाकर
  6. मैथिलिशरण गुप्त : भारत भारती
  7. जयशंकर “प्रसाद” : कामायनी(चिंता और श्रद्धा सर्ग)
  8. सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” : राग-विराग (राम की शक्ति पूंजी और कुकरमुत्ता)
    संपादक : राम विलास शर्मा
  9. रामधारी सिंह ” दिनकर” : कुरूक्षेत्र
  10. अज्ञेय : आंगन के पार द्वार (“असाध्य वीणा”)
  11. मुक्तिबोध : ब्रह्मराक्षस
  12. नागार्जुन : बादल को घिरते देखा है, अकाल और उसके बाद, हरिजन गाथा !

भाग ख

  1. भारतेन्दु, भारत दुर्दशा
  2. मोहन राकेश, आषाढ़ का एक दिन
  3. रामचंद्र शुक्ल, चिंतामणि (भाग-1)
    (कविता क्या है श्रद्धा और भक्ति)
  4. निबंध निलय, संपादक, डा. सत्येन्द्र

बाल कृष्ण मट्ट, प्रेमचन्द, गुलाब राय, हजारी प्रसाद त्रिवेदी, राम विलास शर्मा, अज्ञेय, कुबेर नाथ राय
5. प्रेमचंद, गोदान, ‘प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां’, संपादक, अमृत राय/मंजूसा-प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां संपादक, अमृत राय
6. प्रसाद, स्कंदगुप्त
7. यशपाल, दिव्या
8. फणीश्वरनाथ रेणु, मैला आंचल
9. मन्नू भण्डारी, महाभोज
10. एक दुनिया समानान्तर (सभी कहानियां) संपादक : राजेन्द्र यादव।

कन्नड़

प्रश्न पत्र-1
(उत्तर कन्नड़ में लिखने होंगे)
खण्ड क
(क) कन्नड़ भाषा का इतिहास
भाषा क्या है? भाषा की सामान्य विशेषताएं।
द्रविड़ भाषा परिवार और इसके विशिष्ट लक्षण : कन्नड़ भाषा की प्राचीनता। उसके विकास के विभिन्न चरण :
कन्नड़ भाषा की बोलियां : क्षेत्रीय और सामाजिक । कन्नड़ भाषा के विकास के विभिन्न पहलू : स्वनिमिक और अर्थगत परिवर्तन ।
भाषा आदान ।
(ख) कन्नड़ साहित्य का इतिहास
प्राचीन कन्नड़ साहित्य : प्रभाव और प्रवृत्तियां । निम्नलिखित कवियों का अध्ययन :
पंपा, जन्म, नागचंद्र, : पंपा से रत्नाकर वर्णी तक इन निर्दिष्ट कवियों का विषय वस्तु, रूप विधान और अभिव्यंजना की दृष्टि से अध्ययन ।
मध्ययुगौ कन्नड़ साहित्य : प्रभाव और प्रवृत्तियां।
वचन साहित्य : बासवन्ना अक्क महादेवी।
मध्ययुगीन कवि : हरिहर राधवंक, कुमारव्यास।
दारा साहित्य : पुरन्दर और कनक ।
संगतया : रत्नाकर वर्णी
(ग) आधुनिक कन्नड़ साहित्य : प्रभाव प्रवृत्तियां और विचार-धाराएं। नवोदय, प्रगतिशील, नव्य, दलित और बन्दय।

खण्ड-11

(क) काव्यशास्त्र और साहित्यक आलोचना
कविता की परिभाषा और संकल्पनाएं : शब्द, अर्थ, अलंकार, रीति, रस, ध्वनि, औचित्य ।
रस सूत्र की व्याख्याएं।
साहित्यिक आलोचना की आधुनिक प्रवृत्तियां :
रूपवादी, ऐतिहासिक, मार्क्सवादी, नारीवादी,
उत्तर-औपनिवेशिक आलोचना ।


(ख) कर्नाटक का सांस्कृतिक इतिहास
कर्नाटक की संस्कृति में राजवंशों का योगदान : साहित्यिक संदर्भ में बदामी और कल्याणी के चालुक्यों, राष्ट्रकुटों, हौशल्या और विजयनगर के शासकों का योगदान ।
कर्नाटक के प्रमुख धर्म और उनका सांस्कृतिक योगदान
कर्नाटक की कलाएं : साहित्यिक संदर्भ में मूर्तिकला, वास्तुकला, चित्रकला, संगीत, नृत्य ।
कर्नाटक का एकीकरण और कन्नड़ साहित्य पर इसका प्रभाव ।

$$
\text { प्रश्न पत्र-2 }
$$

(उत्तर कन्नड़ में लिखने होंगे)
इस प्रश्न पत्र में निर्धारित मूल पाद्य पुस्तकों को पढ़ना अपेक्षित होगा और ऐसे प्रश्न पूछे जाएंगे जिससे उम्मीदवारों की आलोचनात्मक योग्यता की परीक्षा हो सके।

खण्ड क

प्राचीन कन्नड़ साहित्य

  1. पंपा का विक्रमार्जुन विजय (सर्ग 12 तथा 13), (मैसूर विश्वविद्यालय प्रकाशन) ।
  2. बद्दराधने (सुकुमारस्वामैया काथे, विद्युत्चोरन काथे) ।

(ख) मध्ययुगीन कन्नड़ साहित्य

  1. वचन काम्मत, ‘संपादक: के. मास्लसिद्दप्या, के. आर. नागराज’ (बंगलौर विश्वविद्यालय, प्रकाशन) ।
  2. जनप्रिय कनकसम्मुत, संपादक : डी. जवारे गौड़ा’ (कन्नड़ एंड कल्चर डायरेक्टोरेट, बंगलौर) ।
  3. नम्बियन्नाना रागाले, संपादक : डी. एन. श्रीकांतैय (ता. वैम. स्मारक ग्रंथ माले, मैसूर) ।
  4. कुमारव्यास भारत : कर्ण पर्व (मैसूर विश्वविद्यालय) ।
  5. भारतेश वैभव संग्रह, संपादक : ता. सु. शाम राव (मैसूर विश्वविद्यालय) ।

खण्ड ख

आधुनिक कन्नड़ साहित्य

  1. काव्य : होसगन्नड़ कविते, संपादक : जी. एच. नायक (कन्नड़ साहित्य परिशत, बंगलौर) ।
  2. उपन्यास : बैलाद जीव-शिवराम कारंत (माधवी-अनुपमा निरंजन औडालाल-देवानुरू महादेव) ।
  3. कहानी : कन्नड़ सन्न काथेगलू, संपादक : जी. एच. नायक (साहित्य अकादमी, नई दिल्ली) ।
  4. नाटक : शुद्र तपस्वी-कुवेग्यु।

तुगलक-गिरीश कनोड
5. विचार साहित्य : देवरू-ए, एन. मूर्ति राव (प्रकाशक : डी.वी. के. मूर्ति, मैसूर)
(ख) लोक साहित्य

  1. जनपद स्वरूप-डा. एच.एम. नायक (ता. वैम स्मारक ग्रंथ माले, मैसूर)
  2. जनपद गीतांजलि : संपादक : डी. जवारे गौड़ा (प्रकाशक : साहित्य अकादमी, नई दिल्ली) ।
  3. कन्नड़ जनपद काथेगालु-संपादक : जे.एस. परमशिवैया (मैसूर विश्वविद्यालय) ।
  4. यीड़ि मक्कालू बैलेडो : संपादक : कालेगौड़ा नागवारा (प्रकाशक : बंगलौर विश्वविद्यालय) ।
  5. सविरद ओगातुगालू-संपादक । एस. जी. इमरापुर।

कश्मीरी

प्रश्न पत्र-1
(उत्तर कश्मीरी में लिखने होंगे)
खण्ड क

  1. कश्मीरी भाषा के वंशानुगत संबंध : विभिन्न सिद्धांत
  2. घटना क्षेत्र तथा बोलियां (भौगोलिक/सामाजिक)
  3. स्वनिम विज्ञान तथा व्याकरण :
    (i) स्वर व व्यंजन व्यवस्था
    (ii) विभिन्न कारक विभक्तियों सहित संज्ञाएँ तथा सर्वनाम
    (iii) क्रियाएं : विभिन्न प्रकार एवं काल ।
  4. याक्य संरचना :
    (i) साधारण, कर्तृवाच्य व घोषणात्मक कथन :
    (ii) समन्वय
    (iii) सापेक्षीकरण ।

खण्ड ख

  1. 14वीं शताब्दी में कश्मीरी साहित्य :
    (सामाजिक-सांस्कृतिक तथा बौद्धिक पृष्ठभूमि; लाल दयाद तथा शेईखुल आलम के विशेष संदर्भ सहित
  2. उन्नीसवीं शताब्दी का कश्मीरी साहित्य (विभिन्न विधाओं का विकास : वत्सन; गजल तथा मथनवी)
  3. बीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में कश्मीरी साहित्य (महजूर तथा आजाद के विशेष संदर्भ सहित; विभिन्न साहित्यिक प्रभाव)
  4. आधुनिक कश्मीरी साहित्य (कहानी, नाटक, उपन्यास, तथा नम्म के विकास के विशेष संदर्भ सहित) ।

प्रश्न पत्र-2

( उत्तर कश्मीरी में लिखने होंगे)
खण्ड क

  1. उन्नीसवीं शताब्दी तक के कश्मीरी काव्य का गहन अध्ययन :
    (i) लाल दयाद
    (ii) शेईखुल आलम
    (iii) हब्बा खातून
  2. कश्मीरी काव्य : 19वीं शताब्दी
    (i) महभूद गामी (वत्सन)
    (ii) मकबूल शाह (गुलरेज)
    (iii) रसूल मीर (गजल)
    (iv) अब्दुल अहद नदीम (नात)
    (v) कृष्णजू राजदान (शिव लगुन)
    (vi) (सूफी कवि) (पाद्य पुस्तक संगलाव-प्रकाशन-कश्मीरी विभाग, कश्मीर विश्वविद्यालय)

  1. बीसवीं शताब्दी का कश्मीरी काव्य (पाद्य पुस्तक “आजिय काशिर शयरी” प्रकाशन-कश्मीरी विभाग, कश्मीर विश्व विद्यालय ।)
  2. साहित्यिक समालोचना तथा अनुसंधान कार्य : विकास एवं विभिन्न प्रवृत्तियाँ।

खण्ड ख

  1. कश्मीरी कहानियों का विश्लेषणात्मक अध्ययन ।
    (i) अफसाना मज़मुए, प्रकाशन: कश्मीरी विभाग, कश्मीर विश्वविद्यालय ।
    (ii) “काशुर अफसाना अज”, प्रकाशन: साहित्य अकादमी
    (iii) हमासर काशुर अफसाना, प्रकाशन: साहित्य अकादमी कोवल निम्नलिखित कहानी लेखक :
    अख्तर मोहि-उद्दीन, अमीन कामिल, हरिकृष्ण कौल, हृदय कौल भारती, बंसी निर्दोष, गुलशन माजिद ।
  2. कश्मीरी उपन्यास :
    (i) जी. एन. गोहर का मुजरिम
    (ii) मारून-इवानइलिचन (टॉलस्टाय की द डेथ ऑफ इवान इलिच का कश्मीरी अनुवाद) कश्मीरी विभाग द्वारा प्रकाशित ।
  3. कश्मीरी नाटक :
    (i) हरिकृष्ण कौल का नाटुक करिव बंद
    (ii) ऑफ एंगी नाटुक, सेवा मोतीलाल कीमू, साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित ।
    (iii) राजि इडिपस अनु. नजी. मुनावर, साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित ।
  4. कश्मीरी लोक साहित्य :
    (i) काशुर लुकि थियेटर लेखक-मोहम्मद सुभान भगत-प्रकाशन, कश्मीरी विभाग, कश्मीर विश्वविद्यालय ।
    (ii) काशिरी लुकी बीच (सभी अंक) जम्मू एवं कश्मीर सांस्कृतिक अकादमी द्वारा प्रकाशित ।

कोंकणी

प्रश्न पत्र-1
(उत्तर कोंकणी में लिखने होंगे)
खण्ड क
कोंकणी भाषा का इतिहास :
(1) भाषा का उद्भव और विकास तथा इस पर पढ़ने वाले प्रभाव ।
(2) कोंकणी भाषा के मुख्य रूप तथा उनकी भाषाई विशेषताएं।
(3) कोंकणी भाषा में व्याकरण तथा शब्दकोष संबंधी कार्यकारक, क्रिया विशेषण, अवयय तथा वाच्य के अध्ययन सहित ।
(4) पुरानी मानक कोंकणी, नयी मानक कोंकणी तथा मानकोंकरण की समस्याएं ।

खण्ड ख

कोंकणी साहित्य का इतिहास :
उम्मीदवारों से अपेक्षा की जाएगी की वे कोंकणी साहित्य तथा उसकी सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से चली-भाँति परिचित हों तथा इससे उठने वाली समस्याओं तथा मुद्दों पर विचार करने में सक्षम हों ।
(1) कोंकणी साहित्य का इतिहास-प्राचीनतम संभावित स्रोत से लेकर वर्तमान काल तक तथा मुख्य कृतियों, लेखकों और आदोलनों सहित ।
(i) कोंकणी साहित्य के उत्तरोत्तर निर्माण की सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि ।
(ii) आदिकाल से आधुनिक काल तक कोंकणी साहित्य पर पढ़ने वाले भारतीय और पाश्चात्य प्रभाव ।
(iii) विभिन्न क्षेत्रों और साहित्यिक विधाओं में उभरने वाली आधुनिक प्रवृत्तियाँ—कोंकणी लोक साहित्य के अध्ययन सहित ।

प्रश्न पत्र-2

( उत्तर कोंकणी में लिखने होंगे)
कोंकणी साहित्य की मूलपाठ
विषयक समालोचना
यह प्रश्न-पत्र इस प्रकार तैयार किया जाएगा कि उम्मीदवार की आलोचना तथा विश्लेषण क्षमता की जांच हो सके ।

उम्मीदवारों से कोंकणी साहित्य के विस्तृत परिचय की अपेक्षा की जाएगी और देखा जाएगा कि उन्होंने निम्नलिखित पाद्य-पुस्तकों को मूल में पढ़ा है अथवा नहीं ।

खण्ड क-गद्य

  1. (क) कोंकणी मनसगंगोत्री (पद्य के अलावा) प्रो. ओलिविन्हो गोम्स द्वारा संपादित।
    (ख) ओल्ड कोंकणी लैंग्वेज एंड लिट्रेचर, दी पोर्थुगीज रोल : प्रो. ओलिविन्हो गोम्स द्वारा संपादित ।
  2. (क) ओट्मो डेन्वथरक : ए. वी. डा. क्रुत का उपन्यास ।

(ख) बडोल आनी वरेम : एंटोनियों पटेरा का उपन्यास ।
(ग) डेवाचे कुरपेन : वी. जे. पी. सल्दाना का उपन्यास ।
3. (क) वज्रलिखानी- शेगॉय गौइम-बाब :

(शांताराम वर्ड वल्खलिकर द्वारा संपादित संग्रह)
(ख) कोंकणी ललित निबंध : श्याम वेरेंकर द्वारा संपादित निबंध संग्रह ।
(ग) तीन दशकम : चंद्रकांत कोणि द्वारा संपादित संग्रह ।
4. (क) डिमांड : पुंडलीक नाइक का नाटक ।

(ख) कादम्बिनी : ए मिसलेनी आफ मार्डन प्रोज :
प्रो. ओ. जे. एफ. गोम्स तथा श्रीमती पी. एस. तदकोदकर द्वारा संपादित ।
(ग) रथा त जे ओ घुदियो । श्रीमती जयंती नाईक।

खण्ड ख-गद्य

  1. (क) इवअणि मोरी-एटुआर्डो ब्रुंगो डिसूजा द्वारा रचित काव्य ।

(ख) अक्ष्वंथम यज्ञदान : लुईस मेस्करेनहास ।
2. (क) गोडडे रामायण : आर. के. राव द्वारा संपादित ।

(ख) रत्नाहार I एंड II क्लेक्शन आफ पोयम्स : आर. वी. पंडित द्वारा संपादित ।


  1. (क) जयो जुयो-पोयम्स-मनोहर एल. सरदेसाई ।

(ख) कनादी माटी कोंकणी कवि : प्रताप नाईक द्वारा संपादित कविता संग्रह ।
4. (क) अदृष्टाचे कल्ले : पांडुरंग भंगुई द्वारा रचित कविताएं
(ख) यमन : माधव बोरकर द्वारा रचित कविताएं।

मैथिली

प्रश्न पत्र-1
मैथिली भाषा एवं साहित्य का इतिहास
उत्तर मैथिली में लिखने होंगे
खण्ड-क

मैथिली भाषा का इतिहास

  1. भारोपीय भाषा-परिवार में मैथिली का स्थान ।
  2. मैथिली भाषा का उद्भव और विकास (संस्कृत, प्राकृत, अवहट्ट, मैथिली ।
  3. मैथिली भाषा का कालिक विभाजन (आदिकाल, मध्यकाल, आधुनिक काल)।
  4. मैथिली एवं इसकी विभिन्न उपभाषाएं।
  5. मैथिली एवं अन्य पूर्वावलीय भाषाओं में संबंध (बंगला, असमिया, उडिया) ।
  6. तिरहुता लिपि का उद्भव और विकास ।
  7. मैथिली में सर्वनाम और क्रियापद ।

खण्ड-ख

मैथिली भाषा का इतिहास :

  1. मैथिली साहित्य की पृष्ठभूमि (धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक) ।
  2. मैथिली साहित्य का काल-विभाजन ।
  3. प्राक् विद्यापति साहित्य ।
  4. विद्यापति और उनको परम्परा ।
  5. मध्यकालीन मैथिली नाटक (कौर्तनिया नाटक, अंकीया नाटक, नेपाल में रचित मैथिली नाटक)।
  6. मैथिली लोकसाहित्य (लोकगाथा, लोकगीत, लोकनाट्य, लोककथा)।
  7. आधुनिक युग में विभिन्न साहित्यिक विधाओं का विकास
    (क) प्रबंधकाव्य
    (ख) मुक्तककाव्य
    (ग) उपन्यास
    (घ) कथा
    (ड.) नाटक
    (च) निबंध
    (छ) समीक्षा
    (ज) संस्मरण
    (झ) अनुवाद
  8. मैथिली पत्र-पत्रिकाओं का विकास ।

प्रश्न पत्र-11

इस प्रश्न पत्र में निर्धारित पूल पाद्य-पुस्तकों को पढ़ना अपेक्षित होगा और ऐसे प्रश्न पूछे जाएंगे जिनसे अभ्यर्थी की आलोचनात्मक क्षमता की परीक्षा हो सके ।

खण्ड-क

  1. विद्यापति गीतशती-प्रकाशक-साहित्य अकादमी, नई दिल्ली (गीतसंख्या 1 से 50 तक) ।
  2. गोविन्ददास भजनाबली-प्रकाशक-मैथिली अकादमी, पटना (गीतसंख्या 1 से 50 तक) ।
  3. कृष्णजन्म-मनबोध ।
  4. मिथिलाभाषा रामायण-चन्द्रा झा (सुन्दरकाण्ड मात्र) ।
  5. रमेश्वरचरित मिथिला रामायण-लालदास (बालकाण्ड मात्र)।
  6. कीचकवध-तंत्रनाथ झा
  7. दत्त-वती-सुरेश झा ‘सुमन’ (प्रथम और द्वितीय संग मात्र)।
  8. चित्रा-यात्री
  9. समकालीन मैथिली कविता-प्रकाशक-साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ।

खण्ड-ख

  1. वर्णरत्नाकार-ज्योतिरीश्वर (द्वितीय कल्लोल मात्र) ।
  2. खट्टर ककाक तरंग-हरिमोहन झा ।
  3. लोरिक-विजय-मणिपद्म ।
  4. पृथ्वीपुत्र-ललित ।
  5. भफाइत चाहक जिनगी-सुभांशु ‘शेखर’ चौधरी ।
  6. कृति राजकमल-प्रकाशक-मैथिली अकादमी, पटना (आरम्भ से दस कथा तक)
  7. कथा-संग्रह-प्रकाशक-मैथिली अकादमी, पटना ।

मलयालम

प्रश्न पत्र-1
उत्तर मलयालम में लिखने होंगे
खण्ड-क

  1. मलयालम भाषा की प्रारंभिक अवस्था :
    1.1 विभिन्न सिद्धांत : प्राक् द्रविड्यिन, तमिल, संस्कृत से उद्भव।

1.2 तमिल तथा मलयालम का संबंध ए. आर. राजराज वर्मा के छ: लक्षण (नया)।
1.3 पाट्टु संप्रदाय-परिभाषा, रामचरितम, परवर्ती पाट्टु कृतियां-निराणम कृतियां तथा कृष्ण गाथा।
2. निम्नलिखित की भाषाई विषेशताएँ :-
2.1 मणिप्रवालम-परिभाषा । मणि प्रवालम में लिखी प्रारंभिक कृतियों की भाषा-चम्यु, सर्देशकाव्य, चन्द्रोत्सव, छूट-पुट कृतियां, परिवर्ती मणिप्रवाल कृतियाँ-मध्ययुगीन चम्यू एवं आट्ट कथा।
2.2 लोक गाथा-दक्षिणी तथा उत्तरी गाथाएँ, माम्पिला गीत।
2.3 प्रारंभिक मलयालम गद्य-भाषा कौटलीयम, ब्रह्मांड पुराणम अट्ट-प्रकारम, क्रम दीपिका तथा नम्बियांन तमिल।
3. मलयालम का मानकीकरण
3.1 पाणा, किलिप्पाट्टू तथा तुल्लल की भाषा की विशेषताएँ।
3.2 स्वदेशी तथा यूरोपीय मिशनरियों का मलयालम को योगदान ।
3.3 समकालीन मलयालम की विशेषताएँ : प्रशासनिक भाषा के रूप में मलयालम । विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी साहित्य की भाषा-जन की भाषा।

खंड-ख

साहित्य का इतिहास

  1. प्राचीन तथा मध्ययुगीन साहित्य :
    4.1 पाद्टू-राम चरितम्, निराणम कृतियाँ एवं कृष्ण गाथा।
    4.2 मणिप्रवालम-आट्टू कथा, चंभू आदि प्रारंभिक तथा मध्ययुगीन मणिप्रवाल कृतियाँ।
    4.3 लोक साहित्य।
    4.4 किलिपाद्टु, तूल्लल तथा महाकाव्य।
  2. आधुनिक साहित्य-कविता
    5.1 वैणमणि कवि तथा समकालीन कवि।
    5.2 स्वच्छन्दतावाद का आगमन-कवियत्र का काव्य-आशान, उल्लूर तथा वल्लतौल ।
    5.3 कवित्र्य के बाद की कविता।
    5.4 मलयालम कविता में आधुनिकतावाद।
  3. आधुनिक साहित्य-गद्य
    6.1 नाटक
    6.2 उपन्यास
    6.3 लघु कथा
    6.4 जीवनी, यात्रा वर्णन, निबंध आर समालोचना।

प्रश्न पत्र-II

उत्तर मलयालम में लिखने होंगे

इस प्रश्न पत्र में निर्धारित पाद्य पुस्तकों का मूल अध्ययन अपेक्षित होगा और परीक्षा में उम्मीदवार की आलोचनात्मक क्षमता को जांचने वाले प्रश्न पूछे जाएंगे ।

खंड-क

भाग-1

  1. रामचरितम-पटलम -।।
    1.2 कण्णशश रामायणम्-बालाकण्डम प्रथम 25 पद्य।
    1.3 उण्णुनील संदेशम्-पूर्व भागम् 25 श्लोक, प्रस्तावना सहित
    1.4 महाभारतम् : किलिप्पाद्टु-भोष्म पर्वम् ।

भाग-2

2.1 कुमारन् आशन-चिंता अवस्थियाय सीता
2.2 चेलोप्पिल्लो-कुटियोपिक्कल
2.3 जी. शंकर कुरूप-पेरून्तच्चन
2.4 एन. वी. कृष्ण वारियार-तियॉदपिले पाद्टु

भाग-3

3.1 ओ. एन. वी.-भूमिक्कोरु चरम् गीतिम्
3.2 अय्ययप्पा पणिक्कर-कुरूक्षेत्रम
3.3 आक्किट्टम पंडत्ते मेश्शांति
3.4 आट्टुर अट्टुर रवि वर्मा-मेघरूप

खंड-ख

भाग-4

4.1 ओ. चतु मेनन इंदुलेखा
4.2 तकषि-चैम्मीन
4.3 ओ. वी. विजयन-खसाक्किन्टे इतिहासम्

भाग-5

5.1 एम. टी. वासुदेवन नायर-वानप्रस्थम (संग्रह)
5.2 एन. एस. माधवन-हिम्वित्ता (संग्रह)
5.3 सी. जे. थामस-1128-इल क्राइम 27

भाग-6

6.1 कूट्टिकृष्णमारार-भारत पर्यटनम्
6.2 एम. के. सानू-नक्षत्रंगलुटे स्नेहभाजनम्
6.3 वी. टी. भट्टातिरिपाद-कण्णीरूप किनावुम


मणिपुरी

प्रश्न पत्र-I
उत्तर मणिपुरी में लिखने होंगे
खण्ड-क

भाषा

(क) मणिपुरी भाषा की सामान्य विशेषताएं और उसके विकास का इतिहास, उत्तर-पूर्वी भारत की तिब्बती-बर्मी भाषाओं को बीच मणिपुरी भाषा का महत्त्व तथा स्थान, मणिपुरी भाषा को अध्ययन में नवीनतम विकास, प्राचीन मणिपुरी लिपि का अध्ययन और विकास ।
(ख) मणिपुरी भाषा की महत्वपूर्ण विशेषताएं :-
(i) स्वर विज्ञान : स्वनिम (फोनीम), स्वर, व्यंजन, संयोजन, स्वरक, व्यंजन समूह और इनका प्रादुर्भाव-अक्षर-इसकी संरचना, स्वरूप तथा प्रकार ।
(ii) रूप विज्ञान : शब्द श्रेणी, धातु तथा इसके प्रकार, प्रत्यय और इसके प्रकार, व्याकरणिक श्रेणियां-लिंग, संख्या, पुरुष, कारक, काल और इनके विभिन्न पक्ष । संयोजन की प्रक्रिया (समास और साँप)।
(iii) वाक्य विन्यास : शब्द क्रम, वाक्यों को प्रकार, वाक्यांश और उप-वाक्यों का गठन ।

भाग-ख

(क) मणिपुरी साहित्य का इतिहास :
आरंभिक काल : (सत्रहवीं शताब्दी तक) सामाजिक तथा सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, विषयवस्तु, कार्य की शैली तथा रीति।
मध्यकाल : (अठारहवीं तथा उन्नीसवीं शताब्दी) सामाजिक धार्मिक तथा राजनीतिक पृष्ठभूमि, विषयवस्तु, कार्य की शैली तथा रीति।
आधुनिक काल : प्रमुख साहित्यिक रूपों का विकासविषयवस्तु, रीति और शैली में परिवर्तन ।
(ख) मणिपुरी लोक साहित्य :
दंतकथा, लोक कथा, लोक गीत, गाथा, लोकोक्ति तथा पहेली।
(ग) मणिपुरी संस्कृति के विभिन्न पक्ष :
हिन्दू पूर्व मणिपुरी आस्था, हिन्दुत्वा आगमन और समन्वयवाद की प्रक्रिया, प्रदर्शन कला-लाई हरोवा, महारस, स्वदेशी खेल-सगोल कांगजेई, खाँग कांगजेई कांग।

प्रश्न पत्र-II

उत्तर मणिपुरी में लिखने होंगे

इस प्रश्न पत्र में निर्धारित पाद्य पुस्तकों का मूल अध्ययन अपेक्षित है और प्रश्नों का स्वरूप ऐसा होगा जिससे अभ्यर्थी की आलोचनात्मक योग्यता की परीक्षा हो सके।

भाग-क

प्राचीन तथा मध्यकालीन मणिपुरी साहित्य

(क) प्राचीन मणिपुरी साहित्य

  1. ओ. मोगेश्वर सिंह (सं.) नृमित कण्वा
  2. एम. गौराचंद्र सिंह (सं.) थूवनथवा हिरण
  3. एन. खेलचंद्र सिंह (सं.) नौथिंगकांग फम्बल कावा
  4. एम. चंद्र सिंह (सं.) पंथोचबी खाँगल
    (ख) मध्यकालीन मणिपुरी साहित्य
  5. एम. चंद्र सिंह (सं.) समसोक गांवा
  6. आर. वी. स्नेहल सिंह (सं.) रामायण आदि कांड
  7. एन. खेलचंद्र सिंह (सं.) धनंजय लाइबू निंग्बा
  8. ओ. भोगेश्वर सिंह (सं.) चंद्रकीर्ति जिला चंगबा

भाग-ख

आधुनिक मणिपुरी साहित्य
(क) कविता तथा महाकाव्य
(1) कविता
(ख) मणिपुरी शेरेंग (प्रकाशन) मणिपुरी साहित्य परिषद् 1988 (सं)

  1. ख. चोवा सिंह पी थदोई, लैमगी चेकला आमदा लोकटक
  2. डॉ. एल. कमल सिंह निर्जनता, निरव राजनी
  3. ए. मीना कोतन सिंह कमाल्दा नोंग्गमलखोडा
  4. एल. समरेन्द्र सिंह इंगागी नोंग ममंग लेकाई धम्बल सतले
  5. ई. नीलकांत सिंह मणिपुर, लमंगनवा
  6. श्री बोरेन तंगखुल हुई
  7. थ. इवापिशाक अनौवा धंगलाबा जिवा
    (ग) काव्वी शेरेंग ( प्रकाशन) मणिपुर विश्वविद्यालय 1988 (सं.)
  8. डॉ. एल. कमल सिंह

विस्वा-प्रेम
2. श्री बोरेन

चफट्रवा लेइगी येन
3. थ. इवोपिशाक

नरक पाताल पृथ्वी

महाकाव्य

  1. ए. दारेन्द्र नीत सिंह कांसा बोधा
  2. एच. अंगनघल सिंह खंबा-थोईबी शेरेंग
    (सन-सेनवा, लेई लंगबा, शामू खोंगी विचार)

(III) नाटक

  1. एस. ललित सिंह

अरेप्या माहप
2. जी. सी. टोंगब्रा

भैट्रिक पास
3. ए. समरेन्द्र

जज साहेब की इमंग
(ख) उपन्यास, कहानी तथा गद्य :
(I) उपन्यास
i. डॉ. एल. कमल सिंह माधवी
2. एच. अंगनधल सिंह

जहेरा
3. एच. गुणे सिंह

लामन
4. पाछा मोटेई

इम्फाल आमासुंग मैगी इरिंग, नुंगसीतकी फिबस
(II) कहानी
(क) काव्यै वरिमथा ( प्रकाशन ) मणिपुर विश्वविद्यालय 1997 (सं.)

  1. आर. कं. सीतलजीत सिंह कमला कमला
  2. एस. कं. बिनोदिनी सिंह आइगी थाऊद्रबा होट्प लालू
  3. ख. प्रकाश

वेगम शारेंग
(ख) परिषद् की खांगतलाबा वरिमथा ( प्रकाशन ) मणिपुरी साहित्य परिषद् 1994 (सं.)

  1. एस. नीलबिर शास्त्री

लोखतपा
2. आर. गुो. इलंगवा

करिनुंगी
(ग) अनौबा मणिपुर वरिमथा (प्रकाशन)-दि कल्चरल फोरम मणिपुर 1992 (सं.)

  1. एन. कुंजमोहन सिंह

इजात तनबा
2. ई. दीनमणि

नंगथक खोंगनांग
(III) गद्य
(क) वारेंगी सकलोन ( ड्यु पार्ट) ( प्रकाशन )-दि कल्चरल फोरम मणिपुर 1992 (सं.)

  1. चौबा सिंह : खंबा-थोइबिगी वारी अमासुंग महकाव्य
    (ख) कांसी वारेंग ( प्रकाशन )-मणिपुर विश्वविद्यालय 1998 (सं.)
  2. बी. मणिसन शास्त्री

फाजबा
2. च. मणिहर सिंह

लाई-हरीबा
(ग) अपुनबा वारेंग ( प्रकाशन )-मणिपुर विश्वविद्यालय 1996 (सं.)

  1. च. पिशक सिंह

समाज अमासुंग संस्कृति
2. एम. कं. बिनोदिनी

थोईबिदु वैरोहोइदा
3. एरकि न्यूटन

कलगी महोसा (आई. आर. बाबू द्वारा अनुदित)
(घ) मणिपुर वारेंग (प्रकाशन )-दि कल्चरल फोरम मणिपुर 1999 (सं.)

  1. एम. कृष्णमोहन सिंह

लान
मराठी
प्रश्न पत्र-1
उत्तर मराठी में लिखने होंगे
खण्ड-क
(भाषा और लोक विद्या)
(क) भाषा का स्वरूप और कार्य
(मराठी के संदर्भ में)
भाषा-संकेतन प्रणाली के रूप में : लँगुई और परील, अधारभूत कार्य, काव्यात्मक भाषा, मानक भाषा तथा बोलियां, सामाजिक प्राचल के अनुसार भाषाई-परिवर्तन तेरहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में मराठी की भाषाई विशेषताएं
(ख) मराठी की बोलियां
अहिराणी, बरहदी, डांगी
(ग) मराठी व्याकरण
शब्द-भेद (पार्ट्स आफ स्पीच), कारक व्यवस्था (केस सिस्टम), प्रयोग विचार (वाच्य)
(घ) लोक विद्या के स्वरूप और प्रकार
(मराठी के विशेष संदर्भ में) लोकगीत, लोककथा, लोकनाट्य खण्ड-ख
(साहित्य का इतिहास और साहित्यिक आलोचना)
(क) मराठी साहित्य का इतिहास
2. प्रारंभ से 1818 ई. तक : महानुभव लेखक, वरकारी, कवि, पंडित कवि, शाहिरों, बाखर साहित्य के विशेष संदर्भ में।
3. 1850 ई. से 1990 तक : काव्य, कथा साहित्य (उपन्यास और कहानी), नाटक और प्रमुख साहित्य धाराओं के विशेष संदर्भ में तथा रोमांटिक, यथार्थवादी, आधुनिकतावादी, दलित, ग्रामीण और नारीवादी आंदोलनों के विकास के विशेष संदर्भ में।
(ख) साहित्यिक आलोचना
4. साहित्य का स्वरूप और कार्य ।
5. साहित्य का मूल्यांकन ।
6. आलोचना का स्वरूप, प्रयोजन और प्रक्रिया ।
7. साहित्य, संस्कृति और समाज ।


प्रश्न पत्र-II

उत्तर मराठी में लिखने होंगे
निर्धारित साहित्यिक रचनाओं का मूल पाठ विषयक अध्ययन इस प्रश्न पत्र में निर्धारित मूल पाद्य पुस्तकों को पढ़ना अपेक्षित होगा और इनमें अभ्यर्थी की आलोचनात्मक योग्यता को जांचने वाले प्रश्न पूछे जाएंगे ।

खंड-क
(काव्य)

(1) “स्मृति स्थल”
(2) महात्मा जोतिबा फूले : “शेतकारियाचा आसुद”, “सार्वजनिक सत्यधर्म”
(3) एस. वी. कोतकर : “ब्राह्मण कन्या”
(4) पी. को. अत्रे : “शास्टांग नमस्कार”
(5) शरच्चंद मुक्तिबोध : “जाना हे बोलातु जेथे”
(6) अद्‌धव शैल्क : “शीलन”
(7) बाबू राब बागुल : “जेव्हा मी जात चोरली होती”
(8) गौरी देशपांडे : “एकेक पान गालाव्या”
(9) पी आई सोनकाम्बले “आठवनीन्वे पक्षी”

खंड-क
(गद्य)
(1) नामदेवान्ची अभंगवाणी

सम्मा.-इनामदार, रेलेकर, मिराजकर, माडर्न बुक डिपो, पुणे
(2) “पेन्जान”

सम्मा.-एम. एन. अदवन्त
साहित्य प्रसाद कोन्ड, नागपुर
(3) दमयन्ती स्वयंवर

द्वारा रघुनाथ पंडित
(4) बालकविंची कविता

द्वारा-बालकवि
(5) विशाखा

द्वारा-कुसुमाग्रज
(6) मृदगंध

द्वारा-विन्दा करन्दीकर
(7) जाहिरनामा

द्वारा-नारायण सुर्वे
(8) संध्या कालचे कविता

द्वारा-द्रेस
(9) यां सत्तेत जीव रमात नाही

द्वारा-नामदेव ढसाल

नेपाली

प्रश्न पत्र-1

उत्तर नेपाली में लिखने होंगे

खंड-क

  1. नई भारतीय आर्य भाषा के रूप में नेपाली भाषा के उद्भव और विकास का इतिहास ।
  2. नेपाली व्याकरण और स्वनिम विज्ञान के मूल सिद्धांत :
    (i) संज्ञा रूप और कोटियां : लिंग, वचन, काव्य, विशेषण, सर्वनाम, अव्यय ।
    (ii) क्रिया रूप और कोटियां : काल, पक्ष, वाच्य, धातु, प्रत्यय ।
    (iii) नेपाली स्वर और व्यंजन ।
  3. नेपाली भाषा की प्रमुख बोलियाँ ।
  4. नेपाली आंदोलन (जैसे हलन्त बहिष्कार, झारोवाद आदि) के विशेष संदर्भ में नेपाली का मानकीकरण तथा आधुनिकीकरण ।
  5. भारत में नेपाली भाषा का शिक्षण-सामाजिक सांस्कृतिक पक्षों के विशेष संदर्भ में इसका इतिहास और विकास ।

खण्ड-ख

  1. भारत में विकास के विशेष संदर्भ में नेपाली साहित्य का इतिहास ।
  2. साहित्य की मूल अवधारणाएं तथा सिद्धांत : काव्य/साहित्य, काव्य प्रयोजन साहित्यिक विधाएं, शब्द शक्ति, रस, अलंकार, त्रासदी, कामदी, सौंदर्यशास्त्र, शौली-विज्ञानं।
  3. प्रमुख साहित्यिक प्रवृत्तियां तथा आंदोलन-स्वच्छंदतावाद, यथार्थवाद, अस्तित्ववाद, आयमिक आंदोलन, समकालीन नेपाली लेखन, उत्तर-आधुनिकतावाद ।
  4. नेपाली लोक साहित्य (केवल निम्नलिखित लोक स्वरूप)-सवाई, झाव्योरी सेलो साँगनी, लहरी ।

प्रश्न पत्र-2

उत्तर नेपाली में लिखने होंगे

इस प्रश्न पत्र में निर्धारित मूल पाद्य पुस्तकों को पढ़ना अपेक्षित होगा और इसका प्रारूप इस प्रकार तैयार किया जाएगा जिससे अभ्यर्थी को आलोचनात्मक योग्यता की परीक्षा हो सके।

खण्ड-क

  1. सांता ज्ञान्डिल दास उदय लहरी
  2. लेखनाथ पोडायल तरूण तापसी
    (केवल III, V, VI, XII, XV, XVIII विश्राम)

  1. आगम सिंह गिरि-जालेको प्रतिबिम्ब : रोयको प्रतिष्यनि (कंवल निम्नलिखित कविताएं-प्रसावको, चिच्याहतूसंग ब्यूझेको एक रात, छोरोलई, जालेको प्रतिबिम्ब : रोयको प्रतिष्यनि, हमर्रा आकाशमणी पानी हुन्छा उज्यालो, तिहार) ।
  2. हरिभक्त कटवाल-यो जिन्दगी खाई के जिन्दगी : (कंवल निम्नलिखित कविताएं-जीवन; एक दृष्टि, यो जिन्दगी खाई के जिन्दगी, आकाश तारा के तारा, हमिलाई निरथो नासमझा, खाई मन्याता याहां, आत्मादुतिको बलिदान को ।)
  3. बालकृष्णसाना—प्रहलाद
  4. मनबहादुर मुखिया-अंध्यारोमा बांचनेहारू (कंवल निम्नलिखित एकांकी-“अंध्यारोमा बांचनेहारू”, “सुस्केरा”) ।

खण्ड-ख

  1. इंद्र सुन्दास—सहारा
  2. लिलवहादुर छेडी—ब्रह्मपुत्र को छेडछाऊ
  3. रूप नारायण सिन्हा—कथा नवरत्न
    (कंवल निम्नलिखित कहानियां-बिटेका कुरा, जिम्मेवारी कास्को, धनमातिको सिनेमा-स्वप्न, विध्वस्त जीवन) ।
  4. इंद्रबहादुर रॉय—बिपना कटिपया :
    (कंवल निम्नलिखित कहानियां-रातभरि हुरि चलयो, जयमया अफूमत्र लेखमाणी अईपुग, भागी, घोप बाबू, छुट्याइयो) ।
  5. सानू लामा-कथा संपद
    (कंवल निम्नलिखित कहानियां-स्वास्नी मांछे, खानी तरमा एक दिन फुरबाले गौन छाद्यो, असिनाको मांछे) ।
  6. लक्ष्मी प्रसाद देवकोटा—लक्ष्मी निबंध संग्रह
    (कंवल निम्नलिखित निबंध-श्री गणेशाय नमः, नेपाली साहित्य को इतिहासभा, सर्वश्रेष्ठ पुरूष, कल्पना, कला रा जीवन, यथा बुद्धिमान की गुरु)
  7. रामाकृष्ण शर्मा—दासगोरखा
    (कंवल निम्नलिखित निबंध-कवि, समाज रा साहित्य, साहित्य मा सापेक्षता, साहित्यिक रुचिको प्रौढ्ता; नेपाली साहित्य की प्रगती) ।

उद्दिया

प्रश्न पत्र-1
उत्तर उद्दिया में लिखने होंगे
खण्ड-क

उद्दिया भाषा का इतिहास

(i) उद्दिया भाषा का उद्भव और विकास, उद्दिया भाषा पर आंस्ट्रिक, द्राविद्र, फारसी-अरबी तथा अंग्रेजी का प्रभाव ।
(ii) स्वनिकी तथा स्वनिम विज्ञान : स्वर, व्यंजन, उद्दिया ध्वनियों में परिवर्तन के सिद्धांत ।
(iii) रूप विज्ञान : रूपिम (निर्बाध, परिबद्ध, समास और सम्मिश्र), व्युत्पति परक तथा विभक्ति प्रधान प्रत्यय, कारक विभक्ति, क्रिया संयोजन ।
(iv) काव्य रचना : वाक्यों के प्रकार और उनका रूपान्तरण, वाक्यों की संरचना ।
(v) शब्दार्थ विज्ञान : शब्दार्थ, शिप्प्दक्ति में परिवर्तन के विभिन्न प्रकार ।
(vi) वर्तनी, व्याकरणिक प्रयोग तथा वाक्यों की संरचना में सामान्य अशुद्धियां ।
(vii) उद्दिया भाषा में क्षेत्रीय भिन्नताएं (पश्चिमी, दक्षिणी और उत्तरी उद्दिया) तथा बोलियां (भात्री और देसिया) ।

खण्ड-ख

उद्दिया साहित्य का इतिहास
(i) विभिन्न कालों में उद्दिया साहित्य को ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (साभाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनैतिक) ।
(ii) प्राचीन महाकाव्य, अलंकृत काव्य तथा पदावलियां।
(iii) उद्दिया साहित्य का विशिष्ट संरचनात्मक स्वरूप (कोइली, चौतिसा, पोई, चोपदी, चम्पू) ।
(iv) काट्य, नाटक, कहानी, उपन्यास, निबंध तथा साहित्यिक समालोचना को आधुनिक प्रवृत्तियां ।

प्रश्न पत्र-2

उत्तर उद्दिया में लिखने होंगे
पाद्यपुस्तकों का आलोचनात्मक अध्ययन
इस प्रश्न पत्र में मूल पाद्य पुस्तकों को पढ़ना अपेक्षित होगा तथा अध्यर्थी को आलोचनात्मक योग्यता की परीक्षा ली जाएगी ।

खण्ड-क

काव्य
( प्राचीन)

  1. सरल दास : शान्ति पर्व-महाभारत से
  2. जगनाथ दास : भागवत, ग्याहरवां स्कंध जादू अवधूत सम्वाद
    (मध्यकालीन)
  3. दीनाकृष्ण दास : राख कल्लोल—(16 तथा 34 छंद)
  4. उपेन्द्र भांजा : लावण्यवती—(1 तथा 2 छंद)

(आधुनिक)

  1. राधानाथ राय : चंद्रभागा
  2. मायाधर मानसिए : जीवन चिता
  3. सचिदानन्द राउतराय : कविता-1962
  4. रामाकान्त रथा : सप्तम ऋतु

खण्ड-ख
नाटक
9. मनोरंजन दास : काठ घोड़ा
10. विजय मिश्रा : ताता निरंजन

उपन्यास
11. फकीर मोहन सेनापति : छमना अबगुज्व
12. गोनीनाथ मोहन्ती : दानापानी

कहानी
13. सुरेन्द्र मोहन्ती : मरलारा मृत्यु
14. मनोज दास : लक्ष्मीश अभिसार

निबंध
15. चितरंजन दास : तरंग-आं-ताद्धित (प्रथम पांच निबंध)
16. चंद्र शेखर रथ : मन सत्यधर्म काहूही (प्रथम पांच निबंध)

पाली

प्रश्न २३-1
पाली भाषा
कृपया ध्यान दें :-सभी प्रश्नों के उत्तर पाली भाषा में देवनागरी अथवा रोमन लिपि में लिखने होंगे ।

खण्ड-क

  1. पाली का उद्भव और उद्भव-स्थल तथा इसकी विशेषताएं।
  2. पाली क्याकरण- (i) पाली व्याकरण की पारिभाषिक शब्दावली-अक्ख्य, सरा, व्यंजन, निग्गहित, नाम सख्बनाम, आख्यात, उपसग्ग, निपात, अव्यय, (ii) कारक, (iii) समास, (iv) साँध, (v) तद्वित (अपच्च बोधक और अधिकारबोधक-पच्चय)। (vi) निम्नलिखित शब्दों के ऋद्धपत्तिमूल : बुद्धो, भिक्खु, सामनेरो सत्पा, धम्मो, लताय, पुरिसानम, तुम्हें अम्हेमी, मुनिना, रत्तीसु फलाय, अट्तीस, रन्नम, संधो।
  3. पाली से अंग्रेजी में दो अनदेखे उधरणों का अनुवाद ।

खण्ड-ख

  1. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर 300 शब्दों

का निबंध :
(क) भगवाबुद्धो
(ख) तिलक्खणम्
(ग) अरियो अठींगको मग्गो
(घ) चत्तारि अरियसच्चानि
(ड.) कमवादो
(च) पतिच्चसमुप्पादो
(छ) निब्वानमू परमम् सुखम्
(ज) तिपिटकम्
(झ) धम्मपदम्
(ज) मन्झिमा-पतिपदा
5. पाली उद्धरणों का सार ।
6. पाली काव्य की पाली भाषा में व्याख्या ।
7. निम्नलिखित अबिकारी (अव्यय एवं निपात) का अर्थ और अभ्यर्थी द्वारा पाली वाक्यों में उनका प्रयोग :
(1) अथ, (2) अन्तरा, (3) अद्धा, (4) कदा, (5) कित्तावत्ता, (6) अहीरत्तम्, (7) दिवा, (8) यथा, (9) चे, (10) सेययाथीदम्, (11) बिना, (12) कुदाचनम्, (13) सद्विम, (14) अंतरेन, (15) खो, (16) मा, (17) एवम् (18) एत्थ, (19) किर, (20) पन ।

प्रश्न पत्र-2

पाली साहित्य

कृपया ध्यान दें :-इसमें दो प्रश्न अनिवार्य होंगे जिनके उत्तर पाली में देवनागरी अथवा रोमन लिपि में देने होंगे शेष प्रश्नों के उत्तर या तो पाली अथवा उम्मोदयार द्वारा चुने हुए परीक्षा माध्यम में लिखने होंगे ।

खंड-क

(i) पाली स्त्रोतों से बुद्ध का जीवन वृत्त और उपदेश ।
(ii) निम्नलिखित पुस्तकों और लेखकों के संदर्भ में पाली साहित्य का इतिहास-प्रामाणिक और अप्रामाणिक :
महावग्ग, चुल्लवग्ग, पातिमोक्ख, दीद्य-निकाय, धम्मपद, जातक, थेरगाथा, थेरीगाथा, दीपवंश, महावंश, दठवंश, शासनवंश, मिलिनन्दपणह, पेटकोपडेस, नेट्टिप्यकरण, बुवुदत, बुद्धमोस और धम्मपाल ।

खंड-ख

  1. निम्नलिखित निर्धारित पाठों में से मूल पाठ विषयक प्रश्न, आलोचनात्मक टिप्पणियां तथा सटिप्पण अनुवाद संबंधी प्रश्न पूछे जाएगें :-
    (i) दीप-निकाय (कंबल सामत्रफल-सुत्त)
    (ii) सुत्त-निपात (कंबल खग्ग बिसणि-सुत्त और धनिय-सुत्त)
    (iii) धम्मपद (कंबल पहले पांच वग्ग)
    (iv) मिलिदपणह (कंबल लखण-पण्ह)
    (v) महावंश (कंबल ततीय संगीती)
    (vi) अभिधम्मत्थ-संध (पहला, दूसरा और छठा पाठ)
    (vii) पाली छंदविधान-बुतोदय-अनुट्ठुम, इंदवजिरा, उपेन्दवजिरा, बसंत तिलका, मालिनी, सिखरिणी, उपजति, तोटक, दोधक, वंसठ्ठ

(viii) पाली अलंकार विधान (सुबोधालंकार-यमक, अनुप्यास, रूपक, उपमा, अतिसयुक्ति, व्यतिरेक, निद्रसना, आर्थतरन्यास, दीपक, दिद्रतत) ।
2. निर्धारित पाठों में से बौद्ध दर्शन पर संक्षिप्त टिप्पणियां ।
3. निर्धारित पाठों में से पाली काव्य की व्याख्या ।

फारसी

प्रश्न पत्र-1

प्रश्न पत्र में दो प्रश्न अनिवार्य होंगे जिनका उत्तर फारसी में देना होगा । शेष प्रश्नों का उत्तर या तो फारसी में अथवा उम्मीदवार द्वारा परीक्षा के लिए चुने गए भाषा माध्यम में देना होगा ।

खंड-क

  1. (क) फारसी भाषा के उद्धव और विकास का वर्धन । (इसका उत्तर फारसी में देना होगा) ।
    (ख) अनुप्रयुक्त व्याकरण, अलंकार, छंदशास्त्र, प्राय: प्रयुक्त होने वाले मुहावरे और लोकोक्तियां ।
    (i) व्याकरण : इस्म और उसकं प्रकार, जमीर-ए-मुत्तासिल और मनुफासिल, मुराकाबी-तोशीफी, मुराकब-ए-इज्राफी, इस्मो-इशारा, मुशारुन ईलाइह, फेल और इसक प्रकार, काल, गरदान, एकवचन और बहुवचन, जुम्ले और उनकं प्रकार ।
    (ii) अलंकार-विधान : तजनोस, इश्तिकाक, लुजुम-भा-ला-यालजुम, सयाकतुल आदाद, कल्ब, तारसी, इस्तिआरा, मारातून नलोर, लफ-ओ नथ, इहाम, हुस्न-ए-तालील, ताजाहूली-आरेफानेह, तलमोह, तनसीक्वस सिपत ।
    (iii) छंदविधान : बाहरी-मुजारा, रामल, मुताकारीब, ताविल, हजाज कामिल ।

खंड-ख

  1. इरान और भारत में फारसी साहित्य का इतिहास, साहित्यिक आलोचना और शैली, क्लासिको और आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियां, सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव, नाटक, उपन्यास, कहानी सहित आधुनिक साहित्यिक विधाओं का विकास ।
  2. फारसी में संक्षिप्त निबंध 250 शब्दों में (इसका उत्तर फारसी में देना होगा)

प्रश्न पत्र-2

इस प्रश्न पत्र में निर्धारित मूल पाठयपुस्तकों का अध्ययन अपेक्षित होगा और इसमें ऐसे प्रश्न पूछे जाएंगे जिससे अभ्यर्थी की आलोचनात्मक क्षमता की परीक्षा हो सकें । दो अनिवार्य प्रश्न होंगे-जो गद्य और पद्य में मूल पाठों में एक-एक होंगे जिनकं उत्तर फारसी में देने होंगे । शेष प्रश्नों के उत्तर या तो फारसी में देने होंगे अथवा उम्मीदवार द्वारा परीक्षा के लिए चुने गए भाषा माध्यम में देने होंगे ।

खंड-क

गद्य

  1. निजामी आरूजी समरकंदी : चहार मकाला :
    (i) दाबीरी
    (ii) शायरी
  2. काबुस/बी, वश्मगीर : काबुसनामा :
    (i) दार शिनाख्त-ए-हफ्-ए-पीदार-वा-मादर
    (ii) दार बिशी जुस्तान अज् सुखानदानी
    (iii) दार तालिब इल्मी वा फकीह वा फुकाहा
  3. शादी शीराजी : गुलिस्तां
    (i) दार ताशीर-ए-सुहबत
  4. मो. अवफी : जावामियुल हिकायत:
    (i) पहली दस हिदायतें
  5. जियाउद्दीन बनौं : तारीख-ए-फिरोज़्शाही
    (i) वासाया-ए-सुल्लान बलबन बे फरजंद-ए-बुजुर्ग
  6. अबुल फजल : आइन-ए-अकबरी
    (i) आईल-ख्ज़ीना-ए-आबदि
    (ii) आईन-ए-शबिस्तान-ए-इकबाल
    (iii) आईन-ए-मंलिल दार युर्रीशहा
    (iv) आईन-ए-चिराग आफरोली
  7. सादिक-ए-हिदायत :
    (i) दश अकुल
    (ii) गिरदाब
  8. मो. हिजाजी :
    (i) खुदकुशी
    (ii) पेजेश्कि-ए-चश्म

खंड-ख
काव्य

  1. फिरदौसी : शाहनामा
    (i) रुस्तम-ओ-सोहराब
  2. खप्याम : रूबाइयां
    (रदीफ् अलीफ् और बे)
  3. शादी शिराजी : बुस्तन

दार अदल-ओ-तदबीर-ओ-राई
4. अमीर खुसरो : मजमुआ-ए-दीवान-ए-खुसरो (रदीफ दाल)
5. मौलाना रूम : मथनवी मनाबी (दफ्तर दव्यम का प्रथम भाग)
6. हाफिज (रदीफ अलीफ और दाल)
7. उर्फी शिराजी : कासायंद
(i) इकबाल-ए-करम मिगालाद अरबाबी-हिमाम रा ।


(ii) हर खुस्ता जाने कि बा कश्मीर दार आगद ।
(iii) शबाह-ए-ईद के दार तकया गाह-ए-नास-ओ नईम ।
8. गालिब : गजलियात (रदीफ अलोफ)
9. बहार मशहदी :
(i) जुगहद-ए-जंग
(ii) शुकुत-ए-शाब
(iii) दमावानदीये
(iv) दुखतर-ए-बसरा
10. फुरूग-ए-फरुखजाद :
(i) दार बराबर-ए-खुदा
(ii) दिव-ए-शाब
11. निमायुशिन्त
(i) क्यू
(ii) खार-कन

टिप्पणी : गद्य और पद्य के पाठों की व्याख्या फारसी में करना अनिवार्य है ।

पंजाबी

प्रश्न पत्र-1
उत्तर पंजाबी में गुरमुखी लिपि में लिखने होंगे

भाग-क

(क) पंजाबी भाषा का उद्भव : विकास के विभिन्न चरण और पंजाबी भाषा में नूतन विकास : पंजाबी स्वर विज्ञान की विशेषताएं तथा इसकी तानों का अध्ययन : स्वर एवं व्यंजन का वर्गीकरण ।
(ख) पंजाबी रूप विज्ञान : वचन-लिंग प्रणाली (सजीव एवं असजीव) । उपसर्ग, प्रत्यय एवं परसर्गों को विभिन्न कोटियां। पंजाबी शब्द-रचना : तत्सम, तद्भव रूप : वाक्य विन्यास, पंजाबी में कर्ता एवं कर्म का अभिप्राय:, संज्ञा एवं क्रिया पदबंध ।
(ग) भाषा एवं बोली : बोली एवं व्यक्ति बोली का अभिप्राय : पंजाबी की प्रमुख बोलियां : पोथोहारी, माझी, दोआबी, मालवी, पुआधि : सामाजिक स्तरीकरण के आधार पर वाक् परिवर्तन की विधिमान्यता, तानों के विशेष संदर्भ में विभिन्न बोलियों के विशिष्ट लक्षण। भाषा एवं लिपि: गुरमुखी का उद्भव और विकास : पंजाबी के लिए गुरमुखी की उपयुक्तता ।
(घ) शास्त्रीय पृष्ठभूमि : नाथ जोगी सहित ।
मध्यकालीन साहित्य : गुरमत, सूफी, किस्सा एवं वार, जनमसाखियां।

भाग-ख

(क) आधुनिक प्रवृत्तियां : रहस्यवादी, स्वच्छंदतावादी, प्रगतिवादी एवं नव-रहस्यवादी (वीर सिंह, पूरण सिंह, मोहन सिंह, अमृता प्रीतम, बाबा बलवन्त, प्रीतम सिंह, सफीर, जे.एस. नेकी)
प्रयोगवादी : (जसवीर सिंह अहलूवालिंया, रविन्दर रवि, अजायब कमाल) ।
सौंदर्यवादी : (हरभजन सिंह, तारा सिंह) ।
नव-प्रगतिवादी : (पाशा, जगतार, पातर) ।
(ख) लोक साहित्य : लोक गीत, लोक कथाएं, पहेलियां, कहावतें ।
महाकाव्य : (वीर सिंह, अवतार सिंह आजाद, मोहन सिंह)
गीतिकाव्य : (गरू, सूफी और आधुनिक गीतिकार-मोहन सिंह, अमृता प्रीतम, शिवकुमार, हरभजन सिंह) ।
(ग) नाटक : (आई. सी. नंदा, हरचरण सिंह, बलवंत गार्गी, एस. एस. सेखों, चरण दास सिद्ध) ।
उपन्यास : (वीर सिंह, नानक सिंह, जसवंत सिंह कंवल, करतार सिंह दुग्गल, सुखबीर, गुरदयाल सिंह, दलीप कौर टिवाणा, स्वर्ण चंदन) ।
कहानी : (सुजान सिंह, के. एस. विक, प्रेम प्रकाश, वरयाम संधु) ।
(घ) सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक प्रभाव : संस्कृत, फारसी और पश्चिमी ।
निबंध : ( पूरण सिंह, तेजा सिंह, गुरबख्शा सिंह) ।
साहित्यिक आलोचना : (एस. एस. शेखों, अतर सिंह, बिशन सिंह, हरभजन सिंह, नजम हुसैन सैयद) ।

प्रश्न पत्र-2

उत्तर पंजाबी में गुरमुखी लिपि में लिखने होंगे
इस प्रश्नपत्र में निर्धारित मूल पाठ्् पुस्तकों को पढ़ना अपेक्षित होगा और इसका प्रारूप इस प्रकार तैयार किया जाएगा जिससे अभ्यर्थी की आलोचनात्मक योग्यता की परीक्षा हो सके ।

भाग-क

(क) शेख फरीद : आदि ग्रंथ में सम्मिलित संपूर्ण वाणी ।
(ख) गुरु नानक : जप जी, बारामाह, आसा दी वार ।
(ग) बुल्ले शाह : काफियां ।
(घ) वारिस शाह : हीर ।

भाग-ख

(क) शाह मोहम्मद : जंगनामा (जंग सिधान ते फिराँगयान) धनी राम चात्रिक (कवि) : चंदन वारी, सफी खान, नवांजहां।
(ख) नानक सिंह (उपन्यासकार) : चिट्टा लह, पवित्रर पापी, एक मयान दो तलवारों।


(ग) गुरुबख्वा सिंह ( निबंधकार) : जिन्दगी दी रास, नवां शिवाला, मेरियां अभूल यादां।
बलराज साहनी ( यात्रा-विवरण) : मेरा रूसी सफरनामा, मेरा पाकिस्तानी सफरनामा।
(घ) बलवंत गार्गी ( नाटककार) : लोहा कुद्दू, धूनी दी अग्ग, सुल्तान रजिया।
संत सिंह सेखों ( आलोचक ) : साहित्यार्थ प्रसिद्ध पंजाबी कवि, पंजाबी काव शिरोमणि।

रूसी

प्रश्न पत्र 1

रूसी से अंग्रेजी में अनुवाद के प्रश्न को छोड़कर सभी उत्तर रूसी में लिखने होंगे

भाषा तथा संस्कृति

खंड क
I. आधुनिक रूसी भाषा :

ध्वनी विज्ञान, रूप विज्ञान, वाक्य विज्ञान, कोश विज्ञान, कोश रचना और अर्थ विज्ञान, भाषा विज्ञान।
II. रूसी से अंग्रेजी में तथा अंग्रेजी से रूसी भाषा में अनुवाद। खंड ख

  1. रूसी संघ का सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक विकास : सन् 1812 का देशभक्तिपूर्ण युद्ध, अक्तूबर क्रांति, पेरेसजोइका और ग्लेसनोत, यू. एस. एस. आर. का विघटन, रूसी संघ की क्षेत्रीय और सोस्कृतिक भिन्नताएं।
    सामान्य विषयों पर निबंध।

प्रश्न पत्र II

उत्तर रूसी में लिखने होंगे
( साहित्य )
खंड क
साहित्यिक इतिहास तथा साहित्यिक आलोचना : –
साहित्यिक आन्दोलन, भावुकतावाद, रोमांसवाद, प्रकृतिवाद, यथार्थवाद, आलोचनात्मक यथार्थवाद, समाजवाद, पराकाष्ठावाद, प्रतीकवाद, भविष्यवाद, साहित्यिक विधाओं का उद्भव और विकास, लोक साहित्य, गीत और कविताएं ।
ए. एस. पुश्किन, एम. यू. लरमोन्ताव, अलेकजेंडर ब्लाक, इज़्रेनिन, वी. मायकोवस्की, अन्ना अख्मतोवा । महागाथा-एल. एन. टालस्टाय, एम. शोलोखोव । कहानी, उपन्यासिका, उपन्यास-पुश्किन, लरमोन्तोव, एन. वी. गोगोल, एस. श्चेडिन, आई. गोन्थरोक आई. तर्जीनेव, एफ. एम. दोस्तोवस्की, एल. एन. टालस्टाय, ए. पी. चेखोव, एम. गोर्की, एम. शोलोखोव, आई. बुनिन, ई. जेमियातिन, बोरिस पार्स्तरनकक, ए. सोलझेनित्सीन, एम. बुल्गाकोव, चिगोवा, आसूलातोव, वलेन्तीन, वी. शुक्लिन । आलोचना – बेलिन्सकी, दोब्रोल्यूबोव, चेर्नीशेव्स्की, पिसारेव ।

नाटक : चेखोव, गोगोल । सामाजिक-राजनैतिक आन्दोलनों का साहित्य पर प्रभाव।

खंड ख

इस खंड में निर्धारित मूल पाद्र्य पुस्तकों को पढ़ना अपेक्षित होगा और इसका प्रारूप इस प्रकार तैयार किया जाएगा जिससे अध्यर्थी को आलोचनात्मक योग्यता को परीक्षा हो सके :-

  1. ए. एस. पुश्किन इन्जीनि ओनिजित
  2. एम. यू. लरमोन्तोव होरो आफ आवर टाइम्स
  3. एन. वी. गोगोल रेविजोर
  4. आई. एस. तर्जिनेव फादर्स एंड संस
  5. एफ. एम. दोस्तोव्स्की क्राइम एंड पनिशमेंट
  6. एल. एन. टालस्टाय
  7. वार एंड पीस
  8. रेजरेक्शन
  9. ए. पी. चेखोव
  10. तोस्का
  11. स्मर्ट चिनोवनिका
  12. कमीलियन
  13. ए. एम. गोर्की मदर
  14. ए. ब्लॉक

दि ट्वेल्व
10. बी. बी. मायकोव्स्की 1. क्लाउड-इन पैंट्स
2. गुड

  1. एम. शोलोखोव फंट ऑफ ए मैन
  2. बी. पार्स्तरनाक डाक्टर जिवागो
  3. सोल्झेनित्सीन वन डे इन दि लाइफ ऑफ ईवानदोनिसोविच
  4. बी. रस्मूतीन झिवो आई पोम्नी
  5. चिगोज आइम्भातोव बैलो पोरोखोद
  6. वी. शुक्लिन शुदिक

संस्कृत
प्रश्न पत्र 1
तीन प्रश्नों का उत्तर संस्कृत में दिया जाना चाहिए । शेष प्रश्नों के उत्तर या तो संस्कृत में अथवा उम्मीदवार द्वारा परीक्षा के लिए चुने गये भाषा माध्यम में दिए जाने चाहिए ।

खण्ड क

  1. संज्ञा, संधि, कारक, समास, कर्तरि और कर्मणी वाच्य (वाच्य प्रयोग) पर विशेष बल देते हुए व्याकरण की प्रमुख विशेषताएं।
    ( इसका उत्तर संस्कृत में देना होगा)
  2. (क) वैदिक संस्कृत भाषा को मुख्य विशेषताएं।
    (ख) शास्त्रीय संस्कृत भाषा के प्रमुख लक्षण।
    (ग) भाषा वैज्ञानिक अध्ययन में संस्कृत का योगदान।

  1. सामान्य ज्ञान :
    (क) संस्कृत का साहित्यिक इतिहास ।
    (ख) साहित्यिक आलोचना की प्रमुख प्रवृत्तियां।
    (ग) रामायण ।
    (घ) महाभारत ।
    (ङ) साहित्यिक विधाओं का उद्भव और विकास । महाकाव्य
    रूपक (नाटक)
    कथा
    आख्यायिका
    चम्ू
    खण्ड काव्य
    मुक्तक काव्य
    खण्ड ख
  2. भारतीय संस्कृति का सार, निम्नलिखित पर बल देते हुए :
    (क) पुरुषार्थ
    (ख) संस्कार
    (ग) वर्णाश्रम व्यवस्था
    (घ) कला और ललित कला
    (ङ) तकनीकी विज्ञान
  3. भारतीय दर्शन की प्रवृत्तियां
    (क) मीमांसा
    (ख) वेदांत
    (ग) न्याय
    (घ) वैशेषिक
    (ङ) सांख्य
    (च) योग
    (छ) बुद्ध
    (ज) जैन
    (झ) चार्वाक
  4. संक्षिप्त निर्वध (संस्कृत में)
  5. अनदेखा पातांश और प्रश्न (इसका उत्तर संस्कृत में देना होगा) ।

प्रश्न पत्र-2

वर्ग 4 के प्रश्न का उत्तर केवल संस्कृत में देना होगा । वर्ग 1,2 और 3 के प्रश्नों के उत्तर या तो संस्कृत में अथवा उम्मीदवार द्वारा चुने गये भाषा माध्यम में देने होंगे ।

खण्ड क

निम्नलिखित समुच्चयों का सामान्य अध्ययन :धर्म-1
(क) रघुवंशम्-कालिदास
(ख) कुमारसंभवम्-कालिदास
(ग) किरातार्जुनीयम्-भारवि
(घ) शिशुपालयधम्-माध
(ङ) नैषध चरितम्-श्रीहर्ष
(च) कादम्बीर-बाणभट्ट
(छ) दशकुमार चरितम्-दण्डो
(ज) शिवराम्योद्यम्-एस. बी. वारनेकर

वर्ग-2
(क) ईशावास्योपनिषद
(ख) भगवद्गीता
(ग) बाल्मीकि रामायण का सुंदरकांड
(घ) कौटिल्य का अर्थशास्त्र

वर्ग-3
(क) स्वप्नवासवदत्तम्-भास
(ख) अभिज्ञान शाकुन्तलम्-कालिदास
(ग) मृच्छकटिकम्-शूद्रक
(घ) मुद्राराक्षसम्-विशाखदत
(ङ) उत्तररामचरितम्-भवभूति
(च) रत्नावली-श्रीहर्षवर्धन
(छ) वेणीसंहारम्-भट्टनारायण

वर्ग-4
निम्नलिखित पर संस्कृत में संक्षिप्त टिप्पणियां :
(क) मेघदूतम्-कालिदास
(ख) नीतिशतकम्-भर्तृहरि
(ग) पंचतंत्र
(घ) राजतरंगिणी-कल्हण
(ङ) हर्षचरितम्-बाणभट्ट
(च) अमरुकशतकम्-अमरूक
(छ) गीत गोविंदम्-जयदेव

खंड-ख

इस खंड में निम्नलिखित चुनी हुई पाद्र्य सामग्रियों का मौलिक अध्ययन अपेक्षित होगा :-


(वर्ग 1 और 2 से प्रश्नों के उत्तर केवल संस्कृत में देने होंगे। वर्ग 3 एवं 4 के प्रश्नों का उत्तर संस्कृत में अथवा उम्मीदवार द्वारा चुने गये भाषा माध्यम में देने होंगे)
वर्ग-1
(क) रघुवंशम्-सर्ग 1 , श्लोक 1 से 10
(ख) कुमारसंभवम्-सर्ग 1 , श्लोक 1 से 10
(ग) किरातार्जुनीयम्-सर्ग 1 , श्लोक 1 से 10

वर्ग-2
(क) ईशावास्योपनिषद्-श्लोक $1,2,4,6,7,15$ और 18
(ख) भगवद्गीता अध्याय- II-श्लोक 13 से 25
(ग) बाल्मीकि का सुंदरकांड सर्ग 15 , श्लोक 15 से 30 (गीता प्रेस संस्करण)
वर्ग-3
(क) मेघदूतम्-श्लोक 1 से 10
(ख) नीतिशतकम्-श्लोक 1 से 10
(डो. डो. कौशाम्बी द्वारा सम्पादित, भारतीय विद्या भवन प्रकाशन)
(ग) कादम्बरी-शुकनासोपदेश (केवल)
वर्ग-4
(क) स्वपनवासवदूतम्-अंक VI
(ख) अभिज्ञानशकुन्तलम्-अंक IV श्लोक 15 से 30 (एम. आर. काले संस्करण)
(ग) उत्तररामचरितम्-अंक 1 , श्लोक 31 से 47 (एम.आर. काले संस्करण) ।

संताली

प्रश्न पत्र-1
(उत्तर संताली में लिखने होंगे)
खंड-क
भाग-I संताली भाषा का इतिहास

  1. प्रमुख आस्ट्रिक भाषा परिवार, आस्ट्रिक भाषाओं की संख्या तथा क्षेत्र विस्तार ।
  2. संताली की व्याकरणिक संरचना ।
  3. संताली भाषा को महत्वपूर्ण विशेषताएं :धवनि विज्ञान, रूप विज्ञान, वाक्य विज्ञान, अर्थ विज्ञान, अनुवाद विज्ञान तथा कोश विज्ञान ।
  4. संताली भाषा का अन्य भाषाओं का प्रभाव ।
  5. संताली भाषा पर मानकीकरण ।

भाग-II संताली साहित्य का इतिहास

  1. संताली साहित्य के इतिहास के निम्नलिखित चार कालों की साहित्यिक प्रवृत्तियां।
    (क) आदिकाल सन् 1854 ई. के पूर्व का साहित्य।
    (ख) मिशनरी काल सन् 1855 ई. से सन् 1889 ई. तक का साहित्य।
    (ग) मध्य काल सन् 1890 से सन् 1946 ई. तक का साहित्य।
    (घ) आधुनिक काल सन् 1947 ई. से अब तक का साहित्य।
  2. संताली साहित्य के इतिहास में लेखन की परम्परा।

खण्ड-ख
साहित्यिक स्वरूप :-निम्नलिखित साहित्यिक स्वरूपों को प्रमुख विशेषताएं, इतिहास और विकास
भाग-I संताली में लोक साहित्य : गीत, कथा, गाथा, लोकोक्तियां, मुहावरे, पहेलियां एवं कुदुम ।

भाग-II संताली में शिष्ट साहित्य

  1. पद्य साहित्य का विकास एवं प्रमुख कवि ।
  2. गद्य साहित्य का विकास एवं प्रमुख लेखक :
    (क) उपन्यास एवं प्रमुख उपन्यासकार।
    (ख) कहानी एवं प्रमुख कहानीकार ।
    (ग) नाटक एवं प्रमुख नाटककार।
    (घ) आलोचना एवं प्रमुख आलोचक ।
    (ङ) ललित निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रा वृतान्त आदि-प्रमुख लेखक ।

संताली साहित्यकार :

श्याम सुन्दर हेम्ब्रम, पं. रघुनाथ मुरम, बाड्हा बेसरा, साधु रामचाँद मुरम, नायारण सोरेन ‘तोड्सुतोम’, सारदा प्रसाद किरक्, रघुनाप दुद्, कालीपद सोरेन, साकला सोरेन, दिगम्बर, हाँसदा, आदित्य मित्र ‘संताली’, बाबूलाल मुरम ‘आदिवासी’, यदुमनी बेसरा, अर्जुन हेम्ब्रम, कृष्ण चन्द्र दुद्, रूप चाँद हाँसदा, कलेंन्द्र नाथ माण्डी, महादेव हाँसदा, गौर चन्द्र मुरमू, ठाकुर प्रसाद मुरमू, हर प्रसाद मुरमू, उदय नाथ मांझी, परिमल हेम्ब्रम, धीरेज् नाथ बारक, श्याम चरण हेम्ब्रम, दमयन्ती बेसरा, टी. कं. रापाज, बोयहा विश्वनाथ दुद्।

भाग-III संताली में सांस्कृतिक विरासत :

रोति रिवाज, पर्व-त्योहार एवं संस्कार (जन्म, विवाह एवं मृत्यु)।


संताली

प्रश्न पत्र-II

(उत्तर संताली में लिखने होंगे)
खण्ड-क

इस प्रश्न पत्र में निर्धारित पाद्य पुस्तकों का मूल अध्ययन आवश्यक है । परीक्षा में उम्मीदवार की आलोचनात्मक क्षमता को जांचने वाले प्रश्न पूछे जाएंगे ।
भाग-I प्राचीन साहित्य

गद्य

  1. खेरवाल बाँसा धोरीम पुथी-मांझी रामदास दुद्ध
    “रसिका”।
  2. मारे हापडामको रेबाक काथा-एल.ओ. स्क्रेपसंरूड ।
  3. जोमसिम बिन्ती लिटा-मंगल चन्द्र तुइक्लुमाड., सोरेन ।
  4. माराड. बुरू बिनती-कानाईलाल दुद्ध।

पद्य

  1. काराम सेरेब-नुनक् सोरेन ।
  2. देवी दासांय सेरेत्र-मानिन्द हांसबा ।
  3. होड सेरेब-डबलि. बी. अबीर ।
  4. बाहा सेरेत्र-बलराम दुद्ध ।
  5. दोड सेरेत्र-पद्मश्री भागवत मुरमू ठाकुर ।
  6. होर सेरेत्र-रघुनाथ मुरमू ।
  7. सोरॉस सेरेत्र-बाबूलाल मुरमू ‘आदिवासी’।
  8. मोडे सिब मोडे त्रिदा-रूप चाँद हाँसदा:।
  9. जुडासो माडवा लातार-तेज नारायण मुरमू ।

खण्ड-ख

आधुनिक साहित्य

भाग-I कविता

  1. ओनोडहँ बाहाय डालवाक्-पाउल जुझार सोरेन ।
  2. असाड बिनती-नारायण सोरेन ‘तोड़े सुताम’।
  3. चांद माला-गोरा चांद दुद्ध ।
  4. अनतो बाहा माला-आदित्य मित्र ‘संताली’।
  5. तिरयी तेताड.-हरिहर हाँसदा:।
  6. सिसिरजोन राड्-डाकुर प्रसाद मुरमू ।

भाग-II उपन्यास

  1. हाडमावाक्आतो-आर. कार्सटियार्स (अनुवादक-आर.आर. किस्क् रापाज) ।
  2. सानू साती-चन्द्र मोहन हाँसदा:।
  3. आतू ओडाको-डोमन हाँसदा:।
  4. ओजोस गाडा डिप रे-नाथनियल मुरमू।

भाग-III कहानी

  1. नियोन गाडा-रूपचाँद हाँसदा: एवं यदुमनी बेसरा ।
  2. माया जाल-डोमन साहू ‘समीर’ एवं पद्मश्री भागवत मुर्मू ‘ठाकुर’।

भाग-IV नाटक

  1. खेरवाड् बिर- पं. रघुनाथ मूरमू ।
  2. जुरी खातिर-डा. कृष्ण चन्द्र दुद्ध ।
  3. बिरसा बिर-रबिलाला दुद्ध।

भाग-V जीवन साहित्य

  1. संताल को रेन मायाड. गोहाको-डा. विश्वनाथ हाँसदा।

सिन्धी

प्रश्न पत्र-I

( उत्तर सिंधी अरबी अथवा देवनागरी लिपि में लिखना होगा) खण्ड-क

  1. (क) सिन्धी भाषा का उद्भव और विकास-विभिन्न विद्वानों के मत ।
    (ख) स्वर विज्ञान, आकृति विज्ञान एवं वाक्य विन्यास के साथ सिन्धी भाषा के संबंध सहित सिन्धी की महत्वपूर्ण भाषा वैज्ञानिक विशेषताएं ।
    (ग) सिन्धी भाषा की प्रमुख बोलियां।
    (घ) विभाजन के पहले और विभाजन के बाद की अवधियों में सिन्धी शब्दावली और उनकें विकास के चरण।
    (ड.) सिन्धी की विभिन्न लेखन प्रणालियों (लिपियों) का ऐतिहासिक अध्ययन ।
    (च) विभाजन के बाद अन्य भाषाओं और सामाजिक स्थितियों के प्रभाव के चलते भारत में सिन्धी भाषा की संरचना में परिवर्तन।

खण्ड-ख

  1. विभिन्न युगों के सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में सिन्धी-साहित्य:
    (क) लोक साहित्य समेत सन् 1350 ई. तक का प्रारम्भिक मध्यकालीन साहित्य।
    (ख) सन् 1350 ई. से 1850 ई. तक का परवर्ती मध्यकालीन साहित्य।
    (ग) सन् 1850 ई. से 1947 ई. तक का पुनर्जागरण काल।
    (घ) आधुनिक काल सन् 1947 ई. से आगे।
    (आधुनिक सिन्धी साहित्य की साहित्यिक विधाएं और कविता, नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध, साहित्यिक आलोचना, जीवनी, आत्मकथा, संस्मरण और यात्रा विवरणों में प्रयोग)।

प्रश्न पत्र-II

( उत्तर सिंधी, अरबी अथवा देवनागरी लिपि में लिखना होगा)

इस प्रश्न-पत्र में निर्धारित मूल पाद्य पुस्तकों को पढ़ना अपेक्षित होगा और इसका प्रारूप इस प्रकार तैयार किया जाएगा जिस अभ्यर्थी की आलोचनात्मक योग्यता को परीक्षा हो सके।


खण्ड-क

इस खंड में पाद्य पुस्तकों की सप्रसंग व्याख्याएं और आलोचनात्मक विश्लेषण होंगे।

I. काव्य

(क) “शाह जो चूण्डा शायर”, संपादक : एच. आई. सदरानगणी; साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित (प्रथम सौ पृष्ठ) ।
(ख) “साचल जो चूण्ड कलाम” संपादक : कल्याण बी. अडवाणो; साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित (सिर्फ कापिस)।
(ग) “सामी-ए-जा चंद श्लोक”; संपादक: बी.एच. नागराणी; साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित (प्रथम सौ पृष्ठ) ।
(घ) “शायर-ए-बेवास”; किशिनचंद बेवास (सिर्फ सामुन्दी सिपुन भाग) ।
(ड.) “रौशन छंवरो”; नारायण श्याम।
(च) “विरहंगे खानपोई जो सिन्धी शायर जो चूण्ड”; संपादक: एच.आई. सदरानगणी; साहित्य आकादमी द्वारा प्रकाशित।

II. नाटक

(क) “बेहतरीन सिन्धी नाटक” (एकांकी) एम. ख्याल द्वारा संपादित; गुजरात सिन्धी अकादमी द्वारा प्रकाशित।
“काकां कालूमल” (पूर्णावधि नाटक) : मदन जुमाणी ।

खण्ड-ख

इस खंड में पाद्य पुस्तकों की सप्रसंग व्याख्याएं और आलोचनात्मक विश्लेषण होंगे ।
(क) पाखीअरा बालार खान विछडूया (उपन्यास) गोविन्द मात्ही।
(ख) सत् दीन्डण (उपन्यास) : कृशिन सतवाणी ।
(ग) चूण्ड सिन्धी कहानियां (कहानियां) भाग-III; संप्रादक : प्रेम प्रकाश; साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित ।
(घ) “बंधन” (कहानियां) सुन्दरी उत्तमचंदानी।
(ङ) “बेहतरीन सिन्धी मजमून” (निबंध); संप्रादक : होरो ठाकुर; गुजरात सिन्धी अकादमी द्वारा प्रकाशित ।
(च) “सिन्धी तनकौद” (आलोचना); संप्रादक : वासवानी; साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित ।
(छ) “भुमहौनजो हचाती-ए-जा-सोना रूपा बकां” (आत्मकथा); पोपाटी हीरानंदानी।
(ज) “हा. चोइसम गिडवानी” (जीवनी); विष्णु शर्मा।

तमिल

प्रश्न पत्र-1
उत्तर तमिल में लिखने होंगे
खंड-क
भाग-1 : तमिल भाषा का इतिहास
प्रमुख भारतीय भाषा परिवार-भारतीय भाषाओं में, विशेषकर द्रविड् परिवार में तमिल का स्थान-द्रविड् भाषाओं की संख्या तथा क्षेत्र विस्तार ।
संगम साहित्य की भाषा-मध्यकालीन तमिल : पल्लव युग की भाषा के संदर्भ-संज्ञा, क्रिया, विशेषण तथा क्रिया विशेषण का ऐतिहासिक अध्ययन-तमिल में काल सूचक प्रत्यय तथा कारक चिह्न ।
तमिल भाषा में अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण-क्षेत्रीय तथा सामाजिक बोलियां-तमिल में लेखन की भाषा और बोलचाल की भाषा में अंतर ।
भाग-2 : तमिल साहित्य का इतिहास
तोलकाप्यियम-संगम साहित्य-अकम और पुरम की काव्य विधाएं-संगम साहित्य की पंथनिरपेक्ष विशेषताएं-नोविपरक साहित्य का विकास; सिलप्पदिकारम और मणिमेखलै ।
भाग-3 : भक्ति साहित्य (आलवार और नायनमार) आलवारों के साहित्य में सखी भाव (ब्राइडल मिस्टिरिज) -छुटपुट साहित्यिक विधाएं (तद्दुदु, उला, परणि, कुरवॉज) ।

आधुनिक तमिल साहित्य के विकास के सामाजिक कारक: उपन्यास, कहानी और आधुनिक कविता-आधुनिक लेखन पर विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं का प्रभाव ।

खण्ड-ख

भाग-1 : तमिल के अध्ययन में नई प्रवृत्तियां
समालोचना के उपागम: सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, ऐतिहासिक तथा नैतिक-समालोचना का प्रयोग-साहित्य के विविध उपादान: उल्लुरै (लक्षणा), इरैच्चि, तोणमम (मिथक), (ओतुरूवगम) (कथा रूपक), अंगदम (व्यंग्य), मेयप्पादु, पडियम (बिंब), कुरियौडु (प्रतीक), इरूण्गौ (अनेकार्थकता)-तुलनात्मक साहित्य की अवधारणा-तुलनात्मक साहित्य के सिद्धांत ।
भाग-2 : तमिल में लोक साहित्य
गाथाएं, गीत, लोकोक्तियां और पहेलियां-तमिल लोक गाथाओं का समाज वैज्ञानिक अध्ययन । अनुवाद की उपयोगिता-तमिल की कृतियों का अन्य भाषाओं में अनुवाद-तमिल में पत्रकारिता का विकास।

भाग-3 : तमिल की सांस्कृतिक विरासत

प्रेम और युद्ध की अवधारणा-अरम की अवधारणा-प्राचीन तमिलों द्वारा युद्ध में अपनाई गई नैतिक संहिता । पांचों लिणे क्षेत्रों की प्रथाएं, विश्वास, रीति-रिवाज तथा उपासना विधि ।

उत्तर-संगम साहित्य में अभिव्यक्त सांस्कृतिक परिवर्तनमध्यकाल में सांस्कृतिक सम्मिश्रण (जैन तथा बौद्ध) । पल्लव, परवर्ती चौल तथा नायक के विभिन्न युगों में कलाओं और वास्तुकला


का विकास । तमिल समाज पर विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक आंदोलनों का प्रभाव । समकालीन तमिल समाज के सांस्कृतिक परिवर्तन में जन माध्मों की भूमिका ।

तमिल

प्रश्न पत्र 2

उत्तर तमिल में लिखने होंगे

इस प्रश्न-पत्र में निर्धारित पाद्यपुस्तकों का मूल अध्ययन आवश्यक है । परीक्षा में उम्मीदवार की आलोचनात्मक क्षमता को जांचने वाले प्रश्न पूछे जाएंगे ।

खण्ड क

भाग-1 : प्राचीन साहित्य
(1) कुरून्तोकै (1 से 25 तक कविताएं)
(2) पुरनानूरू ( 182 से 200 तक कविताएं)
(3) तिरूक्कुरल (तोरूल पाल: अरसियलुम अमैच्चियलुम) (इरैमाट्रॉच से अवेअंजामै तक)
भाग-2 : महाकाव्य
(1) सिलप्पदिकारम (मदुरै कांडम)
(2) कब रामायणम् (कुंभकर्णन बदै पडलम)

भाग-3 : भक्ति साहित्य
(1) तिरूवाचक ‘र’ म : नीचल विण्णप्यम
(2) विरूप्यावे (सभी-पद)

खण्ड ख
आधुनिक साहित्य
भाग-1 : कविता
(1) भारतियार : कण्णन पाद्दु
(2) भारती दासन : कुदुम्ब बिलक्कु
(3) ना. कामरासन : करूप्पु मलरकल

गद्य
(1) मु. वरदराजनार : अरमुम अरसियलुम
(2) सी. एन अण्णादुरै : ऐ, तालन्द तमिलगम ।

भाग-2 : उपन्यास, कहानी और नाटक
(1) अकिलन : चित्तिरप्पावै
(2) जयकांतन : गुरूपीडम

भाग-3 : लोक साहित्य
(1) मत्तुप्पाद्टन कतै : न. वानमामलै (सं.) प्रकाशन : मदुरै कामरज विश्वविद्यालय, मदुरै
(2) मलैयरूचि : कि.चा. जगणाधन (सं.) प्रकाशन : सरस्वती महल, तंजाऊर) तेलुगु
उत्तर तेलुगु में लिखने होंगे
खण्ड-क : भाषा

  1. द्रविड़ भाषाओं में तेलुगु का स्थान और इसकी प्राचीनता-तेलुगु, तेलुगु और आंध्र का व्युत्पत्ति-आधारित इतिहास ।
  2. आद्य-द्रविड़ से प्राचीन तेलुगु तक और प्राचीन तेलुगु से आधुनिक तेलुगु तक स्वर-विज्ञानीय, रूपविज्ञानीय, व्याकरणिक और वाक्यगत स्तरों में मुख्य भाषायी परिवर्तन ।
  3. क्लासिको तेलुगु को तुलना में बोलचाल को व्यावहारिक तेलुगु का विकास-औपचारिक और कार्यात्मक दृष्टि से तेलुगु भाषा को व्याख्या ।
  4. तेलुगु भाषा पर अन्य भाषाओं का प्रभाव ।
  5. तेलुगु भाषा का आधुनिकीकरण :
    (क) भाषायी तथा साहित्यिक आंदोलन और तेलुगु भाषा के आधुनिकीकरण में उनकी भूमिका ।
    (ख) तेलुगु भाषा के आधुनिकीकरण में प्रचार माध्यमों को भूमिका (अखबार, रेडियो, टेलिविजन आदि) ।
    (ग) वैज्ञानिक और तकनीको सहित विभिन्न विमर्शों के बीच तेलुगु भाषा में नये शब्द गढ़ते समय पारिभाषिको और क्रियाविधि से संबंधित समस्याएं ।
  6. तेलुगु भाषा को बोलियां-प्रादेशिक और सामाजिक भिन्नताएं तथा मानकीकरण की समस्याएं ।
  7. वाक्य-विन्यास-तेलुगु वाक्यों के प्रमुख विभाजन सरल, मिश्रित और संयुक्त वाक्य-संज्ञा और क्रिया-विधेयन-नाभिकीकरण और संबंधीकरण की प्रक्रियाएं-प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रस्तुतीकरण-परिवर्तन प्रक्रियाएं ।
  8. अनुवाद-की समस्याएं-सांस्कृतिक, सामाजिक और मुहावरासंबंधी अनुवाद की विधियां-अनुवाद के क्षेत्र में विभिन्न दृष्टिकोण-साहित्यक तथा अन्य प्रकार के अनुवाद-अनुवाद के विभिन्न उपयोग ।

खण्ड ख : साहित्य

  1. नाक्य-पूर्व काल में साहित्य-मार्ग और देसी कविता ।
  2. नाक्य-काल-आंध्र महाभारत को ऐतिहासिक और साहित्यक पृष्ठभूमि ।
  3. शेष कवि और उनका योगदान-द्विपाद, सातक, रागद, उदाहरण ।
  4. तिक्कन और तेलुगु साहित्य में तिक्कन का स्थान ।
  5. एरेना और उनकी साहित्यिक रचनाएं-नवन सोमन और काव्य के प्रति उनका नया दृष्टिकोण ।
  6. श्रीनाथ और पोतन-उनको रचनाएं तथा योगदान ।
  7. तेलुगु साहित्य में भक्ति कवि-तल्लपक अन्नामैया, रामदासु त्यागैया ।
  8. प्रबंधों का विकास-काव्य और प्रबंध ।
  9. तेलुगु साहित्य की दक्खिनी विचारधारा-रथुनाथ नायक, चेमाकुर वेंकटकवि और महिला कवि-साहित्य-रूप जैसे यक्षगान, गद्य और पदकविता ।
  10. आधुनिक तेलुगु साहित्य और साहित्य-रूप-उपन्यास, कहानी, नाटक, नाटिका और काव्य रूप ।
  11. साहित्यिक आंदोलन : सुधार आंदोलान, राष्ट्रवाद, नवक्लासिकीवाद, स्वच्छन्दतावाद और प्रगतिवादी, क्रांतिकारी आंदोलन ।
  12. दिगम्बरकाबुलु, नारीवादी और दलित साहित्य ।

  1. लोकसाहित्य के प्रमुख विभाजन-लोक कलाओं का प्रस्तुतीकरण ।

प्रश्न पत्र 2

उत्तर तेलुगु में लिखने होंगे

इस प्रश्न पत्र में निर्धारित मूल पाद्य पुस्तकों का अध्ययन अपेक्षित होगा और ऐसे प्रश्न पूछे जाएंगे जिससे अभ्यर्थी की निम्नलिखित विषयों से सम्बन्धित आलोचनात्मक क्षमता की जांच हो सके :-
(i) सौंदर्यपरक दृष्टिकोण-रस, ध्वनि, वक्रोक्ति और औचित्य-रूप संबंधी और संरचनात्मक-चित्र्य योजना और प्रतीकवाद।
(ii) समाज शास्त्रीय, ऐतिहासिक, आदर्शवादी और मनोदैज्ञानिक दृष्टिकोण।

खण्ड क

  1. नाक्य-दुष्यंत चरित (आदि पर्व चौथा सर्ग छंद 5-109)
  2. तिक्कन-श्री कृष्ण रायवरामु (उद्योग पर्व-तीसरा सर्ग छंद $1-144$ )
  3. श्रीनाथ-गुना तिथि कथा (काली खंडभ-चौथा सर्ग छंद 76-133)
  4. पिंगली सुरम-सुगति सलिनुलकथा (कलापुर्णादवपु-चौथा सर्ग छंद 60-142)
  5. मोल्ला-रागायनायु (अवतारिक सहित बाटा बर्दा)
  6. कसुल पुरूनेतम कवि-आंध्र नामक सतलामु :

खण्ड ख

  1. गुर्जद अप्पा राव-अनिमुत्थालु (कहानियां)
  2. विश्वनाथ सत्यनारायण-आंध्र प्रशस्ति
  3. देवलापल्लि कृष्ण शास्त्री-कृष्णपक्षम (उर्वशी और पवजम को छोड़कर)
  4. श्री श्री-महाप्रस्थानम्
  5. पशुवा-गब्बिलम (भाग-1)
  6. श्री नारायण रेड्डी-कर्पूरवसन्ता रायालु
  7. कनुपरति वरलक्षम्मा-शारदा लेखालु (भाग-1)
  8. आलंय-एन. जी. ओ.
  9. :च कोंड विश्वनाथ शास्त्री-अल्गजीर्या

उर्दू

प्रश्न पत्र 1
उत्तर उर्दू में लिखने होंगे
खण्ड क
उर्दू भाषा का विकास
(क) भारतीय-आर्य भाषा का विकास
(i) गावीन भारतीय-अर्य
(ii) मध्ययुगीय भारतीय-उत्तर
(iii) अर्पानीय भारतीय-धर्मा
(ग) पटिनभी हिन्दी तथा इसको जटिलों, जैसे छज्जागा, खड़ी बोली, इरियागली, कसौजी, हुंदेली :

उर्दू भाषा के उद्ध्व से संबंधित सिद्धांत।
(ग) दिक्खिनी उर्दू-उद्ध्य और विकास-इसको महत्वपूर्ण भाषा मूलक विशेषताएं।
(ग) उर्दू भाषा के सामाजिक और सांस्कृतिक आधार और उनकें विभेदक लक्षण :
लिपि, स्वर विज्ञान, आकृति विज्ञान, शब्द भंडार । खंड ख
(क) विभिन्न थिआएं और उनका विकास : (i) कविता : नजल, मसनवी, कसिदा, मर्सिया, रूबाई, जदीद जन्म । (ii) गद्य : उपन्यास, कहानी, दास्तान, नाटक, इंशाइया, खुतृत, जीवनी
(ख) निम्नलिखित की महत्वपूर्ण विशेषताएं
(i) दक्खिनी, दिल्ली और लखनऊ शाखाएं
(ii) सर सैयद आन्दोलन, स्वच्छंदतावादी आन्दोलन, प्रगतिशील आन्दोलन, आधुनिकतावाद ।
(ग) साहित्यिक आलोचना और उसका विकास : हाली, शिवली, कालीमुट्टीन अहमद, एतदेशाम हुसैन, आले अहमद सुरूर !
(ग) नितन्य लेखन (साहित्यिक और कल्पनाप्रधान विषयों पर) प्रश्न पत्र 2
उत्तर उर्दू में लिखने होंगे
इस प्रश्न पत्र में निर्धारित मूल पाद्य पुस्तकों को पढ़ना अपेक्षित होगा और इसका प्रारूप इस प्रकार तैयार किया जाएगा जिससे अभ्यर्थी की आलोचनात्मक योग्यता की परीक्षा हो सके।

खण्ड क

1. मीर अभ्यान बागीबहार
2. गालिब इन्दिखाद ए-खुल-ए गालिब
3. मुहम्मद हुसैन आजाद नैरम-ए-ख्याल
4. प्रेमचंद गोदाम
5. राजेन्द्र सिंह बेदी अपने दुख मुझे दे दो
6. अबुल कलाम आजाद गुबार-ए-खातिर
खण्ड ख
1. मोर इन्दिखान-ए-मीर
(सम्मादक : अबदुल हक)
2. मीर हसन सहस्त बयां
3. गालिब दीवान-ए-गालिब
4. इककल बाल-ए-जिवरैल
5. नितक गुल-ए-नगमा
6. पल दस्त-ए-सवा
7. अख्तापलिमान वित-ए-लम्हात
प्रबंध

अभ्यर्थी को प्रबंध को विज्ञान और कला के रूप में संकल्पना और विज्ञा का अध्ययन करना चाहिए और प्रबंध के अग्रणी विचारकों के योगदान को आत्मसात करना चाहिए तथा कार्यनीतिक एवं प्रचालनात्मक


परिवेश को दृष्टिगत रखते हुए इसकी संकल्पनाओं को वास्तविक शासन एवं व्यवसाय निर्णयन में प्रयोग में लाना चाहिए ।

प्रश्न पत्र-1

  1. प्रबंधकीय कार्य एवं प्रक्रिया :

प्रबंध को संकल्पना एवं आधार, प्रबंध चिंतन का विकास : प्रबंधकीय कार्य-आयोजना, संगठन, नियंत्रण; निर्णयन; प्रबंधक को भूमिका, प्रबंधकीय कौशल; उद्यमश्रुति; नवप्रवर्तन प्रबंध; विश्वव्यापी वातावरण में प्रबंध, नमय प्रणाली प्रबंधन; सामाजिक उत्तरदायित्व एवं प्रबंधकीय आद्रानविति; प्रक्रिया एवं ग्राहक अभिविन्यास; प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष मूल्य श्रृंखला पर प्रबंधकीय प्रक्रियाएं ।
2. संगठनात्मक व्यवहार एवं अभिकल्प :

संगठनात्मक व्यवहार का संकल्पनात्मक विदर्श; स्वप्न प्रक्रियाएं-स्वक्तित्व, मूल्य एवं अभिमुखि, प्रत्यक्षण, अभिप्रेरण, अधिगम एवं पुनर्वसन, कार्य तनाव एवं तनाव प्रबंधन; संगठन व्यवहार की गतिव्यो-राखा एवं समावेशि, द्वन्द्व एवं वार्ता, नेतृत्व प्रक्रिया एवं शैलियां, संप्रेषण; संगठनात्मक प्रक्रियाएं-निर्णयन, कृत्यक अभिकल्प; सांगठनिक अभिकल्प के क्लासिकों, नक्क्लासिकों एवं आयात उपागम; संगठनात्मक सिद्धांत एवं अभिकल्प-संगठनात्मक संस्कृति, सांस्कृतिक अनेकता प्रबंध न, संगठन अधिगम; संगठनात्मक परिवर्तन एवं विकास; ज्ञान आधारित उद्यम-प्रणालियां एवं प्रक्रियाएं; जालतंत्रिक एवं आभासी संगठन ।
3. मानव संसाधन प्रबंध :

मानव संसाधन की चुनौतियां; मानव संसाधन प्रबंध के कार्य; मानव संसाधन प्रबंध की भावों चुनौतियां; मानव संसाधनों का कार्यनीतिक प्रबंध; मानव संसाधन आयोजना; कृत्यक विश्लेषण; कृत्यक मूल्याकलन; भर्ती एवं चयन; प्रशिक्षण एवं विकास, पदोन्नति एवं स्थानांतरण; निष्पादन प्रबंध; प्रतिक्र प्रबंध एवं लाभ; कर्मचारी मनोबल एवं उत्पादकता; संगठनात्मक वातावरण एवं औद्योगिक प्रबंध प्रबंध; मानव संसाधन लेखाकरण एवं लेखा परीक्षा; मानव संसाधन सूचना प्रणाली; अंतर्राष्ट्रीय मानव संसाधन प्रबंध ।
4. प्रबंधकों के लिए लेखाकरण :

वित्तीय लेखाकरण-संकल्पना, महत्व एवं क्षेत्र, सामाज्यवाद स्वीकृत लेखाकरण सिद्धांत, तुलनमय के विश्लेषण एवं व्यवसाय आय भवन के विशेष संदर्भ में वित्तीय विवरणों को तैयार करना, सामग्री सूची मूल्यांकन एवं मूल्यद्वार्य, वित्तीय विवरण विश्लेषण, निधि प्रवाह विश्लेषण, नकदी प्रवाह विवरण, प्रबंध लेखाकरण-संकल्पना, आवश्यकता, महत्व एवं क्षेत्र; लागत लेखाकरण-अभिलेख एवं प्रक्रियाएं, लागत लेजर एवं नियंत्रण लेखाएं, वित्तीय एवं लागत लेखाओं के बीच समाधान एवं समाकलन; ऊपरी लागत एवं नियंत्रण, कृत्यक एवं प्रक्रिया लागत आंकलन, बजट एवं बजटीय

नियंत्रण, निष्पादन बजटन, शून्यधारित बजटन, संगत लागत आंकलन, एवं निर्णयन लागत-आंकलन; मानक लागत-आंकलन एवं प्रसरण विश्लेषण, सीमांत लागत एवं निर्माण लागत आंकलन, आकलन एवं अवशोषण लागत-आंकलन ।
5. वित्तीय प्रबंध :

वित्त कार्य के लक्ष्य; मूल्य एवं प्रति लाभ की संकल्पनाएं; बांडों एवं शेगरों का मूल्यांकन; कार्यशील पूंजी का प्रबंध; प्राक्कलन एवं वित्तीयन; नकदी, प्राप्यों, सामग्रीसूची एवं चालू देयताओं का प्रबंधन; पूंजी लागत; पूंजी बजटन; वित्तीय एवं प्रचालन लेवरेज; पूंजी संरचना अभिकल्प; सिद्धांत एवं व्यवहार; शेयरधारक मूल्य सूजन; लाभांश नीति निगम वित्तीय नीति एवं कार्यनीति, निगम कुर्कों एवं पुनर्संरचना कार्यनीति प्रबंध; पूंजी एवं मुद्रा बाजार; संस्थाएं एवं प्रग्न; पट्टे पर देना, किराया खरीद एवं जोखम पूंजी; पूंजी बाजार विनियमन; जोखिम एवं प्रतिलाभ ; पोर्टफोलियो सिद्धांत ; CAPM; APT; वित्तीय व्युत्पन्न ; विकल्प फयूवर्स, स्वैध; वित्तीय क्षेतक में अभिनव सुधार ।
6. विपणन प्रबंध :

संकल्पना, विकास एवं क्षेत्र; विपणन कार्यनीति सूत्रीकरण एवं विपणन योजना के घटक; बाजार का खंडीकरण एवं लक्ष्योन्मुखन; पण्य का अवस्थानन एवं विभेदन; प्रतियोगिता विश्लेषण; उपभोक्ता बाजार विश्लेषण; औद्योगिक क्रेता व्यवहार; बाजार अनुसंधान; उत्पाद कार्यनीति; कीमत निर्धारण कार्यनीतियां; विपणन सारणियों का अभिकल्पन एवं प्रबंधन; एकीकृत विपणन संचार; ग्राहक संतोष का निर्माण, मूल्य एवं प्रतिधारण; सेवाएं एवं अ-लाभ विपणन; विपणन में आधार, ग्राहक सुरक्षा, इंटरनेट विपणन, खुदरा प्रबंध; ग्राहक संबंध प्रबंध; साकल्यवादी विपणन की संकल्पना ।

प्रश्न पत्र-2

  1. निर्णयम की परिमाणात्मक प्रविधियां :

वर्णनात्मक सांख्यिकी-सारणीबद्ध, आलेखीय एवं सांख्यिक विधियां, प्राधिकता का विषय प्रवेश, असंतत एवं संतत प्राधिकता बंटन, आनुमानिक सांख्यिकी-प्रतिदर्शी बंटन, केन्द्रीय सीमा प्रमेय, माध्यों एवं अनुपातों के बीच अंतर के लिए परिकल्पना परीक्षण, समष्टि प्रसारणों के बारे में अनुमान, काई-सक्वैयर एवं ANOVA, सरल सहसंबंध एवं समाश्रयण, कालश्रेणी एवं पूर्वानुमान, निर्णय सिद्धांत, सूचकांक; रैखिक प्रोग्रामन-समस्या सूत्रीकरण, प्रसमुच्चय विधि एवं आलेखीय हल, सुग्राहिता विश्लेषण ।
2. उत्पादन एवं व्यापार प्रबंध :

व्यापार प्रबंध के मूलभूत सिद्धांत; उत्पादनार्थ आयोजना; समस्त उत्पादन आयोजना, क्षमता आयोजना, संयंत्र अभिकल्प ; प्रक्रिया आयोजना, संयंत्र आकार एवं व्यापार मान, सुविधाओं का प्रबंधन; लाईन संतुलन; उपकरण प्रतिस्थापन एवं अनुरक्षण; उत्पादन नियंत्रण; पूर्ति श्रृंखला


प्रबंधन-विक्रेता मूल्यांकन एवं लेखापरीक्षा; गुणता प्रबंधन; सांख्यिकीय प्रक्रिया नियंत्रण, षड सिग्मा, निर्माण प्रणालियों में नम्यता एवं स्फूर्ति; विश्व श्रेणी का निर्माण; परियोजना प्रबंधन संकल्पनाएं, अनुसंधान एवं विकास प्रबंध, सेवा व्यापार प्रबंध; सामग्री प्रबंधन की भूमिका एवं महत्व, मूल्य विश्लेषण, निर्माण अथवा क्रय निर्णय; समाग्री सूची नियंत्रण, अधिकतम खुदरा कीमत; अपशेष प्रबंधन ।
3. प्रबंध सूचना प्रणाली :

सूचना प्रणाली का संकल्पनात्मक आधार; सूचना सिद्धांत; सूचना संसाधन प्रबंध; सूचना प्रणाली प्रकार; प्रणाली विकास-प्रणाली एवं अभिकल्प विहंगावलोकन; प्रणाली विकास प्रबंध जीवन-चक्र, ऑनलाइन एवं वितरित परिवेशों के लिए अभिकल्पन; परियोजना कार्यान्वयन एवं नियंत्रण; सूचना प्रौद्योगिकी की प्रवृत्तियां; आँकड़ा संसाधन प्रबंधनआँकड़ा आयोजना; DDS एवं RDBMS; उद्यम संसाधन आयोजना (ERP), विशेषज्ञ प्रणाली, E-बिजनेस आर्किटेक्चर, ई-गवर्नेंस, सूचना प्रणाली आयोजना, सूचना प्रणाली में नम्यता; उपयोक्ता संबद्धता; सूचना प्रणाली का मूल्यांकन ।
4. सरकार व्यवसाय अंतरायुध्द :

व्यवसाय में राज्य की सहभागिता, भारत में सरकार, व्यवसाय एवं विभिन्न वाणिज्य मंडलों तथा उद्योग के बीच अन्योन्य क्रिया; लघु उद्योगों के प्रति सरकार की नीति; नए उद्यम की स्थापना हेतु सरकार की अनुमति; जन वितरण प्रणाली; कीमत एवं वितरण पर सरकारी नियंत्रण; उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA) एवं उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण में स्वैच्छिक संस्थाओं की भूमिका; सरकार की नई औद्योगिक नीति; उदारीकरण अ-विनियमन एवं निजीकरण; भारतीय योजना प्रणाली; पिछड़े क्षेत्रों के विकास के संबंध में सरकारी नीति; पर्यावरण संरक्षण हेतु व्यवसाय एवं सरकार के दायित्व; निगम अभिशासन; साइबर विधियां।
5. कार्यनीतिक प्रबंध :

अध्ययन क्षेत्र के रूप में व्यवसाय नीति; कार्यनीतिक प्रबंध का स्वरूप एवं विषय क्षेत्र, सामरिक आशय, दृष्टि, उद्देश्य एवं नीतियां; कार्यनीतिक आयोजना प्रक्रिया एवं कार्यान्वयन; परिवेशीय विश्लेषण एवं आंतरिक विश्लेषण, SWOT विश्लेषण; कार्यनीतिक विश्लेषण हेतु उपकरण एवं प्रविधियां-प्रभाव आव्यूह : अनुभव वक्र, BCG आव्यूह, GEC बहुलक, उद्योग विश्लेषण, मूल्य श्रृंखला की संकल्पना; व्यवसाय प्रतिष्ठान को कार्यनीतिक परिच्छेदिका; प्रतियोगिता विश्लेषण हेतु ढांचा; व्यवसाय प्रतिष्ठान का प्रतियोगी लाभ; वर्गीय प्रतियोगी कार्यनीतियां; विकास कार्यनीति-विस्तार, समाकलन एवं विशाखान; क्रोड् सक्षमता की संकल्पना, कार्यनीतिक नम्यता; कार्यनीति पुनराविस्कार; कार्यनीति एवं संरचना; मुख्य कार्यपालक एवं परिषद् टर्न राउड प्रबंधन; प्रबंधन एवं कार्यनीतिक परिवर्तन; कार्यनीतिक

सहबंध; विलयन एवं अधिग्रहण; भारतीय संदर्भ में कार्यनीति एवं निगम विकास ।
6. अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय :

अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय परिवेश : माल एवं सेवाओं में व्यापार के बदलते संघटन; भारत का विदेशी व्यापार; नीति एवं प्रवृत्तियां; अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का वित्त पोषण; क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग; FTA; सेवा प्रतिष्ठानों का अंतर्राष्ट्रीयकरण; अंतर्राष्ट्रीय उत्पादन; अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों में व्यवसाय प्रबंध; अंतर्राष्ट्रीय कराधान; विश्वव्यापी प्रतियोगिता एवं प्रौद्योगिकीय विकास; विश्वव्यापी ई-व्यवसाय; विश्वव्यापी सांगटनिक संरचना अभिकल्पन एवं नियंत्रण; बहुसांस्कृतिक प्रबंध; विश्वव्यापी व्यवसाय कार्यनीति; विश्वव्यापी विपणन कार्यनीति; निर्यात प्रबंध; निर्यात आयात प्रक्रियाएं; संयुक्त उपक्रम; विदेशी निवेश; विदेशी प्रत्यक्ष निवेश एवं विदेशी पोर्टफोलियो निवेश; सीमापार विलयन एवं अधिग्रहण; विदेशी मुद्रा जोखिम उदभासन प्रबंध; विश्व वित्तीय बाजार एवं अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग, बाह्य ऋण प्रबंधन; देश जोखिम विश्लेषण ।

गणित

प्रश्नपत्र-1

1. रैखिक योजनापित :

R एवं C सदिश समष्टियाँ, रैखिक आश्रितता एवं स्वतंत्रता, उपसमष्टियाँ, आधार, विमा, रैखिक रूपांतरण, कोटि एवं शून्यता, रैखिक रूपांतरण का आव्यूह ।

आव्यूहों को बोजावली, पंक्ति एवं स्तंभ समानयन; सोपानक रूप, सर्वांगसमता एवं समरूपता, आव्यूह की कोटि, आव्यूह का व्युत्कम, रैखिक समीकरण प्रणाली का हल, अभिलक्षणिक मान एवं अभिलक्षणिक सदिश, अभिलक्षणिक बहुपद, कॅल-हैमिल्टन प्रमेय, सममित, विषम सममित, हर्मिटी, विषम हर्मिटी, लाबिक एवं ऐकिक आव्यूह एवं उनकें अभिलक्षणिक मान ।

2. कलन :

वास्तविक संख्याएँ, वास्तविक चर के फलन, सीमा, सांतत्य, अवकलनीयता, माध्यमान प्रमेय, शेषफलों के साथ टेलर का प्रमेय, अनिर्धारित रूप, उच्विष्ठ एवं अल्पिष्ठ, अनंतस्पती, वक्र अनुरेखण, दो या तीन चरों के फलन : सीमा, सांतत्य, आंशिक अवकलज, उच्विष्ठ एवं अल्पिष्ठ, लाप्रांज की गुणक विधि, जैकोबी । निश्चित समाकलों की रीमान परिभाषा, अनिश्चित समाकल, अनंत (इन्फिनिट एवं इंप्रॉपर) अवकल, द्विधा एवं त्रिधा समाकल (कॅयल मूल्यांकन प्रविधियाँ), क्षैल, पृष्ठ एवं आयतन।

3. विश्लेषिक ज्यामिति :

त्रिविमाओं में कार्तीय एवं ध्रुतीय निर्देशांक, त्रि-चरों में द्वितीय घात समीकरण, विहित रूपों में लघुकरण, सरल रेखाएँ, दो विषमतलीय रेखाओं के बीच को लघुतम दूरी, समतल, गोलक, शंकु, बेलन, परवलपज, दीर्घवृत्तज, एक या दो पृथ्वी अतिपरवलपज एवं उनकें गुणधर्म ।

4. साधारण अवकल समीकरण :

अवकल समीकरणों का संरूपण, प्रथम कोटि एवं प्रथम घात का समीकरण, समाकलन गुणक, लंबकोणीय संछेदों, प्रथम घात का नहीं


कितु प्रथम कोटि का समीकरण, क्लेरो का समीकरण, विचित्र हल । नियत गुणांक वाले द्वितीय एवं उच्चतर कोटि के रैखिक समीकरण पूरक फलन, विशेष समाकल एवं व्यापक हल । चर गुणांक वाले द्वितीय कोटि के रैखिक समीकरण, आयलर-कोशी समाकरण, पाचल विचरण विधि का प्रयोग कर पूर्ण हल का निर्धारण जब एक हल ज्ञात हो ।

लाप्सास एवं व्युत्क्रम लाप्लास रूपांतर, एवं उकडे गुणधर्म, प्रारंभक फलनों के लाप्लास रूपांतर, नियत गुणांक वाले द्वितीय कोटि रैखिक समीकरणों के लिए प्रारंभिक मान समस्याओं पर अनुप्रयोग ।

5. गतिकी एवं स्थैतिकी :

ऋजुरेखीय गति, सरल आबर्तगति, समतल में गति, प्रक्षेप्य (प्रोजेक्टाइल), व्यवरोध गति, कार्य एवं ऊर्जा, ऊर्जा का संरक्षण कोपलर नियम, केंद्रीय बल के अंतर्गत की कक्षाएं (कण निकाय का संतुलन, कार्य एवं स्थितिज ऊर्जा पर्यण, साधारण कटनरी, कल्पित कार्य का सिद्धांत, संतुलन का स्थायित्व, तीन विमाओं में बल संतुलन ।

6. सदिश विप्लेषण :

अदिश और सदिश क्षेत्र, अदिश चर के सदिश क्षेत्र पर अवकलन, कातोंय एवं देलनाजार निर्देशांकों में अवणता, अवधरण एवं नर्थ, उच्चतर कोटि अवकलन, सदिश तत्समक एवं सदिश समीकरण ।

ज्यामिति अनुप्रयोग : आकाश में दक्ष, चक्रता एवं ऐंठन, लेट्टि-लेट्टि के सूत्र ।

गैस एवं स्टोक्स प्रमेय, ग्रीन के तत्समक ।

प्रहन पत्र-2

1. बीजगणित :

समूह, उपसमूह, भक्षीय समूह, सहस्रावृत्तीय, लाप्रज्य प्रमेय, प्रसामान्य उपसमूह, विभाग समूह, समूहों की समाकारिता, आभारी तुल्याकारिता प्रमेय, क्रमचय समूह, कोली प्रमेय ।

वलय, उपवलय एवं गुणवावली, वलयों की समाकारिता, पूर्णांकीय प्रांत, मुख्य गुणवावली प्रांत, यूक्लिडीय प्रांत एवं अद्वितीय गुणवर्खंडन प्रांत, क्षेत्र विभाग क्षेत्र ।

2. वास्तविक विप्लेषण :

न्यूनतम उपरिसीमा गुणधर्म वाले क्रमित क्षेत्र यों रूप में वास्तविक संख्या निकाय, अनुक्रम, अनुक्रम सीमा, कोशी अनुक्रम, वास्तविक रेखा की पूर्णता, श्रेणी एवं इसका अभिसरण, वास्तविक एवं सम्मिश्र पर्दों की श्रेणियों का निरपेक्ष तथा सप्रतिबंध अभिसरण, श्रेणी का पुनर्विन्यास ।

फलनों का सांतत्य एवं एक समान सांतत्य, संहत समुच्चयों पर सांतत्य फलनों के गुणधर्म ।

रीमान समाकल, अनंत समाकल, समाकलन-गणित के मूल प्रमेय । फलनों के अनुक्रमों तथा श्रेणियों के लिए एक-समान अभिसरण, सांतत्य, अवकलनीयता एवं समाकलनीयता, अनेक (दो या तीन) चरों के फलनों के आंशिक अवकलज, उज्ज्विज एवं अल्पिज।

3. सम्मिश्र विप्लेषण :

विप्लेषिक फलन, कोशी-रीमान समीकरण, कोशी प्रमेय, कोशी का समाकल सूत्र, विप्लेषिक फलन का यात श्रेणी निरूपण, टेलर श्रेणी, विचित्रताएं, लोरी श्रेणी, कोशी अनशेष प्रमेय, कन्द्रूर समाकलन ।

4. रैखिक प्रोग्रामन :

रैखिक प्रोग्रामन समस्याएं, आभारी हल, आभारी सुसंगत हल एवं इष्टतम हल, हलों को आलेखी विधि एवं एकथा विधि, द्वैतता । परिवहन तथा वियतन समस्याएं ।

5. आंशिक अवकल समीकरण :

तीन विमाओं में गुणवत्‍त एवं आंशिक अवकल समीकरण संरूपण, प्रथम कोटि के रैखिक कल्प आंशिक अवकल समीकरणों के हल, कोशी अभिलक्षण विधि, नियत गुणांकों वाले द्वितीय कोटि के रैखिक आंशिक अवकल समीकरण, विदिश रूप, कवित तंतु का समीकरण, ताप समीकरण, लाप्लास समीकरण एवं उनके हल ।

6. संख्यात्मक विप्लेषण एवं कम्प्यूटर प्रोग्रामन :

संख्यात्मक विधियां द्विविमाजन द्वारा एक चर के बीजगणितीय तथा अयोजीय समीकरणों का हल, रेगुल्ड फाल्स तथा न्यूरल-राफसन विधियां, गाउसीय विद्यकरण एवं गाउस-जॉर्डन (प्रत्यक्ष), गाउस-सीडेल (गुणवर्ती) विधियों द्वारा रैखिक समीकरण निकाय का हल । न्यूनटन का (अग्र तथा पश्य) अंतर्वेशन, लाप्रज्ज का अंतर्वसन ।

संख्यात्मक समाकलन : सफलंयो नियम, सिंपसन नियम, गाउसीय क्षेत्रफलन सूत्र ।

साधारण अवकल समीकरणों का संख्यात्मक हल : आयलर तथा गैस-जुहूट विधियां।

कम्प्यूटर प्रोग्रामन : दिआधारी पद्धति, अंकों पर गणितीय तथा तर्कसंगत संक्रियाएं, अष्ट आभारी तथा पोडस आभारी पद्धतियां, दशमलव पद्धति से एवं दशमलव पद्धति में रूपांतरण, द्विआधारी संख्याओं की योजावली ।

कम्प्यूटर प्रणाली के तत्व तथा मेमरी की संकल्पना, आभारी तर्कसंगत द्वारा तथा सत्य सारभियां पूलीय बीजावली, प्रसामान्य रूप ।

अभिहित पूर्णांकों, विद्वित पूर्णांकों एवं वास्तविक, द्विपरिशुद्धता वास्तविक तथा दीर्घ गुणांकों का निरूपण ।

संख्यात्मक विप्लेषण समस्याओं के हल के लिए कलनविधि और प्रवाह संचित

7. यांत्रिकी एवं तरल गतिकी :

ज्यापीकृत निर्देशांक, डीऐलंवर्ड सिद्धांत एवं लाप्रज्ज समीकरण, हैमिल्टन समीकरण, जड्ल्य आपूर्ण, दो विमाओं में दृढ़ पिंडों को गति ।

सांतत्य समीकरण, अरमान प्रवाह के लिए आयलर का गति समीकरण, प्रवाह रेखाएं, कण का पथ, विमय प्रवाह, द्विविमीय तथा अक्षत: सममित गति, उद्गम तथा अभिगम, भ्रमिल गति, स्थान तरल के लिए नेवियर-स्टोक समीकरण ।


यांत्रिक इंजीनियरी

प्रश्न पड-1

1. यांत्रिकी :

1.1 दृढ़ विंडों की यांत्रिकी

आकाश में साम्यावस्था का समीकरण एवं इसका अनुप्रयोग, क्षेत्रफल के प्रथम एवं द्वितीय घर्षण की सरल समस्याएँ, समतल गति के लिए कणों को शुद्धगतिकी, प्रारंभिक कण गतिकी।

1.2 घिरूपणीय विंडों की यांत्रिकी

व्यापीकृत हुक का नियम एवं इसका अनुप्रयोग, अक्षीय प्रतिवल पर अभिकल्प समस्याएँ, अपरूपण प्रतिबल एवं आधारक प्रतिबल, गतिका भारण के लिए सामग्री के गुण, दंड में बंगन अपरूपण एवं प्रतिबल, मुख्य प्रतिवलों एवं विकृतियों का निर्धारण-विश्लेषिक एवं आलेखी, संयुक्त एवं मिश्रित प्रतिबल, द्विअक्षीय प्रतिबल-रानु भित्तिक दाव भाण्ड, गतिक भार के लिए पदार्थ व्यवहार एवं अभिकल्प कारक, कंवल बंकन एवं मरोड़ी भार के लिए गोल शैफ्ट का अभिकल्प स्थैतिक निर्धारी समस्याओं के लिए दंड का त्रिक्षेप, मंग के सिद्धांत।

2. इंजीनियरी पदार्थ :

ठोसों को आधारभूत संकल्पनाएं एवं संरचना, सामान्य लोह एवं अलोह पदार्थ एवं उनको अनुप्रयोग, स्टीलों का ताप उपचार, अधातु-प्लास्टिक, सेरेमिक, चमिश्र पदार्थ एवं नैनोपदार्थ।

3. यंत्रों का सिद्धांत :

समतल-क्रियाविधियों का शुद्धगतिक एवं गतिक विश्लेषण। कैम, गियर एवं अधिचक्रिक गियरमालाएं, गतिपालक चक्र, अधिनियंत्रक, दृढ़ पूर्णकों का संतुलन, एकल एवं बटुसिलिंडरी इंजन, यांत्रिकतंत्र का रैखिक कथन विश्लेषण (एकल स्वातंत्र्य कोटि), क्रांतिक चाल एवं शैपट का आवर्तन।

4. निर्माण का विज्ञान :

4.1 निर्माण प्रक्रम :

यंत्र औजार इंजीनियरी-व्यापारी बल विश्लेषण, टेलर का औजार आयु समीकरण, रूढ़ मशीनन, NC एवं CNC मशीनन प्रक्रम, जिग एवं स्थायिक।

अरूढ़ मशीनन-EDM, ECM, पराधव्य, जल प्रथार मशीनन, इत्यादि लेजर एवं प्लान्मा के अनुप्रयोग, ऊर्जा दर अवकलन।

रूपण एवं चेल्डन प्रक्रम-मानक प्रक्रम।
मापिकी-अन्धायोजनों एवं सहिष्णुताओं की संकल्पना, औजार एवं प्रमाप, तुलचित्र, लंबाई का निरीक्षण, स्थिति, परिच्छेदिका एवं पृष्ठ संपूर्ति।

4.2 निर्माण प्रबंध :

तंत्र अभिकल्प : फैक्टरी अवस्थिति-सरल OR मॉडल, संयंत्र अभिन्यास-पद्धति आधारित, इंजीनियरी आर्थिक विश्लेषण एवं मंग के अनुप्रयोग-उत्पाद्य चरण, प्रक्रम चरण एवं क्षमता आयोजना के लिए विश्लेषण भी, पूर्व निर्धारित समय मानक।

प्रणाली आयोजना : समाध्रयण एवं अपघटन पर आधारित पूर्वकथन विधियाँ, बहु मॉडल एवं प्रासंभाव्य समन्वयोजन रेखा का अभिकल्प एवं संतुलन, सामग्री सूची प्रबंध-आदेश काल एवं आदेश मात्रा निर्धारण के लिए प्रायिकतात्मक सामग्री सूची मॉडल, JIT प्रणाली, युक्तिमय उद्गमीकरण, अंतर-संयंत्र संभारतंत्र।

तंत्र संक्रिया एवं नियंत्रण :

कृत्यकशाला के लिए अनुसूचक कलन विधि, उत्पाद एवं प्रक्रम गुणता नियंत्रण के लिए सांख्यिकीय विधियों का अनुप्रयोग, माथ्य, परास, दूषित प्रतिशतता, दोषों की संख्या एवं प्रति यूनिट दोष के लिए नियंत्रण चार्ट अनुप्रयोग, गुणता लागत प्रणालियाँ, संसाधन, संगठन एवं परियोजना जोखिम का प्रबंधन।

प्रणाली सुधार : जूझ गुणता प्रबंध, नव्य, कृश एवं दक्ष संगठनों का विकास एवं प्रबंधन जैसी प्रणालियों का कार्यान्वयन।

प्रश्न पड-2

  1. उष्मागतिकी, गैस गतिवलें दूधं टकों यंत्र :
    1.1 उष्मागतिकी के प्रथम नियम एवं द्वितीय नियम की आधारभूत संकल्पनाएं, ऐन्ट्रॉरी एवं प्रतिक्रमणीयता को संकल्पना, उपलब्धता एवं अनुपलब्धता तथा अप्रतिक्रमणीयता ।
    1.2 तरलों का वर्गीकरण एवं गुणधर्म, असंपीडय एवं संपीडय तरल प्रवाह, मैक संख्या का प्रभाव एवं संपीडयता, सातत्य संवेग एवं ऊर्जा समीकरण, प्रसामान्य एवं त्रियंक प्रवाह, एक वित्तीय समएंट्रॉनी प्रवाह, तरलों का बलिका में धर्पण एवं ऊर्जाओंररण के साथ प्रवाह।
    1.3 पंखों, ब्लोअरों एवं संपीड़ियों से प्रवाह, अक्षीय एवं अपकंठी प्रवाह विन्यास, पंखों एवं संपीड़ियों का अभिकल्प, संपीडनों और टरबाइन, सांपानों को सरल समस्याएं गिक्त एवं संवृत चक्र गैस टरबाइन, गैस टरबाइन में किया गया कार्य, पुन:ताप एवं पुनर्जनन।

2. ऊष्मा अंतरण :

2.1 चालन ऊष्मा अंतरण-सामान्य चालन समीकरण-लाप्लास, प्यासों एवं फूरिए समीकरण, चालन का फूरिए नियम, सरल भित्ति ठोस एवं खोखले बेलन तथा गोलकों पर लगा एक वित्तीय स्थायी दशा ऊष्मा चालन ।
2.2 संवहन ऊष्मा अंतरण-न्यूटन का संवहन नियम, मुक्त एवं प्रणोदित संवहन, चपटे तल पर असपीडय तरल के स्तरीय एवं विश्रुस्थ प्रवाह के दौरान ऊष्मा अंतरण, नसेल्ट संख्या, जलगतिक एवं ऊष्मीय सीमांतपरत एवं उनकी मोटाई की संकल्पनाएं, प्रॉटल संख्या, ऊष्मा एवं संवेग अंतरण के बीच अनुरूपता-रेनॉल्ड्स कोलबर्न, प्रॉटल अनुरूपताएं, क्षैतिज नलिकाओं से स्तरीय एवं विश्रुस्थ प्रवाह के दौरान ऊष्मा अंतरण, क्षैतिज एवं ऊध्वांधर तलों से मुक्त संवहन।
2.3 कृष्णिका विकिरण-आधारभूत विकिरण नियम, जैसे कि, स्टीफन बोल्ट्जमैन, प्लांक वितरण, वीन विस्थापन, आदि।
2.4 आधारभूत ऊष्मा विनिमयित्र विश्लेषण, ऊष्मा विनिमयित्रों का वर्गीकरण।


3. अंतर्दहन इंजिन :

3.1 वर्गीकरण, संक्रिया के ऊष्मागतिक चक्र, भंग शक्ति, सूचित शक्ति, यांत्रिक दक्षता, ऊष्मा समायोजन चादर, निष्पादन अभिक्षण का निर्वचन, पेट्रोल, गैस एवं डीजल इंजिन ।
3.2 SI एवं CI इंजिनों में दहन, सामान्य एवं असामान्य दहन, अपस्फोटन पर कार्यशील प्राचलों का प्रभाव, अपस्फोटन का न्यूनीकरण, SI एवं CI इंजिनों के लिए दहन प्रकोष्ठ के प्रकार, योजक, उत्सर्जन ।
3.3 अंतर्दहन इंजिनों की विभिन्न प्रणालियाँ-ईंधन, स्नेहन, शीतन एवं संचरण प्रणालियाँ, अंतर्दहन इंजिनों में विकल्पी ईंधन ।

4. भाप इंजीनियरी :

4.1 भाप जनन-आशोधित रैंकिन चक्र विश्लेषण, आधुनिक भाप बॉयलर, क्रांतिक एवं अधिक्रांतिक दावों पर भाप, प्रवाह उपस्कर, प्राकृतिक एवं कृत्रिम प्रवाह, बॉयलर ईंधन, ठोस, द्रव एवं गैसीय ईंधन, भाप टरबाइन-सिद्धांत, प्रकार, संयोजन, आवेग एवं प्रतिक्रिया टरबाइन, अक्षीय प्रणोद ।
4.2 भाप तुंड-अभिसारी एवं अपसारी तुंड में भाप का प्रवाह, आर्द्र, संतृप्त एवं अधितप्त जैसी विभिन्न प्रारम्भिक भाप दशाओं के साथ, अधिकतम निस्सरण के लिए कंठ पर दाब, पश्चदाब विचरण का प्रभाव, तुंडों में भाप अधिसंतृप्त प्रवाह, विलसन रेखा ।
4.3 आंतरिक एवं बाह्य अग्रतिक्रम्यता के साथ रैंकिन चक्र, पुनस्ताप गुणक, पुनस्तापन एवं पुनर्जनन, अधिनियंत्रण विधियां, पश्च दाब एवं उपनिकासन टरबाइन ।
4.4 भाप शक्ति संयंत्र-प्रयुयत चक्र शपित जनन, उष्मा पुनःप्राप्ति भाप जनित्र (HRSG) तप्त एवं अतप्त, सहजनन संयंत्र।

5. प्रशीतन एवं वातानुकूलन :

5.1 वाष्प संयोडन प्रशीतन चक्र-p-H एवं T-s आरेखों पर चक्र, पर्यावरण अनुकूली प्रशीतक द्रव्य-R $134 \mathrm{a}, \mathrm{R} 123$, वाष्पित्र द्रवणित्र, प्रसरण साधन जैसे तंत्र सरल वाष्प अवशोषण तंत्र।
5.2 आर्द्रतामिति-गुणधर्म, प्रक्रम, लेखाचित्र, संबंध तापन एवं शीतन, आर्द्रीकरण एवं अनार्द्रीकरण प्रभावी तापक्रम, वातानुकूलन भार परिकलन, सरल वाहिनी अभिकल्प।

चिकित्सा विज्ञान

प्रश्न पत्र-1

1. मानव शरीर :

उपरि एवं अधोशाखाओं, स्कंधसंधियों, कूल्हे एवं कलाई में रक्त एवं तंत्रिका संभरण समंत अनुप्रयुक्त शरीर ।

सकलशारीर, सक्तसंभरण एवं जिज्ञुता का लिफीय अपवाह, थायरॉइड, स्तन ग्रंथि, जठर, यकृत, प्रॉस्टेट, जननग्रंथि एवं गर्भाशय ।

डायाफ्राम, पेरीनिदम एवं वंक्षणप्रदेश का अनुप्रयुक्त शरीर ।
वृक्क, मूत्राशय, गर्भाशय नलिकाओं, शुक्रवाहिकाओं का रोगलक्षण शरीर ।

प्रूणचिज्ञान : अपरा एवं अपरा रोध । हृदय, आंत्र, डुक्क, गर्भाशय, डिंबग्रंथि, वृषण का विकास एवं उनकी सामान्य जन्मजात असामान्यताएं ।

केन्द्रीय एवं परिसरीय स्वसंचालित तंत्रिका तंत्र :

मस्तिष्क के निलयों, प्रमस्तिकमेरु द्रव के परिभ्रमण का सकल एवं रोगलक्षण शरीर, तंत्रिका मार्ग एवं त्वचीय संवेदन, श्रवण एवं दृष्टि विक्षित, कपाल तंत्रिकाएं, वितरण एवं रोगलाक्षणिक महत्व, स्वसंचालित तंत्रिका तंत्र के अवयव ।

2. मानव शरीर क्रिया विज्ञान :

अवेग का चालन एवं संचरण, संकुचन की क्रियाविधि, तंत्रिका-पेशीय संचरण, प्रतिवर्त, संतुलन नियंत्रण, संस्थिति एवं पेशी-तान, अवरोही मार्ग, अनुमस्तिक के कार्य, आधारी गाँडकाएं, निद्रा एवं चेतना का क्रियाविज्ञान ।

अंतःस्त्रावी तंत्र : हार्मोन क्रिया की क्रियाविधि, रचना, स्त्रण, परिवहन, उपापचय, पैंक्रियाज एवं पीयूष ग्रंथि के कार्य एवं स्त्रण नियमन ।

जनन तंत्र का क्रिया विज्ञान : आर्तवचक्र, स्तन्यस्त्रण, सगर्भता रक्त : विकास, नियमन एवं रक्त कोशिकाओं का परिणाम । हृद्वाहिका, हृद्निस्पादन, रक्तदाब, हृद्वाहिका कार्य का नियमन ।

3. जैव रसायन :

अंगकार्य परीक्षण-यकृत, वृक्क, थायरॉइड ।
प्रोटीन संश्लेषण ।
विटामिन एवं खनिज ।
निर्बन्धन विखंड दैर्घ्य बहुरूपता (RFLP)
पॉलीमेरेज श्रृंखला प्रतिक्रिया (PCR)
रेडियो-इम्यूनोऐसे (RIA)

4. विकृति विज्ञान :

थोथ एवं विरोहण, वृद्धि विखोथ एवं कँन्सर रहयुमैटिक एवं इस्कीमिक हृदय रोग एवं डायबिटीज मेलिटस का विकृतिजनन एवं ऊतकविकृति विज्ञान ।

सुदम्य, दुर्दम, प्राथमिक एवं विक्षेपी दुर्दमता में विभेदन, श्वसनीजन्य कार्सिनोमा का विकृतिजनन एवं ऊतकविकृति विज्ञान, स्तन कार्सिनोमा, मुख कँसर, ग्रीवा कँसर, ल्यूकोमिया, यकृत सिरोसिस, स्तवकवृक्कशोथ, यक्ष्मा तीव्र अस्थिमन्जाशोथ का हेतु, विकृतिजनन एवं ऊतक विकृति विज्ञान ।

5. सूक्ष्म जैविकी :

देहद्ववी एवं कोशिका माथ्यमित रोगक्षमता
निम्नलिखित रोगकारक एवं उनका प्रयोगशाला निदान :
-मेर्निगोकॉक्कस, सालमोनेला
-शिगेला, हर्पीज, डेंगू, पोलियो


-HIV/AIDS, मलेरिया, ई-हिस्टोलिटिका, गिंगार्डिया
-फीडिडा, क्रिप्टोकॉक्सस, ऐरपजिलस
6. भेषजगुण विज्ञान :

निम्नलिखित औषधों के कार्य की क्रियाविधि एवं पार्श्वप्रभाव :
-ऐन्टिपायरेटिक्स एवं एनाल्जेसिक्स, ऐन्टिकमेटिक्स, ऐन्टियलेरिया, ऐन्टिकालाजार, ऐन्टिडायामेटिक्स
-ऐन्टिडायपरटेंसिव, ऐन्टिडाइयूरेटिक्स, सामान्य एवं हृद यासोडिलेटर्स, ऐन्टियाइरल, ऐन्टिवैगसिटिक, ऐन्टिकंगल, ऐन्टिकंगल, इम्यूनोग्रॉरेटस
-ऐन्टिकॅसर
7. न्याय संबंधी औषध एवं विषविज्ञान :

क्षति एवं घावों की न्याय संबंधी परीक्षा, रक्त एवं शुक्र धब्बों की परीक्षा, विषाक्तता, शामक अतिमात्रा, फांसी, डूबना, तलना, DNA एवं फिंगरप्रिंट अध्ययन।

प्रश्न पत्र-2

1. सामान्य कार्यचिकित्सा :

टेटेनस, रैबीज, AIDS, डॅग्यू, काला-आजार, जापानी एसोफेलाइटिस का हेतु, रोग लक्षण विशेषताएं, निदान एवं प्रबंधन (निवारण सहित) के सिद्धांत ।

निम्नलिखित के हेतु, रोगलक्षण विशेषताएं, निदान एवं प्रबंधन के सिद्धांत-

इस्कीमिक हृदय रोग, फुफ्फूूूूू अन्तःशल्यता
श्वसनी अस्थमा
फुफ्फूूूासावरणी नि:सरण, यक्ष्मा, अपावशोषण संलक्षण, अम्ल पेप्टिक रोग, विषाणुज गकृतशोथ एवं यकृत सिरोसिस ।

स्तवकवृक्कशोथ एवं गोणिकावृक्कशोथ, वृक्कपात, अपवृक्कीय संलक्षण, वृक्कपाहिका अतिरिक्तदाव, डायबिटीज मेलिटस के उपडव, स्कंदनविकार, ल्यूकोरेभिया, अव-एवं-अति-थायरॉइडिज्म, मेनिन्डायटिस एवं एन्सेफेलाइटिस ।

चिकित्सकीय समस्याओं में इमेजिंग, अल्ट्रासाउंड, ईको, कार्डियोग्राम, CT सर्केन, MRI.

चिन्ता एवं अवसाद मनोविश्लेष्त एवं विखंडित-मनस्कता तथा ECT
2. बालरोग विज्ञान :

रोगप्रतिरोधीकरण, चेवी-फ्रेंडली अस्पताल, जन्मजात श्याय हृदय रोग श्वसन विश्लेष्त संलक्षण, श्वसनी-फुफ्फूूूासशोथ, प्रमस्तिष्कीय नवजात कामला, IMNCI वर्गीकरण एवं प्रबंधन, PEM फोटिकरण एवं प्रबंध । ARI एवं पांच वर्ष से छोटे शिशुओं को प्रवाहिका एवं उसका प्रबंध।

3. स्वथा विज्ञान :

सोरिएसिस, एलर्जिक डमेटाइटिस, स्कोबीज, एक्जीमा, विटिलियो, स्टीवन, जानसन संलक्षण, लाइकोन प्लेनस ।

4. सामान्य शल्य चिकित्सा :

खंडाग्राहु खंडोप्त की रोगलक्षण विशेषता, कारण एवं प्रबंध के सिद्धांत ।

सररवंडीय अर्बुद, मुख एवं ईसोफंगस अर्बुद । परिधीय धमनी रोग, चेरिकोज चेना, गहाधमनी संकुचन थायराइड, अधिवृक्क ग्रंथि के अर्बुद

फोड़ा, कॅसर, स्तन का तंतुग्रंथि अर्बुद एवं ग्रंथिलता पेप्टिक अल्सर रक्तस्कव, अंध यक्ष्मा, अल्सरेटिव कोलाइटिस, जठर कॅसर वृक्क मास, प्रोस्टेट स्टैसर

होमोथोरैक्स, पित्ताशय, वृक्क, यूरेटर एवं मूत्राशय की पथरी । रेक्टन, एनस, एनल कॅनल, पित्ताशय एवं पित्तवाहिनी की शल्य दशाओं का प्रबंध

सप्लीनोमेनैली, कालीसिस्टाइटिस, पोर्टल अतिरकादाव, यकृत फोड़ा, पेरोटोनाटिस, पेंक्रियाज शोर्घ कार्सिनामा ।

रोड़ विभंग, कोली विभंग एवं अस्थि ट्यूमर एंडोस्कोपी लैप्रोस्कोपिक सर्जरी ।

5. प्रसूति विज्ञान एवं परिवार नियोजन समेत स्त्री रोग विज्ञान

सगर्भता का निदान प्रसव प्रबंध, तृतीय चरण के उपडव, प्रसवपूर्ण एवं प्रसवेतर रक्त स्कव, नवजात का पुनरुज्जीवन, असामान्य स्थिति एवं कठिन प्रसव का प्रबंध, जालपूर्व (प्रसव) नवजात का प्रबंध । अरक्तता का निदान एवं प्रबंध ।

सगर्भता का प्रोएक्लॅप्सिया एवं टाक्सोमिया, स्लोनिवृत्त्त्र संलक्षण का प्रबंध। इंट्रा-यूटैरोन युक्तियां, गोलियां, ट्यूबेटॉमी एवं वैसेक्टॉमी ।

सगर्भता का चिकित्सकीय समापन जिसमें विधिक पहलू शामिल हैं ।
ग्रीष्म कॅसर ।
ल्यूकोरिया, क्षीणि वेदना, वंध्यता, डिसफंक्शनल यूटेरोन, रक्तस्त्राव (DUB), अमोनोरिया, यूटरस का तंतुपेशी अर्बुद एवं प्रंश ।
6. स्युदाय फायचिकित्सा ( निवारक एवं सामाजिक कार्य चिकित्सा )

सिद्धांत, प्रणाली, उपागम एवं जानपदिक रोग विज्ञान का मापन; पोषण, पोषण संबंधी रोग/विकार एवं पोषण कार्यक्रम । स्वास्थ्य सूचना संग्रहण, विश्लेषण, एवं प्रस्तुति ।

निम्नलिखित के नियंत्रण/उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रमों के उद्देश्य, घटक एवं कातिक विश्लेषण :

मलेरिया, काला आजार, फाइलेरिया एवं यक्ष्मा; HIV/AIDS, यौन संक्रमित रोग एवं डॅगू स्वास्थ्य देखभाल प्रदाय प्रणाली का कातिक मूल्यांकन

स्वास्थ्य प्रबंधन एवं प्रशासन : तकनीक, साधन, कार्यक्रम कार्यान्वयन एवं मूल्यांकन

जनन एवं शिशु स्वास्थ्य के उद्देश्य, घटक, लक्ष्य एवं स्थिति, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन एवं सहस्त्राव्दी विकास लक्ष्य ।

अस्पताल एवं औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंध ।


दर्शन शास्त्र

प्रश्न पत्र-1

दर्शन का इतिहास एवं समस्याएं :

I. प्लेटो एवं अरस्तू : प्रत्यय; द्रव्य; आकार एवं पुरगत; कार्यकारण भाव; वास्तविकता एवं शक्यता ।
2. तर्कबुद्धिवाद (देकार्त, स्यिनोजा, लीबनिज) : देकार्त की पद्धति एवं असंदिग्ध ज्ञान; द्रव्य; परमात्मा; मन-शरीर द्वैतवाद; नियतत्ववाद एवं स्वातव्य ।
3. इंद्रियानुभव (लॉक, बर्कले, ह्यूम); ज्ञान का सिद्धांत; द्रव्य एवं गुण; आत्मा एवं परमात्मा; संशयवाद ।
4. कांट : संश्लेषात्मक प्रागनुभविक निर्णय की संभवता; दिक एवं काल; पदार्थ; तर्कबुद्धि प्रत्यय; विप्रतिषेध; परमात्मा के अस्तित्व के प्रमाणों की मीमांसा ।
5. होलेग : द्वंद्वात्मक प्रणाली; परमप्रत्यवाद ।
6. मूर, रसेल एवं पूर्ववर्ती विटगेन्स्टीन; सामान्य बुद्धि का मंडन; प्रत्ययवाद का खंडन; तार्किक परमाणवाद; तार्किक रचना; अपूर्ण प्रतीक; अर्थ का चित्र सिद्धांत; उक्ति एवं प्रदर्शन ।
7. तार्किक प्रत्यक्षवाद; अर्थ का सत्यापन सिद्धांत; तत्वमीमांसा का अस्वीकार; अनिवार्य प्रतिज्ञप्ति का भाषिक सिद्धांत ।
8. उत्तरवर्ती विट्गेंस्टीन : अर्थ एवं प्रयोग; भाषा-खेल; व्यक्ति भाषा की मीमांसा ।
9. संवृतिशास्त्र (हर्सल); प्रणाली; सार सिद्धांत; मनोविज्ञानपरता का परिहार ।
10. अस्तित्वपरकतावाद (कीकंगार्द, सार्व, होडेगर); अस्तित्व एवं सार; वरण, उत्तरदायित्व एवं प्र्रमाणिक अस्तित्व; विश्वनिसत एवं कालसता ।
11. क्वाइन एवं स्ट्रासन : इंद्रियानुभववाद की मीमांसा; मूल विशिष्ट एवं व्यक्ति का सिद्धांत ।
12. चार्वाक : ज्ञान का सिद्धांत; अतींद्रिय सत्वों का अस्वीकार ।
13. जैनदर्शन संप्रदाय; सत्ता का सिद्धांत; सप्तभंगी न्याय; बंधन एवं मुक्ति ।
14. बौद्धदर्शन संप्रदाय; प्रतीत्यसमुत्पाद; क्षणिकवाद, नैराश्र्यवाद ।
15. न्याय-वैशेषिक : पदार्थ सिद्धांत; आभास सिद्धांत; प्रणाम सिद्धांत; आत्मा, मुक्ति; परमात्मा; परमात्मा के अस्तित्व के प्रणाम; कार्यकारण-भाव का सिद्धांत, सृष्टि का परमाणुवादी सिद्धांत ।
16. सांख्य : प्रकृति; पुरुष; कार्यकारण-भाव; मुक्ति ।
17. योग : चित्त; चित्तवृति; क्लेश; समाधि; कौवल्य ।
18. मीमांसा; ज्ञान का सिद्धांत ।
19. वेदांत संप्रदाय : ब्रहमन; ईश्वर; आत्मन; जीव; जगत; माया; अविद्या; अध्यास; मोक्ष; अपृथक सिद्धि; पंचविधभेद ।
20. अरविन्द : विकास, प्रतिविकास; पूर्ण योग ।

प्रश्न पत्र-2

सामाजिक-राजनैतिक दर्शन

  1. सामाजिक एवं राजनैतिक आदर्श; समानता, न्याय, स्वतंत्रता ।

2 प्रभुसत्ता : आस्टिन बोदों, जास्की, कौटिल्य ।
3. व्यक्ति एवं राज्य : अधिकार; कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व ।

  1. शासन के प्रकार : राजतंत्र; धर्मतंत्र एवं लोकतंत्र ।
  2. राजनैतिक विचारधाराएं; अराजकतावाद; मार्क्सवाद एवं समाजवाद ।
  3. मानववाद; धर्मनिरपेक्षतावाद; बहुसंस्कृतिवाद ।
  4. अपराध एवं दंड : भ्रष्टाचार, व्यापक हिंसा, जातिसंहार, प्राणदंड ।
  5. विकास एवं सामाजिक उन्नति ।
  6. लिंग भेद : स्त्रीधूण हत्या, भूमि एवं संपत्ति अधिकार; सशक्तिकरण ।
  7. जाति भेद ; गांधी एवं अम्बेडकर ।

धर्म दर्शन

  1. ईश्वर की धारणा : गुण; मनुष्य एवं विश्व से संबंध (भारतीय एवं पाश्चात्य) ।
  2. ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण और उसकी मीमांसा (भारतीय एवं पाश्चात्य) ।
  3. अशुभ की समस्या ।
  4. आत्मा : अमरता; पुनर्जन्म एवं मुक्ति ।
  5. तर्कबुद्धि, श्रुति एवं आस्था ।
  6. धार्मिक अनुभव : प्रकृति एवं वस्तु (भारतीय एवं पाश्चात्य) ।
  7. ईश्वर रहित धर्म ।
  8. धर्म एवं नैतिकता ।
  9. धार्मिक शुचिता एवं परम सत्यता की समस्या ।
  10. धार्मिक भाषा की प्रकृति : सादृश्यमूलक एवं प्रतीकात्मक; संज्ञानवादी एवं निस्संज्ञानवादी ।

भौतिकी

प्रश्न पत्र-1

1. (क) कण यांत्रिकी

गतिनियम, उर्जा एवं संवेग का संरक्षण, भूर्णी क्रम पर अनुप्रयोग, अपक्रीही एवं कोरियालिस त्वरण; केन्द्रीय बल के अंतर्गत गति; कोणीय संवेग का संरक्षण, कंप्लर नियम, क्षेत्र एवं विभव; गोलीय पिंडों के कारण गुरुत्व क्षेत्र एवं विभव; गौस एवं प्यासों समीकरण, गुरुत्व स्वऊर्जा; द्विपिंड समस्या; समानीत द्रव्यमान; रदरफोर्ड; प्रकीर्णन; द्रव्यमान केन्द्र एवं प्रयोगशाला संदर्भ क्रम ।


(ख) दृढ़ पिण्डों की यांत्रिकी

कणनिकाय; द्रव्यमान कोन्द्र, कोणीय संवेग, गति समीकरण; ऊर्जा, संवेग एवं कोणीय संवेग के संरक्षण प्रमेय; प्रत्यार्ध्य एवं अप्रत्यार्ध्य संघटन; दृढ़ पिंड; स्वतंत्र्य कोटियां, आयलर प्रमेय, कोणीय चेय, कोणीय संवेग, जड़त्व आघूर्ण, समान्तर एवं अभिलम्ब अक्षों के प्रमेय, घूर्णन हेतु गति का समीकरण; आण्विक घूर्णन (दृढ़ पिंडों के रूप में); द्वि- एवं त्रि-परमाण्विक अणु, पुरस्सरण गति, धमि, घूर्णक्षरस्थापी।

(ग) संतत माध्यमों की यांत्रिकी

प्रत्यार्ध्यता, हुक का नियम एवं यमदैशिक टोत्तों के प्रत्यार्ध्यतांक तथा उनके अंतर्संबंध; प्रवाह रेखा (स्तरीय) प्रवाह, श्यानता, प्वायज समीकरण, बरनूली समीकरण, स्टोक नियम एवं उसके अनुप्रयोग।

(च) विशिष्ट आपेक्षिकता

माइकल्सन-मोलॅ प्रयोग एवं इसकी विवक्षाएं; लॉरेंज रूपांतरण-दैर्घ्य-संकुचन, कालवृद्धि, अपेक्षिकीय श्रेणों का योग, विद्ययन तथा डाप्लर प्रभाव, द्रव्यमान-ऊर्जा संबंध, क्षय प्रक्रिया से सरल अनुप्रयोग; चतुर्विणीय संवेग सदिश; भौतिकी के समीकरणों के सहप्रसरण।

2. तरंग एवं प्रकाशिकी

(क) तरंग

सरल आवर्त गति, अवयंदित दोलन, प्रणोदित दोलन तथा अनुनाद; विस्पंद; तंतु में स्थिर तरंगें; स्पंदन तथा तरंग संसाधिकाएं; प्रावस्था तथा समूह दोष; टाईगेन के सिद्धांत से परावर्तन तथा अपवर्तन।

(ख) ज्यामितीय प्रकाशिकी

फरमैट के सिद्धांत से परावर्तन तथा अपवर्तन के नियम, उपाक्षीय प्रकाशिकी में आव्यूह पद्धति—पतले लेंस के सूत्र, रियंद तल, दो पतले लेंसों की प्रणाली, वर्ण तथा गोलीय विपथन।

(ग) व्यतिकरण

प्रकाश का व्यक्तिकरण—यंग का प्रयोग, न्यूटन क्लय, तनु फिल्मों द्वारा व्यतिकरण, माइकल्सन व्यतिकरणमापी; विविध किरणपुंज व्यतिकरण एवं पौत्री-पेस्ट व्यतिकरणमापी।

(च) विवर्तन

फ्रानहोलफर विवर्तन—एकल रेखाचिद्र, विवर्तन प्रेटिंग, विभेदन क्षमता, वित्तीय ह्याका द्वारा विवर्तन तथा शानणीय पैटर्न, प्रोपनेल विवर्तन; अर्द्ध आवर्तन जोन एवं जोन प्लेट, वृत्तीय ह्याक।

(ड.) ध्रुवीकरण एवं आधुनिक प्रकाशिकी

रेखीय तथा वृत्तीय ध्रुवित प्रकाश का उत्पादन तथा अभिमान; द्विअपवर्तन, चतुर्थादश तरंग प्लेट; प्रकाशीय मांशजता; रेशा प्रकाशिकी के सिद्धांत, क्षीणन; स्टेप इंडेक्स तथा परवशचिक इंडेक्स हेतुओं में स्थंद परिक्षेपण; पदार्थ परिक्षेपण, एकल रूप रेशा; लेसर-आइनस्टान ए तथा बी गुणांक, रूबी एवं हीलियम नियान लेसर; लेसर प्रकाश को विशेषताएं-स्थानिक तथा कालिक संबद्धता; लेसर किरण पुंजों का फोकसन; लेसर क्रिया के लिए त्रि-स्तरीय योजना; होलीग्राफी एवं सरल अनुप्रयोग।

3. विद्युत एवं चुम्बकतर

(क) स्थिर वैद्युत एवं स्थिर चुम्बकीय

स्थिर वैद्युत में लम्प्लास एवं प्यासों समीकरण एवं उनके अनुप्रयोग; आवेत्त निकाय की ऊर्जा, आदिश विभव का वदुर्ध्रव प्रसार; प्रतिबिम्ब विधि एवं उसका अनुप्रयोग; द्विध्रुव के कारण विभव एवं क्षेत्र, बाह्य क्षेत्र में द्विध्रुव पर बल एवं बल आघूर्ण। परवैद्युत ध्रुवण; परिसीमा-मान समस्या का हल-एक समान वैद्युत क्षेत्र में चालन एवं परवैद्युत गोलक; चुम्बकीय कोश, एकसमान चुम्बकित बोलक, चुम्बकीय पदार्थ, शैथिल्य, ऊर्जाहास।

(ख) धारा विद्युत

किरचॉफ नियम एवं उनके अनुप्रयोग; बायो-सवार्ट नियम, ऐम्पियर नियम, फराडे नियम, लेंज नियम; रथ एवं अन्योन्य प्रेरकत्व; प्रत्यावर्ती धारा (AC) परिपथ में माध्य एवं वर्गमाध्य मूल (ms) मान, RL एवं C घटक वाले DC एवं AC— परिपथ; श्रेणीबद्ध एवं समानांतर अनुवाद; गुलता कारक; परिमामित्र के सिद्धांत।

(ग) विद्युत चुम्बकीय तरंगें एवं कृत्रिमका विकिरण

विस्थापन माप एवं मैक्सवेल के समीकरण; निर्वात में तरंग समीकरण, प्वाईंटिंग प्रमेय; सदिश एवं आदिश विभव; विद्युत चुंबकीय क्षेत्र प्रदिश, मैक्सवेल समीकरणों का सहप्रसरण; समदैशिक परावैद्युत में तरंग समीकरण दो परवैद्युतों की परिसीमा पर परावर्तन; तथा अपवर्तन; फ्रेंसवल संबंध; पूर्ण आंतरिक परावर्तन; प्रसाधान्य एवं असंगत वर्ण विक्षेपण; रेले प्रकोप्तन; कृत्रिमका विकिरण एवं प्लैंक विकिरण नियम, स्टोकन—योल्टजमैन नियम, वियेन विस्थापन नियम एवं रेले-जीन्स नियम।

4. समीथ एवं सांख्यिकीय भौतिकी

(क) उष्मागतिकी

उष्मागतिकी का नियम, उत्क्रमण तथा अप्रतिक्रम्य पक्रम, एन्द्रापी, समतापी, रूद्रोष्म, समताप, समजागमन पक्रम एवं एन्द्रापी परिवर्तन; ऑटो एवं डीजल इंजिन, पिक्स प्रावस्था नियम एवं रासायनिक विभव, घासातिक गैस अवस्था के लिए बांडरवाहस समीकरण, क्रांतिक स्थिसंक, आण्विक चेय का मैक्सवेल योल्टजमान वितरण, परिवहन परिघटना, समविभाजन एवं योरियल प्रमेय; टोत्तों की विशिष्ट उष्मा के डयूलां-पेती, आइंस्टाइन, एवं डेवी सिद्धांत; मैक्सवेल संबंध एवं अनुप्रयोग; क्लासियस क्लेपरॉन समीकरण, रूद्रोष्म वितुंजकन, जूल कॉल्विन प्रभाव एवं गैसों का द्रवण।

(ख) सांख्यिकीय भौतिकी

रूद्रुत एवं पूरम अवस्थाएं, सांख्यिकीय बंटन, मैक्सवेल—योल्टजमान, योस—आइंस्टान एवं फार्मे-दिराक बंटन, गैसों की विशिष्ट ऊष्मा एवं कृत्रिमका विकिरण में अनुप्रयोग; नकारात्मक ताप की संकल्पना।

प्रश्न पत्र-2

1. क्वांटम यांत्रिकी

कण तरंग दैतता, ओडिगर समीकरण एवं प्रत्याशामान; अनिश्चितता सिद्धांत, युक्तकण, बाक्स में कण, परिमित कूप में कण के लिए एक विभोय ओडिगर समीकरण का हल (गाउसीय तरंग—वेस्टन), रैखिक


आवर्ती लोलक; पग-निभव हारा एवं आगताकार रोधिका द्वारा पाव्यर्तन एवं संचरण; त्रिविनीय याक्स में कथा अवस्थाओं का वक्य, आयुओं का मुक्त इलेक्ट्रान सिद्धांत, कोणीय संयंत्र, हाइड्रोजन परमाणु, अर्द्धप्रकरण कण, पातली प्रचक्रण आण्ट्रुों के गुणधर्म ।

2. परमाण्विक एवं आण्विक भौतिकी

स्टर्न-गर्लक प्रयोग, इलेक्ट्रान प्रचक्रण, हाइड्रोजन परमाणु की सूक्ष्म संरचना; L-8 सुम्मन, J-1 सुम्बन, परमाणु अवस्था का स्वत:ही संकोतन, जोनान प्रभाव, चौक कोंडीन सिद्धांत एवं अनुप्रयोग; ट्रिपरमाइक निकअणु के पूर्णवों, कांपनिक एवं इलेक्ट्र्याक्ट्रयों का प्राथमिक सिद्धांत; रमन प्रभाव एवं आण्विक संरचना; रोसर रमन स्नेक्ट्रॉमको; खगनिक्की में उदासीन हाइड्रोजन परमाणु, आण्विक हाइड्रोजन एवं आण्विकर हाइड्रोजन आयन का महत्व; प्रतिदीप्ति एवं स्फुट्टोचि; NMR एम EM का सम्प्रयास सिद्धांत एवं अनुप्रयोग, लैम्बसुति की प्राथमिक चरम्या एवं इसका महत्व ।

3. नाभिकीय एवं कण भौतिकी

मूलभूत नाभिकीय गुणधर्म-आकार, संचय ऊर्जा, कोणीय संयंत्र, समता, चुंबकीय आघूर्ण; अर्द्ध-आनुभाविक द्रव्यमान सूत्र एवं अनुप्रयोग, द्रव्यमान परवलय; ह्यूप्ट्रेशन की मूल अवस्था, नाभिकीय आघूर्ण एवं अकोशीय बल; नाभिकीय बलों का मेधान सिद्धांत, नाभिकीय प्रकार की प्रमुख विशेषताएं; नाभिक का कोश माटल-सफलताएं एवं तीमाएं; वीटाइम्स में सज्जा का उल्लंघन; गाना द्वारा एवं आकर्षण उपलक्षण, मासबोर स्नेक्ट्रॉमको की प्राथमिक धारणा; नाभकोष अभिक्रियाओं का न मान; नाभिकीय विखंडन एवं संलयन, तारखों में ऊर्जा उत्पादन; नाभिकीय रियेक्टर ।

मूल कणों का वर्गीकरण एवं उनकी अन्यदोन्यक्रियाएं; संरक्षण नियम; हेड्रोंनो को क्वाक संरचना; क्षीण वैद्युत एवं प्रबल अन्योन क्रिया का क्षेत्र, क्वांटा; बलों के एकीकरण की प्राथमिक धारणा; न्यूट्रिनो की भौतिकी ।

4. ठोस अवस्था भौतिकी, यंत्र एवं इलेक्ट्रॉनिकी

पदार्थ को क्रिस्टलोय एवं अलिस्टलोय संरचना; विभिन्न क्रिस्टल निकाय, आकाशी समूह; क्रिस्टल संरचना निर्धारण को विधियां; X-किरण विवर्तन; क्रमवीक्षण एवं संचरण इलेक्ट्रान स्लूपदर्शी; ठोसों का पट्ट सिद्धांत चालक, निसुतरोधी एवं अर्द्धचालक; ठोसों के कृत्रिम गुणधर्म, विशिष्ट ऊष्मा, ह्रेसी सिद्धांत; चुम्बकत्व; प्रति, अनु एवं लोह चुम्बकत्व; अतिचालकता के अवयव; माइंडर प्रभाव; जोरोफरान संधि एवं अनुप्रयोग; उच्च तापक्रम अतिचालकता की प्राथमिक धारणा । नेत्र एवं वाहन अर्द्धचालक; p-n-p एवं n-p-n द्रुत्विक्स, अर्धक एवं वेलित, सोरायात्मक प्रवर्धक; FET, JFET एवं MOSFET; अंकोय इलेक्ट्रॉनिक-न्यूलोय तत्वमक, डो मार्शन नियम, कण द्वारा एवं अन्य सारणियां; सरल तत्व परिपथ, ऊष्म प्रतिरोधी, सोर सेल; माइक्रोप्रोसेसर एवं अंकोय कण्युटरों के मूल सिद्धांत ।

राजनीति विज्ञान एम अंटरटिप्टीय संक्षेप

एडन एड-१
राजनैतिक सिद्धांत एवं भारतीय राजनीति

  1. राजनीतिक सिद्धांत : अर्थ एवं उपागम ।

  2. राज्य के सिद्धांत : उदारवादी, नवउदारवादी, मार्क्सवादी, बहुवादी, पृथ्य-उपनिवेशी एवं नार अधिकारवादी ।

  3. न्याय : रॉल के न्याय के सिद्धांत के विशेष संदर्भ में न्याय के संप्रत्यय एवं इसके समुदायवादी समालोचक ।
  4. समाजता : सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक; समानता एवं स्वतंत्रता से सीध संक्षेप; सकारात्मक कार्य ।
  5. अधिकार : अर्थ एवं सिद्धांत; विभिन्न प्रकार के अधिकार; पारदर्शीकरण की संकल्पना ।
  6. लोकतंत्र : व्यवसिकी एवं समयकालीन सिद्धांत; लोकतंत्र के विभिन्न मॉडल-प्रतिनिधिक, सहभागी एवं निमर्शों ।
  7. शक्ति, प्राधान्य विचारधारा एवं वैधता की संकल्पना ।
  8. राजनैतिक विचारधाराएं : उदारवाद, समाजवाद, मार्क्सवाद, फॉरमोवाद, गथियार एवं नारी-अधिकारवाद ।
  9. भारतीय राजनैतिक भिन्नान : धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र एवं बौद्ध परम्पराएं; सर सैण्ड राइभद खान, डी अरविंद, एम. के. गांधी, बी. आर. अरवेंडनार, एम. एम. रॉय ।
  10. पाश्चात्य राजनैतिक भिन्नान : प्लेटो अरस्तू, मैकिभावेली, हाव्स, लॉक, जॉन. एस. मिल, मार्क्स, ग्रामको, हान्ना आरेंज ।

भारतीय शासन एवं राजनैतिक

  1. भारतीय राष्ट्रवाद;
    (क) भारत के स्वाधीनता संग्राम को राजनैतिक कार्यनीतियां; संविधानवाद से जन सत्याग्रह, असहयोग, सविनय अथवा एवं भारत छोड़ी; उदारवादी एवं क्रांतिकारी आंदोलन, किसान एवं कामगार आंदोलन ।
    (ख) भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के परिप्रेक्ष्य : उदारवादी, समाजवादी एवं मार्क्सवादी; डग़ मानवतावादी एवं दलित ।
  2. भारत के संविधान का निर्माण : ब्रिटिस शासन का रिक्थ; विभिन्न सामाजिक एवं राजनैतिक परिप्रेक्ष्य ।
  3. भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताएं : प्रस्तावना, मौलिक अधिकार तथा कर्त्तव्य नीति निर्देशक सिद्धांत, संसदीय प्रणाली एवं संशोधन प्रक्रिया; न्यायिक पुनर्विलोकन एवं मूल संरचना सिद्धांत ।
  4. (क) संघ सरकार के प्रधान अंग : कार्यपालिका, विधायिका एवं सर्वोच्च न्यायालय को विचारित भूमिका एवं वास्तविक कार्यप्रणाली ।

(ख) राज्य सरकार के प्रधान अंग : कार्यपालिका, विधायिका एवं उच्च न्यायालयों को विचारित भूमिका एवं वास्तविक कार्य-प्रणाली।
5. आधारिक लोकतंत्र : पंचायती राज एवं नगर शासन; 73वें एवं 74वें संशोधनों का महत्व ; आधारिक आंदोलन ।
6. सांविधिक संस्थाएं/आयोग : निर्वाचन आयोग, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, वित्त आयोग, संघ लोक सेवा आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जातियां आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजातियां आयोग, राष्ट्रीय


महिला आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ।
7. सभेरत्न्य पद्धति : सांविधानिक उपबंध, कंन्द्र रत्न्य संबंधों का बदलता स्वरूप, एकीकरणवादी प्रवृत्तियां एवं क्षेत्रीय आकांक्षाएं; अंतर-रत्न्य विवाद ।
8. योजना एवं आर्थिक विकास : नेहरूवादी एवं गांधीवादी परिप्रेक्ष्य, योजना की भूमिका एवं निजी क्षेत्र, हरित क्रांति भूमि सुधार एवं कृषि संबंध, उदारीकरण एवं आर्थिक सुधार ।
9. भारतीय राजनीति में जाति, धर्म एवं नृजातीयता ।
10. दल प्रणाली : राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनैतिक दल, दलों के वैचारिक एवं सामाजिक आधार, बहुदलीय राजनीति के स्वरूप, दबाव समूह, निर्वाचक आचरण की प्रवृत्तियां, विधायकों के बदलते सामाजिक-आर्थिक स्वरूप ।
11. सामाजिक आंदोलन : नागरिक स्वतंत्रताएं एवं मानवाधिकार आंदोलन; महिला आंदोलन, पर्यावरण आंदोलन ।

प्रश्न पत्र-2

तुलनात्मक राजनीति तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तुलनात्मक राजनैतिक विश्लेषण एवं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति

  1. तुलनात्मक राजनीति : स्वरूप एवं प्रमुख उपागम : राजनैतिक अर्थव्यवस्था एवं राजनैतिक समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य : तुलनात्मक प्रक्रिया की सीमाएं।
  2. तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य में रत्न्य; पूंजीवादी एवं समाजवादी अर्थव्यवस्थाओं में रत्न्य के बदलते स्वरूप एवं उनकी विशेषताएं तथा उन्नत औद्योगिक एवं विकासशील समाज ।
  3. राजनैतिक प्रतिनिधान एवं सहभागिता: उन्नत औद्योगिक एवं विकासशील सभाओं में राजनैतिक दल, दबाव समूह एवं सामाजिक आंदोलन ।
  4. भूमंडलीकरण : विकसित एवं विकासशील समाजों से प्राप्त अनुक्रियाएं।
  5. अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन के उपागम : आदर्शवादी, यथार्थवादी, मार्क्सवादी, प्रकार्यवादी एवं प्रणाली सिद्धांत।
  6. अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में आधारभूत संकल्पनाएं : राष्ट्रीय हित, सुरक्षा एवं शक्ति; शक्ति संतुलन एवं प्रतिरोध; पर-राष्ट्रीय कर्ता एवं सामूहिक सुरक्षा; विश्व पूंजीवादी अर्थव्यवस्था एवं भूमंडलीकरण।
  7. बदलती अंतर्राष्ट्रीय राजनीति व्यवस्था :
    (क) महाशक्तियों का उदय : कार्यनोतिक एवं वैचारिक द्विधुरोयता, शास्त्रीकरण की होड़ एवं शीत युद्ध; नाभिकीय खतरा ।
  8. अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का उदभव : ब्रेटनवुड से विश्व व्यापार संगठन तक । समाजवादी अर्थव्यवस्थाएं तथा पारस्परिक आर्थिक सहायता परिषद (CMEA); नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की तृतीय विश्व की मांग; विश्व अर्थव्यवस्था का भूमंडलीकरण ।

  9. संयुक्त राष्ट्र : विचारित भूमिका एवं वास्तविक लेखा-जोखा; विशेषीकृत संयुक्त राष्ट्र अभिकरण-लक्ष्य एवं कार्यकरण; संयुक्त राष्ट्र सुधारों की आवश्यकता ।

  10. विश्व राजनीति का क्षेत्रीयकरण : EU,ASEAN,APEC, SAARC, NAFTA।
  11. समकालीन वैश्विक सरोकार : लोकतंत्र, मानवाधिकार, पर्यावरण, लिंग न्याय, आंतकवाद, नाभिकीय प्रसार।

भारत तथा विश्व

  1. भारत की विदेश नीति : विदेश नीति के निर्धारक, नीति निर्माण की संस्थाएं; निरंतरता एवं परिवर्तन ।
  2. गुट निरपेक्षता आंदोलन को भारत का योगदान : विभिन्न चरण; वर्तमान भूमिका ।
  3. भारत और दक्षिण एशिया :
    (क) क्षेत्रीय सहयोग : SAARC- पिछले निष्पादन एवं भावी प्रत्याशाएं ।
    (ख) दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र के रूप में ।
    (ग) भारत की “पूर्व अभिमुख” नीति ।
    (घ) क्षेत्रीय सहयोग की बाधाएं : नदी जल विवाद; अवैध सीमा पार उत्प्रवासन; नृजातीय द्वंद एवं उपप्लव; सीमा विवाद ।
  4. भारत एवं वैश्विक दक्षिण : अफ्रीका एवं लातानी अमेरिका के साथ संबंध; एनआईआईओ एवं डब्ल्यूटीओ वार्ताओं के लिए आवश्यक नेतृत्व की भूमिका ।
  5. भारत एवं वैश्विक शक्ति कंन्द्र : संयुक्त रत्न्य अमेरिका; यूरोप संघ (ईयू); जापान, चीन और रूस ।
  6. भारत एवं संयुक्त राष्ट्र प्रणाली : संयुक्त राष्ट्र शान्ति अनुरक्षण में भूमिका; सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता की मांग ।
  7. भारत एवं नाभिकीय प्रश्न : बदलते प्रत्यक्षण एवं नीति ।
  8. भारतीय विदेश नीति में हाल के विकास : अफगानिस्तान में हाल के संकट पर भारत की स्थिति; इराक एवं पश्चिम एशिया; यूएस एवं इजराइल के साथ बढ़ते संबंध; नई विश्व व्यवस्था की दृष्टि।

मनोविज्ञान

प्रश्न पत्र-I
मनोविज्ञान के आधार

1. परिचय :

मनोविज्ञान की परिभाषा : मनोविज्ञान का ऐतिहासिक पूर्ववृत्त एवं 21वीं शताब्दी में प्रवृत्तियाँ। मनोविज्ञान एवं वैज्ञानिक पद्धति, मनोविज्ञान का अन्य सामाजिक और प्राकृतिक विज्ञानों से संबंध; सामाजिक समस्याओं में मनोविज्ञान का अनुप्रयोग ।
2. मनोविज्ञान की पद्धति :

अनुसंधान के प्रकार-वर्णनात्मक, मूल्यांकनी, नैदानिक एवं पूर्वानुमानिक । अनुसंधान पद्धति; प्रेक्षण, सर्वेक्षण, व्यक्ति अध्ययन एवं प्रयोग; प्रयोगात्मक तथा अग्रयोगात्मक अभिकल्प की विशेषताएं । परीक्षण सट्टा अभिकल्प; केन्द्रीय समूह चर्चा, विचारावेश, आधार सिद्धांत उपागम ।


3. अनुसंधान प्रणालियां :

मनोवैज्ञानिक अनुसंधान में मुख्य चरण (समस्या कथन, प्राक्कल्पना निरूपण, अनुसंधान अभिकल्प, प्रतिचयन, आंकड़ा संग्रह के उपकरण, विश्लेषण एवं व्याख्या तथा विवरण लेखन । मूल के विरुद्ध अनुप्रयुक्त अनुसंधान, आंकड़ा संग्रह की विधियां (साक्षात्कार, प्रेक्षण, प्रश्नावली), अनुसंधान अभिकल्प (कार्योत्तर एवं प्रयोगात्मक) सांख्यिकी प्रविधियों का अनुप्रयोग (टी-परीक्षण, द्विघागों एनोवा, सहसंबंध, समाश्रयण एवं पौक्टर विश्लेषण), पद अनुक्रिया सिद्धांत ।

4. मानव व्यवहार का विकास :

वृद्धि एवं विकास; विकास के सिद्धांत, मानव व्यवहार को निर्धारित करने वाले आनुवंशिक एवं पर्यावरणीय कारकों की भूमिका; समाजीकरण में सांस्कृतिक प्रभाव; जीवन विस्तृति विकास; अभिलक्षण; विकासात्मक कार्य; जीवन विस्तृति के प्रमुख चरणों में मनोविज्ञानिक स्वास्थ्य का संवर्धन।

5. संवेदन, अवधान और प्रत्यक्षण :

संवेदन : सीमा को संकल्पना, निरपेक्ष एवं न्यूनतम बोध-भेद टेहली, संकेत उपलंघन एवं सतर्कता; अवधान को प्रभावित करने वाले कारक जिसमें विन्यास एवं उद्दीपन अभिलक्षण शामिल हैं । प्रत्यक्षण की परिभाषा और संकल्पना, प्रत्यक्षण में जैविक कारक; प्रात्यक्षिक संगठन-पूर्व अनुभवों का प्रभाव; प्रात्यक्षिक रक्षा-सांतराल एवं गहनता प्रत्यक्ष को प्रभावित करने वाले कारक, आमाप आकलन एवं प्रात्यक्षिक तत्परता । प्रत्यक्षण की सुग्राह्यता, अतौन्दिय प्रत्यक्षण, संस्कृति एवं प्रत्यक्षण, अवसीम प्रत्यक्षण ।

6. अधिगम :

अधिगम की संकल्पना तथा सिद्धांत (व्यवहारवादी, गेस्टाल्टवादी एवं सूचना प्रक्रमण मॉडल) । विलोम, विभेद एवं सामान्यीकरण की प्रक्रियाएं; कार्यक्रमबद्ध अधिगम, प्रायिकता अधिगम, आत्म अनुदेशात्मक अधिगम; प्रदलीकरण की संकयनाएं, प्रकार एवं सारभियां; पलायन, परिहार एवं दण्ड, प्रतिरूपण एवं सामाजिक अधिगम ।

7. स्मृति :

संकेतन एवं स्मरण; अल्पावधि स्मृति, दीर्घावधिस्मृति, संवेदी स्मृति प्रतिमापरक स्मृति, अनुसरण स्मृति, मल्टिस्टोर मॉडल, प्रक्रमण के स्तर; संगठन एवं स्मृति सुधार की स्मरणजनक तकनीकें; विस्मरण के सिद्धांत; क्षय व्यक्तिकरण एवं प्रत्यानयन विफलन; अधिस्मृति; स्मृतिलोप आयातीत्तर एवं अभिपातपूर्व ।

8. चिंतन एवं समस्या समाधान :

पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत; संकल्पना निर्माण प्रक्रम; सूचना प्रक्रमण तर्क एवं समस्या समाधान, समस्या समाधान में सहायक एवं बाधाकारी कारक, समस्या समाधान को विधियाँ; सृजनात्मक चिंतन एवं सृजनात्मकता का प्रतिपोषण; निर्णयन एवं प्रथिनिर्णय को प्रभावित करने वाले कारक; अभिनव प्रवृित्तियां।

9. अभिप्रेरण तथा संवेग :

अभिप्रेरण संयोग के मनोवैज्ञानिक एवं शरीरक्रियात्मक आधार, अभिप्रेरण तथा संवेग का मापन; अभिप्रेरण एवं संवेग का व्यवहार पर प्रभाव; बाह्यर एवं अंतर अभिप्रेरण; आंतर अभिप्रेरण को प्रभावित करने वाले कारक; संवेगात्मक सक्षमता एवं संबंधित मुद्दे ।

10. बुद्धि एवं अभिक्षमता :

वृद्धि एवं अभिक्षमता की संकल्पना, बुद्धि का स्वरूप एवं सिद्धांत-स्मियरमैन, थर्सटन, गलफोर्ड बर्नान, स्टेशनबर्ग एवं जे. पी. दास; संवेगात्मक बुद्धि, सामाजिक बुद्धि, बुद्धि एवं अभिक्षमता का मापन, बुद्धिलब्धि की संकल्पना, विचलन बुद्धिलब्धि, बुद्धिलब्धि स्थिरता; बहु बुद्धि का मापन; तरल बुद्धि एवं क्रिस्टलित बुद्धि ।

11. व्यक्तित्व :

व्यक्तित्व की संकल्पना तथा परिभाषा; व्यक्तित्व के सिद्धांत (मनोविश्लेषणात्मक, सामाजिक-सांस्कृतिक, अंतर्वैयक्तिक, विकासात्मक, मानवतावादी, व्यवहारवादी विशेष गुण एवं जाति उपागम); व्यक्तित्व का मापन (प्रक्षेपी परीक्षण, पेंसिल-पेपर परीक्षण); व्यक्तित्व के प्रति भारतीय दृष्टिकोण; व्यक्तित्व विकास हेतु प्रशिक्षण । नवीनतम उपागम जैसे कि विग-5 पौक्टर सिद्धांत; विभिन्न परंपराओं में स्व का बोध ।

12. अभिवृत्तियों, मूल्य एवं अभिरुचियों :

अभिवृत्तियों, मूल्यों एवं अभिरुचियों की परिभाषाएं; अभिवृत्तियों के घटक; अभिवृत्तियों का निर्माण एवं अनुरक्षण; अभिवृत्तियों, मूल्यों एवं अभिरुचियों का मापन । अभिवृत्ति परिवर्तन के सिद्धांत, मूल्य प्रतिपोषण की विधियां । रूड़ धारणाओं एवं पूर्वाग्रहों का निर्माण, अन्य के व्यवहार को बदलना, गुणारोप के सिद्धांत, अभिनव प्रवृत्तियाँ ।

13. भाषा एवं संज्ञापन :

मानव भाषा-गुण, संरचना एवं भाषागत सोपान; भाषा अर्जन-पूर्वानुकूलता, क्रांतिक अवधि, प्राक्कल्पना; भाषा विकास के सिद्धांत (स्कीनर, चोम्स्की); संज्ञापन की प्रक्रिया एवं प्रकार; प्रभावपूर्ण संज्ञापन एवं प्रशिक्षण ।

14. आधुनिक समकालीन मनोविज्ञान में मुद्दे एवं परिप्रेक्ष्य:

मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला एवं मनोवैज्ञानिक परीक्षण में कम्प्यूटर अनुप्रयोग; कृत्रिम बुद्धि; साइकोसाइबरनेटिक्स; चेतना-नींद-जागरण कार्यक्रमों का अध्ययन; स्वप्न उद्दीपनवंचन, ध्यान, हिप्नोटिक/औषध प्रेरित दशाएँ; अतौन्दिय प्रत्यक्षण; अंतरीन्दिय प्रत्यक्षण मिथ्याभास अध्ययन ।

प्रश्न पत्र-II

मनोविज्ञान : विषय और अनुप्रयोग

1. व्यक्तिगत विभिन्नताओं का वैज्ञानिक मापन :

व्यक्तिगत विभिन्नताओं का सखरूप, मानकीकृत मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की विशेषताएँ और संरचना, मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के प्रकार; मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के उपयोग, दुरुपयोग तथा सीमाएँ । मनोवैज्ञानिक परीक्षाओं के प्रयोग में नीतिपरक विषय ।

2. मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य तथा मानसिक विकार :

स्वास्थ्य-अस्वास्थ्य की संकल्पना, सकारात्मक स्वास्थ्य, कल्याण, मानसिक विकार (चिंता, विकार, मनःस्थिति विकार, सीजोफ्रेनियाँ तथा भ्रमिक विकार, व्यक्तित्व विकार, तात्विक दुर्व्यवहार विकार) मानसिक विकारों के कारक तत्व, सकारात्मक स्वास्थ्य, कल्याण, जीवनशैली तथा जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले कारक ।

3. चिकित्सात्मक उपागम :

मनोगतिक चिकित्साएँ । व्यवहार चिकित्साएँ; रोगी केन्द्रित चिकित्साएँ, संज्ञानात्मक चिकित्साएँ । देशी चिकित्साएँ (योग, ध्यान)


जैव पुनर्निवेश चिकित्सा । मानसिक रूग्मता को रोकथाम तथा पुनर्स्थापना । क्रमिक स्वास्थ्य प्रतिपोरण ।

4. कार्यात्मक मनोविज्ञान तथा संवदनात्मक व्यवहार :

कार्मिक चयन तथा प्रशिक्षण । उद्योग में मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का उपयोग । प्रशिक्षण तथा मानव संसाधन विकास । कार्य-अभिप्रेरण सिद्धांत हर्ज वर्ग, मास्लो, एडम ईक्विटी सिद्धांत, पोर्टर एवं लायलर, ड्रम; नेतृत्व तथा सहभागी प्रबंधन । विज्ञापन तथा विपणन । दबाव एवं इराका प्रबंधन; श्रमदक्षता शास्त्र, उपभोक्ता मनोविज्ञान, प्रबंधकीय प्रभाविता, रूपांतरण नेतृत्व, संवेदनशीलता प्रशिक्षण, संगठनों में शयित एवं राजनीति ।

5. शैक्षिक क्षेत्र में मनोविज्ञान का अनुप्रयोग :

अध्यापन-अध्ययन प्रक्रिया को प्रभावी बनाने में मनोवैज्ञानिक सिद्धांत । अध्ययन शैलियाँ । प्रदत्त मंदक, अध्ययन-हेतु-अक्षम और उनका प्रशिक्षण। रमरण शक्ति बढ़ाने तथा नेत्रतर शैक्षिणक उपलब्धि के लिए प्रशिक्षण। व्यक्तित्व विकास तथा मूल्य शिक्षा। शैक्षिक, व्यावसायिक मार्गदर्शन तथा जीविकोपार्जन परामर्श । शैक्षिक संस्थाओं में मनोवैज्ञानिक परीक्षण । मार्गदर्शन कार्यक्रमों में प्रभावी कार्यनीतियाँ ।

6. सामुदायिक मनोविज्ञान

सामुदायिक मनोविज्ञान की परिभाषा और संकल्पना । सामाजिक कार्यकलाप में छोटे समूहों को उपयोगिता । सामाजिक चेतना की जागृति और सामाजिक समस्याओं को सुलझाने की कार्यवाही । सामाजिक परिवर्तन के लिए सामूहिक निर्णय लेना और नेतृत्व प्रदान करना । सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रभावी कार्य नीतियाँ ।

7. पुनर्वास मनोविज्ञान

प्रार्पमिक, माध्यमिक तथा तृतीयक निवारक कार्यक्रम । मनोवैज्ञानिकों की भूमिका-शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक रूप से चुनौती प्राप्त व्यक्तियों, जैसे वृद्ध व्यक्तियों, के पुनर्वासन के लिए सेवाओं का आयोजन । पदार्थ दुरुपयोग, किशोर अपराध, आपराधिक व्यवहार से पीड़ित व्यक्तियों का पुनर्वास। हिंसा के शिकार व्यक्तियों का पुनर्वास । HIV/AIDS रोगियों का पुनर्वास । सामाजिक अभिकरणों की भूमिका ।

8. सुविधावधित समूहों पर मनोविज्ञान का अनुप्रयोग

सुविधावधित, वंचित की संकल्पनाएं, सुविधावधित तथा वंचित समूहों के सामाजिक, भौतिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक परिणाम । सुविधावधितों का विकास की ओर शिक्षण तथा अभिप्रेरण । सापेक्ष एवं दीर्घकालिक वचन ।

9. सामाजिक एकीकरण की मनोवैज्ञानिक समस्या

सामाजिक एकीकरण की संकल्पना । जाति, वर्ग, धर्म, भाषा विवादों और पुनर्राहक की समस्या । अंतर्समूह तथा बहिर्समूह के बीच पूर्वाग्रह का स्वरूप तथा अभिव्यक्ति । ऐसे विवादों और पूर्वाग्रहों के कारक तत्व । विवादों और पूर्वाग्रहों से निपटने के लिए मनोवैज्ञानिक नीतियाँ । सामाजिक एकीकरण पाने के उपाय ।

10. सूचना प्रौद्योगिकी और जनसंचार में मनोविज्ञान का अनुप्रयोग

सूचना प्रौद्योगिकी और जन-संचार-गूंज का वर्तमान परिदृश्य और मनोवैज्ञानिकों की भूमिका । सूचना प्रौद्योगिकी और जन-संचार क्षेत्र में कार्य के लिए मनोविज्ञान व्यवसायियों का चयन और प्रशिक्षण । सूचना प्रौद्योगिकी और जन-संचार माध्यम से दूरदर्शन शिक्षण । ई-कॉमर्स के द्वारा उद्यमशीलता । बहुसारीय विपणन, दूरस्थ का प्रभाव एवं सूचना प्रौद्योगिकी और जन-संचार के द्वारा मूल्य प्रतिप्रोगण । सूचना प्रौद्योगिकी में अभिनव विकास के मनोवैज्ञानिक परिणाम ।

11. मनोविज्ञान तथा आर्थिक विकास

उपलब्धि, अभिप्रेरण तथा आर्थिक विकास । उद्यमशील व्यवहार की विशेषताएं। उद्यमशीलता तथा आर्थिक विकास के लिए लोगों का अभिप्रेरण तथा प्रशिक्षण । उपभोक्ता अधिकार तथा उपभोक्ता संचेतना । महिला उद्यमियों समेत युवाओं में उद्यमशीलता के संवर्धन के लिए सरकारी नीतियां ।

12. पर्यावरण तथा संवद्-क्षेत्रों में मनोविज्ञान का अनुप्रयोग

पर्यावरणीय मनोविज्ञान ध्वनि प्रदूषण तथा भीड़भाड़ के प्रभाव । जनसंख्या मनोविज्ञान-जनसंख्या विस्फोटन और उच्च जनसंख्या घनत्व के मनोवैज्ञानिक परिणाम । छोटे परिवार के मानदंड का अभिप्रेरण । पर्यावरण के अवक्रमण पर हुत वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय विकास का प्रभाव ।

13. मनोविज्ञान के अन्य अनुप्रयोग

(क) सभ्य मनोविज्ञान

चयन, प्रशिक्षण, परामर्श में प्रयोग के लिए रक्षा कार्मिकों के लिए, मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की रचना; सकारात्मक स्वास्थ्य संवर्धन के लिए रक्षा कार्मिकों के साथ कार्य करने के लिए मनोवैज्ञानिकों का प्रशिक्षण; रक्षा में मानव-इंजीनियरी ।

(ख) खेल मनोविज्ञान

एथलीटों एवं खेलों के निष्पादन में सुधार में मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप; व्यष्टि एवं टीम खेलों में भाग लेने वाले व्यक्ति ।
(ग) समाजोन्मुख एवं समाजविरोधी व्यवहार पर संचार माध्यमों का प्रभाव,
(घ) आतंकवाद का मनोविज्ञान ।

14. लिंग का मनोविज्ञान

भेदभाव के मुद्दे, विविधता का प्रबंधन; ग्लास रोलिंग प्रभाव, स्वत: साधक भविष्यांकित, नारी एवं भारतीय समाज ।

लोक प्रशासन
प्रश्न पत्र-1
प्रशासनिक सिद्धांत

1. प्रस्तावना

लोक प्रशासन का अर्थ, विस्तार तथा महत्व, विल्सन के दृष्टिकोण से लोक प्रशासन विषय का विकास तथा इसकी वर्तमान स्थिति; नया लोक प्रशासन, लोक विकल्प उपागम, उदारीकरण की चुनौतियां, निजीकरण भूमंडलीकरण; अच्छा अभिशासन अवधारणा तथा अनुप्रयोग; नया लोक प्रबंध ।


2. प्रशासनिक चितन

वैज्ञानिक प्रबंध और वैज्ञानिक प्रबंध आंदोलन, क्लासिकों सिद्धांत, वेबर का नौकरशाही मॉडल, उसकी आलोचना और वेबर पश्चात् का विकास, गतिशील प्रशासन (मेवों पार्कर फॉलो) मानव संबंध स्कूल (एल्टोन मेयो तथा अन्य); कार्यपालिका के कार्य (सी आई बर्नार्ड), साइमन निर्णयन सिद्धांत, भागीदारी प्रबंध (मैक ग्रेगर, आर. लिकर्ट, सी आर्जीरिस) ।

3. प्रशासनिक व्यवहार

निर्णयन प्रक्रिया एवं तकनीक, संचार, मनोबल, प्रेरणा सिद्धांत-अंतर्वस्तु, प्रक्रिया एवं समकालीन; नेतृत्व सिद्धांत; पारंपरिक एवं आधुनिक ।

4. संगठन

सिद्धांत-प्रणाली, प्रासंगिकता, संरचना एवं रूप, मंत्रालय तथा विभाग, निगम, कंपनियां, बोर्ड तथा आयोग-तदर्थ तथा परामर्शदाता निकाय मुख्यालय तथा क्षेत्रीय संबंध । नियामक प्राधिकारी; लोक-निजी भागीदारी ।

5. उत्तरदायित्व तथा नियंत्रण

उत्तरदायित्व और नियंत्रण की संकल्पनाएं, प्रशासन पर विधायी, कार्यकारी और न्यायिक नियंत्रण । नागरिक तथा प्रशासन, मोकंडया की भूमिका, हित समूह, स्वैच्छिक संगठन, सिविल समाज, नागरिकों का अधिकार-पत्र (चार्टर) । सूचना का अधिकार, सामाजिक लेखा परीक्षा ।

6. प्रशासनिक कानून :

अर्थ, विस्तार और महत्व, प्रशासनिक विधि पर Dicey, प्रत्यायोजित विधान प्रशासनिक अधिकरण ।

7. तुलनात्मक लोक प्रशासन :

प्रशासनिक प्रणालियों पर प्रभाव डालने वाले ऐतिहासिक एवं समाज वैज्ञानिक कारक : विभिन्न देशों में प्रशासन एवं राजनीति; तुलनात्मक लोक प्रशासन की अद्यतन स्थिति; पारिस्थितिकी एवं प्रशासन; रिग्सियन मॉडल एवं उनको आलोचक ।

8. विकास गतिकी :

विकास की संकल्पना; विकास प्रशासन की बदलती परिच्छेदिका; विकास विरोधी अभिधारणा; नौकरशाही एवं विकास; शक्तिशाली राज्य बनाम बाजार विवाद; विकासशील देशों में प्रशासन पर उदारीकरण का प्रभाव; महिला एवं विकास स्वसहायता समूह आंदोलन ।

9. कार्यिक प्रशासन :

मानव संसाधन विकास का महत्व, भर्ती प्रशिक्षण, जीविका विकास, हैसियत वर्गीकरण, अनुशासन, निष्पादन मूल्यांकन, पदोन्नति, वेतन तथा सेवा शर्तें, नियोक्ता-कर्मचारी संबंध, शिकायत निवारण क्रिया विधि, आचरण संहिता, प्रशासनिक आचार-नीति ।

10. लोकनीति :

नीति निर्माण के माटल एवं उनको आलोचक; संप्रत्ययीकरण की प्रक्रियाएं, आयोजना, कार्यान्वयन, मनोहरन, मूल्यांकन एवं पुनरीक्षा एवं उनकी सीमाएं; राज्य सिद्धांत एवं लोकनीति सूत्रण ।

11. प्रशासनिक सुधार तकनीकें :

संगठन एवं पद्धति, कार्य अध्ययन एवं कार्य प्रबंधन, ई-गवर्नेंस एवं सूचना प्रौद्योगिकी; प्रबंधन सहायता उपकरण जैसे कि नेटवर्क विश्लेषण, MIS, PERT, CPM

12. वित्तीय प्रशासन :

वित्तीय तथा राजकोषीय नीतियां, लोक उभार ग्रहण तथा लोक ऋण । बजट प्रकार एवं रूप बजट-प्रक्रिया, वित्तीय जबाबदेही, लेखा तथा लेखा परीक्षा ।

प्रश्न पत्र-2
भारतीय प्रशासन

1. भारतीय प्रशासन का विकास :

कौटिल्य का अर्थशास्त्र; मुगल प्रशासन; राजनीति एवं प्रशासन में ब्रिटिश शासन का रिक्थ लोक सेवाओं का भारतीयकरण, राजस्व प्रशासन, जिला प्रशासन, स्थानीय स्वशासन ।

2. सरकार का दार्शनिक एवं सांविधानिक ढ़ाचा :

प्रमुख विशेषताएं एवं मूल्य आधारिकाएं; संविधानवाद; राजनैतिक संस्कृति; नौकरशाही एवं लोकतंत्र; नौकरशाही एवं विकास ।

3. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम :

आधुनिक भारत में सार्वजनिक क्षेत्र; सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के रूप; स्वायतता, जबाबदेही एवं नियंत्रण की समस्याएं; उदारीकरण एवं निजीकरण का प्रभाव ।

4. संघ सरकार एवं प्रशासन :

कार्यपालिका, संसद, विधायिका-संरचना, कार्य, कार्य प्रक्रियाएं; हाल की प्रवृत्तियां; अंतर-शासकीय संबंध; कीबिनेट सचिवालय, प्रधानमंत्री कार्यालय; केन्द्रीय सचिवालय; मंत्रालय एवं विभाग; बोर्ड, आयोग, संबद्ध कार्यालय; क्षेत्र संगठन ।

5. योजनाएं एवं प्राथमिकताएं :

योजना मशीनरी; योजना आयोग एवं राष्ट्रीय विकास परिषद की भूमिका, रचना एवं कार्य; संकेतात्मक आयोजना; संघ एवं राज्य स्तर पर योजना निर्माण प्रक्रिया संविधान संशोधन (1992) एवं आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय हेतु विकेन्द्रीकरण आयोजना ।

6. राज्य सरकार एवं प्रशासन :

संघ-राम्य प्रशासनिक, विधायी एवं वित्तीय संबंध; वित्त आयोग की भूमिका; राज्यपाल; मुख्यमंत्री, मंत्रिपरिषद; मुख्य सचिव; राज्य सचिवालय; निदेशालय ।

7. स्वतंत्रता के बाद से जिला प्रशासन :

कलेक्टर की बदलती भूमिका; संघ-राम्य-स्थानीय संबंध; विकास प्रबंध एवं विधि एवं अन्य प्रशासन के विध्यर्थ; जिला प्रशासन एवं लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण ।

8. सिविल सेवाएं :

सांविधानिक स्थिति; संरचना, भर्ती, प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण; सुशासन के पहल; आचरण संहिता एवं अनुशासन; कर्मचारी संघ;


राजनीतिक अधिकार ; शिकायत निवारण क्रियाविधि; सिविल सेवा की तटस्थता; सिविल सेवा सक्रियतावाद।

9. वित्तीय प्रबंध

राजनीतिक उपकरण के रूप में बजट; लोक व्यय पर संसदीय नियंत्रण; मौदिक एवं राजकोषीय क्षेत्र में वित्त मंत्रालय की भूमिका; लेखाकार तकनीक; लेखापरीक्षा; लेखा महानियंत्रक एवं भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक की भूमिका ।
10. स्वतंत्रता के बाद से हुए प्रशासनिक सुधार

प्रमुख सरोकार; महत्वपूर्ण समितियां एवं आयोग; वित्तीय प्रबंध एवं मानव संसाधन विकास में हुए सुधार; कार्यान्वयन की समस्याएं।

11. ग्रामीण विकास

स्वतंत्रता के बाद से संस्थान एवं अभिकरण; ग्रामीण विकास कार्यक्रम, फोकस एवं कार्यनीतियां; विकेन्द्रीकरण पंचायती राज; 73वां संविधान संशोधन ।

12. नगरीय स्थानीय शासन

नगरपालिका शासन; मुख्य विशेषताएं, संरचना, वित्त एवं समस्या क्षेत्र, 74वां संविधान संशोधन; विश्वव्यापी स्थानीय विवाद; नया स्थानिकतावाद; विकास गतिकी; नगर प्रबंध के विशेष संदर्भ में राजनीतिक एवं प्रशासन ।

13. कानून व्यवस्था प्रशासन

त्रिटिश रिक्थ; राष्ट्रीय पुलिस आयोग; जांच अभिकरण; विधि व्यवस्था बनाए रखने तथा उप्लव एवं आतंकवाद का सामना करने में पैरामिलिटरी बलों समेत कॅन्द्रीय एवं छम्य अभिकरणों को भूमिका; राजनीतिक एवं प्रशासन का अपराधीकरण; पुलिस लोक संबंध; पुलिस में सुधार।

14. भारतीय प्रशासन में महत्वपूर्ण मुद्ददे

लोक सेवा में मूल्य; नियामक आयोग; राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग; बहुदलीय शासन प्रणाली में प्रशासन की समस्याएं; नागारिक प्रशासन अंतराफलक; प्रष्टाचार एवं प्रशासन; विपदा प्रबंधन ।

समाज शास्त्र

प्रश्न पत्र-।

समाजशास्त्र के मूलभूत सिद्धांत

1. समाजशास्त्र : विद्या शाखा

(क) यूरोप में आधुनिकता एवं सामाजिक परिवर्तन तथा समाजशास्त्र का आविधांव ।
(ख) समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र एवं अन्य सामाजिक विज्ञानों से इसकी तुलना ।
(ग) समाजशास्त्र एवं सामान्य बोध।

2. समाजशास्त्र विज्ञान के रूप में

(क) विज्ञान, वैज्ञानिक पट्टति एवं समीक्षा
(ख) अनुसंधान क्रियाविधि के प्रमुख सैद्धांतिक तत्त्व
(ग) प्रत्यक्षवाद एवं इसकी समीक्षा
(घ) तथ्य, मूल्य एवं उद्देश्यपरकता
(ङ.) अ-प्रत्यक्षवादी क्रियाविधियाँ
3. अनुसंधान पद्धतियां एवं विश्लेषण
(क) गुणात्मक एवं मात्रात्मक पद्धतियाँ
(ख) दत्त संग्रहण की तकनीक
(ग) परिवर्त, प्रतिधयन प्राक्कल्पना, विश्वसनीयता एवं वैधता।

4. समाजशास्त्री चिंतक

(क) कार्लमार्क्स : ऐतिहासिक भौतिकवाद, उत्पादन विधि, विसंबंधन, वर्ग संघर्ष।
(ख) इमाइल दुर्खीम : श्रम विभाजन, सामाजिक तथ्य, आत्महत्या धर्म एवं समाज ।
(ग) मैक्स चेबर : सामाजिक क्रिया, आदर्श प्ररूप, सत्ता, अधिकारी तंत्र, प्रोटेस्टैंट नीतिशास्त्र और पूंजीवाद को भावना।
(घ) तालकॉट पर्सन्स : सामाजिक व्यवस्था, प्रतिरूप परिवर्त।
(ङ.) रॉबर्ट के मर्टन : अव्यक्त तथा अभिव्यक्त प्रकार्य, अनुरूपता एवं विसामान्यता, संदर्भ समूह
(च) मीड : आत्म एवं तादात्म्य
5. स्तरीकरण एवं गतिशीलता
(क) संकल्पनाएं-समानता, असमानता, अधिक्रम, अपवर्जन, गरीबी एवं वंचन।
(ख) सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धांत-संरचनात्मक प्रकार्यवादी सिद्धांत, मार्क्सवादी सिद्धांत, चेबर का सिद्धांत।
(ग) आयाम-वर्ग, स्थिति समूहों, लिंग, नृजातीयता एवं प्रजाति का सामाजिक स्तरीकरण ।
(घ) सामाजिक गतिशीलता-खुली एवं बंद व्यवस्थाएं, गतिशीलता के प्रकार, गतिशीलता के स्रोत एवं कारण।

6. कार्य एवं आर्थिक जीवन

(क) विभिन्न प्रकार के समाजों में कार्य का सामाजिक संगठन-दास समाज, सामंती समाज, औद्योगिक/पूँजीवादी समाज ।
(ख) कार्य का औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठन।
(ग) श्रम एवं समाज

7. राजनीति एवं समाज

(क) सत्ता के समाजशास्त्रीय सिद्धांत।
(ख) सत्ता प्रवर्जन, अधिकारीतंत्र, दबाव समूह, राजनैतिक दल।
(ग) राष्ट्र, राज्य, नागरिकता, लोकतंत्र, सिविल समाज, विचार धारा ।


(घ) विरोध, आंदोलन, सामाजिक आंदोलन, सामूहिक क्रिया, क्रांति ।
8. धर्म एवं समाज
(क) धर्म के समाजशास्त्रीय सिद्धांत ।
(ख) धार्मिक कर्म के प्रकार : जीववाद, एकतत्ववाद, बहुतत्ववाद पंथ, उपासना पद्धतियाँ ।
(ग) आधुनिक समाज में धर्म : धर्म एवं विज्ञान, धर्मनिरपेक्षीकरण, धार्मिक पुन: प्रवर्तनवाद, मूलतत्ववाद ।

9. नातेदारी की व्यवस्थाएं

(क) परिवार, गृहस्थी, विवाह ।
(ख) परिवार के प्रकार एवं रूप ।
(ग) वंश एवं वंशानुक्रम ।
(घ) पितृतंत्र एवं श्रम लिंगाधारित विभाजन ।
(ङ) समसामयिक प्रवृत्तियां।
10. आधुनिक समाज में सामाजिक परिवर्तन
(क) सामाजिक परिवर्तन के समाजशास्त्रीय सिद्धांत ।
(ख) विकास एवं पराजितता ।
(ग) सामाजिक परिवर्तन के कारक ।
(घ) शिक्षा एवं सामाजिक परिवर्तन ।
(ङ) विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं सामाजिक परिवर्तन ।

प्रश्न पत्र-II

भारतीय समाज : संरचना एवं परिवर्तन
क. भारतीय समाज का परिचय
(i) भारतीय समाज के अध्ययन के परिप्रेक्ष्य
(क) भारतीय विद्या (जी. एस. धुर्य) ।
(ख) संरचनात्मक प्रकार्यवाद (एम. एन. श्रीनिवास) ।
(ग) मार्क्सवादी समाजशास्त्र (ए. आर. देसाई) ।
(ii) भारतीय समाज पर औपनिवेशिक शासन का प्रभाव
(क) भारतीय राष्ट्रवाद की सामाजिक पृष्ठभूमि ।
(ख) भारतीय परंपरा का आधुनिकीकरण ।
(ग) औपनिवेशिक काल के दौरान विरोध एवं आंदोलन ।
(घ) सामाजिक सुधार ।
ख. सामाजिक संरचना
(i) ग्रामीण एवं कृषिक सामाजिक संरचना
(क) भारतीय ग्राम का विचार एवं ग्राम अध्ययन ।
(ख) कृषिक सामाजिक संरचना-पट्टेदारी प्रणाली का विकास, भूमि सुधार ।

(ii) जाति व्यवस्था

(क) जाति व्यवस्था के अध्ययन के परिप्रेक्ष्य-(जी. एस. धुर्य, एम. एन. श्रीनिवास, लुई झूमों, आन्द्रे बेतेय) ।
(ख) जाति व्यवस्था के अभिलक्षण ।
(ग) अस्पृश्यता-रूप एवं परिप्रेक्ष्य ।
(iii) भारत में जनजातीय समुदाय
(क) परिभाषीय समस्याएँ ।
(ख) भौगोलिक विस्तार ।
(ग) औपनिवेशिक नीतियाँ एवं जनजातियाँ ।
(घ) एकीकरण एवं स्वागतता के मुद्दे ।
(iv) भारत में सामाजिक वर्ग
(क) कृषिक वर्ग संरचना ।
(ख) औद्योगिक वर्ग संरचना ।
(ग) भारत में मध्यम वर्ग ।
(v) भारत में नातेदारी की व्यवस्थाएँ
(क) भारत में वंश एवं वंशानुक्रम ।
(ख) नातेदारी व्यवस्थाओं के प्रकार ।
(ग) भारत में परिवार एवं विवाह ।
(घ) परिवार घरेलू आयाम ।
(ङ) पितृतंत्र, हकदारी एवं श्रम का लिंगाधारित विभाजन ।
(vi) धर्म एवं समाज
(क) भारत में धार्मिक समुदाय
(ख) धार्मिक अल्पसंख्यकों की समस्याएँ ।
ग. भारत में सामाजिक परिवर्तन
(i) भारत में सामाजिक परिवर्तन की दृष्टियाँ
(क) विकास आयोजना एवं मिश्रित अर्थव्यवस्था का विचार ।
(ख) संविधान, विधि एवं सामजिक परिवर्तन ।
(ग) शिक्षा एवं सामाजिक परिवर्तन ।
(ii) भारत में ग्रामीण एवं कृषिक रूपांतरण
(क) ग्रामीण विकास कार्यक्रम, समुदाय विकास कार्यक्रम, सहकारी संस्थाएं, गरीबी उन्मूलन योजनाएं ।
(ख) हरित क्रांति एवं सामाजिक परिवर्तन ।
(ग) भारतीय कृषि में उत्पादन की बदलती विधियाँ ।
(घ) ग्रामीण मजदूर, बंधुआ एवं प्रवासन की समस्याएं ।
(iii) भारत में औद्योगिकीकरण एवं नगरीकरण
(क) भारत में आधुनिक उद्योग का विकास ।


(ख) भारत में नगरीय बस्तियों की वृद्धि।
(ग) श्रमिक वर्ग : संरचना, वृद्धि, वर्ग संघटन।
(घ) अनौपचारिक क्षेत्रक, बाल श्रमिक।
(ङ) नगरीय क्षेत्रों में गंदी बस्ती एवं वंचन।

(iv) राजनीति एवं समाज

(क) राष्ट्र, लोकतंत्र एवं नागरिकता।
(ख) राजनैतिक दल, दबाव समूह, सामाजिक एवं राजनैतिक प्रवरजन।
(ग) क्षेत्रीयतावाद एवं सत्ता का विकेन्द्रीयकरण।
(घ) धर्मनिरपेक्षीकरण।
(v) आधुनिक भारत में सामजिक आंदोलन
(क) कृषक एवं किसान आंदोलन।
(ख) महिला आंदोलन।
(ग) पिछड़ा वर्ग एवं दलित आंदोलन।
(घ) पर्यावरणीय आंदोलन।
(ङ) नृजातीयता एवं अभिज्ञान आंदोलन।

(vi) जनसंख्या गतिकी

(क) जनसंख्या आकार, वृद्धि संघटन एवं वितरण।
(ख) जनसंख्या वृद्धि के घटक : जन्म, मृत्यु, प्रवासन।
(ग) जनसंख्या नीति एवं परिवार नियोजन।
(घ) उभरते हुए मुद्दे : कालप्रभावन, लिंग अनुपात, बाल एवं शिशु मृत्युदर, जनन स्वास्थ्य।

(vii) सामाजिक रूपांतरण की चुनौतियों

(क) विकास का संकट : विस्थापन, पर्यावरणीय समस्याएं एवं संपोषणीयता।
(ख) गरीबी, वंचन एवं असमानताएं।
(ग) स्त्रियों के प्रति हिंसा।
(घ) जाति द्वन्द्व।
(ङ) नृजातीय द्वन्द्व, सांप्रदायिकता, धार्मिक पुन:प्रवर्तनवाद।
(च) असाक्षरता तथा शिक्षा में असमानतांए।

सांख्यिकी

प्रश्न पत्र-1

प्राधिकता

प्रतिदर्श समष्टि एवं अनुवृत्त, प्राधिकता माप एवं प्राधिकता समष्टि, मेघफलन के रूप में यादृच्छिक चर, यादृच्छिक चर का बंटन फलन, असंतत एवं संतत-प्ररूप यादृच्छिकचर, प्राधिकता द्रव्यमान फलन, प्राधिकता घनत्व-फलन, सदिशमान यादृच्छिचर, उपांत एवं सप्रतिबंध बंटन, अनुवृतों का एवं यादृच्छिक चरों का

प्रसंभाव्य स्वातंत्र्य, यादृच्छिक चर की प्रत्याशा एवं आयूर्ण, सप्रतिबंध प्रत्याशा, यादृच्छिक चर का p-th माध्यम में, एवं लगभग हर जगह, उनका निकर्ष एवं अंतसंबंध, शेषोशेव असमिका तथा खिंशिन का वृहद् संख्याओं का दुर्बल नियम, वृहद् संख्याओं का प्रबल नियम एवं कोल्मोगोरोफ प्रमेय, प्राधिकता जनन पुलन, आयूर्ण जनन फलन, अभिलक्षण फलन, प्रतिलोमन प्रमेय, केंद्रीय सीमा प्रमेय के लिंडरवर्ग एवं लेची प्ररूप, मानक असंतत एवं संतत प्राधिकता बंटन।

सांख्यिकीय अनुप्रति

संगति, अनभिनतता, दक्षता, पूर्णता, सहायक आँकड़े, गुणखंडन-प्रमेय, बंटन चरयांताकी कुल और इसके गुणधर्म, एकसमान अल्पतम-प्रसरण अनभिनत (UMVU) आकलन, राव-ब्लैकवेल एवं लेहमैन-शोफ प्रमेय, एकल प्राचल के लिए क्रेमर-राव असमिका, आयूर्ण विधियों द्वारा आकलन, अधिकतम संभाविता, अल्पतम वर्ग, न्यूनतम काई-वर्ग एवं रूपांतरित न्यूनतम काई-वर्ग, अधिकतम संभाविता एवं अन्य आकलकों के गुणधर्म, उपगामी दक्षता, पूर्व एवं पश्च बंटन, हानि फलन, जोखिम फलन तथा अल्पमहिष्ठ आकलक, बेज आकलनः अयादृच्छिकीकृत तथा यादृच्छिकीकृत परीक्षण, क्रांतिक फलन, MP परीक्षण, नेमैन-पिअर्सन प्रमेयिका, UMPU परीक्षण, एकदिष्ट संभाविता अनुपात, समरूप एवं अनभिनत परीक्षण, एकल प्राचल के लिए UMPU परीक्षण, संभाविता अनुपात परीक्षण एवं इसका उपगामी बंटन। विश्र्वास्यता परिबंध एवं परीक्षणों के साथ इसका संबंध।

समंजन-सुध्तता एवं इसकी संगति के लिए कोल्मोगोरोफ परीक्षण, चिह्न परीक्षण एवं इसका इष्टमत्व। विलकॉक्सन चिह्नित-कोटि परीक्षण एवं इसकी संगति, कोल्मोगोरोफ-स्मिरनोफ द्वि-प्रतिदर्श परीक्षण, रन परीक्षण, विलकॉक्सन-मैन व्हिटनी परीक्षण एवं माथ्यिका परीक्षण, उनकी संगति तथा उपगामी प्रसामान्यता।

वाल्ड का SPRT एवं इसके गुणधर्म, बर्नूली, प्यासों, प्रसामान्य एवं चरयातांकी बंटनों के लिए प्राचलों के बारे में परीक्षणों के लिए OC एवं ANS फलन। वाल्ड का मूल तत्समक।

रैखिक अनुप्रति एवं बहुचर विश्लेषण

रैखिक सांख्यिकीय निदर्श, न्यूनतमवर्ग सिद्धांत एवं प्रसरण विश्लेषण, मॉस-मारकोफ सिद्धांत, प्रसामान्य समीकरण, न्यूनतमवर्ग आकलन एवं उनकी परिशुद्धता, एकमार्गी, द्विमार्गी एवं त्रिमार्गी वर्गीकृत प्यास में न्यूनतमवर्ग सिद्धांत पर आधारित अंतराल आकल तथा सार्थकता परीक्षण, समाश्रयण, विश्लेषण रैखिक समाश्रयण वक्ररेखी समाश्रयण एवं लांबिक बहुपद, बहुसमाश्रयण, बहु एवं आंशिक सहसंबंध, प्रसारण एवं सहप्रसारण घटक आकलन, बहुचर प्रसामान्य बंटन, महलनोबिस ${ }^{(1)}$ एवं हॉटेलिंग ${ }^{(2)}$ आँकड़े तथा उनका अनुप्रयोग एवं गुणधर्म, विविक्तकर विश्लेषण, विहित सहसंबंध, मुख्य घटक विश्लेषण।

प्रतिचयन सिद्धांत एवं प्रयोग अभिकल्प

स्थिर-समविष्ट एवं अधि-समष्टि उपागमों की रूपरेखा, परिमित समष्टि प्रतिचयन के विविक्तकारी लक्षण, प्राधिकता प्रतिचयन अभिकल्प, प्रतिस्थापन के साथ या उसके बिना सरल यादृच्छिक प्रतिचयन, स्तरित यादृच्छिक प्रतिचयन, क्रमबद्ध प्रतिचयन एवं इसकी क्षमता, गुच्छा प्रतिचयन, द्विचरण एवं बहुचरण प्रतिचयन, एक या दो सहायक चर शामिल करते हुए आकलन को अनुपात एवं समाश्रयण विधियां, द्विप्रावस्था प्रतिचयन,


प्रतिस्थापन के साथ या उसके बिना आगमय आनुपातिक प्राधिकता, हैसेन-हरविट्ज एवं हरिविट्ज-थॉम्पसन आंकलन, हरिविट्ज-थॉम्पसन, आंकलन के संदर्भ में ऋणेतर प्रसरण आंकलन, अप्रतिचयन त्रुटियां । नियम प्रभाव निदर्श (द्विमार्गी वर्गीकरण) यादृच्छिक एवं मिश्रित प्रभाव निदर्श (प्रतिसेल समान प्रेक्षण के साथ द्विमार्गी वर्गीकरण) CRD, RBD, LSD एवं उनकें विश्लेषण, अपूर्ण क्लॉक अभिकल्प, लाबिकता एवं संतुलन की संकल्पनाएं, BIBD, अप्राप्त क्षेत्रक प्रविधि, बहु-उपादानी प्रयोग तथा बहु-उपादानी प्रयोग में $2^{\text {n }}$ एवं $3^{2}$ संकरण, विभक्त क्षेत्र एवं सरल जालक अभिकल्पना, आंकड़ा रूपांतरण ढंकन का बहुपरासी परीक्षण।

प्रश्न पत्र-II

I. औद्योगिक सांख्यकी

प्रक्रिया एवं उत्पाद नियंत्रण, नियंत्रण, चार्टों का सामान्य सिद्धांत, चरों एवं गुणों के लिए विभिन्न प्रकार के नियंत्रण चार्ट, $X, R, s, p, n p$ एवं C-चार्ट, संचयी योग चार्ट । गुणों के लिए एकशः, द्विशःबहुक एउं अनुक्रमिक प्रतिचयन योजनाएं, OC, ASN, AOO एवं ATI वक्र, उत्पादक एवं उपभोक्ता जोखिम की संकल्पनाएं, AQL, LTPD एवं AOQL चरों के लिए प्रतिचयन योजना, डॉज-रोपिंग सारणियों का प्रयोग ।

विश्वास्यता की संकल्पना, विफलता दर एवं विश्वास्यता फलन, श्रेणियों, समांतर प्रणालियों एवं अन्य सरल विन्यासों की विश्वास्यता, नवीकरण घनत्व एवं नवीकरण फलन, विफलता प्रतिदर्श : चरघातांकी, वीबुल, प्रसामान्य, लॉग प्रसामान्य ।

आयु परीक्षण में समस्याएं, चरघातांकी निर्देशों के लिए खंडवर्जित एवं रूढित प्रयोग ।

II. इष्टतमीकरण प्रविधियां

संक्रिया विज्ञान में विभिन्न प्रकार के निदर्श, उनकी रचना एवं हल की सामान्य विधियां, अनुकार एवं मॉण्टे-कार्लो विधियां, रैखिक प्रोग्रामन (LP) समस्या का सूत्रीकरण, सरल LP निदर्श एवं इसका आलेखीय हल, प्रसमुच्चय प्रक्रिया, कृत्रिम चरों के साथ M-प्रविधि एवं द्विप्रावस्था विधि, LP का द्वैध सिद्धांत एवं इसकी आर्थिक विवक्षा, सुग्राहिता विश्लेषण, परिवहन एवं नियतन समस्या, आयतीत खेल, दो-व्यक्ति तृणा तंग खेल, हल विधियां (आलेखीय एवं बीजीय) ।

ह्रासशील एवं विकृत मर्दों का प्रतिस्थापन, समूह एवं व्यष्टि प्रतिस्थापन नीतियां, वैज्ञानिक सामग्री-सूची प्रबंधन की संकल्पना एवं सामग्री सूची समस्याओं की विश्लेषों संरचना, अग्रता काल के साथ या उसके बिना निर्धारणात्मक एवं प्रसंभाव्य मांगों के साथ सरल निदर्श डैम प्ररूप के विशेष संदर्भ के साथ भंडारण निदर्श ।

समांगी विविक्त काल मार्काव श्रृंखलाएं, संक्रमण प्राधिकता आब्यूह, अवस्थाओं एवं अभ्यतिप्रायप्रमेयों का वर्गीकरण, समांगी सतत काल, मार्कोव श्रृंखला, प्यासों प्रक्रिया, पंक्ति सिद्धांत के तत्व, एवं $\mathrm{M} / \mathrm{M}^{1}$, $\mathrm{M} / \mathrm{M} / \mathrm{K}, \mathrm{G} / \mathrm{M} / \mathrm{I}$ एवं $\mathrm{M} / \mathrm{G} / \mathrm{I}$ पंक्तियां।

कंप्यूटरों पर SPSS जैसे जाने माने सांख्यिकीय सॉफ्टवेयर पैकेजों का प्रयोग कर सांख्यिकीय समस्याओं के हल प्राप्त करना ।

III. मात्रात्मक अर्थशास्त्र एवं राजकीय आंकड़े

प्रवृत्ति निर्धारण, मौसमी एवं चक्रीय घटक, बॉक्स- जेकिंग विधि,

अनुपनत श्रेणी परीक्षण, AZRIMA निदर्श एवं स्वसमाश्रयी तथा गतिमान माथ्य घटकों का क्रम निर्धारण, पूर्वानुमान । सामान्यतः प्रयुक्त सूचकांक-लास्पियर, पाशे एवं फिशर के आदर्श सूचकांक, श्रृंखला आधार सूचकांक, सूचकांकों के उपयोग और सीमाएं, थोक कीमतों, उपभोक्ता कीमतों, कृषि उत्पादन एवं औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक, सूचकांकों के लिए परीक्षण-आनुपातिकता, काल-विपर्यय, उत्पादन उत्क्रमण एवं वृत्तीय ।

सामान्य रैखिक निदर्श, साधारण न्यूनतम वर्ग एवं सामान्यीकृत न्यूनतम वर्ग, प्राक्कलन विधियां, बहुसंरेखता की समस्या, बहुसंरेखता के परिणाम एवं हल, स्वसहबंध एवं इसका परिणाम, विध्धांभों की विषम विचालिता एवं इसका परीक्षण, विध्धांभों के स्वातंत्र्य का परीक्षण, संरचना की संकल्पना एवं युगपत समीकरण निदर्श, अभिनिर्धारण समस्या-अभिज्ञेयता की कोटो एवं क्रम प्रतिबंध, प्राक्कलन की द्विप्रावस्था न्यूनतम वर्ग विधि ।

भारत में जनसंख्या, कृषि, औद्योगिक उत्पादन एवं कीमतों के संबंध में वर्तमान राजकीय सांख्यिकीय प्रणाली, राजकीय आंकड़े ग्रहण की विधियां, उनकी विश्वनीयता एवं सीमाएं, ऐसे आंकड़ों वाले मुख्य प्रकाशन, आंकड़ों के संग्रहण के लिए जिम्मेवार विभिन्न राजकीय अभिकरण एवं उनकें प्रमुख कार्य ।

IV. जनसांख्यिकी एवं मनोमिति

जनगणना, पंजीकरण, एवं अन्य सर्वेक्षणों से जनसांख्यिकीय आंकड़ें, उनकी सीमाएं एवं उपयोग, व्याख्या, जन्म मरण दरों और अनुपातों की रचना एवं उपयोग, जननक्षमता की माप, जनन दरें, रूग्णता दर मानकीकृत मृत्यु दर, पूर्ण एवं संक्षिप्त वय सारणियां, जन्म मरण आंकड़ों एवं जनगणना विवरणियों से वय सारणियों की रचना, वय सारणियों के उपयोग, वृद्धिधात एवं अन्य जनसंख्या वृद्धि वक्र, वृद्धि धात वक्र समंजन, जनसंख्या प्रक्षेप, स्थिर जनसंख्या, स्थिरकल्प जनसंख्या, जनसांख्यिकीय प्राचलों के आकलन में प्रविधियां, मृत्यु के कारण के आधार पर मानक वर्गीकरण, स्वास्थ्य सर्वेक्षण एवं अस्पताल आंकड़ों का उपयोग ।

मापनियों एवं परिक्षणों के मानकीकरण की विधियां, Z समंक, मानक समंक, T-समंक, शततमक समंक, बुद्धि लब्धि एवं इसका मापन एवं उपयोग, परीक्षण समंकों की वैधता एवं विश्वसनीयता एवं इसका निर्धारण, मनोमिति में उपादान विश्लेषण एवं पथविश्लेषण का उपयोग ।

प्राणी विज्ञान

प्रश्न पत्र-1

1. अरज्जुकी और रज्जुकी

(क) विभिन्न फाइलों का उपवर्गों तक वर्गीकरण एवं संबंध; एसीलोमेटा और सीलोमेटा; प्रोटोस्टोम और ड्यूटेरोस्टोम, बाइलेटरेलिया और रेडियटा, प्रोटिस्टा पैराजोआ, ओनिकोफोरा तथा हेमिकॉरडाटा का स्थान; सममिति।
(ख) प्रोटोजोआ : गमन, पोषण तथा जनन, लिंग पैरामीशियम, मॉनीसिस्टस प्लान्मोडियम तथा लीशमेनिया के सामान्य लक्षण एवं जीवन-वृत्त।


(ग) पोरिफोरा : कंकाल, नालतंत्र तथा जनन ।
(घ) नीडोरिया : बहुरूपता, रक्षा संरचनाएं तथा उनको क्रियाविधि, प्रवाल भित्तियां और उनका निर्माण, मेटाजेनेसिस, ओबोलिया औरोलिया के सामान्य लक्षण एवं जीवन-वृत्त ।
(ङ) प्लैटिहेल्मिथीज : परजीवी अनुकूलन : फीसिओला तथा टोनिया के सामान्य लक्षण एवं जीवन-वृत्त तथा उनकं रोगजनक लक्षण ।
(च) नेमेटहेल्मेंथीज : एस्कोरिस एवं बुचेरोरिया के सामान्य लक्षण, जीवन वृत्त तथा परजीवी अनुकूलन ।
(छ) एनेलीडा : सीलोम और विखंडता, पॉलीकोटों में जीवन-विधियां, नेरीस (नीऐथीस), कोंचुआ (फोरेटिमा) तथा जोंक के सामान्य लक्षण तथा जीवन-वृत्त ।
(ज) आर्थोपोडा : क्रस्टेशिया में डिबप्रकार और परजीविता, आर्थोपोडा (झोंग, तिलचट्टा तथा बिच्छू) में दृष्टि और श्वसन; कोटों (तिलचट्टा, मच्छर, मक्खी, मधुमक्खी तथा तितली) में मुखांगों का रूपांतरण, कोटों में कायांतरण तथा इसका हार्मोनी नियमन, दीमकों तथा मधुमक्खियों का सामाजिक व्यवहार ।
(झ) मोलस्का : अशन, श्वसन, गमन, लैमेलिडेन्स, पाइला, तथा सीपिया के सामान्य लक्षण एवं जीवन वृत्त, गैस्ट्रोपोडों में ऐंठन तथा अव्यावर्तन ।
(ज) एकाइनोडर्मेटा : अशन, श्वसन, गमन, डिम्ब प्रकार, एस्टीरियस के सामान्य लक्षण तथा जीवन-वृत्त ।
(ट) प्रोटोकॉडेटा : स्न्युकियों का उद्भव, ब्रैंकियोस्टोमा तथा हर्डमानिया के सामान्य लक्षण तथा जीवन-वृत्त ।
(उ) पाइसीज : श्वसन गमन तथा प्रवासन ।
(ड) एम्फिबिया: चतुष्पादों का उद्भव, जनकीय देखभाल, शावकांतरण ।
(ढ) रेप्टोलिया वर्ग : सरीसृपों की उत्पत्ति, करोटि के प्रकार, स्फोमोडॉन तथा मगरमच्छों का स्थान ।
(ण) एवीज; पक्षियों का उद्भव, उद्दूडयन-अनुकूलन तथा प्रवासन।
(त) मैमेलिया : स्तनधारियों का उद्भव, दंतविन्यास, अंडा देने वाले स्तनधारियों, कोष्ठधारी, स्तनधारियों, जलीय स्तनधारियों तथा प्राइमेटों के सामान्य लक्षण, अंतःस्रावी ग्रंथियां (पीयूव ग्रंथि, अवटु ग्रंथि, परावटु ग्रंथि, अधिवृक्क ग्रंथि, अग्नाशय, जनन ग्रंथि) तथा उसमें अंतर्संबंध ।
(थ) कशेरूकी प्राणियों के विभिन्न तंत्रों का तुलनात्मक, कार्यात्मक शरीर (अध्यावरण तथा इसकं व्युत्पाद, अंतःकंकाल, चलन अंग, पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र, हृदय तथा महाधमनी चापों सहित परिसंचारी तंत्र, मूत्र-जनन तंत्र, मस्तिष्क तथा ज्ञानेन्द्रियां (आंख तथा नाक) ।

2. पारिस्थितिकी

(क) जीवमंडल : जीवमंडल की संकल्पना; वायोम, जैवभूरसायन चक्र, ग्रीन हाउस प्रभाव सहित वातावरण में मानव प्रेरित परिवर्तन, पारिस्थितिक अनुक्रम, जीवोम तथा ईकोटोन, सामुदायिक पारिस्थितिक ।
(ख) परितंत्र की संकल्पना, पारितंत्र की संरचना एवं कार्य, पारितंत्र के प्रकार, पारिस्थितिक अनुक्रम, पारिस्थितिक अनुकूलन ।
(ग) समष्टि, विलोमताएं, समष्टि गतिकी, समष्टि स्थिरीकरण ।
(घ) प्राकृतिक संसाधनों का जैव विविधता एवं विविधता संरक्षण ।
(ङ) भारत का वन्य जीवन ।
(च) संपोषणीय विकास के लिए सुदूर सुग्राहीकरण ।
(छ) पर्यावरणीय जैवनिम्नीकरण, प्रदूषण, तथा जीवमंडल पर इसकं प्रभाव एवं उसकी रोकथाम ।

3: जीव पारिस्थितिकी

(क) व्यवहार : संवेदी निस्यदंन, प्रतिसंवेदिता चिह्न उद्द्योपन, सोखना एवं स्मृति, वृत्ति, अभ्यास, प्रानुकूलन, अध्यंकन ।
(ख) चालन में हार्मोनों की भूमिका, संचेतन प्रसार में फोरोमोनों की भूमिका; गोपकता, परभक्षी पहचान, परभक्षी तौर तरीक, प्राइमेटों में सामाजिक सोपान, कोटों में सामाजिक संगठन ।
(ग) अभिविन्यास, संचालन, अभिग्रह, जैविकलय, जैविक नियतकालिकता, ज्वारीय, ऋतुपरक तथा दिवसप्रायलय ।
(घ) गौन द्वन्द्व, स्वार्थपरता, नातेदारी एवं परोपकारिता समेत प्राणी-व्यवहार के अध्ययन की विधियां।

4. आर्थिक प्राणि विज्ञान

(क) मधुमक्खी पालन, रेश्मकीट पालन, लाखकीट पालन, शफरी संवर्ध, सीप पालन, झोंगा पालन, कृमि संवर्ध ।
(ख) प्रमुख संक्रामक एवं संचरणीय रोग (मलेरिया, फाइलेरिया, क्षय रोग, हैजा तथा एड्स), उनकं वाहक, रोगणु तथा रोकथाम ।
(ग) पशुओं तथा मवेशियों के रोग, उनकं रोगाणु (हेलमिन्थस) तथा वाहक (चिचड़ी कुटकी, टेबेनस, स्टोमोक्सिस) ।
(घ) गन्ने के पीडक (पाइरिला परपुसिएला), तिलहन का पीडक (ऐकिया जनाटा) तथा चावल का पीडक (सिटोफिलस ओरिजे) ।
(ङ) पारजीनी जंतु ।
(च) चिकित्सकीय जैव प्रौद्योगिकी, मानव आनुवंशिक रोग एवं आनुवंशिक काउंसलिंग, जीन चिकित्सा ।


(छ) विधि जैव प्रौद्योगिकी ।

5. जैव सांख्यिकी

प्रयोगों की अभिकल्पना; निराकरणी परिकल्पना ; सहसंबंध, समाश्रयण, कॅन्द्रीय प्रवृति का वितरण एवं मापन, काई-स्कवेयर, विद्यार्थी-टेस्ट, एफ-टेस्ट (एकमापी तथा द्विधर्गी एफ-टेस्ट)

6. उपकरणीय पद्धति

(क) स्पेक्ट्रमी प्रकाशमापित्र प्रावस्था विपर्यास एवं प्रतिदीप्ति सूक्ष्म दर्शिकी, रेडियोटक्टिव अनुरेखक, द्रुत अपकेंद्रित्र, जेल एलेक्ट्रोप्लेरेसिस, PCR, ALISA, FISH एवं गुणसूत्रपेटिंग।
(ख) इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी (TEM, SEM) ।

प्रश्न पत्र – 2

1. कोशिका जीय विज्ञान

(क) कोशिका तथा इसके कोशिकांगों (कॅडक,प्लाजमा, झिल्ली, माइटोकौंड्रिया, गॉल्जीफाय, अंतर्द्वय्यी जालिका, राइबोसोम तथा लाइसोस्टेम्स) की संरचना एवं कार्य, कोशिका-विभाजन (समसूत्री तथा अर्द्धसूत्री), समसूत्री तर्क् तथा समसूत्री तंत्र, गुणसूत्र गति । क्रोमोसोम प्रकार पॉलिटोन एवं लैंब्रश, क्रोमीटिन की व्यवस्था, कोशिकाचक्र नियमन ।
(ख) न्यूक्लोइक अम्ल सांस्थतिकी, DNA अनुकल्प, DNA प्रतिकृति अनुलेखन, RNA प्रक्रमण, स्थानांतरण, प्रोटीन वलन एवं परिवहन ।

2. आनुवंशिकी

(क) जीन की आधुनिक संकल्पना, विभक्त जीन, जीन नियमन, आनुवांशिक-कूट ।
(ख) लिंग गुणसूत्र एवं उनका विकास, ड्रोसोफिला तथा मानव में लिंग-निर्धारण ।
(ग) वंशागति के मेंडलीय नियम, पुनर्योजन, सहलग्नता, बहुगुण, विकल्पों, रक्त समूहों की आनुवंशिकी, वंशावली विश्लेषण, मानव में वंशागत रोग ।
(घ) उत्परिवर्तन तथा उत्परिवर्तजनन ।
(ङ) पुनर्योगज DNA प्रौद्योगिकी, वाहकों के रूप में प्लैजमिट्स, कॉसमिट्स, कृत्रिम गुणसूत्र, पारजोनी, DNA क्लोनिंग तथा पूर्ण क्लोनिंग (सिद्धांत तथा क्रिया पद्धति) ।
(च) प्रोकेरियारेट्स तथा यूकेरियरेट्स में जीन नियमन तथा जीन अभिव्यक्ति ।
(छ) संकेत अणु, कोशिका मृत्यु, संकेतन पथ में दोष तथा परिणाम ।
(ज) RELP, RAPD एवं AFLP तथा फिंगरप्रिंटिंग में अनुप्रयोग, राइबोजाइम प्रौद्योगिकी, मानव जीनोम परियोजना, जीनोमिक्स एवं प्रोटोमिक्स ।

3. विकास

(क) जीवन के उद्भव के सिद्धांत ।
(ख) विकास के सिद्धांत; प्राकृतिक वरण, विकास में उत्परिवर्तन की भूमिका, विकासात्मक प्रतिरूप, आण्विक ड्राइव, अनुहरण, विभिन्नता, पृथक्करण एवं जाति उद्भवन ।
(ग) जीवाश्म आंकड़ों के प्रयोग से घोड़े, हाथी तथा मानव का विकास ।
(घ) हार्डी-वोनवर्ग नियम ।
(ङ) महाद्वीपीय विस्थापन तथा प्राणियों का वितरण ।

4. वर्गीकरण-विज्ञान

(क) प्राणिविज्ञानिक नामावली, अंतर्राष्ट्रीय नियम, क्लैटिस्टिक्स, आण्विक वर्गिकी एवं जैव विविधता ।

5. जीव रसायन

(क) कार्बोहाइड्रेटों, वसाओं, वसाअम्लों एवं कोलस्ट्रोल, प्रोटीनों एवं अमीनोअम्लों, न्यूक्लिइक अम्लों की संरचना एवं भूमिका । पायो एनर्जेटिक्स ।
(ख) ग्लाइकोसिस तथा क्रब्स चक्र, ऑक्सीकरण तथा अपचयन, ऑक्सीकरणी फास्फोरिलेशन, ऊर्जा संरक्षण तथा विमोचन, ATP चक्र, चक्रीय AMP-इसकी संरचना तथा भूमिका ।
(ग) हार्मोन वर्गीकरण (स्टेराइड तथा पेप्टाइड हार्मोन), जैव संश्लेषण तथा कार्य ।
(घ) एंजाइम : क्रिया के प्रकार तथा क्रिया विधियां ।
(ङ) विटामिन तथा को-एंजाइम ।
(च) इम्यूनोग्लोब्यूलिन एवं रोधक्षमता ।

6. कार्यिकी (स्तनधारियों के विशेष संदर्भ में )

(क) रक्त की संघटना तथा रचक, मानव में रक्त समूह तथा RH कारक, स्कंदन के कारक तथा क्रिया विधि, लोह उपापचय, अम्ल क्षारक साम्य, तापनियमन, प्रतिस्कंदक ।
(ख) होमोग्लोबिन : रचना प्रकार एवं ऑक्सीजन तथा कार्बनडाईऑक्साइड परिवहन में भूमिका ।
(ग) पाचन एवं अवशोषण : पाचन में लार ग्रंथियों, यकृत, अग्न्याशय तथा आंत्र ग्रंथियों की भूमिका ।
(घ) उत्सर्जन : नेफ्रान तथा मूत्र विरचन का नियमन; परसरण नियमन एवं उत्सर्जी उत्पाद ।
(ङ) पेशी : प्रकार, कंकाल पेशियों की संकुचन की क्रिया विधि, पेशियों पर व्यायाम का प्रभाव ।
(च) न्यूरॉन : तंत्रिका आवेग-उसका चालन तथा अंतर्ग्रथनी संचरण: न्यूरोट्रांसमीटर ।
(छ) मानव में दृष्टि, श्रवण तथा प्राणबोध ।
(ज) जनन की कार्यिकी, मानव में यौवनारंभ एवं रजोनिवृति ।


7. परिवर्धन जीवविज्ञान

(क) युग्मक जनन्; शुक्र जनन्; शुक्र की रचना, मैमेलियन शुक्र की पात्रे एवं जीवै धारिता । अंड जनन, पूर्ण शक्तता, निषेचन, मार्फाजेनेसिस एवं मार्फाजेन, ब्लास्टोजेनेसिस, श्रीर अक्ष रचना की स्थापना, फेट मानचित्र, मेढक एवं चूजे में गेर्यूलेशन, चूजे में विकासाधीन जीन, अंगातरक जीन, आंख एवं हृदय का विकास, स्तनियों में अपरा ।
(ख) कोशिका वंश परंपरा, कोशिका-कोशिका अन्योन्य क्रिया, आनुवांशिक एवं प्रेरित विरूपजनकता, एफिबीया में कार्यातरण के नियंत्रण में वायरोक्सिन की भूमिका, शावकीजनन एवं चिरप्रुणता, कोशिका मृत्यु, कालप्रभावन।
(ग) मानव में विकासीय जीन, पात्रे निषचन एवं प्रुण अंतरण, क्लोनिंग।
(घ) स्टेमकोशिका: स्रोत, प्रकार एवं मानव कल्याण में उनका उपयोग।
(ङ) जाति आवर्तन नियम।

परिशिष्ट-2

सिविल सेवा परीक्षा के द्वारा जिन सेवाओं में भर्ती की जा रही है उसका संक्षिप्त ब्यौरा :-

  1. भारतीय प्रशासनिक सेवा .-(क) नियुक्तियां परिवीक्षा के आधार पर की जाएंगी जिसकी अवधि दो वर्ष की होगी परन्तु कुछ शर्तों के अनुसार बढ़ाया भी जा सकेगा । सफल उम्मीदवार की परिवीक्षा की अवधि में केन्द्रीय सरकार के निर्णय के अनुसार निश्चित स्थान पर और निश्चित रीति से कार्य करना होगा और निश्चित परीक्षाएं पास करनी होंगी।
    (ख) यदि सरकार की राय में किसी परिवीक्षाधीन अधिकारी का कार्य या आचरण सन्तोषजनक न हो या उसे देखते हुए उसक कार्यकुशल होने की संभावना न हो, तो सरकार तत्काल सेवामुक्त कर सकती है । या यथास्थिति उसे स्थाई पद पर प्रत्यावर्तित कर सकती है। जिस पर उसका पुनर्ग्रहणाधिकार है अथवा होगा; बशर्ते कि उक्त सेवा में नियुक्ति से पहले उस पर लागू नियमों के अंतर्गत पुनर्ग्रहणाधिकार निलंबित न कर दिया गया हो।
    (ग) परिवीक्षा अवधि के संतोषजनक रूप से पूरा होने पर सरकार अधिकारी को सेवा में स्थाई कर सकती है यदि सरकार की राय में उसका कार्य या आचरण संतोषजनक न हो तो सरकार उसे भी सेवामुक्त कर सकती है या उसको परिवीक्षा अवधि को जितना उचित समझे कुछ शर्तों के साथ बढ़ा सकती है।
    (घ) भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों से केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के अंतर्गत भारत में या विदेश में किसी स्थान पर सेवाएं ली जा सकती हैं।

भारतीय प्रशासनिक सेवा के विभिन्न ग्रेडों से संबद्ध पे बैण्ड तथा ग्रेड पे :

कनिष्ठ वेतनमान

पे बैण्ड-3 15600-39100 रु. +5400 रु. ग्रेड पे

वरिष्ठ वेतनमान

(i) वरिष्ठ समय वेतनमान

पे बैण्ड-3 : 15600-39100 रु. +6600 रु. ग्रेड पे (पदोन्नति पर वेतन निर्धारण के समय दो अतिरिक्त वेतनवृद्धियां प्रदान की जाएंगी)।

(ii) कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड :

पे बैँड-3 रु. 15000-39100 + 7600 रु. ग्रेड पे (पदोन्नति पर वेतन निर्धारण के समय दो अतिरिक्त वेतनवृद्धियां प्रदान की जाएंगी ।

(iii) चयन ग्रेड :

पे बैँड-4 रु. 37400-67000 + 8700 रु. ग्रेड पे (पदोन्नति के समय पे बैंड के न्यूनतम पर दो अतिरिक्त वेतनवृद्धियां तथा ग्रेड पे प्रदान की जाएंगी !

अधिसमय वेतनमान :

पे बैण्ड-4 : 37400-67000 रु. +10000 रु. ग्रेड पे
अधिसमय से ऊपर के वेतनमान
(i) उच्च प्रशासनिक ग्रेड वेतनमान

67000 रु. (3 प्रतिशत की दर से वेतनवृद्धि) – 79000 , ग्रेड पे – शून्य
(ii) शीर्ष वेतनमान

80000 रु. (नियत). ग्रेड पे-शून्य।
महंगाई भला अखिल भारतीय सेवाएं (महंगाई भला) नियम, 1972 के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किए गए आदेशों के अनुसार मिलेगा।

परिवीक्षाधीन अधिकारियों की सेवा कनिष्ठ समय वेतनमान में प्रारंभ होगी और परिवीक्षा पर दिताई गई अवधि को समय वेतनमान में वेतन वृद्धि या पेंशन, छुट्टी के लिए गिनने की अनुभति होगी।
(च) भविष्य निधि.-भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी समय-समय पर संशोधित अखिल भारतीय सेवा (भविष्य निधि) नियमावली, 1955 से शासित होते हैं।
(छ) छुट्टी.-भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी समय-समय पर संशोधित अखिल भारतीय सेवा (छुट्टी) नियमावली, 1955 द्वारा शासित होते हैं।
(ज) डाक्टरी परिचर्या.-भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी समय-समय पर संशोधित अखिल भारतीय सेवा (डाक्टरी परिचर्या) नियमावली, 1954 के अंतर्गत प्राप्त डाक्टरी परिचर्या की सुविधाएं पाने का हक है।
(झ) सेवानिवृत्ति लाभ.-प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर नियुक्त किए गए भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी समय-समय पर संशोधित अखिल भारतीय सेवा, मृत्यु व सेवानिवृत्ति लाभ नियमावली, 1958 द्वारा शासित होते हैं।
2. भारतीय विदेश सेवा.-(क) नियुक्ति परिवीक्षा पर की जाएगी जिसकी अवधि 2 वर्ष होगी जिसे बढ़ाया जा सकता है । सफल उम्मीदवारों को भारत में लगभग 18 मास तक रहना होगा। इसकं बाद उन्हें तृतीय सचिव या उप-कोशिल बनाकर विदेशों में स्थित भारतीय मिशनों में भेज दिया जाएगा । प्रशिक्षण की अवधि में परिवीक्षाधीन अधिकारियों की एक या अधिक विभागीय परीक्षाएं पास करनी होंगी और इसकं बाद ही वे सेवा में स्थायी हो सकेंगे।


(ख) सरकार के लिए संतोषजनक रूप से परिवीक्षा के समाप्त होने और निर्धारित परीक्षाएँ पास करने पर ही परिवीक्षाधीन अधिकारी को उसकी नियुक्ति पर स्थायी किया जाएगा। परन्तु यदि सरकार को राय में उसका कार्य या आचरण संतोषजनक न रहा हो तो सरकार उसे सेवा-मुक्त कर सकती है या परिवीक्षा अवधि को जितना उचित समझे बढ़ा सकती है या यदि उसका कोई मूल पद (सब्सटेंटिव पोस्ट) हो तो उस पर वापस भेज सकती है।
(ग) यदि सरकार को राय में किसी परिवीक्षाधीन अधिकारी का कार्य या आचरण संतोषजनक न हो तो उसे देखते हुए उसके विदेश सेवा के लिए उपयुक्त होने की संभावना न हो तो सरकार उसे तत्काल सेवा मुक्त कर सकती है या यदि उसके कोई मूल पद हो तो उसे उस पर वापस भेज सकती है।
(घ) पूर्व संशोधित वेतनमान : कनिष्ठ वेतनमान 8000-275-13500 रुपये भारतीय विदेश सेवा में नियुक्त अधिकारी वरिष्ठ वेतनमान (10650-325-15850 रुपये) और कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (12750-375-16500 रुपये) में क्रमश: 4 वर्ष और 9 वर्ष की सेवा पूरी करने के बाद नियुक्ति के पात्र होंगे।

इसके अतिरिक्त, चयन ग्रेड, सुपर टाइम ग्रेड और 15100 रुपये और 26000 रुपये के बीच, उच्च वेतनमान वाले कुछ पद हैं जिसमें भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी पदोन्नति के पात्र हैं।
(ङ) परिवीक्षा अवधि में परिवीक्षाधीन अधिकारी को इस प्रकार वेतनमान मिलेगा :

पहले वर्ष 8000 रुपये प्रति मास
दूसरे वर्ष 8275 रुपये प्रति मास
टिप्पणी 1 : परिवीक्षाधीन अधिकारी की परिवीक्षा पर बिताई गई अवधि समय वेतनमान में वेतन वृद्धि या पेंशन के लिए गिनने की अनुमति होगी।

टिप्पणी 2 : परिवीक्षाधीन अधिकारी को परिवीक्षा अवधि में वेतन वृद्धि तभी मिलेगी जब वह निर्धारित परीक्षाएँ (यदि कोई हो) पास कर लेगा और सरकार को संतोषप्रद प्रगति करके दिखाएगा। विभागीय परीक्षाएँ पास करके अग्रिम वेतन वृद्धियां भी अर्जित की जा सकती हैं।

टिप्पणी 3 : परिवीक्षा के तौर पर नियुक्ति से पूर्व सावधिक पद के अतिरिक्त मूल रूप से स्थायी पद पर रहने वाले सरकारी कर्मचारी का वेतन एफ आर 22 -बी (1) के उपबंधों के अनुसार विनियमित किया जाएगा।
(च) भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी से भारत में या भारत के बाहर किसी भी स्थान पर सेवाएँ ली जा सकती हैं।
(छ) विदेश में सेवा करते समय भारतीय विदेश सेवा से अधिकारियों को उनकी हैसियत के अनुसार विदेश भत्ते मिलेंगे जिससे कि वे नौकर-चाकरों और जीवन निर्वाह के खर्चे को पूरा कर सकें और आतिथ्य (एंटरटेन्मेंट) संबंधी अपनी विशेष जिम्मेदारियों को भी निभा सकें। इसके अतिरिक्त विदेश में सेवा करते समय भारतीय सेवा के अधिकारियों को निम्नलिखित रियायतें भी मिलेंगी :-
(1) हैसियत अनुसार नि:शुल्क सज्जित आवास।
(2) सहायता प्राप्त चिकित्सा परिचर्या योजना के अंतर्गत चिकित्सा परिचर्या को सुविधाएँ।
(3) विदेश में नियुक्त होने पर छुट्टी पर भारत आने के लिए वापसी हवाई यात्रा का किराया जो अधिक से अधिक $2 / 3$ वर्षो के सामान्य समय में एक बार उसकी और आश्रित पारिवारिक सदस्यों को दिया जाएगा; इसके अतिरिक्त अधिकारी को पूरी सेवा अवधि में दो बार उसे स्वयं को और परिवार सदस्यों को व्यक्तिगत तथा पारिवारिक संकट के कारण भारत आने का एक तरफा संकटकालीन हवाई यात्रा किराया दिया जाएगा।
(4) भारत में पढ़ने वाले 6 से 22 वर्ष तक की आयु वाले बच्चों के लिए वर्ष में एक बार छुट्टियों में माता-पिता से मिलने के लिए वापसी हवाई यात्रा किराया कुछ शर्तों के अधीन दिया जाएगा।
(5) अधिकारी के सेवा स्थान पर अध्ययनरत 5 से 20 वर्ष तक की आयु वाले अधिक से अधिक दो बच्चों के लिए शिक्षा भत्ता यदि ऐसा कोई विद्यालय विदेश मंत्रालय द्वारा मान्यता प्राप्त हो।
(ज) समय-समय पर संशोधित केन्द्रीय सिविल सेवा (छुट्टी) नियमावली, 1972 कुछ तरसीमों के साथ इस सेवा के सदस्यों पर लागू होंगी। विदेश सेवा के लिए भारतीय विदेश सेवा अधिकारियों को भारतीय विदेश सेवा (पी.एल.सी.ए.) नियमावली, 1961 के अंतर्गत विदेश में की गई कार्यशील सेवा के काल के लिए अतिरिक्त छुट्टियां मिलेंगी जो के. सि.से. (छुट्टी) नियमावली, 1972 के अंतर्गत मिलने वाली अर्जित छुट्टियों के 50 प्रतिशत तक होगी।
(झ) भविष्य निधि : भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी सामान्य भविष्य निधि केन्द्रीय सेवा नियमावली, 1960 द्वारा शासित हैं।
(ज) सेवानिवृत्ति लाभ : प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर नियुक्त किए गए भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी केन्द्रीय सिविल (पेंशन) नियमावली, 1972 द्वारा शासित होते हैं।
(ड) भारत में रहते समय अधिकारियों को रियायतें मिलेंगी जो उनके समकक्ष या समान हैसियत वाले अन्य सरकारी कर्मचारियों को मिलती हैं।

3. भारतीय पुलिस सेवा :

(क) नियुक्ति परिवीक्षा पर की जाएगी जिसकी अवधि दो वर्ष की होगी उसे कुछ शर्तों पर बढ़ाया भी जा सकेगा। सफल उम्मीदवारों की परिवीक्षा की अवधि में भारत सरकार के निर्णय अनुसार निश्चित स्थान पर और निश्चित रीति से विहित प्रशिक्षण लेना होगा और निश्चित परीक्षाएँ पास करनी होंगी।
(ख) और (ग) जैसा कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के खंड (ख) और (ग) में दिया गया है।
(घ) भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी से केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के अंतर्गत भारत में या विदेशों में किसी भी स्थान पर सेवाएँ ली जा सकती हैं।


रैंक समय-वेतनमान वेतनमान
संशोधित संशोधन पूर्व
वेतनमान ग्रेड पे
पुलिस अधीक्षक कनिष्ठ वेतनमान $15,600-39,100$ रु. 5400 रु. $8,000-275-13,500$ रु.
वरिष्ठ वेतनमान $15,600-39,100$ रु. 6600 रु. $10,000-325-15,200$ रु.
कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड $15,600-39,100$ रु. 7600 रु. $12,000-375-16,500$ रु.
चयन ग्रेड $37,400-67,000$ रु. 8700 रु. $14,300-400-18,300$ रु.
उप-महानिरीक्षक सुपर समय वेतनमान $37,400-67,000$ रु. 8900 रु. $16,400-450-20,000$ रु.
महानिरीक्षक सुपर समय वेतनमान $37,400-67,000$ रु. 10,000 रु. $18,400-500-22,400$ रु.
अपर महानिदेशक सुपर समय वेतनमान से ऊपर $37,400-67,000$ रु. 12,000 रु. $22,400-525-24,500$ रु.
महानिदेशक सुपर समय वेतनमान से ऊपर $\begin{aligned} & \text { ड.प.-ग्रे. } 75500- \ & 80,000 \text { रु. (3 प्रतिशत } \ & \text { की दर से वेतनवृद्धि) } \end{aligned}$ शून्य $24,050-650-26,000$ रु.
80,000 रु. (नियत) 26,000 रु. (नियत)

महंगाई भत्ता अखिल भारतीय सेवाएं (महंगाई भत्ता) नियम, 1972 के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किए गए आदेशों के अनुसार मिलेगा।

परिवीक्षाधीन अधिकारियों की सेवा कनिष्ठ समय वेतनमान में प्रारंभ होगी और परिवीक्षा पर बिताई गई अवधि को समय वेतनमान में वेतन वृद्धि या पेंशन, छुट्टी के लिए गिनने की अनुमति होगी। (च) से (झ) जैसा कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के खंड (च), (छ), (ज) और (झ) में दिया गया है।

4. भारतीय डाक तार सेवा तथा वित्त सेवा

(क) नियुक्ति परिवीक्षा पर की जाएगी जिसकी अवधि 2 वर्ष बुनियादी पाद्यक्रम सहित, की होगी परन्तु यह अवधि बढ़ाई भी जा सकती है, यदि परिवीक्षाधीन अधिकारी ने निर्धारित परिक्षाएं पास करके अपने को स्थायी किए जाने के योग्य सिद्ध न किया हो। (ख) यदि सरकार की राय में परिवीक्षाधीन अधिकारी का कार्य या आचरण असंतोषजनक हो, उसे देखते हुए उसक कार्यकुशल होने की संभावना न हो, तो सरकार तत्काल सेवा मुक्त कर सकती है अथवा जैसा भी मामला हो, सेवा में अपनी नियुक्ति से पूर्व नियमों के अधीन जिस स्थाई पद पर उसका पुनर्ग्रहण अधिकार होगा, उस पद पर उसका परावर्तन कर दिया जायेगा। (ग) परिवीक्षा की अवधि समाप्त/मुक्त होने पर सरकार अधिकारी को उसकी नियुक्ति पर स्थायी कर सकती है या यदि सरकार की राय में उसका कार्य या आचरण असंतोषजनक रहा हो तो उसे या तो सेवा से

मुक्त कर सकती है या उसकी परिवीक्षा अवधि को जितना उचित समझे बढ़ा सकती है अथवा स्थाई पद पर, यदि कोई हो, उसका प्रत्यावर्तन कर सकती है। (घ) डाक विभाग उन संघटक विभागों में से एक है जिसका संचालन (सेवा द्वारा), भारतीय डाक और दूरसंचार लेखा और वित्त सेवा ग्रुप ‘क’ भर्ती नियमावली, 2001 के अनुसार किया जाता है । दूरसंचार विभाग और डाक विभाग में पदों पर भर्ती संघ लोक सेवा आयोग द्वारा की जाएगी। (ङ) भारतीय डाक तार तथा वित्त सेवा पर भारत के किसी भी भाग में सेवा का एक निश्चित उत्तरदायित्व है। (च) भारतीय डाक तार तथा वित्त सेवा का पूर्व संशोधित वेतनमान :- (1) कनिष्ठ वेतनमान — रु. 8000-275-13500 (2) वरिष्ठ वेतनमान — रु. 10000-325-15200 (3) कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (साधारण)— रु. $12000-325-16500$ (4) कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (चयन ग्रेड)— रु. $14300-400-18300$ (5) वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड—रु. 18400-500-22400 (6) वरिष्ठ उप-महानिदेशक (एफ)—रु. 22400-52524500 और (7) सलाहकार (वित्त)—रु. 22400-600-26000


(छ) जो सरकारी कर्मचारी परिवीक्षा के आधार पर नियुक्ति से पूर्व मौलिक आधार पर साविधिक पद के अतिरिक्त किसी स्थायी पद पर नियुक्त हो उसका वेतन मूल नियम 22-ख (1) की व्यवस्थाओं के अधीन विनियमित होगा ।

(5) भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा

(क) नियुक्ति परिवीक्षा के आधार पर की जाएगी जिसकी अवधि 2 वर्ष की होगी परन्तु यह अवधि बढ़ाई भी जा सकती है । यदि परिवीक्षाधीन अधिकारी ने निर्धारित विभागीय परीक्षाएं पास करकें, अपने को पक्का किए जाने योग्य सिद्व न किया हो। यदि कोई अधिकारी तीन वर्ष की अवधि में विभागीय परीक्षाएं पास करने में लगातार असफल होता रहा तो उसकी नियुक्ति खत्म कर दी जाएगी अथवा, जैसा भी मामला हो, सेवा में अपनी नियुक्ति से पूर्व नियमों के अधीन जिस स्थाई पद पर उसका पुनर्ग्रहन अधिकार होगा, उस पद पर उनका प्रत्यावर्तन किया जा सकता है।
(ख) यदि यथास्थिति सरकार या नियंत्रक और महालेखापरीक्षक की राय में परिवीक्षाधीन अधिकारी का कार्य या आचरण सन्तोषजनक न हो या उसे देखते हुए उसकें कार्यकुशल होने की संम्भावना न हो तो सरकार उसे तत्काल सेवायुक्त कर सकती है अथवा जैसा भी मामला हो सेवा में अपनी नियुक्ति से पूर्व नियमों के अधीन जिस स्थाई पद पर उसका पुनर्ग्रहन अधिकार होगा, उस पद पर उसका प्रत्यावर्तन किया जा सकता है।
(च) वेतनमान

पद का नाम वर्तमान वेतनमान संशोधित वेतन ढांचा तदनुरूपी
पे बैण्ड का नाम वेतनमान तदनुरूपी
ग्रेड पे
कनिष्ठ समय वेतनमान ₹ 8000-275-13500 पीबी-3 $15600-39100$ 5400
वरिष्ठ समय वेतनमान ₹ $10000-325-15200$ पीबी-3 $15600-39100$ 6600
कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड ₹ $12000-375-16500$ पीबी-3 $15600-39100$ 7600
कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड का
गैर कार्यात्मक चयन ग्रेड
₹ $14300-400-18300$ पीबी-4 $37400-67000$ 8700
वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड ₹ $18400-500-22400$ पीबी-4 $37400-67000$ 10000
प्रधान महालेखा परीक्षक/
महानिदेशक
₹ $22400-525-24500$ उच्च प्रशासनिक
ग्रेड
$\begin{aligned} & 67000-(3 \% \text { की } \ & \text { दर से वार्षिक वेतन } \ & \text { वृद्धि)-79000 } \end{aligned}$ शून्य
अपर उप नियंत्रक एवं
एवं महालेखा परीक्षक
₹ $24050-650-26000$ उच्च प्रशासनिक
ग्रेड + वेतनमान
$\begin{aligned} & 75500-(3 \% \text { की } \ & \text { दर से वार्षिक वेतन } \ & \text { वृद्धि) } 80000 /- \end{aligned}$ शून्य
उप नियंत्रक एवं
महालेखा परीक्षक
₹ 26000 ( नियत) शीर्ष वेतनमान 80000 (नियत) शून्य

टिप्पणी 1 : परिवीक्षाधीन अधिकारियों को सेवा भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा के समय वेतनमान में कम से कम वेतन से प्रारम्भ होगी और वेतनवृद्वि के प्रयोजन से उसकी सेवा कार्यग्रहण की तारीख से गिनी जाएगी।

टिप्पणी 2 : परिवीक्षाधीन अधिकारियों को पहली वेतनवृद्वि विभागीय परीक्षा के भाग I के उत्तीर्ण कर लेने की तारीख अथवा एक वर्ष की सेवा पूरी कर लेने की तारीख इनमें से जो भी पहले हो उसे स्वीकृत की जा सकती है। दूसरी वेतनवृद्वि विभागीय परीक्षा के भाग II के उत्तीर्ण


कर लेने की तारीख अथवा दो वर्ष की सेवा पूरी कर लेने की तारीख इनमें से जो भी पहले हो वैसे स्वीकृत की जा सकती है; वेतनमान को रु. 8825 प्रति माह तक कर लेने वाली तीसरी वेतन वृद्धि 3 वर्ष की सेवा पूरी कर लेने की तारीख और परिवीक्षा की निर्दिष्ट अवधि को संतोषजनक ढंग से अथवा अन्य निर्धारित शर्तों को पूरा करने पर ही स्वीकृत की जाएगी ।

टिप्पणी 3 : जो सरकारी कर्मचारी परिवीक्षा के आधार पर नियुक्ति से पूर्व मौलिक आधार पर सावधिक पद के अतिरिक्त किसी स्थायी पद पर नियुक्त हो उसका वेतन मूल नियम, 22ख(1) की व्यवस्थाओं के अधीन विनियमित होगा ।

टिप्पणी 4 : भारतीय लेखा परीक्षा तथा लेखा के अधिकारियों पर भारत में कहीं पर भी या विदेशों में सेवा करने का विनिश्चय दायित्व है । 6. भारतीय राजस्व सेवा पूर्व संशोधित वेतनमान (सीमा शुल्क और केन्द्रीय उत्पाद शुल्क) ग्रुप “क”

सहायक आयुक्त, सीमा-शुल्क तथा केन्द्रीय उत्पाद शुल्क रु. $8000-275-13500$

उपायुक्त, सीमा-शुल्क तथा केन्द्रीय उत्पाद शुल्क रु. $10000-325-15200$

संयुक्त आयुक्त, सीमा-शुल्क तथा केन्द्रीय उत्पाद शुल्क रु. $12000-375-16500$

अतिरिक्त आयुक्त, सीमा-शुल्क तथा केन्द्रीय उत्पाद शुल्क रु. $14300-400-18300$

आयुक्त सीमा-शुल्क तथा केन्द्रीय उत्पाद शुल्क रु. $18400-500-22400$

मुख्य आयुक्त, सीमा-शुल्क तथा केन्द्रीय उत्पाद शुल्क रु. $22400-525-24500$
(क) नियुक्तियां 2 वर्ष के लिए परिवीक्षा के आधार पर की जाएंगी। किन्तु यदि परिवीक्षाधीन अधिकारी निर्धारित विभागीय परीक्षाएं उत्तीर्ण करके स्थायीकरण का हकदार नहीं हो जाता तो उक्त अवधि को भी बढ़ाया जा सकता है। दो वर्ष की अवधि में विभागीय प्रतियोगिताओं को उत्तीर्ण न कर लेने पर नियुक्ति रद्दद भी की जा सकती है अथवा, जैसा भी मामला हो, सेवा में अपनी नियुक्ति से पूर्व नियमों के अधीन जिस स्थाई पद पर उसका पुनर्गहण अधिकार है, उस पद पर उसका प्रत्यावर्तन किया जा सकता है।
(ख) यदि सरकार की राय में किसी परिवीक्षाधीन अधिकारी का कार्य अथवा आचरण संतोषजनक नहीं है तो सरकार उसे तुरंत सेवामुक्त कर सकती है अथवा, जैसा भी मामला हो, सेवा में अपनी नियुक्ति से पूर्व नियमों के अधीन जिस स्थाई पद पर उसका पुर्तग्रहण अधिकार है, उस पर उसका प्रत्यावर्तन किया जा सकता है।
(ग) परिवीक्षाधीन अधिकारी का परिवीक्षाकाल पूर्ण होने पर सरकार उनकी नियुक्ति को स्थायी कर सकती है अथवा यदि सरकार की राय में उसका कार्य या आचरण संतोषजनक नहीं रहा है तो सरकार या तो उसे सेवामुक्त कर सकती है अथवा परिवीक्षाधीन काल में अपनी इच्छानुसार वृद्धि कर सकती है अथवा स्थाई पद पर, यदि कोई हो, उसका परावर्तन किया जा सकता है । किन्तु अस्थाई रिक्तियों पर नियुक्ति किये जाने पर स्थायीकरण संबंधी उसका कोई दावा स्वीकार नहीं किया जायेगा।
(घ) भारतीय राजस्व सेवा सीमा-शुल्क और केन्द्रीय उत्पाद शुल्क ग्रुप “क” के अधिकारी को भारत के किसी भी भाग में सेवा करनी होगी। तथा भारत में ही ‘फील्ड सर्विस’ करनी होगी ।

टिप्पणी 1 : परिवीक्षाधीन अधिकारी को आरम्भ में रू. $8000-275-13500$ के समय वेतनमान में न्यूनतम वेतन मिलेगा तथा वार्षिक वृद्धि के लिए अपने सेवा काल को वह कार्यभार ग्रहण करने की तारीख से माना जाएगा ।

टिप्पणी 2 : जो सरकारी कर्मचारी परिवीक्षा के आधार पर भारतीय राजस्व सेवा सीमा शुल्क और केन्द्रीय उत्पाद शुल्क ग्रुप “क” में नियुक्ति से पूर्व मौलिक आधार पर सर्वाधिक पद के अतिरिक्त स्थायी पद पर नियुक्त किया गया हो तो उसका वेतन मूल नियम 22ख (1) के व्यवस्थाओं के अधीन विनियमित होगा।

टिप्पणी 3 : परिवीक्षा अवधि के दौरान अधिकारी को प्रशिक्षण निदेशालय (सीमा शुल्क और केन्द्रीय उत्पाद शुल्क), नई दिल्ली में एक विभागीय प्रशिक्षण और लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी में फाउण्डेशन कोर्स प्रशिक्षण लेना होगा। उसे विभागीय परीक्षा के भाग I और भाग II उत्तीर्ण करने होंगे । परिवीक्षाधीन अधिकारी को वेतनवृद्धि निम्नानुसार नियमित होगी :

रु. 8275 तक बढ़ाने वाली पहली वेतनवृद्धि विभागीय परीक्षा के दो भागों में से एक उत्तीर्ण कर लेने की तारीख अथवा एक वर्ष की सेवा पूरी न कर लेने की तारीख से या एक वर्ष की सेवा पूरी करने पर, इसमें जो भी पहले हो, स्वीकृत की जाएगी, वेतन को 8550 रूपये तक बढ़ाने वाली दूसरी वेतनवृद्धि उक्त परीक्षा का दूसरा भाग उत्तीर्ण करने की तारीख से या दो वर्ष की सेवा पूरी करने पर (इसमें जो भी पहले हो), स्वीकृत की जाएगी, किन्तु 8825 रूपये तक बढ़ाने वाली तीसरी वेतनवृद्धि तभी दी जाएगी जब तीन वर्ष की सेवा पूरी कर ली हो तथा परिवीक्षा के लिए निर्धारित अवधि में परिवीक्षा पूरी कर ली हो और सरकार द्वारा यदि कोई अन्य शर्त विहित की जाये तो वह पूरी कर ली हो ।

टिप्पणी 4 : परिवीक्षाधीन अधिकारी को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि उनकी नियुक्ति भारतीय राजस्व सेवा सीमा शुल्क और केन्द्रीय उत्पाद शुल्क ग्रुप “क” के गठन में समय-समय पर भारत सरकार द्वारा आवश्यक समझकर किये जाने वाले प्रत्येक परिवर्तन के अधीन होगी और इस प्रकार के परिवर्तनों के फलस्वरूप उन्हें किसी प्रकार का मुआवजा नहीं दिया जायेगा।

7. भारतीय रक्षा लेखा सेवा

(1) वेतनमान :
(क) कनिष्ठ समय वेतनमान (रक्षा लेखा सहायक नियंत्रक एवं समकक्ष) $8000-275-13500$ रु. (संशोधन पूर्व)/15600 39100 रु. +5400 (ग्रेड पे) (संशोधित)
(ख) वरिष्ठ समय वेतनमान (रक्षा लेखा उप नियंत्रक एवं समकक्ष) $10000-325-15200$ रु. (संशोधन पूर्व)/1560039100 रु. +6600 रु. (ग्रेड पे) (संशोधित)
(ग) कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (रक्षा लेखा संयुक्त नियंत्रक एवं समकक्ष) $12000-375-16500$ रु. (संशोधन पूर्व)/1560039100 रु. +7600 रु. (ग्रेड पे) (संशोधित)


(म) कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (चयन ग्रेड) (रक्षा लेखा अपर नियंत्रण एवं समकक्ष) $14000-400-18300$ रु. (संशोधन पूर्व)/37400 67000 रु. +8700 (ग्रेड पे) (संशोधित)
(ङ) वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (रक्षा लेखा नियंत्रक एवं समकक्ष) $18400-500-22400$ रु. (संशोधन पूर्व)/37400-67000 रु. +10000 रु. (ग्रेड पे) (संशोधित)
(च) रक्षा लेखा प्रधान नियंत्रक एवं समकक्ष 22400-52524500 रु. (संशोधन पूर्व)/67000-79000 रु. (संशोधित)
(छ) रक्षा लेखा अपर महा नियंत्रक एवं समकक्ष $24500-650-26000$ रु. (संशोधन पूर्व)/75000 रु. ( $3 \%$ की दर से वार्षिक वेतन वृद्धि) 80000 रु. (संशोधित)
(ज) रक्षा लेखा महानियंत्रक (विभाग का प्रमुख) 26000 रु. नियत (संशोधनपूर्व)/80000 रु. नियत (संशोधित)।
(झ) रक्षा लेखा सहायक नियंत्रक/वित्त लेखा तथा लेखा (फँक्डी) सहायक नियंत्रक के रूप में पर तैनात
(2) परिवीक्षाधीन अधिकारी का आरंभिक न्यूनतम समय वेतनमान रु. $8000-275-13,500 /-$ (संशोधित पूर्व)/रू. (15600-39100) +5400 (ग्रेड वेतन) (संशोधित) होगा।
(3) नियुक्तियाँ दो वर्षो को अवधि की परिवीक्षा के आधार पर होंगी जिसकें दौरान परिवीक्षार्थियों को निर्धारित विभागीय परीक्षाएँ उत्तीर्ण करकें स्थायीकरण के लिए अर्हता प्राप्त करनी होंगी । यदि आवश्यक हुआ तो इस अवधि को सरकार चार वर्ष तक के लिए आगे बढ़ा सकती है । परिवीक्षा पास करने में लगातार असफल होने पर (जिसमें बढ़ाई गई अवधि शामिल है) सेवा समाप्त कर दी जाएगी। दो वर्ष की सामान्य अवधि के बाद परिवीक्षाकाल को बढ़ाया जाना वरिष्ठता क्रम को निश्चित रूप से प्रभावित करेगा । इसकें अलावा यदि कोई परिवीक्षार्थी परिवीक्षावधि के दौरान भारतीय रक्षा लेखा सेवा में किसी भी प्रकार से अनुपयुक्त पाया जाता है, तो उसको सेवाएँ सरकार द्वारा बिना किसी सूचना के समाप्त की जा सकती हैं । नियुक्ति भारतीय रक्षा लेखा सेवा के संविधान में किसी भी परिवर्तन की शर्त पर होंगी जो भारत सरकार के विवेक पर होगा और आप इस तरह के परिवर्तन के परिणाम से हुई किसी भी क्षतिपूर्ति के दावे के हकदार नहीं होंगे ।
(4) आयोग द्वारा किसी भी वर्ष में आयोजित सिविल सेवा परीक्षा के परिणामों के आधार पर कनिष्ठ समय वेतनमान में पदों पर भर्ती किये गये व्यक्तियों की वरिष्ठता उक्त विषय पर निगाहें और आदेशों के तथा प्रतियोगिता परीक्षा में संच लोक सेवा आयोग द्वारा अनुसंहित योग्यता क्रम के आधार पर निर्धारित की जाएगी। बशर्ते कि पहले वे चयन के आधार पर नियुक्त परिवीक्षार्थी का रैंक बाद के चयन के आधार पर नियुक्त व्यक्ति से श्रेणी में ऊपर होगा।
(5) भारतीय रक्षा लेखा सेवा में नियुक्ति को स्वीकृति में भारत में और इसकें बाहर क्षेत्रीय सेवा तथा देश के किसी भाग में सेवा के लिए निश्चित रूप से दायित्व निहित है।
(6) परिवीक्षा के दौरान अधिकारियों को तीन चरणों में प्रशिक्षण दिया जाएगा (1) लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी, मसूरी में बुनियादी पाठ्यक्रम, (अवधि तीन माह), (2) राष्ट्रीय वित्त प्रबन्धन संस्थान, फरीदाबाद में एम.बी.ए. (वित्त) प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम (अवधि दस माह), (3) राष्ट्रीय रक्षा वित्त प्रबन्धन अकादमी, पुणे में विभागीय प्रशिक्षण (अवधि दस माह) ।
(7) प्रशिक्षण अवधि समाप्त कर लेने पर अधिकारियों को निम्नलिखित संगठनों में से किसी भी एक संगठन में सहायक रक्षा लेखा नियंत्रक/सहायक वित्त एवं लेखा नियंत्रक (फँक्डीज) के रूप में नियुक्त किया जाएगा :-
(1) प्रधान नियंत्रक/रक्षा लेखा नियंत्रक (आर्मी कमांड्स)
(2) प्रधान नियंत्रक/रक्षा लेखा नियंत्रक (एयर फोर्स)
(3) प्रधान रक्षा लेखा नियंत्रक (नेवी)
(4) प्रधान नियंत्रक/रक्षा लेखा नियंत्रक (पेंशन)
(5) प्रधान लेखा नियंत्रक (आयुध फँक्डीज)
(6) प्रधान नियंत्रक/रक्षा लेखा नियंत्रक (अनुसंधान और विकास)
(7) प्रधान नियंत्रक/रक्षा लेखा नियंत्रक (सीमा सड्क)
(8) एकीकृत वित्तीय सलाहकार (सेना/नौसेना/वायुसेना/सीमा सड्क/तटरक्षक/अनुसंधान और विकास)
(9) प्रधान नियंत्रक/नियंत्रक का कोई अन्य कार्यालय

8. भारतीय राजस्व सेवा, आयकर ग्रुप ‘क’

(क) नियुक्ति परिवीक्षा के आधार पर की जायेगी जिसकी अवधि 2 वर्ष की होगी, परन्तु यह अवधि बढ़ाई जा सकती है । यदि परिवीक्षाधीन अधिकारी निर्धारित विभागीय परीक्षाएँ पास करकें अपने आपको स्थाई किये जाने योग्य सिद्ध न कर सकें, यदि कोई अधिकारी 3 वर्ष की अवधि में विभागीय परीक्षाएँ पास करने में लगातार असफल होता जा रहा हो तो उसको नियुक्ति खत्म कर दी जाएगी अथवा स्थाई पद पर, यदि कोई है, उसका प्रत्यावर्तन किया जा सकता है ।
(ख) यदि सरकार की राय में परिवीक्षाधीन अधिकारी का कार्य या आचरण असंतोषजनक हो या तो उसे देखते हुए उसका कार्य कुशल होने की संभावना न होकर सरकार उसे तत्काल सेवा मुक्त कर सकती है अथवा स्थाई पद पर, यदि कोई हो, उसका प्रत्यावर्तन किया जा सकता है ।
(ग) परिवीक्षा अवधि के समाप्त होने पर, सरकार अधिकारी को उसको नियुक्ति पर स्थाई कर सकती है या यदि सरकार की राय में उसका कार्य या आचरण असंतोषजनक रहा हो तो उसे या तो सेवा मुक्त कर सकती है या उसको परिवीक्षा अवधि को जितना समझें बढ़ा सकती है परन्तु अस्थायी रूप से खाली जगहों पर की गई नियुक्तियों के संबंध में स्थाई करने का दावा नहीं किया जा सकेगा।


(ध) यदि सरकार ने सेवा में नियुक्तियां करने की अपनी शक्ति किसी अधिकारी को सौंप रखी है तो वह अधिकारी ऊपर के खंडों में उल्लिखित सरकार की कोई भी शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
(ङ) पूर्व संशोधित वेतनमान :
(1) आयकर सहायक आयुक्त ग्रुप ‘क’-कनिष्ठ वेतनमान-रु. $8000-275-13500$
(2) आयकर उपायुक्त/आयकर उपनिदेशक वरिष्ठ वेतनमान-रु. $10000-325-15200$
(3) आयकर सहायक आयुक्त/आयकर संयुक्त निदेशक वेतनमान-रु. $12000-375-16500$
(4) आयकर अपर आयुक्त वेतनमान-रु. $14300-400-$ 18300
(5) आयकर आयुक्त वेतनमान-रु. $18400-500-22400$
(6) प्रधान आयकर आयुक्त/आयकर महानिदेशक वेतनमान-रु. $22400-525-24500$

परिवीक्षाधीन अवधि में अधिकारी को लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी, मसूरी तथा राष्ट्रीय प्रत्यक्षकर अकादमी, नागपुर में प्रशिक्षण प्राप्त करना होगा। मसूरी में शिक्षण समाप्त होने पर उसे पाठ्यक्रम संपूर्ति परीक्षा पास करनी होगी । इसके अतिरिक्त परिवीक्षाधीन अवधि में विभागीय परीक्षा भी पास करनी होगी। एक वर्ष की सेवा समाप्ति पर वेतन बढ़ाकर 8275 रु. कर दिया जाएगा। केवल विभागीय परीक्षा पास कर लेने से वेतन बढ़ाकर 8275 रु. कर दिया जाएगा। 8550 रु. के स्तर के ऊपर के वेतन तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि उस अधिकारी की सेवा का स्थायीकरण न हो जाए तथा 3 वर्ष की सेवा पूरी न हो चुकी हो या दूसरी ऐसी शर्तों के अधीन होगा जो आवश्यक समझी जायें।

यदि वह अकादमी की पाठ्यक्रम संपूर्ति परीक्षा पास नहीं कर लेता तो एक वर्ष के लिए उसकी वेतनवृद्धि स्थगित कर दी जाएगी अथवा उस तारीख तक जब कि विभागीय नियमों के अन्तर्गत उसे दूसरी वेतनवृद्धि मिलने वाली हो और उन दोनों में से जो भी अधिक पहले पड़े तब तक स्थगित रहेंगी।

बुनियादी पाठ्यक्रम में तथा राष्ट्रीय प्रत्यक्ष कर अकादमी, नागपुर में संचालित व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा में सीधी भर्ती वाले उम्मीदवारों के लिए वरीयताक्रम का परस्पर निर्धारण परीक्षार्थियों के प्रदर्शन के आधार पर किया जाएगा तथा इन निष्पादनों के आधार पर दिए गए स्तर को इन वाक्ययांशों के रूप में निर्दिष्ट किया जाएगा-सिविल सेवा परीक्षा ( 76.67 प्रतिशत), बुनियादी पाठ्यक्रम ( 8.33 प्रतिशत) तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण ( 15 प्रतिशत) ।

टिप्पणी :-परिवीक्षाधीन अधिकारियों को भली-भांति समझ लेना चाहिए कि उनको नियुक्ति भारत सरकार द्वारा भारतीय राजस्व सेवा ग्रुप 1 के गठन में किए जाने वाले किसी भी ऐसे परिवर्तन से प्रभावित हो सकेंगी जो कि समय-समय पर उचित समझें जाने के बाद भारत सरकार

द्वारा किया जाएगा और वे उस प्रकार के परिवर्तनों के फलस्वरूप प्रतिकार का दावा नहीं कर सकेंगे।

9. भारतीय आयुध कारखाना सेवा ग्रुप “क” (प्रशासन)

(क) चुने गए उम्मीदवारों को 2 वर्ष की अवधि के लिए परिवीक्षाधीन रखा जाएगा । महानिदेशक, आयुध कारखाना/अध्यक्ष आयुध कारखाना बोर्ड की अनुसंशा पर परिवीक्षा की अवधि सरकार द्वारा घटाई या बढ़ाई जा सकती है और परिवीक्षाधीन उम्मीदवार को सरकार द्वारा यथा-निर्धारित प्रशिक्षण लेना होगा और सरकार द्वारा निर्धारित विभागीय तथा भाषा परीक्षण उत्तीर्ण करते होंगे । भाषा परीक्षण हिन्दी में परीक्षण होगा ।

परिवीक्षा की अवधि के समापन पर सरकार अधिकारी की नियुक्ति स्थाई करेगी । किन्तु यदि परिवीक्षा की अवधि के दौरान या उसके अन्त में उसका आचरण सरकार की राय में असन्तोषजनक हो तो सरकार उसे या तो कार्ययुक्त करेगी या उसकी परिवीक्षा की अवधि को यथापेक्षित बढ़ाएगी।
(ख) 1. चुने हुए उम्मीदवारों को आवश्यकता पड़ने पर प्रशिक्षण पर बिताई अवधि सहित कम से कम 4 वर्ष की अवधि के लिए सशस्त्र सेना में कमीशन प्राप्त अधिकारी के रूप में सेवा करनी पड़ेगी gkshafdurqkrz;g gsfd (i) उसे नियुक्ति की तारीख के 10 वर्ष की समाप्ति के बाद पूर्वोक्त रूप से सेवा नहीं करनी होगी, और (ii) उसे साधारणत: 40 वर्ष की आयु हो जाने के बाद पूर्वोक्त रूप में सेवा नहीं करनी होगी।
2. उम्मीदवार पर यथा संशोधित सा.का.नि. सं. 92, दिनांक 9-3-1957, के अधीन प्रकाशित सिविलियन संबंधी रक्षा सेवा (फील्ड लाइबिलिटी) नियमावली, 1957 भी लागू होगा। उनकी इन नियमों में निर्धारित चिकित्सा मानक के अनुसार परीक्षा की जाएगी।
(ग) लागू वेतन की निम्नलिखित दरें हैं :-
कनिष्ठ समय वेतनमान -15600-39100 रु., ग्रेड पे 5400
वरिष्ठ समय वेतनमान -15600-39100 रु., ग्रेड पे 6600
वरिष्ठ समय वेतनमान (गैर-कार्यात्मक) 15600-39100 रु., ग्रेड पे 7600
कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (कार्यात्मक) 37400-367000 रु., ग्रेड पे 8700
वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड 37400-67000 रु., ग्रेड पे 10000
वरिष्ठ महाप्रबन्धक/वरिष्ठ उप-महानिदेशक/उच्च प्रशासनिक ग्रेड-67400-79000 रु.
अपर महानिदेशक आयुध कारखाना/सदस्य (आयुध कारखाना बोर्ड) $75500-80000$ रु.
महानिदेशक आयुध कारखाना/अध्यक्ष आयुध कारखाना बोर्ड 80000 रु. (नियत)

महानिदेशक आयुध कारखाना
अध्यक्ष, आयुध कारखाना बोर्ड रु. 26000 (नियत)
टिप्पणी :-उस सरकारी कर्मचारी का वेतन नियम के अधीन विनियमित किया जाएगा जिसने परिवीक्षाधीन के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले मूल रूप में आवधिक पद के अलावा कोई स्थायी पद को धारण किया।


(च) परिवीक्षा 15600-39100 रु., ग्रेड पे 5400 रु. के निर्धारित वेतनमान में वेतन आहरित करेंगे। परिवीक्षा अवधि के दौरान उन्हें फाउण्डेशनल कोर्स में विभाग की विभिन्न शाखाओं, राष्ट्रीय रक्षा उत्पादन अकादमी, अलक्षारी, नागपुर और/या लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी, मंसूरी में प्रशिक्षण प्राप्त करना अपेक्षित होगा।
(ङ) परिक्षार्थी को प्रशिक्षण/परिवीक्षा अवधि के दौरान उनके प्रशिक्षण पर हुए सम्पूर्ण व्यय और उनको किए हुए अन्य भुगतानों की राशि वापिस करनी होगी, बशर्ते वह अपने प्रशिक्षण/परिवीक्षा की समाप्ति की तारीख से पांच वर्ष की अवधि के भीतर सेवा से त्यागपत्र देने की इच्छा व्यक्त करता/करती है अथवा बशर्ते वह प्रशिक्षण/परिवीक्षा से नाम वापिस ले लेता है/ ले लेती है। परिवीक्षार्थी को नियुक्ति के समय इस आशय का एक बंधपत्र देना होगा।’
(च) भारतीय आयुध कारखाना सेवा-समूह ‘क’ में 9 (ग) में दर्शाए गए पद या ग्रेड या समय वेतनमान शामिल है और अधिकारियों की निम्नलिखित श्रेणियां शामिल हैं नामश: :-
(1) इंजीनियर (यांत्रिकी/वैद्युत/इलैक्ट्रॉनिक्स एवं दूरसंचार/सिविल)
(2) रसायन इंजीनियरी
(3) धात्विक इंजीनियरी
(4) चमड़ा प्रौद्योगिकीविद्
(5) वस्त्र तकनीकीकार
(6) प्रशासनिक अधिकारी

डिप्पणी 1, -प्रशासनिक अधिकारी सामान्यतया सिविल सेवा परीक्षा (सी एस ई) के माध्यम से भर्ती किए जाते हैं। क्रम सं. (1) में दिए गए इंजीनियर इंजीनियरी सेवा परीक्षा (ई एस ई) के माध्यम से भर्ती किए जाते हैं। क्रम सं. (ii) में (v) तक को संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित विशेषज्ञ परीक्षा तथा/अथवा साक्षात्कार के माध्यम से भर्ती किया जाता है।

10. भारतीय डाक सेवा ग्रुप ‘क’

(क) चुने हुए उम्मीदवारों को इस विभाग में प्रशिक्षण लेना होगा जिसकी अवधि, आमतौर पर दो वर्ष से अधिक नहीं होगी। इस अवधि में इन्हें निर्धारित विभागीय परीक्षा पास करनी होगी ।
(ख) यदि सरकार की राय में, किसी प्रशिक्षणाधीन अधिकारी का कार्य या आचरण संतोषजनक न हो या उसे देखते हुए उसकं कार्यकुशल होने की संभावना न हो तो सरकार उसे तत्काल सेवामुक्त कर सकती है अथवा स्थाई पद पर यदि कोई है, उसका प्रत्यावर्तन किया जा सकता है ।
(ग) निर्धारित प्रशिक्षण को संतोषप्रद ढंग से पूरा करने पर तथा निर्धारित विभागीय परीक्षण पास करने पर सरकार अधिकारी को उसकी नियुक्ति पर स्थायी कर सकती है, या यदि सरकार उसे या तो सेवामुक्त कर सकती है । या उसकी परिवीक्षा अवधि को जितना उचित समझे बढ़ा सकती है ।
(च) यदि सरकार ने सेवा में नियुक्तियां करने की अपनी शक्ति किसी अधिकारी को सौंप रखी हो तो वह अधिकारी ऊपर के खंडों में उल्लिखित सरकार की कोई भी शक्ति का प्रयोग कर सकता है ।
(ङ) पूर्व संशोधित वेतनमान :
(1) कनिष्ठ समय वेतनमान-रु. 8000-275-13500
(2) वरिष्ठ समय वेतनमान-रु. 10000-325-15200
(3) कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड वेतनमान रु. 12000-375-16500
(4) कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (चयन ग्रेड) वेतनमान-रु. 14300-400-18300
(5) वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड वेतनमान-रु. 18400-500-22400
(6) वरिष्ठ उप महानिदेशक मुख्य महा पोस्टमास्टर वेतनमान-रु. 22400-525-24500
(7) प्रधान मुख्य महा पोस्टमास्टर : वेतनमान-रु. 22400-600-26000
(8) डाक सेवा बोर्ड के सदस्य : वेतनमान-रु. 24050-600-26000
(च) जो सरकारी कर्मचारी परिवीक्षा के आधार पर नियुक्ति से पूर्व मौलिक आधार पर आवधिक पद के अतिरिक्त किसी स्थाई पद पर नियुक्त था उसका वेतन मूल नियम 22(ख)(1) की अवस्थाओं के अधीन नियमित होगा।
(छ) परिवीक्षाधीन अधिकारियों को यह भली-भांति समझ लेना चाहिए कि उनकी नियुक्ति भारत सरकार द्वारा भारतीय डाक सेवा के गठन के लिए किए जाने वाले किसी भी ऐसे परिवर्तन में प्रभावित हो सकंगी जो कि समय-समय पर उचित समझे जाने के बाद, भारत सरकार द्वारा किया जाएगा और वे इस प्रकार के परिवर्तनों के फलस्वरूप प्रतिकर का दावा नहीं कर सकेंगे ।
(ज) कनिष्ठ समय वेतनमान में सीधी भर्ती की अधिकारियों की परस्पर वरिष्ठता निर्धारित करते समय, सीधी भर्ती के उम्मीदवारों द्वारा सिविल सेवा परीक्षा में तथा परिवीक्षा प्रशिक्षण में उनकें द्वारा प्राप्त अकों को ध्यान में रखा जाएगा ।
(झ) भारतीय डाक सेवा के अधिकारियों को सरकार द्वारा यथा अपेक्षित सेना डाक सेवा में भारत अथवा विदेश में कार्य करना होगा ।
(ज) इस समय सेवा में इस समय रु. 24050-650-26000 के ग्रेड में 3 पद, रु. 22400-600-26000 के ग्रेड में 3 पद, रु. 22400-525-24500 के ग्रेड में 20 पद, रु. 18400-500-22400 के ग्रेड में 58 पद तथा रु. 14300-400-18300 रु./12000-375-16500 ( गैर-कार्यात्मक चयन ग्रेड तथा कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड) के ग्रेड में 9! पद हैं ।

11. भारतीय सिविल लेखा सेवा ग्रुप ‘क’

(क) नियुक्ति दो वर्ष की अवधि के लिए परिवीक्षा के आधार पर की जाएंगी किन्तु यदि परिवीक्षाधीन अधिकारी ने स्थायीकरण के लिए निर्धारित विभागीय परीक्षा पास कर अर्हता प्राप्त नहीं की तो वह अवधि बढ़ाई जा सकती है । तीन वर्ष की अवधि में विभागीय परीक्षाओं में बार-बार असफल रहने पर नियुक्तियां समाप्त की जाएंगी ।
(ख) यदि सरकार की राय में, किसी परिवीक्षाधीन अधिकारी का कार्य या आचरण संतोषजनक न हो या उसे देखते हुए उसकं कार्यकुशल होने की संभावना न हो तो सरकार उसे तत्काल सेवामुक्त कर सकती है अथवा स्थाई पद पर, यदि कोई है, उसका (प्रत्यावर्तन) किया जा सकता है ।
(ग) परिवीक्षा अवधि समाप्त होने पर सरकार अधिकारी को उसकं नियुक्ति पर स्थाई कर सकती है । यदि सरकार की राय में, उसका कार्य या आचरण संतोषजनक न रहा तो सरकार उसे या तो सेवामुक्त


कर सकती है या उसकी परिवीक्षा की अवधि को जितना उचित समझे बढ़ा सकती है । परन्तु अस्थायी रिक्तियों पर की गई नियुक्तियों के संबंध में स्थायीकरण का दावा नहीं किया जा सकेगा ।
(घ) परिवीक्षाधीन अधिकारियों को यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि नियुक्ति भारतीय सिविल लेखा सेवा के गठन में किए गए ऐसे परिवर्तनों के अधीन होगी जो समय-समय पर भारत सरकार द्वारा ठीक समझे जाएं और ऐसे परिवर्तनों के परिणामस्वरूप वे किसी प्रतिकार का दावा नहीं करेंगे ।
(ङ) वेतनमान :-

क्र. पद पे बैड/
वेतनमान
का नाम
तदनुरूपी पे
बैड/वेतनमान
का नाम
ग्रेड पे
1. लेखा
(नियत)
शीर्ष 80000
(नियत)
शून्य
वेतनमान
2. अपर लेखा
महानियंत्रक
उच्चतर
प्रशा. ग्रेड+
वेतनमान
75500-(3\%
की दर से
वार्षिक
वेतन वृद्धि
80000
शून्य
3. प्रधान मुख्य लेखा नियंत्रक उच्च प्रशासनिक
ग्रेड वेतनमान
67000-(3\%
की दर से
वार्षिक वेतन
वृद्धि) 79000
शून्य
4. वरिष्ठ प्रशासनिक
ग्रेड (संयुक्त लेखा
महा नियंत्रक/लेखा
मुख्य नियंत्रक)
पी.बी. -4 $37400-67000$ 10000
5. कनिष्ठ प्रशासनिक
ग्रेड चयन (उप
लेखा महानियंत्रक
लेखा नियंत्रक
पी.बी. -4 $37400-67000$ 8700
6. कनिष्ठ प्रशासनिक
ग्रेड (उप लेखा
महानियंत्रक/लेखा
नियंत्रक)
पी.बी. -3 $15600-39100$ 7600
7. वरिष्ठ समय
वेतनमान
(सहायक लेखा
महानियंत्रक/लेखा
उप-नियंत्रक)
पी.बी. -3 $15600-39100$ 6600
8. कनिष्ठ समय
वेतनमान
(सहायक लेखा
नियंत्रक)
पी.बी. -3 $15600-39100$ 5400

टिप्पणी 1.-परिवीक्षाधीन अधिकारियों की सेवा भारतीय सिविल लेखा सेवा के समय वेतनमान में कम से कम वेतन से आरम्भ होगी और वेतनवृद्धि के प्रयोजनार्थ वह उनकें कार्यभार ग्रहण करने की तारीख से गिनी जायेगी ।

टिप्पणी 2.-परिवीक्षाधीन अधिकारियों को रु. 15600+5400 से ऊपर के चरण का वेतन तब तक मंजूर नहीं किया जायेगा जब तक कि वे समय-समय पर विहित किये जाने वाले नियमों के अनुसार विभागीय परीक्षा में उत्तीर्ण न हो जाएं।

टिप्पणी 3.-जो सरकारी कर्मचारी परिवीक्षाधीन के रूप में नियुक्ति से पहले अधीक्षक पद से अतिरिक्त अन्य स्थायी पद पर मूल रूप में कार्य कर रहा हो उसका वेतन मूल नियम 22(ख)(1) में दिए गए उपबंधों के अनुसार विनियमित किया जाएगा ।
12. भारतीय रेलवे यातायात सेवा ग्रुप ‘क’
13. भारतीय रेलवे लेखा सेवा ग्रुप ‘क’
14. भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा ग्रुप ‘क’
15. रेलवे सुरक्षा बल ग्रुप ‘क’
(क) परिवीक्षा भारतीय रेलवे लेखा सेवा (भा.रे.ले.से.), भारतीय रेलवे यातायात सेवा (भा.रे.या.लें.) और भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा (भा. रे.का.सें.) के अलावा इन सेवाओं के भर्ती किए गए उम्मीदवार तीन वर्ष के लिए परिवीक्षा पर रहेंगे । इस दौरान उम्मीदवारों को दो वर्ष का प्रशिक्षण दिया जाएगा तथा उनकी कार्यकारी पद पर परिवीक्षा के दौरान कम से कम एक वर्ष के लिए नियुक्ति की जाएगी । यदि किसी मामले में संतोषजनक रूप से प्रशिक्षण पूरा ना करने के कारण प्रशिक्षण की अवधि बढ़ाई जाती है तो उसकें अनुसार परिवीक्षा की कुल अवधि भी बढ़ा दी जाएगी । इसकें अलावा यदि कार्यकारी पद पर परिवीक्षा के आधार पर की गई नियुक्ति की अवधि के दौरान कार्य संतोषजनक नहीं पाया जाता है तो सरकार जितना उचित समझे परिवीक्षा की अवधि बढ़ा सकती है ।

किन्तु भारतीय रेलवे लेखा सेवा, भारतीय रेलवे यातायात सेवा और भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा में भर्ती किए गए उम्मीदवारों की नियुक्ति 1.5 वर्ष के लिए परिवीक्षा पर की जाएगी जिसकें दौरान उनको प्रशिक्षण दिया जाएगा। यदि प्रशिक्षण के संतोषजनक रूप से पूरा न होने पर किसी स्थिति में प्रशिक्षण की अवधि को बढ़ा दिया जाता है तो उसकें अनुसार परिवीक्षा की कुल अवधि भी बढ़ा दी जायेगी ।
(ख) प्रशिक्षण- सभी परिवीक्षधीन अधिकारियों को विशिष्ट सेवाओं/पदों के लिए निर्धारित प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के अनुसार 1.5 वर्ष का प्रशिक्षण लेना होगा। यह प्रशिक्षण ऐसे स्थानों पर तथा इस प्रकार से लेना होगा तथा उन्हें ऐसी परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना होगा जो इस अवधि पर सरकार समय-समय पर निर्धारित करे।
(ग) नियुक्ति की समाप्ति-(1) परिवीक्षा की अवधि के दौरान परिवीक्षाधीन अधिकारी की नियुक्ति में दोंनों पक्षों में से किसी भी पक्ष की ओर से तीन महीने का लिखित नोटिस देकर समाप्त की जा सकती है किन्तु इस प्रकार के नोटिस की आवश्यकता संविधान के अनुच्छेद 311 के खंड (2) के अनुसार अनुशासनिक कार्यवाही के कारण सेवा में बर्खास्तगी या सेवा से हटा दिए जाने और मानसिक या शरीरिक असमर्थता से संबंधित मामलों में नहीं होगी । किन्तु सरकार को सेवा समाप्त करने का अधिकार होगा ।
(2) यदि सरकार की राय में किसी परिवीक्षाधीन अधिकारी का कार्य अथवा आचरण संतोषजनक न हो अथवा ऐसा प्रतीत होता हो कि उसकें सक्षम बनने की संभावना न हो तो सरकार उसे तुरन्त सेवामुक्त कर


सकती है अथवा स्थाई पद पर यदि कोई है, उसका प्रत्यावर्तन किया जा सकता है । (3) विभागीय परीक्षाएँ उत्तीर्ण न करने पर भी सेवा समाप्त की जा सकती है । परीक्षा की अवधि में अनुमोदित स्तर की हिन्दी परीक्षा उत्तीर्ण न करने पर भी सेवा समाप्त की जा सर्कगी। (च) स्थायीकरण-परिवीक्षा की अवधि संतोषजनक रूप से पूरा कर लेने और निर्धारित सभी विभागीय और हिन्दी परीक्षाओं के उत्तीर्ण कर लेने पर यदि सब प्रकार से नियुक्ति के लिए विचार कर लिए जाते हैं तो परिवीक्षाधीन अधिकारियों को सेवा के कनिष्ठ वेतनमान में स्थायी किया जायेगा। (ङ) वेतनमान-भारतीय रेलवे यातायात सेवा/भारतीय रेलवे लेखा सेवा/भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा

क्र. सं. ग्रेड पे बैण्ड/वेतनमान का नाम सदृश वेतनमान सदृश ग्रेड पे
1. कनिष्ठ वेतनमान पी बी-3 $15600-39100$ 5400
2. वरिष्ठ वेतनमान पी बी-3 $15600-39100$ 6600
3. कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड पी बी-3 $15600-39100$ 7600
4. वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड पी बी-4 $37400-67000$ 10000

इसके अतिरिक्त, रु. 37400 और 80000 के बीच सुपर समय वेतनमान पद हैं, जिनके लिए उक्त सेवाओं के अधिकारी पात्र हैं।

रेलवे सुरक्षा बल

क्र. सं. ग्रेड पे बैण्ड/वेतनमान का नाम सदृश वेतनमान सदृश ग्रेड पे
1. कनिष्ठ वेतनमान पी बी-3 $15600-39100$ 5400
2. वरिष्ठ वेतनमान पी बी-3 $15600-39100$ 6600
3. वरिष्ठ कमांडेंट (मुख्यालय) पी बी-3 $15600-39100$ 7600
4. उप महानिरीक्षक पी बी-4 $37400-67000$ 8900
5. महानिरीक्षक पी बी-4 $37400-67000$ 8900
6. महानिदेशक उच्च प्रशासनिक 75500 ( $3 \%$ की दर से शून्य
ग्रेड+वेतनमान वार्षिक वेतनवृद्धि)-80000

परिवीक्षाधीन अधिकारियों को सेवा कनिष्ठ वेतनमान के न्यूनतम से प्रारंभ होगी और उन्हें परिवीक्षा पर बिताई गई अवधि को समय वेतनमान में छुट्टी, पेंशन व वेतन वृद्धियों के लिए गिनने की अनुमति होगी।

मंहगाई भत्ता और अन्य भत्ते भारत सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किए गए आदेशों के अनुसार मिलेंगे।

परिवीक्षा की अवधि में विभागीय तथा अन्य परिक्षाएँ उत्तीर्ण न करने पर वेतन-वृद्धियों को रोका या स्थगित किया जा सकता है। (च) प्रशिक्षण लागत की वापसी.-यदि किसी वजह, जो सरकार की राय में परिवीक्षार्थियों के नियंत्रण से बाहर नहीं है, से कोई परिवीक्षार्थी प्रशिक्षण या परिवीक्षा को छोड़ना चाहता है तब उसे वेतन और भत्तों, नौकरी शुरू करने से संबंद्ध यात्रा व्यय सहित भुगतान की गई सभी राशियाँ और सभी खर्चे जो परिवीक्षाधीन प्रशिक्षण के लिए केन्द्र सरकार द्वारा वहन किए जाएंगे अथवा वहन किए गए होंगे, वापस करने पड़ेगे। इस प्रयोजनार्थ परिवीक्षार्थियों को एक बंधपत्र निष्पादित करना आवश्यक होगा जिसकी एक प्रति उनकी नियुक्ति संबंधी प्रस्ताव के साथ संलग्न होगी । तथापि, परिवीक्षार्थी जिन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय विदेश सेवा आदि में नियुक्ति हेतु आवेदन करने की अनुमति दी गई है, को प्रशिक्षण की लागत लौटानी आवश्यक नहीं होगी। (छ) छुट्टी.-उक्त सेवा के अधिकारी समय-समय पर लागू छुट्टी नियमावली के अनुसार छुट्टी लेने के पात्र होंगे। (ज) डाक्टरी चिकित्सा सहायता.-(1) अधिकारी समय-समय पर लागू नियमावली के अनुसार डाक्टरी चिकित्सा सहायता और उपचार के पात्र होंगे। (2) पास तथा विशेषाधिकार टिकट.-अधिकारी समय-समय पर लागू नियमावली के अनुसार नि:शुल्क रेलवे पास तथा विशेषाधिकार टिकट प्राप्त के पात्र होंगे। (झ) भविष्य निधी तथा पेंशन.-उक्त सेवा में भर्ती किए गए उम्मीदवार रेलवे पेंशन नियमों द्वारा शासित होंगे तथा उस निधि के समय-समय पर लागू नियमों के अधीन राज्य रेलवे भविष्य निधि (गैरअंशदायी) में योगदान करेंगे। (ज) उक्त सेवा के पद पर भर्ती किए गए उम्मीदवारों को भारत या भारत के बाहर किसी भी रेलवे या परियोजना में कार्य करना पड़ सकता है।

टिप्पणी :-रेलवे सुरक्षा बल में भर्ती किए गए उम्मीदवार इसकें अतिरिक्त रेलवे सुरक्षा बल अधिनियम, 1957 तथा रे.सु. बल नियमावली 1959 में नियम उपबंधों द्वारा भी शासित होंगे। 16. भारतीय रक्षा सम्पदा सेवा ग्रुप “कं” (क) (1) नियुक्ति के लिए चुना गया उम्मीदवार परिवीक्षा पर रखा जाएगा जिसकी अवधि आमतौर पर 2 वर्ष से अधिक नहीं होगी। इस अवधि में सरकार द्वारा निर्धारित प्रशिक्षण लेना होगा। (2) जो सरकारी कर्मचारी परिवीक्षाधीन के रूप में नियुक्ति से पहले अवधि के पद के अतिरिक्त अन्य स्थायी पद पर मूल रूप से कार्य करता था उसका वेतन मूल नियम 22(ख) (1) में दिए गए उपबंधों के अनुसार विनियमित किया जाएगा।


(ख) परिवीक्षा की अवधि में उम्मीदवारों को निर्धारित विभागीय परीक्षा पास करनी होगी। (ग) (1) यदि सरकार की राय में परिवीक्षाधीन अधिकारी का कार्य या आचरण संतोषजनक न हो तो या उसे देखते हुए उसकें कार्यकुशल होने की संभावना न हो तो सरकार उसे सेवामुक्त कर सकती है, परन्तु सेवामुक्ति का आदेश देने से पहले , उसे सेवामुक्ति के कारणों से अवगत कराया जाएगा और लिखकर “कारण बताओ” का अवसर भी दिया जाएगा। (2) यदि परिवीक्षा-अवधि की समाप्ति पर अधिकारी ने ऊपर पैरा (ख) में उल्लिखित विभागीय परीक्षा पास न की हो तो सरकार अपने विवेक से या तो उसे सेवामुक्त कर सकती है या यदि मामले की परिस्थितियों को देखते हुए, उसको परिवीक्षा-अवधि बढ़ानी आवश्यक हो तो वह जितना उचित समझे, परिविक्षा-अवधि बढ़ा सकती है। (3) परिवीक्षा-अवधि के समाप्त होने पर सरकारी अधिकारी को उसकी नियुक्ति पर स्थायी कर सकती है या यदि सरकार की राय में उसका कार्य या आचरण संतोषजनक न रहा हो तो सरकार उसे या तो सेवामुक्त कर सकती है या उसकी परिवीक्षा-अवधि को जितना समझे, बढ़ा सकती है । परिवीक्षा-अवधि में ऐसे आदेश पारित या बढ़ाये जा सकते हैं, परन्तु सेवामुक्ति का आदेश देने से पहले अधिकारी को सेवामुक्ति के कारण से अवगत कराया जाएगा और लिखकर “कारण बताओ” का अवसर भी दिया जाएगा। (घ) इस सेवा के सदस्य को उसकी परिवीक्षा-अवधि में वार्षिक वेतन-वृद्धि तय हो जाने पर भी, तब तक नहीं मिलेगी जब तक वह विभागीय परीक्षा पास नहीं कर लेगा। जो वृद्धि इस प्रकार नहीं मिली होगी वह विभागीय परीक्षा पास करने की तारीख से मिल जाएगी। (ड.) यदि कोई परिवीक्षाधीन अधिकारी लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी, मसूरी राष्ट्रीय प्रत्यक्षकर अकादमी, नागपुर, तथा एस.वी.पी. राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद की पाठयक्रम संपूर्ति परीक्षा पास नहीं करता है तो जिस तारीख को उसे पहली वेतनवृद्धि प्राप्त होगी उस तारीख से एक वर्ष के लिए स्थगित कर दी जाएगी अथवा विभागीय नियमों के अंतर्गत उसे जब दूसरी वेतनवृद्धि प्राप्त होने वाली हो और इन दोनों में से जो भी अवधि पहले पड़े तब तक स्थगित रहेगी। (च) पूर्व संशोधित वेतनमान निम्न प्रकार है :-

रक्षा संपदा के महानिदेशक रु. 26000 (नियत) प्रधान निर्देशक तथा समकक्ष पद, उच्च प्रशासनिक ग्रेड $22400-525-24500$ रुपए वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड $18400-500-22400$ रुपए कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (चयन ग्रेड) $14300-400-18300$ रुपए कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (सामान्य) $12000-375-16500$ रुपए वरिष्ठ समय वेतनमान $10000-325-15200$ रुपए कनिष्ठ समय वेतनमान $8000-275-13500$ रुपए (छ) (i) कनिष्ठ समय वेतनमान में, अधिकारी सामान्यतः छावनी अधिनियम, 2006/रक्षा सम्पदा अधिकारी/स्टॉफ नियुक्तियां आदि के अंतर्गत अधिसूचित छावनियों में मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में नियुक्त किए जाएंगे। (ii) वरिष्ठ समय वेतनमान में, अधिकारी या तो परिमण्डल के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों/रक्षा सम्पदा अधिकारियों के रूप में या स्टाफ नियुक्तियों आदि में नियुक्त किए जाएंगे। (ज) कनिष्ठ समय वेतनमान से उच्च वेतनमान में सभी पदोन्नतियां समय-समय पर यथा संशोधित भारतीय रक्षा सम्पदा सेवा नियमावली, 1995 के अनुसार की जाएंगी। (झ) भारतीय रक्षा सम्पदा सेवा के अधिकारियों से भारत के किसी भाग में सेवा ली जा सकती है और साथ ही फील्ड सर्विस के लिए उन्हें भारत के किसी भाग में भेजा जा सकता है। (ज) इस सेवा में नियुक्त किए गए उम्मीदवार को समय-समय पर संशोधित भारतीय रक्षा सम्पदा सेवा ग्रुप ‘क’ नियमावली, 1985 द्वारा शासित किया जाएगा। 17. भारतीय सूचना सेवा, कनिष्ठ ग्रेड (ग्रुप ‘क’) (क) “भारतीय सूचना सेवा में समस्त भारत के पद शामिल हैं, जिसमें सूचना और प्रसारण मंत्रालय/रक्षा मंत्रालय (जन संपर्क निदेशालय) के विभिन्न माध्यम संगठनों (जैसे कि प्रेम सूचना ब्यूरो, दूरदर्शन, आकाशवाणी विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय, क्षेत्र प्रचार निदेशालय, आदि) के विदेशों में कुछ पदों सहित पद सम्मिलित हैं, जिनके लिए प्रबंध कुशलता और जानकारी तथा सरकार के लिए तथा सरकार की ओर से इसका प्रसार करने की क्षमता अपेक्षित है ताकि सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों और जन साधारण के सामाजिक तथा आर्थिक उत्थान के लिए उनकें कार्यान्वयन के बारे में विभिन्न माध्यमों से जनता को शिक्षित, प्रेरित और सूचित किया जा सकें । केन्द्रीय सूचना सेवा जो 1 मार्च, 1960 को गठित की गई थी, का नाम सन् 1987 में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की अधिसूचना संख्या सा.का.नि. 153 दिनांक 7-3-1987 द्वारा बदल कर भारतीय सूचना सेवा कर दिया गया है। (ख) उक्त सेवा में संप्रति निम्नलिखित ग्रेड है :-

| ग्रेड | | वेतनमान |
| — | — | — |
| 1 | | 2 |
| | भारतीय सूचना सेवा ग्रेड “क” | |
| (1) | उच्चतर ग्रेड | 26000 (नियत) रुपए |
| (2) | चयन ग्रेड | $22400-525-24500$ रुपए |
| (3) | वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड | $18400-500-22400$ रुपए |
| (4) | कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड
(नान-फंक्शनल)
(चयन ग्रेड) | $14300-400-18300$ रुपए |
| (5) | कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड | $12000-375-16500$ रुपए |
| (6) | वरिष्ठ ग्रेड | $10000-325-15200$ रुपए |
| (7) | कनिष्ठ ग्रेड | $8000-275-13500$ रुपए |

(ग) “ग्रेड में शेष रिक्तियां तथा उच्चतर ग्रेड, चयन ग्रेड, वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड, कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड तथा वरिष्ठ ग्रेडों में रिक्तियां अगले न्यून ग्रेड में पदधारी अधिकारियों में से चयन द्वारा पदोन्नति से भरी जाएंगी।” (घ) (1) कनिष्ठ वेतनमान के सीधी भर्ती वालों को दो वर्ष परिवीक्षा पर रहना होगा। परिवीक्षा के दौरान उन्हें भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली में 9 महीने की अवधि के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रशिक्षण की अवधि तथा स्वरूप में सरकार द्वारा परिवर्तन


किया जा सकता है । प्रशिक्षण कं दौरान उन्हें विभागीय परीक्षण ( परिक्षणों) को उत्तीर्ण करना होगा, प्रशिक्षण की अवधि कं दौरान विभागीय परीक्षण ( परिक्षणों) को उत्तीर्ण नहीं करने पर उम्मीदवार सेवा से कार्यमुक्त अथवा स्थायी पद यदि कोई हो, जिस पर उसका पुनर्ग्रहणाधिकार हो तो प्रवर्तित किया जा सकता है।
(2) परिवीक्षा की अवधि कं समाप्त होने पर सरकार लागू नियमों कं अनुसार सीधी भर्ती द्वारा किए गए अधिकारियों को उनकी नियुक्तियों में स्थायी कर सकते हैं । यदि परिवीक्षाधीन अधिकारी का कार्य या आचरण असंतोषजनक हो तो उसे सेवा से हटा दिया जाएगा या उसकी परिवीक्षा अवधि को सरकार जितना उचित समझेगी बढ़ा देगी । यदि उसका कार्य या आचरण ऐसा हो जिसे देखते हुए ऐसा जान पड़े कि उसके कार्य कुशल होने की संभावना नहीं है तो सरकार उसे तत्काल सेवा से हटा सकती है।
(3) परिवीक्षाधीन अधिकारी ग्रेड-II कं समय वेतनमान कं निम्नतम स्तर प्रारम्भ करेंगे और सेवा में उनकी प्रवेश की तारीख से वेतनवृद्धि कं लिए उनकी सेवा की गिनती होगी।
(ड.) सरकार किसी भी अधिकारी को सूचना और प्रभारण मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय (जनसंपर्क निदेशालय) कं अधीन किसी संगठन में क्षेत्रगत पद पर काम करने को कह सकती है।
(च) जहां तक छुट्टी, पेंशन और सेवा की अन्य शर्तों का संबंध है भारतीय सूचना सेवा कं अधिकारियों को समूह ‘क’ तथा समूह ‘ख’ कं अन्य अधिकारियों कं समान माना जाएगा।
18. भारतीय व्यापार सेवा, ग्रुप ‘क’ (ग्रेड-3).-(क) उक्त सेवा नियुक्ति 2 वर्ष की अवधि कं लिए परिवीक्षा पर होगी जिसको कुल शर्तों कं अधीन घटाया या बढ़ाया जा सकता है । उम्मीदवारों को परिवीक्षा की अवधि कं दौरान संतोषजनक परिवीक्षा कं समापन की शर्त कं रूप में ऐसे विहित प्रशिक्षण तथा अध्ययन पूरे करने होंगे और ऐसी परिवीक्षा तथा प्रशिक्षण हिन्दी की परीक्षा सहित उत्तीर्ण करने होंगे जैसे सरकार द्वारा निर्धारित किए जाएं।
(ख) यदि सरकार की राय में किसी परिवीक्षाधीन व्यक्ति का कार्य या आचरण असंतोषजनक है या यह दर्शाता है कि उसके कुशल बनने की सम्भावना नहीं है, तो सरकार उसे तत्काल पदमुक्त कर सकती है यथास्थिति उसको उस स्थायी पद पर प्रत्यावर्तित कर सकती है जिस पर उसका लियन है अथवा जिस पर उसको लियन उस स्थिति में रहता जब वह लियन उसको उक्त सेवा में नियुक्ति से पहले उस पर लागू नियमों या सरकार कं समुचित आदेशों कं अधीन स्थगित कर दिया गया होता।
(ग) किसी अधिकारी की परिवीक्षा की अवधि कं संतोषजनकं समापन पर सरकार उक्त अधिकारी को इस सेवा में स्थायी कर सकती है या यदि सरकार की राय में उसका कार्य या आचरण असंतोषजनक हो तो सरकार या तो उसे उक्त सेवा से मुक्त कर सकती है अथवा उसकी परिवीक्षा की अवधि को कुछ शर्तों कं अधीन उतनी अवधि कं लिए और आगे बढ़ा सकती है जितनी वह ठीक समझे।

किन्तु शर्त यह है कि सरकार का जिन मामलों में परिवीक्षा की अवधि को बढ़ाने का प्रस्ताव है उनसे सरकार ऐसा करने कं अपने इरादे को सूचना लिखित रूप में उक्त अधिकारी को देगी।
(घ) उक्त सेवा कं ग्रेड-III में नियुक्त अधिकारी को भारत में या उससे बाहर कहीं भी कार्य करना पड़ेगा। इन अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति हो जाने पर भारत सरकार कं किसी अन्य मंत्रालय या विभाग या सरकार कं निगम या औद्योगिक उपक्रम में कार्य करना होगा।

(ड-) वेतनमान
क्रम सं. ग्रेड वेतनमान
(1) वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड
(अपर महानिदेशक,
विदेश व्यापार)
18400-500-24500 रुपए
(2) चयन ग्रेड (नान फंक्शनल) 14300-400-18300 रुपए
(3) ग्रेड-I
(संयुक्त महानिदेशक, विदेश
व्यापार तथा संयुक्त निदेशक
नि.सं.)
12000-375-16500 रुपए
(4) ग्रेड-II
(उप महानिदेशक, विदेश
व्यापार तथा संयुक्त निदेशक
नि.सं.)
10000-325-15200 रुपए
(5) ग्रेड-III
(सहायक महानिदेशक, विदेश
व्यापार)
8000-275-13500 रुपए

उक्त पांचों ग्रेडों में सेवा वाणिज्य मंत्रालय कं अधीन हैं। नई दिल्ली स्थित विदेश व्यापार महानिदेशालय वाणिज्य मंत्रालय कं सचिव्यालय का संबद्ध कार्यालय है यही कार्यालय इस सेवा कं उपयोग करने वाला संगठन है।

उक्त सेवा कं ग्रेड-III कं संबद्ध अधिकारी सामान्यतः अनुभागों कं प्रधान होंगे जबकि ग्रेड-II में अधिकारी सामान्यतः एक या इससे अधिक अनुभागों को शाखाओं कं प्रभारी होंगे ।

उक्त सेवा कं ग्रेड-II कं अधिकारी समय-समय पर लागू नियमों कं अनुसार उस सेवा कं ग्रेड-III में पदोन्नति कं पात्र होंगे ।

उक्त सेवा कं ग्रेड-II कं अधिकारी उक्त सेवा कं ग्रेड-I या कंजोय सरकार कं अन्य ऊंचे प्रशासनिक पदों या सरकार कं निगमों, उपक्रमों में नियुक्ति कं पात्र होंगे ।

उक्त सेवा कं ग्रेड-I कं अधिकारी समय-समय पर लागू नियमों कं अनुसार नान-फंक्शनल चयन ग्रेड में नियुक्ति तथा वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (अपर महानिदेशक) विदेश व्यापार में पदोन्नति कं पात्र होंगे ।
(च) उक्त सेवा कं ग्रेड-III में सीधी भर्ती इस ग्रेड का 50 प्रतिशत स्थायी रिक्तियों को भरने कं लिए इस सेवा कं भर्ती नियमों कं अनुसार संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सम्मिलित सिविल सेवा परीक्षा कं माध्यम से की जाती है। शेष 50 प्रतिशत रिक्तियां फोडर ग्रेड में से पदोन्नति द्वारा भरी जाती हैं।
(छ) भविष्य निधि भारतीय व्यापार सेवा कं ग्रेड-III कं नियुक्त अधिकारी सामान्य भविष्य निधि (कंजोय सेवाएं) में सम्मिलित होने कं पात्र होंगे तथा उक्त निधि को विनियमित कर रहे प्रभावी नियमों से शासित होंगे ।
(ज) अवकाश : भारतीय व्यापार सेवा कं ग्रेड-II में नियुक्त अधिकारियों पर समय-समय पर संशोधित कंजोय सिविल सेवा ( अवकाश) नियमावली, 1972 लागू होगी ।
(झ) चिकित्सा परिचर्या : भारतीय व्यापार सेवा से ग्रेड-III कं अधिकारियों पर समय-समय पर संशोधित कंजोय सेवा (चिकित्सा परिचर्या) नियमावली, 1944 लागू होगा ।


(ज) सेवा निवृत्ति लाभ : भारतीय व्यापार सेवा के ग्रेड-III के अधिकारियों पर समय-समय पर संशोधित केन्द्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियमावली, 1972 लागू होगा। (ट) केन्द्रीय सरकार कर्मचारी ग्रुप बीमा योजना, 1980 भारतीय व्यापार सेवा ग्रेड-III में नियुक्त अधिकारी केन्द्रीय सरकार कर्मचारी ग्रुप बीमा योजना, 1980 के द्वारा शासित होंगे। 19. भारतीय कॉर्पोरेट विधि सेवा (क) नियुक्तियां परिवीक्षा के आधार पर की जाएंगी जिसकी अवधि दो वर्ष की होगी परंतु कुछ शर्तों के अनुसार बढ़ाया भी जा सकेगा । सफल उम्मीदवार को परिवीक्षा की अवधि में केन्द्रीय सरकार के निर्णय के अनुसार निश्चित स्थान पर और निश्चित रीति से कार्य करना होगा और निश्चित परीक्षाएं पास करनी होंगी। (ख) यदि सरकार की राय में किसी परिवीक्षाधीन अधिकारी का कार्य या आचरण संतोषजनक न हो या उसे देखते हुए उसके कार्यकुशल होने की संभावना न हो, तो सरकार तत्काल सेवामुक्त कर सकती है या यथास्थिति उसे स्थाई पद पर प्रत्यावर्तित कर सकती है । जिस पर उसका पुनर्ग्रहणाधिकार है अथवा होगा; बशर्ते कि उक्त सेवा में नियुक्ति से पहले उस पर लागू नियमों के अंतर्गत पुनर्ग्रहणाधिकार निलंबित न कर दिया गया हो। (ग) परिवीक्षा अवधि के असंतोषजनक रूप से पूरा होने पर सरकार अधिकारी को सेवा में स्थाई कर सकती है, यदि सरकार की राय में उसका कार्य या आचरण संतोषजनक न हो तो सरकार उसे भी सेवामुक्त कर सकती है या उसको परिवीक्षा अवधि को जितना उचित समझे कुछ शर्तों के साथ बढ़ा सकती है। (घ) भारतीय कार्पोरेट विधि सेवा से संबंधित प्रत्येक अधिकारी को केन्द्र सरकार के अंतर्गत भारत में या भारत से बाहर कहीं भी सेवा करने के लिए कहा जा सकता है। (ड-) वेतनमान :-

  • (i) कनिष्ठ समय वेतनमान : 8000-275-13,500 रुपए (पूर्व संशोधित)
  • (ii) वरिष्ठ समय वेतनमान : 10,000-325-15,200 रुपए (पूर्व संशोधित)
  • (iii) कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड : 12,000-375-16,500 रुपए (पूर्व संशोधित)
  • (iv) कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड : (नान फंक्शनल सेलेक्शन ग्रेड) : 14,300-400-18,300 रुपए (पूर्व संशोधित)
  • (v) वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड : 18,400-500-22,400 रुपए (पूर्व संशोधित)
  • (vi) उच्च प्रशासनिक ग्रेड : 22,400-24,500 रुपए (पूर्व संशोधित)

महंगाई भत्ता केन्द्र सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किए गए आदेशों के अनुसार मिलेगा।

परिवीक्षाधीन अधिकारियों की सेवा कनिष्ठ समय वेतनमान में आरंभ होगी तथा परिवीक्षा पर बिताई गई अवधि को समय वेतनमान में वृद्धि या पेंशन छुट्टी के लिए गिनने की अनुमति होगी।

(च) सेवा के सदस्यों की सेवा शर्तों का विनियमन भारतीय कार्पोरेट विधि सेवा नियम, 2008 के अनुपालन में किया जाएगा। ऐसे मामले जिनके लिए भारतीय कार्पोरेट विधि सेवा नियम, 2008 में कोई प्रावधान नहीं किया गया है, के संबंध में सेवा के सदस्यों की सेवा शर्तें वैसी ही होंगी जैसी केन्द्रीय सिविल सेवा समूह ‘क’ अधिकारियों पर समय-समय पर लागू होती है।

  1. सशस्त्र सेना मुख्यालय सिविल सेवा, अनुभाग अधिकारी ग्रेड, ग्रुप ‘ख’ (क) सशस्त्र सेना मुख्यालय सिविल सेवा में इस समय निम्नलिखित पांच ग्रेड हैं :-
क्रम सं. ग्रेड पे बैंड/वेतनमान का नाम तदनुरूपी में पे बैंड/वेतनमान तदनुरूपी ग्रेड पे
1. प्रधान निदेशक (ग्रुप-क) पी बी-4 37400-67000 संशोधन पूर्व (18400-500-22400 रु.) 10000
2. निदेशक (ग्रुप-क) पी बी-4 37400-67000 संशोधन पूर्व (14300-400-18300 रु.) 8700
3. संयुक्त निदेशक (ग्रुप-क) पी बी-3 15600-39100 संशोधन पूर्व (12000-375-16500 रु.) 7600
4. उप निदेशक (ग्रुप-क) पी बी-3 15600-39100 संशोधन पूर्व (10000-325-15200 रु.) 6600
5. अनुभाग अधिकारी (ग्रुप-ख राजपत्रित) पी बी-2 (i) 9300-34800 (आरंभिक नियुक्ति पर) संशोधन पूर्व (7500-250-12000 रु.) 4800
पी बी-3 (ii) 15600-39100, संशोधन पूर्व (8000-275-13500 रु.) (4 वर्ष की अनुमोदित सेवा पूरी करने पर गैर-कार्यात्मक वेतनमान/ग्रेड पे, सतर्कता निर्वाधन के अधीन) 5400 (गैर-कार्यात्मक ग्रेड पे)
6. सहायक (ग्रुप ‘ख’ अराजपत्रित) पी बी-2 9300-34800 संशोधन पूर्व (7450-225-11500 रु.) 4600

उपर्युक्त सेवा एकीकृत मुख्यालय, रक्षा मंत्रालय (सेना, नौसेना और वायुसेना) और अन्तर-सेवा संगठन, रक्षा मंत्रालय की आवश्यकता पूरी करती है। प्रत्यक्ष भर्ती केवल अनुभाग अधिकारी ग्रेड और सहायक ग्रेड के लिए की जाती है।

(ख) परिवीक्षा, या उसके विस्तार की अवधि के दौरान, अधिकारियों को सफलतापूर्वक परिवीक्षा संतोषजनक पूरी करने की शर्त (सशस्त्र सेना मुख्यालय सिविल सेवा नियमावली, 2011 को नियम 10 I (4) के रूप में प्रशिक्षण संबंधी ऐसे पाठ्यक्रमों और अनुदेशों, जो भी उचित समझा जाएगा, को पूरा करना और ऐसे परीक्षणों को पास करना अपेक्षित होगा।

(ग) परिवीक्षा संबंधी किसी भी मामले के लिए सेवा के सदस्यों पर इस संबंध में समय-समय पर सरकार द्वारा जारी अनुदेश (सशस्त्र सेना मुख्यालय सिविल सेवा नियमावली, 2001 का नियम 10 I (5) लागू होंगे।

(घ) सशस्त्र सेना मुख्यालय तथा रक्षा मंत्रालय अन्त-सेना संगठनों में अनुभाग अधिकारी सामान्यतः अनुभागों के प्रमुख होंगे जबकि उप-निदेशक एक या अधिक अनुभागों के कार्य प्रभारी होंगे।

(ङ) अनुभाग अधिकारी समय-समय पर तत्संबंधी लागू नियमों के अनुसार उप-निदेशक ग्रेड में पदोन्नति के पात्र होंगे।

(च) सशस्त्र सेना मुख्यालय सिविल सेवा के उप-निदेशक समय-समय पर तत्संबंधी लागू नियमों के अनुसार उक्त सेवा के संयुक्त निदेशक ग्रेड में तथा प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति के पात्र होंगे।

(छ) सशस्त्र सेना मुख्यालय सिविल सेवा के संयुक्त निदेशक सेवा के निदेशक के पद पर और अन्य प्रशासनिक पदों के लिए समय-समय पर लागू नियमों के अनुसार सेना में नियुक्ति के पात्र होंगे।

(ज) सशस्त्र सेना मुख्यालय सिविल सेवा में निदेशक से ऊपर के स्तर के प्रधान निदेशक [ग्रुप ‘क’, पी बी-4 (37400-67000), ग्रेड पे 10000 रु., संशोधन पूर्व (18400-500-22400 रु.)] के तीन पद हैं। ये तीन पद तीन वर्ष की अनुमोदित सेवा वाले निदेशकों में से पदोन्नति द्वारा भरे जाने हैं।

(झ) जहां तक सशस्त्र सेना मुख्यालय सिविल सेवा के अधिकारियों की छुट्टी, पेंशन तथा सेवा की अन्य शर्तों का संबंध है वे समय-समय पर रक्षा सेवाओं के व्यय में से वेतन पाने वाले अधिकारियों के लिए लागू नियमों, विनियमों तथा आदेशों द्वारा शासित होंगे।

  1. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह, लक्षद्वीप, दमन और दीव और दादरा और नागर हवेली सिविल सेवा समूह-ख

(क) दो वर्ष की अवधि के लिए परिवीक्षा पर नियुक्तियाँ की जाएंगी जिसे सक्षम प्राधिकारी के विवेक से बढ़ाया जा सकता है। परिवीक्षा पर नियुक्ति किए गए अभ्यर्थियों को ऐसे प्रशिक्षण पर जाना आवश्यक होगा और ऐसे परीक्षण पास करने होंगे जिन्हें केन्द्र सरकार निर्धारित करे।

(ख) यदि सरकार की राय में, परिवीक्षा पर सेवा के लिए नियुक्त किए गए अधिकारी का कार्य या व्यवहार असन्तोषजनक पाया जाता है या यह दर्शाता है कि वह निपुण सरकारी कर्मचारी बनने में सक्षम नहीं है, तो केन्द्र सरकार बिना कोई कारण बताए अधिलम्ब उसे सेवामुक्त कर सकती है।

(ग) जिस अधिकारी की परिवीक्षावधि सन्तोषजनक तरीके से पूरी कर लेने के बारे में घोषणा कर दी जाती है, तो उसे सेवा में स्थायी किया जाएगा। तथापि, केन्द्र सरकार की राय में, उसका कार्य या व्यवहार असन्तोषजनक पाया जाता है, केन्द्र सरकार या तो उसे सेवामुक्त कर सकती है या ऐसी आगे की अवधि के लिए उसका परिवीक्षा काल बढ़ा सकती है, जैसा भी वह उचित समझें।

(घ) ग्रेड और वेतनमान :

क्रम सेवा का ग्रेड पे बैंड/वेतनमान तदनुरूप पे बैंड/वेतनमान तदनुरूप ग्रेड पे
1. कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड-I (ग्रुप-क) पी बी-4 37,600-67,000 8700
2. कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड-II (ग्रुप-क) पी बी-3 15,600-39,100 7600
3. चयन ग्रेड-III पी बी-3 15,600-39,100 6600
4. एंट्री ग्रेड (ग्रुप-ख) पी बी-2 (i) 9,300-34,800 (आरंभिक नियुक्ति पर) 4800
पी बी-3 (ii) 15,600-39,100 (4 वर्ष की अनुमोदित सेवा पूरी करने पर, सतर्कता एवं सत्यनिष्ठा निर्वाचन के अध्यधीन) 5400

प्रतियोगी परीक्षा के परिणामों के आधार पर भर्ती किए गए अधिकारी, सेवा एंट्री ग्रेड में नियुक्त होने पर, उपर्युक्त ग्रेड में प्रारंभिक नियुक्ति हेतु निर्धारित न्यूनतम वेतनमान में वेतन आहरित करेंगे :

बशर्ते कि यदि सेवा में नियुक्ति होने से पहले वह केन्द्र सरकार या राज्य सरकार के अंतर्गत कालावधि पद के अलावा अन्य पद पर है तो उसका वेतनमान आधारभूत नियमों के प्रावधानों के तहत निर्धारित किया जाएगा।

(ङ) सेवा के अधिकारी केन्द्र सरकार द्वारा, समय-समय पर निर्धारित की गई दरों पर महंगाई वेतन, महंगाई भत्ता, नगर प्रतिपूरक भत्ता, गृह किराया भत्ता और ऐसे ही अन्य भत्तों के हकदार होंगे।

(च) सेवा के लिए नियुक्त किए गए अधिकारी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली, अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह, लक्षद्वीप, दमन और दीव और दादरा और नागर हवेली सिविल सेवा नियमावली, 2003 के प्रावधानों द्वारा शासित होंगे और इन नियमों को प्रभावी बनाने के उद्देश्य से समय-समय पर केन्द्र सरकार द्वारा जारी अन्य विनियमों या निर्देशों का पालन करेंगे। वे मामले जो विशेष रूप से उपर्युक्त नियमों, विनियमों या आदेशों से शासित नहीं होते हैं वे संघ के मामले के साथ जुड़े सेवा से सदृश अधिकारियों के लिए लागू नियमों, विनियमों और आदेशों द्वारा शासित होंगे।


  1. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह, लक्षद्वीप, दमन दीर्ब, दादर और नागर हवेली पुलिस सेवा-समूह-ख

(क) दो वर्ष की अवधि के लिए परिवीक्षा पर नियुक्तियों की जाएंगी जिसे सक्षम प्राधिकारों के विवेक से बढ़ाया जा सकता है। परिवीक्षा पर नियुक्त किए गए अभ्यर्थियों को ऐसे प्रशिक्षण पर जाना आवश्यक होगा और ऐसे परीक्षण पास करने होंगे जिन्हें केन्द्र सरकार निर्धारित करे।

(ख) यदि सरकार की राय में, परिवीक्षा पर सेवा के लिए नियुक्त किए गए अधिकारों का कार्य या व्यवहार असन्तोषजनक पाया जाता है या यह दर्शाता है कि वह निपुण सरकारी कर्मचारी बनने में सक्षम नहीं है, तो केन्द्र सरकार बिना कोई कारण बताए अविलम्ब उसे सेवामुक्त कर सकती है।

(ग) जिस अधिकारी को परिवीक्षावधि सन्तोषजनक तरीके से पूरी कर लेने के बारे में घोषणा कर दी जाती है, तो उसे सेवा में स्थायी किया जाएगा। तथापि, केन्द्र सरकार की राय में, उसका कार्य या व्यवहार असन्तोषजनक पाया जाता है, केन्द्र सरकार या तो उसे सेवामुक्त कर सकती है या ऐसी आगे की अवधि के लिए उसका परिवीक्षा काल बढ़ा सकती है, जैसा भी वह उचित समझे।

(घ) ग्रेड और वेतनमान :

क्रम सेवा का ग्रेड पे बैंड/वेतनमान तदनुरूपी पे बैंड/वेतनमान तदनुरूपी ग्रेड पे
सं का नाम
1. कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड-1 (ग्रुप-क) पी बी-4 37,400-67,000 8700
2. कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड-11 (ग्रुप-क) पी बी-3 15,600-39,100 7600
3. चयन ग्रेड-1 (ग्रुप-क) पी बी-3 15,600-39,100 6600
4. एंट्री ग्रेड (ग्रुप-ख) पी बी-2 (i) 93,000-34,800 (प्रारंभिक नियुक्ति पर) 4800
(ii) 15,600-39,100 5400
(4 वर्ष की अनुमोदित सेवा पूरी होने पर, सतर्कता और सत्यनिष्ठा निर्वाचन के अध्यधीन)

प्रतियोगी परीक्षा के परिणामों के आधार पर भर्ती किए गए अधिकारी, सेवा की एंट्री ग्रेड में नियुक्त होने पर, उपर्युक्त ग्रेड में प्रारंभिक नियुक्ति हेतु निर्धारित न्यूनतम वेतनमान में वेतन आहरित करेंगे :

बशर्ते कि यदि सेवा में नियुक्त होने से पहले वह केन्द्र सरकार या राज्य सरकार के अंतर्गत कालावधि पद के अलावा अन्य पद पर है तो उसका वेतनमान आधारभूत नियमों के प्रावधानों के तहत निर्धारित किया जाएगा।

(ङ) सेवा के अधिकारी केन्द्र सरकार द्वारा, समय-समय पर निर्धारित की गई दरों पर महंगाई वेतन, महंगाई भत्ता, नगर प्रतिपूरक भत्ता, गृह किराया भत्ता और ऐसे ही अन्य भत्तों के हकदार होंगे।

(च) सेवा के लिए नियुक्त किए गए अधिकारी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दमन और दीव और दादरा और नागर हवेली पुलिस सेवा नियमावली, 2003 के प्रावधानों द्वारा शासित होंगे और इन नियमों को प्रभावी बनाने के उद्देश्य से समय-समय पर केन्द्र सरकार द्वारा जारी अन्य विनियमों या निर्देशों का पालन करेंगे। वे मामले जो विशेष रूप से उपर्युक्त नियमों, विनियमों या आदेशों से शासित नहीं होते हैं वे संघ के मामलों के साथ जुड़े सेवा में सदृश अधिकारियों के लिए लागू नियमों, विनियमों और आदेशों द्वारा शासित होंगे।

23. पांडिचेरी सिविल सेवा, ग्रुप ‘ख’

(क) नियुक्तियां दो वर्ष की अवधि के लिए परिवीक्षा के आधार पर की जाएंगी जिनमें सक्षम अधिकारी के विवेक पर वृद्धि भी हो सकती है। परिवीक्षा के आधार पर नियुक्त किए गए उम्मीदवारों को ऐसा प्रशिक्षण पाना होगा और ऐसा विभागीय परीक्षण पास करना होगा जो पांडिचेरी संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासक निर्धारित करें।

(ख) प्रशासक की राय में यदि परिवीक्षा पर चल रहे अधिकारी का कार्य या आचरण संतोषजनक है या ऐसा आभास देता है कि उनके सक्षम बन जाने की संभावना नहीं है तो प्रशासक उसको उसी समय सेवामुक्त कर सकता है अथवा स्थाई पद पर यदि कोई है, उसका प्रत्यावर्तन किया जा सकता है।

(ग) जिस अधिकारी के बारे में अपनी परिवीक्षा की अवधि सफलतापूर्वक पूरी कर लेने की घोषणा कर दी जाती है तो उसे उक्त सेवा में स्थायी किया जा सकता है। प्रशासक की राय में यदि उनका कार्य या आचरण असंतोषजनक है तो प्रशासक उसे या तो सेवामुक्त कर सकता है या उसकी परिवीक्षा की अवधि उतने समय के लिए और आगे बढ़ा सकता है जितना वह ठीक समझे।

(घ) प्रतियोगिता परीक्षा के परिणामों के आधार पर नियुक्त व्यक्तियों को सेवा से नियुक्त होने पर वेतनमान (रु. 6,500-200-10,500) का न्यूनतम वेतन दिया जाएगा।

(ङ) पूर्व संशोधित वेतनमान :-

(1) प्रारंभिक नियुक्ति पर रु. 6,500-200-10,500
(2) चार वर्ष की रेजिडेंसी अपेक्षा पूरी करने पर रु. 8,000-275-13,500
(3) आठ वर्ष की रेजिडेंसी अपेक्षा पूरी करने पर रु. 10,000-325-15,200
(4) बारह वर्ष की रेजिडेंसी अपेक्षा पूरी करने पर रु. 12,000-375-16,500
(5) 18 वर्ष की रेजिडेंसी अपेक्षा पूरी करने पर रु. 14,300-400-18,300

किसी प्रतियोगिता परीक्षा के परिणामों के आधार पर भर्ती किए गए व्यक्ति की सेवा में नियुक्त कर केवल वेतन का एंट्री ग्रेड वेतनमान प्राप्त होगा किन्तु यदि वह सेवा नियुक्ति से पहले मूल रूप से आवधिक पद के अतिरिक्त स्थायी पद पर कार्य करता था, सेवा में परिवीक्षा की


अवधि में उसका वेतन मूल नियम 22 (ख) (1) के उपबन्धों के अधीन विनियमित किया जाएगा । सेवा में नियुक्त किए गए अन्य व्यक्तियों के लिए वेतन और वेतनवृद्धि मूल नियमों के अनुसार विनियमित होंगी ।

इस सेवा के अधिकारी भारतीय प्रशासनिक सेवा (पदोन्नति द्वारा नियुक्ति) विनियमावली, 1955 के अनुसार भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ वेतनमान के पदों पर पदोन्नति के पात्र होंगे ।
(च) इस सेवा के अधिकारी पांडिचेरी सिविल सेवा नियमावली, 1967 तथा इन नियमों के कार्यान्वित करने के लिए प्रशासन द्वारा जारी किए गए अनुदेशों द्वारा शासित होंगे ।

24. पांडिचेरी पुलिस सेवा-ग्रुप ‘ख’

(क) नियुक्तियां दो वर्ष की अवधि के लिए परिवीक्षा के आधार पर की जाएंगी जिसमें सक्षम अधिकारी के विवेक पर वृद्धि भी हो सकती है । परिवीक्षा के आधार पर नियुक्त किए गए उम्मीदवारों को ऐसा प्रशिक्षण पाना होगा और ऐसा विभागीय परीक्षण पास करना होगा जो पांडिचेरी संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासक निर्धारित करें ।
(ख) प्रशासक की राय में यदि परिवीक्षा पर चल रहे अधिकारी का कार्य या आचरण असंतोपजनक है या ऐसा आभास देता है कि उनके सक्षम बन जाने की संभावना नहीं है तो प्रशासक उसको उसी समय सेवामुक्त कर सकता है अथवा स्थायी पद पर यदि कोई है, उसका प्रत्यावर्तन किया जा सकता है।
(ग) जिस अधिकारी के बारे में अपनी परिवीक्षा की अवधि सफलतापूर्वक पूरी कर लेने की घोषणा कर दी जाती है तो उसे उक्त सेवा में स्थायी किया जा सकता है प्रशासक की राय में यदि उनका कार्य या आचरण असंतोपजनक है तो प्रशासक उसे या तो सेवामुक्त कर सकता है अथवा उसकी परिवीक्षा की अवधि उतने समय के लिए और आगे बढ़ा सकता है जितनी वह ठीक समझे।
(च) उक्त सेवा में संबंधित अधिकारी को संघ राज्य क्षेत्र पांडिचेरी में कटोँ भी कार्य करना पड़ सकता है ।
(ङ) पूर्व संशोधित वेतनमान :-
(i) ग्रेड-1 (चयन ग्रेड) रु. $10,000-325-15,200$
(ii) ग्रेड-11 (प्रवेश ग्रेड) रु. $6,500-200-10,500$

प्रतियोगिता परीक्षा के परिणाम के आधार पर भर्ती हुआ कोई व्यक्ति उक्त सेवा में नियुक्ति होने पर समय वेतनमान का न्यूनतम वेतन प्राप्त करेगा :

किन्तु उक्त सेवा में नियुक्ति से पहले यदि आवधिक पद के अलावा किसी अन्य स्थायी पद पर मूल रूप से नियुक्त रहा हो तो सेवा में उसकी परिवीक्षा की अवधि के दौरान उसका वेतन “मूल नियमावली” के नियम 22-ख उप-नियम (1) के उपबंधों के अधीन विनियमित किया जाएगा । उक्त सेवा में नियुक्त अन्य व्यक्तियों के मामले में वेतन तथा वेतनवृद्धि मूल नियमावली के अनुसार विनियमित होंगी ।
(च) उक्त सेवा के अधिकारी पांडिचेरी पुलिस सेवा नियम, 1972 के साथ-साथ प्रशासक द्वारा बनाए गए अन्य ऐसे विनियम या इन नियमों को लागू करने के उद्देश्य से जारी किए गए आदेश लागू होंगे ।
टिप्पणी:-सहभागी सेवाओं के कर्त्तव्यों को प्रकृति में अधिकारी द्वारा धारित पद के अनुसार परिवर्तन हो सकता है, अर्थात्, अधिकारी द्वारा धारित विभिन्न पदों के लिए सीधे गए कार्य अलग-अलग हैं।

परिशिष्ट-3

उम्मीदवारों के शारीरिक परीक्षण संबंधी विनियम

उम्मीदवारों की सुविधा तथा उनकें अपेक्षित शारीरिक मानक होने की संभावना सुनिश्चित करने के लिए ये विनियम प्रकाशित किए जा रहे हैं । ये विनियम चिकित्सा परीक्षकों का भी मार्गदर्शन करेंगे ।

टिप्पणी I : शारीरिक रूप से विकलांग वर्ग के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित पदों के लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवारों को चिकित्सा परीक्षा करते समय चिकित्सा बोर्ड शारीरिक रूप से विकलांग वर्ग के अंतर्गत आरक्षण प्राप्त करने के लिए पात्रता मापदण्ड ध्यान में रखेंगे, शारीरिक रूप से विकलांग कोटा वही रहेगा जैसा कि विकलांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण तथा पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 के संगत प्रावधानों के अंतर्गत विनिर्दिष्ट हैं ।

टिप्पणी II: यह भी कि सरकार विकलांग उम्मीदवारों को विनिर्दिष्ट प्रपत्र में विकलांगता प्रमाण-पत्र जारी करने तथा इन विनियमों के अनुरूप शारीरिक रूप से विकलांग उम्मीदवारों को नियमित चिकित्सा जांच करने हेतु विशेष चिकित्सा बोर्ड (बोर्डो)/ अपीलीय चिकित्सा बोर्ड का गठन भी कर सकती है ।

दृष्टिहीन उम्मीदवार केवल उन्हो पदों पर चयन/नियुक्ति के लिए पात्र होंगे जो केन्द्र सरकार की सेवाओं में, शारीरिक विकलांगों के लिए आरक्षण तथा रियायतों को विवरणिका में उनके लिए उपयुक्त निर्धारित किए गए हैं ।
2. (क) भारत सरकार को स्वास्थ्य बोर्ड की रिपोर्ट पर विचार करके उसे स्वीकार या अस्वीकार करने का पूर्ण अधिकार होगा ।

विभिन्न सेवाओं का वर्गीकरण दो श्रेणियों ‘तकनीकी तथा गैर-तकनीकी’ के अधीन इस प्रकार होगा :-
(क) तकनीकी
(1) भारतीय रेलवे यातायात सेवा ।
(2) भारतीय पुलिस सेवा तथा अन्य केन्द्रीय पुलिस सेवा ग्रुप ‘क और ‘ख’।
(3) रेलवे सुरक्षावश ग्रुप ‘क’।
(ख) गैर-तकनीकी

भा. प्र. से. भा., जि. से. भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा, भारतीय राजस्व सेवा (सीमा शुल्क तथा केन्द्रीय उत्पाद), भारतीय सिविल लेखा सेवा, भारतीय रेल लेखा सेवा, भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा, भारतीय रक्षा लेखा सेवा, भारतीय राजस्व सेवा (आई. डी.), भारतीय आयुध सेवा, ग्रुप ‘क’ भारतीय डाक सेवा, भारतीय रक्षा संपदा सेवा ग्रुप ‘क’, भारतीय डाक-वार लेखा और वित्त मेक, ग्रुप ‘क’ के पद और अन्य केन्द्रीय सिविल सेवाओं के ग्रुप ‘क’ तथा ‘ख’ के पद ।

  1. नियुक्ति के योग्य ठहराये जाने के लिए यह जरूरी है कि उम्मीदवार का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य ठीक हो और उम्मीदवार में कोई एसा शारीरिक रूप न हो जिससे नियुक्ति के बाद दक्षतापूर्वक काम करने में यथा पढ़ने की संभावना हो।

2(क) भारत के अभ्यर्थियों (एंग्लो इंडियन जाति सहित) की आयु-सीमा, ऊँचाई और छाती की माप के सह संबंध के मामले में यह मैडिकल बोर्ड पर छोड़ दिया गया है कि अभ्यर्थियों को जांच में दिशा-निर्देश के लिए कौन-सा सह संबंध आँकड़ा सर्वाधिक उपयुक्त होगा । यदि ऊँचाई, वजन और छाती की माप में कोई विसंगति होती है, तो अभ्यर्थी को बोर्ड द्वारा उपयुक्त अथवा अनुपयुक्त घोषित किए जाने से पूर्व जाँच और छाती के एक्सरे जांच हेतु उसे अस्पताल में भर्ती किया जाना चाहिए ।

कंचल उन उम्मीदवारों को छाती का एक्सरे किया जाएगा जिन्हें चिकित्सा परीक्षण के भाग-2 के लिए मैडिकल बोर्ड के समक्ष उपस्थित होने के निर्देश दिए जाएंगे ।
(ख) निश्चित सेवाओं के लिए कद और छाती के घेरे का कम से कम माप नीचे दिया जाता है जिस पर पूरा न उतरने पर उम्मीदवार को स्वीकार नहीं किया जा सकता है ।

सेवा का
नाम
कद छाती का पूरा
घेरा
छाती का
फँलाव
(फुलाकर)
(1) (2) (3) (4)

(1) भारतीय 152 सें. सी. *84 सें. मी. (पुरुषों के लिए) रेल (यातायात सेवा) $+150$ सें. मी. 79 सें. मी. 5 सें. मी. (महिलाओं के लिए)
(2) भारतीय 165 सें. मी. 84 सें. मी. 5 सें. मी. पुलिस सेवा, रेलवे सुरक्षा बल 150 सें. मी. **79 सें. मी. (पुरुषों के लिए) ग्रुप ‘क’ तथा अन्य केन्द्रीय पुलिस सेवा ग्रुप ‘क’ और ‘ख’

*अनुसूचित जनजातियों के और ऐसी जातियों जैसे गोरखा, गढ़वाली, असमियां, कमायूं, नागा जनजातियों आदि से संबंधित उम्मीदवारों जिनकी औसत लम्बाई दूसरों से प्रकटत: कम होती है के मामले में, न्यूनतम निर्धारित कद को लम्बाई में छूट दी जा सकेंगी ।

भारतीय पुलिस सेवा ग्रुप ‘क’ एवं ‘ख’ पुलिस सेवा और रेलवे सुरक्षा बल ग्रुप ‘क’ के पदों की पुलिस सेवा हेतु अनुसूचित जनजातियों ।
**और गोरखा, गढ़वाली, असमियां, कुमायू, नागा जैसी जातियों से संबद्ध उम्मीदवारों के मामले में छूट देकर निम्नलिखित न्यूनतम ऊंचाई मानक लागू है :-

पुरुष $\quad 160$ सें. मी.
महिला $\quad 145$ सें. मी.
3. उम्मीदवार का कद निम्नलिखित विधि में नापा जाएगा :-

वह अपने जूते उतार देगा और उसे मापदण्ड (स्टैंड) से इस प्रकार सटा कर खड़ा किया जाएगा कि उसके पांव आपस में जुड़े रहें और उसका वजन सिवाए एड़ियों के पांवों की उंगलियों या किसी और हिस्से पर न पड़े । वह बिना अकड़े सीधा खड़ा होगा और उसको एड़ियां, पिंडलियां, नितम्ब और कंधे माप-दण्ड के साथ लगे रहेंगे। उसकी ठोड़ी नीचे रखी जाएगी ताकि सिर का स्तर (वर्टेक्स ऑफ दि हैड लेबल) हारिजोंटल बार (आड़ा फूड) के नीचे आ जाए कद सेंटीमीटरों और आधे सेंटीमीटरों में नापा जाएगा ।
4. उम्मीदवार की छाती नापने का तरीका इस प्रकार है :-

उसे इस भांति खड़ा किया जाएगा कि उसके पांव जुड़े हों, उसको भुजाएं सिर से ऊपर उठी हों फोते को छाती के गिर्द इस तरह से लगाया जाएगा कि पीछे की ओर इसका किनारा असफलक शोल्डर ब्लेड के निम्न कोणों (इंफोरियर एंकल्स) से लगा रहे और वह फोते को छाती के गिर्द ले जाने पर उसी आड़े समतल (हारिजोंटल प्लेन) में रहे फिर भुजाओं को नीचे किया जाएगा और उन्हें लटका रहने दिया जाएगा, किन्तु इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि कंधे के ऊपर या कंधे नीचे की ओर न किए जाएं जिससे कि फोता न हिले तब उम्मीदवार को कई बार गहरा सांस लेने के लिए कहा जाएगा और छाती का अधिक से अधिक फँलाव गौर से नोट किया जाएगा और कम से कम और अधिक से अधिक फँलाव सेंटीमीटरों में रिकार्ड किया जाएगा, 84-89, 86-93.5 आदि । नाप को रिकार्ड करते समय आधे सेंटीमीटर से कम के भिन्न (फ्रंक्शन) को नोट नहीं करना चाहिए ।

टिप्पणी :- अंतिम निर्णय लेने से पहले उम्मीदवारों की ऊंचाई और छाती दो बार नापनी चाहिए ।
5. उम्मीदवार का वजन भी किया जाएगा और उसका वजन किलोग्रामों में रिकार्ड किया जाएगा, आधे किलोग्राम के फ्रंक्शन को नोट नहीं करना चाहिए ।
6. (क) उम्मीदवार की नजर की जांच निम्नलिखित नियमों के अनुसार की जाएगी प्रत्येक जांच का परिणाम रिकार्ड किया जाएगा।
(i) सामान्य : उम्मीदवार की आंखों की सामान्य परीक्षा की जाएगी जिसका उद्देश्य किसी बीमारी अथवा अपसामन्यता का पता लगाना होगा। उम्मीदवार यदि आंख, पलकों को ऐसी रूग्ण दशा से पीड़ित हो अथवा इस प्रकार की संसक्त संरचना रखता हो जो उसे सेवा के लिए अयोग्य बनाती हो या भविष्य में बना सकती हो तो उसे अस्वीकार कर दिया जाएगा ।
(ii) दृष्टि तीक्ष्णता : दृष्टि की तीक्ष्णता के निर्धारण की परीक्षा में दो परीक्षण सम्मिलित होंगे-एक दूर दृष्टि के लिए तथा दूसरा निकट दृष्टि के लिए प्रत्येक आंख की अलग-अलग परीक्षा की जाएगी।
(ख) चश्मे के बिना नजर (नैकेंड आई विजन) की कोई उच्चतम सीमा (मिनिमम लिमिट) नहीं होगी किन्तु प्रत्येक केस में मैडिकल बोर्ड या अन्य मैडिकल प्राधिकारी द्वारा इसे रिकार्ड किया जाएगा । क्योंकि इससे आंख की हालत के बारे में मूल सूचना (बेसिक इंफार्मेशन) मिल जाएगी ।
(ग) विभिन्न प्रकार की सेवाओं के लिए चश्मे के साथ और चश्मे के बिना दूर और नजदीक की नजर का मानक निम्नलिखित होगा :-


सेवा का वर्ग

भा. पु. से. तथा अन्य पुलिस सेवाएं ग्रुप ‘क’ तथा ‘ख’ और आई. आर. टी. एस. (तकनीकी सेवाएं) बेहतर दृष्टि खराब दृष्टि भ. प्र. से., वि. से. और अन्य कॅन्द्रीय सिविल सेवाएं ग्रुप ‘क’ तथा ‘ख’ (गैर-तकनीकी सेवाएं) बेहतर खराब दृष्टि दृष्टि
(शोधित दृष्टि) (शोधित दृष्टि)
(1) (2) (3)
1. दूर दृष्टि 6/6 या 6/9 6/12 या 6/9 6/6 या 6/9 6/18 से शून्य
या 6/12
2. निकट जे1 ** जे2** जे1** जे3 से
दृष्टि शून्य **
जे2 जे2
3. सुधार के ऐनक ऐनक 10 एल
मान्य प्रकार *रेडियल कॅंगटोटेमी **
4. अपवर्तक $+4.00$ डी (सिलेक्टसस कोई नहीं, बल्कि
दोषी की सहित)-गैर गैरविकृतिजन्य
मान्य विकृतिजन्य निकट दृष्टिदोग रहित
सीमाएं निकट दृष्टि (मायोपिया)
$+4.00$ जी सिलेक्टस्स
सहित (हाइपरमैट्रोपिया)
5. अपेक्षित रंग दृष्टि उच्च श्रेणी निम्न श्रेणी
6. आवश्यक द्विवेदी दृष्टि हां नहीं

*नेत्र विशेषज्ञों के विशेष बोर्ड को भेजने के लिए।
**रेलवे सेवाओं अर्थात् भा. रे. ले. से., भा. रे. का. से. रेलवे सुरक्षा बल के लिए निकट दृष्टि बेहतर दृष्टि में जे’ तथा खराब दृष्टि में जे’ है।
(घ) (1) उपर्युक्त तकनीकी सेवाओं और लोक सुरक्षा से संबंधित अन्य सेवाओं के संबंध में मायोपिया (सिलिंडर मिलाकर) कुल 4.00 डी से अधिक नहीं हो। हाईपरमेट्रोपिया (सिलिंडर मिलाकर) कुल +4.00 डिग्री से अधिक नहीं होना चाहिए।

किन्तु शर्त यह है कि यदि ‘तकनीकी’ के रूप में वर्गीकृत सेवाओं (रेल मंत्रालय के अधीन सेवाओं को छोड़कर) से संबद्ध उम्मीदवार हाई मायोपिया के आधार पर अयोग्य पाया जाए, तो वह मामला तीन दृष्टि विशेषज्ञों के विशेष बोर्ड को भेजा जाएगा जो यह घोषणा करेंगे कि क्या निकट दृष्टि रोगात्मक है अथवा नहीं। यदि यह मामला रोगात्मक नहीं है तो उम्मीदवार को योग्य घोषित कर दिया जाएगा। बशर्ते कि वह दृष्टि संबंधी अन्य अपेक्षाओं को पूर्ति करता है।
(2) मायोपिया फंड्स के प्रत्येक मामले में परीक्षा की जानी चाहिए और उसक परिणाम रिकार्ड किए जाने चाहिएं यदि उम्मीदवार को ऐसी रोगात्मक दशा हो जाकि बढ़ सकती है और उम्मीदवार की कार्यकुशलता पर प्रभाव डाल सकती है तो उसे अयोग्य घोषित किया जाए।
(ड.) दृष्टि क्षेत्र- सभी सेवाओं के लिए सम्मुख विधि (कॉर्ट्रेशन मैथड) द्वारा दृष्टि क्षेत्र की जांच की जाएगी। जब ऐसी जांच का नतीजा असंतोषजनक या संदिग्ध हो तो तब दृष्टि क्षेत्र को पैरामीटर पर निर्धारित किया जाना चाहिए।
(च) रतौंधी (नाईट ब्लाइंडनेस), साधारणतया रतौंधी दो प्रकार की होती है-(1) विटामिन (ए) की कमी होने के कारण और (2) रेटिना के शारीरिक रोग के कारण जिसकी आम वजह रेटी नोटिस पिगमेंटोसा होती है । उपर्युक्त (1) में फंडसी की स्थिति असामान्य होती है, साधारणतया छोटी आयु वाले व्यक्तियों में और कम खुराक पाने वाले व्यक्तियों में दिखाई देती है और अधिक मात्रा में विटामिन ‘ए’ खाने से ठीक हो जाती है। ऊपर बताई गई (2) की स्थिति में फंड्स प्राय: होती है। अधिकांश मामलों में केवल फंड्स की परीक्षा से ही स्थिति का पता चल जाता है । श्रेणी के लोग प्रौढ़ होते हैं और खुराक की कमी से पीड़ित नहीं होते हैं । सरकार में ऊंची नौकरियों के लिए प्रयत्न करने वाले व्यक्ति संवर्ग में आते हैं । उपर्युक्त (1) और (2) दोनों के लिए अंधेरा अनुकूलन इस परीक्षा से स्थिति का पता चल जाएगा। उपर्युक्त (2) के लिए विशेषतया जब फंड्स न हो तो इलेक्ट्रो-रेटिनोग्राफी किए जाने की आवश्यकता होती है इन दोनों जांचों का अंधेरा अनुकूलन और रेटिनरोग्राफी में समय अधिक लगता है और विशेष प्रबन्ध और सामान की आवश्यकता होती है । और इसलिए साधारण चिकित्सक जांच से इसका पता लगना संभव नहीं है । इन तकनीकी यातों को ध्यान में रखते हुए मंत्रालय/विभाग को चाहिए कि बताएं कि रतौंधी के लिए उन जांचों का करना अनिवार्य है या नहीं या नहीं। यह इस बात पर निर्भर होगा कि जिन व्यक्तियों को सरकारी नौकरी दी जाने वाली है उनकें कार्य की अपेक्षाएं क्या हैं और उनकी ड्यूटी किस तरह की होगी ।

रेलवे सेवाओं के लिए (भा. रे. या. से., भा. रे. ले. से. भा. रे. का. से. तथा रेलवे सुरक्षा बल),-रतौंधी का परीक्षण नियमित कार्य के रूप में नहीं बल्कि विशेष मामलों में किए जाने की आवश्यकता है । रतौंधी अथवा अंधेरा अनुकूलन की जांच हेतु कोई मानक परीक्षण निर्धारित नहीं किया गया है । चिकित्सा बोर्ड को ऐसे स्थूल परीक्षणों का, यथा कम की हुई रोशनी में अथवा एक अंधेरे कमरे में उम्मीदवार से विभिन्न वस्तुओं को पहचान करवाकर जब वह उसमें 20 से 30 मिनट तक रह लें, दृष्टि तीक्ष्णता को रिकार्ड करने का, तात्कालिक प्रबंध करने का स्वविवेकाधिकार देना चाहिए। उम्मीदवार के वक्तव्य पर हमेशा भरोसा नहीं करना चाहिए परन्तु उन पर उचित ध्यान देना चाहिए ।
(छ) कलर विजन, -उपर्युक्त तकनीकी सेवाओं के संबंध में कलर विजन की जांच जरूरी है । जहां तक गैर-तकनीकी सेवाओं/ पर्दों का संबंध है सम्बद्ध मंत्रालय/विभाग को मैडिकल बोर्ड को सूचना देनी होगी कि उम्मीदवार जो सेवा चाहता है उसकें लिए कलर विजन परीक्षा होनी चाहिए या नहीं ।

नीचे दी गई तालिका के अनुसार रंग का प्रत्यक्ष ज्ञान उच्चतर (हायर) और निम्नतर (लोअर) ग्रेडों में होना चाहिए जो लैंटर्न एपर्चर के आकार पर निर्भर होगा ।


ग्रेड रंग के प्रत्यक्ष रंग के प्रत्यक्ष
ज्ञान का उच्चतर ज्ञान का निम्नतर
ग्रेड ग्रेड
1. लैम्प और उम्मीदवार के 16 फोट 16 फोट
बीच की दूरी
2. द्वारक (एपर्चर) का आकार 1.3 मि. मीटर 13 मि. मीटर
3. उदभासन काल 5 सैकण्ड 5 सैकण्ड

भारतीय पुलिस सेवा तथा अन्य ग्रुप ‘क’ तथा ‘ख’ पुलिस सेवाएं भारतीय रेल यातायात सेवा, रेलवे सुरक्षा बल के ग्रुप ‘क’ पद और लोक बचाव से संबंधित अन्य सेवाओं के लिए विजन के उच्चतर ग्रेड आवश्यक हैं। किन्तु दूसरी सेवाओं के लिए कलर विजन के लोअर ग्रेड को पर्याप्त मान लिया जाए।

लाल संकेत, हरे संकेत और पीला रंग को आसानी से और हिचकिचाहट के बिना पहचान लेना संतोषजनक कलर विजन है । इश्तिहार की प्लेटों के इस्तेमाल को जिन्हें अच्छी रोशनी में और एंड्रोज ग्रोज जैसी उपर्युक्त लैटर्न को रोशनी में दिखाया जाता है कलर विजन को जांच करने के लिए विश्वसनीय समझा जाएगा। वैसे तो दोनों में से किसी भी एक की जांच को साधारणतया तथा पर्याप्त समझा जा सकता है लेकिन सड़क, रेल और हवाई यातायात में संबंधित सेवाओं के लिए लैटर्न जांच करना लाजमी है। शक वाले मामलों में जब उम्मीदवार को किसी एक जांच करने पर अयोग्य पाया जाए तो दोनों ही तरीकों से जांच करनी चाहिए तथापि भारतीय रेल यातायात सेवा और रेलवे सुरक्षा बल में ग्रुप ‘क’ के पदों में नियुक्ति हेतु उम्मीदवारों के कलर विजन के परीक्षा के लिए एशिहरा प्लेट और एड्रिक को हरी लैटर्न दोनों का प्रयोग किया जाएगा। (ज) दृष्टि की तीक्ष्णता से भिन्न आंख की अवस्थाएं (आक्यूलर कंडीशन) । (1) आंख की उस बीमारी को या बढ़ती हुई अपवर्तन त्रुटि (प्रोग्रेसिव रिफ्रेक्टिव एरर) की, जिसके परिमाणस्वरूप दृष्टि की तीक्ष्णता के कम होने की संभावना हो अयोग्य कारण समझना चाहिए। (2) भैंगापन (स्कियेट) तकनीकी सेवाओं में जहां द्विने (वाईनोकुलर) दृष्टि का होना अनिवार्य हो, दृष्टि की तीक्ष्णता निर्धारित स्तर पर होने पर भी भैंगापन की अयोग्यता का कारण समझना चाहिए, दृष्टि की तीक्ष्णता निर्धारित स्तर की होने पर भैंगापन को अन्य सेवाओं के लिए अयोग्यता का कारण नहीं समझना चाहिए। रेलवे तकनीकी सेवा के लिए वाईनोकूलर दृष्टि अनिवार्य है। (3) यदि किसी व्यक्ति को एक आंख हो अथवा यदि एक आंख की दृष्टि की सामान्य हो और दूसरी आंख भी मन्द दृष्टि हो अथवा असामान्य दृष्टि हो तो उसका प्रभाव प्राय: यह होता है कि व्यक्ति में गहराई बोध है त्रिविम दृष्टि का अभाव होता है। इस प्रकार की दृष्टि कई सिविल पदों के लिए आवश्यक नहीं है। इस प्रकार के व्यक्तियों को चिकित्सा बोर्ड योग्य मानकर अनुशंसित कर सकता है बशर्ते कि सामान्य आँख :-

(1) की दूरी 6/6 और निकट की दृष्टि जे/। चश्मा लगाकर अथवा उसके बिना हो, बशर्ते कि दूर की दृष्टि के लिए किसी मेरिडियन में त्रुटी 4 डायोप्टेरिज से अधिक नहीं। (2) की दृष्टि का दूसरा क्षेत्र हो। (3) की सामान्य, रंग दृष्टि, जहां अपेक्षित हों।

बशर्ते कि बोर्ड का यह समाधान हो जाने पर कि उम्मीदवार प्रश्नाधीन कार्य विशेष से संबंधित सभी कार्यकलाप का निष्पादन कर सकता है।

दृष्टि तीक्ष्णता संबंधी उपरोक्त सूट प्राप्त नामक “तकनीकी” रूप के वर्गीकृत पदों/सेवाओं के लिए उम्मीदवार पर लागू नहीं होंगे। संबद्ध मंत्रालय/विभाग की चिकित्सा बोर्ड को यह सूचित करना होगा कि उम्मीदवार “तकनीकी” पद के लिए है अथवा नहीं। (4) कोन्टेक्ट लैस उम्मीदवार की स्वास्थ्य परीक्षा के समय कोन्टेक्ट लैस के प्रयोग को आज्ञा नहीं होगी। यह आवश्यक है कि आँख की जांच करते समय दूर की नजर के लिए टाईप किए हुए अक्षरों को उदभापान 15 फीट की ऊंचाई के प्रकाश से हो।

विशेष नेत्र बोर्ड के लिए दिशानिर्देश

आँखों की जांच के लिए विशेष नेत्र बोर्ड में 3 नेत्र विशेषज्ञ होंगे। (क) उन मामलों में, जिनमें चिकित्सा बोर्ड ने दृष्टि क्षमता को निर्धारित सामान्य सीमा के अंतर्गत पाया है किन्तु उन्हें किसी ऐसी आगिक और प्रगामी बीमारी का संदेह है जो दृष्टि क्षमता को हानि पंहुचा सकती है, उन्हें ऐसे मामले को प्रथम चिकित्सा बोर्ड के भाग के रूप में विशेष नेत्र चिकित्सा बोर्ड के पास भेज देना चाहिए। (ख) आँखों की किसी भी प्रकार की शल्य चिकित्सा से संबंधित मामले, आई. ओ. एल. अपवर्तक (रिफ्रेक्टिव) कार्निपल शल्य चिकित्सा, रंग दोष के संदिग्ध मामलों को विशेष नेत्र चिकित्सा बोर्ड को भेजा जाना चाहिए। (ग) उन मामलों में, जहां उम्मीदवार उच्च निकट दृष्टि (मायोमिया) अथवा उच्च दूरदृष्टि दोष (हाइपर मैट्रेपिया) से पीड़ित पाया जाता है तो केन्द्रीय स्थायी चिकित्सा बोर्ड/राज्य चिकित्सा बोर्ड को तत्काल ऐसे मामलों को अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक/ए.एम. ओ. द्वारा गठित 3 नेत्र विशेषज्ञों के एक विशेष नेत्र चिकित्सा बोर्ड, जिसका अध्यक्ष अस्पताल के नेत्र चिकित्सा विभाग का अध्यक्ष अथवा वरिष्ठतम नेत्र चिकित्सा विशेषज्ञ हो; के पास भेज देना चाहिए। नेत्र विशेषज्ञ/चिकित्सा अधिकारी, जिसने प्रारंभिक नेत्र जांच की है, विशेष नेत्र चिकित्सा बोर्ड का सदस्य नहीं हो सकता।

विशेष चिकित्सा बोर्ड द्वारा उक्त जांच अधिमानत: उसी दिन की जानी चाहिए। किन्तु यदि केन्द्रीय स्थाई चिकित्सा बोर्ड/राज्य चिकित्सा बोर्ड द्वारा की गई चिकित्सा जांच के दिन 3 नेत्र विशेषज्ञों वाले विशेष चिकित्सा बोर्ड की बैठक सम्भव नहीं है तो विशेष बोर्ड की बैठक शोमातिशोम आयोातिज की जानी चाहिए।

विशेष नेत्र बोर्ड अपने निर्णय पर पहुंचने से पहले विस्तृत जांच करेगी।

चिकित्सा बोर्ड की रिपोर्ट तब तक पूर्ण नहीं मानी जाएगी जब तक कि ऐसे मामलों में, जो विशेष चिकित्सा बोर्ड को भेजे गए हों, विशेष चिकित्सा बोर्ड की रिपोर्ट भी उससे शामिल न हो।


मामूली अक्षमता के कारण अयोग्य पाए गए मामलों पर रिपोर्ट देने संबंधी दिशानिर्देश

निम्नस्तरीय दृष्टि तीक्ष्णता और अवसामान्य रंग दृष्टि संबंधी अक्षमता के मामलों में किसी व्यक्ति को अयोग्य घोषित करने से पहले बोर्ड द्वारा परीक्षण को 15 मिनट बाद पुन: दोहराया जाएगा।

7. ब्लड प्रेशर

ब्लड प्रेशर के संबंध में बोर्ड अपने निर्णय से काम लेगा। नार्मल उच्चतम सिस्टलिक प्रेशर के आंकलन की कामचलाऊ विधि नीचे दी जाती है :-
(1) 15 से 25 वर्ष के व्यक्तियों में औसत ब्लड प्रेशर लगभग $100+$ आयु होता है।
(2) 25 वर्ष से ऊपर की आयु वाले व्यक्तियों में ब्लड प्रेशर आंकलन करने के लिए 110 में आधी आयु जोड़ देने का तरीका बिल्कुल संतोषजनक दिखाई पड़ता है।

ध्यान दें :-सामान्य नियम के रूप में 140 एम. एम. के ऊपर के सिस्टालिक प्रेशर की ओर 90 एम. एम. से ऊपर डायस्टालिक प्रेशर को संदिग्ध मान लेना चाहिए, और उम्मीदवार को योग्य या अयोग्य ठहराने के संबंध में अपनी अंतिम राय देने से पहले बोर्ड को चाहिए कि उम्मीदवार को अस्पताल में रखें । अस्पताल की रिपोर्ट से यह पता लगाना चाहिए कि घबराहट (एक्साइटमेंट) आदि के कारण ब्लड प्रेशर में वृद्धि थोड़े समय रहती है या उसका कारण कोई कायिक (आर्गेनिक) बीमारी है । ऐसे सभी कोर्सों में हृदय की एक्सरे और विद्युत हृदय लेखी (इलेक्ट्राकार्डियोग्राफिक) परीक्षाएँ और उक्त यूरिया निकार (क्लियरेंस) की जांच भी नियमित रूप से की जानी चाहिए फिर भी उम्मीदवार के योग्य होने या न होने के बारे में अंतिम फँसला केवल मेडिकल बोर्ड ही करेगा।

ब्लड प्रेशर (रक्त दबाव) लेने का तरीका :

नियमित पारे वाले दवांतरमापी का मर्करीमेनोमीटर किस्म का उपकरण (इन्सटू मेंट) इस्तेमाल करना चाहिए। किसी किस्म के व्यायाम या घबराहट के बाद पन्द्रह मिनट तक रक्त दाब नहीं लेना चाहिए। रोगी बैठा या लेटा हो बशर्ते कि वह और विशेषकर उसकी भुजा शिथिल और आराम से ही कुछ हारिजेटल स्थिति में रोगी के पाश्च पर भुजा को आराम से सहारा दिया जाए। भुजा पर से कंधे तक कपड़े उतार देने चाहिए कफ में से पूरी तरह हवा निकाल कर बीच की रबड़ को भुजा के अन्दर की ओर रखकर और इसके नीचे किनारे की कोहनी के मोड़ में एक या दो इंच ऊपर करके लगाना चाहिए । इसके बाद कपड़े की पट्टी को फैलाकर समान रूप से लोटाना चाहिए, ताकि हवा भरने पर कोई हिस्सा फूल कर बाहर को न निकले ।

कोहनी के मोड़ पर प्रकट धमनी (प्रेकियल आर्टरो) को दया दया कर ढूंढा जाता है और तब उसके ऊपर बीचों- बीच स्टैथम्कोप को हल्के से लगाया जाता है जो कफ के साथ न लगे । कफ में लगभग 200 एम एच जी हवा भरी जाती है और इसके बाद इसमें से धीरे-धीरे हवा निकाली जाती है। हल्की क्रमिक ध्वनि सुनाई पड़ने पर जिमें स्तर पर पारे का कालम टिका होता है सिस्टालिक प्रेशर दर्शाता है जब और हवा निकाली जाएगी तो ध्वनियां तेज सुनाई पड़ेंगी। जिस स्तर पर ये साफ और अच्छी सुनाई पड़ने वाली ध्वनियां हल्की दयी हुई सी लुप्त प्राय: हो

जायें वह डायस्टानिलक प्रेशर है । ब्लड प्रेशर काफी थोड़ी अवधि में ही लेना चाहिए क्योंकि कफ के लम्बे समय का दबाव रोगी के लिए क्षीभकर होता है और इससे रीडिंग गलत हो जाती है । यदि दोबारा पड़ताल करना जरूरी हो तो कफ में पूरी हवा निकाल कर कुछ मिनट के बाद में ही ऐसा किया-जाएगा-कभी-कभी कफ में से हवा निकालने पर एक निश्चित स्तर पर ध्वनियां सुनाई पड़ती हैं, दबाव गिरने पर ये गायब हो जाती हैं और निम्न स्तर पर पुन: प्रकट हो जाती हैं । इस “साइलेंट गेप” से रीडिंग में गलती हो सकती है ।
8. परीक्षक की उपस्थिति में ही किए गए मूत्र की परीक्षा की जानी चाहिए और परिणाम रिकार्ड किया जाना चाहिए। अब मेडिकल बोर्ड को किसी उम्मीदवार के मूत्र में रसायनिक जांच द्वारा शक्कर का पता चले तो बोर्ड इसक सभी पहलूओं की समीक्षा करेगा और मधुमेह (डायबिटीज) के द्योतक चिन्हों और लक्षणों को भी विशेष रूप से नोट करेगा। यदि बोर्ड उम्मीदवार की ग्लूकोस मेह (ग्लाइकोसुरिया) सिवाय, अपेक्षित मेडिकल फिटनेस के स्टैंडर्ड के अनुरूप पायें तो वह उम्मीदवार को इस शर्त के साथ फिट घोषित कर सकता है कि ग्लूकोस अमधुमेहो (नान-डायबिटिक) हो और बोर्ड कंस को मैडीसिन के किसी ऐसे निर्दिष्ट विशेषज्ञों के पास भेजेगा जिसकें पास अस्पताल और प्रयोगशाला की सुविधाएँ हों। मेडिकल विशेषज्ञ स्टैंडर्ड ब्लड शुगर टालरेंस टेस्ट समेत जो भी क्लिनिकल या लेथोरेटरी परीक्षण जरूरी समझेंगा, करेगी और अपनी रिपोर्ट मेडिकल बोर्ड को भेज देगा जिस पर मेडिकल बोर्ड की “फिट या अनफिट” की अंतिम राय आधारित होगी। दूसरे अक्सर पर उम्मीदवार के लिए बोर्ड के सामने स्वयं उपस्थित होना जरूरी नहीं होगा। औषधि के प्रभाव को समाप्त करने के लिए यह जरूरी हो सकता है कि उम्मीदवार को कई दिनों तक अस्पताल में पूरी देख-रेख में रखा जाए ।
9. यदि जांच परिणामस्वरूप कोई महिला उम्मीदवार 12 हफ्ते या उससे अधिक समय की गर्भवती पायी जाती है तो उसको अस्थायी रूप से तब तक अस्वस्थ घोषित किया जाना चाहिए जब तक कि उसका प्रसव न हो जाए। किसी रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर से आरोग्यता का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने पर प्रसूति की तारीख के 6 हफ्ते बाद आरोग्य प्रमाण-पत्र के लिए उसकी फिर से स्वास्थ्य परीक्षा की जानी चाहिए :-
10. निम्नलिखित अतिरिक्त बातों का प्रेषण करना चाहिए :-
(क) उम्मीदवार को दोनों कानों से अच्छा सुनाई पड़ता है या नहीं और कान की बीमारी का कोई चिन्ह है या नहीं। यदि कोई काम की खराबी हो तो उसकी परीक्षा कान-विशेषज्ञ द्वारा की जानी चाहिए यदि सुनने की खराबी का इलाज शल्य क्रिया (आपरेशन) या हियरिंग एड के इस्तेमाल से हो तो उम्मीदवार को इस आधार पर अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता बशर्ते कि कान की बीमारी बढ़ने वाली न हो तो रेलवे सेवाओं के मामलों में गड प्रावधान लागू नहीं होगी चिकित्सा परीक्षा प्राधिकारी के मार्गदर्शन के लिए इस संबंध में निम्नलिखित मार्गदर्शक जानकारी दी जाती है :
(1) एक कान में प्रकट अथवा पूर्ण बहरापन दूसरा कान सामान्य होगा।
(2) दोनों कानों में बहरेपन का प्रत्यक्ष बोधें/जिसमें श्रवण यंत्र (हियरिंग एड) द्वारा कुछ संभव हो ।

यदि उच्च क्रिक्वेंसी में बहिरा पन 30 डेसीक्ल तक हो गैरतकनीकी काम के लिए योग्य। यदि 1000 से 4000 तक की स्पीकर क्रिक्वेंसी में बहरापन 30 डेस्पिल तक हो तो तकनीकी तथा गैर-तकनीकी दोनों प्रकार के काम के लिए योग्य।


(3) सेंट्रल अथवा माजिनल टाइप के टिमपेनिक मेम्बरेन में छिद्र ।
(4) कान के एक ओर से/दोनों ओर से मस्टायड कीविटी से सब-नार्मल श्रवण ।
(5) बहते रहने वाला कान आपरेशन किया गया/बिना आपरेशन वाला
(6) नासापाट की हड्‌डी संबंधी विरुपताओं (योनी डिफार्मिटी) सहित अथवा उससे रहित नाक की जीर्ण प्रवाहक एलजिक दशा।
(7) टांसिल्स और/अथवा स्वर यंत्र (लैस्विस) के लिए प्रवाहक दशा।
(1) एक कान सामान्य हो दूसरे कान में टिमपेनिक मेम्बरेन में छिद्र हो तो अस्थायी आधार पर अयोग्य । कान की शल्य चिकित्सा की स्थिति सुधारने से दोनों कानों में माजिनल या अन्य छिद्र वाले उम्मीदवारों को अस्थायी रूप से अयोग्य घोषित करके उस पर नीचे दिए गए नियम 4 (2) के अधीन विचार किया जा सकता है।
(2) दोनों कानों में माजिनल या एटिक छिद्र होने पर ही आयोग्य।
(3) दोनों कानों में सेंट्रल छिद्र पर अस्थायी रूप से अयोग्य।
(1) किसी एक कान से सामान्य रूप से एक ओर से मास्टायड कीविटी से सुनाई देता हो दूसरे कान में सब-नार्मल श्रवण वाले कान मास्टायड, कीविटी होने पर तकनीकी तथा गैर-तकनीकी दोनों प्रकार के कार्यों के लिए योग्य।
(2) दोनों ओर से मास्टायड कीविटी तकनीकी काम के लिए अयोग्य यदि किसी भी कान की श्रवणता श्रवण यंत्र लगाकर अथवा बिना लगाए सुधार कर 30 डैसिबल हो जाने पर गैर-तकनीकी कार्यों के लिए योग्य।
तकनीकी तथा गैर-तकनीकी दोनों प्रकार के कामों के लिए अस्थायी रूप से अयोग्य।
(1) प्रत्येक मामले की परिस्थिति के अनुसार निर्णय किया जाएगा।
(2) यदि लक्षणों सहित नासापट अफसरण विद्यमान होने पर अस्थाई रूप से अयोग्य।
(1) टांसिल और/अथवा स्वर यंत्र की जीर्ण प्रवाहक दशा योग्य।
(2) यदि आवाज में अत्याधिक कर्कशता विद्यमान हो तो अस्थायी रूप से अयोग्य।
(8) कान, नाक, गले, (ई. एन. टी.) के हल्के अथवा अपने स्थान पर बुर्द ट्यूमर ।
(9) आस्टोकिलरीसिस
(10) कान, नाक, अथवा गले के जन्मजात दोष ।
(11) नेजल पॉली
(ख) उम्मीदवार बोलने में हकलाता/हकलाती नहीं हो।
(ग) उसके दांत अच्छी हालत में हैं या नहीं, और अच्छी तरह चबाने के लिए जरूरी होने पर नकली दांत लगे हैं या नहीं (अच्छी तरह भरे हुए दांतों को ठीक समझा जाएगा)।
(घ) उसकी छाती की बनावट अच्छी है या नहीं और छाती काफी फैलती है या नहीं तथा उसका दिल या फेफड़ा ठीक है या नहीं।
(ङ) उसे पेट की कोई बीमारी है या नहीं।
(च) उसके रक्त-चाप है या नहीं।
(छ) उसके हाईड्रोसिल बढ़ी हुई बैरिकोसिल बैरिकाजशिरा (बेन) या बवासीर है या नहीं।
(ज) उसके अंगों, हाथों पैरों की बनावट और विकास अच्छा है या नहीं और उसकी ग्रंथि भली-भाँति स्वतंत्र रूप से हिलती है या नहीं।
(झ) उसे कोई अस्थाई त्वचा की बीमारी है या नहीं।
(ज) कोई जन्मजात कुरचना या दोष है या नहीं।
(ट) उसमें किसी उग्र या पुरानी बीमारी के निशान हैं या नहीं उससे कमजोर गठन का पता लगे।
(ठ) कारगर टीके के निशान हैं या नहीं।
(ड) उसे कोई संचारी (कम्युनिकंबल) रोग है या नहीं।
11. हृदय तथा फेफड़ों की किन्हीं ऐसी असामान्यताओं का पता लगाने, जिन्हें सामान्य शारीरिक परीक्षण के आधार पर नहीं देखा जा सकता है, के लिए उम्मीदवारों की छाती का रेडियोग्राफी परीक्षण उस समय किया जाएगा जब उसे संध लोक सेवा आयोग द्वारा वैयक्तिक परीक्षण के लिए बुलाया जाएगा।

उम्मीदवार को शारीरिक योग्यता के बारे में कंन्द्रीय स्थायी चिकित्सा बोर्ड (संबंधित उम्मीदवार की चिकित्सा परीक्षा करने वाले) के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा।

सरकारी सेवा के लिए उम्मीदवार के स्वास्थ्य के संबंध में जहां कहीं संदेह हो चिकित्सा बोर्ड का अध्यक्ष उम्मीदवार की योग्यता अथवा अयोग्यता का निर्णय किए जाने के प्रश्न पर किसी उपयुक्त अस्पताल के


विशेषज्ञ से परामर्श कर सकता है, जैसे यदि किसी उम्मदीवार पर मानसिक त्रुटि अथवा विपणन (एवरेशन) से पीड़ित होने का संदेह होने में बोर्ड का अध्यक्ष अस्पताल के किसी मनोविकार विज्ञान/मनोविज्ञानी से परामर्श कर सकता है ।

जब कोई रोग मिले तो उसे प्रमाण-पत्र में अवश्य ही नोट किया जाये । मैडिकल परीक्षक को अपनी राय लिख कर देनी चाहिए कि उम्मीदवार से अपेक्षित दक्षतापूर्ण ड्यूटी में इससे बाधा पड़ने की संभावना है या नहीं ।
12. मैडिकल बोर्ड के निर्णय के विरुद्ध अपील करने वाले उम्मीदवार को भारत सरकार द्वारा निर्धारित विधि के अनुसार रुपये 100.00 का अपील शुल्क जमा करना होता है । यह शुल्क केवल उन उम्मीदवारों को वापिस मिलेगा जो अपीलिय स्वास्थ्य बोर्ड द्वारा योग्य घोषित किए जाएंगे । शेष दूसरों के मामलों में यह जब्त कर लिया जाएगा । यदि उम्मीदवार चाहे तो अपने योग्य होने के दावे के समर्थन में स्वास्थ्यता प्रमाण-पत्र संलग्न कर सकते हैं । उम्मीदवार को प्रथम स्वास्थ्य परीक्षा बोर्ड द्वारा भेजे गए निर्णय के 21 दिनों के अन्दर अपीलें करनी चाहिएं। अन्यथा अपीलीय मैडिकल बोर्ड द्वारा दूसरी स्वास्थ्य परीक्षा के लिए उनके अनुरोध पर कोई विचार नहीं होगा। अपीलीय स्वास्थ्य परीक्षा बोर्ड द्वारा दूसरी स्वास्थ्य परीक्षा केवल नई दिल्ली में ही होगी और इसका खर्च उम्मदीवारों को ही देना पड़ेगा । स्वास्थ्य परीक्षा के संबंध में की जाने वाली यात्राओं के लिए कोई यात्रा भत्ता या दैनिक भत्ता नहीं दिया जाएगा । अपीलों के निर्धारित शुल्क के साथ प्राप्त होने पर अपीलों स्वास्थ्य परीक्षा बोर्ड द्वारा की जाने वाली स्वास्थ्य परीक्षा के प्रबन्ध के लिए कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा आवश्यक कार्यवाही की जाएगी ।

मैडिकल बोर्ड की रिपोर्ट

मैडिकल परीक्षक के मार्गदर्शन के लिए निम्नलिखित सूचना दी जाती है :

  1. शारीरिक योग्यता (फिटनेस) के लिए अपनाए जाने वाले स्टैण्डर्ड में संबंधित उम्मीदवार की आयु और सेवाकाल (यदि हो) के लिए उचित गुंजाइश रखनी चाहिए ।

किसी ऐसे व्यक्ति को पब्लिक सर्विस में भर्ती के लिए योग्य नहीं समझा जाएगा जिसके बारे में यथास्थिति सरकार या नियुक्ति प्राधिकारी (अपाईटिंग अथारिटी) को यह तसल्ली नहीं होगी कि उसे ऐसी कोई बीमारी या शारीरिक दुर्बलता (बाडिली इनफर्मिटी) नहीं है जिससे वह उस सेवा के लिए अयोग्य हो या उसकें अयोग्य होने की संभावना हो ।

यह बात समझ लेनी चाहिए कि योग्यता का प्रश्न भविष्य से भी उतना ही सम्बद्ध है जितना वर्तमान से है और मैडिकल परीक्षा का एक मुख्य उद्देश्य निरन्तर कारगर सेवा प्राप्त करना और स्थाई नियुक्ति के उम्मीदवार के मामले में अकाल मृत्यु होने पर समय पूर्व पेंशन या अदायगियों को रोकना है साथ ही यह भी नोट कर लिया जाए कि जहां प्रश्न केवल निरन्तर कारगर सेवा की संभावना का है और उम्मीदवार को अस्वीकृत करने की सलाह उस हालत में नहीं दी जानी चाहिए जबकि उसमें कोई ऐसा रोप हो तो केवल बहुत कम स्थितियों में निरन्तर कारगर सेवा में बाधक पाया गया हो ।

महिला उम्मीदवार की परीक्षा के लिए किसी लेडी डॉक्टर को मैडिकल बोर्ड के सदस्य के रूप में सहयोजित किया जाएगा ।

भारतीय रक्षा लेखा सेवा (इंडियन डिफेंस अकाउन्ट्स सर्विस) उम्मीदवार को भारत में और भारत के बाहर क्षेत्रा सेवा (फील्ड सर्विस) करनी होगी ऐसे उम्मीदवार के मामले में मैडिकल बोर्ड को इस बारे में अपनी राय विशेष रूप में रिकार्ड करनी चाहिए कि उम्मीदवार क्षेत्र सेवा (फील्ड सर्विस) के योग्य है या नहीं ।

डाक्टरी बोर्ड की रिपोर्ट को गोपनीय रखना चाहिए।
ऐसे मामलों में जब कि कोई उम्मीदवार सरकारी सेवा में नियुक्ति के लिए अयोग्य करार दिया जाता है तो मोटे तौर पर उसकें अस्वीकार किए जाने के आधार उम्मीदवार को बताए जा सकते हैं। किन्तु डाक्टरी बोर्ड के द्वारा खराबी बताई हो उनका विस्तृत ब्यौरा नहीं दिया जा सकता ।

ऐसे मामलों में जहां डाक्टरी बोर्ड का यह विचार है कि सरकारी सेवा के लिए उम्मीदवार को अयोग्य बनाने वाली छोटी-छोटी खराबी चिकित्सा (औषधि या शल्य) द्वारा दूर हो सकती है वहां डाक्टरी बोर्ड द्वारा इस आशय का कथन रिकार्ड किया जाना चाहिए। नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा इस बारे में उम्मीदवार को बोर्ड को राय सूचित किए जाने में कोई आपत्ति नहीं है और जब यह खराबी दूर हो जाए तो दूसरे डाक्टरी बोर्ड के सामने उस व्यक्ति को उपस्थित होने के लिए कहने में संबंधित प्राधिकारी स्वतंत्र है ।

यदि कोई उम्मीदवार अस्थायी तौर पर अयोग्य करार दिया जाए तो दोबारा परीक्षा की अवधि साधारणतया छह महीने से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। निश्चित अवधि के बाद जब दोबारा परीक्षा हो तो ऐसे उम्मीदवार को और आगे की अवधि के लिए अस्थायी तौर पर अयोग्य घोषित न कर नियुक्ति के लिए उनको योग्यता के संबंध में अथवा वे इस नियुक्ति के लिए अयोग्य हैं ऐसा निर्णय अंतिम रूप से दिया जाना चाहिए।
(क) उम्मीदवार का कथन और घोषणा :
अपनी मैडिकल परीक्षा से पूर्व उम्मीदवार को निम्नलिखित अपेक्षित स्टेटमेंट देनी चाहिए और उनकें साथ लगी हुई घोषणा (डिक्लेरेशन) पर हस्ताक्षर करने चाहिए। नीचे दिए गए नोट में निम्नलिखित चेतावनी को और उम्मीदवार को विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए :

  1. अपना पूरा नाम लिखें (साफ अक्षरों में)
  2. (क) अपनी आयु और जन्म का स्थान बताएं
    (ख) क्या आप अनुसूचित जनजाति या गोरखा, गडवालों, असमिया, नागालैण्ड जनजाति आदि में से किसी जाति से संबंधित हैं। जिसका औसतन कद दूसरों से कम होता है “हां” या “नहीं” में उत्तर दीजिए। उत्तर “हां” में हो तो उस जाति का नाम बताए।
  3. (क) क्या आपको कभी चेचक, रूक-रूक कर होने वाला या कोई दूसरा बुखार ग्रथियों (ग्लेंड्स) का बढ़ना या इसमें पीप पड़ना, निरन्तर थूक में खून आना, दमा, दिल की बीमारी, फेफडों की बीमारी, मुखों के दौरे, रूमटिन्म, एपेंडिसाईटिस हुआ है।

या
(ख) दूसरी कोई ऐसी बीमारी या दुर्घटना जिसके कारण शैपुया पर लेटे रहना पड़ा है और जिसका मैडिटल या सर्जिकल इलाज किया गया हो, हुई है।


  1. आपको चेचक का टीका आखिरी बार कब लगा था।
  2. क्या आपको अधिक काम या किसी दूसरे कारण में किसी किस्म की अधीरता (नर्वसनेस) हुई।
  3. स्यार्थ परिवार के संबंध में निम्नलिखित क्योरे दें :-
    img-2.jpeg

क्या इससे पहले किसी मेडिकल बोर्ड ने आपकी परीक्षा की है?
8. यदि ऊपर के प्रश्न पर उत्तर हो में हो तो बताइए किस सेककन सेवाओं के लिए आपकी परीक्षा की गई थी?
9. क्योड होने वाला प्राधिकारी कौन था?
10. कब और कहां मेडिकल हुआ?
11. मेडिकल बोर्ड की परीक्षा का परिणाम यदि आपको बताया गया हो अथवा आपकी मालूम हो।
12. उपयुर्वत सभी उत्तर मेरी सर्वोत्तम जानकारी तथा विश्वास के अनुसार सत्य तथा सही हैं तथा मैं अपने द्वारा दी गई

किसी सूचना में की गईं विकृति या किसी संगत जानकारी को छुपाने के लिए कानून के अंतर्गत किसी भी कार्रवाई का भागी हूंग। झूठी सूचनाएं देना या किसी महत्वपूर्ण सूचना को छिपाना अयोग्यता मानी जाएगी और मुझे सरकार के अंतर्गत नियुक्ति के लिए अयोग्य माना जाएगा। मेरे सेवाकाल के दौरान किसी भी समय ऐसी कोई जानकारी मिलती है कि मैंने कोई गलत सूचना दी है या किसी महत्वपूर्ण सूचना को छिपाया है तो मेरी सेवाएं रद्द कर दी जाएंगी।
उम्मोदवार के हस्ताक्षर
मेरी उपस्थिति में हस्ताक्षर किए
बोर्ड के अध्यक्ष के हस्ताक्षर

प्रपत्र

(बी) शारीरिक जांच (अभ्यर्थी का नाम) के संबंध में मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट

  1. सामान्य विकास : उत्तम

साधारण
पोषण : दुबला
मोटा
क़ँचाई : (बिना जूते के)
वजन
सर्वाधिक वजन
कब
सजन में
हाल में कोई परिवर्तन
तापमान
छाती की माप :
(1) छाती फुलाकर
(2) छाती फुलाए बिना
2. त्वचा : कोई स्पष्ट रोग
3. आँख :
(1) कोई रोग
(2) रतौंधी
(3) वर्ण दृष्टि दोष
(4) दृष्टि दूरी
(5) विजुअल एक्यूटी
(6) फन्डस जांच

एक्यूटी ऑफ विजन नग्न आँख चश्मा के साथ काँच को शक्ति
स्मोरिकल,
सिलिट्रिकल-
एक्सिस
1 2 3

दूर दृष्टि
दायी आँख-
बांयी आँख-
निकट दृष्टि
दायी आँख-
बांयी आँख-
हाइपरमेट्रोपिया (स्पष्ट)
दायी आँख-
बांयी आँख-
4. कान
जाँच
अवण:
दायां कान
बायां कान
5. ग्रंथिय
घायरॉयड
6. दांतों की स्थिति
7. श्वसन तंत्र: क्या शारीरिक जाँच में श्वसन अंगों में कोई असामान्य बात दिखाई दी है.
यदि हाँ, तो पूर्ण विवरण दें.


  1. परिसंचरण तंत्र:
    (क) हृदय : कोई आर्गेनिक लेजन
    स्थायी गति $\qquad$ 25 बार कूदने के बाद
    कूदने के 2 मिनट के बाद
    (ख) रक्तचाप:
    सिस्टोलिक
    $\qquad$ डायस्टोलिक
  2. पेडू : माप
    हानिया
    (क) पैल्येवल यकृत
    वृक्क
    हेमरॉयड्स
    $\qquad$ फिस्ट्रला
  3. स्नायुतंत्र : स्नायु संबंधी अथवा मानसिक नि:शक्तता
  4. लोको मोटर सिस्टम : कोई असामान्यता
  5. जेनाइटो युरिनरी सिस्टम : हाइड्रोसिल, वेरिकोसील इत्यादि के कोई प्रमाण:

मूत्र विश्लेषण :
(क) दिखने में कैसा है
(ख) विशेष समूह
(ग) एल्ब्यूमेन
(घ) शर्करा
(ड-) कास्ट्स
(च) कोशिकाएं
13. अभ्यर्थी जिस सेवा का है, उसमें कर्तव्य निर्वहन हेतु अयोग्य घोषित किए जाने का कोई कारण अभ्यर्थी के स्वास्थ्य में है?
टिप्पणी : महिला अभ्यर्थी के मामले में, यदि यह पाया जाता है कि वह 12 सप्ताह या अधिक अवधि से गर्भवती है, तो उसे विनियम 9 द्वारा अस्थायी रूप से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
14. (i) सेवा का नामक बताएं जिसके लिए अभ्यर्थी को जांच की गई है:-
(क) भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा भारतीय विदेश सेवा
(ख) भारतीय आरक्षी सेवा, केन्द्रीय आरक्षी सेवा समूह ‘क’ और ‘ख’ रेलवे सुरक्षा बल और दिल्ली एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह आरक्षी सेवा, केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो में आरक्षी उपाधीक्षक ।
(ग) केन्द्रीय सेवाएं, समूह ‘क’ और ‘ख’
(ii) क्या उसे निम्नलिखित सेवाओं में सक्षम एवं निरन्तर रूप से अपना कर्तव्य निर्वहन करने के लिए हर तरह से योग्य पाया गया है:
(क) भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा भारतीय विदेश सेवा
(ख) भारतीय आरक्षी सेवा समूह ‘क’ और ‘ख’ रेलवे सुरक्षा बल तथा दिल्ली एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह आरक्षी सेवा (विशेषकर ऊचाई, छाती को

माप, आंखों की दृष्टि, वर्णाधता और लोकोमोटिव सिस्टम देखें)
(ग) भारतीय रेलवे यातायात सेवा
(विशेषकर ऊचाई, छाती, आँखों की दृष्टि, वर्णाधता देखें)
(घ) अन्य केन्द्रीय सेवाएं, समूह ‘क’/’ख’
(iii) क्या अभ्यर्थी फील्ड सेवा के लिए योग्य है?

टिप्पणी 1: बोर्ड को अपने जांच परिणाम निम्नलिखित तीन वर्गों में से किसी एक वर्ग में रिकार्ड करना चाहिए।
(i) स्वस्थ
(ii) के कारण अस्वस्थ
(iii) के कारण अस्थायी रूप से अस्वस्थ ।
(iv) केवल शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए आरक्षित विनिर्दिष्ट रिक्तियों के लिए उपयुक्त।
टिप्पणी 2: उम्मीदवार की छाती का एक्स-रे परीक्षण नहीं किया गया है, इस कारण उपर्युक्त निष्कर्ष अंतिम नहीं है और छाती के एक्स-रे परीक्षण की रिपोर्ट के अध्यधीन है।

स्थान :
हस्ताक्षर :
सदस्य
दिनांक :
सदस्य
मेडिकल बोर्ड की मुहर

प्रपत्र-II

उम्मीदवार का कथन/घोषणा

  1. अपना नाम लिखें:
    (बड़े अक्षरों में)
  2. रोल नम्बर:

उम्मीदवार के हस्ताक्षर
15. छाती की एक्स-रे जांच

टिप्पणी: बोर्ड को अपने निष्कर्ष निम्नलिखित तीन श्रेणियों में से एक के अंतर्गत दर्ज करने चाहिए :-
(i) योग्य
(ii) के कारण अयोग्य
(iii) के कारण अस्थायी रूप से अयोग्य
(iv) केवल शारीरिक रूप से नि:शक्त व्यक्तियों के लिए आरक्षित विनिर्दिष्ट रिक्ति के लिए योग्य
स्थान:
अध्यक्ष
हस्ताक्षर
सदस्य
तारीख :


परिशिष्ट-4
शारीरिक अपेक्षाओं तथा कार्यात्मक वर्गीकरण सहित शारीरिक रूप से विकलांग वर्ग हेतु आयुक्त चिह्नित सेवाओं की एक सूची

क्रम संख्या सेवा का नाम श्रेणी (श्रेणियां) जिसके लिए पहचान की गई *कार्यात्मक वर्गीकरण *शारीरिक अपेक्षाएं
(1) (2) (3) (4) (5)
1. भारतीय प्रशासनिक सेवा (i) लोकोमोटर, अक्षमता बोए, ओएल ओए, बीएच, एम डब्ल्यू एस, एसटी, डब्ल्यू, एसई एच, आर डब्ल्यूटी
(ii) दृष्टि बाधित पी बी
(iii) श्रवण बाधित पी डी
2. भारतीय विदेश सेवा (i) लोकोमोटर अक्षमता ओए, ओएल, ओएएल आर डब्ल्यूसी, एम एफ, एस, एसटी, डब्ल्यू,
(ii) दृष्टि बाधित एल वी एसई
(iii) श्रवण बाधित एलएच
3. भारतीय राजस्व सेवा (सीमा- शुल्क एवं कोडीय उत्पाद शुल्क ग्रुप ‘क’) (i) लोकोमोटर अक्षमता (ii) श्रवण बाधित ओएल ओए,
एचएच
एस, एसटी, डब्ल्यू, बीएल, एल, एस ई, एमएफ, आर डब्ल्यू, एच, सी
4. भारतीय डाक-तार लेखा और वित्त सेवा ग्रुप ‘क’ (i) लोकोमोटर अक्षमता
(ii) दृष्टि बाधित
(iii) श्रवण बाधित
ओए, ओएल, ओएल, वी एल एस. डब्ल्यू एसई आर डब्ल्यू, सी
एल वी
एन एच
5. भारतीय लेखा परीक्षा तथा लेखा सेवा ग्रुप ‘क’ (i) लोकोमोटर अक्षमता ओए, ओएल, ओएएल एस, एसटी, डब्ल्यू, बीएल, एसई, आरडब्ल्यू, एच, सी
(ii)-दृष्टि बाधित एलवी
(iii) श्रवण बाधित एचएच
6. भारतीय रक्षा लेखा सेवा ग्रुप ‘क’ (i) लोकोमोटर अक्षमता ओए, ओएल, ओएएल, बीएल एस, एसटी, डब्ल्यू, बी एन, एसई, आर डब्ल्यू, सी
(ii) दृष्टि बाधित एचएच
(iii) श्रवण बाधित एलवी
7. भारतीय राजस्व सेवा (आयकर), ग्रुप ‘क’ (i) लोकोमोटर अक्षमता ओए, ओएल, ओएएल, बीएल एस, एसटी, डब्ल्यू, एसई, आर डब्ल्यू, सी
(ii) श्रवण बाधित एचएच
8. भारतीय आयुध कारखाना सेवा, ग्रुप ‘क’ (i) लोकोमोटर अक्षमता ओए, ओएल, ओएएल एस, एसटी, डब्ल्यू, एसई, आर डब्ल्यू, सी
(ii) दृष्टि बाधित एलवी
(iii) श्रवण बाधित पीडी
9. भारतीय डाक सेवा ग्रुप ‘क’ (i) लोकोमोटर अक्षमता ओए, ओएल, ओएएल, बीएल एस, एसटी, डब्ल्यू, बी एन, आर डब्ल्यू, एस ई एच, सी
(ii) दृष्टि बाधित बी, एलवी
(iii) श्रवण बाधित एचएच
10. भारतीय सिविल लेखा सेवा ग्रुप ‘क’ (i) लोकोमोटर अक्षमता ओए, ओएल, ओएएल, बीएल एस, एसटी, डब्ल्यू, एसई, आर इब्ल्यू, एच, सी
(ii) दृष्टि बाधित एलवी
(iii) श्रवण बाधित एचएच

[ भाग 1-खण्ड ।]
भारत का राजपत्र : असाधारण
(1) (2)
(3)
(4)
(5)
11. भारतीय रेलवे लेखा सेवा
ग्रुप ‘क’
( i ) लोकोमोटर अक्षमता
ओए, ओएल, ओएएल, बीएल
एस, एसटी डब्ल्यू, एसई,
आर डब्ल्यू, एच सी
( ii) दृष्टि बाधित
एलवी
(iii) श्रवण बाधित
एचएच
12. भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा
ग्रुप ‘क’
( i ) लोकोमोटर अक्षमता
ओए, ओएल
एस, एसटी, डब्ल्यू, बी एन,
एसई, आर डब्ल्यू, एच, सी
( ii) दृष्टि बाधित
बी एलवी
(iii) श्रवण बाधित
एचएच
13. भारतीय रक्षा संपदा सेवा
ग्रुप ‘क’
( i ) लोकोमोटर अक्षमता
ओए, ओएल
एस, एसटी, डब्ल्यू, बी एन,
एम एफ, पी पी, कंसी, एस
ई, आर डब्ल्यू, एच, सी
( ii) नेत्रहीनहा या आत्म दृष्टि
एलवी
(iii) श्रवण बाधित
एचएच
14. भारतीय सूचना सेवा
ग्रुप ‘क’
( i ) लोकोमोटर अक्षमता
ओए, ओएल, ओएएल, बीएल
एस, एसटी, डब्ल्यू, एसई,
आर डब्ल्यू, एच, सी
( ii) दृष्टि बाधित
बी, एलवी
(iii) श्रवण बाधित
एचएच
15. भारतीय व्यापार सेवा
ग्रुप ‘क’ (ग्रेड-3)
( i ) लोकोमोटर अक्षमता
( i) लोकोमोटर अक्षमता
ओए, ओएल, ओएएल, बीएल
एस, एसटी, डब्ल्यू, बी एन,
एम एफ, एसई, आर डब्ल्यू,
एच, सी
( ii) दृष्टि बाधित
( iii) श्रवण बाधित
एलवी
(iii) श्रवण बाधित
एचएच
16. भारतीय कारपोरेट विधि सेवा
ग्रुप ‘क’
( i ) लोकोमोटर अक्षमता
ओए, ओएल
एस, एसटी, डब्ल्यू, एसई,
एस, बी, एनएच
( ii) दृष्टि बाधित
( iii) श्रवण बाधित
एचएच
17. सशस्त्र सेना मुख्यालय सिविल सेवा
ग्रुप ‘ख’ (अनुभाग अधिकारी ग्रेड)
( i) लोकोमोटर अक्षमता
ओए, ओएल
एस, एसटी, डब्ल्यू, बी एन,
एम एफ एस ई, आर डब्ल्यू,
एच, सी
( ii) दृष्टि बाधित
( iii) श्रवण बाधित
एलवी
(iii) श्रवण बाधित
एचएच
18. दिल्ली अंडमान एवं निकोबार द्वीप
समूह, लक्षद्वीप, दमण एवं दीव
तथा दादरा एवं नगर हवेली सिविल
सेवा ग्रुप ‘ख’
( i) लोकोमोटर अक्षमता
( i) लोकोमोटर अक्षमता
ओए, ओएल, ओएएल, बीएल
एलवी
एचएच
एलवी
एचएच
19. दिल्ली अंडमान एवं निकोबार द्वीप
समूह, लक्षद्वीप, दमण एवं दीव
तथा दादरा एवं नगर हवेली पुलिस
सेवा ग्रुप ‘ख’
( i) लोकोमोटर अक्षमता
( i) लोकोमोटर अक्षमता
ओएल
एचएच
एस, एसटी, डब्ल्यू, बी एन,
पी पी, कंसी, एम एफ,
एसई, आर डब्ल्यू, एच, सी


(1) (2) (3) (4) (5)
20. पांडिचेरी सिविल सेवा
(ग्रुप ‘ख’)
(i) लोकोमोटर अश्वमता ओए, ओएल, ओएल, बीएल, एल वी एस, एसटी, डब्ल्यू, एसई, आर डब्ल्यू, एच, सी
(ii) दृष्टि बाधित एलवी
(iii) श्रवण बाधित एचएच
अश्वमता की श्रेणियां ओएच, वीएच, एचएच अस्थि विकलांग दृष्टि बाधित श्रवण बाधित
उप-श्रेणियां बी एल (BL) दोनों गैर प्रभावित लेकिन भुजाएं नहीं
बीए (BA)
बीएलए (BLA) दोनों भुजाएं प्रभाति
ओएल (OL) दोनों पैर तथा दोनों भुजाएं प्रभावित
ओए (OA) एक पैर प्रभावित
ओएएल (OAL) एक भुजा प्रभावित
एमडब्ल्यू (MW) एक भुजा और एक पैर प्रभावित
बो (B) मांसपेशीय दुर्बलता तथा सीमित शारीरिक शक्ति
एलवी (LV) नेत्रहीन
एच (H) आंशिक दृष्टि
सुनना
शारीरिक अपेक्षाएं एमएफ (MF) हाथ (अंगुलियों से) द्वारा निष्पादित किए जाने वाले कार्य।
पोपी.(PP) खींच कर तथा धक्के द्वारा किए जाने वाले कार्य।
एल (L) उत्थापन (लिफ्टिंग) द्वारा किए जाने वाले कार्य।
कोसी (KC) घुटने के बल बैठकर तथा क्राउचिंग द्वारा किए जाने वाले कार्य।
बीएन (BN) झुककर किए जाने वाले कार्य।
एस (S) बैठकर (बैँच या कुर्सी पर) किए जाने वाले कार्य।
एसटी (ST) खड़े होकर किए जाने वाले कार्य।
डब्ल्यू (W) चलते हुए किए जाने वाले कार्य।
एसई (SE) देख कर किए जाने वाले कार्य।
एच (H) सुनकर या बोल कर किए जाने वाले कार्य।
आर डब्ल्यू (RW) पढ़कर तथा लिखकर किए जाने वाले कार्य।
सो (C) वार्तालाप।